CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 4 are part of CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi. Here we have given CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 4.

CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 4

Board CBSE
Class XII
Subject Hindi
Sample Paper Set Paper 4
Category CBSE Sample Papers

Students who are going to appear for CBSE Class 12 Examinations are advised to practice the CBSE sample papers given here which is designed as per the latest Syllabus and marking scheme as prescribed by the CBSE is given here. Paper 4 of Solved CBSE Sample Paper for Class 12 Hindi is given below with free PDF download solutions.

समय :3 घंटे
पूर्णांक : 100

सामान्य निर्देश

  • इस प्रश्न-पत्र के तीन खंड हैं-क, ख और ग।
  • तीनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
  • यथासंभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमशः दीजिए।

प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (15)

आज किसी भी व्यक्ति का सबसे अलग एक टापू की तरह जीना संभव नहीं रह गया है। मानव समाज में विभिन्न पंथों और विविध मत-मतांतरों के लोग साथ-साथ रह रहे हैं। ऐसे में यह अधिक ज़रूरी हो गया है कि लोग एक-दूसरे को जानें; उनकी ज़रूरतों को, उनकी इच्छाओं-आकांक्षाओं को समझें; उन्हें तुरजीह दें और उनके धार्मिक विश्वासों, पद्धतियों, अनुष्ठानों को सम्मान दें। भारत जैसे देश में यह और भी अधिक ज़रूरी है, क्योंकि यह देश किसी एक धर्म, मत या विचारधारा को नहीं है। स्वामी विवेकानंद इस बात को समझते थे और अपने आचार-विचार में वे अपने समय से बहुत आगे थे। उन्होंने धर्म को मनुष्य की सेवा के केंद्र में रखकर ही आध्यात्मिक चिंतन किया था। उन्होंने यह विद्रोही बयान दिया कि इस देश के तैंतीस करोड़ भूखे दरिद्र और कुपोषण के शिकार लोगों को देवी-देवताओं की तरह मंदिरों में स्थापित कर दिया जाए और मंदिरों से देवी देवताओं की मूर्तियों को हटा दिया जाए। उनका दृढ़ मत था कि विभिन्न धर्मों-संप्रदायों के बीच संवाद होना ही चाहिए। वे विभिन्न संप्रदायों की अनेकरूपता को जायज़ और स्वाभाविक मानते थे। स्वामी जी विभिन्न धार्मिक आस्थाओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने के पक्षधर थे और सभी को एक ही धर्म का अनुयायी बनाने के विरुद्ध थे। वे कहा कुरते थे–“यदि सभी मानव एक ही धर्म को मानने लगें, एक ही पूजा-पद्धति को अपना लें और एक-सी नैतिकता का अनुपालन करने लगें, तो यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात होगी, क्योंकि यह सुना हमारे धार्मिक और आध्यात्मिक विकास के लिए। प्राणघातक होगा तथा हमें हमारी सांस्कृतिक जड़ों से काट देगा।”

(क) प्रस्तुत गद्यांश के लिए एक उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ख) “टापू की तरह जीने से लेखक का क्या अभिप्राय है?
(ग) आशय स्पष्ट कीजिए “भारत जैसे देश में यह और भी अधिक ज़रूरी है।”
(घ) स्वामी विवेकानंद को अपने समय से बहुत आगे’ क्यों कहा गया है?
(ङ) स्वामी विवेकानंद ने ऐसा क्यों कहा कि विभिन्न धर्म संप्रदायों के बीच संवाद होना ही चाहिए?
(च) स्वामी जी के मत के अनुसार, सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति क्या होगी और क्यों?
(छ) गद्यांश के केंद्रीय भाव को लगभग 20 शब्दों में लिखिए।
(ज) निम्नलिखित शब्दों का संधि विच्छेद कीजिए धार्मिक, दुर्भाग्य, सांस्कृतिक, संप्रदाय

प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (1 × 5= 5)

मनमोहनी प्रकृति की जो गोद में बसा है।
सुख स्वर्ग-सा जहाँ है, वह देश कौन-सा है?
जिसके चरण निरंतर रत्नेश धो रहा है।
जिसका मुकुट हिमालय, वह देश कौन-सा है?
नदियाँ जहाँ सुधा की धारा बहा रही हैं।
सींचा हुआ सुलोना, वह देश कौन-सा है?
जिसके बड़े रसीले, फुल कंद, नाज, मेवे।
सूब अंग में सजे हैं, वह देश कौन-सा है?

जिसके सुगंध वाले, सुंदर प्रसून प्यारे।
दिन-रात हँस रहे हैं, वह देश कौन-सी है?
मैदान, गिरि, वृनों में, हरियालियाँ मुहकृतीं।
आनंदमय जहाँ है, वह देश कौन-सा है?
जिसकी अनंत नु से धूरती भरी पड़ी है।
संसार का शिरोमणि, वह देश कौन-सा है?
सबसे प्रथम जगत में जो सभ्य था यशस्वी।
जगदीश का दुलारा, वह देश कौन-सा है?

(क) मनमोहिनी प्रकृति की गोद में कौन-सा देश बसा हुआ है और वहाँ कैसा सुख प्राप्त होता है?
(ख) भारत की नदियों की क्या विशेषता है?
(ग) भारत के फूलों का स्वरूप कैसा है?
(घ) प्रस्तुत काव्यांश का केंद्रीय भाव लिखिए।
(ङ) आशय स्पष्ट कीजिए।
जिसकी अनंत वन से धरती भूरी पड़ी है।
संसार का शिरोमणि, वह देश कौन-सा है?

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर अनुच्छेद लिखिए

(क) युवा पीढ़ी और देश का भविष्य
(ख) मन के हारे हार है, मन के जीते जीत
(ग) बाढ़ की विभीषिका
(घ) मनोरंजन के आधुनिक साधन

प्रश्न 4.
अपने पसंदीदा कार्यक्रम की चर्चा करते हुए उस टी.वी. चैनल के निदेशक को पत्र लिखकर कार्यक्रम को और अधिक आकर्षक बनाने के लिए दो सुझाव दीजिए।
अथवा
प्राथमिक कक्षाओं में प्रवेश दिलाने में अभिभावकों को विशेष समस्या का सामना करना पड़ता है। राज्य के शिक्षा निदेशक को पत्र लिखकर इस समस्या के निदान के लिए आग्रह कीजिए।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए (1 × 5= 5)

(क) रेडियो समाचार की भाषा कैसी होनी चाहिए?
(घ) समाचार लेखन में शीर्षक कैसा होना चाहिए?
(ख) पीत पत्रकारिता के विषय में बताइए।
(ङ) भारत में सबसे पहली प्रिंटिंग प्रेस कब और कहाँ खोली गई?
(ग) बुलेटिन का क्या अर्थ है?

प्रश्न 6.
‘जननायक नेल्सन मंडेला’ विषय पर एक आलेख लिखिए।
अथवा
हाल ही में पढ़ी गई किसी पुस्तक की समीक्षा लिखिए।

प्रश्न 7.
‘छिनता बचपन’ अथवा ‘सबसे अधिक प्रदूषित शहर : दिल्ली में से किसी एक विषय पर फ़ीचर लेखन तैयार कीजिए।

प्रश्न 8.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 4= 8)

बात सीधी थी पर एक बार
भाषा के चक्कर में
ज़रा टेढ़ी फैंस गई।
उसे पाने की कोशिश में
भाषा को उलटा-पुलटा
तोड़ मरोड़ा

घुमाया-फिराया
कि बात या तो बने
या फिर भाषा से बाहर आए
लेकिन उससे भाषा के साथ-साथ
बात और भी पेचीदा होती चली गई।

(क) काव्यांश में उकेरे गए कथ्य और माध्यम के द्वंद्व को स्पष्ट कीजिए।
(ख) सटीक बात को अभिव्यक्त करने के लिए कवि ने क्या-क्या किया? इसका क्या परिणाम निकला?
(ग) ‘टेढी फँसना’, ‘पेचीदा होना’ विशिष्ट प्रयोग हैं। काव्यांश के संदर्भ में इसका आशय स्पष्ट कीजिए।
(घ) प्रस्तुत काव्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।

अथवा

कल्पना के रसायनों को पी
बीज गल गया नि:शेष;
शब्द के अंकुर फूटे,
पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष।

(क) ‘कल्पना के रसायनों’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
(ख) बीज के गल जाने के बाद उसका क्या हुआ? प्रस्तुत काव्यांश के आधार पर बताइए।
(ग) शब्दरूपी अंकुर समय के परिप्रेक्ष्य में किस प्रकार विकसित हुए?
(घ) “पल्लव-पुष्पों से नमित हुआ विशेष’ काव्य-पंक्ति से क्या तात्पर्य है?

