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भक्तिन Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 11
प्रश्न 1.
भक्तिन के चरित्र की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (A.L.C.B.S.E. 2011, Set-II, 2011, Set-I, 2017 Set-I)
अथवा
भक्तिन का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर
भक्तिन महादेवी वर्मा द्वारा लिखित एक प्रमुख संस्मरणात्मक रेखाचित्र है। इसमें लेखिका ने भक्तिन सेविका के अतीत और वर्तमान का चित्रण करते हुए उसके जीवन-संघर्ष का वर्णन किया है। प्रस्तुत पाठ में भक्तिन एक प्रमुख पात्र है। उसके चरित्र की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(i) व्यक्तित्व–भक्तिन एक अधेड़ उम्र की महिला है। उसका कद छोटा है। शरीर दुबला-पतला है। उसके होंठ पतले हैं। आँखें छोटी-छोटी-सी हैं। वह झूसी गाँव के प्रसिद्ध अहीर सूरमा की इकलौती बेटी है। उसकी माँ का नाम गोपालिका था। लेकिन उसके मरने के बाद इसकी विमाता ने इसका पालन-पोषण किया।
(ii) महान सेविका- भक्तिन एक महान सेविका है। वह अपना प्रत्येक कार्य पूर्ण श्रद्धा, मनोयोग, कर्मठता और कर्तव्य भावना से करती है। उसकी सेवा-भावना को देखकर ही महादेवी वर्मा जी ने उसे हनुमान जी से स्पर्धा करनेवाली बताया है। जैसे-सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पर्धा करनेवाली भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक अनामधन्या गोपालिका की कन्या है।
इसका वास्तविक नाम लक्ष्मी था लेकिन इसकी सेवा-भावना व भक्तिभाव को देखकर ही लेखिका ने इसे भक्तिन नाम दिया था। सेवा-भावना के परिणामस्वरूप लेखिका इसके साथ सेवक-स्वामी का संबंध नहीं रखती बल्कि इसे अपने घर का सदस्य मानती हैं। भक्तिन लेखिका के कहीं बाहर जाने पर उनके कपड़े आदि धोने का, जाते समय सामान आदि बाँधकर देने का पूरा ध्यान रखती है।
इसी सेवा-भावना से अभिभूत हो लेखिका कह उठती है, “मैं प्रायः सोचती हूँ कि जब ऐसा बुलावा आ पहुंचेगा, जिसमें न धोती साफ़ करने का अवकाश रहेगा, न सामान बाँधने का, न भक्तिन को रुकने का अधिकार होगा, न मुझे रोकने का तब चिर विदा के अंतिम क्षणों में यह देहातिन वृद्धा क्या करेगी और मैं क्या करूँगी?”
(iii) बुद्धिमती- भक्तिन निरक्षर होते हुए भी एक समझदार महिला है। वह प्रत्येक कार्य को बड़ी समझ-बूझ और होशियारी से पूर्ण करती है। लेखिका के घर में उनके प्रत्येक परिचित और साहित्यकार को वह अच्छी तरह पहचानती है। वह उसी के साथ आदर व सम्मान से बात करती है जो उसकी स्वामिनी लेखिका का आदर और सम्मान करता है। अपने ससुराल में भी अपने पति की मृत्यु के बाद वह अपनी पूँजी से एक कौड़ी भी अपनी सास और जेठानियों को नहीं हड़पने देती है।
(iv) परिश्रमी-भक्तिन एक कर्मठ महिला है। वह अपना प्रत्येक कार्य पूरे परिश्रम से करती है। अपने ससुराल में भी वह घर, गाय-भैंस, खेत-खलिहान का सारा कार्य पूरी मेहनत से किया करती थी। लेखिका के घर में आने के बाद भी वह लेखिका के सारे कामकाज को पूरा करने के लिए कठोर परिश्रम करती है। वह लेखिका के प्रत्येक कार्य में उनकी सहायता करती। इधर-उधर बिखरी किताबों, अधूरे चित्रों आदि सामान को वह सँजोकर रख देती है।
(v) साहसी-भक्तिन एक साहसी महिला थी। बचपन में ही उसकी माँ की मृत्यु हो गई थी। उसकी विमाता ने उसका पालन-पोषण किया लेकिन उसपर बहुत अत्याचार किए, फिर भी भक्तिन ने अपना साहस नहीं छोड़ा। छोटी-सी उम्र में ही उसकी शादी कर दी गई। ससुराल में भी उसे उपेक्षा का शिकार होना पड़ा। दो कन्याओं को जन्म देने पर उसकी सास और जेठानियों ने उसका खूब अपमान किया।
उसको बात-बात पर ताने कसे, उससे घर, गाय-भैंस, खेत-खलिहान का खूब काम करवाया लेकिन भक्तिन ने कभी अपना साहस नहीं छोड़ा। उसने प्रत्येक परिस्थिति का डटकर सामना किया। यहाँ तक कि पिता और अपने पति की मृत्यु के बाद भी उसने धैर्य नहीं खोया और निरंतर संघर्ष करती हुई अपने साहस का परिचय देती रही। भक्तिन का संपूर्ण जीवन संघर्षपूर्ण रहा है।
प्रश्न 2.
