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CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Term 2 Set 8 with Solutions

Time Allowed: 2 Hours
Ma×imum Marks: 40

सामान्य निर्देश :

  • निम्नलिखित निर्देशों को बहुत सावधानी से पढ़िए और उनका पालन कीजिए:
  • इस प्रश्न पत्र में वर्णनात्मक प्रश्न पूछे गए हैं।
  • इस प्रश्न पत्र में कुल सात प्रश्न पूछे गए हैं। आपको सात प्रश्नों के उत्तर देने हैं।
  • प्रश्नों में आंतरिक विकल्प भी दिए गए हैं। निर्देशानुसार उत्तर दीजिए।

कार्यालयी हिंदी और रचनात्मक लेखन [20 अंक]

प्रश्न 1.
निम्नलिखित दिए गए तीन शीर्षको में से किसी एक शीर्षक का चयन कर लगभग 200 शब्दों में एक रचनात्मक लेख लिखिए: (5 × 1 = 5)
(क) आधुनिक जीवन शैली और तनाव
उत्तरः
आधुनिक जीवन शैली और तनाव विकास के उच्चतम स्तर पर पहुँचने के बाद भी मनुष्य की अधिक पाने की लालसा बढ़ती ही जा रही है। इस अधिक पाने की लालसा और उसे पाने के अधिकाधिक प्रयास ने मनुष्य में तनाव को जन्म दे दिया है। यह हमारे दिमाग में हमेशा रहता है। कोई भी घटना तनाव का कारण नहीं होती बल्कि मनुष्य इससे कैसे प्रभावित होता है यह तनाव का कारण है। तनाव बहुत अच्छा हो सकता है, या नुकसान का कारण हो सकता है। यह उस बहती नदी के समान होता है जो बिना बाँध के बहुत विनाश करती है। तनाव आज हर घर में हर सदस्य में दिखाई देता है। तनाव हमारे लिए नया नहीं है। यह पहले भी होता था पर उस समय यह इतना अधिक नहीं होता था। आज मनुष्य छोटी-से-छोटी बात पर भी तनावयुक्त हो जाता है।

यह तनाव उस पर इस कदर हावी हो जाता है कि उसका परिवार भी इसकी चपेट में आ जाता है। स्वयं को अमर या सर्वाधिक सुखी करने की चाह में मनुष्य व साधनों का ध्यान नहीं रखता। मनुष्य थोड़े में अधिक पाने की प्रवृत्ति रखता है। जब ऐसा नहीं होता तब वह तनावग्रस्त हो जाता है। तनावग्रस्त मनुष्य निराशाजनक जीवन जीने लगता है और चिड़चिड़ा, गुस्सैल प्रवृत्ति का हो जाता है। अतः मनुष्य को रचनात्मक ढंग से नए तरीके से व धैर्य से खुशी को ढूँढ़ना चाहिए । थोड़े समय में अधिक पाने की इच्छा त्याग देनी चाहिए। यदि वह अपनी मनोवृत्ति को सकारात्मक बनाएगा तभी वह सुखी रह पाएगा। मनुष्य का मस्तिष्क बहुत बड़ी भूमि के समान है यहाँ वह खुशी या तनाव उगा सकता है। दुर्भाग्य से यह मनुष्य का स्वभाव है कि अगर वह खुशी के बीज बोने की कोशिश न करे तो तनाव पैदा होता है। खुशी फसल है और तनाव घास-फूस है।

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(ख) सबै दिन होत न एक समान
उत्तरः
सबै दिन होत न एक समान:
व्यक्ति का जीवन सदैव एक जैसा नहीं रहता। सुख और दुःख का चक्र उसके जीवन में निरंतर चलता रहता है। इसका प्रमुख कारण समय की परिवर्तनशीलता है। अतः मानव जीवन के सभी दिन एक समान नहीं होते। परिस्थिति के अनुरूप उसमें परिवर्तन होता रहता है इसलिए अधिक सुख का न तो उसे घमंड करना चाहिए और न अधिक दुःख का विलाप । कुछ लोगों का स्वभाव होता है कि वे अपने सुख के दिनों में अपने मित्रों और परिचितों के साथ सामान्य व्यवहार नहीं करते पर सुख के पल बीतने पर जब उनका सामना वास्तविकता से होता है तो उनका समस्त गर्व नष्ट हो जाता है। समाज में नित नवीन परिवर्तन देखने को मिलते हैं। हमारा इतिहास इसी का प्रमाण है। एक समय था जब भारत सोने की चिड़िया कहलाता था और एक समय वो भी आया जब यही सोने की चिड़िया दासता की जंजीरों में जकड़ती चली गई और आज फिर हम स्वतंत्र देश में जी रहे हैं। यह समय की परिवर्तनशीलता नहीं तो और क्या है।

