Students can access the CBSE Sample Papers for Class 11 Hindi with Solutions and marking scheme Term 2 Set 2 will help students in understanding the difficulty level of the exam.

CBSE Sample Papers for Class 11 Hindi Term 2 Set 2 with Solutions

समय : 2.00 घण्टा
पूर्णांक : 40

सामान्य निर्देश :

  • इस प्रश्न पत्र में दो खंड हैं- खंड ‘क’ और खंड ‘ख’
  • सभी प्रश्न अनिवार्य हैं। यथासंभव सभी प्रश्नों के उत्तर क्रमानुसार ही लिखिए।
  • लेखन कार्य में स्वच्छता का विशेष ध्यान रखिए।
  • खंड-‘क’ में कुल 4 प्रश्न हैं। दिए गए निर्देशों का पालन करते हुए इनके उपप्रश्नों के उत्तर दीजिए।
  • खंड-‘ख’ में कुल 3 प्रश्न हैं। सभी प्रश्नों के साथ विकल्प दिए गए हैं। निर्देशानुसार विकल्प का ध्यान रखते हुए प्रश्नों के उत्तर दीजिए।

रखण्ड-‘क’

प्रश्न 1.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर लगभग 200 शब्दों में रचनात्मक लेख लिखिए [5]
(i) जल संकट, उसके कारण व निदान पर लेख लिखिए।
उत्तरः
जल संकट आज की प्रमुख समस्याओं में से एक है। हम सभी जानते हैं कि जल के बिना मनुष्य ही नहीं जीव-जंत. पेड़-पौधों
का भी जीवन संकट में पड़ गया है। आज महानगरों से लेकर गाँवों, कस्बों तक की जनता पानी के लिए मारा-मारी से जूझ रही है। कई स्थानों पर महिलाएँ और पुरुष पानी के लिए लंबी-लंबी कतारों में लगे हुए दिखाई देते हैं। कुछ लोगों को टैंकर से आए पानी की प्रतीक्षा होती है तो कुछ लोग इलाके में एक-दो हैंड पंप होने के कारण अपनी बारी की प्रतीक्षा में लंबी-लंबी कतारों में लगे दिखाई देते हैं। महिलाएँ तो कई बार अपने बर्तन लेकर वहीं घंटों प्रतीक्षा करती बैठी रहती हैं। जब कभी लोगों का धैर्य जवाब दे जाता है तो लड़ाई-झगड़े की भी नौबत आ जाती है। कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को प्रात:काल से ही दूर-दराज के क्षेत्रों में पानी लाने के लिए जाना पड़ता है। कई क्षेत्रों में गरीब और लाचार जनता गंदा पानी पीने के लिए भी विवश है।
भारत में असंख्य नदियाँ होने के बावजूद जल का जबरदस्त अभाव पैदा हो गया है। इस प्राकृतिक संपदा की वाहक नदियाँ भी सूखी और मैली हो गई हैं। नलकूपों का जलस्तर नीचे जा चुका है।

जल की समस्या से भारत ही नहीं, संपूर्ण विश्व त्रस्त है। प्राकृतिक असंतुलन के कारण उत्पन्न हुए इस जल संकट से उबरने का कोई रास्ता अभी तक नहीं निकाला जा सका है, किंतु मनुष्य में अभी भी जागरूकता का अभाव है। इसी कारण वह अभी भी कल-कारखानों और गंदे नालों की गंदगी को जलाशयों और नदियों में गिरने से नहीं बचाते जबकि जल-संकट की गंभीरता को देखते हुए हमें तुरंत ही इसकी रोकथाम के उपाय करने चाहिए। लगातार हो रही वृक्षों की कटाई से बढ़ता प्रदूषण और वर्षा की कमी तथा भूमिगत जल के दोहन से जल संकट अधिक गहराने लगा है। समय रहते हमें सचेत होने की आवश्यकता है। प्रशासनिक स्तर पर जल-संचय हेतु बड़े-बड़े बैराजों का निर्माण होना चाहिए जिससे जनता की जल-आवश्यकता की पूर्ति की जा सके तथा सभी को जल संकट से उबारा जा सके।
बच्चों, बड़ों सभी को जल की उपयोगिता एवं जल संकट से बचने हेतु विभिन्न तरीकों को जानने-समझने की आवश्यकता है तभी हम भविष्य में इस प्राण-घातक संकट का सामना करने में सक्षम हो सकेंगे तथा अपनी भावी पीढ़ी को इन लंबी-लंबी कतारों और इसके फलस्वरूप होने वाली समस्याओं से बचा सकेंगे।

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(ii) बाल मजदूरी एक ऐसी सामाजिक समस्या है जो लम्बे समय से चली आ रही है। देश के उज्ज्वल भविष्य के लिए इस समस्या को जड़ से समाप्त करना किस प्रकार आवश्यक है?
उत्तरः
किसी छोटे बच्चे को मजदूरी करते हुए देखकर हम संवेदनशील हो उठते हैं। तुरंत ही हमारा मस्तिष्क कहता है कि इस छोटी-सी उम्र में इस नन्हें से बालक को यह कार्य नहीं करना चाहिए। यह उम्र इस बच्चे की पढ़ने और खेलने-कूदने की है। परिवार का या स्वयं का भरण-पोषण करने की नहीं, किंतु बाल-मजदूरी एक ऐसा कड़वा सच है जिससे भारत ही नहीं पूरी दुनिया त्रस्त है। आज भी हमारे देश में लाखों बच्चे बाल-श्रम की चपेट में हैं। उन्हें बचपन में किताबें व खिलौने से खेलने के स्थान पर मजदूरी करनी पड़ रही है। ऐसे बाल-श्रमिक घरों, कारखानों, होटलों, ढाबों, दुकानों पर मजदूरी करते देखे जा सकते हैं। इन बाल-श्रमिकों को सुबह से लेकर रात तक कठोर परिश्रम करना पड़ता है। कई प्रकार की डाँट-फटकार सहनी पड़ती है। विषम परिस्थितियों में काम करने से इनके स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, लेकिन इन्हें विवश होकर ये सब सहना पड़ता है।

