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CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Term 2 Set 5 with Solutions

Time Allowed: 2 Hours
Ma×imum Marks: 40

सामान्य निर्देश :

  • निम्नलिखित निर्देशों को बहुत सावधानी से पढ़िए और उनका पालन कीजिए:
  • इस प्रश्न पत्र में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं।
  • इस प्रश्न पत्र में कुल सात प्रश्न पूछे गए हैं। आपको सात प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
  • प्रश्नों में आंतरिक विकल्प भी दिए गए हैं। निर्देशानुसार उत्तर दीजिए।

कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन [20 अंक]

प्रश्न 1.
निम्नलिखित दिए गए तीन शीर्षको में से किसी एक शीर्षक का चयन कर लगभग 200 शब्दों में एक रचनात्मक लेख लिखिए: (5 × 1 = 5)
(क) रेलवे प्लेटफार्म पर एक घंटा
उत्तर:
रेलवे प्लेटफार्म पर एक घंटा रेलवे स्टेशन एक ऐसा स्थान है जहाँ पर अनेक रेलगाड़ियाँ अनेक यात्रियों को लेकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाती हैं। वैसे यदि रेलवे स्टेशन को यात्रियों का मिलन स्थल कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। अभी पिछले सप्ताह ही मुझे अपने एक मित्र को लेने रेलवे स्टेशन जाना पड़ा था। मैं प्लेटफार्म टिकट लेकर रेलवे स्टेशन के नियत प्लेटफार्म पर पहुँच गया। वहाँ जाने पर पता लगा कि गाड़ी एक घंटा देरी से आ रही है। अब प्रतीक्षा के अलावा कुछ नहीं हो सकता था। उस समय प्लेटफार्म पर काफी भीड़ थी। सब तरफ से लोग आते जाते नजर आ रहे थे। कहीं कुली सामान के साथ इधर से उधर जा रहे थे। कुछ लोग बुक-स्टाल पर तो कुछ खाने-पीने की दुकानों पर नजर आ रहे थे।

चाय गर्म, चाय गर्म की आवाज लगाते हुए कुछ रेहड़ी वाले घूम रहे थे। बच्चे वहीं उछल-कूद कर रहे थे। अपना समय बिताने के लिए मैंने भी एक बुक स्टाल से पत्रिका खरीदी और पढ़ने लगा साथ ही गर्म चाय का लुत्फ लेने लगा। अधिकांश महिलाएँ सामान के साथ बैठी हुईं थीं और एक दूसरे से बातचीत करने में मशगूल थीं। इतने में ही उद्घोषण ा हुई कि रेलगाड़ी प्लेटफार्म पर आ रही है। सभी यात्री अपने-अपने समान के साथ गाड़ी में चढ़ने के लिए तैयार हो गए। वहाँ अफरातफरी मच गई। चढ़ने वाले यात्रियों के कारण यात्री उतर ही नहीं पा रहे थे। तभी मुझे मेरा मित्र आता हुआ दिखाई दिया। उसके साथ मैं घर की ओर चल दिया।

(ख) जिंदगी जिंदादिली का नाम है
उत्तर:
जिंदगी जिंदादिली का नाम है जिंदगी जिंदादिली का नाम है एक शायर ने क्या खूब लिखा है’जिंदगी जिन्दादिली का नाम है, मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं।’ जिंदगी उसी की है जो पूरे उत्साह और जोश के साथ इसे जीता है। वास्तव में देखा जाए तो इस प्रकार के मनुष्य ही संसार में असली जीवन जीने का मजा लेते हैं। जो लोग हमेशा निराशा में जीते हैं उनका जीवन निरर्थक होता है। इस प्रकार के लोग खुद तो निराश और हतोत्साहित रहते ही हैं साथ-ही-साथ अपने साथ रहने वाले व्यक्ति को भी निराश कर देते हैं। ऐसे व्यक्ति जीवन में कभी सफल नहीं होते। इसके विपरीत जो व्यक्ति हिम्मत और साहस से जीते हैं, वे हर सफलता प्राप्त करते हैं। कायर व्यक्ति तो कभी भी अपने किसी काम में कोई जोखिम नहीं उठाता क्योंकि वह इससे डरता है। इसके विपरीत जो व्यक्ति उत्साह से जीता है वह हर मुश्किल का सामना करता है और अंततः सफलता प्राप्त करता है। जीवन का असली आनंद भी वही उठाता है जो डर को दूर भगा देता है और दुःख को सहन करने की शक्ति रखता है। अतः कितनी भी बाधाएँ या मुसीबतें आएँ, सबका मुकाबला करते हुए उत्साह से ही जीना सही मायने में जीना है।

