CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 1 are part of CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi. Here we have given CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 1.

CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 1

Board CBSE
Class XII
Subject Hindi
Sample Paper Set Paper 1
Category CBSE Sample Papers

Students who are going to appear for CBSE Class 12 Examinations are advised to practice the CBSE sample papers given here which is designed as per the latest Syllabus and marking scheme as prescribed by the CBSE is given here. Paper 1 of Solved CBSE Sample Paper for Class 12 Hindi is given below with free PDF download solutions.

समय :3 घंटे
पूर्णांक : 100

सामान्य निर्देश

  • इस प्रश्न-पत्र के तीन खंड हैं- क ख और ग।
  • तीनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
  • यथासंभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमशः दीजिए।

प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (15)

भाषा का एक प्रमुख गुण है—सृजनशीलता। हिंदी में सृजनशीलता का अद्भुत गुण है, अद्भुत क्षमता है, जिससे वह निरंतर प्रवाहमान है। हिंदी ही ऐसी भाषा है, जिसमें समायोजन की पर्याप्त और जादुई शक्ति है। अन्य भाषाओं और संस्कृतियों के शब्दों को हिंदी जिस अधिकार और सहजता से ग्रहण करती है, उससे हिंदी की संभावनाएँ प्रशस्त होती हैं। हिंदी के लचीलेपन ने अनेक भाषाओं के शब्दों को ही नहीं, उनके सांस्कृतिक तेवरों को भी अपने में समेट लिया है। यही कारण है कि हिंदी सामाजिक संस्कृति की तथा विविध भाषा-भाषियों और धूर्मावलंबियों की प्रमुख पहचान बन गई है। अरबी, फारसी, तुर्की, अंग्रेज़ी आदि के शुब्द हिंदी की शब्द-संपदा में ऐसे मिल गए हैं, जैसे वे जुन्म से ही इसी भाषा परिवार के सदस्य हों। यह समाहार उसकी जीवंतता का प्रमाण है।

आज हम परहेज़ी होकर, शुद्धतावाद की जड़ मानसिकता में कैद होकर नहीं रह सकते। सूचना-क्रांति, तकनीकी-विकास और वैज्ञानिक आविष्कारों के दबाव ने हमें सबसे संवाद करने के अवसर दिए हैं। विश्व-ग्राम की संकल्पना से हिंदी को निरंतर चुलना होगा। इसके लिए आवश्यक है-आधुनिक प्रयोजनों के अनुरूप विकास और भाषा एवं लिपि से संबंधित यांत्रिक साधनों का विकास। इंटरनेट से लेकर बाज़ार तक, राजकाज से लेकर शिक्षा और न्याय के मंदिरों तक हिंदी को उपयोगी और कार्यक्षम बनाने के लिए उसका सरल-सहज होना आवश्यक है और उसकी ध्वनि, लिपि, शब्द-वर्तनी, वाक्य-रचना आदि का मानकीकृत होना भी ज़रूरी है। सरकार की तत्परता के साथ हम जुनुता की दृढ़ इच्छाशक्ति, सजगता और सचेष्टता को जोड़ दें, तो वह दिन दूर नहीं, जब हिंदी अंतर्राष्ट्रीय सरहदों में भारत की प्रतिनिधित्व करेगी।

(क) उपरोक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ख) हिंदी की समायोजन शक्ति से लेखक का क्या अभिप्राय है?
(ग) हिंदी भारत की सामाजिक संस्कृति की पहचान कैसे बन गई?
(घ) हिंदी भाषा के संदर्भ में शुद्धतावादी होने का क्या तात्पर्य है?
(ङ) आज हमें सबसे संवाद स्थापित करने का अवसर मिला है। हिंदी के संदर्भ में इसे स्पष्ट कीजिए।
(च) हिंदी के माध्यम से विश्व-ग्राम की संकल्पना को साकार करने के लिए क्या आवश्यक है?
(छ) हिंदी को सभी क्षेत्रों में उपयोगी एवं कार्यक्षम कैसे बनाया जा सकता है?
(ज) गद्यांश के केंद्रीय भाव को लगभग 20 शब्दों में लिखिए।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

उस काल मारे क्रोध के तुन काँपने उसका लगा,
मानो हवा के वेग से सोता हुआ सागर जुगा।
मुख-बाल-रवि-सुम लाल होकर ज्वाल-सा बोधित हुआ,
प्रलयार्थ उनके लिए वहाँ क्या काल ही क्रोधित हुआ?
युग-नेत्र उनके जो अभी थे पूर्ण जुल की धार-से,
अब रोष के मारे हुए, वे दहकते अंगार-से।
निश्चय अरुणिमा-मित्तु अनुल की जुल उठी वह ज्वाल-सी,
तब तो दृगों का जुल गया शोकाश्रु जल तत्काल ही।
साक्षी रहे संसार करता हूँ प्रतिज्ञा पार्थ मैं,
अतएव कल उस नीच को रण-मध्य जो मारूँ न मैं,
अथवा अधिक कुहना वृथा है, पार्थ का प्रण है युही,
साक्षी रहे सुन ये वचन रवि, शशि, अनल, अंबर, मुही।

पूरा कराँगा कार्य सुबु कथानुसार यथार्थ मैं।
जो एक बालक को कपट से मार हँसते हैं अभी,
वे शत्रु सत्वर शोक-सागर-मग्न दिखेंगे सभी।
अभिमन्यु-धन के निधन से कारण हुआ जो मूल है,
इससे हमारे हत हृदय को, हो रहा जो शूल है,।
उस खल जयद्रथ को जगत में मृत्यु ही अब सार है,
उन्मुक्त बस उसके लिए कौरव नरक का द्वार है।
उपयुक्त उस खलु को न यद्यपि मृत्यु का भी दंड है,
पर मृत्यु से बढ़कर न जग में दंड और प्रचंड है।
तो सत्यू कुहता हूँ कभी शस्त्रास्त्र फिर धारूँ न मैं।
सूर्यास्त से पहले न जो मैं कल जयद्रथु-वध करूँ,
तो शपथ करता हूँ स्वयं मैं ही अनुलु में जलु मुरू।

(क) प्रस्तुत काव्यांश में किसके क्रोध का वर्णन किया गया है और क्रोध का कारण क्या है?
(ख) काव्यांश में किसे मारने का प्रण लिया गया है और किसके द्वारा?
(ग) शत्रु को नहीं मार पाने की स्थिति में अर्जुन ने कौन-सी शपथ ली थी?
(घ) आशय स्पष्ट कीजिए
उसे काल मारे क्रोध के तन काँपने उसका लगा,
मानो हवा के वेग से सोता हुआ सागर जगा।
(ङ) प्रस्तुत काव्यांश का मूल-भाव स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर अनुच्छेद लिखिए

(क) ग्लोबल वार्मिंग
(ख) पर्वतीय प्रदेश की यात्रा
(ग) योग का महत्त्व
(घ) राष्ट्र निर्माण में नारी की भूमिका

प्रश्न 4.
बस में गुंडों द्वारा घेर लिए जाने पर एक महिला यात्री की सहायता करने वाले बस-संवाहक के साहस एवं कर्तव्य भावना की प्रशंसा करते हुए परिवहन निगम के मुख्य प्रबंधक को पत्र लिखिए।

अथवा

विलंब से पुस्तक जमा करने पर पुस्तकालयाध्यक्ष द्वारा लगाए गए आर्थिक दंड से मुक्ति के लिए प्राचार्य, राजकीय इंटर कॉलेज, इलाहाबाद को एक प्रार्थना-पत्र लिखिए।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए (1 × 5 = 5)

(क) समाचार लेखन में शीर्षक का क्या महत्त्व है?
(ख) विशेष रिपोर्ट के लेखन में किन बातों पर अधिक बल दिया जाता है?
(ग) ‘इंट्रो’ तथा ‘बॉडी’ किसे कहते हैं?
(घ) पत्रकारिता के प्रमुख प्रकार बताइए।
(इ) प्रिंट माध्यम से क्या तात्पर्य है?