भक्तिन के जीवन में आई समस्याओं का चित्रण कीजिए। (C.B.S.E. Outside Delhi 2013, Set-I, II, III)
उत्तर
‘भक्तिन’ अधेड़ उम्र की एक महिला है जो आजीवन अनेक समस्याओं से संघर्ष करती रही। जन्म से लेकर उसका संपूर्ण जीवन अत्यंत कष्टपूर्ण ढंग से व्यतीत हुआ। वह झूसी गाँव के प्रसिद्ध अहीर सूरमा की इकलौती पुत्री है। उसकी माता का नाम गोपालिका था जो उसे जन्म देकर मृत्यु को प्राप्त हो गई। उसकी विमाता ने उसका पालन-पोषण किया लेकिन विमाता भक्तिन से अत्यंत ईर्ष्या और घृणा किया करती थी अतः उसकी कम उम्र में ही शादी करवा दी थी।
ससुराल जाने के उपरांत भक्तिन के पिता का देहांत हो गया लेकिन इसकी विमाता ने इसको पिता की मृत्यु का दुखद समाचार इसलिए नहीं भेजा क्योंकि वह अपने पिता से अगाध प्रेम करती थी तथा विमाता को संपत्ति के चले जाने का भी डर था। पिता की मृत्यु के काफी दिनों बाद उसके ससुराल समाचार भिजवाया लेकिन वहाँ भी इसकी सास ने इसे नहीं बताया क्योंकि सास अपने घर में किसी का रोना अशुभ मानती थी। तत्पश्चात भक्तिन ने दो कन्याओं को जन्म दिया लेकिन जीवन के दूसरे परिच्छेद में भी भक्तिन को अनेक समस्याओं और दुखों का ही सामना करना पड़ा।
इसकी सास और जेठानियों ने इसे अपनी उपेक्षा का शिकार बनाया। वे इससे घृणा करती थीं तथा अपने घर और खेत-खलिहान का सारा काम करवाती थी। जीवन के अगले दौर में इसका पति भी मृत्यु को प्राप्त हो गया। जैसे-तैसे उसने अपने आपको सँभाला। फिर इसने अपनी बेटियों की शादी की, लेकिन भाग्य ने यहाँ भी इसके जीवन को समस्याओं के बीच ला खड़ा किया, इसकी बड़ी लड़की. विधवा हो गई। इस प्रकार भक्तिन के जन्म से लेकर पूरे जीवन में समस्याएँ ही समस्याएँ दिखाई देती हैं। उसका संपूर्ण जीवन समस्याओं से ग्रस्त है लेकिन वह इनके सामने घुटने नहीं टेकती बल्कि इनका साहस के साथ मुकाबला करती है।
प्रश्न 3.
