CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A Paper 3 are part of CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A Here we have given CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A Paper 3.

CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A Paper 3

Board CBSE
Class IX
Subject Hindi A
Sample Paper Set Paper 3
Category CBSE Sample Papers

Students who are going to appear for CBSE Class 9 Examinations are advised to practice the CBSE sample papers given here which is designed as per the latest Syllabus and marking scheme, as prescribed by the CBSE, is given here. Paper 3 of Solved CBSE Sample Papers for Class 9 Hindi A is given below with free PDF download solutions.

समय : 3 घंटे
पूर्णांक : 80

निर्देश

  • इस प्रश्न-पत्र के चार खंड हैंक, ख, ग और घ।
  • चारों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
  • यथासंभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमशः दीजिए।

खंड {क} अपठित बोध [ 15 अंक ]

प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 20 शब्दों में लिखिए

मानव जीवन में आत्मसम्मान का अत्यधिक महत्त्व है। आत्मसम्मान में अपने व्यक्तित्व को अधिकाधिक सशक्त एवं प्रतिष्ठित बनाने की भावना निहित होती है। इससे शक्ति, उत्साह आदि गुणों का जन्म होता है जो जीवन की उन्नति का मार्ग प्रशस्त करते हैं। आत्मसम्मान की भावना से पूर्ण व्यक्ति संघर्षों की परवाह नहीं करता है और प्रत्येक विषम परिस्थिति से टक्कर लेता है। ऐसे व्यक्ति जीवन में पराजय का मुँह नहीं देखते तथा निरंतर यश की प्राप्ति करते हैं। आत्मसम्मानी व्यक्ति धर्म, सत्य, न्याय और नीति के पथ का अनुगमन करता है। उसके जीवन में ही सच्चे सुख और शांति का निवास होता है। परोपकार, जनसेवा जैसे कार्यों में उसकी रुचि होती है। लोकप्रियता और सामाजिक प्रतिष्ठा उसे सहज ही प्राप्त होती है। ऐसे व्यक्ति में अपने राष्ट्र के प्रति सच्ची निष्ठा होती है तथा मातृभूमि की उन्नति के लिए वह अपने प्राणों को उत्सर्ग करने में भी सुख की अनुभूति करता है।

(क) आत्मसम्मान के कारण मनुष्य में निहित भावना को स्पष्ट कीजिए।
(ख) आत्मसम्मान से मनुष्य में किस प्रकार के गुणों का विकास होता है?
(ग) कैसे व्यक्ति नीति के पथ का अनुगमन करते हैं तथा उनकी रुचि व निष्ठा को स्पष्ट कीजिए।
(घ) ‘प्रतिष्ठित’ शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय अलग कीजिए।
(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर दिए गए प्रत्येक प्रश्न का उत्तर लगभग 20 शब्दों में लिखिए

ओ नए साल कर कुछ कमाल, जाने वाले को जाने दे,
दिल से अभिनंदन करते हैं, कुछ नई उमंगें आने दे।
आने-जाने से क्या डरना, ये मौसम आते-जाते हैं,
तन झुलसे शिखर दुपहरी में, कभी बादल भी छा जाते हैं।
इक वह मौसम भी आता है, जब पत्ते भी गिर जाते हैं,
हर मौसम को मनमीत बना, नवगीत खुशी के गाने दे।
जो भूल हुई जा भूल उसे, अब आगे भूल सुधारा कर,
बदले में प्यार मिलेगा भी, पहले औरों से प्यार तो कर,

(क) कवि नए वर्ष से क्या कह रहा है? स्पष्ट कीजिए।
(ख) “भले जीत का जश्न मना, पर हार को भी स्वीकार तो कर”-पंक्ति से कवि क्या प्रेरणा दे रहा है?
(ग) मौसम के आने-जाने से क्या अभिप्राय है?
(घ) “जो शीश चढ़ाकर चले गए”-पंक्ति किनकी ओर संकेत कर रही है?
(ङ) ‘सुमन’ का पर्यायवाची शब्द क्या है?

खंड {ख} अपठित बोध [ 15 अंक ]

प्रश्न 3.
निर्देशानुसार उत्तर दीजिए

(क) “निर्लिप्त’ शब्द में प्रयुक्त उपसर्ग तथा मूल शब्द लिखिए।
(ख) “नि’ उपसर्ग से दो शब्द बनाइए।
(ग) “मरियल’ शब्द में प्रयुक्त प्रत्यय तथा मूल शब्द लिखिए।
(घ) “इत’ प्रत्यय से दो शब्द बनाइए।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित समस्त पदों का विग्रह करके समास का भेद लिखिए

(क) त्रिभुज,
(ख) परशुधर,
(ग) नीलगाय

प्रश्न 5.
निर्देशानुसार वाक्य परिवर्तन कीजिए

(क) किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। (प्रश्नवाचक वाक्य में बदलिए)
(ख) क्या! मैं भूल कर रहा हूँ? (निषेधवाचक वाक्य में बदलिए)
(ग) लोग पक्षियों को आदमी की नज़र से नहीं देखते हैं। (विधानवाचक वाक्य में बदलिए)
(घ) एक अनुकरणीय उदाहरण है। (प्रश्नवाचक वाक्य में बदलिए)

प्रश्न 6.
निम्नलिखित काव्यांशों में निहित अलंकारों के नाम बताइए

(क) दीनबंधु दुःखियों का दुःख कब दूर करोगे?
(ख) यह जीवन क्या है? निर्झर है।
(ग) पीपर पात सरिस मन डोला।
(घ) बाँधा था विधु को किसने, इन काली जंजीरों से।
फणिवाले कवियों का मुख, क्यों भरा हुआ हीरों से।।

