NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 8

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 8 कन्यादान

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा कि लड़की होना पर लड़की जैसी मत दिखाई देना? [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
अथवा
ऋतुराज की ‘कन्यादान’ कविता के आधार पर बताइए कि आपके विचार से माँ ने ऐसा क्यों कहा-‘लड़की होना, पर लड़की जैसी दिखाई मत देना।’ [CBSE 2008] |
उत्तर:
माँ चाहती है कि उसकी लडकी स्वभाव से सरल, भोली और कोमल बनी रहे। वह दुनियादारों जैसी स्वार्थी, चालाक और झगड़ालू न बने। परंतु साथ ही वह उसे शोषण से भी बचाना चाहती है। वह चाहती है कि उसके ससुराल वाले उसकी सरलता का गलत फायदा न उठाएँ, उस पर अत्याचार न करें। इसलिए वह कहती है कि उसकी लड़की लड़की तो बने किंतु लड़की जैसी दिखाई न दे।

प्रश्न 2.
‘आग रोटियाँ सेंकने के लिए है।
जलने के लिए नहीं’
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की किस स्थिति की ओर संकेत किया गया है?
(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना क्यों ज़रूरी समझा?
उत्तर:
(क) इन पंक्तियों में समाज में स्त्री की दशा के बारे में दो बातें बताई गई हैं

  1.  वह ससुराल में घर-गृहस्थी का काम सँभालती है। घर-भर के लिए रोटियाँ पकाती है।
  2. काम में खटने के बावजूद उस पर अत्याचार किए जाते हैं। कई बार उसे जला डाला जाता है।

(ख) माँ ने बेटी को सचेत करना जरूरी इसलिए समझा क्योंकि सभी लड़कियाँ शादी के समय खुशहाली के सपने देखती हैं। परंतु वे सभी सपने झूठे सिद्ध होते हैं। वास्तव में बहुओं को प्यार के नाम पर घर-गृहस्थी के कठोर बंधनों में बाँधा जाता है। यदि वह इससे इनकार करे तो उसे जला भी दिया जाता है। परंतु विवाह के समय भोली कन्या को इस दुर्दशा का अहसास नहीं होता। इसलिए वह उससे बचने का कोई उपाय भी नहीं करती।

प्रश्न 3.
‘पाठिका थी वह धुंधले प्रकाश की ।
कुछ तुकों और कुछ लयबद्ध पंक्तियों की इन पंक्तियों को पढ़कर लड़की की जो छवि आपके सामने उभरकर आ रही है उसे शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर:
इन पंक्तियों को पढ़कर हमारे मन में एक ऐसी लड़की की छवि उभरती है जो विवाह के काल्पनिक सुखों में मग्न है। वह सोच रही है कि वह सज-धजकर ससुराल में जाएगी। उसके पति उस पर रीझेंगे, उसे प्यार करेंगे। सास-ससुर और अन्य मित्र-बंधु उसे पलकों पर बिठा लेंगे। वह नाज-नखरों से रहेगी। सब लोग उसकी प्रशंसा करेंगे तो वह कितनी सुखी
होगी। जब वह नए-नए कपड़े और गहने पहनेगी तो सबकी आँखों में प्रशंसा का भाव होगा। इस प्रकार ससुराल में उसका जीवन मधुर होगा, संगीतमय होगा। उसे घर-गृहस्थी के सारे काम निपटाने पड़ेंगे, चूल्हा-चौका करना पड़ेगा इसकी तो वह कल्पना भी नहीं करती।

प्रश्न 4.
माँ को अपनी बेटी ‘अंतिम पूँजी’ क्यों लग रही थी? [Imp.] [CBSE 2012]
उत्तर:
माँ अपने सुख-दुख को, विशेषकर नारी-जीवन के दुखों को अपनी माँ, बहन या बेटी के साथ बाँट सकती है। शादी से पहले माँ और बहनें उसकी पूँजी थीं। वह उनके साथ बातें कर सकती थी, सलाह ले-दे सकती थी। परंतु अब उसके पास बेटी ही एक मात्र पूँजी है। कन्यादान के बाद वह भी ससुराल चली जाएगी तो वह बिल्कुल अकेली रह जाएगी।

प्रश्न 5.
माँ ने बेटी को क्या-क्या सीख दी? [Imp.][CBSE2012; A.I. CBSE 2008; A.I. CBSE 2008 C]
उत्तर:
माँ ने बेटी को निम्नलिखित सीख दी

  • कभी अपनी सुंदरता और उसकी प्रशंसा पर न रीझना।
  • घर-गृहस्थी के सामान्य कार्य तो करना, किंतु अत्याचार न सहना।
  • कपड़ों और गहनों के बदले अपनी आज़ादी न बेचना, अपना व्यक्तित्व न खोना।
  • अपनी सरलता और भोलेपन को इस तरह प्रकट न करना कि लोग उसका गलत ढंग से लाभ उठाएँ।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
आपकी दृष्टि में कन्या के साथ दान की बात करना कहाँ तक उचित है?
अथवा
‘कन्यादान’ शब्द द्वारा वर्तमान समय में कन्या के दान की बात करना कहाँ तक उचित है? [CBSE 2012, 2008]
उत्तर:
कन्या के साथ ‘दान करना’ शब्द-प्रयोग सम्मान-बोधक नहीं है। इससे प्रतीत होता है कि मानो कन्या कोई वस्तु है जिसे दान किया जा सकता है। मानो कन्या बेजान है, व्यक्तित्वहीन है। उसकी अपनी कोई इच्छा ही नहीं है। इस शब्द-प्रयोग। से ऐसा भी लगता है मानो कन्यादान करने के बाद कन्या के माता-पिता के साथ उसका कोई संबंध न रहा हो। वह पराई हो गई हो। इस प्रकार ये रोनों ही अर्थ अनुचित हैं।।
कन्यादान का दूसरा पक्ष भी है। भारत में दान की बड़ी महिमा है। दान वही श्रेष्ठ माना जाता है, जो दिया जाने योग्य हो, जो मूल्यवान और श्रेष्ठ हो। इसके लिए दान का योग्य पात्र भी देखा जाता है। किसी योग्य पात्र को दी जाने वाली वस्तु दान करने से दानदाता स्वयं को धन्य मानता है। इस दृष्टि से कन्यादान मनुष्य द्वारा दिया गया श्रेष्ठतम दान माना जाता है। जब व्यक्ति श्रेष्ठ संस्कारों से पाली गई अपनी कन्या को उसके ससुराल वालों को सौंपता है तो वह धन्य हो जाता है। वहाँ कन्यादान करना सर्वोत्तम माना जाता है।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न
‘स्त्री को सौंदर्य का प्रतिमान बना दिया जाना ही उसका बंधन बन जाता है-इस विषय पर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
यह बात सच है कि स्त्री की सुंदरता को महत्त्व देकर उसे बंधन में बाँधा जाता है। यदि किसी नारी को वश में करना है तो उसकी प्रशंसा करो। विशेष रूप से, उसकी सुंदरता की प्रशंसा करो। वह मुग्ध हो जाएगी। वह न चाहते हुए भी मर मिटेगी। इसलिए फिल्मों में सारे नायक नायिकाओं के रूप-सौंदर्य के दीवाने हुए फिरते हैं। हम देखते हैं कि अपनी प्रशंसा सुनकर लड़कियाँ दीवानी हो जाती हैं। जब वे सौंदर्य-जाल में फँस जाती हैं तो वही नायक कठोर पति बनकर उनसे हर प्रिय-अप्रिय काम करवाते हैं। तब नायिका को बोध होता है कि उसका सौंदर्य-वर्णन मात्र एक छलावा था। वास्तव में तो वह एक सामान्य नारी है। जो नारी इतना भी नहीं समझ पाती, वह जीवन-भर सजती-सँवरती रहती है और समाज की प्रशंसा पाने के लिए अपने व्यक्तित्व को खो देती है। इसके विपरीत जो नारियाँ अपनी इस कमज़ोरी को समझ लेती हैं, वे पुरुषों के बहकावे में नहीं आतीं। वे शारीरिक सौंदर्य की परिधि को पार करके अपने मन और आत्मा की तृप्ति के लिए जीती हैं। वे शिक्षा, व्यवसाय या अध्यात्म के क्षेत्र में नाम कमा जाती हैं।

प्रश्न
यहाँ अफगानी कवयित्री मीना किश्वर कमाल की कविता की कुछ पंक्तियाँ दी जा रही हैं। क्या आपको कन्यादान कविता से इसका कोई संबंध दिखाई देता है?
मैं लौटॅगी नहीं।
मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ।
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटुंगी नहीं |
मैंने ज्ञान के बंद दरवाजे खोल दिए हैं।
सोने के गहने तोड़कर फेंक दिए हैं।
भाइयो! मैं अब वह नहीं हूँ
जो पहले थी मैं एक जगी हुई स्त्री हूँ।
मैंने अपनी राह देख ली है।
अब मैं लौटूगी नहीं
उत्तर:
इस कविता का सीधा संबंध कन्यादान नामक कविता से है। कन्यादान की कन्या भोली है। वह सौंदर्य के जाल में बँधी हुई है। वह अपनी गुलामी के कारणों से अनजान है। इसलिए अबोध है। वह नहीं जानती कि सोने के आभूषण उसे पुरुष का गुलाम बनाते हैं।
‘मैं लौटॅगी नहीं’ की कन्या जागरूक हो उठी है। उसने जान लिया है कि सोने की जंजीरें उसके लिए बंधन हैं। इसलिए उसने सब गहने तोड़ डाले हैं। उसने अपनी कमजोरी को, अपने लक्ष्य को तथा दिशा को समझ लिया है। इस प्रकार ‘मैं लौटॅगी नहीं’ की कन्या कन्यादान’ की कन्या का जाग्रत रूप है।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 14

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 14 एक कहानी यह भी

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 14 एक कहानी यह भी.

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा? [Imp.][CBSE]
अथवा
‘एक कहानी यह भी’ पाठ की लेखिका के व्यक्तित्व को किन-किन व्यक्तियों ने किस रूप में प्रभावित किया? [CBSE 2012; A.I. CBSE 2008 C]
उत्तर:
लेखिका के व्यक्तित्व पर मुख्य रूप से दो व्यक्तियों का प्रभाव पड़ा।
पिताजी का प्रभाव-लेखिका के व्यक्तित्व को बनाने-बिगाड़ने में उनके पिता का बहुत बड़ा योगदान रहा है। उन्होंने ही लेखिका के मन में हीनता की भावना पैदा की। उन्होंने ही उसे शक्की बनाया, विद्रोही बनाया। उन्हीं ने लेखिका को देश और समाज के प्रति जागरूक बनाया। उसे रसोईघर और सामान्य घर-गृहस्थी से दूर एक प्रबुद्ध व्यक्तित्व दिया। लेखिका को देश के प्रति जागरूक बनाने में उनके पिता का ही योगदान है।
शीला अग्रवाल का प्रभाव-लेखिका को क्रियाशील, क्रांतिकारी और आंदोलनकारी बनाने में उनकी हिंदी-प्राध्यापिका शीला अग्रवाल का योगदान है। शीला अग्रवाल ने अपनी जोशीली बातों से लेखिका के मन में बैठे संस्कारों को कार्य-रूप दे दिया। उन्होंने लेखिका के खून में शोले भड्का दिए। पिता उसे चारदीवारी तक सीमित रखना चाहते थे, परंतु शीला अग्रवाल ने उसे जन-जीवन में खुलकर विद्रोह करना सिखा दिया।

प्रश्न 2.
इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर क्यों संबोधित किया है? [Imp.]
उत्तर:
भटियारखाने के दो अर्थ हैं-

  • जहाँ हमेशा भट्टी जलती रहती है, अर्थात् चूल्हा चढ़ा रहता है।
  • जहाँ बहुत शोर-गुल रहता है। भटियारे का घर। कमीने और असभ्य लोगों का जमघट। पाठ के संदर्भ में यह शब्द पहले अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। रसोईघर में हमेशा खाना-पकाना चलता रहता है। पिताजी अपने बच्चों को घर-गृहस्थी या चूल्हे-चौके तक सीमित नहीं रखना चाहते थे। वे उन्हें जागरूक नागरिक बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने रसोईघर की उपेक्षा करते हुए भटियारखाना अर्थात् प्रतिभा को नष्ट करने वाला कह दिया है।

प्रश्न 3.
वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर? [Imp.]
उत्तर:
हुआ यूं कि लेखिका के आंदोलनकारी व्यवहार से तंग आकर उनके कॉलेज की प्रिंसिपल ने लेखिका के पिता को बुलवाया। पिता पहले से ही लेखिका के विद्रोही रुख से परेशान रहते थे। उन्हें लगा कि जरूर इस लड़की ने कोई अपमानजनक काम किया होगा। इस कारण उन्हें सिर झुकाना पड़ेगा। इसलिए वे बड़बड़ाते हुए कॉलेज गए।
कॉलेज में जाकर उन्हें पता चला कि उनकी लड़की तो सब लड़कियों की चहेती नेत्री है। सारा कॉलेज उसके इशारों पर चलता है। लड़कियाँ प्रिंसिपल की बात भी नहीं मानतीं, केवल उसी के संकेत पर चलती हैं। इसलिए प्रिंसिपल के लिए कॉलेज चलाना कठिन हो गया है। यह सुनकर पिता का सीना गर्व से फूल उठा। वे गद्गद हो गए। उन्होंने प्राचार्य को उत्तर दिया-‘ये आंदोलन तो वक्त की पुकार हैं : इन्हें कैसे रोका जा सकता है।’ लेखिका पिता के मुख से ऐसी प्रशंसा सुनकर विश्वास न कर पाई। उसे अपने कानों पर भरोसा न हुआ। उसे तो यही आशा थी कि उसके पिता उसे डाँटेंगे, धमकाएँगे तथा उसका घर से बाहर निकलना बंद कर देंगे।

प्रश्न 4.
लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए [Imp.][CBSE 2012]
अथवा
लेखिका के पिता और लेखिका के बीच मतभेदों के असली कारण क्या थे?- ‘एक कहानी यह भी’ पाठ के आधार पर लिखिए। [A.I. CBSE 2008]
उत्तर:
लेखिका और उसके पिता के विचार आपस में टकराते थे। पिता लेखिका को देश-समाज के प्रति जागरूक बनाना चाहते थे किंतु उसे घर तक ही सीमित रखना चाहते थे। वे उसके मन में विद्रोह और जागरण के स्वर भरना चाहते थे किंतु उसे सक्रिय नहीं होने देना चाहते थे। लेखिका चाहती थी कि वह अपनी भावनाओं को प्रकट भी करे। वह देश की स्वतंत्रता में सक्रिय होकर भाग ले। यहीं आकर दोनों की टक्कर होती थी। विवाह के मामले में भी दोनों के विचार टकराए। पिता नहीं चाहते थे कि लेखिका अपनी मनमर्जी से राजेंद्र यादव से शादी करे। परंतु लेखिका ने उनकी परवाह नहीं की।

प्रश्न 5.
इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए। [Imp.] [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008; CBSE 2008 C]
उत्तर:
सन् 1942 से 1947 तक का समय स्वतंत्रता-आंदोलन का समय था। इन दिनों पूरे देश में देशभक्ति का ज्वार पूरे यौवन पर था। हर नगर में हड़तालें हो रही थीं। प्रभात-फेरियाँ हो रही थीं। जलसे हो रहे थे। जुलूस निकाले जा रहे थे।
युवक-युवतियाँ सड़कों पर घूम-घूमकर नारे लगा रहे थे। सारी मर्यादाएँ टूट रही थीं। घर के बंधन, स्कूल-कॉलेज के नियम-सबकी धज्जियाँ उड़ रही थीं। लड़कियाँ भी लड़कों के बीच खुलकर सामने आ रही थीं।
ऐसे वातावरण में लेखिका मन्नू भंडारी ने अपूर्व उत्साह दिखाया। उसने पिता की इच्छा के विरुद्ध सड़कों पर घूम-घूमकर नारेबाजी की, भाषण दिए, हड्तालें कीं, जलसे-जुलूस किए। उसके इशारे पर पूरा कॉलेज कक्षाएँ छोड़कर आंदोलन में साथ हो लेता था। म कह सकते हैं कि वे स्वतंत्रता सेनानी थीं।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
लेखिका ने बचपन में अपने भाइयों के साथ गिल्ली डंडा तथा पतंग उड़ाने जैसे खेल भी खेले किंतु लड़की होने के कारण उनका दायरा घर की चारदीवारी तक सीमित था। क्या आज भी लड़कियों के लिए स्थितियाँ ऐसी ही हैं। या बदल गई हैं, अपने परिवेश के आधार पर लिखिए। [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
आज परिस्थितियाँ बदल गई हैं। महानगरों में बच्चे गुल्ली-डंडा, पतंग उड़ाना आदि भूल गए हैं। छोटे नगरों में, जहाँ ये खेल अभी प्रचलित हैं, अब मोहल्लेदारी उतनी नहीं रही। अब लोग अपने-अपने घरों में सिकुड़ने लगे हैं। कोई किसी दूसरे के बच्चे को अपने घर में घुसाकर राजी नहीं है। दिल भी उतने बड़े नहीं हैं। पहले संयुक्त परिवार थे। इसलिए परिवारों को अधिक बच्चों की आदत थी। उसी तरह का रहन-सहन भी था। खुले आँगन या खुली छतें थीं। आस-पड़ोस का भाव जीवित था। अब मोहल्लेदारी नहीं रही। खेलने-कूदने के शौक भी टी.वी. देखने या कंप्यूटर चलाने में बदल गए हैं। परिणामस्वरूप पड़ोस को झेलने का तात्पर्य है अपने ड्राइंगरूम में पड़ोसी बच्चे को झेलना। उसे अपने सोफे पर बैठाना तथा कभी-कभी होने वाली हानि को सहना। यह संभव नहीं रहा है। । दूसरे, अब टी.वी. संस्कृति ने नर-नारी संबंधों को उघाड़ कर इतना भड्का दिया है कि हर माता-पिता अपनी लड़कियों के बारे में सजग है। सब बच्चे अकाल-परिपक्व हो गए हैं। इस कारण माता-पिता लड़की को तो अकेला बिल्कुल नहीं छोड़ते। अतः कुल मिलाकर लड़कियों की स्वतंत्रता कम हुई है।

