Students can access the CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi with Solutions and marking scheme Term 2 Set 3 will help students in understanding the difficulty level of the exam.
CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Term 2 Set 3 with Solutions
Time Allowed: 2 Hours
Ma×imum Marks: 40
सामान्य निर्देश :
- निम्नलिखित निर्देशों को बहुत सावधानी से पढ़िए और उनका पालन कीजिए:
- इस प्रश्न पत्र में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं।
- इस प्रश्न पत्र में कुल सात प्रश्न पूछे गए हैं। आपको सात प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
- प्रश्नों में आंतरिक विकल्प भी दिए गए हैं। निर्देशानुसार उत्तर दीजिए।
कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन [20 अंक]
प्रश्न 1.
निम्नलिखित दिए गए तीन शीर्षको में से किसी एक शीर्षक का चयन कर लगभग 200 शब्दों में एक रचनात्मक लेख लिखिए: (5 × 1 = 5)
(क) जब परीक्षा भवन में मुझे नींद आ गई
उत्तरः
जब परीक्षा भवन में मुझे नींद आ गई बात आज से दो वर्ष पहले की है, मैं दसवीं कक्षा में था । बोर्ड की परीक्षाएँ चल रही थीं। उन दिनों मुझे अचानक बुखार आ गया। दो दिन बाद ही मेरी विज्ञान की परीक्षा थी। वो तो अच्छा था कि मैंने परीक्षा की तैयारी पहले से ही की हुई थी। अब तो मुझे केवल दोहरान ही करना था। बुखार की दवाइयों से नींद-ही-नींद आ रही थी। मैंने किसी तरह तैयारी करी और नियत समय पर परीक्षा देने के लिए पहुंच गया। लगभग दो घंटे तक तो सब कुछ सही रहा पर फिर अचानक मुझे नींद आने लगी। मैंने बहुत कोशिश की पर आखिरकार नींद की ही जीत हुई। परीक्षक ने परीक्षा समाप्त होने से लगभग आधे घंटे पहले मुझे जगाया। मैंने आँखें खोलकर घड़ी पर नजर डाली तो मैं घबरा गया। परीक्षा समाप्त होने में केवल आधा घंटा शेष था। मेरे हाथ-पैर फूल गए, माथे पर पसीने की बूंदे आ गईं। परीक्षक महोदय ने सारी स्थिति को समझकर मुझे पंद्रह मिनट और दिए। मैंने झटपट अपना प्रश्न पत्र पूरा किया और परीक्षक महोदय का धन्यवाद दिया। अब मेरी जान में जान आई और मैंने चैन की सांस ली।
(ख) जब बाजार में मेरी चप्पल टूट गई
उत्तरः
जब बाजार में मेरी चप्पल टूट गई
अभी दो दिन पहले मैं अपने कुछ कपड़े खरीदने के लिए बाजार गई थी। लौटते-लौटते शाम हो गई। चलते-चलते अचानक मेरी चप्पल टूट गई। अब तो सब गड़बड़। टूटी चप्पल पैर से बार-बार बाहर निकल रही थी और मेरी नजरें मोची को ढूँढ़ रही थीं। चप्पल से पैर बार-बार निकलने के कारण सड़क के पत्थर मेरे पैरों में चुभ रहे थे। मैं वहीं एक खंभे के सहारे खड़ी हो गई और किसी मोची को ढूँढ़ने लगी। मुझे घर पहुँचने की चिंता हो रही थी और ऊपर से यह चप्पल टूट गई । मुझे रोना आ रहा था। इतने में ही लगा जैसे किसी ने मेरी सुन ली। सामने से एक मोची अपना सामान बांधकर चला आ रहा था। उसे घर पहुँचने की जल्दी थी। मेरे अनुनय करने पर वह मेरी चप्पल सही करने के लिए तैयार हो गया। उसने मेरी चप्पल थोड़ी ही देर में जोड़ दी। अब मैं खुश हो गई। जल्दी से चप्पल पहनकर मै घर की ओर चल पड़ी। वहाँ माँ मेरी राह देख रही थीं। मैंने उन्हें सारी बात बताई।