प्रश्न 6.
‘विज्ञापन की बढ़ती हुई लोकप्रियता’ विषय पर एक आलेख लिखिए।

अथवा

हाल ही में पढ़ी गई किसी पुस्तक की समीक्षा लिखिए।

प्रश्न 7.
‘फुटपाथ पर सोते लोग’ अथवा ‘आधुनिक जीवन में मोबाइल फ़ोन’ में से किसी एक विषय पर फ़ीचर लेखन कीजिए।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 4= 8)

‘तिरती है समीर-सागर पुर
अस्थिर सुख पर दु:ख की छाया
जग के दग्धू हृदय पुर
निर्दय विप्लव की प्लावित माया
यह तेरी रण-तरी

भुरी आकांक्षाओं से,
घन, भेरी-गर्जन से सजग सुप्त अंकुर
उर में पृथ्वी के, आशाओं से।
नवजीवन की, ऊँचा कर सिर,
ताक रहे हैं, ऐ विप्लव के बादल!

(क) काव्यांश में वर्णित माया का उल्लेख किस रूप में किया है?
(ख) कवि ने ‘जग के दग्ध हृदय’ का प्रयोग किस संदर्भ में किया है?
(ग) बादल की रणभेरी का सुप्त अंकुरों पर कैसा प्रभाव पड़ रहा है?
(घ) काव्यांश का केंद्रीय भाव समझाइए।

अथवा

खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
बनिक को बुनिज, न चाकर को चाकरी।
जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहैं एक एकन सों “कहाँ जाई, का करी?’

बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे सबै पै, राम! रावरं कृपा करी।
दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु!
दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी।

(क) प्रस्तुत काव्यांश में विभिन्न वर्गों के लोगों की कैसी अवस्था का चित्रण किया गया है?
(ख) वेद और पुराण क्या कहते हैं?
(ग) तुलसीदास ने दरिद्रता को किसके समान बताया है?
(घ) आजीविकाविहीन लोग अपनी पीड़ा किस प्रकार व्यक्त करते हैं?

प्रश्न 9.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 3= 6)

आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी

रह-रह के हवा में जो लोका देती है।
गूंज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी

(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य अपने शब्दों में लिखिए।
(ख) काव्यांश की भाषा एवं छंद के बारे में टिप्पणी कीजिए।
(ग) काव्यांश में प्रस्तुत बिंब एवं अलंकार पर प्रकाश डालिए।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए (3 x 2 = 6)

(क) ‘कविता के बहाने’ कविता के संदर्भ में चिड़िया एवं कविता के बीच के संबंध का आधार स्पष्ट कीजिए।
(ख) ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता में निहित व्यंग्य पर टिप्पणी कीजिए।
(ग) ‘बादल-राग’ कविता में कृषकों की किस दशा का चित्रण है? उनकी ऐसी दशा क्यों है?

प्रश्न 11.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 4 = 8)

पंद्रह दिन यों गुज़रे कि पता नहीं चला। जिमखाना की शामें, दोस्तों की मुहब्बत, भाइयों की खातिरदारियाँ, उनुका बस न चलता था कि बिछुड़ी हुई परदेसी बहन के लिए क्या कुछ न कर दें। दोस्तों, अज़ीज़ों की यह हालत थी कि कोई कुछ लिए आ रहा है, कोई कुछ। कहाँ रखें, कैसे पैक करें, क्यों कर ले जाएँ-एक समस्या थी। सबसे बड़ी समस्या थी बादामी कागज़ की एक पुड़िया की जिसमें कोई सेर भुर लाहौरी नमुक था।

सफ़िया का भाई एक बहुत बड़ा पुलिस अफसर था। उसने सोचा कि वह ठीक राय दे सकेगा। चुपके से पूछने लगी, “क्यों भैया, नमुक ले जा सकते हैं?” वृह हैरान होकर बोला, “नमुक? नुमुक तो नहीं ले जा सकते, गैर-कानूनी है और नमक का आप क्या करेंगी? आप लोगों के हिस्से में तो हमसे बहुत ज़्यादा नमक आया है।” वह झुंझुला गई, “मैं हिस्से-बखरे की बात नहीं कर रही हूँ, आया होगा। मुझे तो लाहौर का नुमक चाहिए, मेरी माँ ने यही मँगवाया है।”

(क) सफिया के पंद्रह दिन किस प्रकार व्यतीत हए?
(ख) सफ़िया के सामने कौन-सी सबसे बड़ी समस्या आ खड़ी हुई?
(ग) नमक ले जाने की बात पर सफ़िया के भाई ने क्या कहा?
(घ) सफ़िया की क्या प्रतिक्रिया थी, जब उसने अपने भाई का जवाब सुना?

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए (3 × 4= 12)

(क) लेखिका के कार्यों में भक्तिन किस प्रकार से मदद करती थी?

(ख) ‘बाज़ारुपन’ से क्या तात्पर्य है? किस प्रकार के व्यक्ति बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं?

(ग) दिनों-दिन गहराते पानी के संकट से निपटने के लिए क्या आज का युवा वर्ग ‘काले मेघा पानी’ दे की इंदर सेना की तर्ज पर कोई सामूहिक आंदोलन प्रारंभ कर सकता है? अपने विचार लिखिए।

(घ) महाभारत का कौन-सा दृश्य करुण और हास्योत्पादक दोनों है? ‘चार्ली चैप्लिन यानी हम सब पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

(ङ) “अगर सभी का दिमाग हम अदीबों की तरह घूमा हुआ होता, तो यह दुनिया कुछ बेहतर ही जगह होती, भैया।” सफ़िया ने ऐसा क्यों कहा? ‘नमक’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 13.
“कहते हैं, कविता में से कविता निकलती हैं। कलाओं की तरह वास्तुकला में भी कोई प्रेरणा चेतन-अवचेतन ऐसे ही सफ़र करती होगी!” क्या आप लेखक के इस विचार से सहमत हैं? ‘अतीत में दबे पाँव’ के आधार पर उक्त कथन का आशय स्पष्ट करते हुए उत्तर लिखिए।

प्रश्न 14.
(क) “धन की महत्ता पारिवारिक संबंधों से अधिक है।” ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के आधार पर कथन की पुष्टि कीजिए। (5)
(ख) ऐन को अपनी डायरी ‘किट्टी’ (एक निर्जीव गुड़िया) को संबोधित कर लिखने की ज़रूरत क्यों पड़ी? (5)

उत्तर

उत्तर 1.
(क) उपरोक्त गद्यांश का शीर्षक ‘हिंदी भाषा और तकनीकी युग’ हो सकता है।

(ख) हिंदी की समायोजन शक्ति से लेखक का अभिप्राय गैर-हिंदी भाषाओं की कई विशेषताओं को अपने अंदर समाहित कर लेने से है अर्थात् हिंदी भाषा द्वारा अरबी, फारसी, तुर्की, अंग्रेज़ी जैसी अनेक बाहरी भाषाओं एवं संस्कृतियों के शब्दों को आत्मसात् कर लेने व स्वयं में घुला-मिला लेने की क्षमता से है।

(ग) गद्यांश के अनुसार, हिंदी के लचीलेपन ने तथा इसकी अद्भुत समायोजन शक्ति ने न केवल अनेक भाषाओं के शब्दों को, बल्कि उनके सांस्कृतिक तत्त्वों को भी अपने में समेट लिया है। इस प्रकार हिंदी ने अधिक-से-अधिक सांस्कृतिक तत्त्वों एवं अन्य भाषाओं के शब्दों को स्वयं में समाहित कर अपना स्वरूप निर्मित किया है, जिसके कारण वह भारतीय संस्कृति की पहचान भी बन गई है।

(घ) हिंदी भाषा के संदर्भ में शुद्धतावादी होने से तात्पर्य उसका अरबी, फ़ारसी, अंग्रेज़ी इत्यादि गैर-हिंदी भाषाओं से शब्दों को ग्रहण न करने तथा हिंदी की बोलियों व उनके शब्दों को प्रधानता प्रदान करके हिंदी का विकास करने से है।