प्रगति की दौड़ में हम आज भी कई क्षेत्रों में बहुत आगे हैं तो कई क्षेत्रों में बहुत पीछे। समाज के हर क्षेत्र में परिवर्तन दिखाई दे रहा है। सामाजिक, धार्मिक व राजनैतिक क्षेत्र में भारी उथल-पुथल हो रही है। समाज की एकता व अखंडता समाप्ति के कगार पर हैं। सामाजिक स्तर गिर रहा है। इस परिवर्तन से हमें निराश नहीं होना चाहिए। बिना परिवर्तन के व्यक्ति सुख-दुख का अनुभव नहीं कर सकता। अतः प्रतिकूल समय में धैर्य बनाए रखना चाहिए । बुरे दिनों में व्यक्ति को अधिक-से-अधिक सहनशील बनना चाहिए क्योंकि सहनशीलता से कष्टकारक दिन समाप्त हो जाते हैं। समय कभी एक सा नहीं रहता अतः समय बीतने पर कष्ट समाप्त हो जाता है और व्यक्ति के बिगड़े हुए काम बन जाते हैं। यह उक्ति संपन्न व सुखी व्यक्तियों के लिए नसीहत देती है ताकि वे अपने से कमजोर के साथ उपयुक्त व्यवहार करें और साथ ही दुखी व कमजोर व्यक्तियों के लिए धैर्य धारण करने का संदेश देती है। मनुष्य के हाथ में कार्य करना है। वह अपनी इच्छानुसार फल प्राप्त नहीं कर सकता। अतः उसे कार्य करते रहना चाहिए । व्यक्ति अपने जीवन के विषय में कुछ नहीं कह सकता। मनुष्य अभाव में भी कुछ पाने की कल्पना करता हुआ कर्ममय बन सकता है।

(ग) वृक्षारोपण का महत्व
उत्तरः
वृक्षारोपण का महत्व:
वृक्ष प्रकृति की अमूल्य संपदा है। मनुष्य और प्रकृति का संबंध अटूट और घनिष्ठ है। मनुष्य ने इसी की गोद में अपने आँखें खोली हैं और इस ने ही मनुष्य का पालन-पोषण किया है। वह पूर्णतः प्रकृति पर ही निर्भर है। उसका जीवन वृक्षों पर आश्रित है। वृक्षों से मनुष्य को फल-फूल, लकड़ी, जड़ी-बूटियाँ और औषधियाँ प्राप्त होती हैं। पेड़ हमें प्राणवायु देते हैं। वे वर्षा कराने में सहायक होते हैं और भूमि को उर्वरक बनाते हैं। ये अतिवृष्टि और अनावृष्टि आदि प्राकृतिक आपदाओं से हमारी रक्षा करते हैं। मनुष्य जाति को बचाने के लिए हमें वृक्षों को बचाना आवश्यक है। भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय वन नीति के अंतर्गत 50 लाख हेक्टेयर में वृक्षारोपण का लक्ष्य रखा गया है। वन वातावरण को शुद्ध करते हैं। इस प्रकार चौड़ी पट्टी वाले पेड़ वातावरण की धूल को रोक कर वायु को शुद्ध करते हैं। पशुओं के लिए हरा चारा और खाने के लिए ईधन भी यही उपलब्ध कराते हैं। तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या और औद्योगिक इकाइयों के फलस्वरूप वनों का तीव्र गति से हृास हुआ है जो विश्व कल्याण के लिए अपेक्षित नहीं है। वृक्षारोपण का उद्देश्य केवल वृक्षों को लगाना ही नहीं अपितु उनकी समुचित देखभाल करना भी है। अतः इस ओर भावी पीढ़ी को भी ध्यान देना चाहिए।