(ग) जब घर पर अचानक मेहमान आए
उत्तरः
जब घर पर अचानक मेहमान आए गर्मी की छुट्टियाँ चल रही थीं। मेरी बड़ी बहिन की शादी पक्की हो गई थी। उसके लिए रोज खरीददारी हो रही थी। मेरी माँ इसी सिलसिले में चाचीजी के साथ कहीं गई हुई थी। दीदी भी अपनी सहेली के घर गई हुई थी। घर पर केवल मैं और मेरा छोटा भाई था। अचानक दरवाजे की घंटी बजी। मैंने बाहर जाकर देखा दीदी के ससुराल से उसके सास-ससुर आए थे। मैंने उन्हें झटपट आदर सहित अंदर बुलाया और बिठाया। अब मेरे भाई ने उन्हें पानी पिलाया । मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि मैं उनसे क्या बात करूँ और कैसे उनकी खातिरदारी करूँ। आखिर वो मेरी दीदी के सास-ससुर थे। मैंने अपनी माँ को फोन किया तो उन्होंने बताया कि उन्हें आने में थोड़ा समय लगेगा। अब मैंने उनके लिए चाय बनाई और मेरा भाई उनके लिए झटपट बाजार से समोसे और जलेबी ले आया। मैंने अपने भाई के साथ मिलकर उन्हें चाय-नाश्ता करवाया। थोड़ी ही देर में मेरी माँ और चाचीजी आ गए। दीदी की सास ने मेरी बहुत तारीफ की। उस दिन मैं बहुत प्रसन्न थी।
प्रश्न 2.
एक सड़क को चौड़ा करने के बहाने आवश्यकता से अधिक पेड़ काटे गए हैं, इसकी विस्तृत जानकारी देते हुए वन और पर्यावरण विभाग को एक पत्र लिखिए।
अथवा
दो दिन की वर्षा के बाद सड़कों और नालों की दुर्दशा और जनता की परेशानियों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए जिला अधिकारी को पत्र लिखिए? (5)
उत्तरः
24, विराट नगर
जोधपुर
दिनांक: 4 अगस्त 20XX
सेवा में
अधिकारी महोदय
वन विभाग
जोधपुर
विषय-आवश्यकता से अधिक पेड़ काटे जाने की जानकारी देने हेतु।
महोदय
मैं विराट नगर का निवासी हूँ। इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान हमारे क्षेत्र में वृक्षों के कटाव की ओर दिलाना चाहता हूँ। पिछले महीने हमारे मोहल्ले की मुख्य सड़क को चौड़ा करने का काम आरंभ हुआ था। उस कार्य को अंजाम देने हेतु सड़क के दोनों ओर लगे हुए विशाल वृक्षों को मार्ग में आने वाली बाधा समझ कर काट दिया गया। सड़क चौड़ा करने के लिए मार्ग में आने वाले पेड़ों को काटने तक तो सही था, पर उसके अतिरिक्त उन वृक्षों को भी काटा गया जो मार्ग की रूकावट नहीं थे। यह तो हम सब जानते ही हैं कि शुद्ध पर्यावरण के लिए वृक्षों का होना कितना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त वृक्ष वर्षा में भी सहायक होते हैं और शुद्ध प्राणवायु का संचार करते हैं। अधिक वृक्षों के काटे जाने का मोहल्ले के निवासियों ने कड़ा विरोध किया था पर आपके विभाग की ओर से भेजे गए कर्मचारियों ने हमारी एक नहीं सुनी और अंधाधुंध पेड़ काट डाले।
आपसे विनम्र निवेदन है कि आप इस ओर ध्यान देते हुए उन कर्मचारियों पर उचित कार्यवाही करें और यहाँ अधिकाधिक वृक्षारोपण करवाने की कृपा करें।
धन्यवाद।
भवदीय
क.ख.ग.