(ग) हमारा मोहल्ला
उत्तर:
हमारा मौहल्ला वह मेरा मोहल्ला ही नहीं है मेरा घर है, वह मेरी पहचान है। इसके साथ मेरी अच्छी यादें जुड़ी हैं और वे हमेशा मेरे जीवन का हिस्सा बनी रहेंगी। मेरे लिए मेरा मोहल्ला एक ऐसा स्थान है जहां मैंने अपने बचपन का अधिकांश समय गुजारा है। यह एक ऐसी जगह है जिससे मैं प्यार करता हूँ और मेरा सारा जीवन गुजारना चाहता हूं। यह एक ऐसी जगह है जिससे मैं जुड़ा हुआ हूँ। मुझे इस जगह के बारे में सब कुछ पसंद है – हमारे रहने के घर से लेकर अपने स्कूल तक, मेरे पड़ोस से लेकर स्थानीय बाजार तक, सुंदर स्मारकों से मनोरम भोजन तक। सब कुछ यहाँ बहुत अच्छा है लेकिन मैं इस मोहल्ला के बारे में सबसे ज्यादा जो पसंद करता हूँ वे हैं यहाँ के लोग । यहाँ के लोग बहुत मददगार और मिलनसार है। जब भी मेरे पिता आधिकारिक काम से बाहर रहते हैं तो हमारे पड़ोस की आंटी हमेशा मेरी माँ को सहायता प्रदान करने के लिए तैयार रहती है। यहाँ के लोग बहुत जोशीले और मैत्रीपूर्ण हैं। जब भी मेरा परिवार कहीं बाहर जाते तो हमारे पड़ोस की आंटी हमेशा ध्यान रखतीं। मैं यहाँ अपना सारा जीवन व्यतीत करना चाहता हूँ। मुझे नहीं लगता कि मैं किसी अन्य जगह इतनी खुशी और शांति से रह सकता हूँ।

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प्रश्न 2.
आपके गाँव में परिवहन की कोई सुविधा नहीं है। परिवहन अधिकारी के अध्यक्ष महोदय को अपने गाँव में बस चलाने के लिए पत्र लिखिए।
अथवा
अस्पताल में रोगियों की दुर्दशा पर किसी स्थानीय समाचार पत्र के संपादक के नाम पत्र लिखिए। (5)
उत्तर:
अध्यक्ष
दौसा युवा संगठन, दौसा
दिनांक: 4 जुलाई 20ग्र
सेवा में
अधिकारी महोदय
जयपुर परिवहन निगम
सिंधीकैंप, जयपुर
विषय-गाँव में बस सुविधा आरंभ करने हेतु प्रार्थना पत्र।

महोदय
सविनय निवेदन है कि मैं दौसा का निवासी हूँ। हमारे यहाँ परिवहन की कोई भी सुविधा नहीं है। जयपुर से यहाँ तक आने-जाने के लिए केवल कुछ ही टैक्सी आती हैं जो मनमाने पैसे वसूल करती हैं। उनके आने जाने का कोई निश्चित समय भी नहीं है। चिकित्सा सुविधाएँ, शिक्षा सुविधाएँ आदि के लिए हमें जयपुर जाना पड़ता है। उसके लिए परिवहन विभाग की ओर से कोई व्यवस्था नहीं है। बस पकड़ने के लिए हमें अपने गाँव से बाहर लगभग तीन-चार किलोमीटर पैदल जाना पड़ता है, तब कहीं जाके बस नसीब होती है। टैक्सी से आना-जाना बार-बार संभव नहीं है क्योंकि हर बार मनमाने पैसे देना हमारे बस के बाहर है। इससे पहले भी हमारे गाँव के सरपंच जी ने व्यक्तिगत रूप से आपके विभाग में मिलकर इस समस्या से आपको अवगत करवाया था पर उन्हें कोरा आश्वासन ही मिला। अतः आपसे करबद्ध निवेदन है कि आप हमारी समस्या पर गौर करें और हमारे गाँव में बस चलवाने की व्यवस्था करें। हम सब आपके अत्यंत आभारी रहेंगे।
धन्यवाद।
भवदीय
क.ख.ग.