खंड {ग} पाठ्यपुस्तक व पूरक पुस्तक [ 30 अंक ]

प्रश्न 7.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में लिखिए

जानवरों में गधा सबसे बुद्धिहीन समझा जाता है। हम जब किसी आदमी को पहले दरजे का बेवकूफ़ कहना चाहते हैं, तो उसे गधा कहते हैं। गधा सचमुच बेवकूफ़ होता है या उसके सीधेपन एवं उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका निश्चय नहीं किया जा सकता है। गायें सींग मारती हैं, ब्याही हुई गाय तो अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कर लेती है। कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर है, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है, किंतु गधे को कभी क्रोध करते नहीं सुना, न देखा। जितना चाहो गरीब को मारो, चाहे जैसी खराब सड़ी हुई घास सामने डाल दो, उसके चेहरे पर कभी असंतोष की छाया भी न दिखाई देगी। वैशाख में चाहे एकाध बार कुलेल कर लेता हो; पर हमने तो उसे कभी खुश होते नहीं देखा। उसके चेहरे पर एक स्थायी विषाद स्थायी रूप से छाया रहता है। सुख-दु:ख, लाभ-हानि, किसी भी दशा में उसे बदलते नहीं देखा। ऋषि-मुनियों के जितने गुण हैं, वे सभी उसमें पराकाष्ठा पर पहुँच गए हैं पर आदमी उसे बेवकूफ़ कहता है।

(क) जानवरों में किसे सबसे अधिक बुद्धिहीन माना जाता है और क्यों? बुद्धिहीन मनुष्य को क्या कहा जाता है?
(ख) उपर्युक्त गद्यांश में गधे की तुलना किससे की गई है और क्यों?
(ग) किन जानवरों को कभी-कभी क्रोध आ ही जाता है और किस को नहीं?

प्रश्न 8.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में लिखिए

(क) ल्हासा की ओर’ पाठ में लेखक को भिखमंगे के भेष में यात्रा क्यों करनी पड़ी?
(ख) “साँवले सपनों की याद’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि हमें प्रकृति और पक्षी को किस नज़र से देखना चाहिए?
(ग) लेखिका ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की किन-किन विशेषताओं का उल्लेख किया है? मेरे बचपन के दिन पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए।
(घ) “जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।” ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ के आधार पर उत्तर दीजिए कि इस पंक्ति में क्या व्यंग्य किया गया है?

प्रश्न 9.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में लिखिए

आई सीधी राह से, गई न सीधी राह।
सुषुम-सेतु पर खड़ी थी, बीत गया दिन आह!
जेब टटोली, कौड़ी न पाई।
माझी को दें, क्या उतराई?

(क) मनुष्य इस संसार में आकर किन कार्यों में लिप्त हो जाता
(ख) माझी कौन है? कवयित्री उसके लिए क्यों परेशान है?
(ग) “बीत गया दिन’ से कवयित्री का क्या अभिप्राय है?

प्रश्न 10.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 20 शब्दों में लिखिए

(क) गोपी श्रीकृष्ण द्वारा अपनाई गई वस्तुओं को क्यों धारण करना चाहती है? कवि रसखान के सवैये के आधार पर बताइए।
(ख) हथकड़ियों को गहना क्यों कहा गया है? कैदी और कोकिला कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
(ग) “बच्चे काम पर जा रहे हैं कविता के आधार पर बताइए कि यदि बच्चों के लिए भोजन और पढ़ने-लिखने की सुविधाएँ नहीं हैं, तो अन्य सुविधाओं का क्या औचित्य है?
(घ) मेघों के लिए बन-ठन के सँवर के आने की बात क्यों कही गई। है? ‘मेघ आए’ कविता के आधार पर बताइए।

प्रश्न 11.
इरा-धमकाकर क्या किसी को सही मार्ग पर लाया जा सकता है? ‘मेरे संग की औरतें’ पाठ के आधार पर प्रकाश डालिए।
अथवा
‘माटी वाली’ पाठ में भारतीय संस्कृति के विभिन्न रूपों को उजागर किया गया है। यह रूप हमारे लिए किस प्रकार प्रेरणादायक है? अपने शब्दों में स्पष्ट कीजिए।

खंड {घ} लेखन [ 20 अंक ]

प्रश्न 12.
निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत बिंदुओं के आधार पर लगभग 200-250 शब्दों में एक निबंध लिखिए

(क) साहित्य और समाज

संकेत बिंदु

  • साहित्य का अर्थ
  • साहित्य की उपयोगिता
  • साहित्य का जीवन से संबंध
  • उपसंहार

प्रश्न 13.
अपने राज्य के परिवहन प्रबंधक को पत्र लिखकर अपने मोहल्ले तक नया बस मार्ग आरंभ कराने का अनुरोध कीजिए।
अथवा
अपनी छोटी बहन को पत्र लिखकर उसे अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देने के लिए कहें।

प्रश्न 14.
आप सुनील हैं और अपनी एक मित्र रश्मि से उसके जन्मदिन पर आने में असमर्थ होने के कारण क्षमा माँग रहे हैं। उससे होने वाले संवाद को लगभग 50 शब्दों में लिखिए।
अथवा
‘बच्चों का शिक्षा के प्रति कम होता रुझान’ विषय पर दो अध्यापिकाओं में संवाद को लगभग 50 शब्दों में लिखिए।

जवाब

उत्तर 1.
(क) मनुष्य के जीवन में आत्मसम्मान का विशेष महत्त्व है। आत्मसम्मान के कारण मनुष्य अपने व्यक्तित्व को अधिकाधिक सशक्त एवं प्रतिष्ठित बनाता है, साथ ही परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता भी रखता है।