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प्रश्न 2.
दिन-दिन बिगड़ती कानून-व्यवस्था की समस्या के प्रति चिंता प्रकट करते हुए नगर के पुलिस-कमिश्नर को पत्र लिखिए।
अथवा
आपका पानी का मीटर काफी समय से खराब है। इसकी शिकायत नगर निगम के कार्यपालक अभियंता से करते हुए पत्र लिखिए।
उत्तरः
परीक्षा भवन
जोधपुर
दिनांक: 1 मई 20xx
पुलिस कमिश्नर
पुलिस मुख्यालय
सिविल लाइन्स, जयपुर।
विषय-बिगड़ती कानून व्यवस्था के संबंध में।
महोदय
इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान अपने क्षेत्र में बिगड़ती हुई कानून-व्यवस्था की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। हमारे क्षेत्र के निवासी डर-डर कर जीने को मजबूर हैं। कुछ शरारती तत्व स्थानीय दुकानदारों व रेहड़ी वालों से हफ्ता-वसूली करते हैं। माँग पूरी न करने पर वे ‘पीट करते हैं। राह चलते लोगों के पर्स, नकदी आदि छीन कर भाग जाते हैं। सूरज छिपते ही सड़कें सुनसान हो जाती हैं, गलियों में आए दिन चोरी की घटनाएँ बढ़ती जा रही हैं। शाम को बस स्टैंड के पास कुछ असामाजिक तत्व खड़े रहते हैं। वे आती-जाती महिलाओं एवं लड़कियों पर अश्लील फब्तियाँ कसते हैं। स्थानीय पुलिस को कई बार शिकायत की गई है पर वे सभी रसूखदार हैं इसलिए उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की जा रही है। विरोध करने पर वे चाकू-पिस्तौल का भय दिखाते हैं फलतः यहाँ भय का साया मंडराता रहता है। आशा है कि आप इस समस्या पर गंभीरता से विचार करेंगे तथा क्षेत्र में शांति व्यवस्था को स्थापित करने के लिए कोई ठोस कदम उठाएँगे।
सधन्यवाद
भवदीय
क ख ग

अथवा

परीक्षा भवन
आगरा
दिनांक: 27 मार्च 20xx
कार्यपालक अभियंता
नगर निगम कार्यालय
आगरा।
विषय-खराब मीटर की जानकारी देने हेतु।
महोदय
मैं आपका ध्यान अपने घर पर लगे पानी के खराब मीटर की ओर आकर्षित करता हूँ। हमारे घर का पानी का मीटर पिछले दो माह से खराब है। इस बारे में मीटर की रीडिंग लेने वाले कर्मचारी को हमने लिखित शिकायत भी की थी, परंतु अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई और जल बोर्ड ने एक निश्चित रकम का बिल भेजना शुरू कर दिया। इस कारण हम वास्तव में पानी की खपत का अनुमान नहीं लगा पा रहे हैं। अतः आपसे अनुरोध है कि आप यथाशीघ्र पानी का मीटर ठीक करवाने अथवा इसे बदलवाने की व्यवस्था कराएँ जिससे उचित बिल का भुगतान हो सके और पानी की वास्तविक खपत का भी अनुमान लगाया जा सके। आशा है कि मेरी प्रार्थना को सुनकर आप व्यक्तिगत रुचि लेकर यथोचित कार्यवाई कराने की कृपा करेंगे।
सधन्यवाद
भवदीय
क.ख.ग.

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प्रश्न 3.
(क) रेडियो नाटक की विशेषताएँ लिखिए।
अथवा
विशेष लेखन में किसी भी विषय में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए किन बिंदुओं को ध्यान में रखना चाहिए? (3)
उत्तरः
(क) रेडियो से प्रसारित होने वाले नाटक रेडियो नाटक कहलाते हैं। हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के नाट्य आन्दोलन के विकास में रेडियो नाटक की भूमिका अहम रही है। रेडियो नाटक की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • रेडियो नाटक श्रव्य माध्यम है।
  • रेडियो नाटक की प्रस्तुति संवादों और ध्वनि प्रभावों के माध्यम से होती है।
  • इसमें एक्शन की कोई गुंजाइश नहीं होती।
  • इसकी अवधि सीमित होती है इसलिए पात्रों की संख्या भी सीमित होती है।
  • इसमें पात्र संबंधित सभी जानकारियाँ संवाद और ध्वनि संकेतों के माध्यम से ही उजागर होती है।
  • कहानी केवल घटना प्रधान नहीं होती है बल्कि ध्वनि प्रधान होती है।

