By going through these CBSE Class 12 Hindi Notes Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप Summary, Notes, students can recall all the concepts quickly.

कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 8

कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप कविता का सारांश

(i) कवितावली (उत्तर-कांड से) प्रसंग में कवि ने अपने समय का यथार्थ चित्रण किया है। कवि का कथन है कि समाज में किसान, बनिए, भिखारी, भाट, नौकर-चाकर, चोर आदि सभी की स्थिति अत्यंत दयनीय है। समाज का उच्च और निम्न वर्ग धर्म-अधर्म का प्रत्येक कार्य करता है। यहाँ तक कि लोग अपने पेट की खातिर अपने बेटा-बेटी को बेच रहे हैं।

पेट की आग संसार की सबसे बड़ी पीड़ा है। समाज में किसान के पास करने को खेती नहीं, भिखारी को भीख नहीं मिलती। व्यापारी के पास व्यापार नहीं तथा नौकरों के पास करने के लिए कोई कार्य नहीं। समाज में चारों ओर बेकारी, भूख, गरीबी और अधर्म का बोलबाला है। अब तो ऐसी अवस्था में दीन-दुखियों की रक्षा करनेवाले श्री राम ही कृपा कर सकते हैं। अंत में कवि समाज में फैली जाति-पाति और छुआछूत का भी – खंडन करते हैं।

(ii) ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ प्रसंग लोक-नायक तुलसीदास के श्रेष्ठ महाकाव्य ‘रामचरितमानस’ के लंकाकांड से लिया गया । है। प्रस्तुत प्रसंग में कवि ने लक्ष्मण को शक्ति बाण लगने के पश्चात उनकी मूर्छा-अवस्था तथा राम के विलाप का कारुणिक चित्र प्रस्तुत किया है। यहाँ कवि ने शोक में डूबे राम के प्रलाप तथा हनुमान जी का संजीवनी बूटी लेकर आने की घटना का सजीव अंकन किया है।

कवि ने करुण रस में वीर रस का अनूठा मिश्रण किया है। लक्ष्मण-मूर्छा के पश्चात हनुमान जी जब संजीवनी बूटी लेकर लौट रहे थे तो भरत ने उन्हें राक्षस समझकर तीर मारा था, जिससे वे मूर्च्छित हो गए थे। भरत जी ने उन्हें स्वस्थ कर अपने बाण पर बैठाकर राम जी के पास जाने के लिए कहा था। हनुमान जी भरत जी का गुणगान करते हुए प्रस्थान कर गए थे। उधर श्री रामचंद्र जी लक्ष्मण को हृदय से लगा विलाप कर रहे हैं।

वे एकटक हनुमान जी के आने की प्रतीक्षा में हैं। श्री रामचंद्र अपने अनुज लक्ष्मण को नसीहतें दे रहे हैं कि आप मेरे लिए माता-पिता को छोड़ यहाँ जंगल में चले आए। जिस प्रेम के कारण तुमने सब कुछ त्याग दिया आज वही प्रेम मुझे दिखाओ। श्री राम जी लक्ष्मण को संबोधन कर कह रहे हैं कि हे भाई! जिस प्रकार पंख के बिना पक्षी अत्यंत दीन होता है और मणि के बिना साँप दीन हो जाता है उसी प्रकार आपके बिना भी मेरा जीवन भी अत्यंत दीन एवं असहाय हो जाएगा। राम सोच रहे हैं कि वह अयोध्या में क्या मुँह लेकर जाएंगे। अयोध्यावासी तो यही समझेंगे कि नारी के लिए राम ने एक भाई को गवाँ दिया। समस्त संसार में अपयश फैल जाएगा।

माता सुमित्रा ने लक्ष्मण को मेरे हाथ में यह सोचकर सौंपा था कि मैं सब प्रकार से उसकी रक्षा करूँगा। श्री राम जी के सोचते-सोचते उनकी आँखों से आँसू बहने लगे। वे ! फूट-कूटकर रोने लगे। हनुमान के संजीवनी बूटी ले आने पर श्री राम अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने हनुमान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की। वैद्य ने तुरंत लक्ष्मण का उपचार किया जिससे लक्ष्मण को होश आ गया। राम ने अपने अनुज को हृदय से लगाया। इस दृश्य को देख राम-सेना के सभी सैनिक बहुत प्रसन्न हुए।