(ख) आत्मसम्मान का व्यक्ति के जीवन में अधिकाधिक महत्त्व है तथा इसके द्वारा मनुष्य में शक्ति, उत्साह, साहस आदि गुणों का जन्म होता है, जो जीवन को उन्नति के मार्ग में प्रशस्त करते हैं।

(ग) आत्मसम्मानी व्यक्ति धर्म, सत्य, न्याय और नीति के पथ का अनुगमन करते हैं। परोपकार, जनसेवा जैसे कार्यों में उनकी रुचि होती है। लोकप्रियता और सामाजिक प्रतिष्ठा उन्हें सहज ही प्राप्त होती है। ऐसे व्यक्ति में अपने राष्ट्र के प्रति सच्ची निष्ठा होती है।

(घ) ‘प्रतिष्ठित’ शब्द ‘इत’ प्रत्यय के संयोग से बना है।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक ‘मानव जीवन में आत्मसम्मान का महत्त्व’ होगा।

उत्तर 2.
(क) कवि नए वर्ष से कुछ चमत्कार करने के लिए कह रहा है। वह कहता है कि जाने वाले वर्ष को जाने दे। नया वर्ष अर्थात् नई उमंगों के आगमन का हृदय से अभिनंदन करो। कहने का

फूटेंगे प्यार के अंकुर भी, वह ज़मीं जरा तैयार तो कर,
भले जीत का जश्न मना, पर हार को भी स्वीकार तो कर,
मत नफ़रत के शोले भड़का, बस गीत प्यार के गाने दे।
इस दुनिया में लाखों आए और आकर चले गए,
कुछ मालिक बनकर बैठ गए, कुछ माल पचाकर चले गए,
कुछ किलों के अंदर बंद रहे, कुछ किले बनाकर चले गए,
लेकिन कुछ ऐसे भी आए, जो शीश चढ़ाकर चले गए,
उन वीरों के पद चिह्नों पर, अब साथी ‘सुमन चढ़ाने दे।

अभिप्राय यह है कि नया वर्ष हमारे जीवन में नई उमंगें लेकर आए।

(ख) ‘भले जीत का जश्न मना, पर हार को भी स्वीकार तो कर” पंक्ति से कवि यह प्रेरणा दे रहा है कि हमें सफलता-असफलता को समान भाव से स्वीकार करना चाहिए। जीत की खुशी या जश्न मनाने के साथ-साथ पराजय को भी पूर्ण रूप से स्वीकार करना चाहिए।

(ग) मौसम के आने-जाने से अभिप्राय मानव जीवन में सुखों और दुःखों के आवागमन से है।

(घ) “जो शीश चढ़ाकर चले गए’–पंक्ति शहीदों की ओर संकेत कर रही है।

(ङ) ‘सुमन’ का पर्यायवाची शब्द ‘प्रसून’ है।

उत्तर 3.

(क) निर्–उपसर्ग, लिप्त-मूल शब्द
(ख) निडर, निवास
(ग) मर-मूल शब्द, इयल-प्रत्यय
(घ) हर्षित, फलित

उत्तर 4.
(क) तीन भुजाओं का समाहार – द्विगु समास यहाँ पूर्वपद (तीन) संख्यावाचक है, इसलिए यहाँ द्विगु समास है |

(ख) परशु धारण करता है जो अर्थात् परशुराम – बहुव्रीहि समास

यहाँ दोनों पद मिलकर एक विशेष (तीसरे) अर्थ का बोध हो रहा है, इसलिए यहाँ बहुव्रीहि समास है।

(ग) नीली है जो गाय – कर्मधारय समास

यहाँ पूर्वपद (नीली) विशेषण और उत्तरपद (गाय) विशेष्य है, इसलिए यहाँ कर्मधारय समास है।

उत्तर 5.

(क) क्या किसी पर भरोसा किया जा सकता है?
(ख) मैं भूल नहीं कर रहा हूँ।
(ग) लोग पक्षियों को आदमी की नज़र से देखें।
(घ) क्या यह एक अनुकरणीय उदाहरण है?

उत्तर 6.

(क) अनुप्रास अलंकार यहाँ ‘द’ वर्ण की निरंतर आवृत्ति हुई है, इस कारण इसमें अनुप्रास अलंकार है।

(ख) रूपक अलंकार यहाँ जीवन को निर्झर के समान न बताकर जीवन को ही निर्झर कहा गया है। अतः यहाँ रूपक अलंकार है।

(ग) पूर्णोपमा अलंकार यहाँ मन-उपमेय, पीपर पात- उपमान, सरिस- वाचक, डोला- साधारण धर्म। अतः उपमा के चारों अंग उपस्थित हैं, इसलिए यहाँ पूर्णोपमा अलंकार है।

(घ) अतिशयोक्ति अलंकार यहाँ कवि ने मोतियों से भरी हुई प्रिया की माँग का वर्णन किया है। विधु या चन्द्र से मुख का, काली जंजीरों से केश और मणिवाले कवियों से मोती भरी माँग का बोध होता है। इसलिए यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है।

उत्तर 7.
(क) जानवरों में ‘गधा’ सबसे अधिक बुद्धिहीन माना जाता है। गधे के सरल स्वभाव, सीधेपन व सहिष्णुता के कारण ही उसे बुद्धिहीन माना जाता है। बुद्धिहीन मनुष्य को ‘गधा’ कहा जाता है।