भक्तिन (लछमिन) का विवाह मात्र पाँच वर्ष की आयु में हो गया था। अभी भी देश के कुछ राज्यों में लड़कियों का विवाह बहुत छोटी उम्र में कर देने का रिवाज है। क्या ऐसा करना समाज के लिए उचित है? अपना तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
उत्तर
भक्तिन का विवाह पाँच वर्ष और गौना नौ वर्ष की उम्र में हो गया था। कच्ची आयु में ही उस पर घर-गृहस्थी का बोझा लाद दिया गया था, जो समाज के लिए कदापि उचित नहीं था। छोटी आयु खेल-कूद, पढ़ाई-लिखाई और दुनिया को देखने-समझने की होती है। यही समय हर बच्चे को भावी जीवन के लिए तैयार करता है।
यदि इसी उम्र में उन्हें विवाह के बंधन में फँसा दिया जाए तो वे मृत्युपर्यंत अनेक दृष्टिकोणों से अधूरे ही बने रहते हैं। छोटी आयु में जिन लड़कियों का विवाह कर दिया जाता है वे अधिकतर अशिक्षित या अल्पशिक्षित ही रह जाती हैं जिस कारण वे परिवार, समाज और देश के लिए कार्य नहीं कर पातीं जो शिक्षा प्राप्ति के बाद कर सकती थीं। जीव विज्ञान की दृष्टि से भी छोटी आयु में विवाह-बंधन उचित नहीं होता।
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से यह हानिकारक होता है। परिवार की जिम्मेदारियों का बोझ सँभालना अबोध अवस्था में नहीं आ पाता। छोटी आयु में बाल-बच्चों की ज़िम्मेदारी व्यक्तित्व को उभरने नहीं देती। कई बार वे मानसिक कुंठाओं और हीनभावना का शिकार बन जाती हैं। भक्तिन की सास ने उसे उसके पिता की मृत्यु की सूचना इसलिए नहीं दी थी कि वह अभी पूरी तरह परिपक्व नहीं थी। पिता के मृतक होने की खबर सुनकर वह रोना-पीटना करेगी जिससे अपशकुन होगा। निश्चित रूप से छोटी आयु में विवाह कर देना अच्छा नहीं होता। बाल-विवाह प्रथा का पालन किसी भी अवस्था में नहीं किया जाना चाहिए।
प्रश्न 4.
भक्तिन अनपढ़ थी और वह किसी भी स्थिति में महादेवी वर्मा के लेखन-कार्य में सहायक नहीं बन सकती थी पर फिर भी वह कुछ ऐसे कार्य करती थी जो लेखिका के लिए सहायक सिद्ध होते थे। वह ऐसा किस कारण कर पाती थी? क्या अन्य लोग भी भक्तिन की तरह दूसरों के सहायक बन सकते हैं? कैसे?
उत्तर
भक्तिन अनपढ़ थी। वह महादेवी की चित्रकला, लेखन या शिक्षण कार्य में कोई सहायता नहीं दे सकती थी पर फिर भी वह अपने सहयोगी स्वभाव और निष्ठा के कारण उत्तर-पुस्तकों को बांधकर, अधूरे चित्रों को कोने में रखकर, रंग की प्याली धोकर, चटाई को साफ़ करके तथा उनकी नई प्रकाशित पुस्तकों के प्रति अपनत्व का भाव प्रदर्शित कर लेखिका के हृदय पर अपने प्रभाव को डालने में सक्षम होती थी।
लेखिका को अच्छा लगता था कि वह उसके बारे में सोचती थी। रात को जब लेखिका अपना लेखन कार्य करती थी तब भी वह शांत भाव से उसके पास दरी के आसन पर बैठी रहती थी। अन्य लोग भी भक्तिन की भाँति दूसरों के सहायक बन सकते हैं लेकिन ऐसा करने के लिए अपने जीवन के अनेक सुखों को तिलांजलि देनी पड़ सकती है। अपनी भूख, प्यास, नौंद और अनेक इच्छाओं को त्यागना पड़ सकता है। यह कार्य संभव है पर बहुत कठिन है। ऐसा काम करने से केवल मानसिक संतोष ही प्राप्त होता है-भौतिक सुख नहीं।
प्रश्न 5.
भक्तिन कारागार से अत्यधिक डरती थी। उसे वह यमलोक-सी प्रतीत होती थी पर फिर भी वह अपनी मालकिन के साथ वहाँ जाने हेतु सदा तत्पर रहती थी। मानव-जीवन में ऐसी स्थिति किस कारण आती है? क्या इनसानों में भक्तिन जैसा यह गुण संभव हो सकता है? क्यों?