प्रश्न 7.
मनुष्य के जीवन में आस-पड़ोस का बहुत महत्व होता है। परंतु महानगरों में रहने वाले लोग प्रायः ‘पड़ोस कल्चर’ से वंचित रह जाते हैं। इस बारे में अपने विचार लिखिए। [V. Imp.] अथवा मन्नू भंडारी ने यह क्यों कहा है कि अपनी जिंदगी खुद जीने के कल्चर ने हमें ‘पड़ोस कल्चर’ से विच्छिन्न कर दिया है। [CBSE 2012
उत्तर:
यह बात बिल्कुल सत्य है। आस-पड़ोस मनुष्य की वास्तविक शक्ति होती है। किसी मुसीबत में पड़ोसी ही काम आते हैं। परंतु दुर्भाग्य से अब पड़ोस में आना-जाना नहीं रहा। नर-नारी दोनों कमाऊ होने लगे हैं। इस कारण उन्हें इतना समय नहीं मिलता कि अपने निजी काम समेट सकें। छुट्टी का दिन भी घर-बार सँभालने में बीत जाता है। इस कारण पड़ोस कल्चर प्रायः समाप्त हो गई है। बड़े तो बड़े, बच्चे भी पैदा होते ही कैरियर की दौड़ में इतने अंधे होने लगे हैं कि उन्हें अपनी छोड़कर अन्य किसी की खबर नहीं है। यह शहरी जीवन का सबसे बड़ा हादसा है। इस कारण मनुष्य हृदय की उदारता, विशालता, हँसी-ठिठौली, ठहाके और उल्लास भूल गया है। वह स्वयं में बिल्कुल अकेला, उदास और बेचारा हो गया है।

प्रश्न 8.
लेखिका द्वारा पढ़े गए उपन्यासों की सूची बनाइए और उन उपन्यासों को अपने पुस्तकालय में खोजिए।
उत्तर:

  1. महाभोज
  2. आपका बंटी छात्र इन्हें अपने पुस्तकालय में खोजें।

प्रश्न 9.
आप भी अपने दैनिक अनुभवों को डायरी में लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं लिखें।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 10.
इस आत्मकथ्य में मुहावरों का प्रयोग करके लेखिका ने रचना को रोचक बनाया है। रेखांकित मुहावरों को ध्यान में रखकर कुछ और वाक्य बनाएँ
(क) इस बीच पिता जी के एक निहायत दकियानूसी मित्र ने घर आकर अच्छी तरह पिता जी की लू उतारी।
(ख) वे तो आग लगाकर चले गए और पिता जी सारे दिन भभकते रहे।
(ग) बस अब यही रह गया है कि लोग घर आकर थू-थू करके चले जाएँ।
(घ) पत्र पढ़ते ही पिता जी आग-बबूला।
उत्तर:
(क) उस दिन मुझे मौका मिल गया। मैं उस घमंडी मिटुनलाल के घर पहुँचा और खूब उसकी लू उतारी।
(ख) मेरे पहुँचने से पहले ही मेरे पड़ोसी मेरे विरुद्ध आग लगा चुके थे।
(ग) जब रोशनलाल की लड़की पड़ोस के लड़के के साथ भाग गई तो सब लोग उस पर थू-थू करने लगे।
(घ) लड़कों को कक्षा के बाहर खड़ा देखकर अध्यापक आग-बबूला हो गया। पाठेतर सक्रियता

प्रश्न
इस आत्मकथ्य से हमें यह जानकारी मिलती है कि कैसे लेखिका का परिचय साहित्य की अच्छी पुस्तकों से हुआ। आप इस जानकारी का लाभ उठाते हुए अच्छी साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने का सिलसिला शुरू कर सकते हैं। कौन जानता है। कि आप में से ही कोई अच्छा पाठक बनने के साथ-साथ अच्छा रचनाकार भी बन जाए।
उत्तर:
छात्र पुस्तकालय जाकर पुस्तकें पढ़ें।

प्रश्न
लेखिका के बचपन के खेलों में लँगड़ी टाँग, पकड़म-पकड़ाई और काली-टीलो आदि शामिल थे। क्या आप भी यह खेल खेलते हैं। आपके परिवेश में इन खेलों के लिए कौन-से शब्द प्रचलन में हैं। इनके अतिरिक्त आप जो खेल खेलते हैं उन पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न
स्वतंत्रता आंदोलन में महिलाओं की भी सक्रिय भागीदारी रही है। उनके बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए और उनमें से किसी एक पर प्रोजेक्ट तैयार कीजिए।
उत्तर:
छात्र तैयार करें।

नमूने के तौर पर यहाँ 9 वर्षीय शिवांक की डायरी का एक पन्ना दिया जा रहा है
30 मार्च, 2001 शुक्रवार आज सुबह पापा ने जल्दी से मुझे उठाया और कहा, “देखो-देखो, बारिश हो रही है, ओले गिर रहे हैं। बहुत ठंड पड़ रही है।” फिर मैं जल्दी से उठा और पापा से कहा, “दीदी को भी उठाओ।” फिर हमने देखा कि हमारे घर के सामने वाले ग्राउंड में हरी-हरी घास पर सफ़ेद-सफ़ेद ओले गिर रहे थे। ऐसा लग रहा था किसी ने चमेली के फूल गिरा रखे हैं। बहुत अच्छा लग रहा था। ओले पड़ रहे थे। बारिश हो रही थी, चिड़िया भाग रही थी, कौए परेशान थे, पेड़ काँप रहे थे, बिजली चमक रही थी, बादल डरा रहे थे। एक चिड़िया हमारी खिड़की पर डरी-डरी बैठी थी। बहुत देर तक बैठी रही। फिर उड़ गई। अभी तक कोई बच्चा खेलने नहीं निकला। इसलिए मैं आज जल्दी डायरी लिख रहा हूँ। सुबह के दस बजे हैं। मैं अपना सीरियल देखने जा रहा हूँ। आज मेरा न्यू इंक पेन और पेंसिल बॉक्स आया। आज दोपहर को धूप निकली, फिर हम खेलने निकले। आजकल हम लोग मिट्टी के गोले बना के सुखा देते हैं फिर हमें उनके ऊपर पेंटिंग करते हैं उसके बाद फिर उनसे खेलते हैं। जानिए लँगड़ी की कुश्ती कैसे खेली जाती हैएक स्थान में बीच की लाइन के बराबर फासले पर दो लाइनें खींची जाती हैं। दो खिलाड़ी बीच की लाइन पर आकर लँगड़ी बाँधकर अपने मुकाबले वाले को अपनी-अपनी लाइन के पार खींच ले जाने की कोशिश करते हैं। जिसकी लँगड़ी टूट जाती है अथवा जो खिंच जाता है उसकी हार होती है। यह खेल टोलियों में भी खेला जाता है। दिए हुए समय के अंदर जिस टोली के अधिक बच्चे लँगड़ी तोड़ देते हैं अथवा खिंच जाते हैं उस टोली की हार होती है।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 7

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 7  छाया मत छूना

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है? [Imp. [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009] |
उत्तर:
कवि ने कठिन यथार्थ के पूजन की बात इसलिए कही है क्योंकि यही सत्य है। मनुष्य को आखिरकार अपने वास्तविक सच का सामना करना पड़ता है। उसे अपनी परिस्थितियों में जीना पड़ता है। भूली-बिसरी यादें या भविष्य के सपने उसे दुखी ही करते हैं, किसी मंजिल पर नहीं ले जाते।

प्रश्न 2.
भाव स्पष्ट कीजिए
प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है,
हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है।
उत्तर:
बड़प्पन का अहसास, महान होने का सुख भी एक छलावा है। मनुष्य बड़ा आदमी होकर भी मन से प्रसन्न हो, यह आवश्यक नहीं। हर सुख के साथ एक दुख भी जुड़ा रहता है। जैसे हर चाँदनी रात के बाद एक काली रात भी लगी रहती है, पूर्णिमा के बाद अमावस भी आती है, उसी तरह सुख के पीछे दुख भी छिपे रहते हैं।

प्रश्न 3.
‘छाया’ शब्द यहाँ किस संदर्भ में प्रयुक्त हुआ है? कवि ने उसे छूने के लिए मना क्यों किया है? [Imp.] [CBSE 2008 C; A.I. CBSE 2008 C; केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009]
अथवा
‘छाया मत छूना मन’ पंक्ति में ‘छाया’ से कवि का क्या तात्पर्य है? [CBSE]
उत्तर:
यहाँ ‘छाया’ शब्द अवास्तविकताओं के लिए प्रयुक्त हुआ है। ये छायाएँ अतीत की भी हो सकती हैं और भविष्य की भी। ये छायाएँ पुरानी मीठी यादों की भी हो सकती हैं और मीठे सपनों की भी।

प्रश्न 4.
कविता में विशेषण के प्रयोग से शब्दों के अर्थ में विशेष प्रभाव पड़ता है, जैसे कठिन यथार्थ
कविता में आए ऐसे अन्य उदाहरण छाँटकर लिखिए और यह भी लिखिए कि इससे शब्दों के अर्थ में क्या विशिष्टता पैदा हुई?
उत्तर:
इस कविता में प्रयुक्त अन्य विशेषण हैं
सुरंग सुधियाँ सुहावनी–यहाँ ‘सुधियाँ’ विशेष्य के लिए दो विशेषण प्रयुक्त हुए हैं-‘सुरंग’ और ‘सुहावनी’। इनके प्रयोग से बीती हुई यादों के दृश्य बड़े मीठे, मनमोहक और रंगीन बन पड़े हैं। यह पदबंध शादी या मिलन जैसे अवसर का रंगीन दृश्य प्रस्तुत करता जान पड़ता है।
जीवित क्षण–यहाँ ‘ क्षण’ के लिए ‘जीवित’ विशेषण प्रयुक्त हुआ है। इसके प्रयोग से पिछली यादों का भूला हुआ क्षण सामने इस तरह साकार हो उठा है मानो वह क्षण पुराना न होकर वर्तमान में चल रहा हो।
केवल मृगतृष्णा-‘मृगतृष्णा’ के साथ ‘केवल’ विशेषण लगने से भ्रम और छलावा और अधिक सधन, गहरा और निश्चित हो गया है। इससे यह बोध जाग उठा है कि बड़प्पन का अहसास छलावे के सिवा कुछ है ही नहीं।
दुविधा-हत साहस-‘साहस’ के साथ ‘दुविधा-हत’ विशेषण साहस को स्पष्ट रूप से दबाए हुए प्रतीत होता है। यहाँ ‘मृत साहस’ का भाव मुखर हो उठा है।
शरद-रात–यहाँ ‘रात’ के साथ ‘शरद’ शब्द रात की रंगीनी और मोहकता को उजागर कर रहा है। रस-बसंत-‘बसंत’ के साथ ‘रस’ विशेषण बसंत को और अधिक रसीला, मनमोहक और मधुर बना रहा है।

प्रश्न 5.
‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है? [Imp.][CBSE 2012]
उत्तर:
गर्मी की चिलचिलाती धूप में दूर सड़क पर पानी की चमक दिखाई देती है। हम वहाँ जाकर देखते हैं तो कुछ नहीं होता। प्रकृति के इस भ्रामक रूप को ‘मृगतृष्णा’ कहा जाता है। इस कविता में इसका अर्थ छलावे और भ्रम के लिए किया गया है। कवि कहना चाहता है कि लोग प्रभुता अर्थात् बड़प्पन में सुख मानते हैं। किंतु बड़े होकर भी कोई सुख नहीं मिलता। अतः बड़प्पन का सुख दूर से ही दिखाई देता है। यह वास्तविक सच नहीं है।

प्रश्न 6.
‘बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि ले’ यह भाव कविता की किस पंक्ति में झलकता है?
उत्तर:
निम्न पंक्ति में जो न मिला भूल उसे कर तू भविष्य वरण।

प्रश्न 7.
कविता में व्यक्त दुख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘छाया मत छूना’ कविता के कवि ने मानव की किन वृत्तियों को जीवन के लिए दुखदायी माना है? [A.I. CGBSE 2008 C]
उत्तर:
इस कविता में दुख के निम्नलिखित कारण बताए गए हैं

  1. छाया अर्थात् बीती हुई मीठी यादें जिन्हें याद कर-करके हम अपने वर्तमान को और अधिक दुखी कर लेते हैं।
  2. छाया अर्थात् भविष्य के सपने, जिनके पूरा न होने पर हम दुखी रहते हैं।
  3. वर्तमान जीवन में उचित अवसर पर लाभ न मिलना। बसंत के समय फूल का न खिलना या शरद्-रात में चाँद का न खिलना। आशय यह है कि उचित अवसर पर सुख न मिलना।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
‘जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी’ से कवि का अभिप्राय जीवन की मधुर स्मृतियों से है। आपने अपने जीवन की कौन-कौन सी स्मृतियाँ संजो रखी हैं?
उत्तर:
मेरे जीवन की सबसे मधुर स्मृति: पहली बार एक निबंध प्रतियोगिता में भाग लिया प्रथम आया। 26 जनवरी की परेड में सम्मानित।

प्रश्न 9.
‘क्या हुआ जो खिला फूल रस-बसंत जाने पर?’ कवि का मानना है कि समय बीत जाने पर भी उपलब्धि मनुष्य को आनंद देती है। क्या आप ऐसा मानते हैं? तर्क सहित लिखिए। [ केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
यह सच है कि सभी उपलब्धियाँ उचित समय पर ही अच्छी लगती हैं। जैसे-सर्दी बीतने पर रजाई का क्या लाभ? बारिश खत्म होने पर छाता मिला तो क्या लाभ? मनुष्य के मरने के बाद मकान बन सका तो क्या लाभ? फसलें नष्ट होने के बाद सुरक्षा का प्रबंध हुआ तो क्या लाभ? डकैती होने के बाद पुलिस आ पाई तो क्या लाभ? आग बुझने के बाद फायर-ब्रिगेड आ पाया तो क्या लाभ? रोगी मरने के बाद डॉक्टर आ पाया तो क्या लाभ! ये सब उदाहरण बताते हैं कि उचित अवसर और आवश्यकता के समय ही उपलब्धियाँ अच्छी लगती हैं।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न
आप गर्मी की चिलचिलाती धूप में कभी सफ़र करें तो दूर सड़क पर आपको पानी जैसा दिखाई देगा पर पास पहुँचने एर वहाँ कुछ नहीं होता। अपने जीवन में भी कभी-कभी हम सोचते कुछ हैं, दिखता कुछ है लेकिन वास्तविकता कुछ और होती है। आपके जीवन में घटे ऐसे किसी अनुभव को अपने प्रिय मित्र को पत्र लिखकर अभिव्यक्त कीजिए।

उत्तर:

प्रिय रमेश!
एक अनुभव सुनाने का मन कर रहा है। हमारा नौकर दो दिन पहले अचानक गायब हो गया। पता चला कि पिताजी ने उसे 500 रु. का नोट देकर बाजार से मीठे-मीठे आम लाने को कहा था। जब वह वापस नहीं आया तो सभी सदस्य पिताजी की लापरवाही को कोसने लगे। मैंने भी यही किया। परंतु आज पुलिस थाने से पता चला की वह नौकर एक सड़क दुर्घटना में मारा गया है। उसकी जेब से 300 रु. और थेले में 5 किलो मीठे आम मिले हैं।
भाई रमेश! यह समाचार सुनते ही मेरी आँखों में आँसू उमड़ आए हैं। पता नहीं, हम भय और द्वेष वश कुछ का कुछ सोच लेते हैं किंतु सत्य कुछ और ही होता है।