हनुमान जी ने पुनः वैद्य को उनके निवास स्थान पर पहुंचा दिया। रावण इस वृत्तांत को सुनकर अत्यधिक उदास हो उठा और व्याकुल होकर कुंभकरण के महल में गया। कुंभकरण को जब रावण ने जगाया तो वह यमराज के समान शरीर धारण कर उठ खड़ा हुआ। रावण ने उसके समक्ष अपनी संपूर्ण कथा का बखान किया। साथ ही हनुमान जी के रण-कौशल और बहादुरी का परिचय भी दिया कि उसने अनेक असुरों का संहार कर दिया है।

कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप  कवि परिचय

गोस्वामी तुलसीदास हिंदी-साहित्य के भक्तिकाल की सगुणधारा की रामभक्ति शाखा के मुकुट शिरोमणि माने जाते हैं। इन्होंने अपनी महान रचना रामचरितमानस के द्वारा केवल राम-काव्य को ही समृद्ध नहीं किया बल्कि मानस के द्वारा तत्कालीन समाज का भी मार्गदर्शन किया है। अतः तुलसीदास जी एक भक्त होने के साथ-साथ लोकनायक भी थे।
Class 12 Hindi Aroh Chapter 8 Summary कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप
गोस्वामी तुलसीदास जी के जन्म-स्थान, तिथि एवं परिवार के बारे में विद्वान एकमत नहीं हैं। कुछ विद्वानों ने इनका जन्म सोरों में भाद्रपद शुक्ल एकादशी मंगलवार वि० संवत 1589 माना है। जार्ज ग्रियर्सन भी इनका जन्म संवत सेंगर 1589 को ही मानते हैं। शिव सिंह द्वारा रचित ‘शिव सिंह सरोज’ ग्रंथ में इनका जन्म संवत 1583 स्वीकार किया है। बेणीमाधव द्वारा रचित ‘गुसाईं चरित’ के आधार पर तुलसीदास का जन्म विक्रमी संवत 1554 माना जाता है। इनका जन्म श्रावण शुक्ला सप्तमी को उत्तर प्रदेश के बाँदा जिले के राजापुर गाँव में हुआ था। इनके जन्म के संबंध में ये पंक्तियाँ प्रसिद्ध हैं

पंद्रह सौ चौवन विषै कालिंदी के तीर।
पाउल मुक्ला सप्तमी तुलसी धरे सरीर॥

इनके पिता का नाम पंडित आत्मा राम तथा माता का नाम हुलसी था। जन्म के समय वे रोए नहीं, बल्कि उन्होंने राम नाम टच्चारण किया । जिससे उनका नाम-राम बोला पड़ गया। अशुभ मुहूर्त में जन्म लेने के कारण इनके माता-पिता ने इन्हें त्याग दिया। जन्म के तीन दिन । बाद ही इनकी माता का देहांत हो गया। बाद में मुर्निया नामक दासी में इनका पालन-पोषण किया लेकिन इसकी मृत्यु के पश्चात इन्हें द्वार-द्वार भीख माँगकर पेट भरना पड़ा। बाबा नरहरिदास ने इनकी दयनीय दशा पर दया कर इन्हें अपने आश्रम में रख लिया तथा इन्हें पढ़ाया-लिखाया। गुरु जी ने इनका नाम तुलसी रख दिया था। इनकी-विद्वत्ता से प्रभावित होकर पंडित दीनबंधु पाठक ने अपनी कन्या रत्नावली से इनका विवाह कर दिया था। तुलसी को अपनी पत्नी से अगाध प्रेम था।

तुलसीदास की राम साधना का श्रेय बहुत हद तक उनकी पत्नी रत्नावली को दिया जाता है। माना जाता है कि एक बार अपनी पत्नी के मादक चले जाने पर तुलसीदास जी पीछे-पीछे वहाँ पहुँच गए। इस पर पत्नी को बहुत संकोच हुआ तो वे उनको फटकार लगाते हुए बोली