अथवा
24, महेश नगर
बीकानेर
दिनांक: 5 अगस्त 20XX
सेवा में
जिला अधिकारी महोदय
नगर निगम कार्यालय
बीकानेर
विषय-सड़कों और नालों की दुर्दशा की जानकारी देने हेतु।
महोदय
निवेदन है कि मैं महेश नगर का निवासी हूँ। हमारी कॉलोनी में सड़कें बने हुए अभी छह महीने ही बीते हैं और पहली वर्षा में ही नगर निगम के कार्यों की पोलपट्टी खुल गई। अभी दो ही दिन वर्षा हुई है और सड़क पर स्थान-स्थान पर गढ्डे हो गए हैं और नालियों की दशा तो और अधिक खराब हो गई है। नालियों में कचरा भरे होने के कारण वर्षा का पानी सड़क पर आ रहा है। पानी के साथ-साथ नालियों का कचरा भी बह-बह कर सड़कों पर आ रहा है। गढ्डों में पानी भरने के कारण सड़क पर चलना मुश्किल हो रहा है। मच्छरों ने आतंक मचा रखा है। दुर्गध के कारण साँस भी नहीं ले पा रहे
आप तो जानते ही हैं कि गंदगी बीमारी का घर होती है। आज जब हर स्थान पर स्वच्छता अभियान चल रहा है ऐसे में हमारी कॉलोनी में गंदगी का होना चाँद पर कलंक के समान है। अतः आपसे निवेदन है कि आप इस ओर ध्यान देते हुए सड़कों का सुधार करें और नालियों को साफ करने की व्यवस्था करवाएँ। आपकी अति कृपा होगी।
धन्यवाद।
प्रार्थी
क.ख.ग.
प्रश्न 3.
(क) कविता की संरचना पर प्रकाश डालिए। कविता में शब्द-चयन का क्या महत्व है?
अथवा
कहानी में चरमोत्कर्ष का क्या महत्व है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तरः
साहित्य की जितनी भी विधाएं हैं उनमें कविता की संरचना बड़ी ही विशिष्ट होती है। अर्थ विस्तार के लिए कविता की संरचना में रचनाकार अनेक बिंबों और प्रतीकात्मक शब्दों का प्रयोग करता है इससे कविता में सौन्दर्य आता है। कविता का सृजन एक लय और गति लिए हुए होता है। गीत, मुक्तक, छोटी कविता या बड़ा काव्य, इन सबमें ही प्रवाह और गति का होना आवश्यक होता है। अतः कविता की रचना प्रक्रिया प्रत्येक कवि की मनःस्थिति के अनुसार होती है। कविता में शब्द चयन का महत्वपूर्ण स्थान होता है क्योंकि कवि अपने हृदय के भावों को सुंदरतम रूप देने के लिए इस प्रकार के विशिष्ट शब्दों का चयन करता है जो उसकी रचना को अधिक प्रभावशाली बनाते हैं। अलंकारों का प्रयोग, शब्द गुण, शब्द शक्ति, छंद, लय, तुक आदि एक कविता को स्वरूप प्रदान करने में सहायक होते हैं।
अथवा
चरमोत्कर्ष किसी भी रचना का सबसे महत्वपूर्ण तत्व होता है। इसके अभाव में रचना अधूरी रहती है। चरमोत्कर्ष पाठक के लिए हमेशा अहम होता है क्योंकि वह उसी को जानने की लालसा में पूरी कहानी को आरंभ से अंत तक जोड़ लेता है। अनेक बार तो केवल चरमोत्कर्ष को पढ़कर ही कहानी के आरंभ का पता चल जाता है अथवा पूरी की पूरी कहानी ही पता लग जाती है। अनेक द्वंद्व से निकलती हुई जब कहानी अपने निष्कर्ष तक पहुँचती है तभी उसे लिखने का मंतव्य पूरा होता है। प्रायः परिणति ही किसी कहानी का निष्कर्ष या सार बताती है। सभी प्रकार की कहानी में चरमोत्कर्ष का होना आवश्यक होता है क्योंकि इसके न रहने पर कहानी का कोई अस्तित्व नहीं है।
(ख) नाटक के प्रमुख तत्वों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
अलंकार की परिभाषा बताते हुए काव्य में इसकी उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
उत्तरः
नाटक साहित्य की अत्यंत ही प्राचीन विधा है। नाटक का मंचन किसी भी युग विशेष की अभिरुचि पर निर्भर होता है। नाटक का स्वरूप समय-समय पर बदलता रहता है। वर्तमान में नाटक के प्रमुख तत्व निम्नलिखित हैं
(i) कथावस्तु
(ii) पात्र औरचरित्र-चित्रण
(iii) संवाद
(iv) देशकाल और वातावरण
(v) भाषाशैली
(vi) नाटक का उद्देश्य
अथवा
अलंकार का शाब्दिक अर्थ होता है आभूषण। जिस प्रकार मनुष्य विशेषकर स्त्रियाँ विभिन्न आभूषणों को पहनकर अपने सौंदर्य में चार चाँद लगाती हैं, उसी प्रकार अलंकारों का प्रयोग काव्य के सौंदर्य में निखार लाता है। अर्थात अलंकारों का प्रयोग काव्य के सौंदर्य को बढ़ाने के लिए किया जाता है पर इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि केवल सौंदर्य वृद्धि हेतु ही अलंकारों का उपयोग हो। किसी भी काव्य के भाव पक्ष और भाषा शैली के लिए अलंकारों का अति महत्वपूर्ण स्थान है। अतः काव्य में रमणीयता लाने के लिए अलंकार अधिक महत्वपूर्ण हैं।
प्रश्न 4.
