Here we are providing Online Education for Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 1 आत्म-परिचय, एक गीत. Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams.

Online Education for आत्म-परिचय, एक गीत Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 1

प्रश्न 1.
‘आत्म-परिचय’ कविता का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
श्री हरिवंश राय बच्चन’ द्वारा रचित कविता ‘आत्म-परिचय’ ‘बुद्ध और नाचघर’ संग्रह से संकलित है जिसमें कवि ने यह चित्रण किया है कि मनुष्य द्वारा अपने को जानना या आत्मबोध दुनिया को जानने से अत्यंत कठिन है। समाज से मनुष्य का नाता खट्टा-मीठा होता है। इस संसार से निरपेक्ष रहना असंभव है। मनुष्य चाहकर भी जग से विमुख नहीं हो सकता। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, अतः मनुष्य का इस जग से अटूट संबंध है।

संसार अपने व्यंग्य-बाणों तथा शासन-प्रशासन से उसे चाहे कितने ही कष्ट एवं पीड़ाएं। क्यों न दे, पर मनुष्य इस जगह से अलग नहीं रह सकता। ये दुनिया ही उसकी पहचान है। जहाँ पर वह अपना परिचय देते हुए इस संसार से द्विविधात्मक एवं वंद्वात्मक संबंधों का मर्म उद्घाटित करता हुआ जीवन जीता है। इस दुनिया में मनुष्य का जीवन द्वंद्व
एवं विरुधों का सामंजस्य है। सुख-दुख का समन्वय है।

प्रश्न 2.
प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य एवं काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ।
उत्तर
भाव-सौंदर्य प्रस्तुत काव्यांश श्री हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित कविता ‘आत्म-परिचय’ से अवतरित है। इस काव्यांश में कवि ने संसार
की स्वार्थपरता का चित्रांकन किया है। कवि कहता है कि मैं तो प्रेम रूपी मदिरा का पान कर उसकी मस्ती में मस्त रहता हूँ। मुझे इस संसार की बिल्कुल भी चिंता नहीं है। यह संसार मेरे बारे में क्या कहता है, क्या सोचता है मुझे इसकी कोई चिंता नहीं। यह तो स्वार्थी है, केवल उनको पूछता है जो इसका गान करते हैं अर्थात इसकी चापलूसी करते हैं। मैं तो इस जग से दूर केवल अपनी मनोभावनाओं को गाता रहता हूँ।

काव्य-सौंदर्य
(i) प्रस्तुत काव्यांश हालावाद के प्रवर्तक कवि हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित ‘आत्म-परिचय’ कविता से अवतरित है। इसमें कवि ने संसार की स्वार्थपरता का चित्रण किया है कि यह संसार केवल उनको पूछता है, जो इसकी चापलूसी करते हैं।
(ii) प्रस्तुत काव्यांश में खड़ी बोली भाषा का प्रयोग है जो सरल, सरस एवं प्रवाहमयी है।
(iii)स्नेह-सुरा में रूपक अलंकार की छटा शोभनीय है।
(iv) अनुप्रास, स्वरमैत्री तथा पदमैत्री अलंकारों की सुंदर प्रयोग है।
(v) संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्दों का सफल प्रयोग है।
(vi) गीति शैली का प्रयोग है।
(vii) मुक्तक छंद है।
(vi) माधुर्य गुण है।
(ix) श्रृंगार एवं शांत रस है।
(x) अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग है।
(xi) बिंब योजना अत्यंत सुंदर है।

प्रश्न 3.
काव्यांश का भाव-सौंदर्य एवं काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
‘मैं और, और जग और, कहाँ का नाता
मैं बना बना कितने जग रोज मिटाता’
उत्तर
भाव-सौंदर्य-श्री हरिवंश राय बच्चन ने प्रस्तुत काव्यांश में संसार को स्वयं से भिन्न स्थापित किया है।
(i) प्रस्तुत अवतरण श्री हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित ‘आत्म-परिचय’ नामक कविता से अवतरित है। इसमें कवि ने संसार को स्वयं से बिल्कुल भिन्न स्थापित किया है।
(ii) खड़ी बोली की भाषा सरल, सरस एवं भावमयी है।
(iii) शैली अत्यंत गंभीर एवं रोचक है।
(iv) तत्सम, तद्भव एवं उर्दू व फ़ारसी के शब्दों का समन्वय है।
(v) ‘और-और’ में भिन्नर्थक आपूर्ति होने से यमक अलंकार की शोभा है।
(vi) ‘बना-बना’ में पुनरुक्ति प्रकाश की छटा है।
(vii) इसके साथ इसमें अनुप्रास, पदमैत्री अलंकारों का प्रयोग भी हुआ है।
(viii) शैली गीतिमयता से परिपूर्ण है।
(ix) माधुर्य गुण का समावेश है।
(x) शांत रस है।
(xi) बिंब योजना सार्थक एवं सारगर्भित है।

प्रश्न 4.
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
हो जाए न पत्र में रात कहीं
मंजिल भी तो है दूर नहीं
यह सोच थका दिन का पंथी
भी जल्दी-जल्दी चलता है।
उपर्युक्त पंक्तियों का भाव-सौंदर्य
एवं काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य- प्रस्तुत अवतरण श्री हरिवंश राय बच्चन विरचित ‘एक गीत’ नामक कविता से अवतरित है। इसमें कवि ने समय की परिवर्तनशीलता एवं जीवन की क्षणभंगुरता का स्पष्ट चित्रांकन किया है। समय निरंतर चलायमान एवं परिवर्तनशील है। वह प्रतिपल परिवर्तित होता रहता है। यही धारणा लेकर थका हुआ यात्री शीघ्रता से अपनी मंजिल की तरफ़ चलता है। हालाँकि उसकी मंजिल ज्यादा दूर नहीं है किंतु वह यह सोचकर बेचैन होता है कि कहीं लक्ष्य पर पहुँचने से पहले ही रात न हो जाए।

काव्य-सौंदर्य
(i) इस काव्यांश में श्री हरिवंश राय बच्चन ने समय की चिर परिवर्तनशीलता एवं जीवन की क्षणभंगुरता का वर्णन किया है।
(ii) भाषा सरल, सरस खड़ी बोली है।
(iii) तत्सम, तद्भव एवं उर्दू-फ़ारसी शब्दावली है।
(iv) ‘जल्दी-जल्दी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
(v) अनुप्रास-पदमैत्री की छटा भी है।
(vi) मुक्तक छंद का प्रयोग है।
(vii) शांत रस है।
(viii) प्रसाद गुण है।
(ix) बिंब-योजना सार्थक एवं सटीक है।

प्रश्न 5.
कवि जग-जीवन को भार स्वरूप क्यों समझता है?
उत्तर
कवि जग-जीवन को भार स्वरूप इसलिए समझता है क्योंकि वह जीवन को प्रेम, मस्ती, आनंद एवं सौंदर्य से परिपूर्ण मानता है जबकि संसार इनसे दूर कहीं कोरी कल्पनाओं में ही डूबा हुआ है। संसार को प्रेम, मस्ती एवं आनंद से कोई मतलब नहीं है। वह तो ईर्ष्या, द्वेष आदि की भावनाओं में ही जकड़ा रहता है।

प्रश्न 6.
कवि कैसे जीवन की कामना करता है?
उत्तर
कवि ऐसे जीवन की कामना करता है जो प्रेम, मस्ती, आनंद और सौंदर्य से भरपूर हो, जिसमें चारों तरफ सुंदरता हो। प्रेम रूपी मदिरा का मौसम हो। जहाँ वह केवल प्रेम रूपी मदिरा पीकर उसी में डूबकर आनंद विभोर हो जाए। कहीं कोई ईर्ष्या-द्वेष जैसे कुविचार न हों, जिसमें योवन की मदमस्त करने वाली उन्माद हो।