प्रश्न 9.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 3 = 6)

जन्म से ही वे अपने साथ लाते हैं कपास
पृथ्वी घूमती हुई आती है उनके बेचैन पैरों के पास
जब वे दौड़ते हैं बेसुध ।
छतों को भी नरम बनाते हुए।
दिशाओं को मृदंग की तरह बृजाते हुए
जुब वे पेग भरते हुए चले आते हैं।
डाल की तरह लचीले वेग से अकसर

छतों के खतरनाक किनारों तक
उस समय गिरने से बचाता है उन्हें
सिर्फ उनके ही रोमांचित शरीर का संगीत
पतंगों की धड़कती ऊँचाइयाँ उन्हें थाम लेती हैं।
मुहज़ एक धागे के सहारे
पतंगों के साथ-साथ वे भी उड़ रहे हैं।
अपने रंध्रों के सहारे

(क) प्रस्तुत काव्यांश की भाषा संबंधी दो विशेषताएँ बताइए।
(ख) प्रस्तुत काव्यांश के दृश्य-सौंदर्य की चर्चा कीजिए।
(ग) प्रस्तुत काव्यांश के शिल्प-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।

अथवा

जागा निसिचर देखिअ कैसा।
कुंभकरन बूझा कहु भाई।
कथा कही सुबु तेहिं अभिमानी।
तात कुपिन्ह सब निसिचर मारे।
दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी।
अपर महोदर आदिक बीरा।

मानहुँ कालु देह धरि बैसा।
काहे तव मुख रहे सुखाई।
जेहि प्रकार सीता हरि आनी।
मुहा महा जोधा सुंघारे।
भुट अतिकाय अकंपनु भारी।
परे समर महि सब रनुधीरा।

दोहा
सुनि दसकंधर बचन तब कुंभकरन बिलखान।
जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान।।

(क) प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य अपने शब्दों में लिखिए।
(ख) काव्यांश में प्रयुक्त छंद को स्पष्ट कीजिए।
(ग) काव्यांश में प्रयुक्त अलंकारों के नाम बताइए।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए (3 × 2 = 6)

(क) ‘बादल-राग’ कविता में प्रकृति का मानवीकरण किस रूप में किया गया है? स्पष्ट कीजिए।
(ख) तुलसी के संकलित कवित्तों में चित्रित तत्कालीन आर्थिक विषमताओं पर टिप्पणी कीजिए।
(ग) फ़िराक गोरखपुरी की ‘गज़ल’ वियोग शृंगार से कैसे संबंधित है? स्पष्ट करें।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 4 = 8)

कहीं आप भूल न कर बैठिएगा। इन पंक्तियों को लिखने वाला मैं चूरन नहीं बेचता हूँ। जी नहीं, ऐसी हल्की बात भी न सोचिएगा। यह समझिएगा कि लेख के किसी भी मान्य पाठक से उस चूरन वाले को श्रेष्ठ बताने की मैं हिम्मत कर सकता हूँ। क्या जाने उस भोले आदमी को अक्षर-ज्ञानु तुक भी है या नहीं। और बड़ी बातें तो उसे मालूम क्या होंगी। और हम-आप न जाने कितनी बड़ी-बड़ी बातें जानते हैं। इससे यह तो हो सकता है कि वह चूरन वाला भगत हम लोगों के सामने एकदम्। नाचीज़ आदमी हो, लेकिन आप पाठकों की विद्वान् श्रेणी का सदस्य होकर भी मैं यह स्वीकार नहीं करना चाहता हूँ कि उस अपदार्थ प्राणी को वह प्राप्त है, जो हम में से बहुत कम को शायद प्राप्त है। उस पर बाज़ार का जादू वार नहीं कर पाता। माले बिछा रहता है और उसका मनु अडिग रहता है। पैसा उससे आगे होकर भीख तक माँगता है कि मुझे लो, लेकिन उसके मन में पैसे पर दया नहीं समाती। वृह निर्मम व्यक्ति पैसे को अपने आहत गर्व में बिलखता ही छोड़ देता है। ऐसे आदमी के आगे क्या पैसे की व्यंग्य-शक्ति कुछ भी चलती होगी? क्या वह शक्ति कुंठित रहकर सलज्ज ही न हो जाती होगी?

(क) विद्वानगण किस क्षेत्र में भगत जी से आगे हैं?
(ख) चूरन बेचने वाले भगत जी को लेखक अपने जैसे विद्वानों से भी श्रेष्ठ क्यों मानता है?
(ग) भगत जी के सम्मुख पैसे की क्या स्थिति है? स्पष्ट करें।
(घ) प्रस्तुत गद्यांश का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए (3 × 4 = 12)

(क) बेटों की माँ और बेटियों की माँ के प्रति परिवार के व्यवहार में क्या अंतर था? ‘भक्तिन’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
(ख) ‘बाज़ार दर्शन’ के लेखक के एक मित्र बाज़ार जाकर भी कुछ क्यों न खरीद सके?
(ग) ‘पानी दे गुड़धानी दे’ कहकर मेघों से पानी के साथ-साथ गुड़धानी की माँग क्यों की जा रही है?
(घ) लुट्टन पहलवान का बचपन कैसा था?
(ङ) बचपन की किन दो घटनाओं का चार्ली पर गहरा प्रभाव पड़ा था?

प्रश्न 13.
सिल्वर वैडिंग कहानी का प्रमुख पात्र वर्तमान में रहता है, किंतु अतीत को आदर्श मानता है। इससे उसके व्यवहार में क्या-क्या विरोधाभास दिखाई पड़ते हैं? स्पष्ट कीजिए। (5)

प्रश्न 14.
(क) ‘लेखक की माँ उसके पिता की आदतों से वाकिफ़ थी’-लेखक की माँ ने लेखक का साथ किस प्रकार दिया? (5)
(ख) ऐन फ्रैंक हॉलैंड की तत्कालीन दशा के बारे में अपनी डायरी में क्या बताती है? ‘डायरी के पन्ने पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (5)

उत्तर

उत्तर 1.
(क) प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक ‘अनेकता में एकता’, हो सकता है, क्योंकि संपूर्ण गद्यांश इसी अर्थ को व्यंजित करता है।

(ख) ‘टापू’ वह स्थल होता है, जिसके चारों ओर जलराशि होती है अर्थात् उसका संबंध स्थल से नहीं होता। जल मार्ग या वायु मार्ग से ही उस स्थल पर जाया जा सकता है। टापू की तरह जीने से अभिप्राय है-समाज से कटकर जीना यानी समाज से अलग-थलग रहना।

(ग) “भारत जैसे देश में यह और भी अधिक जरूरी है” से आशय यह है कि भारत जैसे देश में लोगों का एक साथ मिल-जुलकर रहना अधिक ज़रूरी हो गया है, क्योंकि यहाँ विभिन्न धर्मों एवं विचारधाराओं के लोग रहते हैं। अतः विभिन्न पंथों, मत-मतांतरों के लोग यदि एक साथ मिल-जुलकर नहीं रहेंगे, तो उन सभी का जीवन और अधिक कठिन हो जाएगा।

(घ) स्वामी विवेकानंद अपने समय से बहुत आगे थे, क्योंकि वे तत्कालीन संकीर्ण सामाजिक विचारधारा के विपरीत चिंतन करते हुए इस तथ्य में विश्वास करते थे कि सभी धर्मों, संप्रदायों, मतों के लोगों को अपनी संकीर्ण विचारधारा त्यागकर एक-दूसरे के साथ प्रेम एवं भाईचारे के साथ रहना चाहिए। वे विभिन्न धार्मिक आस्थाओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने के पक्षधर थे। स्वामी विवेकानंद का मानना था कि यदि समाज में विभिन्न धर्म संप्रदायों को मानने वाले लोग आपस में एक-दूसरे के साथ संवाद करेंगे तो विभिन्न संप्रदायों की अनेकरूपता से सभी धार्मिक आस्थाओं के लोगों के विचारों का पता चलेगा, जो धार्मिक व सांस्कृतिक दृष्टि से उपयुक्त व लाभकारी होगा। इसी कारण स्वामी जी विभिन्न धार्मिक आस्थाओं के बीच सामंजस्य स्थापित करने के पक्षधर थे।