लाज न आवत आपको दौरे आयहु साथ।
धिक्-धिक ऐसे प्रेम को कहाँ कहाँ हाँ नाथ ॥
अस्थि चर्ममय देह मम, तासौं ऐसी प्रीति।
होती जो श्री राम महं, होति न तो भवभीति॥

पत्नी की इस फटकार से वे बहुत लज्जित हुए और उनके हृदय में संसार के प्रति विरक्ति उत्पन्न हो गई। इसके पश्चात उन्होंने वैराग्य ले • लिया तथा प्रभु-भक्ति में लीन हो गए। जीवन के अंतिम दिनों में इनको बहुत कष्ट भोगना पड़ा तथा श्रावण शुक्ल सप्तमी विक्रमी संवत 0 1680 में इनका देहांत हो गया। इनकी मृत्यु के संबंध में यह दोहा प्रसिद्ध है

संवत् सौलह सौ असी, असी गंग के तीर।
श्रावण शुक्ला सप्तमी, तुलसी तज्यौ शरीर॥

रचनाएँ—-नागरी प्रचारिणी सभा काशी (वाराणसी) ने तुलसी साहित्य को ‘तुलसी ग्रंथावली’ के नाम से प्रकाशित किया है। इसके अनुसार तुलसी के ० नाम से लिखे ग्रंथों की संख्या 37 बताई जाती है लेकिन विद्वानों ने इनके केवल 12 ग्रंथों को ही प्रामाणिक माना है शेष अन्य ग्रंथ दूसरे कवियों ने लिखकर उनके नाम से प्रकाशित कर दिए होंगे। तुलसी जी द्वारा लिखे गए 12 प्रामाणिक ग्रंथ-रामचरितमानस, वैराग्य संदीपनी, रामलला नहछू, ० बरवै रामायण, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, रामाज्ञा प्रश्न, दोहावली, कवितावली, गीतावली, कृष्ण गीतावली और विनय-पत्रिका हैं।

तुलसी के नाम से प्रचारित रचनाओं में-अंकावली बजरंग बाण, भरत-मिलाप, हनुमान चालीसा, हनुमान पंचक, हनुमान बाहुक, गीता भाषा, छप्पय रामायण आदि ग्रंथों का उल्लेख किया जाता है। परंतु विद्वान उन्हें तुलसी की रचनाएँ नहीं मानते। तुलसीदास की प्रामाणिक रचनाओं में रामचरितमानस, विनय-पत्रिका, कवितावली तथा गीतावली विशेष लोकप्रिय हैं। ‘रामचरित’ तो उनकी कीर्ति का आधार स्तंभ है।

हिंदुस्तान के प्रत्येक हिंदू घर में ‘रामचरितमानस’ की एक प्रति अवश्य मिलती है। इसे उत्तर भारत की बाइबिल माना जाता है। हिंदू घरानों में इसको पवित्र ग्रंथ मानकर इसकी पूजा की जाती है। भक्तगण इसकी चौपाइयों का मुक्त कंठ से गान करते हैं। यह महाकाव्य भारत में ही नहीं बल्कि संपूर्ण विश्व में लोकप्रिय है। विनय-पत्रिका साधारण जनता में इतना लोकप्रिय नहीं है जितना कि भक्तों तथा दार्शनिकों में प्रसिद्ध है। कवितावली और गीतावली अपने मधुर, सरस गीतों के कारण जनता में काफी लोकप्रिय हैं।

इन सभी ग्रंथों में तुलसी जी ने राम के चरित्र का ही अंकन किया है। विनय-पत्रिका तुलसी की अंतिम रचना मानी जाती है। यह तुलसी का प्रार्थना ग्रंथ है। साहित्यिक विशेषताएँ-तुलसीदास जी रामभक्ति धारा के सर्वश्रेष्ठ साहित्यकार माने जाते हैं। इन्होंने अपनी रामभक्ति के माध्यम से भारतीय जनमानस में नवीन चेतना जागृत की है। इनका साहित्य लोकमंगल की भावना से परिपूर्ण है। इनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) राम का स्वरूप-तुलसी के काव्य का आदर्श राम हैं। इन्होंने अपने काव्य में राम को विष्णु का अवतार मानकर उनके निर्गुण
और सगुण दोनों रूपों की आराधना की है। ये कहते हैं