(क) किसी बस दुर्घटना को उल्टा पिरामिड शैली में लिखिए।
अथवा
वरिष्ठ नागरिक और उनकी समस्याओं पर समाचार लिखिए।
उत्तरः
उल्टा पिरामिड शैली में समाचार लेखन के लिए निम्नलिखित प्रक्रिया का अनुसरण किया जाता है
शीर्षक-इंट्रो (मुखड़ा)
बॉडी-(समापन)
शीर्षक-जयपुर से जोधपुर की ओर जाने वाली विशेष बस ‘आर.जे. 14 टी 1235’ हुई दुर्घटनाग्रस्त।
जयपुर से जोधपुर जाने वाली विशेष बस कल रात नदी में गिर गई। बस में सवार 45 यात्रियों में से 25 यात्रियों की दुर्घटनाग्रस्त हो गए, जिन्हें स्थानीय प्रशासन की मदद से पास के ही सरकारी अस्पताल में पहुँचाया गया। शेष यात्रियों को पुलिस की सहायता से सुरक्षित उनके गंतव्य स्थान पर पहुंचा दिया गया। इंट्रो (मुखड़ा)-बस के नदी में गिरने से 25 यात्रियों के हताहत होने का मामला सामने आया जिसे तुत ही स्थानीय लोगों और प्रशासन की मदद से पास के ही सरकारी अस्पताल में पहुँचाया गया। वहाँ पर सभी का इलाज शुरू कर दिया गया है। गंभीर चोट किसी को नहीं लगी हैं और न ही किसी की मृत्यु हुई है। अन्य यात्रियों को पुलिस ने उचित स्थान पर पहुंचा दिया। बॉडी-कल रात जयपुर से जोधपुर की ओर जाने वाली बस में 45 यात्री सवार थे।
रात तीन बजे के आस पास जब बस करौली के पुल से गुजर रही थी तो अचानक ही ड्राइवर की आँख लग गई। उसकी जरा सी गलती सवारियों पर भारी पड़ गई और बस पुल की दीवार से टकराती हुई सीधे नदी में गिर गई। सब तरफ जान बचाने के लिए कोलाहल मच गया। शोरगुल को सुनकर आस-पास के निवासी भागे-भागे आए और लोगों को बचाने की जद्दोजहद में जुट गए। लगभग आधे घंटे में स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों ने आकर लोगों को नदी में से निकाला। ड्राइवर वहाँ से जान बचाकर भाग रहा था पर लोगों ने उसे धर दबोचा। समापन-इस प्रकार नदी में गिरे हुए लोगों को सकुशल बाहर निकाला गया और उन्हें पास के ही अस्पताल में पहुँचा दिया। किसी को गंभीर चोट नहीं आने के कारण प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें वहाँ से छुट्टी मिल गई। पुलिस ने सभी को उनके गंतव्य स्थान पर पहुंचा दिया और ड्राइवर को गिरफ्तार कर जेल में भेज दिया।
अथवा
संसार में जन्म लेने के बाद बचपन तक का सफर बड़ा ही मधुर होता है पर बड़े होने के बाद मनुष्य कमाने में जुट जाता है और फिर अपनी और अपने परिवार की चिंता में वह पैसे के पीछे भागने लगता है। अपना सारा जीवन वह लिखने-पढ़ने, पैसे कमाने और अपने परिवार को चलाने में बिता देता है। इस प्रकार वह अति व्यस्त जीवन जीता है। इसके बाद अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई से लेकर उन्हें काबिल बनाने में ही उसकी सारी उम्र निकल जाती है। अपने बच्चों की शादी कर वह अपने कर्तव्यों से मुक्त हो जाता है और अपनी सेवानिवृत्ति के पश्चात आराम करना चाहता है। अब वह चाहता है कि अपने बचे हुए पैसों का प्रयोग कर वह अपना जीवन बिना किसी तनाव के बिताना चाहता है। आजकल समय के बदलने से नई पीढ़ी भी बदल रही है। माता-पिता की सेवा वो सिर्फ अपने स्वार्थ के लिए करते हैं। ऐसे में बुढ़ापे में उनकी दुर्दशा होने लगती है और वे असहाय हो जाते हैं। कई बार तो बच्चे या तो उन्हें ही घर से निकाल देते हैं या उन्हें घर के ही एक कोने में पटक देते हैं। ऐसे में व्यक्ति अपने उस सम्मान को याद कर दुखी होता रहता है जो उसने