(ख) उपर्युक्त गद्यांश में गधे की तुलना ऋषि-मुनियों से की गई है, क्योंकि गधा कभी क्रोध नहीं करता। सुख-दुःख, लाभ-हानि में वह एकसमान भाव से रहता है, जैसा भी दो, खा लेता है अर्थात् उसमें ऋषि-मुनियों के सभी गुण पराकाष्ठा पर पहुँच गए हैं।

(ग) गाय और कुत्ते को भी कभी-कभी क्रोध आ ही जाता है, किंतु गधे को कभी क्रोध नहीं आता।

उत्तर 8.
(क) ‘ल्हासा की ओर’ पाठ में लेखक को भिखमंगे के भेष में इसलिए यात्रा करनी पड़ी, क्योंकि तिब्बत के पहाड़ों में लूटपाट का भय बना रहता था। अधिकतर हत्याएँ लूटने के उद्देश्य से होती थीं। लेखक ने डाकुओं से सुरक्षित रहने के लिए तथा अपने जान-माल की रक्षा के उद्देश्य से ऐसा उपाय किया। इसके अतिरिक्त, उस समय (वर्ष 1929-30) भारतीयों का तिब्बत जाना वर्जित था, जिस कारण लेखक को अपनी पहचान छुपाने के लिए भिखमंगे के भेष में यात्री करनी पड़ी।

(ख) हमें प्रकृति को प्रकृति की नज़र से एवं पक्षी को पक्षी की ही नज़र से देखना चाहिए, क्योंकि ये दोनों स्वयं में महत्त्वपूर्ण हैं अर्थात् हमें प्रकृति और पक्षियों की सुरक्षा करनी चाहिए। पर्यावरण की शुद्धता बनाए रखने वाले प्रकृति एवं पक्षियों को अपने सुख के लिए हानि नहीं पहुँचानी चाहिए।

(ग) लेखिका ने अपनी माँ के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है।

  • शिक्षित महिला लेखिका की माँ एक शिक्षित महिला थीं। उन्होंने हिंदी और संस्कृत का अध्ययन किया था।
  • संस्कारों में विश्वास लेखिको की माँ एक संस्कारवान स्त्री थीं। उन्होंने अपनी पुत्री को आरंभ में ही ‘पंचतंत्र’ जैसी पुस्तक पढ़ाई, जिसकी कहानियाँ मनुष्य को जीवन में दैनिक व्यवहार की शिक्षा देती हैं।
  • लिखने की शौकीन लेखिका की माँ को लिखने का भी शौक था। वह मीरा के पद गाती थीं तथा कुछ लिखती भी थीं।

(घ) लेखक ने जूते को टोपी से महत्त्वपूर्ण बताते हुए समाज पर व्यंग्य किया है कि समाज में आदर्शों और अच्छाइयों की तुलना में दिखावा और बुराइयाँ अधिक मूल्यवान समझी जाती हैं। आज आदर्श के स्थान पर झूठ और बुराइयों को महत्त्व दिया जाता है। लोग अपने आपको श्रेष्ठ और अच्छा दिखाने के लिए बनावटी जीवन शैली अपनाते हैं, भले ही जेब में धन हो या न हो, परंतु दिखावा करने के लिए ऋण तक ले लेते हैं, जो सर्वथा अनुचित है।

उत्तर 9.
(क) मनुष्य इस संसार में आकर ईश्वर को प्राप्त करने के लिए सहज मार्ग की अपेक्षा टेढ़े-मेढ़े मार्ग को अपनाने, छल-कपट तथा सांसारिक स्वार्थ आदि को सिद्ध करने में लिप्त हो जाता है।

(ख) कवयित्री ने ईश्वर को माझी कहा है, जो संसार रूपी भवसागर को पार कराने वाला है। कवयित्री माझी के लिए इसलिए परेशान है, क्योंकि उसके पास उसे उतराई में देने के लिए कुछ नहीं है अर्थात् उसने सही प्रकारे से ईश्वर की भक्ति नहीं की, वह ही उसकी उतराई थी।

(ग) ‘बीत गया दिन’ से अभिप्राय है कि कवयित्री ने अपना | दिन अर्थात् सारा जीवन हठयोग साधना करके व्यर्थ में आँवा दिया।

उत्तर 10.
(क) गोपी श्रीकृष्ण द्वारा अपनाई गई वस्तुओं को इसलिए धारण करना चाहती है, ताकि वह कृष्ण की निकटता अनुभव कर सके। वह कृष्ण से अनन्य प्रेम करती है। अतः वह कृष्णमय होना चाहती है।

(ख) हथकड़ियों को गहना इसलिए कहा गया है, क्योंकि इन हथकड़ियों को पहनकर कवि को गर्व है कि देश के लिए संघर्ष करते हुए वह स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहा है। उन्होंने किसी गलत कार्य के फलस्वरूप हथकड़ी नहीं पहनी। मातृभूमि की सेवा के फलस्वरूप यदि अंग्रेजों ने उन्हें बंदी बनाकर हथकड़ी पहना दी है, तो यह किसी आभूषण से कम नहीं है।

(ग) यदि बच्चों के लिए भोजन और पढ़ने-लिखने की सुविधाएँ नहीं हैं, तो उनके लिए अन्य सुविधाओं का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि बच्चों के लिए सबसे पहली सुविधा उनके भोजन का प्रबंध, उनकी शिक्षा, उनके खेलकूद और मनोरंजन के साधन हैं। इन सबसे वंचित होने पर अन्य सुविधाएँ व्यर्थ हैं।

(घ) मेघों के लिए बन-ठन के सँवर के आने की बात इसलिए कही गई है, क्योंकि वर्षभर के बाद जब गाँव में दामाद अर्थात् मेहमान आता है, तो वह पूरी तरह सज-सँवरकर आता है इसी प्रकार एक वर्ष के पश्चात् बादल भी सज-सँवरकर आए हैं। पूरे आकाश में काले-काले बादल छा गए हैं।

