By going through these CBSE Class 12 Hindi Notes Chapter 1 आत्म-परिचय, एक गीत Summary, Notes, students can recall all the concepts quickly.
आत्म-परिचय, एक गीत Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 1
आत्म-परिचय, एक गीत कविता का सारांश
“आत्मपरिचय कविता हरिवंश राय बच्चन के काव्य-संग्रह ‘बुद्ध और नाचघर से ली गई है। इस कविता में कवि ने मानव के। आत्म-परिचय का चित्रण किया है। आत्मबोध अर्थात अपने को जानना संसार को जानने से ज्यादा कठिन है। व्यक्ति का समाज से घनिष्ठ : – संबंध है, इसलिए संसार से निरपेक्ष रहना असंभव है। इस कविता में कवि ने अपना परिचय देते हुए लगातार दुनिया से अपनी दुविधा और । वंद्वपूर्ण संबंधों का रहस्य ही प्रकट किया है। कवि कहता है कि वह इस सांसारिक जीवन का संपूर्ण भार अपने कंधों पर लिए फिर रहा है। सारे भार को उठाने के पश्चात भी वह
जीवन में प्यार लिए घूम रहा है। वह कहता है कि मेरी हृदय रूपी वीणा को किसी ने प्रेम से छूकर झंकृत कर दिया और मैं उसी झंकृत – वीणा के साँसों को लिए दुनिया में घूम रहा हूँ। – प्रेम रूपी मदिरा को पी लिया है, इसलिए वह तो इसी में मग्न रहता है। उसे इस संसार का बिल्कुल भी ध्यान नहीं है। यह संसार केवल उनकी पूछ करता है जो उसका गान करते हैं। यह स्वार्थ के नशे में डूबकर औरों को अनदेखा कर देता है। मैं तो अपनी मस्ती में डूब : मन के गीत गाता रहता हूँ। उसे इस संसार से कोई लेना-देना नहीं है। यह एकदम अपूर्ण है अतः उसे यह अच्छा नहीं लगता। वह तो अपने हृदय में भाव का उपहार लिए फिर रहा है।
उसका अपना एक स्वप्निल-संसार है। उसी संसार को लिए वह विचरण कर रहा है। वह अपने हृदय में अग्नि जलाकर स्वयं उसमें जलता रहता है। वह अपने जीवन को समभाव होकर जीता है। वह सुख-दुख दोनों अवस्थाओं । में मग्न रहता है। संसार एक सागर के समान है। ये दुनिया वाले इस संसार रूपी सागर को पार करने हेतु नाव बना सकते हैं। उसको इस नाव की कोई आवश्यकता नहीं है। वह तो सांसारिक खुशियों में डूब कर यूँ ही बहना चाहता है।
कवि कहता है कि एक तो उसके पास जवानी का जोश है तथा दूसरा उस जोश में छिपा दुख है। इसी कारण वह बाह्य रूप से तो हँसता हुआ दिखता है लेकिन आंतरिक रूप से निरंतर रोता रहता है। वह अपने हृदय में किसी की यादें समाए फिर रहा है। कवि प्रश्न करता है। कि आंतरिक सत्य कोई नहीं जान पाया। अनेक लोग प्रयास करते-करते खत्म हो गए लेकिन सत्य की थाह तक कोई नहीं पहुंच पाया। नादान वहीं होते हैं, जहाँ अक्लमंद निवास करते हैं। फिर भी यह संसार मूर्ख नहीं है जो इसके बावजूद भी सीखना चाहता है।
कवि और संसाररीका कोई संबंध नहीं है। उसकी राह कोई और थी तथा संसार की कोई और। वह न जाने प्रतिदिन कितने जग बना-बना 5 कर मिटा देता है। यह संसार जिस पृथ्वी पर रहकर अपना वैभव जोडना चाहता है, वह प्रति पग इस पृथ्वी के वैभव को ठुकरा देता है। 14 उसके रुदन में भी एक राग छिपा है तथा उसकी शीतल वाणी में क्रोध रूपी आग समाहित है। वह ऐसे विराट खंडहर का अंश अपने साथ
लिए फिरता है, जिस पर बड़े-बड़े राजाओं के महल भी न्योछावर हो जाते हैं। यह संसार तो अजीब है जो उसके रोने को भी गीत समझता है। दुखों की अपार वेदना के कारण जब वह फूट-फूट कर रोया तो इसे संसार ने उसके छंद समझे। वह तो इस जहाँ का एक दीवाना है लेकिन यह संसार उसे एक कवि के रूप में क्यों अपनाता है? वह तो दीवानों का वेश धारण कर अपनी मस्ती में मस्त होकर घूम रहा है। वह तो मस्ती का एक ऐसा संदेश लेकर घूम रहा है, जिसको सुनकर ये संसार झम उठेगा, झुक जाएगा तथा लहराने लगेगा।
एक गीत कविता का सारांश
‘एक गीत’ कविता हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित उनके काव्य-संग्रह निशा निमंत्रण में संकलित है। बच्चन जी हालावाद के प्रवर्तक कवि हैं तथा आधुनिक हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार माने जाते हैं। प्रस्तुत कविता में कवि ने समय के व्यतीत होने के एहसास के साथ-साथ लक्ष्य तक पहुँचने के लिए प्राणी द्वारा कुछ कर गुजरने के जज्बे का चित्रण किया है। इस कविता में कवि की रहस्यवादी चेतना मुखरित हुई है। समय चिर-परिवर्तनशील है जो निरंतर गतिशील है। यह क्षणमात्र भी नहीं रुकता और न ही किसी की परवाह करता है। यहाँ प्रत्येक प्राणी अपनी मंजिल को पाने की चाह लेकर जीवन रूपी मार्ग पर निकलता है।