उत्तर
भक्तिन संस्कारवश कारागार से डरती थी। उसकी दृष्टि में वह यमलोक के समान ही थी। महादेवी वर्मा और भक्तिन का समय वह था जब देश में स्वतंत्रता आंदोलन चल रहा था। अंग्रेज़ी शासन प्रतिदिन न जाने कितने देशभक्त देशवासियों को सलाखों के पीछे बंद करता था। जब कभी वह यह सुनती थी कि महादेवी वर्मा को भी कारागार में जाना पड़ेगा तो वह उसके साथ स्वयं वहाँ जाने की तैयारी कर लेती थी।
वह मानती थी कि जहाँ मालिक वहाँ नौकर। नौकर को अकेले छोड़ देना तो अन्यायपूर्ण है। उसके मन में अपनी स्वामिनी के प्रति ऐसी निष्ठा थी कि यदि उसे कारागार में स्वामिनी के साथ न भेजा गया तो वह बड़े लाट तक लड़ाई लड़कर भी कारागार में जाएगी। सभी इनसानों में भक्तिन जैसे गुण संभव ही नहीं हैं। अधिकांश इनसानों में स्वार्थ, धोखा, लालच, अहं और सुखों की कामना अधिक होती है लेकिन भक्तिन में इनमें से एक भी कामना नहीं थी। भक्तिन अनूठी थी। लेखिका स्वयं उसके इन गुणों के कारण उसे कभी भी नहीं खोना चाहती थी।
प्रश्न 6.
लेखिका ने भक्तिन के सेवक धर्म की तुलना किससे की है ? क्यों?
उत्तर
लेखिका ने भक्तिन के सेवक-धर्म की तुलना हनुमान जी से की है। यह इसलिए की है क्योंकि जिस प्रकार हनुमान अपने प्रभु राम की तन-मन और पूर्ण निष्ठा से सेवा किया करते थे। ठीक उसी प्रकार भक्तिन अपनी मालकिन लेखिका की सेवा करती है। वह उनके प्रति पूर्ण समर्पण भाव से सेवा भाव रखती है।
प्रश्न 7.
जीवन में प्राय: सभी को क्या लेकर जीना पड़ता है? क्यों?
उत्तर
जीवन में प्राय: सभी को अपने अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है क्योंकि प्राय: यह दृष्टिगोचर होता है कि सभी का जीवन उनके नाम के अनुरूप सार्थकतापूर्ण नहीं होता। न ही मनुष्य को अपने नाम के अनुरूप वह सब कुछ प्राप्त होता है जो उसे मिलना चाहिए। जैसे-कुबेर, लक्ष्मी, लक्ष्मीपति आदि।
प्रश्न 8.
भक्तिन ने अपना वास्तविक नाम कब और किसे बताया? उसने क्या प्रार्थना की?
उत्तर
उत्तर भक्तिन ने अपना वास्तविक नाम नौकरी पाने के समय अपनी मालकिन लेखिका महादेवी वर्मा को बताया था। उसने लेखिका से यह प्रार्थना की थी कि वह इस नाम का कभी उपयोग न करें।
प्रश्न 9.
भक्तिन के इतिवृत पर नोट लिखिए।
उत्तर
भक्ति का वास्तविक नाम लक्ष्मी था। वह ऐतिहासिक झूसी के एक प्रसिद्ध सूरमा की इकलौती बेटी थी। पाँच वर्ष की अल्पायु में ही उसका विवाह हँडियाँ ग्राम के एक संपन्न परिवार में गोपालक के बेटे से कर दिया। उसकी विमाता ने नौ वर्ष की आयु में ही उसका गौना कर दिया था क्योंकि उसकी माँ गोपालिका की बचपन में ही मृत्यु हो गई थी। .
प्रश्न 10.
भक्तिन का खेत-खलिहान के प्रति ज्ञान कैसे था और क्यों?
उत्तर
भक्तिन का खेत-खलिहान के प्रति ज्ञान बहुत अच्छा था क्योंकि वही अपने घर के गाय-भैंस, खेत-खलिहान आदि की देखभाल किया करती थी। जिठानियों की उपेक्षा के कारण उसे ही खेत-खलिहान का कार्यभार सौंपा गया था, जिसे करते-करते उसे अधिक ज्ञान हो गया था।
प्रश्न 11.
भक्तिन के जीवन का तीसरा अनुच्छेद कब प्रारंभ हुआ?
उत्तर
भक्तिन ने अनेक प्रयास करने पर भी अपनी जिठानियों के असुरगणों की उपार्जित जगह जमीन में से नाममात्र भी न देने का निश्चय कर लिया। उसने उसी घर में रहने की घोषणा कर दी तथा भविष्य में भी संपत्ति सुरक्षित रखने हेतु अपनी छोटी लड़कियों का विवाह कर दिया। उसने बड़े दामाद को अपना घरजमाई बनाकर रख लिया। इस तरह भक्तिन के जीवन का तीसरा अनुच्छेद आरंभ हुआ।
प्रश्न 12.