भारतीय संविधान के अनुसार 14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों से कारखानों, दुकानों, रेस्तरां, होटल, कोयला खदान, पटाखे के कारखानों आदि जगहों पर कार्य करवाना बाल श्रम कहलाता है। बालश्रम में बच्चों का शोषण भी शामिल होता है। बाल-शोषण से आशय है-बच्चों से ऐसे कार्य करवाने से जिसके लिए वे मानसिक रूप से तैयार न हों। भारतीय संविधान बच्चों को वे सभी अधिकार देता है जो कि एक आम नागरिक के होते हैं तो फिर क्यों वे बच्चे पढ़ना-लिखना, खेलना-कूदना छोड़कर मजदूरी करने को विवश हैं। जिन हाथों में कलम पकड़ना था वे क्यों ब्रश और पॉलिश पकड़े हुए हैं। जिन हाथों से वह अपना भविष्य सुदृढ़ बना सकता है उन हाथों से उसे जूता पॉलिश क्यों करना पड़ रहा है? उनकी नन्हीं आँखों में तैरते सपनों को तोड़ने का जिम्मेदार कौन है? हमें यह समझना होगा क्योंकि बच्चे देश का भविष्य हैं और देश के भविष्य को संवारने, सँभालने की जिम्मेदारी भी संपूर्ण देश की है जिसमें सरकार ही नहीं आम नागरिक भी शामिल हैं।

(iii) त्योहार हमें उमंग और उल्लास से भरकर अपनी संस्कृति से जोड़े रखते हैं। आजकल लोगों में त्योहारों को मनाने के प्रति उत्साह एवं आस्था का अभाव देखा जाता है। लोगों की इस मानसिकता पर अपने विचार व्यक्त करते हुए एक लेख लिखिए।
उत्तरः
श्रम से थके-हारे मनुष्य ने जीवन में आई नीरसता को दूर करने के लिए त्योहारों का सहारा लिया है। त्योहार अपने प्रारंभिक काल से ही सांस्कृतिक चेतना के प्रतीक तथा जनजागृति के प्रेरणा स्रोत हैं। भारत एक विशाल देश है। यहाँ विभिन्न क्षेत्रों में अलग-अलग परम्पराओं तथा धार्मिक मान्यताओं के अनुसार रक्षाबन्धन, दीपावली, दशहरा, होली, ईद, ओणम, गरबा, बैसाखी आदि त्योहार मनाए जाते हैं। इनके अतिरिक्त यहाँ अनेक राष्ट्रीय पर्व जैसे स्वतन्त्रता दिवस, गणतन्त्र दिवस, गाँधी जयन्ती आदि भी मनाए जाते है।

इस तरह त्योहार जहाँ उमंग और उत्साह भरकर हमारे अन्दर स्फूर्ति जगाते हैं, वहीं महापुरुषों की जयंतियाँ हमारे अन्दर मानवीय मूल्य को प्रगाढ़ बनाती हैं। हमारे यहाँ त्योहारों की कमी नहीं है।

लेकिन समय की गति और समाज में आए परिवर्तन के परिणामस्वरूप इन त्योहारों, उत्सवों के स्वरूप में काफी परिवर्तन आया है। इन परिवर्तनों को विकृति कहना अतिश्योक्ति नहीं है। आज लोगों में त्योहारों के प्रति उत्साह व आस्था का अभाव देखा जाता है। आज धन व समय के अभाव, दिखावे की प्रवृत्ति, स्वार्थपरता आदि त्योहारों पर हावी हो गए हैं। दशहरा व दीपावली पर करोड़ों रुपये आतिशबाजी में नष्ट हो जाते हैं।

इन त्योहारों को शालीनतापूर्वक मनाने से इस धन को किन्हीं रचनात्मक कार्यों में लगाया जा सकता है जिससे त्योहार का स्वरूप सुखद व कल्याणकारी हो जाएगा। हमारे जीवन में त्योहारों, उत्सवों व पर्वो का अत्यंत महत्त्वपूर्ण स्थान है। एक ओर ये त्योहार भाई-चारा, प्रेम, सद्भाव, धार्मिक एवं साम्प्रदायिक सौहार्द्र बढ़ाते हैं तो दूसरी ओर धर्म व कर्म तथा आरोग्य बढ़ाने में भी सहायक होते हैं। इनके माध्यम से भारतीय संस्कृति के मूल्य एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक आसानी से पहुँच जाते हैं। हमारे त्योहारों में व्यक्त कतिपय दोषों को छोड़ दिया जाए या उनका निवारण कर दिया जाए तो त्योहार मानव के लिए बहुमूल्य हैं। ये एकता, भाईचारा, प्रेम, सद्भाव बढ़ाने के साथ सामाजिक समरसता बढ़ाने में भी सहायक होते हैं।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए [5]
सड़क पर गति-अवरोधकों (स्पीड ब्रेकर) के न होने के कारण आए दिन कोई-न-कोई दुर्घटना का शिकार हो जाता है। इस समस्या के समाधान हेतु किसी दैनिक समाचार-पत्र के सम्पादक को पत्र लिखिए।
अथवा
अपने मित्र को परीक्षा में प्रथम आने पर बधाई देते हुए पत्र लिखिए।
उत्तरः
सेवा में,
संपादक महोदय,
नवभारत टाइम्स,
बहादुरशाह जफर मार्ग,
नई दिल्ली।
28 अप्रैल 20 …..

