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A Game of Chance Summary in English by Arthur Wright
A Game of Chance Summary in English
Every year a fair was held in Rasheed’s village. The occasion was Eid. Traders came there from far and wide to sell their goods.
Rasheed’s uncle took him to the fair. Their domestic help, Bhaiya, also went with them. There was a big crowd there. Uncle left them at one place and went away with his friends. He, however, warned the boy not to go far, and not to buy anything in his absence.
Rasheed was led by Bhaiya to different shops at the fair. He reached a shop, called the Lucky Shop. The shopkeeper was a middle-aged man. He urged the visitors to come and try their luck. It was a game of chance.
The player paid 50 paise and got six numbered discs. He was to add up the numbers on discs and find the total. He won the article marked with that number.
An old man played the game and won a lovely clock. But he had no need of it. The shopkeeper bought it back for 15 rupees. He was richer by 15 rupees.
Then a boy tried his luck. He won a comb, a fountain pen, a wrist watch and finally a table lamp. He sold all the items back to the shopkeeper. He went away happily with a good deal of cash.
The narrator also wanted to try his luck. But he was unlucky. He won only cheap items like pencils, a bottle of ink, etc. He lost all his money. He looked sad.
Presently Uncle came back. Bhaiya told him the story. Uncle was neither sad nor angiy. He took Rasheed to a shop and bought him so many gifts.
Back home, he explained to Rasheed the trick played by the shopkeeper. The old man and the boy were, in fact, the shopkeeper’s friends. They tempted the innocent people to try their luck. Uncle assured Rasheed that he was neither unlucky nor foolish.
A Game of Chance Summary in Hindi
हर वर्ष रशीद के गाँव में एक मेला लगा करता था। यह ईद के अवसर पर लगता था। वहाँ दूर दूर से दुकानदार अपना सामान बेचने आया करते थे।
रशीद के चाचा उसे मेला दिखाने ले गये। उनका घरेलू नौकर भैया भी उनके साथ गया। वहाँ बहुत भीड़भाड़ थी। चाचा उन दोनों को एक स्थान पर खड़ा करके अपने मित्रों के साथ चले गये। पर वह रशीद को सचेत कर गये कि यहाँ से दूर मत जाना और उनकी अनुपस्थिति में कुछ खरीदारी भी मत करना।।
रशीद को भैया मेले की कई दूकानों पर ले गया। रशीद एक भाग्यशाली दुकान पर गया’। दुकानदार अधेड़ आयु का था। वह आगन्तुकों को बुला रहा था कि आकर अपना भाग्य आजमा लो। उसका खेल एक जुआ जैसा था।
खिलाड़ी 50 पैसे देता था और उसे 6 चक्र मिल जाते थे। उसे उस संख्या को जोड़कर कुल योग बनाना होता था। वह उसी संख्या वाली वस्तु इनाम में जीत लेता था।
एक वृद्ध व्यक्ति ने खेल खेला। उसने एक सुन्दर घड़ी जीत ली। पर उसे घड़ी की ज़रूरत न थी। उसने दूकानदार को वह घड़ी 15 रुपये में बेच दी। वह 15 रुपये जीत गया।
फिर एक बालक ने अपनी किस्मत आजमाई। उसने एक कंघा, एक पेन, एक हाथ घड़ी तथा एक टेबल लैंप जीता। उसने सभी चीज़ों को दूकानदार के हाथ बेच दिया। वह काफी राशि लेकर खुशी-खुशी चला गया।
रशीद की भी इच्छा हुई कि वह अपनी किस्मत आजमाये। पर भाग्य ने उसका साथ नहीं दिया। उसने केवल सस्ती चीजें ही पायीं जैसे पेन्सिल, दवात आदि। अपना सारा पैसा वह हार गया। वह उदास हो गया।
शीघ्र ही चाचा वापिस आ गये। भैया ने उन्हें सारी घटना सुनाई। चाचा न तो उदास हुए न ही नाराज। वह रशीद को एक दुकान पर ले गये और उसे काफी उपहार खरीद दिये।
घर लौट कर चाचा ने रशीद को दुकानदार की चालबाजी स्पष्ट की। बूढ़ा व्यक्ति तथा लड़का दोनों वास्तव में दुकानदार के मित्र थे। वे नादान लोगों को अपनी किस्मत आजमाने का खेल खेलने का प्रलोभन देते थे। चाचा ने रशीद को विश्वास दिलाया कि वह न तो अभागा है न ही मूर्ख।