भक्तिन के जीवन की कर्मठता में सबसे बड़ा कलंक क्या बन गया?
उत्तर
जब भक्तिन की संपत्ति गाय-भैंस, खेत-खलिहान सब पारिवारिक वेष में फंस गए तो इससे लगान अदा करना भारी हो गया। जब अधिक समय तक जमींदार को लगान नहीं मिला तो उसने भक्तिन को बुलाकर पूरा दिन कड़ी धूप में खड़ा करके रखा। यह उसके जीवन की कर्मठता में सबसे बड़ा कलंक बन गया।
प्रश्न 13.
भक्तिन के जीवन का चौथा और अंतिम परिच्छेद का प्रारंभ कब और कैसे हुआ?
उत्तर
जब भक्तिन को लगान न मिलने पर जमींदार ने उसको दिनभर धूप में खड़ा रखा तो उसने इसे अपने जीवन पर कलंक माना। तब वह अपना सब कुछ छोड़कर आजीविका पाने हेतु इलाहाबाद आ गई। यहाँ उसकी मुलाकात लेखिका महादेवी वर्मा से हुई। उन्होंने इस दीन-हीन का सहानुभूतिवश अपने यहाँ सेविका के रूप में नौकरी दे दी। यहीं से भक्तिन के जीवन का चौथा तथा अंतिम परिच्छेद प्रारंभ हुआ।
प्रश्न 14.
भक्तिन की वेशभूषा में किसका सम्मिश्रण था और क्यों?
उत्तर
भक्तिन की वेशभूषा में गृहस्थ और वैराग्य का अनूठा सम्मिश्रण था। यह सम्मिश्रण इसलिए प्रतीत होता था क्योंकि भक्तिन एक तरफ़ तो घर-गृहस्थी संभालने में पूर्ण सक्षम एवं समर्थ थी तो दूसरी ओर उसका शरीर दुबला-पतला था और वह कुरता, मैली धोती पहने हुए थी।
प्रश्न 15.
भक्तिन ने लेखिका को कौन-सा सारगर्भित लेक्चर दिया?
उत्तर
भक्तिन ने जब लेखिका के घर में सेविका-धर्म का निर्वाह करते हुए पहली बार खाना बनाया तो उसे देखकर लेखिका हैरान रह गई। बस फिर भक्तिन लेखिका से कहने लगी कि रोटियाँ अच्छी सेंकने के प्रयास में कुछ ज्यादा खरी हो गई हैं किंतु अच्छी हैं।
तरकारियाँ अवश्य थीं परंतु जब दाल बनी है तो उनका क्या काम। वह शाम की तरकारी बना देगी। दूध-घी उसे अच्छा नहीं लगता अन्यथा सब ठीक हो जाता। अब न हो तो अमचूर और लाल मिर्च की चटनी पीस लें। यदि इससे भी काम न चले तो वह गाँव से लाया हुआ थोड़ा-सा गुड़ दे देगी। शहर के लोग ये क्या कलाबत्तू खाते हैं। फिर वह अनाड़िन या फूहड़ नहीं है। उसके ससुर, पितिया ससुर, अजिमा सास आदि ने उसकी पटक कुशलता के लिए असंख्या मौखिक प्रमाण-पत्र दिए हुए हैं।
प्रश्न 16.
भक्तिन के सारगर्भित लेक्चर का लेखिका पर क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर
भक्तिन के सारगर्भित लेक्चर का लेखिका पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। उसने मीठे से विरक्ति होने के कारण तथा गुड़ और घी से अरुचि के कारण रूखी दाल से एक मोटी रोटी खा ली। इसके पश्चात यह ठाठ से यूनिवर्सिटी पहुंची और न्यायसूत्र पढ़ते-पढ़ते शहर और देहात के जीवन के इस अंतर पर विचार करती रही।
प्रश्न 17.
भक्तिन का स्वभाव कैसा बन गया था?
उत्तर
भक्तिन का स्वभाव अपरिवर्तनशील बन गया था। वह दूसरों को अपने मन के अनुसार बना लेना चाहती थी किंतु अपने संबंध में किसी प्रकार के परिवर्तन की कल्पना नहीं कर सकती थी, इसीलिए आज भी वह देहाती थी।
प्रश्न 18.