प्रश्न
कवि गिरिजाकुमार माथुर की ‘पंद्रह अगस्त’ कविता खोजकर पढ़िए और उस पर चर्चा कीजिए।
उत्तर:
आज जीत की रात, पहरुए सावधान रहना।
खुले देश के द्वार, अचल दीपक समान रहना। ऊँची हुई मशाल हमारी आगे कठिन डगर है। शत्रु हट गया लेकिन उसकी छायाओं का डर है। शोषण से मृत है समाज, कमज़ोर हमारा घर है। किंतु आ रही नई जिंदगी, यह विश्वास अमर है। जन-गंगा में ज्वार, लहर, तुम प्रवहमान रहना।
पहरुए! सावधान रहना।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 13

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 13 मानवीय करुणा की दिव्या चमक

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
फ़ादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी? [Imp.][CBSE 2012]
उत्तर:
फ़ादर परिमल की गोष्ठी में सबसे बड़े माने जाते थे। वे सबके साथ पारिवारिक रिश्ता बनाकर रखते थे। सबसे बड़ी बात यह थी कि वे सबके घरों में उत्सवों और संस्कारों पर पुरोहित की भाँति उपस्थित रहते थे। हर व्यक्ति ,उनसे स्नेह और सहारा प्राप्त करता था। वात्सल्य तो उनकी नीली आँखों में तैरता रहता था। इस कारण सबको उनकी उपस्थिति देवदार की छाया के समान प्रतीत होती थी।

प्रश्न 2.
फ़ादर बुल्के भारतीय संस्कृति के एक अभिन्न अंग हैं, किस आधार पर ऐसा कहा गया है? [Imp.]
अथवा
फ़ादर कामिल बुल्के को भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग किस आधार पर कहा गया है? [CBSE]
उत्तर:
फ़ादर कामिल बुल्के भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग थे। उन्होंने भारत में रहकर स्वयं को पूरी तरह भारतीय बना लिया। जब उनसे पूछा गया कि क्या आपको अपने देश की याद आती है तो उन्होंने छूटते ही उत्तर दिया-मेरा देश तो अब भारत है।
फ़ादर भारतीय मिट्टी में रच-बस गए। उन्होंने यहाँ रहकर राम-कथा के उद्भव और विकास पर शोध-कार्य किया। उन्होंने हिंदी सीखी ही नहीं, बल्कि अंग्रेजी-हिंदी का सबसे अधिक प्रामाणिक कोश तैयार किया। वे यहाँ के लोगों के उत्सवों और संस्कारों पर अभिन्न सदस्य के रूप में उपस्थित रहते थे। वे सचमुच भारतीय संस्कारों में खो चुके थे।

प्रश्न 3.
पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए जिनसे फ़ोदर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है? [Imp.][CBSE 2012]
उत्तर:
फ़ादर कामिल बुल्के के हिंदी प्रेम का सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि उन्होंने सबसे अधिक प्रामाणिक अंग्रेजी-हिंदी कोश तैयार किया। उन्होंने बाइबिल और ब्लू बर्ड नामक नाटक का हिंदी में अनुवाद किया। इससे पहले उन्होंने इलाहाबाद से हिंदी में एम.ए. किया। तत्पश्चात् उन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय से ‘रामकथा : उत्पत्ति और विकास’ विषय पर शोध-प्रबंध लिखा। उसके बाद वे सेंट जेवियर्स कॉलेज राँची में हिंदी विभाग के अध्यक्ष बने। वे ‘परिमल’ नामक संस्था के साथ जुड़े रहे। वे जहाँ-तहाँ हिंदी के प्रति प्रेम प्रकट करते थे। उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनवाने के लिए खूब प्रयत्न किया।

प्रश्न 4.
इस पाठ के आधार पर फ़ादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है उसे अपने शब्दों में लिखिए। [A.I. CBSE 2008 C]
उत्तर:
फ़ादर कामिल बुल्के एक आत्मीय संन्यासी थे। वे ईसाई पादरी थे। इसलिए हमेशा एक सफेद चोगा धारण करते थे। उनका रंग गोरा था। चेहरे पर सफेद झलक देती हुई भूरी दाढ़ी थी। आँखें नीली थीं। बाँहें हमेशा गले लगाने को आतुर दीखती थीं। उनके मन में अपने प्रियजनों और परिचितों के प्रति असीम स्नेह था। वे सबको स्नेह, सांत्वना, सहारा और करुणा देने में समर्थ थे।

प्रश्न 5.
लेखक ने फ़ादर बुल्के को ‘मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ क्यों कहा है? [Imp.][CBSE 2012]
उत्तर:
लेखक ने फ़ादर कामिल बुल्के को मानवीय करुणा की दिव्य चमक कहा है। फ़ादर के मन में सब परिचितों के प्रति सद्भावना और ममता थी। वे सबके प्रति वात्सल्य भाव रखते थे। वे तरल-हृदय थे। वे कभी किसी से कुछ चाहते नहीं थे, बल्कि देते ही देते थे। वे हर दुख में साथी होते थे और सुख में बड़े बुजुर्ग की भाँति वात्सल्य देते थे। उन्होंने लेखक के पुत्र के मुँह में पहला अन्न भी डाला और उसकी मृत्यु पर सांत्वना भी दी। वास्तव में उनका हृदये सदा दूसरों के स्नेह में पिघला रहता था। उस तरलता की चमक उनके चेहरे पर साफ दिखाई देती थी।

प्रश्न 6.
फ़ादर बुल्के ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नयी छवि प्रस्तुत की है, कैसे? [CBSE 2012; केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
परंपरागत रूप से ईसाई पादरी संसार से अलग जीवन जीते हैं। वे सामान्य संसारी लोगों से अलग वैराग्य की नीरस जिंदगी जीते हैं। वे ईसाई धर्माचार में ही अपना समय व्यतीत करते हैं। वे प्रायः अन्य धर्मानुयायियों के साथ मधुर संबंध बनाने में रुचि नहीं लेते।
फ़ादर बुल्के परंपरागत पादरियों से भिन्न थे। वे संन्यासी होते हुए भी अपने परिचितों के साथ गहरा लगाव रखते थे। वे उनसे मिलने के लिए सदा आतुर रहते थे तथा सबको गले लगाकर मिलते थे। वे संसारी लोगों के बीच रहकर उनसे निर्लिप्त रहते थे। वे धर्माचार की परवाह किए बिना अन्य धर्म वालों के उत्सवों-संस्कारों में भी घर के बड़े बुजुर्ग की भाँति शामिल होते थे। वे कभी किसी को अपने से दूर तथा अलग नहीं प्रतीत होने देते थे। लोग उन्हें पादरी नहीं अपितु अपना आत्मीय संरक्षक मानते थे।

प्रश्न 7.
आशय स्पष्ट कीजिए
(क) नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।
(ख) फ़ादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है। [CBSE]
उत्तर:
(क) फ़ादर कामिल बुल्के की मृत्यु पर उनके प्रियजन, परिचित और साहित्यिक मित्र इतनी अधिक संख्या में रोए कि उनको गिनना कठिन है। उनके बारे में लिखना व्यर्थ में स्याही खर्च करना है। आशय यह है कि उनके दुख में रोने वालों की संख्या बहुत अधिक थी।
(ख) हम फ़ादर कामिल बुल्के को याद करते हैं तो उनका करुणापूर्ण और शांत व्यक्तित्व सामने आ जाता है। उनके ने रहने से मन में उदासी घिरने लगती है। ऐसा लगता है मानो सामने कोई शांत उदास संगीत बज रहा हो।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
आपके विचार से बुल्के ने भारत आने का मन क्यों बनाया होगा?
उत्तर:
फ़ादर के मन में भारत के संतों, ऋषियों और आध्यात्मिक पुरुषों का आकर्षण रहा होगा। हो सकता है, वे स्वामी विवेकानंद, रवींद्रनाथ टैगोर और अन्य धर्माचार्यों से प्रभवित रहे हों। एक वैरागी ने वैराग्य की धरती में ही जीना चाहा हो।

प्रश्न 9.
‘बहुत सुंदर है मेरी जन्मभूमि-रेम्सचैपल।’-इस पंक्ति में फ़ादर बुल्के की अपनी जन्मभूमि के प्रति कौन-सी भावनाएँ अभिव्यक्त होती हैं? आप अपनी जन्मभूमि के बारे में क्या सोचते हैं? [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
इस पंक्ति में फ़ादर कामिल बुल्के का स्वाभाविक देश-प्रेम व्यक्त हुआ है। जन्मभूमि से गहरा लगाव होने के कारण उन्हें वह बहुत सुंदर प्रतीत होती है।
मैं भी अपनी जन्मभूमि भारत का पुत्र हूँ। यह धरती मेरी माँ के समान है। मुझे इसका सब कुछ प्रिय लगता है। मुझे यहाँ का अन्न-जल, धर्म-संस्कृति-सब प्रिय है। मैं इसके उत्थान में अपना जीवन लगाना चाहता हूँ। मैं संकल्प करता हूँ कि मैं कोई ऐसा काम नहीं करूंगा जिससे जन्मभूमि का अपमान हो।

भाषा-अध्ययन

प्रश्न 10.
मेरा देश भारत विषय पर 200 शब्दों का निबंध लिखिए।
उत्तर:
मेरा देश भारत मेरा देश भारत है। इसकी संस्कृति बहुत प्राचीन है। यह देश वटवृक्ष के समान है। इस धरती पर अनेक धर्मों, संतों, ऋषियों और महापुरुषों ने जन्म लिया। इसकी संस्कृति बहुत महान है। यहाँ के लोगों ने सदियों से जो कुछ भी सीखा है, उसे अपने व्यवहार में उतार लिया है। इसलिए यहाँ की संस्कृति सनातन हैं। यहाँ कट्टरता का नाम नहीं है। यहाँ के लोग उदार, विनम्र
और सरल हैं। यहाँ की जीवन-शैली सहज है। इस सरलता के कारण भारतवासियों को अनेक कष्ट सहने पड़े। हजारों सालों तक गुलाम भी रहना पड़ा। फिर भी भारतवासियों ने अपना स्वभाव नहीं बदला। वे ज्यों के त्यों रहे। वही सीधी-सरल तनावरहित जीवन-शैली।
भारतीय संस्कृति आत्मा और परमात्मा का अस्तित्व मानती है। यहाँ के लोग स्वयं को एक ही परमात्मा की संतान मानते हैं। इसलिए वे किसी के साथ भेदभाव नहीं करते। वे किसी भी शरणार्थी को परमात्मा का बंदा मानकर अपना लेते हैं। अहिंसा, प्रेम और करुणा भारतवासियों के खून में है। आज भी हमारे संत बाबा दुनियाभर को यही सीख दे रहे हैं। हम किसी मनुष्य को शत्रु नहीं मानते, केवल पापी को शत्रु मानते हैं; काम-क्रोध-लोभ-मद-मोह को शत्रु मानते हैं।
भारतीय संस्कृति के मंदिर, गुरुद्वारे, मसजिदें, गिरजाघर देश के कोने-कोने में फैले हुए हैं। यहाँ रामायण-महाभारत की गाथाएँ पूरे भारत में प्रसिद्ध हैं। यहाँ अभी भी रामराज्य का सपना मौजूद रहता है। आधुनिक युग में भी यहाँ अहिंसा के आधार पर स्वतंत्रता आंदोलन लड़ा गया। गाँधी जी ने अहिंसा के बल पर भारतवर्ष को स्वतंत्र करके दिखा दिया। सचमुच भारत महान है। इसकी परंपराएँ महान हैं।

प्रश्न 11.
आपका मित्र हडसन एंड्री ऑस्ट्रेलिया में रहता है। उसे इस बार की गर्मी की छुट्टियों के दौरान भारत के पर्वतीय प्रदेशों के भ्रमण हेतु निमंत्रित करते हुए पत्र लिखिए।
उत्तर:
कामेश नाग ,
535, रामनगर
लखनऊ
14-3-2015
प्रिय हडसन एंड्री
सप्रेम नमस्कार!
कैसे हो? आशा है, तुम सानंद होगे। तुम्हारी माताजी तथा पिताजी भी प्रसन्न होंगे। प्रिय एंड्री, इस बार मेरी गर्मियों की छुट्टियाँ एक मई से आरंभ होंगी। इन दिनों तुम्हारी भी छुट्टियाँ होती हैं। मैं चाहता हूँ कि इस बार तुम भारत आओ। मैं तुम्हें यहाँ के प्रसिद्ध पर्वतीय स्थान दिखाना चाहता हूँ। मैं तुम्हें यहाँ के प्रसिद्ध हिमालय पर्वत की सैर कराकर लाऊँगा। मुझे तुम्हारे साथ ऑस्ट्रेलिया में बिताए हुए दिन अभी तक याद हैं। मैं चाहता हूँ कि इस बार हम भारत-भ्रमण करें। तुम्हारे उत्तर की प्रतीक्षा में
तुम्हारा
पना कामेश

प्रश्न 12.
निम्नलिखित वाक्यों में समुच्यबोधक छाँटकर अलग लिखिए
(क) तब भी जब वह इलाहाबाद में थे और तब भी जब वह दिल्ली आते थे।
(ख) माँ ने बचपन में ही घोषित कर दिया था कि लड़का हाथ से गया।
(ग) वे रिश्ता बनाते थे तो तोड़ते नहीं थे।
(घ) उनके मुख से सांत्वना के जादू भरे दो शब्द सुनना एक ऐसी रोशनी से भर देता था जो किसी गहरी तपस्या से
जनमती है।
(ङ) पिता और भाइयों के लिए बहुत लगाव मन में नहीं था लेकिन वो स्मृति में अकसर डूब जाते।
उत्तर:
(क) और
(ख) कि
(ग) तो
(घ) जो
(ङ) और, लेकिन।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न
फ़ादर बुल्के का अंग्रेजी-हिंदी कोश’ उनकी एक महत्त्वपूर्ण देन है। इस कोश को देखिए-समझिए।
उत्तर:
परीक्षोपयोगी नहीं।

प्रश्न
फ़ादर बुल्के की तरह ऐसी अनेक विभूतियाँ हुईं हैं जिनकी जन्मभूमि अन्यत्र थी लेकिन कर्मभूमि के रूप में उन्होंने भारत को चुना। ऐसे अन्य व्यक्तियों के बारे में जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर:
भगिनी निवेदिता-वे मूलतः इंग्लैंड की रहने वाली थीं। वे वहाँ एक विद्यालय चलाती थीं। वे स्वामी विवेकानंद के संपर्क में आईं तो अभिभूत हो उठीं। स्वामी विवेकानंद ने एक दिन समाज कल्याण के लिए नारी शक्ति का आह्वान किया। भगिनी निवेदिता इसके लिए तैयार हो गईं। वे उनके साथ भारत चली आईं। उन्होंने यहाँ नारी विद्यालय खोले।

प्रश्न
कुछ ऐसे व्यक्ति भी हुए हैं जिनकी जन्मभूमि भारत है लेकिन उन्होंने अपनी कर्मभूमि किसी और देश को बनाया है, उनके बारे में भी पता लगाइए।
उत्तर:
हरगोविंद खुराना भारत में जन्मे किंतु उन्होंने अपनी कर्मभूमि अमरीका को बनाया।

प्रश्न
एक अन्य पहलू यह भी है कि पश्चिम की चकाचौंध से आकर्षित होकर अनेक भारतीय विदेशों की ओर उन्मुख हो रहे हैं-इस पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
भारत के अनेक प्रतिभाशाली लोग पश्चिम की चमक-दमक में जीने के लिए अमरीका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया आदि देशों में चले जाते हैं। अपनी जन्मभूमि की कीमत पर वहाँ रहना अनुचित है। भारत माँ का अन्न खाना और सेवा परदेश की करना किसी भी तरह उचित नहीं कहा जा सकता।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 6

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 6 यह दंतुरहित मुस्कान और फसल