अथवा

28, पूर्णिमा विहार
नागौर
सेवा में
संपादक महोदय
नवभारत टाइम्स
नागौर
विषय-अस्पताल में रोगियों की दुर्दशा के संबंध में।

महोदय,
मैं पूर्णिमा विहार का निवासी हूँ। यहाँ के प्रसिद्ध साकेत अस्पताल में फैली हुआ अव्यवस्था से रोगियों को बहुत ही दिक्कत हो रही है। यहाँ प्रत्येक रोगी के उपचार और टेस्ट आदि के लिए मुख्यमंत्री सहायता कोश से मुफ्त दवाई और सैंपल आदि लेने की व्यवस्था है। ऐसी व्यवस्था होने पर भी रोगियों को यह सुविधाएँ नहीं दी जा रही हैं। इस कारण उन लोगों की दशा तो बहुत ही बुरी हो जाती है जो बहुत ही गरीब हैं। डॉक्टर वहाँ की दवाईयों को तो बेच देते हैं और मरीजों पर बाहर से दवाईयां लेने का दबाव डालते हैं ।। इसके अतिरिक्त वहाँ पर भर्ती रोगियों के लिए मुफ्त खान-पान की व्यवस्था होने के बाद भी उन्हें समय पर खाना पौष्टिक नहीं मिलता है। रोगियों के परिजन इसका मिलेगा, खाना है तो खाओ नहीं तो घर से मंगा लो। रोगी को पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है और वही उसे नहीं मिले, तो दवाइयों का भी उस पर कोई प्रभाव नहीं होने वाला। सफाई का भी यहाँ हाल-बेहाल है। रोगी के पलंग की चादर तो दिन में एक बार बदली जाती है। नौं और डॉक्टर का मन नहीं होता तो रोगी को देखने भी नहीं आते। इस संबंध में अस्पताल के उप अधीक्षक से बात करने का भी कोई परिणाम नहीं निकला। इस पत्र के माध्यम से मैं चिकित्सा विभाग का ध्यान इस ओर आकर्षित करना चाहता हूँ जिससे ये समस्या दूर हो सके। आशा है आप इस पत्र को अपने समाचार पत्र में स्थान देंगे।
धन्यवाद।
भवदीय
क.ख.ग.

प्रश्न 3.
(क) कहानी लेखन में पात्र के चरित्र चित्रण का क्या महत्व है? उदाहरण द्वारा स्पष्ट कीजिए।
अथवा
नाटक में स्वीकार और अस्वीकार की अवधारणा का क्या तात्पर्य है? स्पष्ट कीजिए। (3)
उत्तर:
किसी भी कहानी में पात्र के चरित्र चित्रण का अत्यधिक महत्व है। पात्रों के बिना कहानी की कल्पना भी नही की जा सकती। आधुनिक कहानी में घटना और व्यापार के स्थान पर पात्र और उसका संघर्ष ही कहानी की धुरी बन गई है और संपूर्ण कहानी उसी के चारों ओर घूमती है। कहानी छोटा आकार और तीव्र प्रभाव लिए हुए होती है इसलिए इसमें पात्र के सबसे अधिक प्रभावपूर्ण पक्ष और उसके व्यक्तित्व की झलक प्रस्तुत की जाती है। अज्ञेय की कहानी ‘शत्रु’ और जैनेन्द्र की कहानी ‘खेल’ में मनोवैज्ञानिक आधार पर चरित्र चित्रण किया गया है इसलिए इन कहानियों के पात्र सजीव, स्वाभाविक और विश्वसनीय लगते हैं और पाठक की भी उसमें रूचि जाग्रत होती है।