(ङ) सूचना क्रांति, तकनीकी विकास और वैज्ञानिक आविष्कारों के द्वारा हमें सबसे संवाद स्थापित करने का अवसर प्राप्त हुआ है, जिसका माध्यम हिंदी भाषा बनी है। अत्याधुनिक परिवर्तनों एवं विकास ने हमें हिंदी को अपनाते हुए विश्व-ग्राम की संकल्पना को साकार करने का भी अवसर दिया है और हम इस पथ पर ईमानदारीपूर्वक आगे भी बढ़ रहे हैं।

(च) गद्यांश के अनुसार, हिंदी भाषा को सबके साथ कदम मिलाकर चलने के लिए आवश्यक है कि हम आधुनिक प्रयोजनों के अनुरूप तथा भाषा एवं लिपि से संबंधित यांत्रिक साधनों का अधिकतम विकास करें, तभी विश्व-ग्राम की संकल्पना साकार हो सकती है।।

(छ) सरलता एवं सहजता ऐसे गुण हैं, जिनके कारण कोई भाषा जन-जन तक प्रसार पाती है, जबकि उसकी लिपि, ध्वनि, शब्द-वर्तनी, वाक्य-रचना आदि के मानक स्वरूप के कारण भाषा में सार्वभौमिकता एवं स्थायित्व का गुण आता है। अतः इन सभी गुणों से पूर्ण करके ही हिंदी को सभी क्षेत्रों में उपयोगी व कार्यक्षम बनाया जा सकता है।

(ज) प्रस्तुत गद्यांश को केंद्रीय भाव हिंदी भाषा की महत्ता को स्पष्ट करना है। हिंदी भाषा में अनेक भाषाओं और संस्कृतियों के शब्दों को आत्मसात् करने की क्षमता है। अपने इसी गुण के कारण हिंदी भारतीय संस्कृति की पहचान बन गई है। हिंदी भाषा को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाने के लिए सरकार तथा जनता की दृढ़ इच्छाशक्ति, सजगता और सचेष्टता की आवश्यकता है।

उत्तर 2.

(क) प्रस्तुत काव्यांश में अर्जुन के क्रोध का वर्णन किया गया है, क्योंकि जयद्रथ आदि अनेक कौरवों ने युद्धभूमि में अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु को घेरकर छलपूर्वक उसका वध कर दिया था।

(ख) अर्जुन-पुत्र अभिमन्यु का कौरवों द्वारा कायरतापूर्ण तरीके से युद्धभूमि में वध करने के कारण जयद्रथ को मारने का प्रण अर्जुन द्वारा लिया गया है।

(ग) अर्जुन ने अपने पुत्र अभिमन्यु को धोखे एवं अनैतिक तरीके से मारने के दोषी जयद्रथ को नहीं मार पाने की स्थिति में स्वयं ही आग में जलकर मर जाने की शपथ ली थी।

(घ) प्रस्तुत काव्य पंक्तियों का आशय यह है कि अभिमन्यु की मृत्यु का समाचार सुनकर अर्जुन का शरीर अत्यधिक क्रोध के आवेश से काँपने लगा। उसके क्रोध को देखकर ऐसा लग रहा था मानो तेज़ हवाओं के कारण सागर में प्रलयंकारी तूफ़ान आ गया हो।

(ङ) प्रस्तुत काव्यांश में मुख्यतः अपने पुत्र अभिमन्यु की मृत्यु से उत्पन्न अर्जुन के क्रोध एवं क्षोभ को चित्रित किया गया है। इसी क्रोध एवं क्षोभ के कारण वे जयद्रथ को मारने का प्रण लेते हैं।

उत्तर 3.

(क) ग्लोबल वार्मिंग

ग्लोबल वार्मिंग का अर्थ है विश्व स्तर पर धरती के तापमान में वृद्धि होना। ग्लोबल वार्मिंग आज विश्व की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी है। इससे न केवल मनुष्य, बल्कि धरती पर रहने वाले प्रत्येक प्राणी के जीवन पर संकट है। ग्लोबल वार्मिंग के लिए सबसे अधिक ज़िम्मेदार हैं, मनुष्य और उसकी गतिविधियाँ। औद्योगिक क्रांति संपन्न होने के बाद से ही ग्रीन-हाउस गैसों की मात्रा में अत्यंत तेज़ी से वृद्धि हो रही है। मानव जनित विभिन्न गतिविधियों से कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन, नाइट्रोजन ऑक्साइड आदि ग्रीन-हाउस गैसों का आवरण सघन होता जा रहा है।

ग्लोबल वार्मिंग से धरती का तापमान बढ़ने के साथ-साथ ग्लेशियरों पर जमी बर्फ पिघलनी प्रारंभ हो चुकी है। ग्लेशियरों की बर्फ पिघलने से समुद्र का जलस्तर बढेगा और तटीय देशों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। गर्मी अत्यधिक बढ़ जाने के कारण मलेरिया, डेंगू , यलो फीवर जैसे संक्रामक रोग बढ़ेंगे। सूर्य की पराबैंगनी किरणों की मात्रा बढ़ने से विभिन्न प्रकार के त्वचा संबंधी रोग एवं कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियाँ बढ़ेगी। पशु-पक्षियों एवं पेड़-पौधों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने से होने वाले जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप आने वाले दिनों में कहीं सूखा बढ़ेगा, तो कहीं बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि होगी। इसके कारण मौसम की तीव्रता में वृद्धि, कृषि उपज में परिवर्तन, व्यापार मार्गों में परिवर्तन, प्रजाति विलोपन आदि से संबंधित समस्याएँ उत्पन्न होंगी।

ग्लोबल वार्मिंग का मुद्दा किसी देश या महाद्वीप से जुड़ा हुआ नहीं है और इसे बनाने-बिगाड़ने में छोटे-बड़े प्रत्येक देश की भूमिका है। इसीलिए सभी को मिलकर इसे कम करने में अपनी सक्रिय प्रतिबद्धता दिखानी होगी। वस्तुत: वैश्विक समस्या से निपटने के लिए। प्रत्येक व्यक्ति को पेट्रोल, डीजल एवं बिजली का उपयोग कम करके हानिकारक गैसों को कम करने की कोशिश करनी चाहिए। वनों की कटाई को रोकना होगा तथा अधिक-से-अधिक वृक्षारोपण करना होगा।

(ख) पर्वतीय प्रदेश की यात्रा

मनुष्य स्वभावतः मनोरंजन प्रिय होता है। यात्रा करने से मनोरंजन तो होता ही है, साथ ही अन्य कई प्रकार के लाभ भी होते हैं। पर्वतीय यात्रा तो और भी अधिक महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि पर्वतों के दृश्य आनंद प्रदान करने वाले होते हैं।

ग्रीष्मावकाश में मैं अपने मित्रों के साथ शिमला गया। हम सब अपनी तैयारी पूर्ण कर सायंकाल 5:00 बजे की गाड़ी से शिमला के लिए चल पड़े। रात के डेढ़ बजे कालका स्टेशन पहुँचकर हम लोग 3-4 डिब्बों वाली एक छोटी-सी गाड़ी में शिमला के लिए रवाना हुए। गाड़ी ज्यों-ज्यों ऊपर शिमला की ओर बढ़ती जा रही थी, त्यों-त्यों वातावरण में ठंडक भी बढ़ती जा रही थी। सामने मनोहारी दृश्य दिखाई पड़ रहे थे। फूल व फलों से लदे वृक्षों से लिपटी हुई लताएँ सुशोभित हो रही थीं। विविध रंगों के पक्षी फुदक-फुदककर मधुर तान सुना रहे थे। पर्वतों के बीच में लंबी-लंबी सुरंगें बनी हुई थीं, जिनमें प्रविष्ट होने पर गाड़ी सीटी बजाती थी तथा गाड़ी में प्रकाश भी हो जाता था।