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
लक्ष्मण और परशुराम के संवाद का जो अंश आपको सबसे अच्छा लगा उसे अपने शब्दों में संवाद शैली में लिखिए।
उत्तर:
लक्ष्मण-परशुराम जी! हमने बचपन में ऐसे-ऐसे कितने धनुष तोड़ डाले। आपने तब तो क्रोध नहीं किया। फिर इस पर इतनी ममता क्यों?
परशुराम-अरे राजकुमार! लगता है तेरी मौत आई है। तभी तो तू सँभलकर बोल नहीं पा रहा। तू शिव-धनुष को आम धनुष के समान समझ रहा है।
लक्ष्मण-हमने तो यही जाना था कि धनुष-धनुष एक-समान होते हैं। फिर राम ने तो इस पुराने धनुष को छुआ भर था कि यह दो टुकड़े हो गया। इसमें राम का क्या दोष? | परशुराम-अरे मूर्ख बालक! लगता है तू मेरे उग्र स्वभाव को नहीं जानता। मैं तुझे बच्चा समझकर छोड़ रहा हूँ। तू क्या मुझे कोरा मुनि समझता है। मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। मैंने कई बार पृथ्वी के सारे राजाओं का संहार किया है। मैंने सहस्रबाहु की भी भुजाएँ काट डाली थीं। मेरा फरसा इतना कठोर है कि इसके डर से गर्भ के बच्चे भी गिर जाते हैं।

लक्ष्मण-वाह मुनि जी! आप तो बहुत बड़े योद्धा हैं। आप बार-बार मुझे कुठार दिखाकर डराना चाहते हैं। आपका बस चले तो फैंक मारकर पहाड़ को उड़ा दें। मैं भी कोई छुईमुई का फूल नहीं हूँ जो तर्जनी देखने-भर से मर जाऊँ। मैं तो आपको ब्राह्मण समझकर चुप रह गया। हमारे वंश में गाय, ब्राह्मण, देवता और भक्तों पर वीरता नहीं दिखाई जाती। फिर आपके तो वचन ही करोड़ों वज्रों से अधिक घातक हैं। आपने शस्त्र तो व्यर्थ ही धारण कर रखे हैं।
परशुराम-विश्वामित्र! यह बालक तो बहुत मूर्ख, कुलनाशक, निरंकुश और कुलकलंक है। मैं तुम्हें कह रहा हूँ कि इसे रोक लो। इसे मेरे प्रताप और प्रभाव के बारे में बताओ। वरना यह मारा जाएगा।

लक्ष्मण-मुनि जी! आपके यश को आपके सिवा और कौन कह सकता है। आप पहले भी अपने बारे में बहुत प्रकार से बहुत कुछ कह चुके हैं। कुछ और रह गया हो तो वह भी कह लीजिए। वैसे सच्चे शूरवीर युद्ध भूमि में अपना गुणगान नहीं करते, वीरता दिखाते हैं।

प्रश्न 2.
परशुराम ने अपने विषय में सभी में क्या-क्या कहा, निम्न पद्यांश के आधार पर लिखिए बाल ब्रह्मचारी अति कोही। बिस्वबिदित क्षत्रियकुल द्रोही।। भुजबल भूमि भूप बिनु कीन्ही। बिपुल बार महिदेवन्ह दीन्ही।। सहसबाहुभुज छेदनिहारा। परसु बिलोकु महीपकुमारा।।
मातु पितहि जनि सोचबस करसि महीसकिसोर। गर्भन्ह के अर्भक दलन परसु मोर अति घोर।।
अथवा
‘राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद’ में परशुराम ने अपने विषय में जो कहा, उसे अपने शब्दों में लिखिए। [A.I. CBSE 2008 C]
उत्तर:
परशुराम ने अपने बारे में कहा-“मैं बाल ब्रह्मचारी हूँ। स्वभाव से बहुत क्रोधी हूँ। सारा संसार जानता है कि मैं क्षत्रियों के कुल का शत्रु हूँ। मैंने अनेक बार अपनी भुजाओं के बल पर धरती के सारे राजा मार डाले हैं और यह पृथ्वी ब्राह्मणों को दान दी है। मेरा फरसा बहुत भयानक है। इसने सहस्रबाहु जैसे राजा को मार डाला था। इसे देखकर गर्भिणी स्त्रियों के गर्भ गिर जाते हैं।”

प्रश्न 3.
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की क्या-क्या विशेषताएँ बताई? [Imp.] [CBSE; A.I. CBSE 2008 C]
अथवा
राम-परशुराम-लक्ष्मण संवाद के आधार पर संक्षेप में लिखिए कि परशुराम की क्रोधपूर्ण बातें सुनकर लक्ष्मण ने उन्हें शूरवीर की क्या पहचान बताई? [CBSE 2008]
उत्तर:
लक्ष्मण ने वीर योद्धा के बारे में बताया कि सच्चा वीर रणभूमि में वीरता दिखलाता है, अपना गुणगान नहीं करता सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु।

प्रश्न 4.
साहस और शक्ति के साथ विनम्रता हो तो बेहतर हैं। इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
यह बात सत्य है कि साहस और शक्ति तभी तक अच्छे लगते हैं, जब तक कि साहसी व्यक्ति विनम्र रहे। जैसे ही शक्तिशाली व्यक्ति उदंडता करता है, या घमंड दिखाता है, या बढ़-चढ़कर बोलता है, वह बुरा लगने लगता है। परशुराम और लक्ष्मण दोनों के उदाहरण सामने हैं। परशुराम पराक्रमी हैं, किंतु उसका स्वयं को महापराक्रमी, बाल-ब्रह्मचारी, क्षत्रियकुल घातक कहना बुरा लगता है। जैसे-जैसे वह अपने कुठार को सुधारता है और वचन कड़े करता चला जाता है, वैसे-वैसे वह हँसी का पात्र बनता चला जाता है।

लक्ष्मण का साहस हमें भला लगता है। परंतु वह भी सीमाएँ तोड़ देता है। धीरे-धीरे वह बहुत उग्र, कठोर और उद्देड हो जाता है। इस कारण सभी सभाजन उसके विरुद्ध हो जाते हैं। लक्ष्मण की उदंड शक्ति हमें खटकने लगती है। दूसरी ओर, रामचंद्र साहस और शक्ति के साथ विनम्रता का भी परिचय देते हैं। इसलिए वे सबका हृदय जीत लेते हैं।

प्रश्न 5.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) बिहसि लखनु बोले मृदु बानी। अहो मुनीसु महाभट मानी।। पुनि पुनि मोहि देखाव कुठारु। चहत उड़ावन पूँकि पहारू।
उत्तर:
लक्ष्मण हँसकर कोमल वाणी में बड़बोले परशुराम से बोले-अहो मुनिवर! आप तो माने हुए महायोद्धा निकले। आप मुझे बार-बार अपना कुल्हाड़ा इस प्रकार दिखा रहे हैं मानो फैंक मारकर पहाड़ उड़ा देंगे। आशय यह है कि परशुराम का गरज-गरजकर अपनी वीरता का गुणगान करना व्यर्थ है। उनकी वीरता खोखली है। उसमें कोई सच्चाई नहीं।

(ख) इहाँ कुम्हड़बतिया कोउ नाहीं। जे तरजनी देखि मरि जाहीं।।
देखि कुठारु सरासन बाना। मैं कछु कहा सहित अभिमाना।।
उत्तर:
लक्ष्मण ने परशुराम के वीर-वेश का मजाक उड़ाते हुए कहा-मुनि जी! यदि आप भी वीर योद्धा हैं तो हम भी कोई छुईमुई के फूल नहीं हैं जो तर्जनी देखते ही मुरझा जाएँगे। हम आपसे टक्कर लेंगे; और सच कहूँ! मैंने आपके हाथ में धनुष-बाण देखा तो लगा कि सामने कोई ढंग का योद्धा आया है। उससे दो-दो हाथ करूं। इसीलिए मैंने आपके सामने कुछ अभिमानपूर्वक बातें कही थीं। मुझे पता होता कि आप कोरे मुनि-ज्ञानी हैं तो मैं भला आपसे क्यों भिड़ता। आशय यह है कि परशुराम मुनि-ज्ञानी हैं। उनका वीर-वेश ढोंग है।
(ग) गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।
अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ।
उत्तर:
विश्वामित्र ने परशुराम के बड़बोले वचन सुने। परशुराम ने बार-बार कहा कि मैं पल-भर में लक्ष्मण को मार डालूंगा। इन वचनों को सुनकर विश्वामित्र मन-ही-मन हँसे। सोचने लगे कि परशुराम को हरा-ही-हरा सूझ रहा है। वे लक्ष्मण को गन्ने से बनी खाँड़ के समान समझ रहे हैं कि उसे एक ही बार में नष्ट कर डालेंगे। वे अज्ञानी यह नहीं जानते कि लक्ष्मण लोहे से बना खाँड़ा है जिससे संघर्ष मोल लेना आसान नहीं है।

प्रश्न 6.
पाठ के आधार पर तुलसी के भाषा सौंदर्य पर दस पंक्तियाँ लिखिए।
उत्तर:
तुलसी रससिद्ध कवि हैं। उनकी काव्य-भाषा रस की खान है। रामचरितमानस में उन्होंने अवधी भाषा का प्रयोग किया है। इसमें चौपाई-दोहा शैली को अपनाया गया है। दोनों छंद गेय हैं। तुलसी की प्रत्येक चौपाई संगीत के सुर में ढली हुई जान पड़ती है। उन्होंने संस्कृत शब्दों को विशेष रूप से कोमल और संगीतमय बनाने का प्रयास किया है। भाषा को कोमल बनाने के लिए उन्होंने कठोर वर्गों की जगह कोमल ध्वनियों का प्रयोग किया है। जैसे–’श’ की जगह ‘स’, ‘ण’ की जगह ‘न’, ‘क्ष’ की जगह ‘छ’, ‘य’ की जगह ‘इ’ आदि। जैसे-• नाथ संभुधनु भंजनिहारा।
गुरुहि उरिन होतेउँ श्रम थोरे। इस काव्यांश में उपमा, उत्प्रेक्षा, रूपक, पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास आदि अलंकारों का कुशलतापूर्वक प्रयोग हुआ है। कुछ उदरण देखिए
उपमा-लखन उतर आहुति सम। उत्प्रेक्षा-तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। रूपक-भानुबंस राकेस कलंकू।। अनुप्रास-न तो येहि काटि कुठार कठोरे।
इस काव्यांश में वीर तथा हास्य रस की भी सुंदर अभिव्यक्ति हुई है। मुहावरों और सूक्तियों के साथ-साथ वक्रोक्तियों का प्रयोग भी मनोरम बन पड़ा है। सूक्ति का एक उदाहरण देखिए
सेवकु सो जो करै सेवकाई।। वक्रोक्ति-अहो मुनीसु महाभट मानी।। इस प्रकार यह काव्यांश भाषा की दृष्टि से अत्यंत मनोरम है।

प्रश्न 7.
इस पूरे प्रसंग में व्यंग्य का अनूठा सौंदर्य है। उदाहरण के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘परशुराम-लक्ष्मण : संवाद’ मूल रूप से व्यंग्य का काव्य है। व्यंग्य के सूत्रधार हैं-वीर एवं वाक्पटु लक्ष्मण। उनके सामने ऐसा योद्धा है जिस पर धनुष-बाण नहीं चलाया जा सकता। परशुराम बूढे हैं, मुनि हैं, ब्राह्मण हैं; किंतु बहुत डिगियल और बड़बोले हैं। इस कारण लक्ष्मण भी उन पर बातों के तीर चलाते हैं। परशुराम जितनी पोल बनाते हैं, लक्ष्मण वह पोल खोल देते हैं। वे परशुराम की खोखली वीरता की धज्जियाँ उड़ा देते हैं। | परशुराम शिव-धनुष तोड़ने वाले का संहार करने की घोषणा करते हैं। लक्ष्मण कहते हैं-हमने तो बचपन में ऐसे कितने ही धनुष तोड़ रखे हैं। परशुराम कहते हैं-शिव-धनुष कोई ऐसा-वैसा धनुष नहीं था। लक्ष्मण कहते हैं-हमारी नजरों में सब धनुष एक-से होते हैं। परशुराम स्वयं को बाल-ब्रह्मचारी, क्षत्रिय-कुल द्रोही, सहस्रबाहु संहारक कहते हैं। लक्ष्मण व्यंग्य करते हैं-वाह! मुनि जी तो सचमुच महायोद्धा हैं। वे फैंक से ही पहाड़ उड़ा देना चाहते हैं। परंतु यहाँ भी कोई छुईमुई के फूल नहीं हैं। परशुराम विश्वामित्र को कहते हैं कि वे लक्ष्मण को उसकी महिमा का वर्णन करें, वरना यह मारा जाएगा। तब लक्ष्मण व्यंग्य करते हैं-मुनि जी! आपसे बढ़कर आपकी महिमा और कौन बता सकता है। अपने गुण बताते-बताते आपका पेट अभी न भरा हो तो और कह लो। फिर सच्चे वीर युद्ध क्षेत्र में वीरता दिखाते हैं, बातें नहीं बताते। परशुराम क्रोध में आकर विश्वामित्र को कहते हैं कि मैं अभी इसे मारकर गुरु-ऋण से उऋण होता हैं। इस पर लक्ष्मण चोट करते हुए कहते हैं-हाँ हाँ, माता-पिता का ऋण तो आप उतार चुके। अब गुरु-ऋण भारी पड़ रहा है। लंबे समय से न चुका पाने के कारण ब्याज भी बढ़ गया होगा। लाओ, कोई हिसाब-किताब करने वाला बुलाओ। मैं अभी अपनी थैली खोलकर ऋण चुकाता हूँ। इस प्रकार यह अंश व्यंग्य से भरपूर है। तुलसी ने सच ही कहा है
लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।। परशुराम यदि आग हैं तो लक्ष्मण के वचन घी की तरह काम करते हैं।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित पंक्तियों में प्रयुक्त अलंकार पहचान कर लिखिए
(क) बालकु बोलि बधौं नहि तोही।
उत्तर:
‘ब’ की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार है। ‘ह’ की भी आवृत्ति है।
( ख ) कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा।
उत्तर:
उपमा-कोटि कुलिश (वज्र) के समान वचन। अनुप्रास-कोटि कुलिस।
(ग) तुम्ह तौ कालु हाँक जनु लावा। बार बार मोहि लागि बोलावा।
उत्तर:
उत्प्रेक्षा-तुम मानो काल को हाँक कर ला रहे हो। पुनरुक्ति प्रकाश-बार-बार।
(घ) लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु।
बढ़त देखि जल सम बचन बोले रघुकुलभानु।।
उत्तर:
उपमा-लखन उतर आहुति सरिस (लक्ष्मण के उत्तर आहुति के समान थे)
जल सम बचन (वचन जल के समान थे)
रूपक-भृगुबर कोप कृसानु (क्रोध रूपी आग) रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 9.
“सामाजिक जीवन में क्रोध की ज़रूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।” ।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता है। इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिए।
उत्तर:
पक्ष में विचार-क्रोध केवल नकारात्मक भाव नहीं है। वह भी निर्माण के काम आता है। जैसे हथौड़ा और बुलडोजर केवल भवन तोड़ने का ही काम नहीं करते, बल्कि वे भवन बनाने में सहयोग करते हैं। उसी भाँति क्रोध बुरी बातों को दूर करने में हमारी सहायता करता है। यदि दुर्योधन द्रौपदी के वस्त्र खींचती रहे और लोग बिना क्रोध किए देखते रहें तो फिर न्याय की रक्षा कैसे होगी? यदि कोई गुंडा आपके घर आकर गालियाँ बकता रहे और आप शांत बने रहें तो गुंडा चुप कैसे होगा? यदि परशुराम बढ़-चढ़कर बकझक करते रहें और लक्ष्मण का सिर उतारने को तैयार हो जाएँ तो फिर उन्हें कौन रोकेगा? इसका एक ही उत्तर है-क्रोध। ऐसे समय में क्रोध रक्षक की भूमिका निभाता है। वह स्वभाव से क्षत्रिय है, सिपाही है।
। विपक्ष में विचार-क्रोध चांडाल है। यदि एक चांडाल के विरुद्ध अपना चांडाल खड़ा कर दिया जाए तो, भी चांडाल रहेगा तो चांडाल ही। क्रोध ध्वंस का काम तो कर सकता है, किंतु निर्माण नहीं कर सकता। इस पाठ को ही देख लें। लक्ष्मण के क्रोध ने परशुराम के बड़बोलेपन की फैंक तो निकाल दी किंतु स्वयं फेंक में आ गया। वह परशुराम को इतना अधिक भड़का गया कि कुछ भी विध्वंस हो सकता था। अतः क्रोध से बचना चाहिए।

प्रश्न 10.
संकलित अंश में राम का व्यवहार विनयपूर्ण और संयत है, लक्ष्मण लगातार व्यंग्य बाणों का उपयोग करते हैं और परशुराम का व्यवहार क्रोध से भरा हुआ है। आप अपने आपको इस परिस्थिति में रखकर लिखें कि आपका व्यवहार कैसा होता।
उत्तर:
मेरा व्यवहार लक्ष्मण और राम के बीच का होता। मैं लक्ष्मण की भाँति परशुराम के बड़बोलेपन की हवा तो निकालता किंतु बदले में उसका अपमान न करता। मैं उसी की तरह ज़ोर-जोर से बोलकर उसे परिस्थिति समझने के लिए कहता। यदि वे सुनने के लिए तैयार हो जाते तो फिर विनय का प्रदर्शन करता। आखिर वे हैं तो बड़े, बूढ़े, मुनि और सम्माननीय।