विषय-सड़क पर गति-अवरोधकों के न होने के कारण होने वाली दुर्घटनाओं के समाधान हेतु।

महोदय,
आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र के माध्यम से मैं, सड़क पर गति-अवरोधकों के न होने के कारण होने वाली दुर्घटनाओं की तरफ जनसाधारण का ध्यान आकर्षित करना चाहता हूँ और संबंधित अधिकारियों द्वारा समस्या के समाधान की अपेक्षा करता हूँ। सड़क पर गति-अवरोधक न होने के कारण तेज गति से दौड़ते वाहनों से कई बार दुर्घटनाएं हो जाती हैं। विद्यालयों के आस-पास ऐसी दुर्घटनाओं का भय अधिक रहता है। लापरवाह वाहन-चालक अपने वाहनों की गति कम नहीं करते, जिससे दुर्घटना होना आम बात हो गई है और अकस्मात ही कोई भी काल का ग्रास बन जाता है। इसी कारण लोगों में प्रशासन के प्रति रोष भी दिखाई देता है, लेकिन ऐसा लगता है कि संबंधित विभाग इस ओर से आँखें मूंदे हुए है। जब तक गति-अवरोधक नहीं बनेंगे तब तक गाड़ियों की गति (स्पीड) पर भी रोक नहीं लग सकती और इसीलिए स्कूली बच्चे व अन्य लोग सड़क पर पैदल चलने में असुरक्षित महसूस करते हैं। महोदय आपके प्रतिष्ठित समाचार-पत्र के माध्यम से मैं संबंधित विभाग से इस दिशा में शीघ्रातिशीघ्र कदम उठाने का निवेदन करता हूँ, ताकि जल्दी से जल्दी सड़क पर गति-अवरोधकों का निर्माण हो सके तथा लोग सड़क पर स्वयं को सुरक्षित महसूस कर सकें। आशा करता हूँ कि आप इस पत्र को प्रकाशित कर मुझे अनुगृहीत करेंगे।
धन्यवाद।
भवदीय,
प्रभात कुमार
WZ-183, पालम गाँव,
पालम, नई दिल्ली।

अथवा

‘मातृछाया’
265, मानसरोवर
जयपुर।
दिनांक : 13 जून, 20xx
प्रिय मित्र सहज
मधुर स्मृति।
अभी-अभी मुझे विदित हुआ है कि तुम वार्षिक परीक्षा में न केवल सफल हुए तो अपितु पूरे विद्यालय में सर्वाधिक अंक लेकर प्रथम स्थान प्राप्त करने का गौरव भी तुमने प्राप्त किया है।
मित्र, तुम जिस प्रकार मन लगाकर लगन से पढ़ाई कर रहे थे, उसे देखकर ही मुझे विश्वास हो गया था कि तुम परीक्षा में नया कीर्तिमान स्थापित करोगे। तुम्हें परिश्रम का फल मिल ही गया। अपनी इस शानदार सफलता पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारें।
मुझे विश्वास है तुम भविष्य में भी इसी प्रकार कीर्तिमान स्थापित करते रहोगे।
तुम्हारी अभिन्न मित्र अ
कांक्षा राज

सामान्य त्रुटियाँ

  • छात्र वाक्य लिखने में भाषा सम्बन्धी त्रुटियाँ करते हैं।
  • पत्र का प्रारूप लिखने में छात्र त्रुटियाँ करते हैं। विनम्रता सूचक शब्दों को प्रयोग नहीं करते हैं।
  • कुछ छात्रों ने अंग्रेज़ी शब्दों का प्रयोग किया जो कि नहीं किया जाना चाहिए था।
  • कुछ छात्र पत्र के विषय को भली-भाँति नहीं समझ पाते।