पूरी जिंदगी काम करके कमाया । घर में वह बोझ बन जाता है। जब तक उसके पास पैसा होता है तब तक सब उसके अपने होते हैं और पैसा खत्म होने पर अपने भी पराए बन जाते हैं। इलाज के लिए भी उसे दूसरों का मुँह ताकना पड़ता है। उन्हें अकेलेपन के साथ-साथ असुरक्षा का भी भय रहता है। अतः वरिष्ठ नागरिकों की भी समस्याएँ कम नहीं हैं।
(ख) ‘बच्चों में बढाएं आत्मविश्वास’ विषय पर लगभग 40-50 शब्दों में फीचर लिखिए।
अथवा
‘मोबाइल बिना लगे सब सूना’ विषय पर लगभग 40-50 शब्दों में आलेख लिखिए। (2)
उत्तरः
हम सब यह जानते हैं कि सफल होने के लिए आत्मविश्वास अत्यंत जरुरी है। यदि यही आत्मविश्वास बच्चों में हो तो वे हर मुश्किल का सामना कर सकते हैं। आजकल के बच्चों में आत्मविश्वास का अभाव है। इसका प्रमुख कारण हैं बच्चों का आत्मनिर्भर न होना। बच्चे अपने काम के लिए या तो अपने माता-पिता पर निर्भर रहते है या इन्टरनेट पर। इस तरह के बच्चे समस्या का सामना नहीं कर पाते । बड़े होने पर भी अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए उन्हें अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए माता-पिता को चाहिए कि वे उन्हें छोटे-छोटे फैसले खुद करने दें पर साथ-साथ ही उन पर नजर भी रखें कि वे सही रास्ते का ही चयन करें। उनके द्वारा गलती करने पर उन्हें सही राह दिखाएं। बच्चों का मन उस कच्चे घड़े के समान होता है जिसे जो भी आकार दिया जाए, वह वही स्वरूप ग्रहण कर लेता है। अतः आत्मविश्वास की भावना का बीजारोपण उनके मन-मस्तिष्क में बचपन से ही कर देना चाहिए। इस प्रकार के बच्चों का बौद्धिक और शारीरिक विकास भी उत्तम होता है।
अथवा
मोबाइल आज जितनी तेजी से जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं उतना किसी अन्य वस्तु के साथ नहीं हुआ। जो लोग मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं, उनकी एकाग्रता और कार्यक्षमता घट जाती है
क्योंकि फोन सिर्फ उनके रोजमर्रा के जीवन का नहीं, बल्कि व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता है। जब वे फोन से दूर रहते हैं, तो उन्हें ऐसा महसूस होता है कि उनके व्यक्तित्व का एक हिस्सा छूट गया है और एक अधूरेपन का एहसास होता है। जब कोई व्यक्ति बेचौनी या अस्थिरता महसूस करता है, तो अपना फोन निकालकर उस पर कोई नंबर मिलाने लगता है, या और कोई काम करने लगता है। कुछ नहीं, तो वह पुराने मैसेज या नंबर ही देखने लगता है। फोन हमारे लिए संवाद का पर्याय हो गया है। आधुनिक जीवन के अकेलेपन के हम इतने आदी हो गए हैं कि लोगों के बीच बैठे हुए भी हम फोन की मौजूदगी से ही राहत पाते हैं। फोन साथ न हो, तो हमें लगता है कि ‘भीड़ में अकेले’ हो गए हैं। हमें यह विश्वास रखना चाहिए कि फोन के बिना भी हमारा कोई अस्तित्व है और हम शायद ज्यादा जीवंत संपर्क बना सकते हैं।
पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 तथा अनुपूरक पाठ्यपुस्तक वितान भाग-2 [20 अंक]
प्रश्न 5.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 × 2 = 6)
(क) तुलसीदास ने अपने युग की जिस दुर्दशा का चित्रण किया है उसका वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तरः
जग-जीवन का भार लेने से कवि एक ओर कहना चाहता है कि वह आम व्यक्ति से अलग नहीं है। सुख-दुःख, हानि-लाभ को झेलते हुए वह अपने सभी सांसारिक दायित्वों का निर्वाह कर रहा है अर्थात् अपनी जीवन यात्रा पूरी कर रहा है। इसी प्रकार वह दूसरी ओर कहता है कि वह इस संसार की ओर कभी ध्यान नहीं देता। इसका यह अर्थ कदापि नहीं कि वह सांसारिक दायित्वों से मुँह मोड़ रहा है। वह अपने सभी कर्तव्यों का भलीभांति निर्वाह कर रहा है पर संसार की अनर्गल बातों पर वह ध्यान नहीं देता। वह इन्हें व्यर्थ मानता है और अपना ध्यान केवल प्रेम पर ही केन्द्रित करता है। साधारण मनुष्य अपने जीवन में आई हुई बाधाओं से निराश होकर आगे नहीं बढ़ पाता। इसके विपरीत कवि सांसारिक बाधाओं की परवाह ही नहीं करता। अतः दोनों ही पंक्तियाँ विरोधी होते हुए भी एक दूसरे की पूरक हैं।
(ख) पाठ्यपुस्तक में संकलित फिराक गोरखपुरी की गजल का केंद्रीय भाव लिखिए।
उत्तरः
फिराक गोरखपुरी ने ‘गजल’ में दर्द व कसक का वर्णन किया है। उसने बताया है कि लोगों ने उसे सदा ताने दिए हैं। उसकी किस्मत हमेशा उसे दगा देती रही है। दुनिया में केवल गम ही था जो उसके पास रहा। उसे लगता है जैसे रात के सन्नाटे में कोई बोल रहा है। इश्क के बारे में शायर का कहना है कि इश्क वही पा सकता है जो अपना सब-कुछ दाँव पर लगा दे। कवि की गजलों पर मीर की गजलों का प्रभाव है। यह गजल इस तरह बोलती है जिसमें दर्द भी है, एक शायर की ठसक भी है और साथ ही काव्यशिल्प की वह ऊँचाई, जो गजल की विशेषता मानी जाती
(ग) ‘उषा’ कविता के आधार पर उस जादू को स्पष्ट कीजिए जो सूर्योदय के साथ टूट जाता है।
उत्तरः
सूर्योदय से पूर्व उषा का दृश्य अत्यंत आकर्षक होता है। भोर के समय सूर्य की किरणें जादू के समान लगती है। इस समय आकाश का सौन्दर्य क्षण-क्षण में परिवर्तित होता रहता है। यह उषा का जादू है। नीले आकाश का शंख-सा पवित्र होना, काली सिल पर केसर डालकर धोना, काली स्लेट पर लाल खड़िया मल देना, नीले जल में गोरी नायिका का झिलमिलाता प्रतिबिम्ब आदि दृश्य उषा के जादू के समान लगते हैं। सूर्योदय होने के साथ ही दृश्य समाप्त हो जाते हैं।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित चार में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 × 3 = 9)
(क) ‘लाहौर अभी तक उनका वतन है और देहली मेरा या मेरा वतन ढाका है’ जैसे उद्गार किस सामाजिक यथार्थ की ओर संकेत करते हैं?