(च) स्वामी विवेकानंद यह मानते थे कि यदि सभी लोग एक ही धर्म, एक ही मत को स्वीकार कर लें, सभी एक ही पूजा-पद्धति को अपना लें तथा एक जैसी नैतिकताओं को मानने लगें, तो यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति होगी, क्योंकि ऐसा करना हमारे धार्मिक एवं आध्यात्मिक विकास के लिए प्राणघातक होगा तथा भारतवासियों को उनकी सांस्कृतिक जड़ों से अलग कर देगा।

(छ) प्रस्तुत गद्यांश का केंद्रीय भाव यह है कि विभिन्न मतों को मानने वाले लोगों का एक-साथ रहकर उनकी जरूरतों, इच्छाओं, धार्मिक विश्वासों, अनुष्ठानों को समझना एवं उसका सम्मान करना अति आवश्यक है। स्वामी विवेकानंद जी सभी मनुष्यों को एक ही धर्म का अनुयायी बनाने के विरुद्ध थे, क्योंकि सभी का एक धर्म का अनुयायी होना हमारी सांस्कृतिक जड़ों को काट देना होगा।

(ज) धार्मिक – धर्म + इक,
दुर्भाग्य – दुः + भाग्य
सांस्कृतिक – संस्कृति + इक,
संप्रदाय – सम् + प्रदाय

उत्तर 2.
(क) मनमोहिनी प्रकृति की गोद में भारत देश बसा हुआ है और यहाँ स्वर्ग जैसा सुख प्राप्त होता है।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश के अनुसार, भारत की नदियों में अमृत की धारा प्रवाहित होती है। इन नदियों का जल लोगों को जीवन प्रदान करता है। इनसे अन्न देने वाली भूमि की सिंचाई होती है, इस कारण भारत की नदियों का जल अमृत है।

(ग) भारत में खिलने वाले फूल सुगंधों से भरपूर होते हैं और वे अत्यंत सुंदर एवं मनोहारी लगते हैं। वे खिलकर हँसते हुए प्रतीत होते हैं और यह दृश्य लोगों को आनंद प्रदान करता है।

(घ) प्रस्तुत काव्यांश का केंद्रीय भाव यह है कि भारत की भूमि पर विभिन्न पावन नदियाँ, मैदान, पर्वत व वन हैं, साथ ही यहाँ | भाँति-भाँति के कंदमूल, फल, मेवे और अन्न उपजते हैं। जिसके कारण यह भूमि सुंदर, सुगंधित पुष्पों से शोभायमान है। अर्थात् यहाँ स्वर्ग जैसा सुख प्राप्त होता है।

(ङ) प्रस्तुत पंक्तियों में भारत की पावन भूमि के विषय में बताया गया है। कवि प्रश्नवाचक शैली में पूछता है कि जो धरती वनों से पूर्ण रूप से भरी हुई है, संसार का ऐसा सर्वश्रेष्ठ देश कौन-सा है? स्पष्टतः वह सर्वश्रेष्ठ देश भारत है।

उत्तर 3.

(क) युवा पीढ़ी और देश का भविष्य

किसी भी देश की प्रगति में उस देश की युवा-शक्ति का योगदान सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। युवा पीढ़ी अपने समाज और राष्ट्र की रीढ़ होती है। देश का भविष्य युवा वर्ग पर ही निर्भर होता है, जो देश जितना अधिक युवा होगा, उसके विकास की संभावनाएँ उतनी ही बढ़ जाती हैं।

भारतवर्ष का सौभाग्य है कि वर्तमान समय में यह विश्व का सर्वाधिक युवा राष्ट्र है। इस समय भारत में युवाओं की संख्या चालीस करोड़ से भी अधिक है, जो इसकी कुल आबादी का लगभग 40% है। इसीलिए यदि भारत को एक युवा देश कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति न होगी।

इतिहास साक्षी है कि युवा पीढ़ी ने सदैव देश के उत्थान में अहम भूमिका निभाई है। युवा पीढ़ियों ने ही समय की धारा को मोड़ा है। संसार में जितने भी सुखद और क्रांतिकारी परिवर्तन हुए हैं, उन सभी का श्रेय युवाओं को ही जाता है। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भी भगतसिंह, राजगुरु, रानी लक्ष्मीबाई, चंद्रशेखर आज़ाद जैसे युवाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था और देश को पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त कराने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।

आज हर क्षेत्र में युवाओं ने अपनी पकड़ मज़बूत की है। फिर वह चाहे सॉफ्टवेयर उद्योग हो या स्वास्थ्य एवं औषधि का क्षेत्र, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी हो या खेलकूद, राजनीति हो या जन-कल्याण का क्षेत्र, युवा वर्ग हर क्षेत्र में सफलता पाने के लिए अथक परिश्रम कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि आज की युवा पीढ़ी केवल पैसे के पीछे अंधी होकर दौड़ रही है। भारतीय युवा पीढ़ी सजग, होशियार, सांस्कृतिक एवं नैतिक रूप से ज़िम्मेदार है। आज की युवा पीढ़ी आत्मनिर्भर, साहसी एवं कुशल श्रमशील शक्ति है। अतः यह स्पष्ट है कि युवा पीढ़ी देश की प्रगति में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही है और आगे भी देती रहेगी। युवा पीढ़ी किसी भी राष्ट्र का भविष्य और भावी उत्तराधिकारी होती है।

(ख) मुन के हारे हार है, मुन के जीते जीत

चिंतन करना मनुष्य की पहचान है। इस चिंतन का संबंध मनन से है, जो मन की शक्ति के रूप में निहित होता है। मन के जुड़ने से अत्यधिक असंभव से लगने वाले कार्य भी सरलता से संपन्न हो जाते हैं और मन के टूटने से बड़े-बड़े संकल्प भी धराशायी हो जाते हैं।

संकल्पशक्ति वह अचूक हथियार है, जिससे विशाल सशस्त्र सेना को भी आसानी से पराजित किया जा सकता है। संकल्पशक्ति इतनी शक्तिशाली एवं प्रभावपूर्ण होती है कि सामने वाला अपने सभी अस्त्र-शस्त्र लिए हुए निरुत्तर रह जाता है।

असफलताएँ जीवन प्रक्रिया का एक स्वाभाविक अंग होती हैं। दुनिया का कोई भी ऐसा व्यक्ति नहीं हो सकता, जिसने असफलता का स्वाद न चखा हो, लेकिन महान् सिर्फ वही व्यक्ति बनते हैं, जो अपनी असफलताओं को सफलता प्राप्त करने की प्रक्रिया का एक अनिवार्य हिस्सा बना लेते हैं। असफलताओं से घबराए बिना वे तब तक अपनी लक्ष्य प्राप्ति के लिए ईमानदारीपूर्वक प्रयत्न करते रहते हैं, जब तक वास्तव में सफलता मिल नहीं जाती। वे कभी भी मन से हार नहीं मानते। इसी का नतीजा एक दिन उनकी सफलता के रूप में सामने आता है। ऐसे व्यक्ति ही महान् कार्यों को संपादित करते हैं और विश्वप्रसिद्ध होते हैं। दूसरी ओर अधिकांश व्यक्ति अपनी असफलताओं से घबराकर निराश हो जाते हैं। उन्हें अपनी क्षमताओं पर विश्वास नहीं रहता और वे मन से हार को स्वीकार कर लेते हैं।

मन अनंत शक्ति का स्रोत है, उसे हीन भावना से बचाए रखना अत्यंत आवश्यक है। मन की अपरिमित शक्ति को भूले बिना अपनी क्षमताओं में विश्वास रखना ही सफलता की मूल कुंजी है। यह सच है कि जीवन में अनेक अवसर ऐसे आते हैं, जब परिणाम हमारी आशानुकूल नहीं मिलते। कई बार हमें असफलताएँ भी प्राप्त होती हैं, लेकिन उन असफलताओं से घबराकर हमें निराश नहीं होना चाहिए। अपने मन को छोटा नहीं करना चाहिए।

जब एक बार हम मन से स्वयं को पराजित मान लेते हैं, तो कहानी यहीं पर समाप्त हो जाती है। इसलिए कहा जाता है कि मन का हारना ही वास्तविक हार है। अपनी क्षमताओं में विश्वास का अभाव व्यक्ति को मानसिक रूप से अशक्त बना देता है और मानसिक दुर्बलता सर्वशक्ति संपन्नता के बावजूद व्यक्ति को असफलता की राह पर धकेल देती है। इसलिए मन को सुदृढ़ बनाना एवं उसे सफलता प्राप्ति के प्रति आश्वस्त बनाए रखना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए आवश्यक है।