इस तरह के मनोरम दृश्यों को देखते हुए हम शिमला पहुँच गए। कुलियों ने हमारा सामान उठाया और हम एक सुंदर होटल में ठहरे। वहाँ हमने चार आदमियों द्वारा खींचा जाने वाला एक रिक्शा देखा। सुबह उठते ही हम घूमने चले गए। पहाड़ियों पर चढ़ते, नीचे उतरते तथा मार्ग में ठंडे-गर्म पानी के झरने देखकर हम बड़े प्रसन्न हो रहे थे। ऊपर बैठे हुए हम देखते थे कि नीचे बादल बरस रहे हैं। लोग भागकर घरों में घुस जाते। कहीं धूप, कहीं छाया। इस विचित्र मौसम को देखकर हम स्वयं को देवलोक में महसूस करने लगे। हमने वहाँ जाकू मंदिर देखा, जहाँ बहुत सारे बंदर थे। हम उनके लिए चने भी ले गए थे। शिमला में घूमते हुए छुट्टियाँ समाप्त हुईं और हम घर वापस लौट आए।

शिमला की यह आनंदमयी यात्रा आज भी मेरे मानसपटल पर अंकित है।

(ग) योग का महत्व

‘योग’ संस्कृत का शब्द है। इसका अर्थ मिलाना, जोड़ना, संयुक्त होना अथवा तल्लीन होना है। योग का आसन ‘योगासन कहलाता है। यह एक व्यायाम ही नहीं है, बल्कि सिद्धि है, जिसे प्राप्त करने के लिए शरीर को संतुलित करने की आवश्यकता होती है। ‘अष्टाध्यायी’ के प्रवर्तक ‘पतंजलि योग के प्रथम गुरु माने जाते हैं। उनके अनुसार ‘योगश्चित्तवृत्ति निरोधः’ अर्थात् मानसिक वृत्तियों को वश में करना ही योग है।

वास्तव में, हमारी शक्ति नैसर्गिक है। इसमें एक विकास-क्रम होता है। विकास की प्रक्रिया की सहजता हमें स्वस्थ तथा ऊर्जावान रखती है, जबकि असहज प्रवृत्तियों का प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है और मनुष्य रोगग्रस्त हो सकता है। मन तथा शरीर का घनिष्ठ संबंध है। मन की शांति शरीर को स्वस्थ रखती है। मन की अशांति मानसिक तनाव का कारण है। मानसिक तनाव व्यक्ति की आंतरिक ऊर्जा का सकारात्मक उपयोग नहीं होने देता है और शरीर व्याधियों से घिर जाता है। सिर, पेट, रक्त-धमनियों, श्वसन-तंत्र इत्यादि में उत्पन्न विकार चरम-सीमा पर पहुँचकर मनुष्य के अंत को निश्चित कर देते हैं। ‘योग’ इसी प्रक्रिया को रोकने का कारगर उपाय है। योग का विश्वस्तर पर बढ़ रहा प्रयोग, इसकी प्रासंगिकता को प्रमाणित करता है। योग एक सुखद तथा शांतिमय जीवन की संजीवनी है। योग से हमारे अंदर विनम्रता, उदारता तथा मानवीय गुणों की उत्पत्ति होती है। यह चरित्र-निर्माण में सहायक है। जीवन के हर लक्ष्य को पूरा करने में एकाग्रता की आवश्यकता होती है। यदि योग-साधना को अपनाया जाए, तो मनुष्य अपने सभी लक्ष्यों तक पहुँचने में सक्षम हो सकता है।

‘योग’ आज एक थेरेपी के रूप में विकसित हुआ है। हर रोग के लिए अलग-अलग आसनों की प्रक्रिया है, जिसे अपनाकर मनुष्य स्वस्थ हो सकता है। वर्तमान समय में योग के प्रति रुचि बढ़ी है। योग को अपनाने की प्रक्रिया देश में ही नहीं, विदेशों में भी तेज़ी से प्रचलित हो रही है। पश्चिमी देशों में भी योग शिक्षा के प्रति लगाव बढ़ा है। पाश्चात्य-शैली में जीने वाले लोग ‘योग’ की तरफ़ देख रहे हैं। 21 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ घोषित करना व संपूर्ण विश्व द्वारा इस अवसर पर बढ़-चढ़कर समारोहों का आयोजन करना इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।

(घ) राष्ट्र निर्माण में नारी की भूमिका

समाज एवं राष्ट्र में नारी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। नारी के बिना सृष्टि की कल्पना भी नहीं की जा सकती। किसी भी राष्ट्र के निर्माण में उस राष्ट्र की आधी आबादी अर्थात स्त्रियों की भूमिका की महत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता। यदि किसी भी कारण से आधी आबादी निष्क्रिय रहती है, तो उस राष्ट्र तथा समाज की समुचित एवं उल्लेखनीय प्रगति की कल्पना करना भी कठिन है। आधुनिक समय में स्त्री की स्थिति में अपेक्षाकृत सुधार हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्र प्रगति के पथ पर निरंतर अग्रसर है। नारी ने स्वतंत्रता संग्राम में भी आगे बढ़कर पूरी क्षमता एवं उत्साह के साथ भाग लिया। महारानी लक्ष्मीबाई, विजयालक्ष्मी पंडित, अरुणा आसफ़ अली, सरोजिनी नायडू , सुचेता कृपलानी, अमृत कौर आदि स्त्रियों का योगदान प्रेरणादायी रहा है। स्वतंत्रता के पश्चात्, स्त्रियों ने अपनी उपस्थिति को और भी व्यापक बनाया। हर क्षेत्र में नारी का योगदान है चाहे वो चिकित्सा का क्षेत्र हो या इंजीनियरिंग का, सिविल सेवा का क्षेत्र हो या बैंक का, पुलिस हो या फौज़, विज्ञान हो या व्यवसाय प्रत्येक क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण पदों पर स्त्रियाँ आज सम्मान पूर्वक आसीन हैं। आज शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो, जो महिलाओं की भागीदारी से अछूता हो। उसकी स्थिति में आए अभूतपूर्व सुधार ने उसे हाशिए पर रखना असंभव बना दिया है। नारी के जुझारुपन का लोहा सबको मानना पड़ रहा है।

नारी के अपूर्व योगदान ने राष्ट्र को सुदृढ़ किया है। घर एवं परिवार को संभालने के अतिरिक्त नारी ने विभिन्न प्रकार की आर्थिक एवं सामाजिक गतिविधियों में भाग लेकर राष्ट्र को मज़बूती प्रदान की है, परंतु अभी भी सामाजिक, मनोवैज्ञानिक एवं नैतिक दृष्टि से उसकी स्थिति व्यावहारिक रूप से पुरुषों के समकक्ष नहीं हुई है। इसके लिए हमें उन्हें विकास के पर्याप्त अवसर उपलब्ध कराने होंगे, जिससे उनकी मेधा एवं ऊर्जा का भरपूर उपयोग हो सके और राष्ट्र, समाज एवं परिवार लाभान्वित हो सके। इसी में संपूर्ण राष्ट्र एवं मानव समुदाय का कल्याण निहित है।

उत्तर 4.