उत्तरः
पाकिस्तानी कस्टम अधिकारी कहता है कि ‘लाहौर अभी तक उनका (सिख बीबी का) वतन है और दिल्ली मेरा।’ सुनीलदास गुप्त कहते हैं-‘मेरा वतन ढाका है’। ये कथन उस सामाजिक यथार्थ की ओर संकेत करते हैं भले ही देश की सीमाएँ राजनैतिक तौर पर विभाजित हो गई हों पर उनके मन विभाजित नहीं हुए हैं। उनका मातृभूमि से भावनात्मक लगाव है जिसे कोई भी राजनीति बाँट नहीं सकती। वे लोगों को अलग रहने पर तो मजबूर कर सकते हैं पर उनके दिल को अपनी जन्मभूमि से दूर नहीं कर सकते । जैसे विशाल वृक्ष को उखाड़ने पर भी उसकी जड़ें अपनी मिटटी को नहीं छोडर्त वैसे ही मनुष्य भी जन्म भूमि को छोड़कर कहीं और तो रह सकता है पर मातृभूमि के प्रति अपने लगाव को नहीं त्याग सकता।
(ख) ‘पहलवान की ढोलक’ पाठ के आधार पर लुट्टन का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तरः
(i) व्यक्तिक्व-लुट्टन लम्बे चौड़े व ताकतवर व्यक्तित्व का स्वामी था। नौ वर्ष की अवस्था में उसके माता पिता के देहांत हो गया था। बचपन में ही उसका विवाह हो गया था। अतः उसका लालन-पालन उसकी सास ने किया था। वह लम्बा चोंगा पहनता था और उसकी पगड़ी अस्त-व्यस्त रहती थी।
(ii) भाग्यहीन-वह बचपन से ही दुर्भाग्यशाली था। बचपन में माता-पिता की मृत्यु हो गई और युवावस्था में पत्नी चल बसी। उसके दोनों लड़के महामारी के कारण स्वर्ग सिधार गए । अतः वह हमेशा ही भाग्यहीन रहा।
(iii) निडरता-वह निडर था इसलिए उसने चाँद सिंह जैसे ताकवर पहलवान को चुनौती दी और उसे हरा दिया। उसने काला खाँ पहलवान को मात दी थी। भयंकर महामारी में भी वह घबराया नहीं और सारी रात अपना ढोल बजाता रहा।
(iv) सहि गुता-वह सहिष्णु था। अपनी सास के अत्याचारों को सहन करने के कारण ही वह पहलवान बन गया। महामारी के समय भी वह दुखी नहीं हुआ। अपने बच्चों की मौत पर भी वह नहीं रोया।
(ग) आदर्श समाज के तीन तत्वों में से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है अथवा नहीं? आप इस ‘भ्रातृता’ शब्द से कहाँ तक सहमत है? यदि नहीं, तो आप क्या शब्द उचित समझेंगे/ समझेंगी?
उत्तरः
आदर्श समाज के तीन तत्वों में से एक ‘भ्रातृता’ को रखकर लेखक ने अपने आदर्श समाज में स्त्रियों को भी सम्मिलित किया है। लेखक समाज की बात कर रहा है और समाज स्त्री पुरूष दोनों से मिलकर बना है। उसने आदर्श समाज में हर आयुवर्ग को शामिल किया है। ‘भ्रातृता शब्द संस्कृत का शब्द है जिसका अर्थ है-भाईचारा । यह सर्वथा उपयुक्त है। समाज में ही भाईचारे के सहारे ही सम्बन्ध बनते हैं। कोई व्यक्ति एक-दूसरे से अलग नहीं रह सकता। समाज में भाईचारे के कारण ही कोई परिवर्तन समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचता है।
(घ) ‘पहलवान की ढोलक’ कहानी के प्रारम्भ में चित्रित प्रकृति का स्वरूप कहानी की भयावहता की ओर संकेत करता है। इस कथन की टिप्पणी कीजिए।
उत्तरः
कहानी के प्रारम्भ में प्रकृति का स्वरूप कहानी की भयावहता की ओर संकेत करता है। रात के भयावह वर्णन में बताया गया है कि चारों तरफ सन्नाटा है। सियारों का क्रन्दन व उल्लू की डरावनी आवाज निस्तब्धता को कभी-कभी भंग कर देती थी। गाँव की झोपड़ियों से कराहने और कै करने की आवाज सुनाई पड़ती थी। बच्चे भी कभी-कभी निर्बल कंठों से ‘माँ-माँ’ पुकारकर रो पड़ते थे। इससे रात्रि की निस्तब्धता में बाधा नहीं पड़ती थी।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 + 2 = 5)