प्रश्न 11.
दूसरों की क्षमताओं को कम नहीं समझना चाहिए-इस शीर्षक को ध्यान में रखते हुए एक कहानी लिखिए।
उत्तर:
एक खरगोश खुद को बहुत तेज और कछुए को बहुत धीमा समझता था। इसी घमंड में उसने उसे दौड़ की चुनौती दे दी। कछुआ हँसते-हँसते मान गया और दौड़ में शामिल हो गया। खरगोश ने एक छपाका मारा और आधा रास्ता पार कर लिया। अब शरारतवश सोचने लगा–बाकी रास्ता तो मैं सुस्ता कर भी पार कर लूंगा। यह सोचकर वह सचमुच सुस्ताने लगा। परंतु उसे नींद आ गई। इधर कछुआ धीमे-धीमे चलता रहा और लक्ष्य तक पहुँच गया। खरगोश जागा तो बहुत देर हो चुकी थी। तब उसे अहसास हुआ कि किसी को भी कम नहीं आँकना चाहिए।

प्रश्न 12.
उन घटनाओं को याद करके लिखिए जब आपने अन्याय का प्रतिकार किया हो।
उत्तर:
मुझे याद है। मैं पूरे नगर की दौड़ प्रतियोगिता में प्रथम आया। खेल-विभाग के अधिकारी ने मुझे कहा-अगर तुम प्रांतीय प्रतियोगिता में भाग लेना चाहते हो तो मुझे एक हजार रुपये ला देना, वरना दूसरे का नाम आगे भेज दूंगा।
मैंने उस अधिकारी की शिकायत अपने जिलाधीश को कर दी। परिणाम यह हुआ कि मुझे अवसर मिला और मैंने प्रांतीय प्रतियोगिता जीती। उस अधिकारी को खूब खरी-खोटी सुननी पड़ी।

प्रश्न 13.
अवधी भाषा आज किन-किन क्षेत्रों में बोली जाती है?
उत्तर:
अवधी भाषा आजकल लखनऊ, इलाहाबाद, फैजाबाद, मिर्जापुर, जौनपुर, फतेहपुर और आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती है।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न
तुलसी की अन्य रचनाएँ पुस्तकालय से लेकर पढ़ें।
उत्तर:
छात्र पढे–विनय-पत्रिका, कवितावली, जानकी-मंगल, पार्वती-मंगल।

प्रश्न
कभी आपको पारंपरिक रामलीला अथवा रामकथा की नाट्य प्रस्तुति देखने का अवसर मिला होगा उस अनुभव को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
मुझे बचपन में अनेक बार रामलीला देखने का अवसर मिला। मुझे सबसे अधिक मार्मिक प्रसंग लगा-लक्ष्मण-मूछ का। श्री राम जब छोटे भाई लक्ष्मण को मूर्छित देखते हैं तो भावुक हो उठते हैं। उनकी आँखों से अश्रुधारा बहने लगती हैं। तब हनुमान सुषेण नामक वैद्य को अपने कंधों पर उठा लाते हैं। सुषेण के कहने पर हनुमान हिमालय जाकर संजीवनी बूटी ले आते हैं। इस अवसर पर राम की अधीरता, विलाप और हनुमान के आने पर खुशी देखकर मैं भावमुग्ध हो जाता हूँ। करुणा भरा यह प्रसंग मुझसे आज भी भुलाए नहीं भूलता।।

प्रश्न
कोही, कुलिस, उरिन, नेवारे-इन शब्दों के बारे में शब्दकोश में दी गई विभिन्न जानकारियाँ प्राप्त कीजिए।
उत्तर:
कोही-विशेषण, काव्य में प्रयुक्त शब्द, ‘क्रोधी’ का एक बोली-रूप।।
कुलिस-कुलिश का एक रूप, काव्य में प्रयुक्त शब्द, अर्थ-वज्र, पुल्लिग। उरिन-काव्य में प्रयुक्त शब्द, उऋण का बदला हुआ रूप, विशेषण। नेवारे-काव्य में प्रयुक्त शब्द, स. क्रिया, दूर करना।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 12

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 12 लखनवी अंदाज़

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
लेखक को नवाब साहब के किन हाव-भावों से महसूस हुआ कि वे उनसे बातचीत करने के लिए तनिक भी उत्सुक नहीं है? [A.I. CBSE 2008; केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009;CBSE]
उत्तर:
लेखक को डिब्बे में आया देखकर नवाब साहब की आँखों में असंतोष छा गया। ऐसे लगा मानो लेखक के आने से उनके एकांत में बाधा पड़ गई हो। उन्होंने लेखक से कोई बातचीत नहीं की। उनकी तरफ़ देखा भी नहीं। वे खिड़की के बाहर देखने का नाटक करने लगे। साथ ही डिब्बे की स्थिति पर गौर करने लगे। इससे लेखक को पता चल गया कि नवाब साहब उनसे बातचीत करने को उत्सुक नहीं हैं।

प्रश्न 2.
नवाब साहब ने बहुत ही यत्न से खीरा काटा, नमक-मिर्च बुरका, अंततः सँघकर ही खिड़की से बाहर फेंक दिया। उन्होंने ऐसा क्यों किया होगा? उनका ऐसा करना उनके कैसे स्वभाव को इंगित करता है? [Imp.][CBSE 2008, 2008 C; CBSE]
उत्तर:
नवाबों के मन में अपनी नवाबी की धाक जमाने की बात रहती है। इसलिए वे सामान्य समाज के तरीकों को ठुकराते हैं तथा नए-नए सूक्ष्म तरीके खोजते हैं, जिससे उनकी अमीरी प्रकट हो। नवाब साहब अकेले में बैठे-बैठे खीरे खाने की तैयारी कर रहे थे। परंतु लेखक को सामने देखकर उन्हें अपनी नवाबी दिखाने का अवसर मिल गया। उन्होंने दुनिया की रीत से हटकर खीरे सँधे और बाहर फेंक दिए। इस प्रकार उन्होंने लेखक के मन पर अपनी अमीरी की धाक जमा दी।

प्रश्न 3.
बिना विचार, घटना और पात्रों के भी क्या कहानी लिखी जा सकती है। यशपाल के इस विचार से आप कह तक सहमत हैं? [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008; CBSE 2010; CBSE]
उत्तर:
हम यशपाल के विचारों से सहमत हैं। बिना घटना, बिना पात्र और बिना विचार के कहानी नहीं लिखी जा सकती। कहानी का अर्थ ही है-‘क्या हुआ’ उसे कहना। अतः जब घटना नहीं होगी तो यह कैसे पता चलेगा कि क्या हुआ? बिना पात्रों के कुछ होगा कैसे, घटेगा कैसे? कहानी में कोई-न-कोई विचार, बात या उद्देश्य भी अवश्य होता है।

प्रश्न 4.
आप इस निबंध को और क्या नाम देना चाहेंगे? और क्यों? [CBSE]
उत्तर:
हवाई भोज
या
खयाली भोजन
क्यों इस निबंध में मुख्य घटना नवाब साहब की है जो कल्पना से ही खीरे का स्वाद ले रहे हैं।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
(क) नवाब साहब द्वारा खीरा खाने की तैयारी करने का एक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इस पूरी प्रक्रिया को अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए। [CBSE 2012, 2010]
अथवा
नवाब साहब ने खीरे की फाँकों के साथ क्या प्रक्रिया की? [CBSE]
उत्तर:
नवाब साहब बड़े आराम के साथ पालथी मारकर बैठे। उनके सामने तौलिए पर कुछ ताजे-कच्चे खीरे रखे हैं। वे ऐसे बैठे हैं मानो दिनभर में उन्हें एक यही महत्त्वपूर्ण काम करना है। धीरे-से उन्होंने तौलिए को उठाया, झाड़ा और बिछाया। अब सीट के नीचे से पानी का लोटा उठाया। उस पानी से खिड़की के बाहर करके खीरे धोए। धोए हुए खीरे तौलिए पर रखे। फिर एक खीरे को उठाया। जेब से चाकू निकाला। चाकू से खीरे का सिर काटा। एक सिरे को चाकू से गोदा। उसकी झाग निकाली। फिर बड़ी कलाकारी और कोमलता से खीरे को छीला। तत्पश्चात् उसे काटकर उसकी फाँकें बनाईं। उन्हें एक-एक करके बड़े क्रम से सजाकर तौलिए पर रखा। अब उस पर जीरा-नमक और लाल मिर्च की सुर्ख बुरकी। अब ये खीरे खाने के लिए तैयार थे।
(ख) किन-किन चीज़ों का रसास्वादन करने के लिए आप किस प्रकार की तैयारी करते हैं?
उत्तर:
परीक्षोपयोगी नहीं।

प्रश्न 6.
खीरे के संबंध में नवाब साहब के व्यवहार को उनकी सनक कहा जा सकता है। आपने नवाबों की और भी सनकों और शौक के बारे में पढ़ा-सुना होगा। किसी एक के बारे में लिखिए। [CBSE]
उत्तर:
परीक्षोपयोगी नहीं।

प्रश्न 7.
क्या सनक का कोई सकारात्मक रूप हो सकता है? यदि हाँ तो ऐसी सनकों का उल्लेख कीजिए। [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
हाँ, सनक का सकारात्मक रूप भी हो सकता है। प्रायः गाँधी, सुभाष, विवेकानंद, मदन मोहन मालवीय आदि महापुरुष भी सनकी हुए हैं। उन्हें जिस चीज़ की सनक सवार हो जाती है उसे पूरा करके ही छोड़ते थे। कौन नहीं जानता कि गाँधी जी को अहिंसात्मक आंदोलनों की सनक थी। आंदोलन में जरा-सी भी हिंसा हुई तो वे आंदोलन वापस ले लेते थे। विवेकानंद को ईश्वर को जानने की सनक थी। वे जिस किसी संत-महात्मा से मिलते थे, उनसे पूछते-क्या आपने ईश्वर को देखा है। उनकी इसी सनक ने उन्हें ज्ञानी बना दिया। वे रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आ गए। ऐसे अनेक उदाहरण हैं।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 5

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 5 उत्साह और अट नहीं रही

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है? [Imp.]
अथवा
‘यह दंतुरित मुसकान’ कविता में बच्चे की दंतुरित मुसकान का कवि के मन पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्यों?[A.I. CBSE 2008)
उत्तर:
कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने, के स्थान पर ‘गरजने के लिए इसलिए कहता है क्योंकि कवि को बादल क्रांति दूत के रूप में नजर आते हैं। समाज में क्रांति लाने के लिए विनम्रता की नहीं उग्रता की आवश्यकता होती है। बादलों की उग्रता उनके गर्जन में छिपी होती है, जिससे लोग सजग हो जाते हैं।

प्रश्न 2.
बच्चे की मुसकान और एक बड़े व्यक्ति की मुसकान में क्या अंतर है? [CBSE 2012]
उत्तर:
कवि ने उत्साह कविता में बादलों से गरजने की कामना की है और ऐसी गरजना जिससे जन-सामान्य में चेतना का संचार हो जाए। ऐसी गरजना, जिसकी गड़-गड़ाहट को सुन उदासीन लोग भी उत्साहित हो जाएँ। कवि अपेक्षा करता है कि लोग बादल की गरजना से अपनी उदासीनता को छोड़ दें और उत्साहित हो जाएँ। ऐसी अपेक्षा करते हुए कवि ने कविता का शीर्षक ‘उत्साह’ रखा है।

प्रश्न 3.
कवि ने बच्चे की मुसकान के सौंदर्य को किन-किन बिंबों के माध्यम से व्यक्त किया है? [CBSE 2012]
उत्तर:
कविता में बादल निम्नलिखित तीन अर्थों की ओर संकेत करते हैं

  • क्रांति के दूत और समाज में बदलाव लाने हेतु लोगों में उत्साह भरने वाले के रूप में।
  • लोगों के कष्ट और ताप हरकर शीतलता देने वाले के रूप में।
  • जल बरसाने वाली शक्ति विशेष के रूप में।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिएrञ्च
( क ) छोड़कर तालाब मेरी झोंपड़ी में खिल रहे जलजात। [Imp.]
( ख ) छू गया तुमसे कि झरने लग पड़े शेफालिका के फूल [Imp.] बाँस था कि बबूल?
उत्तर:
निम्नलिखित पंक्तियों में नाद-सौंदर्य दर्शनीय है-

  1. घेर-घेर घोर गगन।
  2. विकल विकल, उन्मन थे उन्मन।
  3. तप्त धरा, जल से फिर।।
  4. शीतल कर दो-बादल गरजो!

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
मुसकान और क्रोध भिन्न-भिन्न भाव हैं। इनकी उपस्थिति से बने वातावरण की भिन्नता का चित्रण कीजिए।
उत्तर:
मुसकान मन की प्रसन्नता को प्रकट करने वाला भाव है। मुसकान से वातावरण में प्रसन्नता फैल जाती है। मुसकराने वाला तो प्रसन्न होता ही है सामने वाला भी मुसकान देखकर खुश हो जाता है।
क्रोध मन की उग्रता और अप्रसन्नता को प्रकट करने वाला भाव है। क्रोध प्रकट करने से वातावरण में तनाव उत्पन्न हो जाता है। क्रोधी व्यक्ति की आँखों से तो अंगारे निकलते ही हैं, जो भी इस क्रोध का सामना करता है वह भी अशांत हो जाता है।

प्रश्न 6.
दंतुरित मुसकान से बच्चे की उम्र का अनुमान लगाइए और तर्क सहित उत्तर दीजिए।
उत्तर:
इस कविता से यह अनुमान लगता है कि वह बच्चा 8-9 महीने का रहा होगा। लगभग इसी उम्र में बच्चे के दाँत निकलना शुरू होते हैं।

प्रश्न 7.
बच्चे से कवि की मुलाकात का जो शब्द-चित्र उपस्थित हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कवि दाँत निकालते बच्चे से मिला तो प्रसन्न हो उठा। शिशु की भोली मुसकान को देखकर उसके निष्प्राण जीवन में प्राण आ गए। उसे लगा मानो आज कमल के फूल तालाब में न खिलकर उसकी झोंपड़ी में उग आए हैं। उसके बूढे नीरस शरीर में इस तरह मधुरता छा गई मानो बबूल के पेड़ से शेफालिका के कोमल फूल झरने लगे हों। पहले तो शिशु कवि को पहचान नहीं सका। इसलिए वह उसे एकटक निहारता रहा। जब उसकी माँ ने उसे कवि से परिचित कराया तो वह शर्माने लगा। वह कवि को तिरछी नजरों से देखकर मुँह फेरने लगा। धीरे-धीरे उनकी नज़रें मिलीं। आपस में स्नेह उमड़ा। तब*बच्चा मुसकरा पड़ा। उसके उगते हुए दाँत दीखने लगे।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न .
आप जब भी किसी बच्चे से पहली बार मिलें तो उसके हाव-भाव, व्यवहार आदि को सूक्ष्मता से देखिए और उस अनुभव को कविता या अनुच्छेद के रूप में लिखिए।
उत्तर:
कल मैं पहली बार अपनी बहन की ससुराल में गया। मुझे देखते ही मेरे भानजे ने एक किलकारी मारी और मुझे निहारने लगा। मैं उसकी आँखों में प्रसन्नता देखकर उसकी ओर लपका। जैसे ही मैंने उसे अपनी बहन से लेना चाहा, उसने बड़े नटखट अंदाज़ में मेरी ओर से मुँह फेर लिया। मैं मुड़कर पीछे गया तो उसने फिर-से मुँह फेर लिया। मैंने हाथों के स्पर्श से उसे गोद में लेना चाहा तो वह फिर-से माँ की गोदी में छिपने लगा। अब मैंने उसे छोड़ दिया और दूर जाकर खड़ा हो
गया। अब वह फिर से उचककर मेरी ओर देखने लगा और हँसने लगा। सचमुच मेरा भानजा बहुत नटखट है। न आता है, न दूर जाने देता है। उसे आँखमिचौली खेलने में यों ही आनंद आता है।

प्रश्न .
एन.सी.ई.आर.टी. द्वारा नागार्जुन पर बनाई गई फ़िल्म देखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं देखें।