(ग) बाढ़ की विभीषिका

चारों ओर जल प्रलय का दृश्य और उसमें डूबे खेत-खलिहान, मरे हुए मवेशियों की डूबती-तैरती लाशें, अपनी जान बचाने की कोशिश में सुरक्षित स्थान की तलाश के लिए पानी के बीच दौड़ते-भागते लोग, ये सभी दृश्य बाढ़ की विभीषिका को दर्शाते हैं। विभीषिका का सामान्य अर्थ अत्यधिक विनाश तथा मानव जीवन की प्रतिकूल दिखाई देने वाली स्थिति, घटना या क्रिया से लगाया जा सकता है। बाढ़ एक ऐसी ही प्राकृतिक आपदा है, जो अपने विकराल रूप में विभीषिका बनकर आती है और अपने प्रभाव से सामान्य जन-जीवन को अस्त-व्यस्त कर देती है।

बाढ़ की विभीषिका का दृश्य अत्यंत भयावह होता है, चारों तरफ़ अफ़रा-तफ़री का माहौल बन जाता है, लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भागते और सुरक्षित स्थानों की तलाश करते नज़र आते हैं, चारों ओर चीख-पुकार मच जाती है। बाढ़ से जन-धन की बड़ी हानि होती है, सड़कें टूट जाती हैं, रेलमार्ग अवरुद्ध हो जाते हैं, जिससे यातायात एवं परिवहन बाधित हो जाता है और जन-जीवन ठप हो जाता है। इस बाढ़ के कारण प्रभावित लोगों के पुनर्वास की समस्या, संपत्ति के नुकसान की भरपाई में लगने वाला लंबा समय, प्रत्यक्ष एवं प्रच्छन्न बेरोज़गारी की समस्या आदि बाढ़ के प्रभाव से जन्म लेती हैं। भारत में प्रत्येक राज्य इस आपदा से प्रभावित है, लेकिन बिहार इस आपदा से सर्वाधिक प्रभावित राज्य है, जहाँ प्रतिवर्ष अपार धन-जन की हानि होती है। अब तक सुझाए गए बचाव के स्थायी उपायों में सबसे प्रभावी उपाय राष्ट्रीय स्तर पर सभी नदियों को एक-दूसरे से जोड़ने का है, जिससे उनके जलस्तर में असमान वृद्धि न हो। वह दिन हमारे लिए वास्तविक उपलब्धि का दिन होगा, जिस दिन हम इस राष्ट्रीय आपदा का स्थायी समाधान ढूंढ लेंगे।

(घ) मनोरंजन के आधुनिक साधन

मनुष्य एक उद्यमी जीव है। वह सदैव किसी-न-किसी गतिविधि में लिप्त रहता है। इस प्रकार लगातार श्रम करने से तन के साथ-साथ मन भी थकान से ग्रस्त हो जाता है, क्योंकि मानव-मन सदैव चंचल रहता है, स्थिरता उसका स्वभाव नहीं है। ऐसे समय में मन की शिथिलता तथा एकरसता को दूर करने के लिए किसी तरह के मनोरंजन की आवश्यकता पड़ती है। मनोरंजन का अर्थ है-ऐसा कार्य, जिसमें मन का रंजन होता हो। अतः मनोरंजन के साधन ऐसे होने चाहिए, जो जीवन की एकरसता तोड़कर उसमें नवीन उत्साह का संचार कर सकें।

एक समय था, जब लोग मनोरंजन के लिए शिकार आदि खेला करते थे, परंतु आज हर वर्ग के लिए अलग-अलग प्रकार के मनोरंजन के साधन बाज़ार में उपलब्ध हैं, जिनका लुत्फ़ सभी अपनी सुविधानुसार तथा पसंद के अनुसार उठाते हैं।

टेलीविज़न वर्तमान समय में मनोरंजन का सर्व-सुलभ तथा सबसे सस्ता साधन है-टेलीविज़न। इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि इस पर हर आयु वर्ग के लोगों के लिए सामग्री मौजूद है। बच्चे, बूढ़े, स्त्री, पुरुष आदि अपने-अपने पसंदीदा कार्यक्रम टेलीविज़न पर देख और सुन सकते हैं।

रेडियो यद्यपि रेडियो मनोरंजन का बहुत प्राचीन साधन है, किंतु जब से एफ.एम चैनलों का पदार्पण भारत में हुआ है, तब से रेडियो की उपयोगिता और भी बढ़ गई है। रेडियो मिर्ची, रेड एफ.एम, रेडियो सिटी, एफ.एम गोल्ड इत्यादि चर्चित एफ.एम स्टेशन हैं, जो श्रोताओं का भरपूर मनोरंजन करते हैं।

इंटरनेट आधुनिक मनोरंजन के साधनों में कंप्यूटर तथा इंटरनेट नवीनतम एवं उल्लेखनीय साधन हैं। इससे आप टेलीविज़न और रेडियो दोनों का काम ले सकते हैं, गेम्स खेल सकते हैं तथा समूचे विश्व में कहीं से भी और किसी से भी आसानी से संपर्क स्थापित कर सकते हैं।

सिनेमा बात मनोरंजन के आधुनिक साधनों की हो या पुराने साधनों की, यह सिनेमा के बिना अधूरी है। एक व्यक्ति तनावपूर्ण वातावरण से निकलने एवं अपने शुद्ध मनोरंजन के लिए, आज भी सिनेमा को प्राथमिकता देता है।

अतः यह स्पष्ट है कि आधुनिक युग में हमारे पास मनोरंजन के साधनों की भरमार है, जो हमें स्फूर्ति तथा गतिशीलता प्रदान करते हैं, परंतु हमें यह स्मरण रखना चाहिए कि इनका आवश्यकतानुसार ही उपयोग किया जाए अन्यथा ये हमें अपने लक्ष्यों से भटका देते हैं।

उत्तर 4.

परीक्षा भवन,
दिल्ली।

दिनांक 25 अक्टूबर, 20XX

सेवा में,
निदेशक महोदय,
दूरदर्शन केंद्र,
दिल्ली।

विषय टी.वी. चैनल पर दिखाए जाने वाले कार्यक्रम को आकर्षक बनाने हेतु सुझाव।

महोदय,

मैं एक दर्शक के नाते अत्यंत प्रसन्नता के साथ यह लिख रहा हूँ कि मुझे आपके चैनल द्वारा प्रसारित होने वाले अनेक कार्यक्रम पसंद हैं। उन कार्यक्रमों में से ‘विज्ञान-प्रश्नोत्तरी’ (साइंस-क्विज़) विशेष रूप से पसंद है। यह कार्यक्रम जहाँ ज्ञानवर्द्धक एवं जिज्ञासावर्द्धक है, वहीं भरपूर रोचक भी है। विभिन्न संस्थाओं के छात्र-छात्राओं का भाग लेना, जनता द्वारा कार्यक्रम में हिस्सा लेना, योग्य प्रोफेसरों द्वारा मार्गदर्शन देना आदि अत्यंत प्रभावित करता है। इस प्रकार के कार्यक्रमों को देखकर मेरी तथा मेरे जैसे अनेक विद्यार्थियों की विज्ञान में रुचि बढ़ी है। इससे हमारी अनेक समस्याओं का समाधान भी निकला है। मेरी आपसे प्रार्थना है कि इस कार्यक्रम को न केवल जारी रखें, अपितु और अधिक रोचक बनाने का भी प्रयास करें। इस विषय में मेरे दो सुझाव हैं।

  1. यह कार्यक्रम साप्ताहिक के स्थान पर दैनिक होना चाहिए।
  2. स्कूलों में आयोजित प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिताओं के अंश भी दिखाए जाने से कार्यक्रम अधिक रुचिकर बन सकता है।

धन्यवाद!

भवदीय
क.ख.गे.

अथवा

परीक्षा भवन, दिल्ली।

दिनांक 12 सितंबर, 20XX

सेवा में,
शिक्षा निदेशक,
लखनऊ।

विषय प्राथमिक कक्षाओं में प्रवेश की समस्या हेतु।

महोदय,

निवेदन यह है कि मैं लखनऊ के अशोक विहार इलाके का निवासी हूँ और मुझे अपने छोटे भाई का प्राथमिक कक्षा में प्रवेश करवाना है। मेरे घर के पास ही जिंदल पब्लिक स्कूल है, जिसमें मैं उसे प्रवेश दिलाना चाहता हूँ, परंतु स्कूल के प्रबंधकं प्रवेश के लिए मोटी दान-राशि माँगते हैं, जिसे देना मेरे परिवार के लिए कठिन है। मेरा आपसे निवेदन है कि स्कूल के संचालकों को निर्देश दें कि वे अपने आस-पास के निवासियों को प्रवेश के लिए प्राथमिकता दें। यदि दान-राशि देने का कोई नियम हो, तो मुझे बताएँ। यदि नहीं है, तो इस मामले की जाँच करें या कोई अन्य कार्यवाही करें, ताकि मुझे और मेरे जैसे अन्य लोगों को न्याय मिल सके।
आशा है कि आप इस दिशा में शीघ्र ही कदम उठाएँगे।

धन्यवाद!
भवदीय
क.ख.ग.