(क) मुअनजोदड़ो की सभ्यता में मानव-मानव की समानता पर अधिक बल था। सिद्ध कीजिए।
अथवा
ऐन की डायरी उसकी निजी भावनात्मक उथल-पुथल का दस्तावेज भी है। इस कथन की विवेचना कीजिए। (3)
उत्तरः
जहाँ का राजा अत्याचारी होता है और जहाँ राजतंत्र होता है वहाँ मानव-मानव में समानता नहीं रहती। ऐसे स्थानों पर राजा ही प्रमुख होता है और वह प्रजा को अनुशासित कर अपनी निरंकुशता का परिचय देता है। ऐसे राजा और सामंत लोग मनमर्जी का जीवन जीते हैं और प्रजा पर अत्याचार कर सुख सुविधा जीते हैं। ऐसे ही लोग अपने यश के लिए बड़े-बड़े महल और भवनों का निर्माण करवाते हैं। पर मुअनजोदड़ो की सभ्यता में न तो भव्य राजप्रासाद ही मिले और न ही मंदिर। न किसी राजा की समाधि और न ही किसी किसी महंत की। हथियारों के तो वहाँ अवशेष भी नहीं है। इससे पता चलता है कि वहाँ की सभ्यता राज पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज पोषित थी। वहाँ मानव-मानव की समानता पर अधिक बल दिया जाता है।
अथवा
अज्ञातवास में बिताए हुए दो वर्ष एन के लिए बड़े ही भयानक और डरावने थे। यहाँ उसे सुनने वाला कोई नहीं था । यहाँ पर वह सबसे छोटी थी इसलिए उसे सबकी डांट-फटकार सुननी पड़ती थी। वह अपने मनोभावों को किसी के सामने व्यक्त नहीं कर पाती थी क्योंकि उसे समझने वाला यहाँ कोई नहीं था। उसके मन में उथल-पुथल मचती रहती थी। अपने इसी मानसिक और व्यक्तिगत अनुभवों को वह डायरी में लिखती रहती थी इसलिए एन की डायरी उसकी निजी भावनात्मक उथल-पुथल का दस्तावेज भी है।
(ख) ‘यह सच है कि यहाँ किसी आँगन की टूटी-फूटी सीढ़ियाँ अब आपको कहीं नहीं ले जाती; वे आकाश की तरफ अधूरी रह जाती है, लेकिन उन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर अनुभव किया जा सकता है कि आप दुनिया की छत पर हैं, वहाँ से आप इतिहास को नहीं उसके पार झाँक रहे है।’ इस कथन पीछे लेखक का क्या आशय
अथवा
अज्ञातवास में रहते हुए भी एन फिल्मों के प्रति अपनी रुचि व जानकारी कैसे बनाए रखती है?
उत्तरः
इस कथन के पीछे लेखक का आशय यही है कि खंडहर होने के बाद भी पायदान बीते इतिहास का पूरा परिचय देते हैं। इतनी ऊँची छत पर स्वयं चढ़कर इतिहास का अनुभव करना एक बढ़िया रोमांच है। सिंधु घाटी की सभ्यता केवल इतिहास नहीं है बल्कि इतिहास के पार की वस्तु है। इतिहास के पार की वस्तु को इन अधूरे पायदानों पर खड़े होकर ही देखा जा सकता है। ये अधूरे पायदान यही दर्शाते हैं, कि विश्व की दो सबसे प्राचीन सभ्यताओं का इतिहास कैसा रहा।
अथवा
ऐन अपने प्रिय फिल्मी कलाकारों की तस्वीरें रविवार के दिन अलग करती थी। उसके शुभचिंतक मिस्टर क्रूगलर, सोमचार के दिन ‘सिनेमा एंड थियेटर’ पत्रिका ले आते थे। घर के बाकी लोग इसे पैसे की बरबारी मानते थे। उसे यह फायदा होता था कि साल भर बाद भी उसे फिल्मी कलाकारों के नाम सही-सही याद थे। उसके पिता के दफ्तर में काम करने वाली जब फिल्म देखने जाती तो वह पहले के बारे में बता देती थी।