दशरथ सुत तिहुँ लोक बखाना।
राम-नाम का मरम है आना॥

तुलसी जी राम को धर्म का उद्धार करनेवाला तथा अधर्म का नाश करनेवाला मानते हैं। इनके राम एक ओर तो अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र है तो दूसरी ओर घट-घट में रहने वाले निर्गुण ब्रह्म। इन्होंने राम के चरित्र में शील, शक्ति और सौंदर्य का अनूठा समन्वय प्रस्तुत किया है।

(ii) विषय की व्यापकता-तुलसी-साहित्य में भाव विविधता उनकी प्रमुख विशेषता है। इन्होंने अपने काव्य में जीवन के विविध रूपों को यथार्थ अभिव्यक्ति प्रदान की हैं। रामचरितमानस में राम-जन्म से लेकर राम के राजतिलक की संपूर्ण कथा को सात कांडों में प्रस्तुत किया है। इन्होंने राम-कथा में विविध प्रसंगों के माध्यम से राजनैतिक, सामाजिक एवं पारिवारिक जीवन के आदर्शों को समाज के समक्ष प्रस्तुत कर खंडित हिंदू समाज को केंद्रित किया है। मानस के उत्तर काव्य में कलियुग के प्रकोप का वर्णन आज भी समसामयिक है तथा हमारा मार्गदर्शन करता है।

(iii) लोकमंगल की भावना-तुलसी जी सच्चे लोकनायक थे। इनकी समस्त भक्ति-भावना लोक-कल्याण की भावना पर ही टिकी हुई है। लोक-कल्याण हेतु ही इन्होंने समन्वय की स्थापना की है। इनका समस्त काव्य आदर्श समाज की स्थापना का संदेश देता है। तुलसी काव्य में आदर्श ही आदर्श है। मानस में कवि ने कौशल्या को आदर्श माता, राम को आदर्श पुत्र, सीता को आदर्श पत्नी, भरत और लक्ष्मण को आदर्श भाई, हनुमान को आदर्श सेवक, सुग्रीव को आदर्श मित्र तथा राजतिलक के बाद राम को एक आदर्श राजा के रूप में ।प्रस्तुत किया है। इस प्रकार तुलसी ने आदर्श गृहस्थ, आदर्श समाज और आदर्श राज्य की कल्पना को साकार रूप प्रदान किया है।

(iv) समन्वय की भावना–तुलसीदास का काव्य लोक-कल्याण तथा समन्वय की विराट भावना से ओत-प्रोत है। समकालीन युग संक्रमण का युग था। समस्त हिंदू जाति सामाजिक एवं राजनैतिक दृष्टि से पतन की ओर जा रही थी लोगों के मन से धार्मिक भावना समाप्त हो रही थी। ईर्ष्या, द्वेष, घृणा, नफ़रत, नास्तिकता आदि बुरी भावनाएँ बढ़ती जा रही थीं। ढोंगी-साधु संन्यासियों का बोलबाला था। ऐसी विकट परिस्थितियों का मुकाबला करने हेतु तुलसी जी ने समन्वय की भावना का सहारा लिया। इन्होंने सर्वप्रथम धार्मिक संकीर्णताओं को मिटाने के लिए शैवों एवं वैष्णवों में समन्वय स्थापित किया। इसके बाद इन्होंने लोक और शास्त्र, गृहस्थ और वैराग्य, भक्ति और ज्ञान, निर्गुण और सगुण, भाषा और संस्कृत, शील, शक्ति और सौंदर्य आदि में अनूठा समन्वय स्थापित करने का सफल प्रयास किया। ज्ञान की श्रेष्ठता सिद्ध करते हुए तुलसी ने कहा है