अथवा

विशेष लेखन में किसी भी विषय में विशेषज्ञता हा. सिल करने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं को ध्यान में रखना चाहिए

  • जिस विषय में विशेषज्ञता हासिल करना चाहते हैं उसमें आप की वास्तविक रुचि होनी चाहिए |
  • अपनी रुचि के विषय में विशेषज्ञता हासिल करने के लिए उन विषयों से संबंधित पुस्तकें पढ़नी चाहिए।
  • विशेष लेखन के क्षेत्र में सक्रिय लोगों को स्वयं को अपडेट रखना चाहिए।
  • उस विषय के प्रोफेशनल विशेषज्ञों के लेख और विश्लेषणों की कटिंग रखनी चाहिए |
  • उस विषय में जितनी संभव हो उतनी संदर्भ सामग्री जुटाकर रखनी चाहिए।
  •  उस विषय का शब्दकोश अपने पास रखना चाहिए।
  • विषय से जुड़े सरकारी और गैर सरकारी संगठनों और संस्थाओं की सूची, उनकी वेबसाइट का पता, कॉमन टेलीफोन नंबर और उसमें काम करने वाले विशेषज्ञों के नाम आदि की जानकारी अपने पास रखनी चाहिए।

(ख) विशेष लेखन की भाषा शैली संबंधी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
समाचार लेखन की विशेष शैली को समझाइए। (2)
उत्तरः
विशेष लेखन किसी विषय पर या जटिल एवं तकनीकी क्षेत्र से जुड़े विषयों पर किया जाता है, जिसकी अपनी विशेष शब्दावली होती है। इस शब्दावली से संवाददाता को अवश्य परिचित होना चाहिए जिससे विशेष लेखन करते समय उसे किसी भाषा रूपी समस्या से रूबरू ना होना पड़े। उसे इस तरह का लेखन करना चाहिए कि पाठक उस शब्दावली को समझ सके और उसे रिपोर्ट को समझने में परेशानी ना हो।

अथवा

अखबारों में प्रकाशित अधिकांश समाचार एक खास शैली में लिखे जाते हैं। इन समाचारों में किसी भी घटना समस्या या विचार के सबसे महत्वपूर्ण तथ्य सूचना या जानकारी को सबसे पहले पैराग्राफ में लिखा जाता है। उसके बाद पैराग्राफ में उससे कम महत्वपूर्ण सूचना या तथ्य की जानकारी दी जाती है और यह प्रक्रिया तब तक चलती रहती हैं। जब तक समाचार खत्म नहीं हो जाता।

प्रश्न 4.
(क) ‘अच्छे काम पर बच्चों को करें प्रोत्साहित’ विषय पर लगभग 40-50 शब्दों में फीचर लेखन कीजिए।
अथवा
‘फुटपाथ पर सोते लोग’ विषय पर लगभग 40 से 50 शब्दों में फीचर लेखन कीजिए। (3)
उत्तरः
हर मनुष्य अपने जीवन में कभी ना कभी कोई ना कोई गलती हमेशा करता है। मनुष्य का स्वभाव होता है कि वह अपनी गलतियों से ही सबक लेता है। इसका अर्थ हुआ कि गलती ही मनुष्य को अच्छे कार्य के लिए प्रेरित करती है। जब बड़े गलती से प्रेरित होते हैं तो बच्चों को गलती करने पर क्यों हतोत्साहित किया जाता है। उन्हें भी गलती करने पर दोबारा अच्छे कार्य के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए इसके लिए आवश्यक है उन्हें प्रोत्साहित करना। यदि हम उन्हें प्रोत्साहित करेंगे तो वह भी बेहतर कार्य करने को उत्सुक रहेंगे। सामान्यतः 2 वर्ष का बच्चा सीखने समझने के लिए तैयार रहता है और 5 वर्ष तक वह पूर्ण रूप से सीखने बोलने लायक हो जाता है। ऐसे माहौल में यदि बच्चा गलती करता है तो उसे प्यार से समझाया जाए और उसे गलती ना करने के लिए टोका ना जाए। यदि ऐसा किया जाएगा तो वह बार बार गलती नहीं करेगा। बच्चों को यह नहीं पता होता कि वह जो कर रहे हैं। वह सही है या गलत । जब तक उन्हें इसके बारे में नहीं बताया जाएगा तब तक उन्हें अपनी गलती पता नहीं चलेगी। यदि हम प्यार से दुलार से बच्चों को उनकी गलती के बारे में समझाएँ तो वह उसे दोबारा नहीं करेंगे और साथ ही साथ वे अपना काम करने के लिए सदा प्रेरित रहेंगे। बच्चों को अच्छे काम करने पर प्रोत्साहन मिलना चाहिए जिससे वे उत्साह पूर्वक अपना काम संपन्न करें।