कवि का मंतव्य है कि यह संसार उससे बिल्कुल भिन्न है। उसके विचार, उसकी भावनाएँ इस क्रूर संसार से समन्वय स्थापित नहीं कर सकतीं। इसका दृष्टिकोण उससे बिल्कुल अलग है अत: इस संसार के साथ उसका कोई संबंध नहीं हो सकता। यह संसार तो केबल एक परिपाटी पर अपना जीवनयापन कर रहा है, जबकि वह प्रतिदिन ऐसे अनेक लोक बनाकर उन्हें नष्ट कर देता है। काव्य-सौंदर्य

प्रश्न 7.
आत्म-परिचय कविता में कवि संसार को क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर
आत्म-परिचय कविता श्री हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित है। इसमें कवि संसार को मस्ती का संदेश देना चाहता है। ऐसी मस्ती जिसमें संपूर्ण संसार मदमस्त होकर आनंद विभोर हो उठे। वह आनंदित होकर नृत्य करने लगे और इसी मस्ती में सदैव लहराता रहे।

प्रश्न 8.
आत्म-परिचय कविता के माध्यम से स्पष्ट कीजिए कि कवि क्यों रोया होगा?
उत्तर :
कवि प्रेम एवं मस्ती की कोमल भावनाओं से ओतप्रोत है। उसे अपने जीवन में किसी प्रिया से असीम प्रेमभाव हुआ, किंतु दुर्भाग्य से वह प्रेम पूर्ण नहीं हो सका जिसके बाद कवि को अगाध विरह-पीड़ा को सहन करना पड़ा। यही पीड़ा उसके रोदन के माध्यम से प्रस्फुटित हुई। इसी कारण है कि कवि रोया होगा।

प्रश्न 9.
कवि और संसार में क्या भिन्नता है?
उत्तर :
कवि प्रेम एवं मस्ती में मदमस्त रहता है। वह प्रेम रूपी मदिरा पीकर उसी के आनंद में डूबा हुआ है। वह चारों तरफ प्रेम, मस्ती, आनंद एवं सौंदर्य का वातावरण फैलाना चाहता है जबकि यह संसार परस्पर ईर्ष्या, द्वेष, अहं की भावनाओं में डूबा है। इसे किसी के प्रेम व आनंद से कोई मतलब नहीं है। यह तो प्रेम की मस्ती को भी व्यर्थ समझता है। यह सदैव दूसरों की कोमल भावनाओं से खिलवाड़ करता है और उनका मज़ाक उड़ाता है।

प्रश्न 10.
कवि ज्ञान की बजाय किसे अपनाना चाहता है और क्यों?
उत्तर :
कवि ज्ञान की अपेक्षा प्रेम को अपनाना चाहता है क्योंकि वह ज्ञान के रास्ते को अत्यंत कठिन एवं दुष्प्राप्य मानता है, जिसे अनादि काल से संसार के बड़े-बड़े महात्मा, मुनि एवं संतजन भी कोटि-कोटि प्रयास करने पर भी नहीं जान सके।

प्रश्न 11.
पथिक जल्दी-जल्दी क्यों चलता है?
उत्तर:
पथिक जल्दी-जल्दी इसलिए चलता है क्योंकि उसे यह भय रहता है कि कहीं पथ में ही रात न हो जाए। उसकी मंज़िल उससे छूट न जाए।

प्रश्न 12.
चिड़िया के पंखों में चंचलता कैसे भरती है?
उत्तर
चिड़िया जब सोचती है कि उसके बच्चे घोंसले में उसकी राह देख रह होंगे। वे अकेले होंगे और अपनी माँ के आने की प्रतीक्षा में नीड़ों से निरंतर रास्ते की ओर झोंक रहे होंगे, तो उसके पंखों में चंचलता भर जाती है। पनि जल्दी-जल्दी डालता जीत काया राय बच्चन का वा निम पाल का संकलित है।

प्रश्न 13.
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ कविता का मूल भाव अथवा प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘दिन जल्दी-जल्दी ढलता है’ गीत हरिवंश राय बच्चन के ‘निशा-निमंत्रण’ गीत संग्रह से संकलित है। इस गीत में कवि ने प्रकृति थी दैनिक परिवर्तनशीलता के संदर्भ में प्राणी के धड़कते हृदय की भावनाओं को सुनने का प्रयास किया है। समय चिर परिवर्तनशील है। किसी प्रिय के आलंबन या विषय से भावी साक्षात्कार का आश्वासन ही हमारे प्रयास के चरणों की गति में और अधिक गतिशीलता एवं साहस पैदा कर देता है।

प्रश्न 14.
‘आत्म-परिचय’ कविता कहाँ से ली गई है और इसमें किस चीज़ का वर्णन किया गया है?
उत्तर
‘आत्म-परिचय’ कवित हरिवंश राय बच्चन के काव्य संग्रह ‘बुद्ध और नाचघर’ से ली गई है। इस कविता में कवि ने मानव के आत्म-परिचय का चित्रण किया है।

प्रश्न 15.
‘आत्म-बोध’ का अर्थ बताते हुए बतलाइए कि कवि ने कविता में किसका परिचय दिया है ?
उत्तर
‘आत्म-बोध’ का अर्थ है-स्वयं को जानना, जो संसार को जानने से अधिक कठिन है। व्यक्ति का समाज से घनिष्ठ संबंध है। कविता में कवि ने अपना परिचय देते हुए लगातार दुनिया से अपनी दुविधा और वंद्वपूर्ण संबंधों का रहस्य प्रकट किया है।

प्रश्न 16.
कवि किस चीज़ का भार लेकर अपने कंधों पर घूम रहा था तथा किस चीज़ ने उसके मन को झंकृत कर दिया?
उत्तर
कवि सांसारिक जीवन का संपूर्ण भार अपने कंधों पर लेकर घूम रहा था। इस सारे भार को उठाने के बाद भी वह संसार में अपने जीवन में प्यार के लिए घूम रहा था। कवि की हृदय रूपी वीणा को किसी ने प्रेम से छूकर झंकृत कर दिया। वह उसी झंकृत वीणा की साँसों को लिए दुनिया में घूम रहा है।

प्रश्न 17.
कवि का किससे कोई लेना-देना नहीं है और क्यों?
उत्तर
कवि का इस संसार से कोई लेना-देना नहीं है। उसकी दृष्टि में यह संसार एकदम अपूर्ण है, अतः उसे अच्छा नहीं लगता। वह अपने हृदय के भाव एवं उपहार लिए घूम रहा है। उसका अपना एक स्वप्निल संसार है। उसी संसार को लिए वह घूम रहा है।

प्रश्न 18.
कवि ने संसार को क्या माना है और उसे किस चीज़ की आवश्यकता नहीं है?
उत्तर
कवि सुख-दुख दोनों अवस्थाओं में मान रहता है। उसने संसार को एक सागर के समान माना है। उसके अनुसार संसार के लोग इस संसार रूपी सागर को पार करने हेतु नाव बना सकते हैं, किंतु उसे इस नाव की कोई आवश्यकता नहीं है। वह सांसारिक खुशियों में डूबकर यूं ही बहना चाहता है।

प्रश्न 19.
कवि आंतरिक रूप से क्यों रोता रहता है?
उत्तर
कवि का कहना है कि उसके पास जवानी का जोश है तथा इस जोश में छिपा दुख है। इसी कारण वह बाहय रूप से तो हँसता हुआ
दिखता है, लेकिन आंतरिक रूप से निरंतर रोता रहता है।

प्रश्न 20.
कवि और संसार में किस प्रकार का संबंध है?
उत्तर
कवि और संसार का कोई संबंध नहीं है। उसकी राह कोई और है तथा संसार की कोई और। वह न जाने प्रतिदिन कितने जग बना-बना कर मिटा देता है। कवि के अनुसार, यह संसार जिस पृथ्वी पर रहकर अपना वैभव जोड़ना चाहता है, वह प्रतिपग इस पृथ्वी के वैभव को तुकरा देता है।

प्रश्न 21.
कवि के सदन में क्या छिपा है तथा वह अपने संग क्या लेकर घूमता रहता है?
उत्तर
कवि के रूदन में एक राग छिपा है तथा उसकी शीतल वाणी में क्रोध की आग समाहित है। वह एक विराट खंडहर का अंश अपने साथ लेकर घूमता रहता है। जिस पर बड़े-बड़े राजाओं के महल भी अर्पित हो जाते हैं।