परीक्षा भवन,
दिल्ली।
दिनांक 25 सितंबर, 20××
सेवा में,
मुख्य प्रबंधक,
दिल्ली परिवहन निगम,
दिल्ली।

विषय बस-संवाहक के साहस और कर्तव्य भावना की प्रशंसा हेतु।

महोदय,

मैं एक ज़िम्मेदार नागरिक की हैसियत से आपको यह पत्र लिख रहा हूँ। मैं आपके विभाग के बस-संवाहक करतार सिंह के साहस और कर्तव्य भावना के बारे में आपको एक संस्तुति करना चाहता हूँ। वह बहुत ही साहसी, नेक और भला इंसान है।

मैं 22 सितंबर को दिल्ली से आगरा की यात्रा कर रहा था। बस दिल्ली से शाम को 6:00 बजे चली थी। लगभग 8:00 बजे हमारी बस भोजन के लिए एक होटल पर रुकी। तभी वहाँ अचानक कई गुंडों ने एक महिला को घेर लिया और रिवॉल्वर की नोक पर उससे ज़बर्दस्ती करने का प्रयास करने लगे। उस समय बस के अधिकांश यात्री खाने-पीने में व्यस्त थे। बस-संवाहक करतार सिंह ने यह देखकर अकेले ही उन शस्त्रधारी गुंडों से न केवल महिला की रक्षा की, वरन् उसका कीमती सामान भी लुटने से बचा लिया। बाद में उस महिला ने शोर मचाकर लोगों को इकट्ठा करके उन गुंडों को बंधक बनाकर पुलिस के हवाले कर दिया। सभी यात्रियों ने राहत की साँस ली, क्योंकि एक बड़ी अनहोनी टल गई थी। सभी ने करतार सिंह के साहस की बहुत प्रशंसा की। मैं चाहता हूँ कि इस साहसिके व्यवहार के लिए करतार सिंह को विभाग की ओर से सम्मानित किया जाए, जिससे अन्य बस-संवाहकों सहित आम लोगों को भी प्रेरणा मिल सके।

सधन्यवाद!

भवदीय
क.ख.ग.

अथवा

परीक्षा भवन
दिल्ली।
दिनांक 12 सितंबर, 20××

सेवा में,
प्राचार्य महोदय,
राजकीय इंटर कॉलेज,
इलाहाबाद।

विषय पुस्तकालयाध्यक्ष द्वारा लगाए गए आर्थिक दंड से मुक्ति हेतु।

महोदय,

मेरा आपसे विनम्र निवेदन है कि मैं आपके इंटर कॉलेज की कक्षा-12 की छात्रा हूँ और विद्यालय के पुस्तकालय की एक सक्रिय सदस्य भी हूँ। मैं हमेशा पुस्तकालय का सदुपयोग करते हुए विभिन्न पुस्तकों को पढ़कर कुछ नया ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करती रहती हैं। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि मेरे घर की आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि मैं हमेशा अपनी मनपसंद पुस्तकों को खरीदकर पढ़ सकें। अतः विद्यालय का पुस्तकालय मेरी जिज्ञासाओं को शांत करने में अत्यधिक सहायता करता है।

मैंने पिछले दिनों भारत के इतिहास से संबंधित रोमिला थापर द्वारा लिखित एक पुस्तक को पढ़ने के लिए पुस्तकालय से निर्गत कराया था, लेकिन उसके अगले ही दिन एक सड़क दुर्घटना में मेरे बाएँ पैर की हड्डी टूट गई और मैं विद्यालय आने में असमर्थ हो गई। इस घटना के संबंध में मैंने अपनी कक्षा के अध्यापक को सूचित कर दिया था। मेरे घर में कोई भी ऐसा सदस्य नहीं था, जो विद्यालय आकर पुस्तक वापस लौटा सके। अतः पुस्तन को लौटाने में विलंब हो गया।

इस संबंध में पुस्तकालयाध्यक्ष ने मेरे ऊपर सौ रुपये (₹ 100/-) का आर्थिक दंड लगा दिया है। मेरी वास्तविक स्थिति एवं आर्थिक परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए इस दंड को माफ़ करने की कृपा की जाए, ताकि मैं इस आर्थिक दंड से मुक्त हो सकें। इसके लिए मैं सदा आपकी आभारी रहूँगी।

सधन्यवा!
भवदीय
क.ख.ग.

उत्तर 5.

(क) समाचार लेखन के क्रम में सर्वप्रथम शीर्षक को ही लिखे जाने की परिपाटी है। इस प्रकार शीर्षक समाचार का प्रवेश-द्वार कहलाता है। शीर्षक पढ़ने मात्र से संबद्ध समाचार की मुख्य घटना की सांकेतिक जानकारी मिल जाती है।

(ख) विशेष रिपोर्ट के लेखन में घटना, समस्या या मुद्दे की गहरी छानबीन की जाती है तथा महत्त्वपूर्ण तथ्यों को इकट्ठा करके उनका विश्लेषण किया जाता है।

(ग) किसी भी समाचार के कभी-कभी पहले और दूसरे पैराग्राफ़ में सबसे महत्त्वपूर्ण तथ्यों और सूचनाओं को लिखा जाता है जिसे इंट्रो या ‘लीड’ कहते हैं। जबकि ‘बॉडी’ में समाचार के विस्तृत ब्योरे को घटते हुए महत्त्व के क्रम में लिखा जाता तथा उसकी पृष्ठभूमि का भी जिक्र किया जाता है।

(घ) पत्रकारिता के मुख्य प्रकार हैं-खोजपरक पत्रकारिता, विशेषीकृत पत्रकारिता, वॉचडॉग पत्रकारिता, एडवोकेसी पत्रकारिता तथा वैकल्पिक पत्रकारिता

(ङ) प्रिंट माध्यम जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना है। प्रिंट माध्यम को लंबे समय तक सुरक्षित रखकर उसे कभी भी पढ़ा जा सकता है। इसमें समाचार-पत्र, पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि शामिल हैं।

उत्तर 6.
विज्ञापन की बढ़ती हुई लोकप्रियता

आज के युग को विज्ञापनों का युग कहा जा सकता है। आज सभी जगह विज्ञापन-ही-विज्ञापन नज़र आते हैं। बड़ी-बड़ी कंपनियाँ एवं उत्पादक अपने उत्पाद एवं सेवा से संबंधित लुभावने विज्ञापन देकर उसे लोकप्रिय बनाने का हर संभव प्रयास करते हैं। किसी नए उत्पाद के विषय में जानकारी देने, उसकी विशेषता एवं प्राप्ति स्थान आदि बताने के लिए विज्ञापन की आवश्यकता पड़ती है। यदि विज्ञापन का सहारा न लिया जाए, तो सामान्य जनता को अपने उत्पाद एवं सेवा की जानकारी नहीं दी जा सकती। विज्ञापनों के द्वारा किसी भी सूचना तथा उत्पाद की जानकारी, पूर्व में प्रचलित किसी उत्पाद में आने वाले बदलाव आदि की जानकारी दी जा सकती है। विज्ञापन का उद्देश्य जनता को किसी भी उत्पाद एवं सेवा की सही सूचना देना है, लेकिन आज विज्ञापनों में अपने उत्पाद को सर्वोत्तम तथा दूसरों के उत्पादों को निकृष्ट कोटि का बताया जाता है। आजकल के विज्ञापन भ्रामक होते हैं तथा मनुष्य को अनावश्यक खरीदारी करने के लिए प्रेरित करते हैं। अतः विज्ञापनों का यह दायित्व बनता है कि वे ग्राहकों को लुभावने दृश्य दिखाकर गुमराह नहीं करें, बल्कि अपने उत्पाद के सही गुणों से परिचित कराएँ। तभी उचित सामान ग्राहकों तक पहुँचेगा और विज्ञापन अपने लक्ष्य में सफल होगा।

अथवा

हाल ही में पढ़ी गई पुस्तक ‘लता दीदी : अजीब दास्ताँ है ये’ की समीक्षा

एक बार शास्त्रीय संगीत के विश्व प्रसिद्ध गायक उस्ताद बड़े गुलाम अली खाँ साहब ने स्वर कोकिला लता मंगेशकर की तारीफ़ करते हुए कहा था-”यह लड़की गलती से भी गलत सुर नहीं लगाती है। उसी स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर पर लिखी गई पुस्तक ‘लता दीदी : अजीब दास्ताँ है ये’ की समीक्षा प्रस्तुत की जा रही है। हरीश भिमानी कृत इस पुस्तक को वाणी प्रकाशन की ओर से वर्ष 2009 में प्रकाशित किया गया था। इस पुस्तक में लेखक ने लता के 21 देशों के 53 शहरों में आयोजित 139 कार्यक्रमों में उनके साथ बिताए गए क्षणों के अनुभव को शब्दों में पिरोया है।