उत्तर 5.
(क) रेडियो समाचार की भाषा व्याकरण शुद्धि की अपेक्षा उच्चारण और श्रवण की शुद्धि से युक्त तथा समाचार के क्रम पर अधिक केंद्रित होनी चाहिए।

(ख) पीत पत्रकारिता में सनसनी फैलाने के लिए अफ़वाहों, व्यक्तिगत आरोप-प्रत्यारोपों आदि को अधिक महत्त्व देकर प्रकाशित किया जाता है। इस कारण इसे सनसनीखेज़ पत्रकारिता भी कहते हैं। यह पत्रकारिता स्तरीय पत्रकारिता की श्रेणी में नहीं आती, क्योंकि इससे मीडिया की विश्वसनीयता प्रभावित होती है।

(ग) टेलीविज़न, रेडियो (ब्रोडकास्टिंग मीडिया) अथवा समाचार-पत्रों द्वारा ताज़ातरीन खबरों पर संक्षिप्त रूप में जारी की गई अद्यतन रिपोर्ट को बुलेटिन कहते हैं। इसके अंतर्गत लोकहित मामलों से संबद्ध कार्यालयी सूचनाओं को विशेष महत्त्व दिया जाता है।

(घ) शीर्षक समाचार का प्रवेश द्वार’ माना जाता है। अतः समाचार लेखन में इसे संक्षिप्त, सार्थक, सरल व स्पष्ट रूप में लिखा जाना चाहिए। शीर्षक में संबद्ध समाचार का मूल भाव समाहित होने के साथ-साथ पाठक को आकर्षित करने की क्षमता भी होनी चाहिए, ताकि लोग बलपूर्वक उस समाचार को पढ़ने लगें।

(ङ) भारत में सबसे पहली प्रिंटिंग प्रेस 1556 ई. में गोवा में खोली गई। इस प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना मिशनरियों ने धर्म प्रचार संबंधी पुस्तकें छापने के लिए की थी।

उत्तर 6.

जननायक नेल्सन मंडेला

जननायक नेल्सन मंडेला एक दक्षिण अफ्रीकी कबीलाई परिवार में पैदा हुए थे। एक स्थानीय शाही घराने से संबद्ध उनके पिता एक प्रभावशाली मुखिया थे। परिवार ने मंडेला में शाही घराने का उत्तराधिकारी देखा। उनकी शुरुआती रुचियों एवं गतिविधियों को देखते हुए उन्हें ‘रोलिहल्हाला’ नाम दिया गया, जिसका अर्थ होता है-‘आग लगाने वाला या झगड़ा करने वाला।

मंडेला ने अपनी विरासत की वास्तविकता को पहचानने में देर नहीं की। उन्होंने अपनी आत्मकथा में लिखा है-”निःसंदेह मेरा रिश्ता शाही परिवार से था, लेकिन श्वेत सरकार के असहानुभूतिपूर्ण व्यवहार एवं कठोर नियंत्रण के कारण मैं शासक वर्ग का हिस्सा नहीं था।” अंततः मंडेला आग लगाने वाले की बजाय मशाल जलाने वाले, दुनिया को रोशनी दिखाने वाले बने।

दक्षिण अफ्रीका में यह वास्तविकता थी कि अफ्रीकी होने का अर्थ जन्म से ही व्यक्ति का राजनीति के रंग में रंग जाना था। एक अफ्रीकी बच्चा केवल अफ्रीकी अस्पताल में ही जन्म लेता है, उसे केवल अफ्रीकी बस से ही ले जाया जाता है, वह केवल अफ्रीकी इलाके में ही रहता है और अफ्रीकियों के लिए तय किसी स्कूल में ही पढ़ता है। भेदभाव की यह हदबंदी कामकाज, रिहाइश से लेकर ट्रेनों-बसों तक में लागू थी, जिससे बचने का कोई रास्ता नहीं था। मंडेला ने समझ लिया कि जब समस्या सामने हो, तो उससे मुँह मोड़ना सफलता की ओर कतई नहीं ले जा सकता। उन्हीं के शब्दों में-”हज़ारों बार अपने हज़ारों भाइयों के अपमानों को देखने के कारण मुझमें क्रोध भरता गया। कह नहीं सकता कि कब मैंने फैसला किया कि मैं अपने लोगों की आज़ादी के लिए खुद को समर्पित करता हूँ।” यह संकल्प मंडेला को अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस की ओर ले गया। मंडेला ने अपने जीवन के सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण 27 वर्ष जेल में काटे और अंततः वर्ष 1990 में उनकी रिहाई की घोषणा हुई।

27 अप्रैल, 1994 को दक्षिण अफ्रीका में सार्वभौमिक बालिग मताधिकार के आधार पर संपन्न चुनाव में अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस भारी बहुमत से सत्ता में आई और डॉ. नेल्सन मंडेला राष्ट्रपति पद पर प्रतिष्ठित हो गए। राष्ट्रपति पद से मुक्त होकर वर्ष 1999 से वे अपने देश के मार्गदर्शक बने रहे और अंततः 5 दिसंबर, 2013 को लंबी बीमारी के बाद इस महान् जननायक ने हमेशा के लिए अपनी आँखें मूंद लीं। नेल्सन मंडेला बेशक अफ्रीकी जनता की आज़ादी के लिए संघर्ष कर रहे थे, मगर महात्मा गाँधी की तरह उनका चरम लक्ष्य समूची मानवता की आज़ादी से संबंधित था।

अथवा

कथा-सम्राट प्रेमचंद के उपन्यास ‘गोदान’ की समीक्षा

कथा-सम्राट प्रेमचंद की कालजयी कृति ‘गोदान’ एक महाकाव्यात्मक उपन्यास है, जो टॉलस्टाय के युद्ध और शांति’ उपन्यास के समकक्ष है। इसके विशाल फलक, बहुसंख्यक चरित्र, व्यापक परिवेश, यथार्थवादी दृष्टिकोण, दार्शनिकता आदि मिलकर एक ऐसी रचना का निर्माण करते हैं, जो समूचे युग का प्रतिनिधित्व करती है।

‘गोदान’ भारतीय गाँव की त्रासदी की कथा है, जिसके अंतर्गत किसानों का वर्णन किया गया है। ये किसान खेती द्वारा अपनी मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ थे। अपनी इन्हीं मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति करने हेतु वे खेती छोड़कर मजदूर बन गए। उपन्यास के विशाल फलक में गाँव का अंतर्विरोध भी शामिल है। ‘गोदान’ का नायक होरी भीरु है, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर मि. खान को चारों खाने चित्त कर देता है। वह झूठ बोलकर अपने भाई के पैसे दबाना चाहता है, लेकिन समय आने पर अपने भाई की ‘मरजाद’ की रक्षा के लिए पैसा भी उधार लेता है। उसका भाई होरी का अदब भी करता है और दूसरी ओर उसकी गाय को ज़हर भी देता है।

इन सबके बावजूद गाँव का होरी शिकस्त खा गया। होरी गोदान करने की अपनी छोटी-सी इच्छा भी पूरी न कर सका। घर-द्वार, ज़मीन-जायदाद के साथ वह स्वयं भी चल बसा, परंतु इस ध्वंस के भीतर कुछ सृजन भी होता है। किसानों से संभवतः कुछ होने वाला नहीं है। जो कुछ होगा, गोबर से होगा यानी मज़दूर से होगा, नई पीढ़ी से होगा। गाँव के भीतर के गाँव (लाला परमेश्वरी, पं. दातादीन, झिंगुरी सिंह, दुलारी सहुआइन आदि) को ध्वस्त करने की शक्ति उसी में है। ‘गोदान’ एक ओर देशकाल से संबद्ध है, तो दूसरी ओर मानवीय संवेदना से। बीस आने का गोदान देकर मरा हुआ होरी अपनी संपूर्ण बेबसी, गरीबी में जीवित रह जाता है।

सरल, सहज एवं प्रभावोत्पादक भाषा में लिखे गए इस उपन्यास को प्रत्येक पाठक को एक बार अवश्य पढ़ना चाहिए। यह कालजयी कृति अपने युग को न केवल प्रतिबिंबित करती है, बल्कि मानव-हृदय में एक जलती हुई संवेदना छोड़ जाती है कि क्या मानव की नियति यही है?