प्रश्न 22.
कवि ने संसार को अजीब क्यों कहा है?
उत्तर
कवि ने संसार को अजीब इसलिए कहा है, क्योंकि वह उसके रोने को भी गीत समझता है। दुखों की अपार वेदना के कारण जब वह फूट-फूट कर रोया तो संसार ने उसका छंद समझा।

प्रश्न 23.
कवि ने स्वयं को दीवाना क्यों कहा है?
उत्तर
कवि ने स्वयं को दीवाना इसलिए कहा है क्योंकि वह तो दीवानों का वेश धारण कर अपनी मस्ती में मस्त होकर घूम रहा है। साथ ही वह अपने संग मस्ती का संदेश लेकर घूम रहा है जिसे सुनकर ये सारा संसार झूम उठेगा, झुक जाएगा तथा लहराने लगेगा।

प्रश्न 24.
कवि मस्ती में डूबकर मन के गीत क्यों गाता रहता है?
उत्तर
प्रेम रूपी मदिरा को पी लेने के कारण कवि इसी में मग्न रहता है। उसे इस संसार का बिल्कुल भी ध्यान नहीं है। कवि के अनुसार यह संसार मात्र उन्हीं की पूछ करता है जो उसका गान करते हैं। यह स्वार्थ के नशे में डूबकर औरों की अनदेखी कर देता है, लेकिन कवि अपनी मस्ती में डूब मन के गीत गाता रहता है।

प्रश्न 25.
कविता में कवि अपने हृदय में क्या जलाकर रखता है?
उत्तर
कविता में कवि अपने हृदय में अग्नि जलाकर रखता है तथा स्वयं भी उसी में जलता रहता है। वह अपने जीवन को समभाव होकर जीता है। वह सुख-दुख दोनों अवस्थाओं में मग्न रहता है।

प्रश्न 26.
कवि को संसार अपूर्ण क्यों लगता है?
उत्तर
कवि को संसार इसलिए अपूर्ण लगता है, क्योंकि यह समस्त संसार स्वार्थी है। यहाँ हर कोई अपनी स्वार्थ पूर्ति में डूबा हुआ है। संसार केवल उन्हीं को पूछता है तो उसकी जय-जयकार करते हैं।

प्रश्न 27.
कवि किसकी यादों का अपने दिल में संजोकर घूमता है?
उत्तर
कवि कहता है कि उसने अपनी जवानी में किसी से प्रेम किया था और उसकी यादों को अपने हृदय में संजोया था। आज उसी की यादों का अपने हृदय में संजोकर घूम रहा है। प्रश्न

प्रश्न 28.
कवि ने संसार को मूर्ख क्यों कहा है?
उत्तर
कवि संसार को मूर्ख इसलिए कहता है, क्योंकि यह संसार सत्य की खोज में मिटे असंख्य महापुरुषों को देखकर भी सचेत नहीं हुआ। सत्य को जानने के लिए असंख्य महापुरुष लोग यत्न कर मिट गए। वह बात जानकर भी यह संसार कुछ भी सीखना नहीं चाहता।

प्रश्न 29.
कवि संसार में किस चीज़ से प्रभावित नहीं होता?
उत्तर
कवि पृथ्वी पर व्याप्त धन-ऐश्वर्य तथा शान-ओ-शौकत से तनिक भी प्रभावित नहीं होता। ऐसी शान-ओ-शौकत को वह पग-पग रा पर ठुकराता चलता है। वह कहता है कि जिस पृथ्वी पर यह संसार झूठे धन-ऐश्वर्य तथा शान और शौकत खड़ा करता है, वह ऐसी ऐश्वर्य परिपूर्ण पृथ्वी को पग-पग पर ठुकरा देता है। यह धन-वैभव कवि को तनिक भी विचलित नहीं कर सकता।

प्रश्न 30.
कवि संसार से उसे कवि न मानने के लिए क्यों कहता है?
उत्तर
कवि संसार को संबोधन करते हुए कहता है कि यह संसार उसे एक कवि मानकर क्यों अपनाना चाहता है। वह एक कवि नहीं, अपितु इस संसार का एक नया प्रेमी है। एक नया दीवाना है, जो अपनी प्रेमवाणी का बखान कर रहा है।

प्रश्न 31.
कवि संसार में किसका रूप धारण करके जीवनयापन कर रहा है?
उत्तर
कवि का कथन है कि वह इस संसार में प्रेम में पागल प्रेमियों का रूप लेकर जीवनयापन कर रहा है। वह अपने हृदय में एक प्रेमी को बिठाकर उसी का वेश धारण किए हुए है। कवि के हृदय में थोड़ी-सी मादकता व नशा बाकी है और उसी मादकता में डूबकर वह जी रहा है।

प्रश्न 32.
‘एक गीत’ कविता किसकी है और कहाँ से ली गई है?
उत्तर
‘एक गीत’ कविता श्री हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित उनके काव्य संग्रह ‘बुद्ध और नाचघर’ से संकलित है।

प्रश्न 33.
प्रस्तुत कविता में कवि ने क्या कहता चाहा है?
उत्तर
प्रस्तुत कविता में कवि ने समय के व्यतीत होने के एहसास के साथ-साथ लक्ष्य तक पहुँचने के लिए प्राणी द्वारा कुछ कर गुजरने के जज़्बे का चित्रण किया है। इस कविता में कवि की रहस्यवादी चेतना भी मुखरित हुई है।

प्रश्न 34.
कवि ने कविता में समय के बारे में क्या कहा है?
उत्तर
कवि का कथन है कि समय परिवर्तनशील है जो निरंतर चलायमान अवस्था में रहता है। वह कभी भी नहीं रुकता। समय के इसी परिवर्तन और अभाव को देखकर दिन में चलने वाला पाथिक भी यह सोचकर अत्यंत शीघ्रता से चलता है कि कहीं जीवन रूपी रास्ते में ही रात न हो जाए, जबकि उसकी मंज़िल भी अधिक दूर नहीं है।

प्रश्न 35.
‘मानव-जीवन क्षणभंगुर है’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
कवि के कहने का अभिप्राय यह है कि मानव-जीवन क्षणभंगुर है। अर्थात समय बहुत कम है जो अत्यंत तेज़ी से गुज़रता है। मनुष्य रूपी यात्री को यह चिंता रहती है कि उसके लक्ष्य को प्राप्त करने से पहले ही उसके रास्ते में रात न हो जाए। कवि कहता है कि दिन अत्यंत शीघ्रता से व्यतीत होता है।

प्रश्न 36.
‘मंज़िल भी तो दूर नहीं’ पंक्ति में निहित लाक्षणिक अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
इस पंक्ति का आशय है कि मनुष्य की वह मंजिल भी अधिक दूर नहीं है जहाँ उसे मृत्यु के बाद पहुँचना है।

प्रश्न 37.
कौन-सा ध्यान चिड़ियों के पंखों में न जाने कितनी चंचलता भर देता है?
उत्तर
चिड़ियों के पंखों में यह ध्यान चंचलता उत्पन्न करता है कि संध्या के समय घोंसलों के उनके बच्चे उनके आने की प्रतीक्षा करते हुए घोंसले से झाँक रहे होंगे। इससे उनके पंखों में वात्सल्य भाव के कारण अत्यधिक स्फूर्ति आ जाती है और वे शीघ्र अतिशीघ्र अपने घोंसलों तक पहुंचना चाहते हैं।

प्रश्न 38.
कविता में जीवन रूपी रथ पर बैठते हुए राही क्या सोचता है?
उत्तर
कवि का कथन है कि अपने जीवन रूपी पथ पर चलता हुआ प्राणी चिंतन करता है। वह निरंतर सोचता रहता है कि इस समय उससे मिलने के लिए कौन व्याकुल होगा।

प्रश्न 39.
पथिक के पाँवों को कौन-सा प्रश्न कमजोर कर देता है?
उत्तर
कवि कहता है कि जब-जब पथिक के हृदय में यह प्रश्न उठता है कि कौन उसके लिए व्याकुल है अर्थात कौन उसकी प्रतीक्षा कर रहा है तो यह प्रश्न उसके पाँवों को कमजोर कर देता है और यह उसे सुस्त बना देता है और इससे राही के हृदय में अपार व्याकुलता भर जाती है क्योंकि उसे लगता है कि किसी को उसकी प्रतीक्षा नहीं है।