अथवा

शहरों की आम समस्या है फुटपाथ पर सोते हुए लोग। जहां एक और महानगरों को विकास का आधार स्तंभ माना जाता है वहीं दूसरी ओर मानव मानव के बीच कितना अंतर है कि कुछ लोग तो धन, उद्योग, सत्ता आदि हर सुख भोगते हैं और कुछ लोग खाने के लिए भी तरस जाते हैं। इसके अतिरिक्त गाँवों से शहर आने वाला एक वर्ग वह होता है जो खूब धन कमाने और अमीर बनने की चाह में गांव को छोड़कर शहर आता है और वहां जब वास्तविकता से उसका सामना होता है तो वह फुटपाथ पर सोने के लिए मजबूर हो जाता है। महंगाई गरीबी आदि के कारण इन लोगों को एक समय का भोजन भी नसीब नहीं होता तो घर में रहना तो जैसे इनके लिए आसमान छूने जैसा हो जाता है। अपने इस सपने को पूरा करने के लिए वह जी तोड़ मेहनत करता है पर फिर भी कुछ स्वार्थी लोगों के द्वारा अक्सर धोखे का शिकार हो जाता है। इसके लिए सरकारी नीतियां भी उतनी ही जिम्मेदार हैं जितना मनुष्य खुद क्योंकि अनेक योजनाएं तो भ्रष्टाचारियों के पेट भरने में ही खत्म हो जाती हैं और गरीब व्यक्ति सुविधाओं की बाट जोहता रहता है और अंततः गरीबी में पैदा होकर उसमें ही पलता बढ़ता है और उसमें ही मर जाता है। फटे पुराने कपड़ों से अपना तन ढंकता है, पानी पीकर पेट की आग बुझाता है और फुटपाथ या किसी भी जगह पर सो जाता है।

(ख) एडवोकेसी पत्रकारिता और वैकल्पिक पत्रकारिता किसे कहते हैं?
अथवा
‘मुद्रित माध्यमों’ की कोई दो विशेषताएँ लिखिए। (2)
उत्तरः
जो पत्रकारिता किसी विचारधारा या विशेष उद्देश्य को उठाकर उसके पक्ष में जनमत बनाती है और लगातार जोर शोर से अभियान चलाती है, वह एडवोकेसी पत्रकारिता कहलाती है और जो मीडिया स्थापित व्यवस्था के विकल्प कोसामने लाने और उसकी अनुकूल सोच को अभिव्यक्त करती हैं वह वैकल्पिक पत्रकारिता कहलाती है।

अथवा

‘मुद्रित माध्यमों’ की दो विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  • इनमें एक ही समाचार को अनेक बार, किसी भी क्रम से और कहीं से भी पढ़ा जा सकता
  • इनमें स्थायित्व होता है इसलिए इसे सुरक्षित रखकर संदर्भ की तरह प्रयुक्त किया जा सकता है।

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पाठ्यपुस्तक आरोह भाग-2 तथा अनुपूरक पाठ्यपुस्तक वितान भाग-2