उत्तर 7.

छिनता बचपन

मेट्रो में एक महिला अपने एक डेढ़ साल के बच्चे के साथ सफ़र कर रही थी कि अचानक बच्चा रोने लगा। हर माँ की तरह उस महिला ने भी लोरी गाकर अपने बच्चे को चुप कराने की सफल कोशिश की। वह लोरी, जिसे सुनकर बच्चा चुप हो गया था, कोई दुलार भरा गीत या कोई कहानी रूपी गाना नहीं था। लोरी थी ए…बी…सी…डी…इ…एफ…एक्स…वाई…जेड।

बच्चा रो रहा था, यह ‘लोरी’ सुनकर चुप हो गया। संभवतः यह बात बच्चे की माँ के लिए यहीं खत्म हो गई। लेकिन क्या वास्तव में बात यहीं समाप्त हो जाती है? शायद नहीं। उक्त महिला के बारे में यह कहना अनुचित न होगा कि यदि उसका बच्चा पहली बार माँ-पापा जैसे स्वाभाविक शब्दों का उच्चारण करने के स्थान पर, पहला शब्द ए…..बी…कहे, तो उसे अधिक प्रसन्नता होगी।

बहुत सारे व्यक्तियों को यह साधारण-सी घटना लग सकती है, लेकिन यह एक विचार करने योग्य विषय है। इस घटना से आज के अभिभावकों की चिंता और आकांक्षाएँ मुखरित होती हैं। आजकल माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे जल्द-से-जल्द पढ़ना सीख जाएँ और पढ़ाई की प्रतिस्पर्धा में दूसरों से आगे रहें। वे बचपन से अपने बच्चों को यह भी अच्छी तरह से समझा देना चाहते हैं कि भले ही अपनी मातृभाषा ठीक से बोलनी न आए, पर अंग्रेज़ी में तुम्हें हर हाल में पारंगत होना ही होगा।

कुछ लोग कह सकते हैं कि प्रस्तुत घटना के आधार पर इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा जा सकता। हो सकता है कि बच्चे को अंग्रेज़ी वर्णमाला का सुर में गाया जाना अच्छा लगा हो, जिसे सुनकर वह चुप हो गया, लेकिन हम बात यह नहीं कर रहे हैं कि लोरी क्या होनी चाहिए, बल्कि हम बात लोरी के विषय की कर रहे हैं। आखिर एक विदेशी भाषा की वर्णमाला को लोरी की तरह गाकर सुनाने के पीछे क्या मानसिकता हो सकती है? और फिर इस तथ्य से इनकार नहीं किया जा सकता कि बालक द्वारा देखी गई अथवा सुनी गई हर बात उसके संज्ञान को प्रभावित अवश्य करती है, चाहे वह उसे समझ में आए या न आए।

अभिभावकों की यही चिंता भविष्य में बड़ा रूप ले लेती है और इसका खामियाजा अकसर उनके बच्चों को उठाना पड़ता है। इसीलिए अभिभावकों को चाहिए कि अपने बच्चों को स्वाभाविक रूप से बड़े होने का अवसर दें, उनसे उनका बचपन न छीनें।

अथवा

सबसे अधिक प्रदूषित शहर: दिल्ली

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की ओर से कराए गए एक नवीनतम अध्ययन में कहा गया है कि दिल्ली दुनिया का सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहर है। ‘एंबिएंट एयर पॉल्यूशन’ नामक इस रिपोर्ट में 91 देशों के करीब 1600 शहरों में वायु प्रदूषण की स्थिति का ब्यौरा दिया गया है। राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण का स्वरूप 2.5 माइक्रोंस से कम, पीएम 2.5 सघनता के तहत आता है, जो सबसे गंभीर माना जाता है। ‘सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरनमेंट’ ने कहा कि डब्ल्यूएचओ का नया विवरण भारत में स्वास्थ्य संबंधी उसकी चिंताओं की पुष्टि करता है। बीमारियों से जुड़े वैश्विक आँकड़ों के अनुसार, भारत में वायु प्रदूषण मृत्यु का पाँचवाँ सबसे बड़ा कारण है। केंद्र सरकार की संस्था ‘सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड रिसर्च’ के अनुसार, दिल्ली में वायु प्रदूषण का स्तर मानक से तीन से पाँच गुना अधिक है।

देश के सबसे ज़्यादा आबादी वाले महानगरों में से एक, दिल्ली में साँस लेना भी ख़तरनाक है और यहाँ प्रदूषण लगातार बढ़ता जा रहा है। इस मामले में मुंबई जैसा महानगर भी दिल्ली के मुकाबले ज्यादा सुरक्षित है। इस अध्ययन से पता चलता है कि थार रेगिस्तान से आने वाली हवा भी दिल्ली की आबोहवा को प्रदूषित करने का एक अहम कारण है, लेकिन इसके लिए स्थानीय कारक भी कम ज़िम्मेदार नहीं हैं। राजधानी में समस्या सिर्फ वायु प्रदूषण तक सीमित नहीं है। यहाँ तय मानक से कई गुना ज़्यादा ध्वनि प्रदूषण भी है। इससे लोगों में उच्च रक्तचाप की बीमारी बढ़ रही है और उनकी सुनने की क्षमता प्रभावित हो रही है। बुजुर्गों को अनिद्रा की समस्या का सामना करना पड़ रहा है। यहाँ बाहरी रिंग रोड पर भारी व हल्के वाहनों के घंटों ज़ाम रहने की वज़ह से बढ़ रहा ध्वनि प्रदूषण भी लोगों को बीमार कर रहा है। स्थानीय लोगों ने यह मुद्दा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के समक्ष भी उठाया है। याचिका में बाहरी रिंग रोड पर ध्वनि अवरोधक लगाए जाने का सुझाव दिया गया था, लेकिन प्रदूषण नियंत्रण कमेटी की सहमति के बावजूद धन की कमी के बहाने इसे रोक दिया गया।

दुनिया के दो सबसे प्रदूषित शहरों बीजिंग और दिल्ली में प्रदूषण पर लगाम लगाने की योजना लगभग एक साथ ही बनी थी। यदि सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट की माने, तो वर्ष 2008 से 2014 के दौरान बीजिंग ने इस दिशा में दिल्ली की तुलना में कहीं बेहतर प्रयास किए। वहाँ हालात सुधर रहे हैं, जबकि दिल्ली में बदतर होते जा रहे हैं। वहाँ गाड़ियों की बिक्री सीमित की गई है, लोगों को लॉटरी के जरिए गाड़ियाँ मिलती हैं। यदि किसी दिन प्रदूषण का स्तर अधिक होता है, तो लोगों से घर के अंदर रहने की अपील की जाती है। वहाँ पर डीज़ल कारों का पंजीकरण बंद कर दिया गया है। इसकी तुलना में हमारे यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा।

उत्तर 8.
(क) प्रस्तुत काव्यांश में कथ्य और माध्यम के द्वंद्व को उकेरा गया है। यहाँ कथ्य का माध्यम निश्चय ही भाषा है। भाषा के चक्कर में पड़कर कवि की सीधी-सी बात भी अस्पष्ट हो गई है। कवि ने उसे सहज और भाव अभिव्यक्ति के योग्य बनाने का अथक प्रयास भी किया है, मगर भाषा के साथ-साथ बात और भी जटिल तथा निरुद्देश्य होती चली गई।

(ख) सटीक बात को अभिव्यक्त करने के लिए कवि ने भाषा को उलट-पलटा, घुमाया, तोड़-मरोड़ा। वह चाहता था कि बात या तो बन जाए या भाषा के चक्कर से पूरी तरह बाहर निकल आए, लेकिन बात भाषा के चक्कर में और पेचीदा होती चली गई।

(ग) बात के ‘टेढ़ी हँसने’ का अर्थ है-उसका उलझ जाना और पेचीदा होने से आशय है-बात को समझ में न आना। कवि द्वारा उचित एवं सरल भाषा न चुनने के कारण बात टेढ़ी फैंस गई यानी उलझ गई और अस्पष्ट होती चली गई।