प्रश्न 40.
घोंसलों में किसे न पाकर कौन परेशान हो उठता है?पक्षियों के बच्चे अपने घोंसले में अपने माँ-बाप को न पाकर परेशानी से भर उठते हैं। घोंसलों में अपने बच्चों को अकेला छोड़कर गए
पक्षी भी इसी चिंता में रहते हैं कि उनके बच्चे भी उनके आने की आशा में अपने-अपने घोंसलों से झाँक रहे होंगे।

प्रश्न 41.
कविवर ‘बच्चन’ किस प्रकार के साहित्यकार हैं?
उत्तर
‘बच्चन जी हालावाद के प्रवर्तक कवि हैं तथा आधुनिक हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार माने जाते हैं। इनका एक कहानीकार के रूप में भी उदय हुआ था, किंतु काव्य के क्षेत्र में इन्होंने अद्भुत साहित्य की रचना की। ये एक कवि के रूप अधिक प्रसिद्ध हुए। इन्होंने हालावाद का प्रवर्तन कर साहित्य को एक नया मोड़ दिया।

प्रश्न 42.
आशय स्पष्ट कीजिए-“मैं और, और जग और, कहाँ का नाता।” (A.I. C.B.S.E 2016)
उत्तर
‘मैं और, और जग और, कहाँ का नाता’-हरिवंशराय बच्चन के द्वारा रचित है जिसमें कवि मानता है कि उसका समाज से कोई नाता नहीं है। समाज और उसकी प्रकृति में बहुत बड़ा अंतर है क्योंकि उन दोनों के लक्ष्यों में बहुत बड़ा अंतर है। कवि तो अपने कल्पना के लोक में प्रतिदिन अनेक संसार बना-बनाकर नष्ट कर देता है। वह नित नई कल्पना करता है और फिर उसे मिटा देता है। वह धन-ऐश्वर्य और शान-ओ-शौकत से प्रभावित नहीं होता जबकि संसार धन-दौलत और झूठी शान-ओ-शौकत पाना चाहता है।

प्रश्न 43.
‘बच्चन’ के संकलित गीत में दिन ढलते समय पथिकों और पक्षियों की गति में तीव्रता और कवि की गति में ष्ठिाथिलता के कारण लिखिए। (Outside Delhi 2017)
उत्तर
पथिक मंजिल से पूर्व रात होने के कारण तीव्रता से चलता है। पक्षी घोंसलों में अपने बच्चों द्वारा प्रतीक्षा के कारण गतिष्ठील बन जाते हैं। कवि की किसी के द्वारा प्रतीक्षा न करने के कारण गति में ष्ठिाथिलता आ जाती है।

प्रश्न 44.
आत्म परिचय कविता में परस्पर विपरीत कथनों से कवि क्या कहना चाहता है? (Outside Delhi 2017 Set-III)
उत्तर
आत्म परिचय कविता में परस्पर विपरीत कथनों से कवि यह कहना चाहता है कि मनुज्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज से मनुज्य का नाता खट्टा-मीठा होता है। उसके जीवन में दुःख-सुख दोनों ही आते हैं। दुनिया अपने व्यंग्य-बाण और टासन-प्रष्ठासन से मनुज्य को अनेक कज्टों के रूप में जीवन-भार प्रदान करती है। चाहकर भी मनुज्य इस जीवन-भार से अलग नहीं हो सकता। इस जीवन-भार को उसे आजीवन ढोना ही पड़ता है।

लेकिन दूसरी ओर कवि का यह कहना है कि जीवन इस जग को देकर नहीं जीता क्योंकि वह इसे हृदयहीन और स्वार्थी मानता है। वह तो केवल संसार के वैभव से अलग अपनी मस्ती में मस्त होकर जीवन जीना चाहता है। इसलिए वह कहता है कि मैं कभी भी जग का ध्यान नहीं करता।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1. मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ;
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
कि मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ। (C.B.S.E. Sample Paper-I, C.B.S.E. 2014 set I, III)

शब्दार्थ : जग-जीवन-संसार का जीवन, सांसारिक जीवन । छूकर-स्पर्श करके। झंकृत-बजाना।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित ‘आत्म परिचय’ नामक कविता से अवतरित है जिसके रचयिता ‘हरिवंशराय बच्चन’ हैं। इसमें कवि ने आत्म-परिचय का चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि बच्चन अपने जीवन का बोध कराते हुए कहते हैं कि मैं इस सांसारिक जीवन के भार को निरंतर वहन करता हुआ
जीवन-यापन कर रहा हूँ। मेरे जीवन पर इस जग का बहुत भार है लेकिन मैं इस भार को देख दुखी नहीं होता और न ही कभी विचलित होता हूँ। मैं अपने जीवन में असीम प्यार लिए घूम रहा हूँ। अपने विगत जीवन का स्मरण करते हुए कवि कहता है कि मेरे जीवन में किसी ने पदार्पण किया था तथा प्रेम-भरे हाथों से मेरी हृदय रूपी वीणा को झंकृत कर दिया था।

आज मैं उनकी यादों के रूप में अपने साँसों के दो तार लिए जी रहा हूँ। कवि का कहने का अभिप्राय यह है कि एक प्रिया का मेरे जीवन में आगमन हुआ था। उसने मुझे प्यार से छुआ था लेकिन उसका साथ नहीं रहा। बस यादों के रूप में उसके कोमल हाथों से झंकृत साँसों के तार लिए जीवन जी रहा हूँ।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. उपर्युक्त काव्यांश के कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
2. कवि किसका भार लिए फिरता है?
3. कवि अपने जीवन में क्या लेकर घूमता है?
4. साँसों के तारों को किसने छुआ होगा?
5. काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. उपर्युक्त काव्यांश के कवि श्री हरिवंश राय बच्चन हैं तथा कविता का नाम ‘आत्मपरिचय’ है।
2. कवि जग-जीवन का भार लिए फिरता है। वह भार दुख और दर्द के कारण जीवन के लिए अति दुखदायी है।
3. कवि अपने जीवन में प्यार लेकर घूमता है।
4. साँसों के तारों को कवि की प्रियतमा ने छुआ होगा।
5. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने विगत जीवन का यथार्थ बोध कराया है।
  • भाषा सहज, सरल, सरस खड़ी बोली है।
  • संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रयोग है।
  • गेय-मुक्तक शैली का प्रयोग है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री तथा स्वरमैत्री अलंकार की शोभा दर्शनीय है।
  • अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग है।
  • बिंब-योजना सार्थक एवं सटीक है।
  • शृंगार रस का प्रयोग किया गया है।
  • माधुर्य गुण विद्यमान है।

2. मैं स्नेह-सुरा का पान किया करता हूँ,
मैं कभी न जग का ध्यान किया करता हूँ,
जग पूछ रहा उनको, जो जग की गाते,
मैं अपने मन का गान किया करता हूँ !
(C.B.S.E. Sample Paper-I, A.I. C.B.S.E. 2011 Set-I), (C.B.S.E. Delhi 2013, Set-I, II, III, C.B.S.E. Outside Delhi 2013, Set-II, A.L.C.B.S.E, 2014)