निवारण

  • छात्रों को पत्र में अच्छे अंक पाने के लिए, अभ्यास द्वारा भाषा सम्बन्धी त्रुटियों को दूर करना चाहिए।
  • औपचारिक व अनौपचारिक पत्रों के बीच आधारभूत अन्तर को समझना चाहिए।
  • एकाग्रता पूर्वक विषय का चिंतन मनन करने के बाद पत्र लिखना चाहिए।
  • छात्रों को औपचारिक व अनौपचारिक पत्रों के प्रारूप का अध्ययन करना चाहिए तभी वे त्रुटिविहीन कार्य कर सकेंगे।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए [3 + 2 = 5]
(i) स्कूल द्वारा आयोजित एक दिवसीय हरिद्वार यात्रा का प्रतिवेदन तैयार कीजिए।
अथवा
विदेश मंत्रालय में सहायक अनुभाग अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति के आधार पर नियुक्ति के लिए परिपत्र लिखिए।
उत्तरः
इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल
कक्षा-11’बी’
13 सितंबर, 20xx
नीतीश वर्मा
नई दिल्ली/दिनांक 11 सितंबर, 20XX को हमारी कक्षा ग्यारहवीं ‘बी’ के कक्षा अध्यापक श्री आर. के. सिंह 20 विद्यार्थियों को स्कूल की बस से एक दिन के लिए हरिद्वार की यात्रा पर लेकर गए थे। इस यात्रा की स्वीकृति 08 सितंबर, 20XX को ही प्राचार्य महोदय से प्राप्त हो गई थी।
बारह (12) लड़कों तथा आठ (08) लड़कियों की यह टोली सुबह छह बजे स्कूल परिसर में इकट्ठी हुई थी। प्रतिदिन स्कूल यूनिफॉर्म में दिखाई देने वाले सारे विद्यार्थियों की रंग-बिरंगी वेशभूषा आज अधिक आकर्षक लग रही थी। सबके चेहरे खुशी से खिले हुए थे और सभी अत्यंत उत्साहित थे। हमारी कक्षा को पढ़ाने वाले अन्य अध्यापक तथा स्वयं प्राचार्य महोदय भी हमें विदा करने के लिए वहाँ उपस्थित थे। उन्होंने हम सभी को पूरी यात्रा के दौरान अनुशासित रहने, कोई शरारत न करने तथा गंगा नदी में सावधानी पूर्वक स्नान करने की सलाह दी। बस चलने के बाद सभी विद्यार्थी गप्पें मारने और अन्ताक्षरी खेलने में मग्न हो गए। सहारनपुर में बस को रोका गया तथा सभी को नाश्ता कराया गया।
नाश्ते की व्यवस्था करने की पूर्व सूचना दे दी गई थी। हम लोग लगभग साढ़े दस बजे हरिद्वार पहुँचे। वहाँ हर की पौड़ी पर अत्यधिक भीड़ थी। सभी ने अत्यंत सावधानी बरतते हुए स्नान किया। गंगा का पानी काफी ठंडा था। इसलिए नहाने में सभी को बहुत आंनद आया। लगभग एक घंटे तक सभी नहाते ही रहे। घाट पर ही हम सभी ने अपने वस्त्र बदले और बस में जाकर बैठ गए।
वहाँ से हम सभी ऋषिकेश पहुँचे। रास्ते में मिलने वाले सभी दर्शनीय स्थलों एवं मंदिरों को देखते हुए हम आगे बढ़ रहे थे। लक्ष्मण झूले पर चढ़ना अत्यधिक रोमांचक रहा। सभी के मन में एक आशंका व्याप्त थी कि तारों पर टिका यह झूला कहीं टूट न जाए। सारा दिन हम लोग इधर-उधर मिल-जुलकर मस्ती करते रहे। सभी ने बाजार से अपने घर के लिए एवं खास लोगों के लिए प्रसाद एवं छोटे-छोटे उपहार खरीदे।
शाम को छह बजे हम लोग वापस अपने शहर की ओर चले। लौटते समय बस में उतना शोर नहीं था, जितना जाते समय था, क्योंकि सभी लोग थक गए थे। रास्ते में हम एक जगह खाने के लिए रुके। इसके बाद रात में लगभग दस बजे हम वापस अपने स्कूल पहुँच चुके थे। वहाँ सभी विद्यार्थियों के अभिभावक पहले से ही हम सभी की प्रतीक्षा कर रहे थे। हमारी यह यात्रा वाकई बहुत ही यादगार रही, जिसे हम सभी कभी नहीं भूल पाएंगे।

अथवा

परिपत्र पत्रांक 2/15/70
भारत सरकार विदेश मंत्रालय, दिनांक 4-4-20xx

विषय-विदेश मंत्रालय में सहायक अनुभाग अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति के आधार पर नियुक्ति।

महोदय,
विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली में सहायक अनुभाग अधिकारी के 40 पदों को प्रतिनियुक्ति के आधार पर भरने के लिए आवेदन पत्र आमंत्रित किए जाते हैं। आवेदनकर्ता भारत सरकार में कार्यरत समूह ‘ख’ अराजपत्रित (सातवें वेतन आयोग के अनुसार लेवल-7) होने चाहिए। आवेदनकर्ता को स्थापना, प्रशासन, परियोजना प्रबंधन एवं नियंत्रण, रोकड़, वित्त एवं बजट आदि कार्यों का पर्याप्त अनुभव होना आवश्यक है। उपर्युक्त विशेषताओं के अलावा चयनित अधिकारी को लघु अवधि, विशेष अवसरों पर विदेशों में स्थित भारतीय मिशनों में भी तैनात किया जा सकता है।
उपर्युक्त पदों के लिए उपर्युक्त अधिकारियों पर प्रतिनियुक्ति के आधार पर चुनाव कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के दिशा-निर्देशों के आधार पर किया जाएगा। ऊपर दिए गए विषयों में विशेषज्ञता रखने वाले सहायक अनुभाग अधिकारियों (7वें वेतन आयोग के अनुसार लेवल 7) से आवेदन पत्र स्वीकार किए जाएंगे। आवेदन पत्र निर्धारित प्रपत्र में सभी आवश्यक दस्तावेजों सहित उचित माध्यम से सचिव (पी. एफ.) कमरा नम्बर 4071, जवाहर लाल नेहरू भवन, विदेश मंत्रालय, नई दिल्ली को 28 फरवरी से पहले भेजे जाने चाहिए। अनुरोध है कि उस परिपत्र का स्टाफ के बीच विस्तृत प्रचार किया जाए और उसे अधीनस्थ/सम्बद्ध कार्यालयों में भी परिचालित किया जाए। इच्छुक पदाधिकारी प्रपत्र के अनुसार अपने आवेदन की एक अग्रिम प्रति सीधे अधोहस्ताक्षरकर्ता को 28 फरवरी तक प्रेषित कर सकते हैं।
हस्ताक्षर
(प्रशान्त कुमार)
अवर सचिव (पी. एफ.)
कक्ष सं. 4071, बी विंग,
जवाहर लाल नेहरू भवन, जनपद
दूरभाष-49015567
फैक्स-49015414