(घ) प्रस्तुत काव्यांश का मूल भाव यह है कि भाषा को जान-बूझकर जटिल नहीं बनाना चाहिए। सहज बात को सरल शब्दों में | अभिव्यक्त करने से वह अधिक प्रभावी ढंग से संप्रेषित होती है। अधिक जटिलता या कृत्रिम भाषा-सौंदर्य अर्थ की अभिव्यक्ति में बाधक बन जाता है।

अथवा

(क) ‘कल्पना के रसायनों में कवि ने रूपक अलंकार का प्रयोग करते हुए इसके माध्यम से यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि जिस प्रकार खेत में उगी फ़सल को विकसित करने हेतु रसायनों की आवश्यकता होती है, वैसे ही सुंदर एवं समृद्ध साहित्य की रचना के लिए ‘कल्पना’ रसायन का कार्य करती है।

(ख) बीज के गल जाने के बाद उससे शब्दरूपी अंकुर फूटे अर्थात् कवि के मनोभावों ने कविता के शब्दों का रूप ले लिया। इस प्रक्रिया में शब्द अर्थात् बीज का अस्तित्व ही समाप्त हो गया।

(ग) शब्दरूपी अंकुर, समय के परिप्रेक्ष्य में और अधिक भाव समृद्ध होकर, कृतिरूपी फ़सल के रूप में विकसित होकर दिखाई पड़ने लगे अर्थात् कवि के मनोभावों से फूटे शब्दों ने साहित्य-रचना का रूप ग्रहण कर लिया।

(घ) कविता जब भावरूपी पत्रों और पुष्पों से लद जाती है, तब उसमें एक विशेष झुकाव आ जाता है। यह विशेष झुकाव समर्पण का प्रतीक है। इसी अर्थ को कवि ने ‘पल्लव पुष्पों से नमित हुआ विशेष’ कहकर अभिव्यक्त किया है।

उत्तर 9.
(क) प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने साहित्यिक खड़ीबोली का काव्य-भाषा के रूप में प्रयोग किया है, जिसमें तत्सम एवं उर्दू शब्दों की प्रमुखता है। काव्यांश की भाषा बिंब प्रधान है, जिसमें दृश्य बिंबों की प्रचुरता है।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश में खेलते हुए बेसुध बच्चे दौड़ते, आवाजें करते, डाल की तरह शरीर को लहराते, उड़ती पतंगों को देखते, उनकी डोरियों को थामे हुए विभिन्न दृश्य बिंबों के द्वारा वर्णित हैं। पेंग भरते हुए बच्चों का चले आना झूले के दृश्य बिंब को पाठक के सम्मुख साकार कर देता है।

(ग) बच्चों के उत्साह एवं अक्षय ऊर्जा को अभिव्यक्त करने के लिए पेंग भरते हुए’, ‘डाल की तरह लचीले वेग’, ‘रोमांचित शरीर का संगीत’, ‘बेचैन पैर’ आदि का प्रयोग अत्यंत सार्थक एवं प्रभावी चित्र के रूप में किया गया है। उपमाओं के सूक्ष्म एवं मनोरम प्रयोग समूची बिंब योजना में दर्शनीय है; जैसे-दिशाओं को मृदंग की भाँति बजाना।

अथवा

(क) प्रस्तुत काव्यांश में रावण एवं कुंभकरण के वार्तालाप का चित्रण हुआ है। रावण वीर है, किंतु वह स्त्री का अपहर्ता एवं अभिमानी है, जबकि कुंभकरण उसी का छोटा भाई होते हुए भी उससे अधिक श्रेष्ठ चरित्र वाला है। उसके द्वारा रावण को मूर्ख तथा सीता को जगत जननी कहने और रावण के द्वारा सीता के अपहरण की निंदा करने में उसके चरित्र एवं मनोभावों की श्रेष्ठता दिखाई देती है।

(ख) काव्यांश में चौपाई छंद का प्रयोग किया गया है। चौपाई छंद में प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। प्रथम एवं द्वितीय चरण तथा तृतीय एवं चतुर्थ चरणों की तुक आपस में मिलती है। काव्यांश में अंत की दो पंक्तियाँ दोहा छंद में लिखी गई हैं। चार चरणों वाले इस छंद में प्रथम व तृतीय चरण 13-13 मात्राओं एवं द्वितीय व चतुर्थ चरण 11-11 मात्राओं वाले हैं। सम चरणों के अंत में तुक का विधान होता है।

(ग) प्रस्तुत काव्यांश में ‘महा महा’ में पुनरुक्तिप्रकाश एवं ‘अतिकाय अकंपन’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग मिलता है।

उत्तर 10.
(क) ‘बादल-राग’ कविता में ‘बादल’ क्रांति के प्रतिनिधि-रूप में सामने आया है। कवि ‘निराला’ ने बादल का मानवीकरण किया है। बादल सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बनता है। वह तड़ितों से क्षत-विक्षत होने के बाद भी एक योद्धा की तरह गर्जन-वर्षण के माध्यम से प्रकृति में नवजीवन का संचार करता है। कवि ने धरती के नीचे सोए पड़े ‘अंकुर’ का भी मानवीकरण किया है। ये अंकुर वर्षा की बूंदें पाकर ऊपर उठने के लिए आकुल दिखते हैं। ‘बादल’ की क्रांतिकारी चेतना का सर्वाधिक सकारात्मक प्रभाव ‘सुप्त व्याकुल’ पर ही पड़ता है।

(ख) गोस्वामी तुलसीदास भक्त कवि थे। उन्होंने अपने युग की आर्थिक विषमता को करीब से देखा ही नहीं, बल्कि अनुभव भी किया है। तत्कालीन समय में चारों तरफ़ अकाल के कारण बेरोज़गारी और भुखमरी फैली थी। लोगों के पास काम नहीं था। लोग संतान तक बेचने के लिए विवश थे। चारों ओर लाचारी और विवशता ही दिखाई पड़ती थी। पेट की आग समुद्र की आग से भी अधिक भयंकर थी, जिसके लिए लोग कुकर्म कर रहे थे और अपने धंधे में भी धर्म-अधर्म का विचार नहीं रख रहे थे। इस प्रकार तुलसी का युग अनेक आर्थिक विषमताओं से घिरा था।

(ग) ‘गज़ल’ उर्दू शायरी (कविता) की एक महत्त्वपूर्ण विधा है। इसमें प्रेम तथा श्रृंगार को अत्यधिक महत्त्व दिया जाता है। श्रृंगार दो प्रकार के होते हैं—वियोग तथा संयोग| वियोग श्रृंगार को ‘विरह’ भी कहते हैं। फ़िराक गोरखपुरी की इस गज़ल में वियोग श्रृंगार को महत्त्व मिला है। यह वियोग प्रेमिका के दूर रहने तथा प्रेम के कारण लोगों द्वारा किए गए अपमान को सहने
के कारण प्रकट हुआ है।

उत्तर 11.
(क) लेखक के अनुसार, संभवतः उस भोले-भाले भगत जी को विद्वानगणों की तरह सांसारिक ज्ञान न हो और ये भी हो सकता है। कि वे अक्षर-ज्ञान तक भी नहीं जानते हों। ऐसे में अधिक बड़ी-बड़ी बातें भगत जी को क्या मालूम होंगी? इसी संदर्भ में लेखक ने विद्वानगणों को भगत जी से आगे बताया है।

(ख) लेखक के अनुसार, चूरन बेचने वाले भगत जी को वह शक्ति प्राप्त है, जो हममें से शायद ही किसी को प्राप्त हो, जैसे उनका | मन अडिग रहता है। पैसा उनसे आगे होकर भीख माँगता है कि मुझे लो, लेकिन उनका मन तो चंचल नहीं, बल्कि स्थिर है। इसलिए वे पैसे को लेते ही नहीं और बाज़ार का जादू भी ऐसे श्रेष्ठ व्यक्ति के हृदय को नहीं पिघला पाता। इसीलिए लेखक ने भगत जी को श्रेष्ठ विद्वान् कहा है।

(ग) भगत जी प्रतिदिन छ: आने तक का चूरन बेचते हैं और छ: आने तक की ब्रिकी होने के बाद वे चूरन बच्चों में मुफ़्त बाँट देते | हैं। उनमें पैसे के प्रति लोभ बिलकुल नहीं है। अतः उनकी दृष्टि में पैसा केवल जीवन की महत्त्वपूर्ण आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए एक साधनमात्र है।