इस पुस्तक के द्वारा लेखक ने लता के जीवन से संबद्ध विभिन्न अनछुए पहलुओं को पूरी ईमानदारी और आत्मीयता के साथ पाठकों के सामने रखा है। पुस्तक में लता की संगीत साधना के दौरान उनके परिजनों व अन्य लोगों से मिले सहयोग सहित उनके स्वभाव, उनकी पसंद-नापसंद की भी चर्चा की गई है, ताकि उनके प्रशंसकों व चाहने वालों की जिज्ञासा को कुछ हद तक शांत किया जा सके। पुस्तक के अंत में विश्व की इस महान् गायिका के बारे में नामी-गिरामी हस्तियों के विचारों को महत्त्व दिए जाने से पुस्तक निश्चय ही जीवंत हो गई है। अतः तथ्यों की प्रस्तुति की दृष्टि से यह एक सफल और उपयोगी पुस्तक साबित हुई है।

पूरी पुस्तक में लेखक के द्वारा विचारों के तारतम्य को बनाए रखने के साथ-साथ भाषा को सहज, शुद्ध व प्रवाहमयी रखने का प्रयास काफ़ी सराहनीय है। लेखक के द्वारा जहाँ-तहाँ अंग्रेज़ी-हिंदी के मुहावरों का भी इस प्रकार प्रयोग किया गया है, जिससे कि पाठक वर्ग बरबस इस पुस्तक की ओर आकर्षित हो जाए। अंततः यह कहा जा सकता है कि हिंदुस्तान की पहचान बन चुकी पार्श्व गायिका लता मंगेशकर पर लिखी गई यह पुस्तक ज्ञानवर्द्धक, मनोरंजक और पठनीय है।

उत्तर 7.
फुटपाथ पर सोते लोग

गाँव तथा छोटे शहरों की बेकारी तथा महानगरों में काम के अवसर मौजूद रहने के कारण बड़ी संख्या में लोग उसकी ओर खिंचे चले आते हैं, लेकिन महानगरों में आने वाले लोगों का सामना सबसे पहले आवास की समस्या से होता है। ऐसे में कमज़ोर आय के लोगों का आश्रय फुटपाथ’ बनता है। दिनभर मज़दूरी करने के बाद सड़कों के किनारे सोना उनकी मजबूरी हो जाता है, क्योंकि उनकी आय इतनी कम होती है कि वे आवास लेना भी चाहें, तो भी नहीं ले सकते। महानगरों में आवास किराए पर भी बहुत महँगे होते हैं। यदि आवास का खर्च, खाने का खर्च, रोज़मर्रा की चीज़ों का खर्च ही मिला लिया जाए, तो एक आम आदमी की सारी आय तो इन्हीं खर्चे में निकल जाएगी, ऐसे में वह अपने लिए या अपने परिवार के लिए क्या बचाएगा?

अतः वह फुटपाथ पर ही सोने को मजबूर हो जाता है, लेकिन समाज एवं सरकारी तंत्र के लिए यह शर्म की बात है। ऐसे गरीब लोग कई बार भीषण दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं। सरकार का यह उत्तरदायित्व है कि वह ऐसे लोगों के पुनर्वास के लिए कार्य करे, आखिर वे भी तो इसी धरती या देश के नागरिक हैं। ऐसे लोगों को यदि रोज़गार के अवसर उनके शहर या गाँव में ही उपलब्ध कराए जाएँ, तो शायद उन्हें महानगरों में जाने की ज़रूरत ही नहीं होगी।

अथवा

आधुनिक जीवन में मोबाइल फोन

मोबाइल के नाम से प्रसिद्ध इलेक्ट्रॉनिक मशीन आज विश्व में क्रांति का वाहक बन गई है। वर्तमान समय में मोबाइल के बिना व्यक्ति व्यर्थ जैसा महसूस करने लगा है। बिना तारों वाला मोबाइल फ़ोन जगह-जगह लगे ऊँचे टॉवरों से तरंगों को ग्रहण करते हुए मनुष्य को दुनिया के प्रत्येक कोने से जोड़े रहता है। मोबाइल फ़ोन सेवा प्रदान करने के लिए विभिन्न टेलीफ़ोन कंपनियाँ अपनी-अपनी सेवाएँ देती हैं। मोबाइल फ़ोन बात करने, एसएमएस की सुविधा प्रदान करने के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के खेल, कैलकुलेटर, फ़ोनबुक की सुविधा, समाचार, चुटकुले, इंटरनेट सेवा आदि भी उपलब्ध कराता है। अनेक मोबाइल फ़ोनों में इंटरनेट की सुविधा भी होती है, जिससे ई-मेल भी किया जा सकता है। मोबाइल फ़ोन में उपलब्ध सुविधाओं के माध्यम से हम अपना पत्र टाइप कर सकते हैं, उसे किसी को भेज सकते हैं और किसी का पत्र प्राप्त कर सकते हैं। मोबाइल फ़ोन का सबसे बड़ा दोष यह है कि यह समय-असमय बजता ही रहता है। लोग सुरक्षा और शिष्टाचार भूल जाते हैं। अकसर लोग गाड़ी चलाते समय भी फ़ोन पर बात करते हैं, जो असुरक्षित ही नहीं, बल्कि कानूनन अपराध भी है। अपराधी एवं असामाजिक तत्त्व मोबाइल का प्रयोग अनेक प्रकार के अवांछित कार्यों में करते हैं। इसके अधिक प्रयोग से कानों व हृदय पर बुरा प्रभाव पड़ता है। अतः इन खतरों से सावधान होना आवश्यक है।

उत्तर 8.
(क) कवि को संसार का हृदय शोषण तथा अत्याचार आदि से जला हुआ प्रतीत हो रहा है। उसे इस दुःखी संसार के ऊपर उमड़ते-गरजते बादल भी निर्दयी माया के सदृश नज़र आ रहे हैं, जो संपूर्ण जग को अपने जल-प्रलय में डुबा देने को आतुर हैं। काव्यांश में माया का उल्लेख इसी रूप में किया गया है।

(ख) शोषण व अत्याचार से पीड़ित सामान्यजन की वेदना को अभिव्यक्त करने के लिए कवि ने ‘जग के दग्ध हृदय’ का प्रयोग किया है, जो उमड़ते व गर्जन करते हुए बादल को अमृत-जल बरसाने वाले प्राकृतिक स्रोत सहित शोषण व अत्याचार के विरुद्ध लड़ने वाले वीर क्रांतिकारी योद्धा के रूप में दिखाई दे रहे हैं।

(ग) काव्यांश के अनुसार, बादलों की गर्जनारूपी रणभेरी सुनकर धरती के भीतर सुप्तावस्था में पड़े बीजांकुर सजग हो गए हैं। और वे नवजीवन प्राप्ति की आशा में सिर उठाकर बादल के बरसने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।

(घ) प्रस्तुत काव्यांश को केंद्रीय भाव जनक्रांति को प्रदर्शित करता है। कवि कहता है कि वायुरूपी समुद्र में क्रांतिकारी बादलों की सेना छा गई है। इससे पूँजीयातियों के क्षणिक सुखों पर संकट के बादल छा गए हैं और दुःखी जनों के लिए अनेक नई संभावनाओं के अंकुर फूटने लगे हैं। बादल युद्ध की नौका के समान रण-भेदी बजाते हुए जन-जन की आकांक्षाओं को साथ लिए उमड़े चल रहे हैं तथा पृथ्वी में सोए क्रांति के बीच करवटें ले रहे हैं।

अथवा

(क) प्रस्तुत काव्यांश में किसान, व्यापारी, सेवक, भिक्षुक आदि समाज के विभिन्न वर्गों के लोगों की निर्धनता व बेरोज़गारी के कारण उत्पन्न दयनीय अवस्था का चित्रण हुआ है अर्थात् समाज में किसान, मज़दूर, व्यापारी, सेवक आदि सभी जीविकाविहीन होने के कारण भुखमरी के शिकार हो रहे हैं।