शब्दार्थ : स्नेह-सुरा-स्नेह रूपी मदिरा, प्रेम रूपी शराब। गान-बखान, कहना। जग-संसार।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित कवि श्री हरिवंशराय बच्चन द्वारा रचित है। इसमें कवि ने आत्म-परिचय का बोध कराया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि मैं प्रेम रूपी मदिरा को पीने वाला हूँ। मैं इसी प्रेम रूपी मदिरा को पीकर इसी की मस्ती में डूबा रहता हूँ। मैं केवल अपने में मग्न रहता हूँ। मैं कभी भी संसार का ध्यान नहीं करता। कवि कहता है कि यह संसार स्वार्थी है। यह केवल उसको पूछता है, जो इसका बखान करते हैं और उसके अनुकूल कार्य करते हैं। अपने प्रतिकूल कार्य करने वालों को यह संसार कभी नहीं पूछता। कवि कहता है कि मैं तो अपनी मस्ती में डूबकर अपने मन का बखान करता हूँ, अपने मन की भावनाओं तथा संवेदनाओं को सुनाता रहता हूँ।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. कवि किसका पान किए विचरण करता है?
2. कवि जग का ध्यान क्यों नहीं करता?
3. कवि किसका गान करता है?
4. जग कवि को क्यों नहीं पूछता?
5. काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. कवि स्नेह रूपी मदिरा का पान किए विचरण करता है।
2. कवि जग का ध्यान इसलिए नहीं करता, क्योंकि वह स्नेह रूपी सुरा को पीकर उसी में मस्त रहता है।
3. कवि अपने मन का गान करता है।
4. जग कवि को इसलिए नहीं पूछता क्योंकि वह जग का गान नहीं करता; उसकी जय-जयकार नहीं करता।
5. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने संसार की स्वार्थपरता का चित्रांकन किया है।
  • भाषा सहज, सरल, सरस खड़ी बोली है।
  • संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रयोग है।
  • स्नेह-सुरा में रूपक अलंकार की छटा शोभनीय है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री अलंकार द्रष्टव्य हैं।
  • गेय-मुक्तक शैली का सुंदर प्रयोग है।
  • बिंब योजना सार्थक एवं सटीक है।
  • माधुर्य गुण है।
  • शृंगार रस का चित्रण है।

3. मैं निज उर के उद्गार लिए फिरता हूँ, (C.B.S.E. Delhi 2013, Set-II, Set-III, A.I.C.B.S.E, 2014)
मैं निज उर के उपहार लिए फिरता हूँ,
है यह अपूर्ण संसार न मुझको भाता
मैं स्वप्नों का संसार लिए फिरता हूँ। (C.B.S.E. Sample Paper)

शब्दार्थ : निज-अपना। भाता-अच्छा लगना। उद्गार-भाव, अधीरता।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित आत्म-परिचय नामक कविता से अवतरित है। इसके रचयिता श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। इस काव्यांश में कवि ने अपने हृदय के उद्गार व्यक्त किए हैं।

व्याख्या : कवि कहता है कि मैं अपने हृदय के भाव तथा उपहार लिए जीवन-यापन कर रहा हूँ। कवि का कहने का अभिप्राय यह है कि मैंने अपने हदय में अनेक भाव उपहार स्वरूप सँजो रखे हैं। इन्हीं भावों तथा उपहारों को लिए विचरण कर रहा हूँ। कवि कहता है कि यह संसार तो अपूर्ण है इसलिए इसकी अपूर्णता मेरे हृदय को अच्छी नहीं लगती। मैं तो इस संसार की उपेक्षा करके अपने ही सपनों का संसार लेकर जी रहा हूँ। मैं तो अपने ही स्वप्निल संसार में डूबा रहता हूँ।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. कवि किसके उद्गार और उपहार लेकर फिरता है?
2. कवि को यह संसार अपूर्ण क्यों लगता है?
3. कवि जीवन में किसका संसार लिए फिरता है?
4. उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. कवि अपने हृदय के उद्गार और उपहार लेकर फिरता है।
2. कवि को यह संसार इसलिए अपूर्ण लगता है क्योंकि यह समस्त संसार स्वार्थी है। यहाँ हर कोई अपनी स्वार्थ-पूर्ति में डूबा हुआ है। यह संसार केवल उन्हीं को पूछता है जो इसकी जय-जयकार करते हैं।
3. कवि अपने जीवन में सपनों का संसार लिए फिरता है।
4. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने संसार को अपूर्ण बताया है।
  • भाषा सरस, प्रवाहमयी है।
  • गीति शैली का प्रयोग है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री तथा स्वरमैत्री अलंकारों की छटा शोभनीय है।
  • संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्दों का सार्थक प्रयोग है।
  • शांत रस है।
  • प्रसाद गुण है।

4. मैं जला हृदय में अग्नि, दहा करता हूँ,
सुख-दुख दोनों में मग्न रहा करता हूँ,
जग भव-सागर तरने को नाव बनाए,
मैं भव मौजों पर मस्त बहा करता हूँ।  (C.B.S.E. Model Question Paper, 2008, A.I.C.B.S.E, 2014)

शब्दार्थ : अग्नि-आग। जग-संसार। नाव-किश्ती। दहा-जला। भव-सागर-संसार रूपी सागर। मौजों पर-तरंगों पर, हिलोरों या लहरों पर।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित कवि श्री हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित ‘आत्म-परिचय’ नामक कविता से अवतरित है। इसमें कवि ने आत्म-परिचय का चित्रण करते हुए सुख-दुखावस्था में एक समान रहने की प्रेरणा दी है।

व्याख्या : कवि कहता है कि मैंने अपने हृदय में वियोग रूपी अग्नि को जला रखा है जिसमें मैं निरंतर जलता रहता हूँ। मैं सुख और दुःख दोनों अवस्थाओं में मग्न रहता हूँ। मैं न तो सुख आने पर अत्यधिक खुश होता हूँ और न ही दुःख की प्रतिकूल परिस्थितियों में अधिक दुखी। दोनों भावों को अपने जीवन में एकसमान ग्रहण करता हूँ। कवि संसार को संबोधन करते हुए कहता है कि अन्य लोग इस संसार रूपी सागर को पार करने के लिए भले ही नाव का निर्माण करे, पर मेरी संसार रूपी सागर को पार करने की कोई इच्छा नहीं है।

मैं तो इस संसार की लहरों पर ही मस्ती में बहना चाहता हूँ। कवि का अभिप्राय यह है कि इस संसार रूपी सागर को पार करने अर्थात मोक्ष की कामना हेतु भले ही औरों को किसी अन्य सहारे रूपी नाव की आवश्यकता हो, पर उसे किसी अन्य की कोई आवश्यकता नहीं और न ही मोक्ष प्राप्ति की कोई कामना है। वह तो इसी संसार की लहरों पर बहना चाहता है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. उपर्युक्त अवतरण के रचयिता का नाम लिखिए।
2. कवि किसमें मग्न रहता है?
3. कवि किन पर मस्ती में बहता है?
4. कवि अपने हृदय में किस अग्नि को जलाने की बात करता है?
5. इस अवतरण का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. उपर्युक्त अवतरण के रचयिता श्री हरिवंश राय बच्चन हैं।
2. कवि सुख और दुख दोनों में मग्न रहता है।
3. कवि इस संसार की तरह-तरह की मौजों पर मस्ती में भरकर बहता है।
4. कवि अपने हृदय में वियोग रूपी अग्नि को जलाने की बात करता है।
5. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने सुख-दुःख में सम रहने की प्रेरणा दी है।
  • भाषा सरल, साधारण, सरस खड़ी बोली है।
  • भव-सागर में रूपक अलंकार की छटा है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री अलंकारों का प्रयोग है।
  • प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग है।
  • बिंब योजना सार्थक है।
  • वियोग-शृंगार की अद्भुत छटा है।
  • माधुर्य गुण का सार्थक प्रयोग है।

5. मैं यौवन का उन्माद लिए फिरता हूँ,
उन्मादों में अवसाद लिए फिरता हूँ,
जो मुझको बाहर हँसा, रुलाती भीतर,
मैं, हाय, किसी की याद लिए फिरता हूँ, (C.B.S.E. Model Question Paper, 2008)