फसल

प्रश्न 1.
कवि के अनुसार फसल क्या है? [CBSE 2012]
उत्तर:
कवि के अनुसार फसलें पानी, मिट्टी, धूप, हवा और मानव-श्रम के मेल से बनी हैं। इनमें सभी नदियों के पानी का जादू समाया हुआ है। सभी प्रकार की मिट्टियों का गुण-धर्म निहित है। सूरज और हवा का प्रभाव समाया हुआ है। इन सबके साथ किसानों और मजदूरों का श्रम भी सम्मिलित है।

प्रश्न 2.
कविता में फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्वों की बात कही गई है। वे आवश्यक तत्व कौन-कौन से हैं? ।
उत्तर:
फसल उपजाने के लिए आवश्यक तत्त्व हैं
1. पानी
2. मिट्टी।
3. सूरज की धूप
4. हवा।

प्रश्न 3.
फसल को ‘हाथों के स्पर्श की गरिमा’ और ‘महिमा’ कहकर कवि क्या व्यक्त करना चाहता है? [CBSE 2008; केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008; 2009]
उत्तर:
इसमें कवि कहना चाहता है कि किसानों के हाथों का प्यार भरा स्पर्श पाकर ही ये फसलें इतनी फलती-फूलती हैं। यह किसानों के श्रम की गरिमा और महिमा ही है जिसके कारण फसलें इतनी अधिक बढ़ती चली जाती हैं।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) रूपांतर है सूरज की किरणों का सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का
उत्तर:
कवि कहना चाहता है कि ये फसलें और कुछ नहीं सूरज की किरणों का बदला हुआ रूप हैं। फसलों की हरियाली सूरज की किरणों के प्रभाव के कारण आती है। फसलों को बढ़ाने में हवा की थिरकन का भी भरपूर योगदान है। मानो हवा सिमट-सिकुड़ कर फसलों में समा जाती है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
कवि ने फसल को हजार-हज़ार खेतों की मिट्टी का गुण-धर्म कहा है
(क) मिट्टी के गुण-धर्म को आप किस तरह परिभाषित करेंगे?
(ख) वर्तमान जीवन शैली मिट्टी के गुण-धर्म को किस-किस तरह प्रभावित करती है?
(ग) मिट्टी द्वारा अपना गुण-धर्म छोड़ने की स्थिति में क्या किसी भी प्रकार के जीवन की कल्पना की जा सकती है?
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हमारी क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर:
(क) मिट्टी के गुण-धर्म का आशय है-मिट्टी में मिले हुए वे प्राकृतिक तत्त्व, खनिज पदार्थ और पोषक तत्त्व, जिनके मेल से किसी मिट्टी का स्वरूप अन्य मिट्टियों से विशेष हो जाता है।
(ख) वर्तमान जीवन-शैली प्रदूषण उत्पन्न करती है। हम कृत्रिम पदार्थों का उत्पादन करके उसका कचरा मिट्टी में छोड़ देते हैं। प्लास्टिक जैसे कृत्रिम पदार्थ मिट्टी में मिलकर उसके गुण-धर्म को नष्ट करते हैं। फैक्टरियों का कचरा और विषैला रसायन धरती के पानी को प्रदूषित करता है। इस कारण उस मिट्टी का मूल स्वभाव बदलकर विकृत हो जाता है।
(ग) यदि मिट्टी अपना मूल गुण-धर्म और स्वभाव छोड़ देगी तो जीवन का स्वरूप विकृत हो जाएगा। शायद जीवन तो नष्ट न हो किंतु वह अपरूप और विद्रूप जरूर हो जाएगा।
(घ) मिट्टी के गुण-धर्म को पोषित करने में हम बहुत कुछ कर सकते हैं। सबसे पहली बात हम सचेत हों। हम मिट्टी के गुण-धर्म को प्रभावित करने वाले कारकों के बारे में जानें। इससे हम स्वयमेव जागरूक हो जाएँगे। हम स्वयं जागकर अन्य लोगों को जगाने का कार्य भी कर सकते हैं।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न .
इलेक्ट्रॉनिक एवं प्रिंट मीडिया द्वारा आपने किसानों की स्थिति के बारे में बहुत कुछ सुना, देखा और पढ़ा होगा। एक सुदृढ़ कृषि-व्यवस्था के लिए आप अपने सुझाव देते हुए अखबार के संपादक को पत्र लिखिए।

उत्तर:

सेवा में
संपादक महोदय
दैनिक भास्कर
नई दिल्ली
15 मार्च, 2015
महोदय
मैं आपके पत्र के माध्यम से अपने विचार पाठकों तक पहुँचाना चाहता हूँ। कृपया इन्हें प्रकाशित कर अनुगृहीत करें।
भारत कृषिप्रधान देश है। किसान ही भारत की अर्थ-व्यवस्था और कृषि-व्यवस्था की रीढ़ हैं। परंतु दुर्भाग्य से किसान ही खुशहाल नहीं हैं। वे देश को खुशहाल बनाते हैं, अपने हाथों के स्पर्श से फसलें उगाते हैं, सब लोगों का पेट भरते हैं, किंतु वे स्वयं भूखे रह जाते हैं। बाज़ार की शक्तियाँ उनका शोषण करती हैं। पिछले दिनों हजारों किसानों ने पैसों की तंगी के कारण आत्महत्या कर ली। यह भारत की कृषि-व्यवस्था पर कलंक है। इसे तुरंत रोको जाना चाहिए। सरकार को किसानों के भले के लिए ऐसी योजनाएँ लागू करनी चाहिए जिससे वे संकट की स्थिति से उबर सकें। उनकी फसलों का बीमा हो सकता है, उन्हें सस्ता ऋण दिया जा सकता है, ऋण पर ब्याज माफ़ किया जा सकता है। ऐसे अनेक उपायों से उनकी दशा को सुधारा जाना चाहिए।
भवदीय
रमेश चौहान
317, वैशाली
नई दिल्ली।

प्रश्न .
फसलों के उत्पादन में महिलाओं के योगदान को हमारी अर्थव्यवस्था में महत्त्व क्यों नहीं दिया जाता है? इस बारे में कक्षा में चर्चा कीजिए।

उत्तर:

फसलों के उत्पादन में किसानों के महत्त्व को बढ़-चढ़ कर प्रचारित किया जाता है। देश के किसानों की चर्चा की जाती है किंतु किसानिनों की नहीं। भारत की कोई महिला अगर सबसे अधिक श्रम करती है, तो वह किसान-महिला है। किसान परिवारों की महिलाएँ पशुओं के चारे की कटाई, पशुओं के चारे की व्यवस्था, खेतों में रोटी पहुँचाना, फसलों को ढोना
आदि अनेक कार्य रोज-रोज करती हैं। इन कार्यों को किसी खाते में नहीं डाला जाता। उनकी गिनती नहीं की जाती। इस कारण उन्हें महत्त्व भी नहीं दिया जाता। यह किसान-महिलाओं पर अन्याय है। हमें चाहिए कि हमें उनके श्रम की चर्चा करें, उन्हें सम्मानित करें, उनको मूल्य तय करें।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
कवि बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने के लिए कहता है, क्यों? [Imp.] [A.I. CBSE 2008; CBSE]
अथवा
बादल से फुहार, रिमझिम या बरसने के स्थान पर ‘गरजने’ के लिए क्यों कहा गया? तर्कसहित उत्तर दीजिए। [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009; CBSE]
उत्तर:
कवि अपनी आत्मकथा सुनाने से इसलिए बचना चाहता है, क्योंकि

  • कवि के जीवन में सुखद यादें कम, दुख और निराशा अधिक है।
  • कवि अपने दुख दूसरों के सामने सुनाकर उपहास का पात्र नहीं बनना चाहता है।
  • कवि अपने मित्रों को यह एहसास नहीं दिलाना चाहता है कि उसके दुखों का कारण तुम्हीं लोग हो।
  • कवि के दुख और वेदनाएँ समय के साथ दब गई हैं। वह उन्हें उभारना नहीं चाहता है।

प्रश्न 2.
कविता का शीर्षक उत्साह क्यों रखा गया है? [CBSE]
अथवा
‘उत्साह’ कविता के शीर्षक की सार्थकता पर विचार कीजिए। [CBSE 2012]
उत्तर:
कवि आत्मकथा को लिखने का उचित समय नहीं मानता है। क्योकि अभी तक के उसके जीवन में ऐसी कोई महानता नहीं है जिसके उल्लेख से लोगों को प्रेरणा मिले। कवि कहता है कि मेरे हृदय में अनेक व्यथा-कथाएँ सुस्त पड़ी हुई हैं, जिससे मैं शांतचित्त हूँ। उन्हें पुनः स्मरण कर जीवन को व्यथित नहीं करना चाहता हूँ। साथ ही कवि अपनी दुर्बलताओं और प्रेम के क्षणों को सबके सम्मुख प्रकट भी नहीं करना चाहता है। ऐसा करना उसे उचित नहीं लगता है।

प्रश्न 3.
कविता में बादल किन-किन अर्थों की ओर संकेत करता है? [CBSE]
उत्तर:
स्मृति को पाथेय बनाने से कवि का आशय है-उसके जीवन के उन सुनहरे पलों की सुखद यादें जो उसने पत्नी के साथ सँजोई थी। यही यादें अब उसके जीवन पथ के लिए सहारा बनी हैं। इन्हीं के सहारे वह जीवन जी रहा है।

प्रश्न 4.
शब्दों को ऐसा प्रयोग जिससे कविता के किसी खास भाव या दृश्य में ध्वन्यात्मक प्रभाव पैदा हो, नाद-सौंदर्य कहलाता है। उत्साह कविता में ऐसे कौन-से शब्द हैं जिनमें नाद-सौंदर्य मौजूद है, छाँटकर लिखें।
उत्तर:
(क) कवि ने अपने जीवन की अनुभूति को स्पष्ट किया है कि सुख उसके जीवन के लिए प्रवंचना मात्र बनकर रह गया। वह सुख की कल्पना करते ही रह गए और सुख उसके जीवन में केवल झाँकी दिखाकर चला गया। कब आया और कब चला गया, उन्हें पता ही नहीं चला। इस तरह कवि स्वप्न में ही सुख का अनुभव कर रहा था और आँख खुलते ही सुख विलीन हो गया।

(ख) कवि अपनी प्रेयसी की मधुर-स्मृतियों में थोड़ी देर के लिए निमग्न हो जाता है। और अपनी प्रेयसी के सौंदर्य का वर्णन करते हुए कहता है कि उसके गालों की रक्तिम आभा उषा काल में उदित होते हुए सूर्य की अरुणिमा के समान सुंदर थी। जिसकी छाया में ऊषा भी अनुराग से भर जाती थी।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 5.
जैसे बादल उमड़-घुमड़कर बारिश करते हैं वैसे ही कवि के अंतर्मन में भी भावों के बादल उमड़-घुमड़कर कविता के रूप में अभिव्यक्त होते हैं। ऐसे ही किसी प्राकृतिक सौंदर्य को देखकर अपने उमड़ते भावों को कविता में उतारिए।
उत्तर
लख ये काले-काले बादल नील सिंधु में खिले कमल दल हरित ज्योति चपला अति चंचल सौरभ के रस के।। छोड़ गए गृह जब से प्रियतम बीते कितने दृश्य मनोरम क्या मैं ऐसी ही हूँ अक्षम
जो न रहे बस के।

पाठेतर सक्रियता

प्रश्न 1.
बादलों पर अनेक कविताएँ हैं। कुछ कविताओं का संकलन करें और उनका चित्रांकन भी कीजिए।
उत्तर:
सुमित्रानंदन की ‘बादल’ कविता पढ़े तथा उसका संकलन करें।

अट नहीं रही है।

प्रश्न 1.
छायावाद की एक खास विशेषता है अंतर्मन के भावों को बाहर की दुनिया से सामंजस्य बिठाना। कविता की किन पंक्तियों को पढ़कर यह धारणा पुष्ट होती है? लिखिए।
उत्तर:
छायावादी कविता प्रकृति के चित्रण द्वारा मन के भावों को व्यक्त करती है। इसका प्रमाण निम्नलिखित पंक्तियों | में मिलता है
आभा फागुन की तन सट नहीं रही है।
यहाँ फागुन की शोभा का ही चित्रण नहीं है, अपितु लोगों के मन में उठी उमंग का भी चित्रण है।
कहीं साँस लेते हो, घर-घर भर देते हो, उड़ने को नभ में तुम पर-पर कर देते हो। यहाँ साँस लेना, घर-घर भरना, नभ में उड़ने को पर-पर करना–तीनों स्थितियाँ फागुन और मानव-मन दोनों के लिए प्रयुक्त हुई हैं। यहाँ आकर फागुन और मानव-मन मानो एक हो गए हैं। जो फागुन के तन से प्रकट हो रहा है, वही मानव-मन से प्रकट हो रहा है।

प्रश्न 2.
कवि की आँख फागुन की सुंदरता से क्यों नहीं हट रही है? । [Imp.][CBSE] |
उत्तर :
फागुन बहुत मतवाला, मस्त और शोभाशाली है। उसका रूप-सौंदर्य रंग-बिरंगे फूलों, पत्तों और हवाओं में प्रकट हो रहा है। फागुन के कारण मौसम इतना सुहाना हो गया है कि उस पर से आँख हटाने का मन नहीं करता।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति की व्यापकता का वर्णन किन रूपों में किया है? [Imp.] [A.I. CBSE 2008 C]
अथवा
‘अट नहीं रही है’ कविता में चित्रित फागुन के सौंदर्य के विभिन्न चित्र अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए। [CBSE 2012]
उत्तर:
कवि ने प्रकृति की सुंदरता की व्यापकता को वर्णन अनेक प्रकार से किया है। उसे हर जगह छलकता हुआ दिखाया है। घर-घर में फैला हुआ दिखाया है। कवि ने जान-बूझकर उसे किसी एक दृश्य में नहीं बाँधा है, बल्कि असीम दिखाया है। कहीं साँस लेते हो’ का आशय है कि कहीं मादक हवाएँ चल रही हैं। घर-घर में भरने के भी अनेक रूप हैं। शोभा का भरना, फूलों का भरना, खुशी और उमंग का भरना। ‘उड़ने को पर-पर करना’ भी ऐसा सांकेतिक प्रयोग है जिसके विस्तृत अर्थ हैं। यह वर्णन पक्षियों की उड़ान पर भी लागू होता है और मन की उमंग पर भी। सौंदर्य से आँख न हटा पाना भी उसके विस्तार की झलक देता है।

प्रश्न 4.
फागुन में ऐसा क्या होता है जो बाकी ऋतुओं से भिन्न होता है? [CBSE]
अथवा
‘अट नहीं रही है’ कविता के आधार पर फागुन के सौंदर्य का चित्रण कीजिए जिसके आधार पर उसे अन्य ऋतुओं से भिन्न समझा जाता है। [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2009]
उत्तर:
फागुन में वातावरण बहुत मीठा और सुहावना होता है। धरती पर सबसे अधिक फूल खिलते हैं। आसमान साफ-स्वच्छ होता है। पक्षियों के समूह आकाश में विहार करते दिखाई देते हैं। वृक्षों पर नए फूल-पत्ते उगते हैं। ये विशेषताएँ अन्य महीनों में नहीं होतीं।

प्रश्न 5.
इन कविताओं के आधार पर निराला के काव्य-शिल्प की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
छायावादी शिल्प की पहली विशेषता है-प्रकृति-चित्रण द्वारा मन के भावों को प्रकट करना। इस कविता में भी फागुन के द्वारा मन की मस्ती और उमंग का चित्रण किया गया है। ‘घर-घर भर देते हो’ में फूलों की शोभा की ओर भी संकेत है और मन में उठी खुशी की ओर भी।
छायावाद की दूसरी विशेषता है-मानवीकरण। कवि ने फागुन को नायक मानकर उससे वार्ता की है। उसे संबोधित करते हुए कहा है
कहीं साँस लेते हो,
घर-घर भर देते हो। छायावाद की तीसरी विशेषता है-गीति-शैली। इसमें भी गीत-शैली के सभी गुण हैं-संक्षिप्तता, अनुभूति, गेयता, प्रवाहपूर्ण भाषा।
छायावाद की सबसे बड़ी विशेषता है–सांकेतिकता। छायावादी शब्द में शब्द से परे बहुत कुछ ध्वनित होता है। यह विशेषता इस कविता में भी है।
संस्कृतनिष्ठ लघु-लघु शब्दों का प्रयोग भी छायावादी शिल्प की विशेषता है जो इस कविता में स्पष्ट दिखाई देती है।

रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 6.
होली के आसपास प्रकृति में जो परिवर्तन दिखाई देते हैं, उन्हें लिखिए।
उत्तर:
होली के आसपास वसंत ऋतु होती है। सभी पेड़-पौधे पुराने पत्ते गिरा देते हैं तथा नए-नए पत्ते धारण करते हैं। खेतों में सरसों फूल उठती है। हर तरफ पीले फूल दिखाई देते हैं।