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(ii) परिपत्र लिखते समय किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
अथवा
कार्यसूची का निर्माण किस प्रकार और क्यों किया जाता है?
उत्तरः
परिपत्र लिखते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए

  • परिपत्र में पत्र संख्या, मंत्रालय का नाम, पता एवं दिनांक वही लिखना चाहिए जो सरकारी पत्र में लिखा जाता है।
  • इसका प्रारूप सरकारी पत्र या कार्यालय ज्ञापन की तरह ही होता है।
  • परिपत्र को प्रेषित करने वाला (प्रेषक) एक ही व्यक्ति होता है, जबकि इसको प्राप्त करने वाले कई अधिकारी होते हैं।
  • विषय पर लिखना आरम्भ करने से पहले ‘परिपत्र’ शीर्षक के रूप में लिखना चाहिए।
  • महोदय लिखकर, संबोधित कर सकते हैं।
  • इसके पश्चात मुख्य विषय को शुरू करते हैं।
  • अंत में भवदीय लिखकर प्रेषक के हस्ताक्षर, पदनाम आदि लिखा जाना चाहिए।

अथवा

विभिन्न संस्थाओं और कार्यालयों में विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श कर निर्णय में पहुँचने के लिए कई समितियों का गठन किया जाता है। इन समितियों में अध्यक्ष, सचिव के अतिरिक्त अन्य सदस्य भी होते हैं। जब किसी विषय पर विचार-विमर्श करना हो अथवा निर्णय लेना हो, समिति के सब सदस्य एक निश्चित समय में, पूर्व निश्चित स्थान पर बैठक का आयोजन करते हैं। बैठक प्रारम्भ होने से पहले विचारणीय मुद्दों की एक क्रमवार सूची बनाई जाती है जिसे कार्यसूची (एजेंडा) कहते हैं। कार्यसूची का निर्माण इसलिए किया जाता है ताकि केवल उन विषयों पर चर्चा की जाए जो विचारणीय हैं। इससे समय की बचत तो होती ही है साथ में विषय से भटकने की स्थिति भी नहीं आती।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए
(i) संचार के क्या कार्य हैं? [3 + 2 = 5]
अथवा
प्रिंट मीडिया किसे कहते हैं ? वर्तमान में प्रिंट मीडिया का क्या महत्व है?
उत्तरः
संचार विशेषज्ञों के अनुसार संचार के कई कार्य हैं जिनमें से प्रमुख निम्न हैं

  • कुछ प्राप्त करने हेतु-संचार का प्रयोग हम कुछ हासिल करने या प्राप्त करने के लिए करते हैं। जैसे अपने मित्र से पुस्तक माँगने के लिए।
  • नियन्त्रण-संचार के जरिये हम किसी के व्यवहार को नियन्त्रित करने की कोशिश करते हैं। यानि उसे हम एक खास तरीके से व्यवहार करने के लिए कहते हैं। जैसे कक्षा में शिक्षक विद्यार्थियों को नियन्त्रित करते हैं।
  • सूचना-कुछ जानने के लिए या कुछ बताने के लिए भी हम संचार का प्रयोग करते हैं।
  • अभिव्यक्ति-संचार का उपयोग हम अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति के लिए या स्वयं को एक खास तरह से प्रस्तुत करने के लिए भी करते हैं।
  • प्रतिक्रिया हेतु-संचार का प्रयोग हम अपनी रुचि की किसी वस्तु या विषय के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिए भी करते हैं।
  • समस्या दूर करने हेतु-इसका प्रयोग अक्सर हम अपनी समस्याओं या किसी चिंता को दूर करने के लिए करते हैं। संचार का प्रयोग हम अपनी किसी भूमिका को पूरा करने के लिए करते हैं क्योंकि यही परिस्थिति की माँग होती है। जैसे आप एक विद्यार्थी के रूप में या एक डॉक्टर या एक जज के रूप में अपनी भूमिका के अनुसार संचार करते हैं।