कहहिं संतमुनि वेद पुराना।
नहिं कछु दुर्लभ ज्ञान समाना॥

(v) प्रबंध कौशल-काव्य-कला की दृष्टि से तुलसी रचित ‘रामचरितमानस’ हिंदी साहित्य का श्रेष्ठतम प्रबंध काव्य है। इस महाकाव्य में कवि ने समस्त काव्य शास्त्रीय नियमों का पालन करते हुए संपूर्ण रामजीवन का अनूठा चित्रण किया है। मानस में राम-सीता का प्रथम-दर्शन, राम वनगमन, दशरथ-मृत्यु, भरत मिलाप, सीताहरण, लक्ष्मण मूर्छा आदि अनेक मार्मिक प्रसंगों की भी सजीवता से रचना हुई है। इस प्रकार प्रबंधकार के रूप में तुलसी जी एक सफल कवि हैं।

(vi) भक्ति भावना- तुलसी की भक्ति दास्यभाव की भक्ति पर आधारित है। इनकी भक्ति संत कबीरदास आदि निर्गुण संतों की भांति | ज्ञान और योग से परिपूर्ण भावना से युक्त रहस्यमयी नहीं है। इनकी भक्ति सीधी-सादी, सरल एवं सहज है। तुलसी के राम संसार | के कण-कण में समाए हुए हैं। वे सभी को सुलभ हैं।। तुलसीदास जी की भक्ति सेवक-सेव्य भाव पर आधारित आदर्श भक्ति है। उन्होंने रामानुजाचार्य के सिद्धांत विशिष्ट वैतवाद को अपनी भक्ति का आधार बनाया है।

यहाँ जीव ब्रह्म का ही अंश है। इनकी भक्ति लोक संग्रह की भावना से ओत-प्रोत है। इन्होंने राम में शील, शक्ति और सौंदर्य का गुणगान करते हुए लोक-कल्याण की कामना की है। तुलसी ने श्री राम को सर्वगुण संपन्न तथा स्वयं को अत्यंत तुच्छ, दीन-हीन माना है। यही भावना उनकी भक्ति में व्यक्त हुई है

राम सो बड़ो है कौन, मोसों कौन छोटो?
राम सो खरो है कौन, मोसों कौन खोटो?

(vi) चरित्र-चित्रण-तुलसीदास जी का चरित्र-चित्रण अत्यंत उदात्त एवं श्रेष्ठ है। इस दृष्टि से इनकी तुलना संसार के श्रेष्ठ कवियों के साथ की जा सकती है। इनके पात्र जहाँ देखने में लौकिक हैं, जनसाधारण की भाँति दिखाई देते हैं, वहाँ उनमें अलौकिक गुण भी होते है। तलसी का चरित्र आदर्शवादी है जो निरंतर समाज को प्रेरणा देते हैं। इनके रामचरितमानस में कौशल्या एक आदर्श माँ, श्री राम आदर्श पुत्र, सीता आदर्श पत्नी, लक्ष्मण-भरत आदर्श भाई, हनुमान आदर्श सेवक, सुग्रीव आदर्श मित्र है।

इनके साथ-साथ गुरु वशिष्ट जी, अंगद, शबरी आदि ऐसे श्रेष्ठ पात्र हैं जो संसार को शिक्षा देते रहते है। तुलसी जी ने अपने साहित्य में मनुष्य-देवता, नर-नारी, पशु-पक्षी, श्रेष्ठ-अधम आदि सभी पात्रों का सहज स्वाभाविक चित्रण किया है जैसे जनकपुर में सीता स्वयंवर | के समय लक्ष्मण के जोश का सजीव चित्रण किया है

जनक वचन सुनि सब नर-नारी। देखि जान किहि भए दुखारी।
भाखे लखन कुटिल भाई भौहे। रदपुट फरकत नयन हरिसहि ॥