उत्तर 11.
यह कथन सर्वथा उचित है कि मनुष्य को डरा-धमकाकर परिवर्तित करना कठिन है। प्यार और आत्मीयता द्वारा व्यक्ति को बदलना अधिक सहज और सरल है। प्रेम और अपनेपन की इच्छा प्रत्येक व्यक्ति के मन में होती है, इसलिए जहाँ व्यक्ति को प्रेम और आत्मीयता अनुभव होती है, वह उसी ओर मुड़ जाता है। यही प्रेम उसे बदल देता है। इसके विपरीत, मनुष्य को डरा-धमकाकर परिवर्तित करना कठिन है, क्योंकि डर और दंड से मनुष्य के मन में विद्रोह की भावना भी उत्पन्न हो सकती है, जो उसे बदलने से रोकती है। फिर वह बदलाव उसके अच्छे के लिए ही क्यों न हो।

मेरे संग की औरतें पाठ में लेखिका की परदादी ने भी चोर के साथ सहज व्यवहार ही किया, उसे बेटा कहकर पानी मँगवीकर पिलाया। चोर को न तो उन्होंने पकड़वाया, न डाँटा, न उपदेश दिया, बल्कि सेवा-भाव जाग्रत किया। चोरी छोड़ने के लिए दबाव भी नहीं डाला, बस इतना ही कहा कि तुम्हारी इच्छी चोरी करो या खेती। परदादी की इस सहज भावना ने चोर का हृदय परिवर्तित कर दिया। उसने चोरी छोड़ दी और खेती की कार्य आरंभ कर दिया। इससे स्पष्ट है कि डराने-धमकाने से किसी को सही मार्ग पर नहीं लाया जा सकता।

अथवा

‘माटी वाली’ पाठ में भारतीय संस्कृति के अनेक रूपों को उजागर किया गया है। माटी वाली एक गरीब, परंतु अत्यंत मेहनती स्त्री थी। साथ ही, वह अपने बूढे और बीमार पति की भी देखभाल करती थी। उसके नए ग्राहक भी शीघ्र ही बन जाते थे। अतः माटी वाली के माध्यम से इस पाठ में मेलजोल बढ़ाने, कर्म में अटूट विश्वास रखने, कर्तव्यशील, पति-परायण आदि सद्गुणों को उभारा गया है। ये सभी गुण भारतीय संस्कृति का अभिन्न भाग हैं।

इसके अतिरिक्त, भारतीय संस्कृति हमें हमारे पूर्वजों का आदर करने की भी सीख देती है। इस पाठ की मालकिन’ पात्र हमें इस गुण का पुनः स्मरण कराती है। अतः यह पाठ हमें भारतीय संस्कृति से परिचित कराते हुए इन गुणों को अपनाने की सीख देता है। हमें अपने अतीत पर गर्व करना चाहिए, उसे संभाल कर रखना चाहिए तथा अपने सभी कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।

उत्तर 12.
साहित्य का अर्थ साहित्य का शाब्दिक अर्थ है- जिसमें हित की भावना सन्निहित हो। साहित्य समाज की चेतना से उपजी प्रवृत्ति है। समाज व्यक्तियों से बना है तथा साहित्य समाज की सृजनशीलता का नमूना है। साहित्य और समाज की संबंध कितना घनिष्ठ है, इसका परिचय साहित्य शब्द की व्युत्पत्ति, अर्थ एवं उसकी विभिन्न परिभाषाओं से प्राप्त होता है।

कवि और लेखक अपने समाज के मस्तिष्क हैं और मुख भी। कवि की पुकार समाज की पुकार है। वह समाज के भावों को प्रकट कर सजीव और शक्तिशाली बना देता है। उसकी भाषा में समाज के भावों की झलक मिलती है।

साहित्य की उपयोगिता साहित्य और समाज का घनिष्ठ संबंध है। साहित्य समाज का प्रतिबिंब है। जनजीवन के धरातल पर ही साहित्य का निर्माण होता है। समाज की समस्त शोभा, उसकी समृद्धि, मान-मर्यादा सब साहित्य पर अवलंबित है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल के शब्दों में, “प्रत्येक देश का साहित्य वहाँ की जनता की चित्त-वृत्ति का संचित प्रतिबिंब है।” समाज की क्षमता और सजीवता यदि कहीं प्रत्यक्ष देखने को मिल सकती है, तो साहित्य रूपी दर्पण में। किसी भी देश, समाज अथवा जाति के उत्थान और पतन का पता उसके साहित्य से ही चलता है। प्राचीन ग्रीक संस्कृति की महत्ता तथा महानता का ज्ञान हमें उसके साहित्य से ही मिलता है। गुप्तकाल भारत का स्वर्णिम युग कहा जाता है, क्योंकि उस समय सर्वोत्कृष्ट साहित्य की रचना हुई थी। साहित्य गतिमान समाज की पहचान है। कालिदास, सूर एवं तुलसी पर हमें गर्व है, क्योंकि उनका साहित्य हमें एक संस्कृति और एक जातीयता के सूत्र में बाँधता है, इसलिए साहित्य केवल हमारे समाज का दर्पण मात्र न रहकर उसका नियामक और उन्नायक भी होता है।

