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I Want Something in a Cage Summary in English by L. E. Greeve
I Want Something in a Cage Summary in English
Mr Purcell owned a pet shop. He sold cats and dogs and monkeys. He also sold fish food and bird seed. The birds and other small creatures were closed up in cages. They moved about madly in circles. They made a lot of noise. But Purcell was used to that.
Each morning Purcell sat on a high stool behind the counter to read the morning paper. As he read, he smiled or frowned. It was a rough day. A fainted wind was blowing. A bell at the door rang whenever a customer entered the shop. That morning it didn’t ring. A stranger entered the shop and stood before the owner.
The man wore a cheap, ill-fitting suit. His hair was cut short. He ran his eyes around at the cages. He said he wanted something in a cage, something small, a bird. He pointed to a cage which contained two white doves. Purcell demanded the price five dollars and fifty cents. The man felt sad. He wanted to have those birds but he had only five dollars. Purcell finalised the deal and handed the cage to his customer. The man asked Purcell if he was not disturbed by the noise. Purcell, however, didn’t hear any noise.
The stranger then told Purcell that he had earned those five dollars after ten years of hard labour in prison, fifty cents a year. He turned around and walked out of the store. Just outside, he held the cage high and drew out one of the doves and then the second one. He set them free into the air. Then he dropped the cage and walked away.
Purcell stood perplexed. He wondered why the man had let the birds loose. Any way, he felt sort of insulted. While he was robbing the pets of their freedom, the stranger had spent his total earning on buying and then liberating them.
I Want Something in a Cage Summary in Hindi
मि० पुरसेल की पालतू जीवों की दुकान थी। वह बिल्लियों, कुत्तों तथा बन्दरों को बेचा करता था। वह मछली का चारा तथा पक्षियों के दाने भी बेचता था। पक्षी तथा अन्य छोटे जीव पिंजरों में बंद थे। वे पागल जैसे चक्कर काटा करते। वे शोर भी बहुत करते थे, पर पुरसेल उसका आदी हो चुका था।
हर प्रातः पुरसेल एक ऊँचे स्टूल पर काउंटर के पीछे बैठकर अखबार पढ़ता था। पढ़ते-पढ़ते वह मुस्करा देता था अथवा त्योरी चढ़ा लेता था। दिन खराब था। तेज हवा चल रही थी। जब कभी कोई ग्राहक दुकान में प्रवेश करता था तो दरवाजे पर लटकी पटी जज जाती थी। उस प्रातः घंटी नहीं बजी। एक अजनबी दुकान के अन्दर आकर मालिक के सामने खड़ा हो गया।
उस व्यक्ति ने एक घटिया सा ढीला-ढाला सूट पहन रखा था। उसके बाल छोटे कटे थे। उसने अपनी दृष्टि पिंजरों पर डाली। वह बोला मुझे पिंजरों में बंद कोई जीव चाहिये, कोई छोटा पक्षी। उसने एक पिंजरे की ओर संकेत किया जिसके अन्दर दो परफेद फाख्ता थीं। पुरसेल ने उसकी कीमत बताई साढ़े पांच डालर। व्यक्ति उदास हो गया। वह उन पक्षियों को खरीदना तो चाहता था पर उसके पास केवल पाँच डालर ही थे। पुरसेल ने सौदा तय कर लिया तथा पिंजरा उस अजनबी को सौंप दिया। व्यक्ति ने पुरसेल से प्रश्न किया क्या आपको इस शोर गुल से कोई तकलीफ नहीं होती। पर पुरसेल को तो कोई शोर नहीं सुनाई देता था।
तब अजनबी ने पुरसेल को बताया कि उसने अपने पाँच डालर दस वर्ष जेल में कठिन परिश्रम के बाद एकत्र किए थे, हर वर्ष पचास सेंट की दर से। वह मुड़ा तथा स्टोर से बाहर निकल गया। बाहर पहुँचते ही उसने अपने पिंजरे को ऊपर उठाया तथा एक पक्षी को बाहर निकाला. फिर दूसरे को निकाला। दोनों को उसने हवा में उड़ने के लिए मुक्त कर दिया। फिर पिंजरा उसने फेंक दिया तथा चला गया।
पुरसेल उलझन में खड़ा रह गया। उसे समझ में नहीं आया कि उस व्यक्ति ने पक्षियों को आजाद क्यों कर दिया। उसने अपमानित महसूस किया। पुरसेल स्वयं अपने जीवों की आजादी छीन रहा था, उस अजनबी ने अपनी सारी पूँजी लगाकर दो पक्षियों को खरीदा तथा उन्हें आजाद कर दिया।