(घ) प्रस्तुत गद्यांश का मूल भाव यह है कि यदि व्यक्ति के मन में संयम, विवेक और लोभ-रहित (संतोष) वृत्ति हो, तो सांसारिक आकर्षण उसका कुछ अनिष्ट नहीं कर सकते। वह मायावी आकर्षणों के बीच भी आनंदपूर्वक जीवन जीता है।

उत्तर 12.
(क) भक्तिन केवल बेटियों की माँ थी और उसकी सास एवं दोनों जेठानियाँ बेटों की माँ थीं। बेटियों की माँ होने के कारण भक्तिन को परिवार में घृणा एवं उपेक्षा की दृष्टि से देखा जाता था। उसकी जेठानियाँ सारा दिन इधर-उधर की बातें किया करती थीं और घर के किसी भी काम में हाथ नहीं बँटाती थीं। वहीं भक्तिन एवं उसकी बेटियाँ घर का सारा काम, गोबर उठाना, कंडे पाथना आदि किया करती थीं और चने-बाजरे की घुघरी चबाती थीं, जबकि जेठानियाँ और उनके बेटे बड़ी मौज़ से अपने भात पर सफ़ेद राब रखकर गाढ़ा दूध डालते थे।

(ख) ‘बाज़ार दर्शन’ के लेखक के मित्र जब बाज़ार गए तब वे समझ न सके कि कौन-सी चीज़ न खरीदें, क्योंकि उनका मन सब कुछ खरीद लेना चाहता था। बाज़ार से कोई भी वस्तु लेने का अर्थ था-अन्य सभी वस्तुओं को छोड़ देना, किंतु वह कुछ भी छोड़ने को तैयार न थे। इस कारण वे बाज़ार से खाली हाथ लौट आए।

(ग) इंदर सेना बादलों से पहले पानी माँगती है और बाद में गुड़धानी। गेहूँ या चने को भूनकर उसे पिघले हुए गुड़ में मिलाकर गुड़धानी बनाई जाती है। वर्षा होगी, तभी गेहूँ, चने, ईख आदि की बुवाई होगी। इन सबके पैदा होने पर ही गुड़धानी बनेगी। इसके साथ ही, यहाँ गुड़धानी भोजन का प्रतीक है। बादलों से भोजन माँगा जा रहा है, क्योंकि मनुष्य की मूल आवश्यकताओं में हवा के बाद जल और अन्न का स्थान होता है। इसलिए इंदर सेना पानी के साथ-साथ गुड़धानी की माँग कर रही थी।

(घ) लुट्न पहलवान जब नौ वर्ष का था, तभी उसके माता-पिता स्वर्ग सिधार गए थे, किंतु भाग्य ने उसका साथ दिया और छोटी उम्र में ही उसकी शादी हो गई। विधवा सास ने उसे पुत्र की तरह पाल-पोसकर बड़ा किया। बचपन में उसका समय गाय चराने, दूध पीने और कसरत करने में बीतता था| गाँववाले उसकी सास को सताया करते थे। इसी कारण लोगों से बदला लेने की भावना से ही वह कसरत करने की ओर आकृष्ट हुआ था। नियमित रूप से खूब कसरत करने से किशोरावस्था में ही वह गठीला शरीर वाला बन गया था।

(ङ) चार्ली चैप्लिन के जीवन पर उनके बचपन की दो घटनाओं का गहरा प्रभाव पड़ा था। पहली घटना उस समय की है कि जब एक बार उनके बीमार पड़ने पर उनकी माँ बाइबिल से ईसा मसीह के जीवन का अंश पढ़कर सुना रही थीं, तब ईसा के सूली पर चढ़ने का वर्णन आते-आते माँ-बेटे दोनों रोने लगे थे। चार्ली माँ से मिली इस देन को अपने जीवन की सबसे दयालु ज्योति मानते हैं।

चार्ली के बचपन से जुड़ी दूसरी घटना यह है कि एक बार उनके घर के पास के कसाईखाने में ले जाई जाने वाली भेड़ अपना बंधन छुड़ाकर सड़क पर भागने लगती है और उसे पकड़ने के क्रम में कसाई कई बार सड़क पर फिसलकर गिर जाता है। पर अंत में भेड़ को पकड़कर कसाईखाने की ओर ले जाया जाता है। चार्ली का मानना है कि इस घटना में त्रासदी और हास्योत्पादक तत्त्वों का सामंजस्य है और शायद इसी घटना ने उनकी भावी फ़िल्मों की भूमिका तय की हो।

उत्तर 13.
बचपन से ही यशोधर पंत जी पुराने आदर्शों को ही मानते आए थे। इसलिए उन्हें अपने सिद्धांतों पर चलना अब सही लगने लगा था। किशनदा, जिन्होंने जीवन के हर मोड़ पर उनकी सहायता की, उनके सिद्धांतों को ही यशोधर बाबू ने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया था। यशोधर बाबू नई पीढ़ी के विचारों से बिलकुल भी सहमत नहीं थे। इसका प्रभाव उनके जीवन में इस प्रकार पड़ा कि वे अपने ही परिवार से दूर हो गए। परिवार के लोग उन्हें नए ढंग से चलने के लिए कहने लगे। पत्नी भी कह देती थी कि आप अभी से इतने पूजा-पाठ में लगे रहते हैं, जैसे कि बूढ़े हो गए हों।

बड़ा बेटा भी उनके साइकिल चलाने के विरोध में था और उनकी बेटी भी अमेरिका जाने की धमकी दे देती थी। भूषण अपनी कमाई का रोब हर काम में दिखा देता था। यशोधर पंत अपने सिद्धांतों के प्रति निष्ठावान थे, लेकिन उनकी पत्नी और बच्चे आधुनिक नियमों को मानने के कारण यशोधर पंत के विपरीत ही सोचते थे। इन विपरीत परिस्थितियों के कारण ही पंत जी के जीवन में अनेक विरोधाभास दिखाई पड़ते हैं।

उत्तर 14.
(क) लेखक की माँ अपने पति के व्यवहार से भली-भाँति परिचित थी। वह जानती थी कि उनको लेखक का पढ़ना बिलकुल अच्छा नहीं लगता। पढ़ाई की बात से ही वह खतरनाक जानवर की तरह गुर्राते हैं। इसके लिए लेखक की माँ अपने पति को बनैला सुअर’ कहती हैं। इसलिए लेखक की माँ ने लेखक का साथ देने का निर्णय लिया। लेखक की माँ लेखक के साथ दत्ता जी के पास जाकर अपने पति के विषय में सब कुछ बता देती है। उसने यह भी बता दिया कि वह सारा दिन रखमाबाई के कोठे पर ही बिताता है। वह खेती के काम और घर-गृहस्थी के काम में किसी प्रकार की भी। मदद नहीं करता और पूरे दिन गाँव में घूमता-फिरता है, इसीलिए वह लेखक को पढ़ाना नहीं चाहता, क्योंकि यदि लेखक पाठशाला जाने लगेगा, तो; उसे स्वयं ही खेती का काम करना पड़ेगा। लेखक की माँ ने इन सभी बातों पर दत्ता जी को विश्वास दिला दिया। बाद में दत्ता जी के कहने पर लेखक के पिता ने लेखक को पढ़ने की अनुमति दे दी।

(ख) हॉलैंड की तत्कालीन दशा बहुत ही खराब हो चुकी थी। ऐन अपनी डायरी में बताती है कि वहाँ के लोगों को सब्ज़ियाँ और सामान लेने के लिए लंबी लाइनों में खड़ा रहना पड़ता था। डॉक्टर भी अपने मरीज़ों को ढंग से नहीं देख पाते, क्योंकि इतनी देर में उनकी कार या मोटरसाइकिल चोरी हो जाने की आशंका रहती थी। चोरी के डर से डच लोगों ने अँगूठी तक पहनना छोड़ दिया था। लोग 5 मिनट के लिए भी घरों को नहीं छोड़ते थे, क्योंकि छोटे-छोटे बच्चे भी घर का सामान चुराकर ले जाते थे। अख़बारों में चोरी का सामान लौटाए जाने का विज्ञापन हर दिन पढ़ने को मिलता। चोर गली-गली में लगने वाली बिजली की घड़ियों को भी उतारकर ले जाते थे। सार्वजनिक टेलीफ़ोन की भी चोरी हो जाती थी। चारों तरफ़ कामचोरी और चोरी का वातावरण फल-फूल रहा था। पुरुषों को जर्मनी भेजा जा रहा था। सरकारी कर्मचारियों पर हमलों की घटनाएँ दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही थीं। इस प्रकार कुल मिलाकर हॉलैंड की तत्कालीन दशा बहुत ही दयनीय थी।

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