अथवा

किसी भी नाटक में स्वीकार के स्थान पर अस्वीकार का महत्व अधिक होता है क्योंकि स्वीकार तत्वों के आ जाने से नाटक अधिक सशक्त हो जाता है। किसी भी दो चरित्रों के आपस में मिलने पर उनके विचारों के आदान-प्रदान में टकराहट का होना स्वाभाविक ही है। वर्तमान स्थिति के प्रति असंतुष्टि, प्रतिरोध, अस्वीकार जैसे नकारात्मक तत्व ही नाटक को सशक्त बनाते हैं क्योंकि रंगमंच कभी भी यथास्थिति को स्वीकार नहीं करता। इसी कारण नाटककारों को राम की अपेक्षा रावण के चरित्र ने अधिक लुभाया। जब भी किसी विचार, व्यवस्था या तत्कालीन समस्या को नाटक में सहज ही स्वीकार किया जाता है तो वह नाटक न तो अधिक सशक्त बन पाता है और न ही दर्शकों को आकर्षित कर पाता

(ख) कविता के दो महत्वपूर्ण घटकों के बारे में बताइए।
अथवा
रेडियो नाटक की कहानी में समय सीमा के महत्व को समझाइए।
उत्तर:
कविता के कुछ महत्वपूर्ण घटक होते हैं, जिनके बिना कविता की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इन्हीं में से दो महत्वपूर्ण घटक निम्नलिखित हैंभाषा-यह कविता का महत्वपूर्ण घटक है क्योंकि इसी के माध्यम से ही कवि अपने विचारों और संवेदनाओं की अभिव्यक्ति करता है। छंद-छंद कविता का महत्वपूर्ण घटक इसलिए है क्योंकि यही कविता को कवित्व रूप प्रदान करते हैं। किसी भी कविता को पद्य शैली में लाने में ये महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं।

अथवा

रेडियो नाटक में समय-सीमा महत्वपूर्ण होती है। सामान्य रूप से किसी भी रेडियो नाटक की अवधि 15-30 मिनट की हो सकती है। इससे अधिक अवधि होने की स्थिति में मनुष्य उलझन की स्थिति में आ जाता है। सामान्य तौर पर मनुष्य की सुनने की एकाग्रता लगभग 30 मिनट तक की होती है। अतः इससे अधिक अवधि में वह एकाग्र नहीं रह पाता । रेडियो नाटक एक ऐसा नाटक होता है जिसे मनुष्य अपने घर में अपनी इच्छानुसार सुन सकता है इसलिए इसकी समय-सीमा निर्धारित ही होनी चाहिए।

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प्रश्न 4.
(क) ‘आतंकवाद एक चुनौती’ विषय पर लगभग 40-50 शब्दों में फीचर लिखिए।
अथवा
‘वर्तमान शिक्षा और भविष्य’ विषय पर लगभग 40-50 शब्दों में आलेख लिखिए। (3)
उत्तर:
‘आतंक’ और ‘डर’ दोनों ही एक दूसरे के पर्याय हैं। लोगों में डर उत्पन्न करने के लिए ही आतंक को लोगों के सामने लाया जाता है। आतंक का प्रमुख उद्देश्य भय उत्पन्न करना है। आतंकवाद के कई रूप हैं-राजनीतिक आतंकवाद, आर्थिक आतंकवाद, धार्मिक आतंकवाद आदि । हमारे देश में आतंकवाद ने अपना स्थान निर्धारित कर लिया है। आज भारत में कोई भी स्थान आतंकवाद से अछूता नहीं है। इसने सब जगह अपनी जड़ें मजबूती से जमा ली हैं। भारत की प्रतिष्ठित प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी जाने अनजाने ही आतंकवाद की भेंट चढ़ गईं। समय बीतने के साथ-साथ ही उनके पुत्र राजीव गाँधी भी इसी आतंकवाद की भेंट चढ़ गए। भारत में संसद भवन पर हमला, मुंबई में आतंकी हमले होना भी आतंकवाद की ही देन है। आज भारत आतंक के साए में ही जी रहा है। कब कहाँ से आतंकी हमला हो जाए इसका कुछ भी पता नहीं। आतंकवाद आज एक ऐसी लाइलाज बीमारी हो गया है जिसका समय रहते यदि इलाज नहीं किया गया तो विश्व से मानवता का नामोनिशान ही मिट जाएगा। आतंकवाद एक ऐसा भस्मासुर बन गया है जिसे भगवान शंकर भी दूर नहीं कर सकते। आज प्रत्येक नागरिक का प्रमुख कर्त्तव्य है एकजुट होकर आतंकवाद को दूर करने का प्रयास करे तथा सरकार की हर संभव मदद करें।