पाठेतर सक्रियता ।

प्रश्न 1
फागुन में गाए जाने वाले गीत जैसे होरी, फाग आदि गीतों के बारे में जानिए।
उत्तर:
मिला बन में मुरलिया वाला सखी मिला बन में मुरलिया वाला।
सखी कोई कहे देखो मोहन है आए, कोई कहे नन्दलाला। सखी मिला बन में मुरलिया वाला। सखी धर पिचकारी खड़े ग्वाल सब कोई धरे हैं गुलाला। सखी मिला बन में मुरलिया वाला। सखी मोरी साड़ी मेरो तन-मन भिगोए देखो नन्द के लाला। सखी मिला बन में मुरलिया वाला।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 3 सवैया और कवित्त

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
कवि आत्मकथा लिखने से क्यों बचना चाहता है? [Imp.] [A.I. CBSE 2008 C; CBSE]
अथवा
कवि जयशंकर प्रसाद ने आत्मकथा ने लिखने के कौन-कौन से कारण गिनाए हैं? [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
कवि ने ‘ श्रीब्रजदूलह’ शब्द का प्रयोग सुंदर साँवले नंद किशोर श्रीकृष्ण के लिए प्रयुक्त किया है। उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक इसलिए कहा गया है क्योंकि जिस तरह मंदिर का दीपक सुंदर दिखने के साथ ही अपनी चमक के आलोक से मंदिर को आलोकित करता है उस प्रकार श्रीकृष्ण अपनी सुंदरता एवं उपस्थिति से संपूर्ण ब्रजभूमि में आनंद एवं आलोक बिखेर देते हैं।

प्रश्न 2.
आत्मकथा सुनाने के संदर्भ में ‘अभी समय भी नहीं’ कवि ऐसा क्यों कहता है? [CBSE]
उत्तर:
1. अनुप्रास अलंकार-

  1. ‘कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई’ (यहाँ ‘क’ वर्ण की आवृत्ति हुई है।)
  2. साँवरे अंग लसै पट-पीत (‘प’ की आवृत्ति हुई है।)
  3. ‘हिये हुलसै बनमाल सुहाई’ (यहाँ ‘ह’ वर्ण की आवृत्ति हुई है।)

2. रूपक अलंकार-

  1. हँसी मुखचंद जुन्हाई (मुख रूपी चंद्र।)
  2. जै जगमंदिर-दीपक सुंदर (जग रूपी मंदिर के दीपक ।)

प्रश्न 3.
स्मृति को ‘पाथेय’ बनाने से कवि का क्या आशय है? [Imp.] [CBSE 2008; CBSE]
उत्तर:
काव्य-सौंदर्य-इन पंक्तियों में श्रीकृष्ण के रूप सौंदर्य का मनोहर चित्रण है। श्रीकृष्ण के पैरों में पड़े नूपुर और कमर की करधनी में लगे हुँघरू मधुर ध्वनि उत्पन्न कर रहे हैं। उनके साँवले शरीर पर पीला वस्त्र और गले में वनफूलों की माला सुंदर लग रही है।

शिल्प सौंदर्य
भाषा – मधुर सरस ब्रजभाषा, जिसमें संगीतमयता का गुण है।
छंद – सवैया छंद है।
गुण – माधुर्य गुण है।
बिंब – दृश्य एवं श्रव्य बिंब साकार हो उठा है।
अलंकार – ‘कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई’, ‘पट पीत’ और ‘हिये हुलसै’ में अनुप्रास अलंकार है।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए
(क) मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग गया। आलिंगन में आते-आते मुसक्या कर जो भाग गया।
( ख ) जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में। अनुरागिनी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।
उत्तर:
प्रायः कवि बसंत ऋतु को उद्दीपन के रूप में प्रस्तुत करते हैं। फूलों का सौंदर्य, नव-प्रस्फुटित कोंपलें, मंद-मंद प्रवाहित समीर जहाँ हृदय में स्पंदन करते हैं उस परंपरा से हटकर कवि देव ने स्नेह के प्रतीक शिशु रूप में बसंत की कल्पना की है जो स्वयं कामदेव का पुत्र है। पुत्र बसंत के लिए डालियों का पालना, नव-पल्लवों का बिछौना, तोते-मोर का शिशु से बातें करना, कोयल के द्वारा शिशु को प्रसन्न करने का प्रयास करना, नायिका द्वारा शिशु की नज़र उतारना, गुलाब के द्वारा प्रातः चुटकी बजाकर जगाना आदि रूप अन्य-कवियों की सोच का परिष्कृत रूप है।

यहाँ नायक-नायिका के हृदय-स्पंदन में उद्दीपन न होकर अपने शिशु के प्रति स्नेह के लिए आतुर दिखाई देता है।

प्रश्न 5.
‘उज्ज्वल गाथा कैसे गाऊँ, मधुर चाँदनी रातों की’ कथन के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है? [Imp.][CBSE]
उत्तर:
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै’ – पंक्ति का भाव यह है कि प्रात:काल गुलाब की कलियाँ चटकती हैं और खिलकर फूल बन जाती हैं। इन कलियों के चटकने की आवाज सुनकर ऐसा लगता है मानो बालक वसंत को जगाने के लिए गुलाब चुटकी बजा रहा है।

प्रश्न 6.
‘आत्मकथ्य’ कविता की काव्यभाषा की विशेषताएँ उदाहरण सहित लिखिए।
अथवा
अथवा ‘आत्मकथ्य’ कविता की भाषा पर प्रकाश डालिए।[CBSE]
उत्तर:
कवि ने चाँदनी-रात की सुंदरता को निम्न रूपों में देखा है-

  1. स्फटिक शिलाओं से निर्मित सुधा-मंदिर रूप में देखा है।
  2. चारों ओर फैलती चाँदनी को दधि रूप-समुद्र की तरह देखा है जो चारों ओर से उमड़ पड़ रही है।
  3. आँगन में उमड़ते हुए दूध के झाग के रूप में देखा है।
  4. चाँदनी को नायिका के रूप में देखा है जो तारों से सुसज्जित है।
    अंबर रूपी-दर्पण के रूप में चाँदनी को देखा है।

प्रश्न 7.
कवि ने जो सुख का स्वप्न देखा था उसे कविता में किस रूप में अभिव्यक्त किया है?
उत्तर:
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’ का भाव यह है कि चाँदनी रात में आसमान स्वच्छ-साफ़ दर्पण के समान दिखाई दे रहा है। स्वच्छ आसमान रूपी दर्पण में चमकता चंद्रमा धरती पर खड़ी राधा का प्रतिबिंब प्रतीत हो रहा है। यहाँ चंद्रमा की तुलना राधा के प्रतिबिंब से की गई है।

इस पंक्ति में चाँद की तुलना राधा के प्रतिबिंब से करके परंपरागत उपमान को उपमेय से हीन बताया गया है। परंपरा के विपरीत ऐसा करने से यहाँ ‘व्यतिरेक अलंकार’ है।

प्रश्न 8.
इस कविता के माध्यम से प्रसाद जी के व्यक्तित्व की जो झलक मिलती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कवि देव ने उक्त कवित्त में निम्न उपमानों का प्रयोग किया है

  1. स्फटिक शिला
  2. सुधा-मंदिर
  3. उदधि-दधि
  4. दूध के से फेन
  5. तारों से
  6. आरसी से।

प्रश्न 9.
आप किन व्यक्तियों की आत्मकथा पढ़ना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर:
पठित कविताओं के आधार पर देव की निम्नलिखित काव्यगत विशेषताएँ दिखाई देती हैं
भाव-सौंदर्य-
कवि देव ने अपनी कविताओं में सामंती वैभव-विलास एवं रूप सौंदर्य का चित्र खींचा है। वे श्रीकृष्ण को । संसार रूपी मंदिर का प्रकाशमान दीपक और ब्रज के दूलह के रूप में चित्रित करते हैं। प्रकृति वर्णन में सिद्धहस्त देव ने नवीन कल्पना एवं मौलिकता का समावेश करते हुए प्रकृति के सौंदर्य का मनोहारी चित्र खींचा है।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 2 राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद

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पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
कवि ने ‘श्रीब्रजदूलह’ किसके लिए प्रयुक्त किया है और उन्हें संसार रूपी मंदिर का दीपक क्यों कहा है? [Imp.] [CBSE; CBSE 2008; 08 C]
उत्तर:
सीता स्वयंवर के अवसर पर लक्ष्मण ने क्रोधित परशुराम को धनुष टूट जाने के लिए निम्नलिखित तर्क दिए-

  • यह धनुष (शिव-धनुष) बहुत पुराना था।
  • राम ने तो इसे नया समझकर देखा था।
  • पुराना धनुष राम के हाथ लगाते ही टूट गया।
  • पुराना धनुष टूटने से हमें क्या लाभ-हानि होना था।

प्रश्न 2.
पहले सवैये में से उन पंक्तियों को छाँटकर लिखिए जिनमें अनुप्रास और रूपक अलंकार का प्रयोग हुआ है? ।
उत्तर:
परशुराम के क्रोध करने पर राम-लक्ष्मण की प्रतिक्रिया के आलोक में उनकी निम्नलिखित विशेषताएँ पता चलती हैं-

राम की विशेषताएँ|

  1. राम का स्वभाव अत्यंत विनम्र था।
  2. राम निडर, साहसी, धैर्यवान तथा मृदुभाषी थे।
  3. वे बड़ों के आज्ञाकारी तथा आज्ञापालक थे।

लक्ष्मण की विशेषताएँ

  1. लक्ष्मण में वाक्पटुता कूट-कूटकर भरी थी।
  2. उनका स्वभाव तर्कशील था।
  3. वे बुद्धिमान तथा व्यंग्य करने में निपुण थे।
  4. वे प्रत्युत्पन्नमति थे।
  5. वे वीर किंतु क्रोधी स्वभाव के थे।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए पाँयनि नूपुर मंजु बजें, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई। साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसे बनमाल सुहाई।
उत्तर:
लक्ष्मण और परशुराम के मध्य हुए संवाद का यह भाग सबसे अच्छा लगा
लक्ष्मण – आप तो मेरे लिए काल को ऐसे बुला रहे हैं जैसे वह आपके वश में हो और भागा-भागा चला आएगा। परशुराम – यह कटुवादी बालक निश्चित रूप से मरने के योग्य है। अब तक मैं इसे बालक समझकर बचाता रहा।
परशुराम – मेरा फरसा अत्यंत तेज़ धारवाला है और मैं निर्दयी हूँ। विश्वामित्र जी मैं इसे आपके स्वभाव के कारण छोड़ रहा हूँ अन्यथा इसी फरसे से इसे काटकर गुरुऋण से उरिण हो जाता।

प्रश्न 4.
दूसरे कवित्त के आधार पर स्पष्ट करें कि ऋतुराज वसंत के बाल-रूप का वर्णन परंपरागत वसंत वर्णन से किस प्रकार भिन्न है। [Imp.][CBSE 2012]
उत्तर:
परशुराम ने अपने बारे में कहा कि मैं बाल ब्रह्मचारी और स्वभाव से बहुत ही क्रोधी हूँ। मैं क्षत्रिय कुल का नाश करने वाले के रूप में संसार में प्रसिद्ध हूँ। मैंने अपनी भुजाओं के बल पर अनेक बार पृथ्वी के राजाओं को पराजित किया, उनका वध किया और जीती हुई पृथ्वी ब्राह्मणों को दान में दे दी। उन्होंने यह भी कहा कि मेरा फरसा बहुत ही भयानक है। इससे मैंने सहस्त्रबाहु की भुजाएँ काट दीं। यह फरसा इतना कठोर है कि यह गर्भ के बच्चों की भी हत्या कर देता है।

प्रश्न 5.
‘प्रातहि जगावत गुलाब चटकारी दै-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। [CBSE]
उत्तर:
लक्ष्मण ने वीर योद्धा की विशेषताएँ बताते हुए कहा है कि

  • वीर योद्धा शत्रु से अपनी वीरता का बखान नहीं करते हैं।
  • वीर योद्धा रण क्षेत्र में शत्रु को सम्मुख देखकर युद्ध करते हैं और अपनी वीरता दिखाते हैं।
  • वीर योद्धा शत्रु को देखकर भयभीत नहीं होते हैं।

प्रश्न 6.
चाँदनी रात की सुंदरता को कवि ने किन-किन रूपों में देखा है? [CBSE]
उत्तर:
यह सत्य है कि साहस और शक्ति हर व्यक्ति के व्यक्तित्व की शोभा बढ़ाते हैं तथा योद्धाओं के लिए ये गुण अनिवार्य भी हैं, किंतु इनके साथ यदि विनम्रता का मेल हो जाए तो ये और भी उत्तम बन जाते हैं। विनम्रता से अकारण होने वाले वाद-विवाद या अप्रिय घटनाएँ होते-होते रुक जाती हैं। विनम्रता शत्रु के क्रोध पर भी भारी पड़ती है। अपनी विनम्रता के कारण व्यक्ति विपक्षी के लिए भी सम्मान का पात्र बन जाता

प्रश्न 7.
‘प्यारी राधिका को प्रतिबिंब सो लगत चंद’-इस पंक्ति का भाव स्पष्ट करते हुए बताएँ कि इसमें कौन-सा अलंकार है? [CBSE]
उत्तर:
(क) लक्ष्मण ने हँसते हुए परशुराम से व्यंग्यात्मक भाव से मधुर वचनों के माध्यम से कहा, “अरे! मुनिवर आप तो महायोद्धा निकले। आप बार-बार अपना कुल्हाड़ा मुझे दिखाकर ऐसा करना चाह रहे हैं मानो फैंक मारकर पहाड़ उड़ा देना चाहते हो।।

(ख) लक्ष्मण व्यंग्य भाव से परशुराम से कहते हैं कि यहाँ कोई कुम्हड़े की बतिया (सीताफल का छोटा-सा फल) नहीं है जो आपकी तर्जनी देखकर मर जाएगा अर्थात् हम भी इतने निर्बल नहीं हैं जो आपकी तर्जनी देखकर डर जाएँगे। मैं आपको फरसा, धनुष-बाण देखकर ही जो कुछ कहा था, सब अभिमानपूर्वक कहा था अर्थात् आपके अस्त्र-शस्त्रों से तनिक भी भयभीत नहीं हूँ।

(ग) परशुराम की गर्वोक्तियाँ और लक्ष्मण को बार-बार मृत्यु का भय दिखाने तथा फरसा उठाकर मारने की तत्परता देखकर विश्वामित्र ने अपने मन में हँसकर कहा कि मुनि को सावन के अंधे की भाँति सब हरा-हरा दिख रहा है अर्थात् मुनि को सभी कमजोर दिखाई दे रहे हैं, जिसे वे आसानी से मार देंगे, पर मुनि जिसे मीठी खाँड़ समझकर खा जाना चाहते हैं वह लौह (फौलाद) से बने तीक्ष्ण धारवाले खाँड़े हैं अर्थात् राम-लक्ष्मण फौलाद की भाँति मजबूत हैं।

प्रश्न 8.
तीसरे कवित्त के आधार पर बताइए कि कवि ने चाँदनी रात की उज्ज्वलता का वर्णन करने के लिए किन-किन उपमानों का प्रयोग किया है? [CBSE 2012]
उत्तर:
श्री तुलसीदास जी हिंदी-साहित्य-आकाश के दीप्तमान नक्षत्रों में सबसे दीप्त नक्षत्र हैं। उनके काव्य से स्पष्ट है कि भाषा पर उनका पूरा अधिकार है। इनका काव्य अवधी भाषा का उत्कृष्ट रूप है। भाषा में कितनी सुकोमलता, सहजता, सरलता है, इसका अनुभव पाठक को स्वयं होने लगता है। अवधी भाषा की पराकाष्ठा तुलसी जी के रामचरित मानस के कारण है-यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है।

उनके काव्य में बहुत अच्छा नाद-सौंदर्य है, जिसे सामान्य-से-सामान्य जन गाकर भाव-विभोर हो उठता है। काव्य में गेयता है। लोक जीवन से जुड़ी लोकोक्तियों और मुहावरों ने काव्य को सजीव बना दिया है, जिससे काव्य में प्रवाह आ गया है। बिखरा हुआ विविध अलंकारों का सौंदर्य, यत्र-तत्र संस्कृतनिष्ठ शब्दों का प्रयोग, अर्थ को गंभीरता प्रदान करता हुआ सूक्ति-प्रयोग आदि को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि व्याकरण-साहित्य पर उनका पूरा अधिकार था। काव्य में वीर रस की अभिव्यक्ति सर्वत्र है, जो पाठक को उद्वेलित करती रहती है। चौपाई और दोहा छंद का प्रयोग है जिसे सरलता से लयबद्ध गाया जा सकता है।