शब्दार्थ: यौवन-जवानी। अवसाद-दुख, पीड़ा। भीतर-आंतरिक रूप। उन्माद-जोश, मस्ती। बाहर-बाह्य रूप।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित ‘आत्म-परिचय’ नामक कविता से अवतरित किया गया है, जिसके रचयिता श्री हरिवंश राय बच्चन हैं। ये हालावाद के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं। इस काव्यांश में कवि ने अपने जीवन की आंतरिक पीड़ा का चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि मैं तो अपनी जवानी का जोश लिए जी रहा हूँ। मेरे हृदय में आज भी वह जवानी की मस्ती और जोश है जिसमें मस्त होकर मैं जीवन-यापन कर रहा हूँ। इसी जवानी के पागलपन में अनेक दुख समाए हुए हैं। कवि कहता है कि मैंने जवानी में किसी से प्रेम करके उसकी यादों को अपने हृदय में संजोया था। आज उसी की यादों को अपने हृदय में सजाकर फिर रहा हूँ। ये । यादें मुझे बाह्य रूप से हँसा देती हैं लेकिन आंतरिक रूप से रुलाती हैं। मैं अपनी प्रिया की यादों को लेकर जीवन जी रहा हूँ। इस जहाँ को मैं बाहर से भले ही हँसता हुआ दिखाई दूं, लेकिन मैं हृदय से रोता रहता हूँ। उसकी यादें आज भी मुझे सताती रहती हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. कवि किसका उन्माद लिए फिरता है?
2. कवि को किसकी याद रुलाती है? कैसे?
3. कवि के जीवन में जवानी के उन्माद के साथ-साथ और क्या है?
4. उपर्युक्त पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. कवि यौवन का उन्माद लिए फिरता है।
2. कवि को उसकी प्रियतमा की याद रुलाती है। वह कवि को बाहर से हँसाती है तथा अंदर से रुलाती है।
3. कवि के जीवन में जवानी के उन्माद के साथ-साथ अनेक अवसाद हैं।
4. काव्य-सौंदर्य

  • आंतरिक पीड़ा का प्रतिपादन किया है।
  • भाषा खड़ी बोली है जो अत्यंत सरस एवं प्रवाहमयी है।
  • प्रतीकात्मक शैली का सार्थक प्रयोग है। यहाँ बाहर से ‘बाह्य स्वरूप’ का तथा भीतर से आंतरिक रूप का परिचय होता है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री अलंकारों की शोभा है।
  • संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रयोग है।

6. कर यल मिटे सब, सत्य किसी ने जाना ?
नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना !
फिर मूढ़ न क्या जग, जो इस पर भी सीखे ?
मैं सीख रहा हूँ, सीखा ज्ञान भुलाना !

शब्दार्थ : यल – प्रयास। दाना – अक्लमंद, समझदार। जग = संसार। नादान – नासमझ। मूढ़ – मूर्ख।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2′ में संकलित कवि श्री हरिवंशराय बच्चन’ द्वारा रचित ‘आत्म-परिचय’ नामक कविता से अवतरित किया गया है। इसमें कवि ने ‘शाश्वत सत्य’ का वर्णन किया है।

व्याख्या : कवि प्रश्न करते हुए पूछता है कि इस संसार में बड़े-बड़े महापुरुषों ने सत्य को जानने का प्रयास किया, लेकिन आज तक कोई भी सत्य को नहीं जान पाया। सत्य (ब्रह्म) की खोज करते-करते सब समाप्त हो गए, फिर भी उसे नहीं जान पाए। कवि का अभिप्राय यह है कि इस संसार में आज तक कोई भी सत्य को पहचान नहीं सका। वह कहता है कि समाज में जहाँ पर अक्लमंद या समझदार लोग रहते हैं, वहीं पर नासमझ या मूर्ख भी निवास करते हैं। संसार को संबोधन कर कवि कहता है कि यह बात जानकर भी यह संसार मूर्ख है जो इसके बावजूद भी सीखना चाहता है। मैं तो भूले हुए ज्ञान को सीखने का प्रयास कर रहा हूँ।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. ‘कर यत्न मिटे सब, सत्य किसी ने जाना?’ पंक्ति में कवि किस सत्य की बात कहता है?
2. ‘नादान वहीं है, हाय, जहाँ पर दाना।’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
3. कवि संसार को मूर्ख क्यों कहता है ?
4. काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. इस पंक्ति में कवि अंतिम सत्य अर्थात परमात्मा की बात करता है। इस सत्य को जानने के लिए असंख्य महापुरुष लोग और उनके अनेक यत्न कर मिट गए।
2. इस पंक्ति का भाव यह है कि सृष्टि में जहाँ समझदार और विद्वान लोग रहते हैं, वहीं नासमझ और मूर्ख लोग भी निवास करते हैं।
3. कवि संसार को मूर्ख इसलिए कहता है क्योंकि यह संसार सत्य की खोज में मिटे असंख्य महापुरुषों को देखकर भी सचेत नहीं हुआ।
4. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने शाश्वत सत्य अर्थात ब्रह्म की ओर संकेत किया है।
  • संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रचुर प्रयोग हुआ है।
  • कवि की रहस्यवादी चेतना का चित्रण हुआ है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, प्रश्नवाचक अलंकारों की शोभा है।
  • प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग है।
  • शांत रस है।
  • प्रसाद गुण है।

7. मैं और, और जग और, कहाँ का नाता,
मैं बना-बना कितने जग रोज़ मिटाता;
जग जिस पृथ्वी पर जोड़ा करता वैभव,
मैं प्रति पग से उस पृथ्वी को ठुकराता! (C.B.S.E. Outside Delhi 2013, Set-1)

शब्दार्थ : वैभव-धन, ऐश्वर्य। प्रति-पग-प्रत्येक चरण।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी का पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित कवि ‘श्री हरिवंश राय बच्चन’ द्वारा रचित ‘आत्म-परिचय’ नामक कविता से अवतरित किया गया है। इसमें कवि ने बताया है कि उसका इस संसार से कोई नाता नहीं है। कवि कहता है कि मेरा इस संसार के साथ कोई संबंध नहीं है। मेरी और संसार की प्रकृति में बहुत अंतर है। मेरा स्वभाव कुछ और है तथा संसार का कुछ और। मेरी कोई और मंजिल है तथा इस स्वार्थी संसार की कोई और।

व्याख्या : कवि कहता है कि मैं तो प्रतिदिन ऐसे अनेक संसार बना-बना कर खत्म कर देता हूँ। मैं हर दिन ऐसे अनेक संसार की कल्पना करता हूँ और फिर उसे मिटा देता हूँ। ये संसार धन-ऐश्वर्य से प्रेरित होकर जिस पृथ्वी पर धन-ऐश्वर्य तथा शान-ओ-शौकत जोड़ता है, मैं उससे तनिक भी प्रभावित नहीं होता। ऐसी शान-ओ-शौकत को मैं पग-पग पर ठुकराता चलता हूँ। जिस पृथ्वी पर यह संसार झूठे धन-ऐश्वर्य खड़ा करता है मैं ऐसी ऐश्वर्य से परिपूर्ण पृथ्वी को पग-पग पर ठुकरा देता हूँ। ये धन-वैभव मुझे बिल्कुल भी विचलित नहीं कर सकते।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. कवि राग किसमें लिए हुए हैं?
2. ‘शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ’ पंक्ति में विरोधाभास स्पष्ट कीजिए।
3. कवि किस खंडहर का अंग लिए हुए हैं?
4. उपर्युक्त अवतरण का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. कवि अपने रोदन में राग लिए हुए है।
2. शीतल वाणी अर्थात हृदय के उद्गार, आग अर्थात क्रोध रूपी आग। इसका आशय है कि कवि अपने हृदय की शीतल वाणी में भी क्रोध एवं व्यंग्य रूपी आग बरसाता है।
3. कवि उस खंडहर का अंग लिए हुए हैं, जिस पर अनेक राजाओं के महल न्योछावर हो जाते हैं।
4. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने अपने हृदय की पीड़ा का प्रतिपादन किया है।
  • खड़ी बोली भाषा सरस एवं प्रवाहमयी है।
  • तत्सम शब्दावली का प्रचुर प्रयोग है।
  • प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग है।
  • अनुप्रास, स्वरमैत्री तथा पदमैत्री की छटा है।
  • माधुर्य गुण है।
  • शृंगार रस की वियोगावस्था का चित्रण हुआ है।
  • लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग भावानुरूप हुआ है।

8. मैं निज रोदन में राग लिए फिरता हूँ,
शीतल वाणी में आग लिए फिरता हूँ,
हों जिस पर भूपों के प्रासाद निछावर,
मैं वह खंडहर का भाग लिए फिरता हूँ। (C.B.S.E. Model Q. Paper, 2008)