अथवा

आज प्रत्येक व्यक्ति की प्रमुख चिंता है ऐसी उन्नत शिक्षा प्राप्त करना जो हमें आत्मनिर्भर बना सके, रोजगार दिला सके आदि। आज की शिक्षा प्रणाली उस विशाल सरोवर के समान है जो दूर से देखने पर जल से पूर्णतया भरा हुआ दिखाई देता है पर प्यासे की प्यास बुझाने में असफल है। आज शिक्षा प्रणाली में ज्ञान की प्राप्ति करना कठिन हो गया है। आज सर्वत्र व्याप्त भ्रष्टाचार, गुंडागर्दी उन्ही लोगों में अधिक है जो उच्च शिक्षा प्राप्त है। आज शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य मात्र धन कमाना रह गया है। वर्तमान शिक्षा प्रणाली में आदर्शों और मानव मूल्यों का कोई स्थान नहीं रह गया है। इस दिशाहीन शिक्षा को प्राप्त कर अनेक वैज्ञानिक अपने ज्ञान को लक्ष्यहीन दिशा में ले जाते हैं और मानवता के लिए खतरा बन जाते हैं। शिक्षा ने व्यक्ति को इतना स्वार्थी बना दिया है कि उसे स्वयं के फायदे के अलावा कुछ नजर नहीं आता। उनकी बुद्धि आज ही लाभ-हानि दिखाई देता है। वर्तमान शिक्षा में मानव मूल्यों और आदर्शों का स्थान स्वार्थ ने ले लिया है जिससे व्यक्ति एकाकी, अशांत, तनावयुक्त और उच्छृखल हो गया है। उसने अपने लिए ऐसे मूल्य स्थापित कर लिए हैं जिसे दूसरों से कोई सरोकार नहीं है। आज की शिक्षा में मनुष्य विनम्रता और परोपकार का दिखावा तो करता है पर वो वास्तविकता से कोसों दूर है।

(ख) ‘पुस्तकालय की उपयोगिता’ विषय पर लगभग 40-50 शब्दों में आलेख लिखिए।
अथवा
“राष्ट्रभाषा हिंदी’ विषय पर लगभग 40-50 शब्दों में फीचर लिखिए। (2)
उत्तर:
पुस्तकालय शब्द दो शब्दों के मेल से बना है-‘पुस्तक’ और ‘आलय’। इसका अर्थ है ‘पुस्तकों का घर’, अर्थात वह स्थान जहाँ पर विभिन्न विषयों की जानकारी देने हेतु पुस्तकें रखी जाती हैं। अतः इस स्थान को ज्ञान का भंडार भी कहा जा सकता है। एक विद्यार्थी के लिए तो पुस्तकलय बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वहां पर हर विषय की पुस्तकें उपलब्ध होती हैं जो उसके ज्ञानार्जन में सहायक हैं। उच्च कक्षाओं के विद्यार्थी के लिए तो यह बहुत ही उपयोगी है क्योंकि चिकित्सा, इंजीनियरिंग आदि की पुस्तकें एक अकेला विद्यार्थी खरीदने में सक्षम नहीं हो पाता । पुस्तकालय उनकी बहुत मदद करते हैं। पुस्तकालय में केवल पुस्तकें ही उपलब्ध नहीं होतीं अपितु अध्ययन के लिए उपयुक्त शांत वातावरण उपलब्ध होता है। जो पुस्तकें घर के लिए नहीं मिलतीं उन्हें वहीं रीडिंग रूम में पढ़ने की सुविधा उपलब्ध रहती है। पुस्तकालय को तीन वर्गों में बांटा गया है-पहले वर्ग में निजी पुस्तकालय आता है जिसे व्यक्ति अपने व्यक्तिगत उपयोग के लिए बनाता है। दूसरे वर्ग में सार्वजानिक पुस्तकालय आता है, जो सरकार द्वारा सबके उपयोग के लिए होता है। तीसरे वर्ग में शिक्षा संस्थानों का पुस्तकालय आता है जिनका उपयोग उन विद्यालयों में अध्ययनरत विद्यार्थीगण करते हैं। पुस्तकालय सभी वर्गों के लिए उपयोगी होते हैं। इनके अतिरिक्त यहाँ पुरानी और दुर्लभ पुस्तकें भी उपलब्ध होती हैं। अतः ज्ञानार्जन हेतु पुस्तकालय अत्यंत उपयोगी है।