साहित्य का जीवन से संबंध साहित्य द्वारा सामाजिक और राजनीतिक क्रांतियों के उल्लेखों से तो विश्व इतिहास भरा पड़ा है। संपूर्ण यूरोप को गंभीर रूप से प्रभावित करने वाली फ्रांस की क्रांति (1789 ई.), रूसो की ‘सामाजिक अनुबंध’ नामक पुस्तक के प्रकाशन का ही परिणाम थी। आधुनिक काल में चार्ल्स डिकेंस (Charles Dickens) के उपन्यासों ने इंग्लैंड की अनेक सामाजिक एवं नैतिक रूढ़ियों का उन्मूलन कर नूतन व स्वस्थ सामाजिक व्यवस्था का सूत्रपात कराया। यदि अपने देश का साहित्य देखें, तो बिहारी के ‘नहिं पराग नहिं मधुर मधु’ वाले दोहे ने राजा जयसिंह को नारी मोह से मुक्त कराकर कर्तव्य-पालन के लिए प्रेरित किया। कवियों की ऐसी व्यक्तिगत उपलब्धियों की कोई सीमा नहीं।

उपसंहार वास्तव में, समाज और साहित्य का परस्पर अन्योन्याश्रित संबंध है। इन्हें एक-दूसरे से दूर करना संभव नहीं है। अतः आवश्यकता इस बात की है कि साहित्यकार सामाजिक कल्याण हेतु ससाहित्य का सृजन करें। सुंदर समाज निर्माण के लिए साहित्य को माध्यम बनाया जा सकता है। यदि समाज स्वस्थ होगा, तो राष्ट्र शक्तिशाली बन सकता है।

(ख) छात्र असंतोष

संकेत बिंदु

  • भूमिका या प्रस्तावना
  • वर्तमान शिक्षा पद्धति
  • शिक्षा का निजीकरण
  • राजनीति का प्रभाव
  • अन्य कारण
  • छात्र असंतोष को कम करने के उपाय
  • उपसंहार

उत्तर

भूमिका या प्रस्तावना वर्तमान समय में हमारा देश एक शक्तिशाली राष्ट्र है। कहने को देश के युवा प्रसन्न हैं, परंतु वास्तविकता कुछ और ही है। आज सारे देश में छात्र असंतोष व्याप्त है। छात्र असंतोष को आशय है- छात्रों का वर्तमान शिक्षा एवं रोजगार प्रणाली से असंतुष्ट होना। छात्रों की यह असंतुष्टि किसी पाठ्यक्रम को लेकर हो सकती है, किसी रोज़गार प्रणाली को लेकर हो सकती है। इस स्थिति में उनके भीतर स्वाभाविक रूप से संपूर्ण प्रणाली के प्रति असंतोष की भावना जाग्रत हो जाती है।

वर्तमान शिक्षा पद्धति हमारी वर्तमान शिक्षा प्रणाली ऐसी है कि उच्च उपाधि धारण करने के पश्चात् भी अधिकतर छात्र किसी उपयुक्त रोज़गार योग्य नहीं रहते। इसके कारण शिक्षित बेरोज़गारी की विकट स्थिति उत्पन्न हो जाती है। भारत में प्रत्येक वर्ष लगभग पाँच लाख से अधिक छात्र अभियांत्रिकी एवं प्रौद्योगिकी की शिक्षा प्राप्त करते हैं। इनमें से अधिकतर बहुत योग्य अभियंता नहीं होते। इसलिए उन्हें उनकी डिग्री के अनुरूप नौकरी नहीं मिल पाती। इस स्थिति में छात्रों का असंतुष्ट होना स्वाभाविक ही है।

शिक्षा जीवनभर चलने वाली एक प्रक्रिया है। इसलिए समाज एवं देश के हित के लिए इसके उद्देश्य का निर्धारण आवश्यक है। चूंकि समाज एवं देश में समय के अनुसार परिवर्तन होते रहते हैं, इसलिए शिक्षा के उद्देश्यों में भी समय की माँग के अनुसार परिवर्तन होने चाहिए।

शिक्षा का निजीकरण शिक्षा के निजीकरण के कारण उच्च शिक्षा प्रदान करने वाली शिक्षण संस्थाओं की संख्या तो अधिक हो गई है, किंतु इन संस्थाओं में छात्रों का अत्यधिक शोषण होता है। यहाँ शिक्षा के लिए पर्याप्त संसाधनों का भी अभाव होता है। छात्रों द्वारा विरोध किए जाने पर उन्हें संस्थान से निकाले जाने की धमकी दी जाती है।

राजनीति का प्रभाव कुछ स्वार्थी राजनीतिक दल छात्रों को अपने साथ मिलाकर अपना उद्देश्य पूरा करते हैं। इसलिए वे शिक्षण संस्थाओं में राजनीति को बढ़ावा देते हैं। जिस कारण देश के कुछ प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान राजनीति के अखाड़े का रूप लेते जा रहे हैं। ऐसी स्थिति में छात्रों की पढ़ाई बाधित तो होती ही है, साथ ही इस स्थिति के कारण छात्रों में असंतोष की भावना भी उत्पन्न होती है।

अन्य कारण इस प्रकार बेरोज़गारी का डर, पारंपरिक शिक्षा का वर्तमान समय के अनुरूप न होना, व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने वाली शिक्षा संस्थाओं का अभाव, शिक्षण संस्थाओं को राजनीति का केंद्र बनाया जाना, शिक्षकों एवं कर्मचारियों का अपने कर्तव्यों से विमुख होना, निजी शिक्षण संस्थाओं की मनमानी इत्यादि भारत में छात्र असंतोष के कारण

छात्र असंतोष को कम करने के उपाय छात्र असंतोष को दूर करने के लिए सबसे पहले देश की शिक्षा व्यवस्था में सुधार कर इसे वर्तमान समय के अनुरूप करना होगा। इसके लिए व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षण संस्थानों की स्थापना पर्याप्त संख्या में करनी होगी। इसके अतिरिक्त राजनीति को शिक्षा से दूर ही रखना होगा और सुनिश्चित करना होगा कि इन संस्थाओं में शिक्षक एवं कर्मचारी अपनी मनमानी कर छात्रों का भविष्य नष्ट न कर पाएँ।