प्रश्न 5.
निम्नलिखित तीन प्रश्नों में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 × 2 = 6)
(क) भ्रातृशोक में हुई राम की दशा को कवि ने प्रभु की नर लीला की अपेक्षा सच्ची मानवीय अनुभूति के रुप में रचा है। क्या आप इससे सहमत हैं?
उत्तरः
लक्ष्मण के मूर्छित होने पर राम को जिस तरह विलाप करते दिखाया गया है, वह ईश्वरीय लीला की बजाय आम व्यक्ति का विलाप अधिक लगता है। राम के द्वारा कही गईं अनेक बातें ऐसी ही हैं जो उन्हें एक आम व्यक्ति ही सिद्ध करती हैं। उनका कहना ‘यदि मुझे तुम्हारे वियोग का पता होता तो मैं तुम्हें अपने साथ नहीं लाता। मैं अयोध्या जाकर परिवारजनों को क्या मुँह दिखाऊँगा, माता को क्या जवाब दूंगा आदि। इस प्रकार की बातें ईश्वरीय व्यक्तित्व वाले व्यक्ति के लिए कहना संभव नहीं है क्योंकि वह तो होनी को जानता है। उसका कारण व परिणाम भी उसे पहले से ही पता होता है इसलिए वह आम आदमी के समान इस तरह शोक नहीं व्यक्त करता। राम का लक्ष्मण के बिना खुद को अधूरे समझने का विचार आम आदमी ही कर सकता है अलौकिक मानव नहीं। अतः लक्ष्मण के लिए इस प्रकार प्रलाप करना उनकी सच्ची मानवीय अनुभूति के अनुरूप ही है और हम यह कह सकते हैं कि यह विलाप राम की नर लीला की अपेक्षा मानवीय अनुभूति अधिक है।

(ख) “भाषा, बिंब और लय का सुंदर मेल कविता ‘उषा’ को अत्यन्त आकर्षक बनाता है।” इस कथन पर अपने विचार लिखिए।
उत्तरः
उषा कविता में कवि ने अपने बिम्बों को पाठकों तक पहुँचाने के लिए सटीक शब्दावली का प्रयोग किया है। नीला शंख, राख मिला चौका, लाल केसर से धुली सिल, लाल खड़िया मली स्लेट, नीलजल में झिलमिल गोरी देह, ये सभी शब्द सूचक पाठक के अन्तर्मन परे एक स्पष्ट शब्द चित्र अंकित करते हैं। कवि ने बिम्बों की चुनाव भी हमारे नित्य जीवन, घरेलू उपकरणों से किया है। इसके साथ ही अतुकांत होते हुए भी कविता में एक अन्तर्निहित लय का आभास होता है। इस प्रकार कवि ने भाषा, विम्ब और लय को आकर्षक संगम प्रस्तुत किया है।

(ग) “किस प्यार से देखता हैं बच्चा मुँह को ‘में अभिव्यक्त बच्चे के चेष्टाजन्य सौन्दर्य की विशेषता को स्पष्ट करते हुए माँ और बच्चे के स्नेह सम्बन्धों पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तरः
‘किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को’ अंश में बाल सुलभ और चेष्टाजन्य क्रियाएँ साकार हो उठी हैं। माँ बच्चे को नहला-धुलाकर जब अपने घुटनों में लेकर कपड़े पहनाती हैं तो बच्चा अपनत्व भाव से माँ के चेहरे को देखता है और ममता से भरपूर होता है। बच्चा अपनी सारी जरूरतों के लिए जहाँ पर निर्भर होता है, वहीं माँ को बच्चा सर्वाधिक प्रिय होता है। वह उसकी जरूरतों का ध्यान रखती है तथा प्यार और ममता से पोषित करके उसे बड़ा करती है।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित चार में से किन्हीं तीन प्रश्नों के उत्तर दीजिए (3 × 3 = 9)
(क) ‘नमक’ कहानी में ‘नमक’ किसका प्रतीक है? इस कहानी में वतन’ शब्द का भाव दोनों ओर के लोगों को किस प्रकार से भावुक करता है?
उत्तरः
‘नमक कहानी वास्तव में भारत और पाकिस्तान के विभाजन के बाद इन दोनों देशों में रह रहे उन लोगों के प्रेम और स्नेह का प्रतीक है जो विस्थापित और पुनर्वासित होने के बाद भी दिलों के स्नेह के माध्यम से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। शारीरिक रूप से वे लोग भले ही अलग-अलग स्थानों पर रह रहे हों पर मन से वे आज भी एक हैं। इस कहानी में ‘वतन’ शब्द का भाव एक-दूसरे को याद कर अतीत की मधुर यादों में खोने का भाव उत्पन्न कर दोनों ही ओर के लोगों को भावुक कर देता है। दोनों देश के सैनिक आज भी चाहें अपने-अपने देश की सीमा की रक्षा कर रहे हों, उनके राजनीतिक संबंध चाहे कैसे भी हों पर दोनों ही देशों में रहने वाले लोगों को आज भी इन बातों से कोई भी लेना-देना नहीं है।