अथवा

हिंदी कोई भाषा नहीं है अपितु संतों की वाणी, अनुभूति और राष्ट्र का स्वर है कभी ये कबीर के ‘अनहद’ तो कभी मैथिलीशरण और दिनकर की ‘भारती’ के रूप में प्रकट हुई है। यह भारत के लिए बड़े ही गर्व की बात है कि जिस संविधान परिषद् ने हिंदी को राष्ट्रभाषा का पद दिया उसमे अहिन्दीभाषी लोगों का अधिक समर्थन था। 1957 में भारत सरकार द्वारा स्थापित ‘राजभाषा आयोग’ के सुझावों पर कुछ मंत्रालयों में हिंदी में कुछ कार्य होने लगे। यह निर्णय लिया गया कि जितना हो सके हिंदी भाषी राज्यों के साथ पत्र व्यवहार भी हिंदी भाषा में ही हो। आकाशवाणी द्वारा प्रसारित विभिन्न कार्यक्रम जैसे-समाचार, नाटक, वाद-विवाद, गीत आदि का प्रसारण हिंदी भाषा में ही किया जाता है जिससे उसकी उन्नति ही हो रही है। दूरदर्शन ने भी हिंदी की उन्नति में पर्याप्त योगदान दिया है। राष्ट्रभाषा किसी भी देश के लिए गौरव का प्रतीक है, वह देश का अभिमान होती है। अतः हमारा कर्तव्य है आडंबर को त्याग कर ही हम अपने इस उद्देश्य में सफल हो सकते हैं। यह हमारा दुर्भाग्य ही है कि हमारे अंदर इस भावना का नितांत अभाव है। हमें अपने दृष्टिकोण व मानसिकता में बदलाव लाना होगा तभी हम हिंदी को देश की एकता के रूप में प्रस्तुत करने में सफल होंगे।

पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 तथा अनुपूरक पाठ्यपुस्तक वितान भाग-2 [20 अंक]

प्रश्न 5.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 × 2 = 6)
(क) ‘धूत कहीं……’ ‘छंद के आधार पर तुलसीदास के भक्त-हृदय की विशेषता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
तुलसीदास ने इस छंद में अपने स्वाभिमान को व्यक्त किया है। वे सच्चे रामभक्त हैं तथा उन्हीं के प्रति समर्पित है। उन्होंने किसी भी कीमत पर अपना स्वाभिमान कम नहीं होने दिया और एकनिष्ठ भाव से राम की आराधना की। समाज के कटाक्षों का उन पर कोई प्रभाव नहीं है। उनका यह कहना कि उन्हें किसी के साथ कोई वैवाहित सम्बन्ध स्थापित नहीं करना, समाज के मुँह पर तमाचा है। वे किसी के आश्रय में भी नहीं हरते। वे भिक्षावृत्ति से अपना जीवन-निर्वाह करते हैं तथा मस्जिद में जो जाते हैं। वे किसी की परवाह नहीं करते तथा किसी से लेने-देने का व्यवहार नहीं रखते। वे बाहर से सीधे हैं, परन्तु हृदय में स्ववाभिमानी भाव को छिपाए हुए

(ख) ‘उषा’ कविता के आधार पर सूर्योदय के साथ टूटने वाले जादू को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सूर्योदय से पूर्व उषा का दृश्य अत्यन्त ही मनोहारी होता है। प्रातःकाल में सूर्य की किरणें आकाश की सुन्दरता में चार चाँद लगा देती है। आकाश का सौन्दर्य इस समय हर पल परिवर्तित होता रहा है। इस पल-पल परिवर्तित सौन्दर्य को ही उषा का जादू कहा गया है। नीले आकाश का आंख के समान पवित्र, काली स्लेट पर नीली खड़िया मलना, नीले जल में गोरी नायिका का प्रतिबिम्ब मिझलमिलाना आदि दृश्य उषाकाल के जादू के समान हैं। ये सभी दृश्य सूर्योदय के साथ के लुप्त हो जाते हैं।