अथवा

अपनी वाणी अर्थात अपने बोले गए शब्दों को रिकॉर्ड कर अपन करने वाला माध्यम प्रिंट मीडिया कहलाता है। प्रिंट मीडिया का अर्थ है-पत्र-पत्रिकाएँ। वर्तमान में भले ही रेडियो, टेलीविज़न या इन्टरनेट या किसी अन्य माध्यम से खबरों के संचार को जनसंचार कहा जाता है, परन्तु प्रारम्भिक समय में प्रिंट माध्यमों के ज़रिये ही खबरों का आदान-प्रदान होता था। प्रिंट, रेडियो, टेलीविज़न या इंटरनेट या किसी अन्य माध्यम से खबरों के संचार को पत्रकारिता कहा जाता है परन्तु आजादी से पहले केवल प्रिंट माध्यमों के ज़रिये ही खबरों का आदान-प्रदान होता था और इसी को पत्रकारिता कहा जाता था। आज, पत्रकारिता का क्षेत्र बहुत व्यापक हो चला है। खबर का सम्बन्ध किसी एक या दो विषयों से नहीं, बल्कि दुनिया के किसी भी कोने में हुई घटना समाचार बन सकती है परन्तु उसमें पाठकों की रुचि व सार्वजनिक हित भी निहित होना चाहिए। आज़ादी से पहले पत्रकारिता का लक्ष्य स्वाधीनता की प्राप्ति था, वहीं आजादी के बाद पत्रकारिता का लक्ष्य बदलने लगा। शुरुआती दो दशकों तक पत्रकारिता राष्ट्र निर्माण के प्रति प्रतिबद्ध थी, परन्तु उसके बाद उसका चरित्र व्यावसायिक और प्रोफेशनल होने लगा। आजादी से पहले पत्रकारिता एक मिशन थी लेकिन आज़ादी के बाद एक व्यवसाय बन गई। परिणाम यह हुआ कि कई वर्ष पहले की पत्र-पत्रिकाएँ बंद हो गईं व नए समाचारपत्रों व पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू हुआ।

(ii) पूर्वस्वातन्त्र्य सुप्रसिद्ध दो पत्रकारों के नाम लिखिए।
अथवा
समाचार के मुखड़े (इंट्रो) में कौन-कौन-सी सूचनाएँ आती हैं?
उत्तरः
पूर्व स्वातन्त्र्य सुप्रसिद्ध दो पत्रकारों के नाम-भारतेन्दु हरिश्चन्द्र, गणेश शंकर विद्यार्थी हैं।
अथवा
किसी भी समाचार के पहले अनुच्छेद या आरंभिक दो-तीन पंक्तियों को उसका मुखड़ा या इंट्रो कहते हैं। इसके अंतर्गत सामान्यतः क्या, कब, कहाँ और कौन की सूचनाएँ होती हैं। इनका संबंध तथ्यात्मक जानकारी या सूचना से होता है, विश्लेषण या विवरण से नहीं।

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रखण्ड-रव’

प्रश्न 5.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में दीजिए [3 × 2 = 6]
(i) कविवर भवानी प्रसाद मिश्र द्वारा रचित ‘घर की याद’ कविता का भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तरः
यह कविता सन 1942 के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ के दौरान लिखी गई है। कवि कारावास में था। वहाँ उसे अपने घर के प्रिय सदस्यों की याद आई। कविता का भाव इस प्रकार है-कवि कारावास में है। बाहर बरसात हो रही है। इस कारण उसके प्राण और मन घर की यादों में घिर गए हैं। उसे सबसे अधिक याद अपने पिता की आ रही है। वह कल्पना करता है कि उसकी माँ ने उसके पिता को ढाँढस बँधाते हुए कहा होगा कि भवानी अपने पिता की इच्छा जानकर ही कारावास में गया है, तब पिता ने आँसू रोक लिए होंगे। कवि सावन से प्रार्थना करता है कि वह चाहे कितना भी बरस ले, परन्तु उसके पिता के मन को दुःखी न करे। वह पिता को जाकर बताए कि उनका बेटा कारागार में मस्त है। कवि उसे सावधान करते हुए कहता कि कहीं वह गलती से यह न कह दे कि कारागार में उनका बेटा बहुत उदास, मौन और बेचैन है।

(ii) कवि दुष्यंत के अनुसार स्वतंत्रता मिलने के बाद समाज की स्थिति कैसी है? कवि ने किस पर व्यंग्य किया है और क्यों?
उत्तरः
कवि के अनुसार स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी समाज की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है। आशा तो यही थी कि शहरों में सभी सुख-सुविधाएँ उपलब्ध होंगी, लेकिन हुआ इसके विपरीत ही। कहीं भी सुख-समृद्धि की झलक नहीं मिलती। कवि ने शासन-व्यवस्था पर व्यंग्य किया है। कवि कहते हैं कि राजनेता सरकारी तंत्र, शासन व्यवस्था आदि भ्रष्ट कार्य प्रणाली के साथ कार्य करते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद नेताओं ने जनता को आश्वासन दिए थे कि हर घर में सुख-सुविधाएँ प्राप्त होंगी, लेकिन पूरे शहर में कहीं भी ये जन सुविधाएँ प्राप्त नहीं हैं। लोगों का निर्वाह मुश्किल होता है तो वे निराश हो जाते हैं। कटु सत्य तो यह है कि नेताओं के झूठे आश्वासन व जनकल्याणकारी संस्थाओं द्वारा आम आदमी के शोषण के उदाहरण देखने को मिलते रहते हैं। चारों तरफ भ्रष्टाचार का बोलबाला है। लोगों का कल्याण नहीं हो पा रहा। जो संस्थाएँ लोगों के कल्याण व सुख-समृद्धि के लिए बनाई गई थीं, वही संस्थाएँ उनके जीवन के लिए दुःखदायी बन गई हैं।