भक्तिन निरक्षर होते हुए भी साक्षर लोगों की गुरु कैसे बन गई?
उत्तर
भक्तिन जब इंस्पेक्टर के समान क्लास में घूम-घूमकर किसी के शरीर की बनावट, किसी के हाथ की मंथरता, किसी की बुद्धि की मंदता पर टीका-टिप्पणी करने का अधिकार पा गई। इसी से वह निरक्षर होते हुए भी साक्षर लोगों की गुरु बन गई।
प्रश्न 19.
भक्तिन का अन्य लोगों से अधिक बुद्धिमान होना कैसे प्रमाणित होता है?
उत्तर
भक्तिन लेखिका से द्वार पर बैठकर बार-बार काम करने का आग्रह करती है। कभी वह उत्तर-पुस्तकों के बाँधती है कभी अधूरे चित्रों को कोने में रख देती है तो कभी रंग की प्याली धोकर और कभी चटाई को आँचल से झाड़कर वह लेखिका की सहायता करती है। इसी से भक्तिन का लेखिका का अन्य लोगों से अधिक बुद्धिमान होना प्रमाणित होता है।
प्रश्न 20.
भक्तिन की सहजबुद्धि किस संबंध में विस्मित कर देनेवाली है?
उत्तर
भक्तिन का लेखिका के परिचितों एवं साहित्यिक बंधुओं से विशेष परिचय है किंतु उनके प्रति सम्मान की भावना लेखिका के प्रति सम्मान की भावना पर निर्भर है। उसका सद्भाव उनके प्रति लेखिका के सद्भाव से निश्चित होता है। इसी संबंध में भक्तिन की सहजबुद्धि विस्मित कर देने वाली है।
प्रश्न 21.
भक्तिन लाट-साहब तक लड़ने को तत्पर क्यों थी? इससे उसके स्वभाव की कौन-सी विशेषता उजागर होती हैं? (C.B.S.E. Outside Delhi 2017, Set-1)
उत्तर
भक्तिन लाट-साहब तक लड़ने को इसलिए तत्पर थी क्योंकि वह अपनी मालकिन को किसी भी कीमत पर खो देना नहीं चाहती। वह चाहती है कि उसकी मालकिन सदैव उसके साथ रहे। इससे उसके स्वभाव की सच्ची सेविका, अपने धर्म का पालन करने वाली, निडरता एवं साहसी विशेषताएँ उजागर होती हैं।
महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
1. सेवक-धर्म में हनुमान जी से स्पर्धा करनेवाली भक्तिन किसी अंजना की पुत्री न होकर एक अनामधन्या गोपालिका की कन्या-नाम है लछमिन अर्थात लक्ष्मी। पर जैसे मेरे नाम की विशालता मेरे लिए दुर्वह है, वैसे ही लक्ष्मी की समृद्धि भक्तिन के कपाल की कुंचित रेखाओं में नहीं बंध सकी। वैसे तो जीवन में प्रायः सभी को अपने-अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है पर भक्तिन बहुत समझदार है, क्योंकि वह अपना समृद्धि-सूचक नाम किसी को बताती नहीं। केवल जब नौकरी की खोज में आई थी, तब ईमानदारी का परिचय देने के लिए उसने शेष इतिवृत्त के साथ यह भी बता दिया, पर इस प्रार्थना के साथ कि मैं कभी नाम का उपयोग न करूं। (C.B.S.E. Delhi 2008, Sample Paper, 2011 Set-I,C.B.S.E. Delhi 2013, Set-I, II, III)
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
1. प्रस्तुत गद्यांश के पाठ तथा लेखिका का नाम लिखिए।
2. भक्तिन का नाम क्या है ? वह किसकी पुत्री है?
3. लेखिका ने भक्तिन की तुलना किससे की है और क्यों?
4. भक्तिन किसी को अपना नाम क्यों नहीं बताती?
5. भक्तिन ने अपना असली नाम कब और किसको बताया था?