यहाँ तुलसी ने नीतिपरक प्रसंगों का खूब चित्रण किया है, जो प्रेरणास्रोत के रूप में मनुष्यों को प्रेरित करते हुए प्रतीत होते हैं। इस तरह भाषा उनकी अनुगामिनी है। ऐसा लगता है जैसे उन्होंने जिस बात को जिस तरह कहना चाहा है, उसी के अनुकूल शब्द स्वयं चलकर आ गए हैं।

प्रश्न 9.
पठित कविताओं के आधार पर कवि देव की काव्यगत विशेषताएँ बताइए। [CBSE]
उत्तर:
राम-लक्ष्मण-परशुराम संवाद में व्यंग्य का अनूठा प्रसंग है। व्यंग्य का यह प्रसंग लक्ष्मण और परशुराम के मध्य देखने को मिलता है। इसकी शुरुआत वीरता एवं वाक्चातुर्य के धनी लक्ष्मण से शुरू होती है। उनकी व्यंग्योक्तियाँ वृद्ध, ब्राह्मण मुनि परशुराम को मर्माहत करती हुई उत्तेजित करती हैं। लक्ष्मण उनसे युद्ध तो नहीं करते हैं, पर व्यंग्यक्तियों के माध्यम से उनका क्रोध इतना बढ़ा देते हैं कि परशुराम उन्हें मारने के लिए अपना फरसा उठा लेते हैं, पर लक्ष्मण अपने व्यंग्य बाणों से उनकी वीरता की धज्जियाँ उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। इन व्यंग्योक्तियों के कुछ उदाहरण हैं

  • बहु धनुही तोरी लरिकाईं। कबहुँ न असि रिसि कीन्ह गोसाई ।।
  • का छति लाभु जून धनु तोरें। देखा रामनयन के भोरें ।।
  • छुअत टूट रघुपतिहु न दोसू। मुनि बिन काज करिअ कत रोसू ।।
  • पुनि-पुनि मोहि देखाव कुठारू। चहत उड़ावन पूँकि पहारू ।।
  • कोटि कुलिस समवचन तुम्हारा। ब्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा।।
  • अपने मुहु तुम आपनि करनी। बार अनेक भाँति बहु बरनी।।

प्रश्न 10.
आप अपने घर की छत से पूर्णिमा की रात देखिए तथा उसके सौंदर्य को अपनी कलम से शब्दबद्ध कीजिए।
उत्तर:
(क) ‘बालक बोलि बधौं नहिं तोही’ में ब’ वर्ण की आवृत्ति होने पर अनुप्रास । अलंकार है।

(ख) “कोटि कुलिस सम बचनु तुम्हारा ।” उपमेय ‘बचन’ की उपमान ‘कुलिस’ से समानता दिखाने पर यहाँ उपमा अलंकार है। ‘कोटि कुलिस’ में ‘क’ वर्ण की आवृत्ति होने से अनुप्रास अलंकार भी है।

(ग) “तुम्ह तो कालु हाँक जनु लावा” यहाँ उत्प्रेक्षा वाचक शब्द ‘जनु’ से उप्रेक्षा-अलंकार है। “बार-बार मोहि लागि बोलावा” में बार-बार शब्द की आवृत्ति होने पर पुनरुक्ति
प्रकाश अलंकार है।

(घ) “लखन उतर आहुति सरिस भृगुबरकोपु कृसानु” में उपमावाचक शब्द ‘सरिस’ के प्रयोग से उपमा अलंकार है। यहाँ ‘लखन-उतर’ उपमेय और ‘आहुति’ उपमान है। ‘भृगुबरकोपु कृसानु” में भृगुबरकोपु और कृसानु में अभेद दिखाया गया है अतः रूपक अलंकार है। बढ़त देखि जल सम बचन’ में उपमा वाचक शब्द ‘सम’ के प्रयोग से उपमा अलंकार है।

यहाँ उपमेय ‘बचन’ और ‘जल’ उपमान है। ‘बोले रघुकुलभानु’ में ‘रघुकुल और भानु’ में अभेद दिखाया गया है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

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NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 1

NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 1 पद

These Solutions are part of NCERT Solutions for Class 10 Hindi. Here we have given NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kshitij Chapter 1 पद.

पाठ्य-पुस्तक के प्रश्न-अभ्यास

प्रश्न 1.
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है? [CBSE]
अथवा
गोपियों ने उद्धव को भाग्यशाली क्यों कहा है? क्या वे वास्तव में भाग्यशाली हैं? [CBSE 2012]
उत्तर:
गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में निहित व्यंग्य यह है कि वे उद्धव को बड़भागी कहकर उन्हें अभाग्यशाली होने की ओर संकेत करती हैं। वे कहना चाहती हैं कि उद्धव तुम श्रीकृष्ण के निकट रहकर भी उनके प्रेम से वंचित हो और इतनी निकटता के बाद भी तुम्हारे मन में श्रीकृष्ण के प्रति अनुराग नहीं पैदा हो सका। ऐसा तो तुम जैसे भाग्यवान के ही हो सकता है जो इतना निष्ठुर और पाषाण हृदय होगा अर्थात् गोपियाँ कहना चाहती हैं कि उद्धव तुम जैसा अभागा शायद ही दूसरा कोई हो।

प्रश्न 2.
उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है? [CBSE]
उत्तर
उद्धव के व्यवहार की पहली तुलना ऐसे कमल-पत्र से की गई है जो पानी में रहते हुए भी पानी से गीला नहीं होता। उद्धव की दूसरी तुलना तेल से युक्त ऐसे घड़े से की गई है जो जल में डुबोने पर भी पानी से नहीं भीगता।

प्रश्न 3.
गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए हैं? [Imp.][CBSE]
उत्तर:
गोपियों ने निम्नलिखित उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलाहने दिए–

  • उद्धव तुमने प्रीति नदी में कभी पैर नहीं डुबोया।
  • तुम कृष्ण के समीप रहकर भी उनके प्रेम से वंचित रह गए।
  • योग संदेश हम जैसों के लिए कड़वी ककड़ी. के समान है।
  • हम तुम्हारी तरह नहीं हैं जिन पर कृष्ण के प्रेम का असर न हो।
  • उद्धव पहले के लोग ही अच्छे थे जो दूसरों की भलाई के लिए भागते-फिरते थे।

प्रश्न 4.
उद्धव द्वारा दिए गए योग के संदेश ने गोपियों की विरहाग्नि में घी का काम कैसे किया? [CBSE]
उत्तर:
गोपियाँ श्रीकृष्ण के चले जाने पर, उनसे अपने मन की प्रेम भावना को प्रकट न कर पाने के कारण विरहाग्नि में पहले से दग्ध हो रही थीं। उन्हें आशा थी कि श्रीकृष्ण लौटकर आएँगे, किंतु वे नहीं आए। जब उनका योग-संदेश उद्धव के द्वारा प्राप्त हुआ, तो उनकी विरहाग्नि और तीव्रतर हो गई। इस तरह योग-संदेश ने विरहाग्नि में घी का काम किया।

प्रश्न 5.
‘मरजादा न लही’ के माध्यम से कौन-सी मर्यादा न रहने की बात की जा रही है? [CBSE 2012] |
उत्तर:
गोपियाँ श्रीकृष्ण से प्रेम करती थीं। वे श्रीकृष्ण से भी अपने प्रेम के बदले प्रेम का प्रतिदान चाहती थीं। प्रेम के बदले प्रेम का आदान-प्रदान ही मर्यादा है, किंतु श्रीकृष्ण ने प्रेम संदेश के स्थान पर योग संदेश भेजकर मर्यादा का निर्वाह नहीं किया। इसके विपरीत गोपियों ने श्रीकृष्ण का प्रेम पाने के लिए सारी मर्यादाओं को एक किनारे रख दिया था।

प्रश्न 6.
कृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को गोपियों ने किस प्रकार अभिव्यक्त किया है? [Imp.] [CBSE]
उत्तर:
गोपियों ने श्रीकृष्ण के प्रति अपने अनन्य प्रेम को प्रकट करते हुए कहा कि

  1. हमारा श्रीकृष्ण के प्रति स्नेह-बंधन गुड़ से चिपटी हुई चींटियों के समान है।
  2. श्रीकृष्ण उनके लिए हारिल की लकड़ी के समान हैं।
  3. हम गोपियाँ मन-कर्म-वचन सभी प्रकार से कृष्ण के प्रति समर्पित हैं।
  4. हम सोते-जागते, दिन-रात उन्हीं का स्मरण करती हैं।
  5. हमें योग-संदेश तो कड़वी ककड़ी की तरह प्रतीत हो रहा है। हम योग संदेश नहीं बल्कि श्रीकृष्ण का प्रेम चाहती हैं।

प्रश्न 7.
गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा कैसे लोगों को देने की बात कही है? [CBSE]
उत्तर:
गोपियों ने उद्धव से योग की शिक्षा ऐसे लोगों को देने के लिए कही है जिनका मन चक्र के समान अस्थिर रहता है तथा एक जगह न टिककर इधर-उधर भटकता रहता है।

प्रश्न 8.
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का योग-साधना के प्रति दृष्टिकोण स्पष्ट करें। [Imp.][CBSE]
उत्तर:
प्रस्तुत पदों के आधार पर गोपियों का दृष्टिकोण स्पष्ट है कि प्रेमासक्त और स्नेह-बंधन में बँधे हृदय पर अन्य किसी उपदेश का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। वे उपदेश अपने ही प्रिय के द्वारा क्यों न दिए गए हों। यही कारण था कि अपने ही प्रिय श्रीकृष्ण के द्वारा भेजा गया योग-संदेश उनको प्रभावित नहीं कर सका।

प्रश्न 9.
गोपियों के अनुसार राजा का धर्म क्या होना चाहिए? [CBSE 2012]
उत्तर:
गोपियाँ राजधर्म के बारे में बताती हुई उद्धव से कहती हैं कि राजा का कर्तव्य यही है कि वह अपनी प्रजा की भलाई की बात ही हर समय सोचे। उसे अपनी प्रजा को बिलकुल भी नहीं सताना चाहिए।

प्रश्न 10.
गोपियों को कृष्ण में ऐसे कौन-से परिवर्तन दिखाई दिए जिनके कारण वे अपना मन वापस पा लेने की बात कहती हैं? [CBSE]
उत्तर:
श्रीकृष्ण द्वारा प्रेषित योग-संदेश को उद्धव से सुनकर गोपियाँ अवाक् रह गईं और उन्हें लगा कि श्रीकृष्ण के मथुरा चले जाने पर उनके सोच में परिवर्तन हो गया है। वे प्रेम के प्रतिदान के बदले योग-संदेश देने लगे हैं। श्रीकृष्ण पहले जैसे न रहकर एक कुशल राजनीतिज्ञ हो गए हैं, जो छल-प्रपंच का भी सहारा लेने लगे हैं। राजधर्म की उपेक्षा कर अनीति पर उतर आए हैं। इन परिवर्तनों को देख वे अपना मन वापस पाने की बात कहती हैं।

प्रश्न 11.
गोपियों ने अपने वाक्चातुर्य के आधार पर ज्ञानी उद्धव को परास्त कर दिया, उनके वाक्चातुर्य की विशेषताएँ लिखिए? [V. Imp.]
उत्तर:
उद्धव अत्यंत ज्ञानी हैं। उनके ज्ञान-कौशल को देखते हुए श्रीकृष्ण ने उन्हें गोपियों को योग संदेश देने भेजा था पर गोपियों के वाक्चातुर्य से ज्ञानी उद्धव परास्त हो गए। उनके वाक्चातुर्य की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं

  • व्यंग्यात्मकता : गोपियाँ व्यंग्य करने में प्रवीण हैं। वे उद्धव को बड़भागी कहकर उन पर करारा व्यंग्य करती हैं। ऐसा कहकर वे उद्धव को अभागा कहने से नहीं चूकती हैं।
  • स्पष्टता : गोपियाँ उद्धव से अपनी बातें बिना लाग-लपेट कह देती हैं। वे उद्धव के व्यवहार की तुलना कमल के पत्ते और तेल लगी गागर से करती हैं तथा योग को कड़वी ककड़ी जैसा बताती हैं।
  • भावुकता : गोपियाँ अपनी बातें कहते-कहते भावुक भी हो जाती हैं।
  • उपालंभ का आश्रय : गोपियों की बातों में उपालंभ का भाव निहित है। वे कृष्ण को अनीति करने वाले तक कह देती हैं।

प्रश्न 12.
संकलित पदों को ध्यान में रखते हुए सूर के भ्रमरगीत की मुख्य विशेषताएँ बताइए? [केंद्रीय बोर्ड प्रतिदर्श प्रश्नपत्र 2008]
उत्तर:
सूरदास जी का भ्रमरगीत जिन विशेषताओं के आधार पर अप्रतिम बन पड़ा है वे विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  1. सूरदास जी के भ्रमरगीत में निर्गुण ब्रह्म का विरोध और सगुण ब्रह्म की सराहना है।
  2. वियोग शृंगार का मार्मिक चित्रण है।
  3. गोपियों की स्पष्टता, वाक्पटुता, सहृदयता, व्यंग्यात्मकता सर्वथा सराहनीय है।
  4. एकनिष्ठ प्रेम का दर्शन है।
  5. गोपियों का वाक्चातुर्य उद्धव को मौन कर देता है।
  6. आदर्श प्रेम की पराकाष्ठी और योग का पलायन है।
  7. स्नेहसिक्त उपालंभ अनूठा है।

प्रश्न 13.
गोपियों ने उद्धव के सामने तरह-तरह के तर्क दिए हैं, आप अपनी कल्पना से और तर्क दीजिए।
उत्तर:
गोपियाँ अपने तर्क में कई और भी बातें शामिल कर सकती थीं। वे कह सकती थीं कि यदि योग इतना ही महत्त्वपूर्ण था तो श्रीकृष्ण ने उनसे पहले प्रेम ही क्यों किया था? यदि ऐसा ज्ञात होता कि कृष्ण का प्रेम नाटकीय है तो हम अपना मन समर्पित कर आज इतने व्यथित क्यों होते?

यह भी संभव है कि हे उद्धव! तुम्हारे समीप रहते-रहते ज्ञान की बातें सुनते-सुनते तुम्हारा ही प्रभाव पड़ गया हो और प्रेम की तुलना में अब उन्हें योग ही श्रेष्ठ लगने लगा हो। उद्धव हमारे पास एक ही मन था, जिसे हमने कृष्ण को समर्पित कर दिया है। अब निर्गुण ब्रह्म का ध्यान किस मन से करें। हे उद्धव! हमारे लिए यह संभव नहीं है कि हम प्रेम को छोड़कर योग को अपनाएँ।

प्रश्न 14.
उद्धव ज्ञानी थे, नीति की बातें जानते थे; गोपियों के पास ऐसी कौन-सी शक्ति थी जो उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठी?
उत्तर:
उद्धव ज्ञानी थे, किंतु उन्हें व्यावहारिकता का अनुभव नहीं था। उस पर भी वे प्रेम के क्षेत्र में तो पूर्णतः अनभिज्ञ थे। इसलिए गोपियों ने कहा था ‘प्रीति नदी में पाउँ न बोरयौ’-इस कारण व्यावहारिक ज्ञान के अभाव में गोपियों की वाक्पटुता के सम्मुख उद्धव को विवश हो चुप रहना पड़ा। इसके अलावा गोपियों के पास श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम, असीम लगाव और समर्पण की शक्ति थी। वे अपने प्रेम के प्रति दृढ़ विश्वास रखती थीं। यह सब उनके वाक्चातुर्य में मुखरित हो उठा।

प्रश्न 15.
गोपियों ने यह क्यों कहा कि हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं? क्या आपको गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में नज़र आता है, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘हरि अब राजनीति पढ़ आए हैं।’ गोपियों ने ऐसा इसलिए कहा क्योंकि कृष्ण ने उनके निष्छल प्रेम के बदले योग संदेश भिजवाकर उनके साथ अन्याय किया है और प्रेम की मर्यादा भंग की है।

गोपियों के इस कथन का विस्तार समकालीन राजनीति में पूरी तरह से नजर आता है। आज राजनीति को छल-कपट, प्रपंच, झूठ, फरेब, धोखाधड़ी, छीना-झपटी आदि का दूसरा नाम माना जाने लगा है। इन कार्यों में जो जितना निपुण है, वह उतना ही बड़ा नेता कहलाता है। इस तरह की राजनीति में धर्म, कर्तव्य, विश्वास, ईमानदारी, सदाचार जैसे मूल्यों के लिए कोई जगह नहीं है। जिस तरह गोपियों को कृष्ण को राजधर्म की याद दिलानी पड़ी, उसी तरह आज के नेता भी अपना राजधर्म पूर्णतया विस्मृत कर चुके हैं।

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