(iii) कवयित्री के ‘बस्ती के नंगी होने’ कहने का अभिप्राय क्या है? इसके बचाव के लिए कवयित्री क्या कहती है?
उत्तरः
बस्ती के नंगी होने’ का अर्थ है कि आदिवासी बस्तियों के लोग मर्यादाविहीन होकर, शर्म-हया को छोड़कर, तन को दिखाने की होड़ कर रहे हैं। वृक्षों को काट-काटकर धरती को वृक्ष-विहीन किया जा रहा है। वृक्षों के बिना धरती नंगी जान पड़ती है। शहरी सभ्यता ने बस्तियों का पर्यावरणीय व मानवीय शोषण किया है। कवयित्री चाहती हैं कि हमें अपनी बस्ती को नंगी होने अर्थात् शोषण होने से बचाना है। शहरों के सांस्कृतिक, प्राकृतिक प्रदूषण से बस्तियों के समाज को बचाना है। इसलिए कवयित्री इन प्राकृतिक व सहज उपादानों को शहरी संस्कृति से बचाना चाहती हैं। ताकि आदिवासी बस्तियों की मौलिकता व स्वाभाविकता बनी रहे, उनका आकर्षण समाप्त न हो, वे हर प्रकार के प्रदूषण से रहित हों।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित चार प्रश्नों में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर 50-60 शब्दों में दीजिए [3 × 3 = 9]
(i) स्पीति की सुरक्षा पद्धति क्या है?
उत्तरः
आक्रमण होने पर स्पीति के लोग अप्रतिकार अर्थात् किसी प्रकार का प्रतिकार न करने की नीति अपनाते हैं। वे आँखें बंदकर, चाँग्मा का तना पकड़कर या एक-दूसरे को पकड़कर बैठ जाते हैं, जब संकट या आक्रमण समाप्त हो जाता है तो वे उठकर वापस आ जाते हैं। यही अप्रतिकार ही उनकी सुरक्षा पद्धति है। जोरावर सिंह के आक्रमण के समय भी लोग इसी अप्रतिकार सिद्धान्त को अपनाते हुए घर छोड़कर भाग गए। उसने स्पीति को और वहाँ के विहारों को लूटा। उसके जाने के बाद स्पीतिवासी लौट आए।

(ii) विदेश-विभाग ने पेड़ न काटने का हुक्म क्यों दिया?
उत्तरः
विदेश विभाग के अनुसार वह जामुन का पेड़ दस साल पहले पीटोनिया राज्य के प्रधानमंत्री ने सेक्रेटेरियेट के लॉन में लगाया था। अब अगर यह पेड़ काटा गया, तो इस बात का काफी अंदेशा था कि पीटोनिया सरकार से हमारे संबंध सदा के लिए बिगड़ जाएँगे। चूँकि पीटोनिया सरकार हमारे राज्य को बहुत सहायता देती है भले ही इसके लिए एक आदमी के जीवन की कुर्बानी ही क्यों न देनी पड़े, पर पेड़ को नहीं काटने दिया जा सकता।

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(iii) इस पाठ में सरकार के किन-किन विभागों की चर्चा की गई और पाठ से उनके कार्य के बारे में क्या अंदाजा मिलता है? [AT]
उत्तरः
इस पाठ में सरकार के अनेक विभागों की चर्चा की गई है। ये विभाग और उनके कार्य निम्नलिखित हैं

  • व्यापार विभाग-यह विभाग देश में होने वाले सभी प्रकार के व्यापार से सम्बन्धित कार्य देखता है।
  • एग्रीकल्चर-यह विभाग खेती-बाड़ी से सम्बन्धित कार्य देखता है।
  • हॉर्टीकल्चर विभाग-यह विभाग बागवानी से सम्बन्धित है।
  • मेडीकल विभाग-इसका सम्बन्ध चिकित्सा व दवाई से है।
  • कल्चरल विभाग-इसका सम्बन्ध कला व साहित्य से है।
  • फॉरेस्ट डिपार्टमेण्ट-इसका सम्बन्ध वनों के विकास व संरक्षण आदि से है।
  • विदेश विभाग-यह विभाग अन्य देशों के साथ सम्बन्धों से सम्बन्धित है।

सामान्य त्रुटियाँ

  • सरकारी विभागों के नाम याद रखना उन्हें कठिन कार्य लगता है।
  • छात्र पाठ में वर्णित सरकारी कर्मचारियों की कार्यप्रणाली को समझने में असमर्थ रहते हैं।
  • अधिकांश छात्र पाठ का उद्देश्य समझने में कठिनाई का अनुभव करते हैं।

निवारण

  • एकाग्र होकर निरन्तर अभ्यास से छात्रों में बुद्धि-कौशल विकसित होगा जिससे वे प्रश्नों के सही उत्तर दे सकते हैं।
  • छात्रों को पाठ का मूल भाव समझने का प्रयास करना चाहिए।