शब्दार्थ : निज-अपना। भूपों के राजाओं के। निछावर-अर्पण, न्योछावर। भाग-अंश। रोदन-रोना, दुख। प्रासाद-महल। खंडहर-टूटा-फूटा महल।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित कवि ‘श्री हरिवंश राय बच्चन’ द्वारा रचित ‘आत्म-परिचय’ नामक कविता से अवतरित किया गया है। इसमें कवि ने आत्मीय पीड़ा का चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि मैं अपने आँसुओं में भी प्रेम-भरा गीत छिपाए फिरता हूँ। जिसे संसार मेरा रोदन समझता है, उसमें मेरे अनेक गीत छिपे हुए हैं। मैं अपनी अश्रुओं की धारा के माध्यम से अपने प्रेमगीतों का बखान करता चलता हूँ। मेरे हृदय में वाणी अत्यंत शीतल और कोमल है लेकिन मैं इस शीतलता में भी क्रोध रूपी आग छिपाए हूँ। कवि जग को संबोधित करते हुए कहता है कि मैं उस खंडहर का अंश लिए हूँ जिस पर महान प्रतापी राजा अपने महलों को न्योछावर कर देते हैं।

मेरे पास उस खंडहर का अंशमात्र है जिसके सामने बड़े-बड़े राजाओं के आलीशान महलों का भी कोई मूल्य नहीं है अर्थात कवि का प्रिया से वियोग होने पर हृदय विच्छिन हो गया, जो खंडहर की भाँति पड़ा है लेकिन फिर भी उसका मूल्य अनमोल है। वह इतना सुंदर है कि उसकी शोभा के समक्ष बड़े से बड़े राजा का आलीशान महल भी नगण्य है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. संसार किसको गाना कहता है?
2. कवि के फूट-फूटकर रोने को संसार ने क्या नाम दिया?
3. कवि संसार से क्या अपेक्षा करता है?
4. उपर्युक्त अवतरण का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. संसार कवि के रोने को गाना कहता है।
2. कवि के फूट-फूट कर रोने को संसार ने छंद बनाना नाम दिया।
3. कवि संसार से यह अपेक्षा करता है कि संसार उसे एक कवि कहकर न बुलाए, बल्कि उसे एक नया दीवाना कहकर संबोधित करे।
4. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने अपनी अंत:पीड़ा का प्रतिपादन किया है।
  • संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रयोग है।
  • भाषा खड़ी बोली है।
  • अनुप्रास, स्वरमैत्री, पदमैत्री अलंकारों की शोभा दर्शनीय है।

9. मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना,
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना !

शब्दार्थ : फूट पड़ा-जोर से रोया। दीवाना-प्रेम करने वाला, आसक्त। छंद बनाना-कविता लिखना या कहना।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित तथा कवि ‘हरिवंश राय बच्चन’ द्वारा रचित कविता
‘आत्म-परिचय’ से अवतरित किया गया है। इसमें कवि ने हृदय की पीड़ा का चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि संसार को संबोधन करते हुए कहता है कि मैं दुख में अत्यंत दुखी होकर रोया था लेकिन तुम मेरे रोने को भी गीत समझ रहे हो। हृदय में अपार वेदना के कारण मैं तो जोर-जोर से रोया लेकिन इसे भी तुम कविता कहना समझते रहे। कवि का कहने का अभिप्राय यह है कि यह संसार तो बिल्कुल अजीब है।

यह किसी की आंतरिक भावनाओं को नहीं समझ सकता। मैं जब साधारण रूप से रोया था तो उसे यह मेरा गीत गाना समझ रहे थे, लेकिन जब असीम पीड़ा के कारण मेरा हृदय जोर-जोर से चिल्लाकर रोने लगा तो उसे इसने मेरा कविता करना मान लिया। इस प्रकार यह हृदयहीन संसार मेरी आंतरिक पीड़ा को नहीं समझ रहा है। कवि पुनः इस जग को संबोधित करते हुए कहता है कि यह संसार मुझे एक कवि मानकर क्यों अपनाना चाहता है। मैं एक कवि नहीं हूँ बल्कि मैं तो इस जहाँ का एक नया प्रेमी हूँ। एक नया दीवाना हूँ जो अपनी प्रेमवाणी का बखान कर

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. संसार किसको गाना कहता है?
2. कवि के फूट-फूटकर रोने को संसार ने क्या नाम दिया?
3. कवि संसार से क्या अपेक्षा करता है?
4. उपर्युक्त अवतरण का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. संसार कवि के रोने को गाना कहता है।
2. कवि के फूट-फूट कर रोने को संसार ने छंद बनाना नाम दिया।
3. कवि संसार से यह अपेक्षा करता है कि संसार उसे एक कवि कहकर न बुलाए, बल्कि उसे एक नया दीवाना कहकर संबोधित करे।
4. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने अपनी अंत:पीड़ा का प्रतिपादन किया है।
  • संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रयोग है।
  • भाषा खड़ी बोली है।
  • अनुप्रास, स्वरमैत्री, पदमैत्री अलंकारों की शोभा दर्शनीय है।

10. मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ,
जिसको सुनकर जग झूमे, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ।

शब्दार्थ : दीवानों का-प्रेम में पागल व्यक्तियों का, प्रेमियों का। मादकता-नशा, उन्माद । वेश-पहनावा, रूप। निःशेष-बिल्कुल थोड़ा-सा, समाप्त।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित तथा श्री हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित ‘आत्म-परिचय’ नामक कविता से अवतरित किया गया है। इसमें कवि ने संसार को प्रेम और मस्ती का संदेश दिया है जिसमें यह संसार झूम उठे तथा लहराने लगे।

व्याख्या : कवि का कथन है कि मैं इस संसार में प्रेम में पागल प्रेमियों का रूप लेकर जीवनयापन कर रहा हूँ अर्थात मैंने अपने हृदय में एक प्रेमी को बिठाकर उसी का वेश धारण कर लिया है। मेरे हृदय में अभी भी थोड़ी-सी मादकता का नशा बाकी है और उसी मादकता में डूबकर मैं जी रहा हूँ। कवि कहता है कि मैं इस हृदयहीन और दुखी संसार को एक ऐसा मस्ती का संदेश देना चाहता हूँ, जिसको सुनकर यह संपूर्ण दुखी संसार झूम उठे और मस्ती में डूब कर लहराने लगे तथा इस मस्ती के आगे झुक जाएं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. कवि किसका वेश लिए फिरता है?
2. कवि किसका संदेश देता है?
3. कवि के संदेश को सुनकर संसार क्या-क्या प्रतिक्रियाएँ करता है?
4. उपर्युक्त अवतरण का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. कवि दीवानों का वेश लिए फिरता है।
2. कवि संसार को मस्ती का संदेश देता है।
3. कवि का संदेश सुनकर यह संसार झूम उठता है, झुक जाता है तथा लहराने लगता है।
4. काव्य-सौंदर्य

  • कवि दुखी हृदयहीन संसार को मस्ती का संदेश देना चाहता है।
  • खड़ी बोली, भाषा सहज, सरस एवं प्रवाहमयी है।
  • गेय मुक्तक शैली का प्रयोग है।
  • माधुर्य गुण है। शृंगार रस की छटा है।
  • अनुप्रास, स्वरमैत्री तथा पदमैत्री अलंकारों की शोभा दर्शनीय है।
  • अभिधा शब्द-शक्ति का सटीक प्रयोग हुआ है।
  •  तत्सम शब्दावली का प्रचुर प्रयोग है।।

11. दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!
हो जाए न पथ में रात कहीं,
मंजिल भी तो है दूर नहींयह
सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है!