वह यह सोचकर अति शीघ्रता से चलता है कि कहीं उसे मार्ग में चलते-चलते रात न हो जाए। उसकी मंजिल भी उससे दूर नहीं, फिर वह चिंता में मग्न रहता है। पक्षियों के बच्चे भी अपने घोंसलों में अपने माँ-बाप को न पाकर परेशानी से भर उठते हैं। घोंसलों में अपने बच्चों को अकेला छोड़कर गए पक्षी भी इसी चिंता में रहते हैं कि उनके बच्चे भी उनकी आने की आशा में अपने-अपने घोंसलों से झाँक रहे होंगे। जब-जब ये ऐसा सोचते हैं तब यह भाव उनके पंखों में न जाने कितनी चंचलता एवं स्फूर्ति भर देता है। मार्ग पर चलते-चलते प्राणी यह चिंतन करता है कि इस समय उससे मिलने के लिए कौन इतना व्याकुल हो रहा होगा?
फिर वह किसके लिए इतना चंचल हो रहा है या वह किसके लिए इतनी शीघ्रता करे। जब भी राही के मन में ऐसा प्रश्न उठता है तो यह प्रश्न उसके पैरों को सुस्त कर देता है तथा उसके हृदय में व्याकुलता भर देता है। इस प्रकार दिन अत्यंत शीघ्रता से व्यतीत हो रहा है।
आत्म-परिचय, एक गीत कवि परिचय
जीवन-परिचय-श्री हरिवंश राय बच्चन हालावाद के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं। इनका आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म 21 नवंबर, 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के प्रयाग (इलाहाबाद) के एक साधारण कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा म्युनिसिपल स्कूल में हुई। बाद में कायस्थ पाठशाला तथा गवर्नमेंट स्कूल में भी पढ़ाई की। प्रयाग विश्वविद्यालय में एम० ए० (अंग्रेज़ी) में दाखिला लिया, लेकिन असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।
1939 ई० में काशी विश्वविद्यालय से बी० टी० सी० की डिग्री प्राप्त की थी। ये 1942 से 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत रहे। इसके बाद ये इंग्लैंड चले गए। वहाँ इन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से एम० ए० तथा पी-एच० डी० की उपाधि ग्रहण की। सन 1955 ई० में भारत सरकार ने इन्हें विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर नियुक्त किया। जीवन के अंतिम क्षणों तक वे स्वतंत्र लेखन करते रहे। इन्हें सोवियतलैंड तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
‘दशद्वार से सोपान तक’ रचना पर इन्हें सरस्वती सम्मान दिया गया। इनकी प्रतिभा और साहित्य सेवा को देखकर भारत सरकार ने इनको ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। 18 जनवरी, 2003 को ये इस संसार को छोड़कर चिरनिद्रा में लीन हो गए। रचनाएँ-हरिवंश राय बच्चन जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। उन्होंने अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाई है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
(i) काव्य-संग्रह-मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल-अंतर, मिलय यामिनी, सतरंगिणी, आरती और अंगारे, नए-पुराने झरोखे, टूटी-फूटी कड़ियाँ, बुद्ध और नाचघर
(ii) आत्मकथा चार खंड-क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक।
(iii) अनुवाद-हैमलेट, जनगीता, मैकबेथ।
(iv) डायरी-प्रवास की डायरी।
साहित्यिक विशेषताएँ-हरिवंश राय बच्चन एक श्रेष्ठ साहित्यकार थे, जिन्होंने हालावाद का प्रवर्तन कर साहित्य को एक नया मोड़ दिया। उनका एक कहानीकार के रूप में उदय हुआ था, लेकिन बाद में अपने बुद्धि-कौशल के आधार पर उन्होंने अनेक विधाओं पर लेखनी चलाई। उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) प्रेम और सौंदर्य-हरिवंश राय बच्चन हालावाद के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं जिसमें प्रेम और सौंदर्य का अनूठा संगम है। इन्होंने साहित्य में प्रेम और मस्ती की एक नई धारा प्रवाहित थी। इन्होंने प्रेम और सौंदर्य को जीवन का अभिन्न अंग मानकर उनका चित्रण किया है। ये प्रेम-रस में डूबकर रस की ऐसी पिचकारियाँ छोड़ते हैं जिससे संपूर्ण जग मोहित हो उठता है। वे कहते हैं
इस पार प्रिये, मधु है तुम हो
उस पार न जाने क्या होगा?