(ख) कवि तुलसीदास जी के अनुसार, वेद एवं पुराण सभी यही कहते हैं कि उनके आराध्य राम ने सब पर कृपा की है अर्थात् । सभी दीन-दुःखियों को संकट से उबारा है। यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि भगवान श्रीराम की कृपा से ही संसार में व्याप्त घोर दरिद्रता का नाश किया जा सकेगा। अतः सबको उनकी शरण में जाना चाहिए।

(ग) तुलसीदास ने दरिद्रता को रावण के समान बताया है। इस दरिद्रतारूपी रावण ने दुनिया को अपने पंजों में दबाया हुआ है, | जिसे देखकर उनका मन अत्यंत व्यथित है। इसी कारण वे अत्यंत कातर भाव से अपने प्रभु श्रीराम से इस दरिद्रता को दूर करने की प्रार्थना करते हैं।

(घ) लोग अपनी जीविकाविहीनता के कारण चिंतित हैं। उनके सामने अपनी जीविका चलाने के लिए कोई साधन उपलब्ध नहीं है। अतः आजीविकाविहीन लोग चिंता के कारण सिहरकर भयातुर स्वर में एक-दूसरे से यही कहते हैं-”हम कहाँ जाएँ, क्या करें?” अर्थात् किसी को दरिद्रता दूर करने का कोई उपाय नहीं सूझता।

उत्तर 9.
(क) प्रस्तुत काव्यांश में शायर द्वारा एक माँ का अपने बच्चे को झुलाने तथा हवा में उछालने का सहज-स्वाभाविक वर्णन किया गया है। वह कभी उसे झुलाती है, तो कभी हवा में उछालकर पुनः हाथों में पकड़ लेती है, जिससे बच्चा सहज रूप से खिलखिलाकर हँस पड़ता है और उसकी हँसी हवा में गूंज उठती है।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश की भाषा उर्दू एवं लोकभाषा मिश्रित है। ‘चाँद का टुकड़ा’ मुहावरे का सहज प्रयोग बच्चे की सुंदरता एवं मधुरता को अभिव्यक्त करने के लिए किया गया है। काव्यांश को छंद उर्दू कविता का अत्यंत प्रसिद्ध छंद’रुबाई’ है। इसमें चार पंक्तियाँ होती हैं। पहली, दूसरी एवं चौथी पंक्तियाँ तुकांत होती हैं।

(ग) काव्यांश में जहाँ ‘चाँद का टुकड़ा’, ‘गोद-भरी’ और ‘हवा में लोकाती’ (उछालती) माँ के वर्णन में दृश्य बिंब है, वहीं हँसी की खिलखिलाहट में श्रव्य बिंब भी आकर्षक बन पड़ा है।

काव्यांश में वात्सल्य रस की अभिव्यक्ति होने के साथ-साथ बच्चे के मुँह से निकलने वाली किलकारी के रूप में स्वभावोक्ति अलंकार तथा ‘रह-रह’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार का प्रयोग सार्थक बन पड़ा है।

उत्तर 10.
(क) ‘कविता के बहाने’ कविता में, कविता के लिए चिड़िया के बहाने उड़ान भरने जैसी विशेषता को रेखांकित किया गया है। इसका आधार यह है कि उड़ान मूल रूप में चिड़िया के द्वारा ही भरी जाती है। यह एक क्रिया है, जो चिड़िया के उन्मुक्त नैसर्गिक स्वभाव का परिचय देती है, मगर कवि ने इसे कल्पना के रूप में मानसिक उड़ान मानकर कविता से जोड़ दिया है। चिड़िया की उड़ान का वर्णन कविता कर सकती है, लेकिन कविता की उड़ान को चिड़िया नहीं जान सकती। इस प्रकार चिड़िया और कविता को एक-दूसरे से जोड़कर कविता की उड़ान को श्रेष्ठ सिद्ध किया गया है।

(ख) ‘कैमरे में बंद अपाहिज’ कविता के माध्यम से कवि कहता है कि मीडिया वाले समर्थ एवं सशक्त होते हैं। वे किसी की करुणा को भी खरीद-बेच सकते हैं। वे कमज़ोर एवं अशक्त व्यक्तियों को समाज के सामनेलाकर लोगों की सहानुभूति एवं आर्थिक लाभ लेना चाहते हैं। इससे उनकी लोकप्रियता एवं आय दोनों में वृद्धि होती है। इस कविता के माध्यम से कवि ने मीडिया के व्यावसायिक दृष्टिकोण एवं समाज के हाशिए पर खड़े लोगों के प्रति उनकी तुच्छ मनोवृत्ति को स्पष्ट करने का प्रयास किया है।

(ग) ‘बादल-राग’ कविता में कृषकों की दयनीय दशा का चित्रण किया गया है। उनकी आर्थिक दशा बुरी है और वे बेरोज़गार भी हैं। उनकी भुजाएँ कमज़ोर हैं। वे इतने कृशकाये हैं कि सिर्फ हड्डियों का ढाँचा नज़र आते हैं। अब वे बादलों के बरसने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, कृषकों की ऐसी दशा धनिकों के कारण है। धनिकों ने ही उनका रक्त-मांस चूसकर उन्हें दीन-हीन बना दिया है।

उत्तर 11.
(क) सफ़िया अपने भाइयों से मिलने लाहौर गई थी। वहाँ पर उसके भाइयों ने उसकी बहुत खातिरदारी की और दोस्तों ने भी उससे बहुत अधिक मुहब्बत दिखाई। इन सब में वह इतनी खो गई कि पंद्रह दिन किस प्रकार व्यतीत हो गए, उसे पता ही नहीं चला।

(ख) सफ़िया के सामने अब सबसे बड़ी समस्या थी बादामी कागज़ की पुड़िया में रखा सेर भर लाहौरी नमक, जिसे सिख बीबी ने मँगवाया था, लेकिन वह यह नहीं समझ पा रही थी कि उसे दिल्ली किस प्रकार ले जाए?

(ग) सफ़िया का भाई एक बहुत बड़ा पुलिस अफ़सर था। सफ़िया के पूछने पर नमक को सीमा पार ले जाने को उसने गैर-कानूनी बताया। साथ ही, यह भी कहा कि भारत में तो पाकिस्तान से भी अधिक नमक है।

(घ) अपने भाई के जवाब पर सफ़िया ने कहा कि वह किसी हिस्से की बात नहीं कर रही है। उसे तो केवल लाहौर का नमक चाहिए, क्योंकि उसकी माँ ने उससे यही मँगवाया है।

उत्तर 12.

(क) भक्तिन लेखिका के कार्यों में हर तरह से मदद करती थी। वह लेखिका के खान-पान, रहन-सहन इत्यादि का ध्यान रखती थी। वह उसकी पुस्तकों का भी ध्यान रखती थी और कभी-कभी छात्रावास के बच्चों की भी देखभाल कर लिया करती थी। वह लेखिका के इधर-उधर पड़े रुपयों को भी मटकी में सँभालकर रख देती थी। अतः वह लेखिका की सहायता के लिए छाया बनकर उसके साथ रहती थी।

(ख) बाज़ारुपन से तात्पर्य है-उपभोक्तावादी संस्कृति से प्रभावित भौतिकता प्रधान दृष्टि से बाह्य चमक-दमक एवं दिखावेपन को महत्त्व देना। जब माल बेचने वाले व्यर्थ की चीज़ों को आकर्षक बनाकर ग्राहकों को ठगते हैं तथा ग्राहक दिखावे के लिए अनावश्यक चीज़ों को खरीदते हैं, तो वहाँ बाज़ारुपन मौजूद रहता है। बाज़ारुपन के अंतर्गत छल, कपट एवं शोषणपूर्ण व्यवहार का प्रभाव अधिक रहता है, जो व्यक्ति बाज़ार से आवश्यकता की चीजें ही खरीदते हैं, वे ही बाज़ार को सार्थकता प्रदान करते हैं।