(ग) ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ कविता का प्रतिपाध लिखिए।
उत्तर:
लक्ष्मण को मूर्च्छित देख राम भाव विह्वल हो जाते हैं। वे एक सामान्य व्यक्ति की भांति विलाप करने लगते है। इसके साथ ही वे लक्ष्मण को अपने साथ लाने पर पछताते हैं। लक्ष्मण के गुणों को याद कर वे रोने लगते हैं और कहते हैं कि संसार में पुत्र, नारी, धन और परिवार सब बार-बार मिल जाते हैं पर लक्ष्मण जैसा भाई नहीं मिला सकता। वे लक्ष्मण के बिना स्वयं को पंख कटे पक्षी के समान असहाय, मणिरहित सांप के समान तथा तेजरहित तथा सूंडरहित हाथी के समान असक्षम मानते हैं। वे ये सोच कर चिंतित हो जाते हैं कि आयोध्या लौटने । पर वे अपनी सुमित्रा माँ को क्या जवाब देंगे तथा लोगों का उपहास कैसे सुनेंगे कि पत्नी को पाने के लिए उन्होंने अपने भाई को खो दिया।

CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Term 2 Set 5 with Solutions

प्रश्न 6.
निम्नलिखित चार में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 × 3 = 9)
(क) आदर्श समाज की स्थापना में डॉ. आंबेडकर के विचारों की सार्थकता को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
डॉ. आंबेडकर ने आदर्श समाज की स्थापना के लिए निम्नलिखित बातें कही हैं

  • आदर्श समाज में स्वतंत्रता, समानता और भ्रातृत्व की प्रधानता होगी।
  • किसी भी वांछित परिवर्तन को समाज के एक छोर से दूसरे छोर तक पहुँचाने के लिए गतिशीलता का होना आवश्यक है।
  • समाज के हित में सभी समान भागीदार हों । और उसकी रक्षा के प्रति सजग रहें।
  • अबाध संपर्क के लिए समाज में पर्याप्त साधन होने चाहिए।
  • डॉ. आंबेडकर के उपरोक्त विचार वास्तव में ही एक स्वस्थ समाज की स्थापना कर सकते हैं पर इसे व्यवहार में लाना कठिन है क्योंकि जिस वर्ग ने अपने स्वार्थ के लिए समाज पर अधिकार किया हुआ हो उसे आसानी से हटाया नहीं जा सकता।

(ख) सफिया के मन में क्या द्वंद्व चल रहा था? अंत में सफिया ने क्या निर्णय लिया?
उत्तर:
सफिया के मन में यह द्वंद्व चल रहा था कि वह नमक को सबसे पहले अपने हाथ में रख ले और कस्टम वालों के सामने रख दे। पर यदि कस्टम वालों ने उसे नमक न ले जाने दिया तो उसे यहीं छोड़ना पड़ेगा। यदि ऐसा होता है तो जो वायदा उसने किया वह पूरा नहीं हो पाएगा। अंत में सफिया ने निर्णय लिया कि वह नमक को कीनुओं की टोकरी में सबसे नीच छिपा देगी। उसने यहाँ आते समय देखा था कि फलों की टोकरियों की कोई जांच नहीं हो रही थी। उसे लगा ऐसा करके वह नमक को ले जाने में सफल हो जाएगी और उसका वायदा भी पूरा हो जाएगा।

(ग) ‘पहलवान की ढोलक’ कहानी का प्रतीकार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
“पहलवान की ढोलक’ कहानी व्यवस्था ले बदलने के साथ लोक-कला और इसके कलाकार के अप्रासंगिक हो जाने को रेखांकित करती है। आज पहलवानों को न तो इतना सम्मान मिलता है और न ही इस तरह के दंगल के आयोजन होते हैं। कारण न तो अब पहले जैसे राजा ही रहे और अब मनोरंजन के आधुकि साधन विकसित हो गए हैं। पहलवानी जैसा लोक-खेल समाप्त कर दिया गया। यह ‘भारत’ पर ‘इंडिया’ के छा जाने का प्रतीक है। यह व्यवस्था लोक-कलाकार को भूख मरने पर मजबूर कर देती है।