बच्चन जी ने अपने काव्य में ही नहीं बल्कि गद्य साहित्य में भी प्रेम और सौंदर्य की सुंदर अभिव्यक्ति की है। वे तो इस संवेदनहीन । और स्वार्थी दुनिया को ही प्रेम-रस में डुबो देना चाहते हैं। वे प्रेम का ऐसा ही संदेश देते हुए कहते हैं
मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ,
जिसको सुनकर जग झूम झुके लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ !
(ii) मानवतावाद-मानवतावाद एक ऐसी विराट भावना है जिसमें संपूर्ण जगत के प्राणियों का हित-चिंतन किया जाता है। बच्चन जी केवल प्रेम और मस्ती में डूबे कवि नहीं थे बल्कि उनके साहित्य में ऐसी विराट भावना के भी दर्शन होते हैं। उनके साहित्य में | मानव के प्रति प्रेम-भावना अभिव्यक्त हुई है। इन्होंने निरंतर स्वार्थी मनुष्यों पर कटु व्यंग्य किए हैं।
(iii) वैयक्तिकता-हरिवंश राय बच्चन के साहित्य में व्यक्तिगत भावना सर्वत्र झलकती है। उनकी इस व्यक्तिगत भावना में सामाजिक भावना मिली हुई है। एक कवि की निजी अनुभूति भी अर्थात सुख-दुख का चित्रण भी समाज का ही चित्रण होता है। बच्चन जी ने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर ही जीवन और संसार को समझा और परखा है। वे कहते हैं
मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ,
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ।
हत्यारमकता का जामष्यक्ति हो
(v) सामाजिक चित्रण-हरिवंश राय बच्चन सामाजिक चेतना से ओत-प्रोत कवि हैं। उनके काव्य में समाज की यथार्थ अभिव्यक्ति हुई है। इनकी वैयक्तिकता में भी सामाजिक भावना का चित्रण हुआ है।
(vi) भाषा-शैली-हरिवंश राय बच्चन प्रखर बुद्धि के कवि थे। उनकी भाषा शदध साहित्यिक खड़ी बोली है। संस्कत की तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग हुआ है। इसके साथ-साथ तद्भव शब्दावली, उर्दू, फारसी, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। कवि ने प्रांजल शैली का प्रयोग किया है जिसके कारण इनका साहित्य लोकप्रिय हुआ है। गीति शैली का भी इन्होंने प्रयोग किया है।
(vii) अलंकार-बच्चन के साहित्य में प्रेम, सौंदर्य और मस्ती का अद्भुत संगम है। इन्होंने अपने काव्य में शब्दालंकार तथा अर्थालंकार दोनों का सफल प्रयोग किया है। अलंकारों के प्रयोग से इनके साहित्य में और ज्यादा निखार और सौंदर्य उत्पन्न हो गया है। इनके साहित्य में अनुप्रास, यमक, श्लेष, पदमैत्री, स्वरमैत्री, पुनरुक्ति प्रकाश, उपमा, रूपक, मानवीकरण आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है। जैसे हो जाय न पथ में रात कहीं, मंजिल भी तो है दूर नहीं यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।
(viii) बिंब योजना-कवि की बिंब योजना अत्यंत सुंदर है। इन्होंने भावानुरूप बिंब योजना की है। ऐंद्रियबोधक बिंबों के साथ सामाजिक राजनीतिक आदि बिंबों का सफल चित्रण हुआ है।
(ix) रस-बच्चन जी प्रेम और सौंदर्य के कवि हैं, अत: उनके साहित्य में शृंगार रस के दर्शन होते हैं। श्रृंगार रस के संयोग पक्ष की अपेक्षा उनका मन वियोग पक्ष में अधिक रमा है। उन्होंने वियोग-शृंगार का सुंदर वर्णन किया है। इसके साथ रहस्यात्मकता को प्रकट करने के लिए शांत रस की भी अभिव्यंजना की है। वस्तुतः हरिवंश राय बच्चन हिंदी-साहित्य के लोकप्रिय कवि माने जाते हैं। उन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाकर हिंदी-साहित्य की श्रीवृद्धि की है। हिंदी-साहित्य में उनका स्थान अद्वितीय है।