ऐसी निजी शिक्षण संस्थाएँ, जहाँ छात्रों एवं अभिभावकों का अत्यधिक शोषण हो रहा है, वहाँ उचित कार्रवाई करते हुए इन्हें शोषण से बचाया जाए। इसके लिए शिक्षकों को उनके कर्तव्यों की ओर ध्यान कराना होगा। इन सबके अतिरिक्त, छात्रों का रचनात्मक कार्यों की ओर ध्यान आकृष्ट करके भी छात्र असंतोष को काफ़ी सीमा तक कम किया जा सकता है।

उपसंहार छात्र ही देश का भविष्य होते हैं। उन पर ही समाज और राष्ट्र का जीवन निर्भर होता है। यदि उनका भला नहीं हो पाए, यदि वे बेरोज़गारी का दंश झेल रहे हों, यदि उनके साथ अन्याय हो रहा हो, यदि उनके भविष्य से खिलवाड़ हो रहा हो, तो देश का भला कैसे हो सकता है? निःसंदेह इसके कारण देश की आर्थिक ही नहीं, सामाजिक एवं राजनीतिक प्रगति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इसलिए समय रहते इस समस्या का निदान करना आवश्यक है। हमारे देश के नीति-निर्माताओं को छात्र असंतोष दूर करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए, जिससे राष्ट्र निर्माण में उनकी समुचित भागीदारी सुनिश्चित हो सके।

(ग) भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव

संकेत बिंदु

  • भारतीय संस्कृति से तात्पर्य
  • पाश्चात्य संस्कृति से तात्पर्य
  • भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रतिकूल प्रभाव
  • निष्कर्ष

उत्तर

भारतीय संस्कृति से तात्पर्य भारतीय संस्कृति अध्यात्म प्रधान है, जबकि पश्चिात्य संस्कृति को भौतिक प्रधान माना जाता है। अध्यात्म प्रधान संस्कृति से तात्पर्य अभौतिकतावादी दृष्टिकोण को अत्यधिक महत्त्व मिलने से है। प्राचीनकाल से ही ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ और ‘अतिथि देवो भवः’ के सिद्धांतों में रची-बसी भारतीय संस्कृति में विश्वास, भावना, आस्था, धर्म, रीति-रिवाज़ों, परंपराओं आदि का अत्यधिक महत्त्व रहा है। धर्म प्रधान संस्कृति होने के कारण ही लोगों ने इसे अध्यात्म प्रधान संस्कृति माना है।

पाश्चात्य संस्कृति से तात्पर्य पाश्चात्य संस्कृति भौतिकता प्रधान और वैज्ञानिक संस्कृति है। भौतिकता प्रधान संस्कृति से तात्पर्य ऐसी संस्कृति से है, जो यथार्थवादी दृष्टिकोण को अधिक महत्त्व देती है। भौतिक का सामान्य अर्थ देखने या इंद्रिय बोध से साक्षात् संबंध रखने वाली वस्तु से है अर्थात् जो यथार्थ एवं वास्तविक हो।

भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रतिकूल प्रभाव एक ओर भारतीय समाज पर पाश्चात्य संस्कृति का प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, तो दूसरी ओर यह हमारे लिए हितकारी भी सिद्ध हो रही है। पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव के कारण हममें ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ की भावना कम होती जा रही है। संयुक्त परिवार प्रणाली का विघटन हो रहा है। पारिवारिक जीवन तनावपूर्ण एवं संघर्षपूर्ण हो गया है। पाश्चात्य संस्कृति की नकल के कारण लोग स्वतंत्र होकर जीवन-यापन करना पसंद करते हैं, परिणामस्वरूप वैवाहिक संबंधों में सुदृढ़ता एवं आत्मीयता का अभाव उत्पन्न हो गया है। संयुक्त परिवार में वैवाहिक संबंधों को टूटने से बचाने के लिए जो पारिवारिक पृष्ठभूमि होती है, वर्तमान के एकले या नाभिक परिवारों में उसका अभाव है।

पश्चिमीकरण के अंतर्गत मौजूद आधुनिक मूल्यों का अनुकरण करना तो तार्किक एवं उपयुक्त लगता है, लेकिन पाश्चात्य संस्कृति के अन्य तत्त्वों का अंधानुकरण अनुचित है, किंतु पाश्चात्य संस्कृति का अनुकरण करने की होड़ में हम अपनी भाषा, संस्कृति, वेशभूषा, रहन-सहन, कला-विज्ञान, साहित्य आदि सभी कुछ भूल गए हैं। आज पाश्चात्य संस्कृति का अंधानुकरण करने वाले भारतवासियों को ‘मैथिलीशरण गुप्त’ की इन पंक्तियों पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।

“यह ठीक है, पश्चिम बहुत ही कर रहा उत्कर्ष है, पर पूर्व-गुरु उसका यही पुरु वृद्ध भारतवर्ष है।”

निष्कर्ष इस प्रकार भारतीय और पाश्चात्य संस्कृति में परस्पर विरोध नहीं, बल्कि अन्योन्याश्रित संबंध है। अतः हमें बुद्ध के सम्यक् सिद्धान्त का अनुसरण कर, जिसको समझाते हुए उन्होंने कहा था-सितार की तार को इतना न कसो कि वह टूट जाए और उसे इतना भी ढीला न छोड़ो कि वह बज ही न सके, दोनों संस्कृतियों की अच्छाइयों को ग्रहण करना एवं उनकी कमियों का त्याग करना चाहिए।

उत्तर 13.