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(ख) लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्या कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है?
उत्तरः
पहलवान ने ढोल को अपना गुरू माना और एकलव्य की भाँति हमेशा उसी की आज्ञा का अनुकरण करता रहा। ढोल को ही उसने अपने बेटों का गुरु बनाकर शिक्षा दी कि सदा इसको मान देना । ढोल लेकर ही वह राज-दरबार से रुखसत हुआ । ढोल बजा-बजाकर ही उसने अपने अखाड़े में बच्चों लड़कों को शिक्षा दी, कुश्ती के गुर सिखाए । ढोल से ही उसने गाँव वालों को भीषण दुःख में भी संजीवनी शक्ति प्रदान की थी। ढोल के सहारे ही बेटों की मृत्यु का दुख पाँच दिन तक दिलेरी से सहन किया और अंत में वह भी मर गया। यह सब देखकर लगता है कि उसका ढोल उसके जीवन का संबल, जीवन-साथी ही था।

(ग) जाति-प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का भी एक कारण कैसे बनती रही है? क्या यह स्थिति आज भी है?
उत्तरः
जाति-प्रथा भारतीय समाज में बेरोजगारी व भुखमरी का कारण भी बनती रही है। भारत में जाति-प्रथा के कारण व्यक्ति को जन्म के आधार पर एक पेशे से बाँध दिया जाता था। इस निर्णय में व्यक्ति की रुचि, योग्यता या कुशलता का ध्यान नहीं रखा जाता था। उस पेशे से गुजारा होगा या नहीं, इस पर भी विचार नहीं किया जाता था। इस कारण भुखमरी की स्थिति आ जाती थी। इसके अतिरिक्त, संकट के समय भी मनुष्य को अपना पेशा बदलने की अनुमति नहीं दी जाती थी। भारतीय समाज पैतृक पेशा अपनाने पर ही जोर देता था। उद्योग-धंधों की विकास प्रक्रिया व तकनीक के कारण कुछ व्यवसायी रोजगारहीन हो जाते थे। अतः यदि वह व्यवसाय न बदला जाए तो बेरोजगारी बढ़ती है। आज भारत की स्थिति बदल रही है। सरकारी कानून, सामाजिक सुधार व विश्वव्यापी परिवर्तनों से जाति-प्रथा के बंधन काफी ढीले हुए हैं, परंतु समाप्त नहीं हुए हैं। आज लोग अपनी जाति से अलग पेशा अपना रहे हैं।

(घ) पहलवान की ढोलक की उठती गिरती आवाज बीमारी से दम तोड़ रहे ग्रामवासियों में संजीवनी का संचार कैसे करती है?
उत्तरः
महामारी की त्रासदी से जूझते हुए ग्रामीणों को ढोलक की आवाज संजीवनी शक्ति की तरह मौत से लड़ने की प्रेरणा देती थी। यह आवाज बूढ़े बच्चों व जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य उपस्थ्ति कर देती थी। उनकी स्पंदन शक्ति से शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। ठीक है कि ढोलक की आवाज में बुखार को दूर करने की ताकत न थी, पर उसे सुनकर मरते हुए प्राणियों को अपनी आँखें मूंदते समय कोई तकलीफ नहीं होती थी। उस समय वे मृत्यु से नहीं डरते थे। इस प्रकार ढोलक की आवाज गाँव वालों को मृत्यु से लड़ने की प्रेरणा देती थी।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए। (3 + 2 = 5)
(क) ‘स्मृति मेरे लिए पोशाकों की तुलना में ज्यादा मायने रखती हैं’-इस कथन के आधार पर सिद्ध कीजिए कि डायरी लेखन लेखिका के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
अथवा
मुअनजोदड़ो और हड़प्पा के बारे में लेखक क्या बताता है? (3)
उत्तरः
यह कथन सिद्ध करता है कि डायरी लेखन लेखिका के जीवन में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। लेखिका के परिवार ने जैसे ही अज्ञातवास में जाने का निश्चय किया वैसे ही ऐन ने अपनी डायरी को सबसे पहले बैग में रखा और अजीबोगरीब चीजें अपने बैग में डालीं। उनमें से अधिकांश चीजें वो थीं जो उसे उपहार में मिली थीं। उसके लिए उन उपहारों से जुड़ी हुई स्मृतियाँ ज्यादा महत्व रखती थी। वह पोशाकों को उतना महत्व नहीं देती थीं जितना स्मृतियों को। उसने अपनी सभी भावनाओं को अपनी डायरी में अभिव्यक्त किया । ऐसा नहीं था कि वो परिवार में अकेली थीं, उनके परिवार में अन्य सदस्य भी थे। उसने अपने परिवार, समाज व सरकार और अपने विचारों को डायरी में लिखा। डायरी उनकी सच्ची मित्र थी। इससे पता चलता है कि उनके लिए डायरी लेखन ज्यादा महत्व रखता था।