(ग) हाँ, पानी के गहराते संकट से निपटने के लिए आज का युवा वर्ग बहुत कुछ कर सकता है। वह गाँव-गाँव में नए तालाब खुदवा सकता है। वर्षा के पानी को संरक्षित करने के नए-नए उपाय खोज सकता है एवं विद्यमान प्रणालियों को सही ढंग से क्रियान्वित करा सकता है। वह घर-घर जाकर पानी के महत्त्व को समझाकर पानी की एक-एक बूंद का सदुपयोग करना | सिखा सकता है तथा जल संरक्षण के विभिन्न उपायों को सार्थक ढंग से लागू करवा सकता है।

(घ) महाभारत में ऐसा वर्णन आया है कि अपने मित्र कृष्ण के देहावसान के पश्चात् वृद्ध हो चुके अर्जुन एक बार डाकुओं से उनकी पत्नियों की रक्षा तो नहीं कर सके, पर वे हवा में तीर अवश्य चलाते रहे। यहाँ एक ओर तो अर्जुन के वृद्ध हो जाने के कारण श्रीकृष्ण की पत्नियों का डाकुओं से बचाव न हो पाने में करुण रस की अभिव्यक्ति हुई है, तो दूसरी ओर वृद्ध अर्जुन द्वारा लक्ष्य अर्थात् डाकुओं से दूर हवा में तीर चलाए जाने में हास्य रस की अभिव्यक्ति हुई है। अतः इसी दृश्य को करुण और हास्योत्पादक दोनों माना है।

(ङ) ‘नमक’ कहानी में सफ़िया के पुलिस अफ़सर भाई ने उससे कहा था, “आप अदीब ठहरीं और सभी अदीबों का दिमाग थोड़ा-सा ज़रूर ही घूमा हुआ होता है। इसके प्रत्युत्तर में सफ़िया ने प्रस्तुत वाक्य कहे। इसके माध्यम से वह यह कहना चाहती है कि साहित्यकार प्रेम, करुणा, उदारता, सहिष्णुता, मानवता एवं भाईचारे का संदेश देता है। अतः यदि सभी व्यक्ति अदीबों की तरह सोचते, तो इस दुनिया में घृणा, द्वेष, क्रोध, संघर्ष आदि नहीं रहते और प्रेम एवं भाईचारे से परिपूर्ण यह दुनिया मौजूदा स्थिति से अधिक बेहतर होती।

उत्तर 13.
कविता में से कविता निकलती है’-कहने से लेखक का आशय यह है कि एक विशेष काल अथवा विशेष क्षेत्र के काव्य हमेशा दूसरे काल अथवा क्षेत्र के काव्य को प्रभावित करते हैं। लेखक का यह कहना सत्य भी है, क्योंकि कई बार अलग-अलग भाषाओं अथवा देशों के काव्यों में काफ़ी समानताएँ देखने को मिलती हैं। उदाहरण के लिए, फ़ारसी शायर उमर खय्याम की रुबाइयों से भारतीय कवि हरिवंशराय बच्चन की काव्य-रचना ‘मधुशाला’ की समानता। ये दोनों रचनाएँ अलग-अलग देशों की तो हैं ही, साथ-ही अलग-अलग समय में भी लिखी गई हैं। ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ को आधार बनाकर आज भी पूरे विश्व में न जाने कितने साहित्य रचे जा रहे हैं। ‘अतीत में दबे पाँव’ के लेखक ने कविता की तरह वास्तुकला क्षेत्र में भी विभिन्न शैलियों की पुनःस्थापना की बात स्वीकारते हुए कहा है कि वास्तुकला में भी कोई प्रेरणा चेतन-अवचेतन ऐसे ही सफ़र करती होगी। लेखक का मानना है कि पाँच दशक पूर्व शायद काबूजिए ने मुअनजोदड़ो से प्रेरणा लेकर ही इतने व्यवस्थित ढंग से चंडीगढ़ शहर का निर्माण करवाया होगा, जहाँ मुअनजोदड़ो की तरह किसी भी घर का द्वार मुख्य सड़क पर न खुलकर सम्बद्ध गलियों में खुलता है। किसी भी घर में प्रवेश करने के लिए सबसे पहले सेक्टर के अंदर जाना पड़ता है और तब घरों के द्वारों से जुड़ी गलियों में पहुँचना पड़ता है। मैं लेखक के विचार से पूर्णतः सहमत हूँ, क्योंकि मेरा मानना है कि किसी भी काल की कलाएँ आने वाली पीढ़ियों के कलाकारों का मार्गदर्शन करती हैं। यही कारण है कि वर्तमान समय में निर्मित की गई कई इमारतों या अन्य संरचनाओं में भी न सिर्फ प्राचीन वास्तुकला की शैलियों को अपनाया जाता है, बल्कि निर्माण में अन्य राष्ट्रों की वास्तुकला की स्पष्ट छाप भी देखने को मिलती है।

उत्तर 14.
(क) ‘सिल्वर वैडिंग’ कहानी के माध्यम से लेखक यह कहना चाहता है कि आज का जीवन अर्थकेंद्रित यानी ‘धन आधारित हो गया है। आज पारिवारिक संबंध भी दाँव पर लगे हुए हैं इन संबंधों का टिकना भी आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है। जब तक आर्थिक स्थिति बेहतर रहती है, तब तक पारिवारिक रिश्तों में भी गर्माहट बनी रहती है, लेकिन यदि धन या पैसों का अभाव होने लगे, तो संबंधों में भी धीरे-धीरे खटास आने लगती है। यही स्थिति यशोधर पंत के परिवार की भी है। उनके परिवार वाले भी उनकी ऊपर की कमाई चाहते हैं, लेकिन यशोधर पंत सिद्धांतवादी व्यक्ति हैं और उन्होंने दूसरे तरीके से धन कमाने की कभी सोची भी नहीं थी। सिद्धांतों के कारण उन्होंने अपने कोटे का फ्लैट भी नहीं लिया था। इन सभी बातों से उनके बच्चे उनसे परेशान (खिन्न) रहते हैं। उनका बड़ा बेटा भूषण विज्ञापन कंपनी में हैं 1500 प्रतिमाह पर काम करता है। यशोधर बाबू और भूषण के बीच विचारों की गहरी खाई है और भूषण कभी भी किसी काम के बाद कह देता था कि पैसे मैं दे दूंगा। यह बात यशोधर बाबू के गले के नीचे कभी नहीं उतरी अर्थात् धन के कारण उनके परिवार में भी तनाव की स्थिति बनी रहती है। आधुनिक युग में धन का महत्त्व दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है।

(ख) ऐन एक संवेदनशील लड़की है। 13 वर्ष की उम्र में ही उसे दुःख बाँटने के लिए किसी साथी की आवश्यकता पड़ने लगी, परंतु अपने मन की बात किससे कहे? अब तक उसे ऐसा कोई मिला ही नहीं, जिससे वह अपने मन की बात कह सके। इसलिए उसने एक सुंदर तरीका ढूंढ निकाला। वह था उसके द्वारा अपनी प्यारी निर्जीव गुड़िया किट्टी को संबोधित कर डायरी लिखना। लोग ऐन को घमंडी और अक्खड़ समझते थे तथा सब लोग ऐन के प्रति उपदेशात्मक व्यवहार ही रखते थे। पीटर को वह अपना अच्छा दोस्त समझती थी तथा उसे प्यार भी करती थी, लेकिन पीटर ने कभी उसके मन में झाँकने की कोशिश ही नहीं की। सभी सवालों का हल ऐन ने डायरी लिखकर खोज निकाला। इससे ऐन का एकाकीपन भी दूर हो गया। यदि कोई ऐसा होता जो ऐन को उसके मन की गहराइयों तक समझ पाता, तो शायद ऐन को कभी डायरी लिखने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती, परंतु ऐसा नहीं हो सका। इसलिए ऐन ने अपनी निर्जीव गुड़िया किट्टी को ही अपना माध्यम बनाकर अपनी भावनाओं को डायरी में व्यक्त कर दिया।

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