(घ) लुटटन के अखाड़े में कूदते ही चारों ओर खलबली क्यों मच गई?
उत्तर:
लुटन ने चाँद सिंह को. लड़ने की चुनौती दी और अखाड़े में आ गया। चाँद सिंह उसकी चुनौती सुनकर उपेक्षा से मुस्कराया और बाज की तरह उस पर टूट पड़ा। यह देखकर दंगल के आसपास जुटे दर्शकों में खलबली मच गई। वे लोग लुट्टन सिंह की शक्ति को नहीं जानते थे। अतः उन्हें लगा कि नया सा, कमजोर सा पहलवान चाँद सिंह के हाथों मारा जाएगा। अतः किसी के मुँह से निकला-‘यह पागल है………..अभी मरा । अन्य लोग भी लुट्टन सिंह की मौत को आया देख घबरा उठे। सभा में अचानक खलबली मच गई।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 + 2 = 5)
(क) सिंधु सभ्यता का समाज सौन्दर्य पोषित था, कैसे ? ‘अतीत में दबे पाँव’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
एन फ्रैंक की डायरी के आधार पर नाजियों के अत्याचारों पर टिप्प्णी कीजिए। (3)
उत्तर:
सिंधु सभ्यता के लोग सौन्दर्य प्रिय थे। इस बात का पता वहाँ के नगर नियोजन को देखकर लगता है। यहाँ पारपत नगर, नियोजन, धातु पत्थर की मूर्तियाँ, मृदंग-भांड तथा उन पर चित्रित मनुष्य, वनस्पतियों, पशु-पक्षियों की छवियाँ, मोहरें, खिलौने, आभूषण, अक्षरों का सुंदर व सुगठित लिपिरूप आदि सब कुछ देखकर यही पता चलता है कि उस सभ्यता के लोग कला सिद्ध थे। यहाँ कोई हथियार का न मिलना इस बात की ओर संकेत करता है कि यहाँ अनुशासन सैन्य बल से नहीं था बल्कि लोग स्व-अनुशासित थे। यहाँ कोई महल या मंदिर का न होना इस बात का प्रमाण है कि वहाँ राजतंत्र या धर्मतंत्र जैसी किसी ताकत का प्रदर्शन नहीं था। आम आदमी के काम में आने वाली प्रत्येक वस्तु यहाँ इतने तरीके से बनाई गई है कि उसे देखकर सिंधु समाज के सौन्दर्य बोध का ज्ञान होता है।

अथवा

एन फ्रैंक की डायरी से पता चलता है कि दूसरे विश्व युद्ध में नाजियों ने यहूदियों पर अत्याचार करने की सीमा भी लांघ दी। उनकी दी हुई यातनाओं के भय से यहूदी जमीन से नीचे रहने को मजबूर थे। उनके मन में नजियों के प्रति इतना भय बैठ गया था कि वे अपना सूटकेस लेकर भी बाहर नहीं निकलते थे। सूर्य की रोशनी और चन्द्रमा की शीतलता को अनुभव करना भी उनके वर्जित था। राशन इनके पास कम होता था और बिजली भी नहीं थी। फटे-पुराने कपड़ों और घिसे-पिटे जूतों से इनका काम चलता था।

(ख) ‘कॉलेज ऑफ प्रीस्ट्स’ किसे कहा गया है? ‘अतीत में दबे पाँव’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
अथवा
क्या प्राचीनकाल में रंगाई का काम होता था? ‘अतीत में दबे पाँव’ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मुअनजोदड़ो के महाकुंड के उत्तर पूर्व में एक लम्बी इमारत के अवशेष हैं। इसके बीचों-बीच खुला हुआ बड़ा दालान है। इसमें तीन ओर बरामदे हैं। ऐसा अनुमान है कि कभी इनके साथ छोटे-छोटे कमरे रहे होंगे। पुरातत्ववेत्ताओं का कहना है कि पहले धार्मिक अनुष्ठानों में ज्ञानशालाएँ सटी हुई होती थीं। अतः इसे ही ‘कॉलेज ऑफ प्रीस्ट्स’ कहा गया है।
अथवा
प्राचीनकाल में भी रंगाई का काम होता था। लोग बड़े चाव से यह काम किया करते थे। आज भी मुअनजोदड़ो में एक रंगरेज का कारखाना मौजूद है। यहाँ जमीन में गोल गड्ढे उभरे हुए हैं। इससे यह अनुमान लगाया जाता है कि इसमें रंगाई के लिए बर्तन रखे जाते होंगे। पश्चिम में ठीक गढ़ी के पीछे यह कारखाना मिला है। अतः इस बात को बिना किसी शंका के कहा जा सकता है कि प्राचीन लोग रंगाई का काम किया करते थे।