शब्दार्थ : ढलता है-अस्त होता है। मंजिल-लक्ष्य, जहाँ पहुँचना है। पथ-रास्ता। दिन का पंथी-सूर्य।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित कवि श्री हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित ‘एक गीत’ नामक कविता से अवतरित किया गया है। बच्चन जी हालावाद के प्रवर्तक तथा आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि माने जाते हैं। इस काव्यांश में कवि ने समय के व्यतीत होने के साथ-साथ पथिक के मंजिल पर पहुँचने तथा उसे प्राप्त करने के जज्बे का चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि समय परिवर्तनशील है जो निरंतर चलायमान अवस्था में रहता है। वह कभी भी नहीं रुकता। समय के इसी परिवर्तन और अभाव को देखकर दिन में चलने वाला पथिक अर्थात सूर्य भी यह सोचकर अत्यंत शीघ्रता से चलता है कि कहीं रास्ते में ही रात न हो जाए, जबकि उसकी मंजिल भी अधिक दूर नहीं है। कवि का कहने का अभिप्राय यह है कि मानव जीवन क्षणभंगुर है। अतः समय बहुत कम है जो अत्यंत तेजी से गुजरता हुआ चलता है। मनुष्य रूपी यात्री को यह चिंता रहती है कि कहीं उसके लक्ष्य को प्राप्त करने से पहले ही उसके रास्ते में रात न हो जाए। यह सोच वह अत्यंत शीघ्रता से चलता है। कवि कहता है कि दिन अत्यंत शीघ्रता से व्यतीत होता है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. उपर्युक्त काव्यांश के कवि तथा कविता का नाम बताएँ।
2. ‘हो जाए न पथ में रात कहीं’ यहाँ कवि किस पथ और रात की बात करता है?
3. ‘मंजिल भी तो है दूर नहीं’ पंक्ति में निहित लाक्षणिक अर्थ को स्पष्ट कीजिए।
4. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. उपर्युक्त काव्यांश के कवि का नाम श्री हरिवंश राय बच्चन है तथा कविता का नाम ‘एक गीत’ है।
2. यहाँ कवि जीवन रूपी पथ और मृत्यु रूपी रात की बात करता है।
3. इस पंक्ति का आशय है कि मनुष्य की वह मंज़िल भी अधिक दूर नहीं है जहाँ उसे मृत्यु के बाद पहुँचना है।
4. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने अपनी रहस्यवादी चेतना का चित्रण किया है।
  • ‘जल्दी-जल्दी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार की छटा दर्शनीय है।
  • भाषा खड़ी बोली, सरल, सरस तथा प्रवाहमयी है।
  • तत्सम और तद्भव शब्दावली का प्रयोग है। (५) प्रसाद गुण है।
  • शांत रस है।
  • बिंब योजना अत्यंत सटीक एवं सार्थक है।

12. बच्चे प्रत्याशा में होंगे,
नीड़ों से झाँक रहे होंगे
यह ध्यान परों में चिड़ियों के भरता कितनी चंचलता है।
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है। (A.I. C.B.S.E. 2012, Set-I, 2018)

शब्दार्थ : प्रत्याशा-आशा। झाँकना-देखना। नीड़ों से-घोंसलों से। परों में-पंखों में।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित ‘एक गीत’ नामक कविता से अवतरित किया गया है जिसके रचयिता ‘श्री हरिवंश राय बच्चन’ जी हैं। इस काव्यांश में कवि ने दाने की खोज में गए पक्षियों (प्राणियों) का अपने बच्चों के प्रति वात्सल्य भाव का चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि लौटते पक्षियों को जब यह महसूस होता है कि उनके बच्चे घोंसलों में उनकी राह देख रहे होंगे और उनके आने की आशा मन में लिए घोंसलों से झाँक रहे होंगे। यह ध्यान उन चिड़ियों के पंखों में न जाने कितनी चंचलता भर देता है अर्थात जब भी चिड़ियों को अपने बच्चों की याद आती है तो उनके पंखों में अपने बच्चों की वात्सल्य भाव के कारण और अधिक स्फूर्ति छा जाती है। कवि कहता है कि दिन अत्यंत शीघ्रता से व्यतीत हो रहा है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. बच्चे किसकी प्रत्याशा में होंगे?
2. नीड़ों से कौन झाँक रहे होंगे और क्यों?
3. चिड़ियों के पंखों में कौन-सा ध्यान चंचलता उत्पन्न करता है?
4. इस अवतरण का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. बच्चे अपनी माताओं की प्रत्याशा में होंगे।
2. नीडों से चिडियों के बच्चे झाँक रहे होंगे, क्योंकि संध्या के समय उनकी माताएँ उनके पास नहीं हैं।
3. चिड़ियों के पंखों में यह ध्यान चंचलता उत्पन्न करता है कि संध्या के समय घोंसलों में उनके बच्चे उनके आने की प्रतीक्षा करते हुए घोंसलों से झाँक रहे होंगे।
4. काव्य-सौंदर्य

  • चिड़ियों का बच्चों के प्रति वात्सल्य भाव का चित्रण है।
  • खड़ी बोली की भाषा सरल एवं सरस है।
  • मुक्तक छंद है।
  • अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, पदमैत्री, स्वरमैत्री अलंकारों की शोभा है।
  • तत्सम और तद्भव शब्दावली का प्रयोग है।
  • प्रसाद गुण है।
  • अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग है।

13. मुझसे मिलने को कौन विकल?
मैं होऊँ किसके हित चंचल?
यह प्रश्न शिथिल करता पद को, भरता उर में विहवलता है!
दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।

शब्दार्थ : विकल-याकुल। शिथिल करना-सुस्त करना, मंद करना। विह्वलता-व्याकुलता। हित-के लिए। उर-हृदय।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित ‘एक गीत’ से अवतरित है जिसके रचयिता हरिवंश राय बच्चन हैं। इस काव्यांश में कवि ने प्राणी की व्याकुलता का चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि अपने जीवन रूपी पथ पर चलता हुआ प्राणी चिंतन करता है। वह अपने मन ही मन में सोच रहा है कि इस जीवन मार्ग में अपनी मंजिल की ओर आगे बढ़ते हुए मुझसे मिलने के लिए कौन व्याकुल हो रहा है तथा मैं भी किसके लिए दुखी हो रहा हूँ। कवि कहता है कि जब-जब पथिक के हृदय में यह प्रश्न उठता है तो यह प्रश्न

उसके पाँवों को कमजोर कर देता है, उन्हें सुस्त बना देता है तथा राही के हृदय में अपार व्याकुलता भर देता है अर्थात जीवन रूपी मार्ग पर अग्रसर होते हुए जब भी पथिक को किसी का ध्यान आता है तो वह उसके पैरों को सुस्त कर उसके हृदय में व्याकुलता भर देता है क्योंकि उसे लगता है कि ऐसा कोई भी नहीं है जो उससे मिलने को व्याकुल हो। कवि कहता है कि दिन अत्यंत शीघ्रता से व्यतीत हो रहा है। समय शीघ्र गुजर रहा है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. ‘मुझसे मिलने को कौन विकल?’ पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
2. कौन-सा प्रश्न पद को शिथिल करता है?
3. हृदय में व्याकुलता कौन भरता है?
4. काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. इस पंक्ति का भाव यह है कि जीवन रूपी पथ पर बैठते हुए राही सोचता है कि उससे इस राह में मिलने के लिए कौन व्याकुल हो रहा है।
2. जीवन रूपी राह पर चलते हुए मुझसे मिलने के लिए कौन व्याकुल है तथा मैं किसके लिए रोमांचित हो जाऊँ, यह प्रश्न पद को शिथिल करता है।
3. जीवन में उठने वाले ये प्रश्न कि उससे मिलने के लिए व्याकुल कौन है तथा वह किसके लिए रोमांचित है, यह प्रश्न हृदय में व्याकुलता भरता है।
4. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने राही के पथ से ध्यान भटक जाने की ओर संकेत किया है।
  • प्रश्न अलंकार, पुनरुक्ति प्रकाश, पदमैत्री, स्वरमैत्री तथा अनुप्रास अलंकारों की छटा शोभनीय है।
  • भाषा सहज, सरल एवं सरस है।
  • तत्सम शब्दावली का प्रचुरता से प्रयोग है। (५) मुक्तक छंद है।
  • अभिधात्मक शैली का प्रयोग है।
  • प्रसाद गुण है।
  • बिंब योजना सार्थक एवं सटीक है।