अथवा

मुअनजोदड़ो और हड़प्पा प्राचीन भारत के ही नहीं, दुनिया के दो सबसे पुराने नियोजित शहर माने जाते हैं। ये सिंधु घाटी सभ्यता के परवर्ती यानी परिपक्व दौर के शहर हैं। खुदाई में और शहर भी मिले हैं। लेकिन मुअनजोदड़ो ताम्र काल के शहरों में सबसे बड़ा है। वह सबसे उत्कृष्ट भी है। व्यापक खुदाई यहीं पर सम्भव हुई। बड़ी तादाद में इमारतें, सड़कें, धातु-पत्थर की मूर्तियाँ, चाक पर बने चित्रित भांडे, मुहरें, साजोसामान और खिलौने आदि मिले । सभ्यता का अध्ययन संभव हुआ। उधर सैकड़ों मील दूर हड़प्पा के ज्यादातर साक्ष्य रेलाइन बिछने के दौरान विकास की भेंट चढ़ गए।’ मुअनजोदड़ो के बारे में धारणा है कि अपने दौर में वह घाटी की सभ्यता का केन्द्र रहा होगा। यानी एक तरह की राजधानी माना जाता है। यह शहर दो सौ हैक्टेयर क्षेत्र में फैला था। आबादी कोई पचासी हजार थी। जाहिर है, पाँच हजार साल पहले यह आज के ‘महानगर’ की परिभाषा को भी लांघता होगा।

CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Term 2 Set 8 with Solutions

(ख) मुअनजोदड़ो और चंडीगढ़ के नगरशिल्प की समानताएँ बताइए।
अथवा
ए.एस.एस. का बुलावा आने पर फ्रैंक परिवार में सन्नाटा क्यों छा गया?
उत्तरः
मुअनजोदड़ो और चंडीगढ़ के नगरशिल्प में बहुत कुछ समानताएँ देखी जा सकती हैं। दोनों नगरों में सड़कों के दोनों ओर घर हैं। किसी भी घर का दरवाजा सड़क पर नहीं है। सभी घरों के दरवाजे अंदर गलियों में हैं। दोनों नगरों में घर जाने के लिए मुख्य सड़क के सेक्टर में जाना पड़ता है। उसके बाद घर की गली में प्रवेश करके ही घर पहुँच सकते हैं।

अथवा

दूसरे विश्वयुद्ध में जर्मन लोग यहूदियों पर अत्याचार कर रहे थे और उन्हें यातनागृहों में भेज रहे थे। वहाँ से वे कहीं जा नहीं सकते थे। जब फ्रैंक परिवार में ए.एस.एस. का बुलावा आया तो वे सभी यह सोचकर सन्न रह गए कि अब उन्हें भी असहनीय यातनाओं का शिकार होना पड़ेगा। अतः परिवार के सदस्य किसी गुप्त स्थान पर जाने की तैयारी करने लगे। अपने जीवन के प्रति किसी अनहोनी की आशंका से फ्रैंक परिवार में सन्नाटा छा गया।