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Jalebis Summary in English by Ahmed Nadeem Qasmi
Jalebis Summary in English
The narrator was a fifth standard school boy. One day he went to school with four rupees in his pocket. He was to pay his school fees. But, Ghulam Mohammed who collected the fees, was absent.
All through the day the coins simply sat in his pocket. But once he walked out of school, they began to jingle. One coin actually spoke to him to eat the hot, syrupy and fresh jalebis. Money was meant to be spent. But the boy hesitated to spend his fees money.
He knew how strict his class teacher was.
But the coins were not convinced. They began to speak at the same time. The – boy grabbed all four of them tight in his fist. As soon as he loosened his grip, the oldest coin asked him if he didn’t feel like eating jalebis. And then he was to get his scholarship money of four rupees the next day. He could easily pay the fees.
The boy’s mouth watered. But still he dared not to buy the jalebis. He was brilliant in studies. He came of a well-to-do family also. It wasn’t right for him to eat jalebis in the middle of the bazaar. The coins did not give in. They persuaded the boy. They were so keen on being spent that day. The boy returned home and went inside for lunch. He wanted to control his desire for jalebis. But finally he surrendered. He ran to the sweetmeat seller and bought them worth a rupee. He got quite a lot of them.
Seeing his uncle returning from court, the boy ran into a lane. He ate as many jalebis as he could. Soon the boys from the neighbourhood surrounded him. He started distributing them among the children. He spent the remaining three rupees also on jalebis and handed them out to the children. He then washed his hands and mouth. He returned home. He felt it was difficult to digest such a lot. All night he suffered stomachache. In the morning he was all right and headed for school. He faced another problem. The scholarship was to be paid the following month. His head began to spin. When the recess bell rang, he left the school and reached the railway station. He was sad and scared. Had he known about the delay in the payment of scholarship money, he would have never spent the amount on jalebis.
Spending fee amount on jalebis is now becoming heavy on him. He thought of the teacher’s cane. He began to pray. He recited the entire Namaz to please God. He felt sorry and appealed to God to send him four rupees. But all his plans misfired. Allah Miyan showed no mercy. One day he was caught. The report of his absence from school had reached home. It took him several years to realise that God helps those who help themselves. God doesn’t give anything if one asks for it. One should be careful about one’s behaviour.
Jalebis Summary in Hindi
वर्णनकर्ता पाँचवी कक्षा का छात्र था। एक दिन वह जेब में चार रुपये रखकर स्कूल गया। उसे स्कूल की फीस देनी थी। पर स्कूल मास्टर गुलाम मोहम्मद, जो फीस लेते थे, छुट्टी पर थे।
सारा दिन सिक्के उस बालक की जेब में पड़े रहे। पर जैसे ही वह स्कूल के बाहर निकला, वे एक साथ खनकने लगे। एक ने तो सचमुच बोलकर कहा कि जाकर गर्म, चासनी भरी और ताजी जलेबियाँ खाओ। वह बोला पैसा तो खर्च करने के लिये होता है। पर बालक फीस की राशि खर्च करने में हिचक रहा था। वह अपने क्लास टीचर की सख्ती से परिचित था।
पर सिक्के संतुष्ट नहीं हुए। वे एक साथ बोलने लगे। बालक ने चारों सिक्कों को कसकर पकड़ लिया। जैसे ही उसने पकड़ ढीली की सबसे पुराना सिक्का बोला क्या जलेबी खाने की तुम्हारी इच्छा नहीं है? और फिर तुम्हें तो कल छात्रवृति के चार रुपये मिल ही जायेंगे। फिर आसानी से फीस चुका देना।
बालक के मुँह में पानी आ गया। पर फिर भी जलेबी खरीदने की उसकी हिम्मत नहीं हुई। वह पढ़ाई में अव्वल था और उसका परिवार भी संपन्न था। उसके लिये यह अशोभनीय था कि वह बाजार के बीच खड़ा होकर जलेबी खाए। सिक्कों ने हार नहीं मानी। घर लौटकर बालक ने लंच खाया। वह जलेबी के प्रलोभन पर काबू पाना चाहता था। पर अंततः उसने हथियार डाल दिये। वह दौड़कर मिठाई . की दुकान पर गया और एक रुपये की जलेबियाँ खरीद लीं। उसे काफी मात्रा में जलेबियाँ मिल गई।
अपने चाचा को कोर्ट से लौटते देखकर बालक एक गली में चला गया। वहाँ उसने छककर जलेबियाँ खाई। शीघ्र ही पड़ोस के बालकों ने उसे घेर लिया। बालक ने उन्हें भी जलेबियाँ दीं। उसने शेष बचे तीन रुपये भी जलेबियों पर खर्च कर दिये स्वयं भी खूब खाया तथा बच्चों को भी खिलाया। फिर उसने हाथ मुँह धोया। वह घर लौट आया। उसे लगा कि इतनी जलेबियाँ हजम करना कठिन होगा। सारी रात उसके पेट में दर्द होता रहा। प्रात: वह ठीक हो गया और स्कूल के लिए निकल पड़ा। अब उसके सामने एक नयी समस्या आ गई। छात्रवृत्ति अब अगले महीने मिलनी थी। उसका सिर चकराने लगा। जब स्कूल के टिफन की घंटी लगी वह स्कूल से भाग कर रेलवे स्टेशन पहुँच गया। वह उदास तथा भयभीत था। यदि उसे छात्रवृत्ति मिलने में बिलम्ब होने की जानकारी होती तो वह जलेबियों पर फीस का पैसा कभी भी खर्च न करता।
जलेबी पर खर्च की गई फीस की रकम अब उस पर भारी पड़ने लगी। उसे फिर शिक्षक की बेंत का ध्यान आया। उसने परमात्मा से विनती करनी शुरु की। उसने नमाज की आयतें पढ़ीं। ईश्वर को खुश करने के लिए उसने क्षमा माँगी तथा अल्लाह से निवेदन किया कि चार रुपये उसे भेज दे। पर उसके सारे यत्न विफल रहे। अल्लाह ने कोई दया नहीं दिखाई। एक दिन वह पकड़ा गया। स्कूल से उसकी अनुपस्थिति की सूचना घर पहुँच गई थी। कई वर्षों बाद उसे समझ आई कि ईश्वर उन्हीं की मदद करता है जो अपनी मदद आप करते हैं। ईश्वर कुछ भी माँगने से देता नहीं। हर किसी को अपने व्यवहार को संयमित रखना चाहिए।