(iv) ‘भारत माता’ पाठ का प्रतिपाद्य लिखिए।
उत्तरः
‘भारत माता’ पाठ हिन्दुस्तान की कहानी का पाँचवाँ अध्याय है। इसमें पं. नेहरू ने बताया है कि किस तरह देश के कोने-कोने में आयोजित जलसों में जाकर वे आम लोगों को बताते थे कि अनेक हिस्सों में बँटा होने के बाद भी हिन्दुस्तान एक है। इसी क्रम में पं. नेहरू ने भारत माता शब्द पर भी विचार किया है। उनका निष्कर्ष है कि भारत माता की जय का मतलब है, यहाँ के करोड़ों-करोड़ लोगों की जय।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए [3 + 2 = 5]
(i) जीवन में जल के महत्व को रेखांकित करते हुए बताइए कि इसके संरक्षण के लिए क्या प्रयास किया जा सकता है?
अथवा
“बेबी हालदार का आरंभिक जीवन एक महिला के संघर्ष की गाथा है।” इस कथन को स्पष्ट करते हुए बताएँ कि बेबी हालदार के जीवन से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तरः
मानव जीवन के लिए जल की बहुत आवश्यकता है। राजस्थान में धरती के अंदर जल का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है। मानव जीवन : भूगर्भ में जल का संतुलन वर्षा के जल से होता है, जो राजस्थान में अत्यन्त कम होती है। अतः धरती को पानी वापस नहीं मिल पाता। अब जल संरक्षण की चेतना जाग्रत हो रही है। लोग परम्परागत रीतियों से जल का भण्डारण कर रहे हैं। सरकार भी इस दिशा में प्रयास कर रही है। खेतों में जल की बर्बादी रोकने के लिए सिंचाई की फव्वारा पद्धति, पाइप लाइन से आपूर्ति, हौज-पद्धति, खेत में ही तालाब बनाने आदि को अपनाया जा रहा है। मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त श्री राजेन्द्र सिंह का ‘तरुण भारत संघ’ तथा अन्य स्वयंसेवी संगठन भी इसमें सहयोग कर रहे हैं। वर्षा के जल को संग्रह करके रखने के लिए तालाब, पोखर आदि अधिक से अधिक बनाए जाने चाहिए। नगरों में पानी का अपव्यय बहुत हो रहा है। अतः जल के अपव्यय पर कठोर नियंत्रण होना चाहिए तथा सबमर्सिबिल पम्प आदि के साथ एक रिचार्ज बोरिंग अनिवार्य कर दी जानी चाहिए।

अथवा

“बेबी हालदार का आरंभिक जीवन एक महिला की संघर्ष गाथा है।” इसमें बेबी हालदार अपने पति से अलग अपने दो छोटे बच्चों के साथ किराए के मकान में रहती थी। बिना किसी सहारे के अपना व बच्चों का पालन-पोषण करना उसकी चिंता का कारण था। वह हमेशा काम की खोज में रहती थी जिससे अपने बच्चों का पालन-पोषण कर सके। उसकी पहचान सुनील नाम के एक युवक से होती है जो उसे एक घर में सफाई व खाना बनाने के लिए रखवा देता है। अधिक किराया होने के कारण वह दूसरा मकान किराए पर लेती है। वहाँ का वातावरण और घर में बाथरूम न होने के कारण शौच आदि के लिए बाहर जाना पड़ता है। अकेली महिला होने के कारण लोग तरह-तरह की बातें करते हैं। मकान मालिक का व्यवहार बहुत ही अच्छा है जिससे उसका व उसके बच्चों का पालन-पोषण, शिक्षा व लिखने का कार्य आदि सभी में मदद मिलती है और इस प्रकार उसकी लिखी रचना छपती है। इस कथन से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें घरेलू नौकरों के साथ अमानवीय व्यवहार नहीं करना चाहिए और अकेली मजबूर स्त्री की मदद करनी चाहिए। साथ ही आपसी भेदभाव भूलकर हम स्त्री जाति का सम्मान करें व असहायों की सहायता करें। कई क्षेत्रों में घरों में शौचालय का अभाव है। इन समस्याओं को समाज के माध्यम से दूर करने का प्रयास करना चाहिए और बेबी हालदार की तरह संघर्ष करना चाहिए।

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(ii) भूमि के अन्दर भीषण गर्मी में चेजारों के लिए ताजी हवा का प्रबन्ध कैसे किया जाता है?
अथवा
शर्मिला दी के बारे में बेबी के क्या विचार थे?
उत्तरः
बाहर खड़े लोग थोड़े-थोड़े समय पर मुट्ठी-भर रेत को बहुत तेज गति से नीचे फेंकते हैं। इससे रेत के भार के साथ ऊपर की ताजी
हवा नीचे चली जाती है। इस हवा के जोर से नीचे की गर्म हवा बाहर निकलती है। इस ताजी हवा का दबाव कुंई के अन्दर काम कर रहे चेलवांजी को राहत का अहसास करवाता है।

अथवा

शर्मिला दी के बारे में बेबी के विचार बहुत अच्छे थे क्योंकि बेबी का उत्साह शर्मिला भी बढ़ाया करती थी जो जेठू की वधु थी और कलकत्ता में कहीं पढ़ाती थी। एक दिन बेबी ने उसको और जेठू को तातुश के घर तस्वीर में देखा। शर्मिला भी लेखिका थी और उसकी कई पुस्तकें छप चुकी थीं और पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती थीं। बेबी उससे मिलना चाहती थी क्योंकि शर्मिला उसे लिखने के लिए प्रेरित किया करती थी।

सामान्य त्रुटियाँ

  • कुछ छात्र प्रश्नों के उत्तर सही शब्दों में नहीं देते। उनके लेख में भाषा की सौम्यता’ नहीं रहती।
  • छात्र पाठ के अनुसार ही रटी-रटाई भाषा का प्रयोग करते हैं।
  • छात्र स्वयं उत्तर लिखने में विचारों को स्पष्ट रूप नहीं दे पाते।

निवारण

  • छात्रों को प्रश्नों के तर्क व तथ्य के साथ मानक उत्तर देने चाहिए।
  • छात्रों को निरन्तर अभ्यास द्वारा अपने विषय सम्बन्धित व्यापक व बहुकोणीय दृष्टिकोण बनाना चाहिए।