परीक्षा भवन,
लखनऊ।
दिनांक 10 फरवरी, 20××

सेवा में,
प्रबंधक,
उत्तर प्रदेश परिवहन निगम,
लखनऊ।

विषय इलाहाबाद में अल्लापुर टैगोर टाउन तक बस सेवा आरंभ कराने हेतु।

महाशय,

हम इलाहाबाद के अल्लापुर टैगोर टाउन के निवासी आपसे अनुरोध करते हैं कि हमारी कॉलोनियाँ काफ़ी घनी एवं अत्यधिक जनसंख्या वाली हैं। यहाँ लगभग 5,000 परिवार रहते हैं, जिनमें हज़ारों लोग बस के दैनिक यात्री हैं। अभी तक उन्हें नगर सेवा की बस पकड़ने के लिए 2 किमी दूर तक जाना पड़ता है, जिससे धन एवं समय दोनों व्यर्थ होते हैं। आपसे निवेदन है कि इस मोहल्ले या कॉलोनी में भी एक बस-स्टॉप बनवाया जाए, ताकि हज़ारों लोगों को प्रतिदिन परेशानी का सामना न करना पड़े। इस मार्ग पर बसें चलने से उन्हें यात्री भी बहुत मिलेंगे और यहाँ के निवासियों को लाभ भी होगा।

धन्यवाद।
निवेदक
अल्लापुर टैगोर टाउन के निवासीगण
इलाहाबाद

अथवा

दिनांक 12 जनवरी, 20××
प्रिय बहन सुरभि,
शुभ प्यार!

कल माँ से फ़ोन पर बात करते हुए पता चला कि आजकल तुम्हारा स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता है। हमेशा कुछ-न-कुछ समस्या रहती ही है। मुझे लग रहा है कि तुम अपने स्वास्थ्य को लेकर अधिक सतर्क नहीं हो।

प्यारी बहन, एक बात जान लो, यदि शरीर स्वस्थ और सक्षम नहीं रहेगा, तो दुनिया में कोई काम नहीं किया जा सकता है। इसलिए सबसे अधिक आवश्यक है, स्वयं को स्वस्थ रखना। इसके लिए दिनचर्या को नियमित करना, प्रतिदिन व्यायाम या योग करना, पौष्टिक एवं बिना तेल-मसाले का खाना खाने की आदत डालना, हमेशा प्रसन्न एवं चुस्त रहना आदि बहुत आवश्यक है।

आशा है, तुम मेरी बातों पर ध्यान अवश्य दोगी और स्वयं को स्वस्थ रखने के प्रति सतर्क रहोगी।

घरे में सभी बड़ों को मेरा चरण-स्पर्श तथा छोटों को प्यार।

तुम्हारा भाई
प्रसून
दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रावास, जुबली हॉल
दिल्ली।

उत्तर 14.

सुनील रश्मि! मैं तुमसे एक महत्त्वपूर्ण बात कहना चाहता हूँ।

रश्मि हाँ, हाँ, कहो। क्या बात है?

सुनील रश्मि! मैं परसों तुम्हारे जन्मदिन पर तुम्हारे यहाँ नहीं आ पाऊँगा। कृपया क्षमा करना।

रश्मि तुम क्यों नहीं आ सकोगे? क्या कोई विशेष बात है?

सुनील हाँ, उसी दिन मुझे अपनी माँ को डॉक्टर को दिखाने के लिए शहर से बाहर जाना है, जहाँ से लौटने में देर रात हो जाएगी।

रश्मि अरे! यह तो सचमुच बहुत आवश्यक कार्य है।

सुनील हाँ, इसे टालना ठीक नहीं होगा और फिर डॉक्टर भी तो हमेशा उपलब्ध नहीं रहते।

रश्मि कोई बात नहीं, सुनील! हम दोनों इसे बाद में एक साथ सेलिब्रेट कर लेंगे।

सुनील तो ठीक है, रश्मि! मैं उसके अगले दिन तुमसे मिलूंगा। अब चलें। बाय। रश्मि बाय, बाय।

अथवा

मनीषा शिवानी मैडम! आजकल के बच्चों को पता नहीं क्या हो गया है?

शिवानी क्यों, मैडम क्या हुआ?

मनीषा हुआ तो कुछ नहीं, लेकिन मुझे आजकल के बच्चों में शिक्षा के प्रति रुचि सामान्य रूप से कम होती प्रतीत हो रही है।

शिवानी ये बात तो आप बिलकुल सही कह रही हो मैडम

मनीषा लेकिन मैं यह नहीं समझ पा रही हूँ, ऐसा क्यों हो रहा है?

शिवानी मनीषा मैडम, इसका सबसे बड़ा कारण बच्चों की टेलीविजन एवं कंप्यूटर में बढ़ती रुचि है।

मनीषा सही कह रही हो मैडम आप, इन साधनों का उपयोग बच्चों द्वारा केवल मनोरंजन के लिए ही किया जा रहा है। इन्हें ज्ञान प्राप्ति का साधन नहीं बनाया जा रहा है।

शिवानी हाँ मैडम, बच्चों को मनोरंजन की बुरी आदत लग रही है। इसी का परिणाम है कि उनका पढ़ने में मन नहीं लगता है।

मनीषा वास्तव में, बच्चों में शिक्षा के प्रति कम होती रुचि का यह सबसे प्रमुख कारण है।

शिवानी हमें इसका कोई-न-कोई हल निकालना होगा।

मनीषा बिलकुल, सही कहा आपने।

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