(viii) प्रकृति-चित्रण- तुलसी साहित्य में प्रकृति का भी अनूठा चित्रण हुआ है। इन्होंने कहीं-कहीं पंचवटी, चित्रकूट, वन, जंगल, नदी, पर्वत, पशु-पक्षी आदि का सजीव एवं सुंदर चित्रण किया है। इनका बाह्य प्रकृति की अपेक्षा अंतः प्रकृति-चित्रण में मन अधिक रमा है। इन्होंने प्रकृति के आलंबन रूप का सुंदर एवं सजीव चित्रण किया है।

(ix) काव्य रूप- तुलसी जी रामभक्ति के श्रेष्ठ कवि हैं। इन्होंने गीति, प्रबंध एवं मुक्तक तीनों काव्य-रूपों का प्रयोग करके अपने साहित्य का चित्रण किया है। रामचरितमानस हिंदी-साहित्य का श्रेष्ठ प्रबंध काव्य है। इसमें कवि ने सात कांडों में श्री रामचंद्र जी के संपूर्ण जीवन का अनूठा वर्णन किया है। इसी प्रकार गीतावली, कवितावली, दोहावली आदि भी श्रेष्ठ ग्रंथ है। पार्वती मंगल, जानकी मंगल, रामलला नहछू आदि उनके श्रेष्ठ मुक्तक काव्य हैं।

(x) भाषा-शैली-तुलसीदास जी एक महान विद्वान थे। उन्होंने अपने साहित्य की रचना अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं में की है। उन्होंने दोनों भाषाओं का सुंदर प्रयोग कर श्रेष्ठ साहित्य सृजन किया है। रामचरितमानस में अवधी तथा विनय पत्रिका आदि में ब्रज भाषा का सुंदर प्रयोग हुआ है। अवधी भाषा में तत्सम शब्दावली का प्रचुर प्रयोग हुआ है। इसके साथ-साथ उन्होंने भोजपुरी, बुंदेलखंडी, राजस्थानी, फ़ारसी आदि भाषाओं का भी प्रयोग किया है।

(xi) अलंकार- तुलसी काव्य में अलंकारों का सफल एवं सुंदर प्रयोग हुआ है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि उनके प्रिय अलंकार है।। सांगरूपक चित्रण तो इनकी महत्त्वपूर्ण विशेषता है। इसके साथ-साथ अनुप्रास, विभावना, विरोधाभास, वक्रोक्ति, पदमैत्री, स्वरमैत्री | आदि अलंकारों का भी सुंदर एवं सजीव चित्रण किया है। अनुप्रास की छया तो सर्वत्र दिखाई देती है। रूपक अलंकार का सुंदर उदाहरण द्रष्टव्य है

उदित उदय गिरी मंच पर, रघुवर बाल पतंग।
विकसे संत सरोज सब लोचन हर्षित भंग।

(xii) छंद-कवि की द-योजना अत्यंत श्रेष्ठ है। इन्होंने अपनी काव्य-भाषा में वर्णिक और मात्रिक दों का सुंदर अंकन किया है। तुलसी जी ने दोहा, चौपाई, कवित्त, सवैया, छप्पय, बरवै, पद, कुंडलियाँ आदि छंदों का सुंदर प्रयोग किया है।

(xiii) रस- तुलसीदास जी को रस सिद्ध कवि कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं है। उन्होंने अनेक भावों एवं रसों का सुंदर एवं सजीव चित्रांकन
किया है। इनके काव्य में भक्ति की प्रधानता होने के कारण शांत रस की सर्वत्र अभिव्यंजना है। शृंगार रस का भी सुंदर चित्रण मिलता
है लेकिन वह मर्यादा से परिपूर्ण है। कवि ने श्रृंगार के संयोग एवं वियोग दोनों पक्षों की सजीव एवं मार्मिक अभिव्यक्ति की है। सारांश रूप में हम कह सकते हैं कि गोस्वामी तुलसीदास हिंदी साहित्य के श्रेष्ठ कवि माने जाते हैं। उनका संपूर्ण काव्य आदर्श, लोक-कल्याण एवं समन्वय की भावना से ओत-प्रोत हैं। वे सच्चे अर्थों में लोकनायक थे।