उत्तर
1. प्रस्तुत गद्यांश के पाठ का नाम है-भक्तिन तथा इसकी लेखिका हैं-महादेवी वर्मा।
2. भक्तिन का असली नाम लछमिन अर्थात लक्ष्मी है। वह एक अनामधन्या गोपालिका की पुत्री है।
3. लेखिका ने भक्तिन की तुलना हनुमान जी से की है क्योंकि भक्तिन अपने सेविका-धर्म को पूरी निष्ठा और श्रद्धा भाव से निभाती है। वह पूरी ईमानदारी से अपनी मालकिन की सेवा करती है।
4. भक्तिन बहुत समझदार महिला है। वह जानती है कि उसका जीवन उसके नाम के एकदम विपरीत है। वह बहुत गरीब है। वह अपने जीवन में विरोधाभास लेकर जी रही है। इसीलिए वह किसी को अपना असली नाम नहीं बताती।
5. भक्तिन ने लेखिका को अपना असली नाम तब बताया था जब वह नौकरी की खोज में आई थी।
2. पिता का उस पर अगाध प्रेम होने के कारण स्वभावतः ईर्ष्यालु और संपत्ति की रक्षा में सतर्क विमाता ने उनके मरणांतक रोग का समाचार तब भेजा, जब वह मृत्यु की सूचना भी बन चुका था। रोने-पीटने के अपशकुन से बचने के लिए सास ने भी उसे कुछ न बताया। बहुत दिन से नैहर नहीं गई, सो जाकर देख आवे, यही कहकर और पहना-उढ़ाकर सास ने उसे विदा कर दिया। इस अप्रत्याशित अनुग्रह ने उसके पैरों में जो पंख लगा दिए थे, वे गाँव की सीमा में पहुँचते ही झड़ गए।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
1. भक्तिन को पिता की मृत्यु का समाचार कब मिला?
2. सास ने भक्तिन को पिता की मृत्यु का समाचार क्यों नहीं बताया?
3. सास ने भक्तिन को क्या कहकर नैहर के लिए विदा किया?
4. भक्तिन को अपनी सास का अनुग्रह कैसा लगा? क्यों?
5. भक्तिन के पैरों के पंख गाँव की सीमा में पहुँचते ही क्यों झड़ गए?
उत्तर
1. भक्तिन को पिता की मृत्यु का समाचार तब मिला जब वह मृत्यु की सूचना बन चुका था।
2. सास ने भक्तिन को पिता की मृत्यु का समाचार इसलिए नहीं बताया क्योंकि वह अपने घर में रोने-पीटने के अपशकुन से बचना चाहती थी।
3. सास ने भक्तिन को यह कहकर विदा किया कि वह बहुत दिन से नैहर नहीं गई सो जाकर देख आए।
4. भक्तिन को अपनी सास का अनुग्रह अप्रत्याशित लगा क्योंकि आज तक उसने उसके साथ ऐसा व्यवहार नहीं किया था।
5. भक्तिन के पैरों के पंख गाँव की सीमा में पहुँचते ही इसलिए झड़ गए क्योंकि उसे वहीं अपने पिता की मृत्यु का समाचार मिल गया।
3. जीवन के दूसरे परिच्छेद में भी सुख की अपेक्षा दुख ही अधिक है। जब उसने गेहुएँ रंग और बटिया जैसे मुखवाली पहली कन्या के दो
संस्करण और कर डाले तब सास और जिठानियों ने ओठ बिचकाकर उपेक्षा प्रकट की। उचित भी था, क्योंकि सास तीन-तीन कमाऊ वीरों की विधात्री बनकर मचिया के ऊपर विराजमान पुरखिन के पद पर अभिषिक्त हो चकी थी और दोनों जिठानियाँ काकभशंडी जैसे काले लालों की क्रमबद्ध सृष्टि करके इस पद के लिए उम्मीदवार थीं। छोटी बहू के लीक छोड़कर चलने के कारण उसे दंड मिलना आवश्यक हो गया।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
1. भक्तिन को जीवन के दूसरे परिच्छेद में क्या मिला?
2. लेखक ने दूसरा परिच्छेद किसे कहा है?
3. भक्तिन ने कैसी कन्याओं को जन्म दिया?
4. भक्तिन की जिठानियों ने कैसे पुत्रों को जन्म दिया ? वे ऐसा करके किस पद की उम्मीदवार थीं ?
5. छोटी बहू कौन थी? उसने कैसी लीक तोड़ी?
उत्तर
1. भक्तिन को जीवन के दूसरे परिच्छेद में दुख-ही-दुख मिले।
2. लेखक ने दूसरा परिच्छेद विवाह के बाद ससुराल के जीवन को कहा है।
3. भक्तिन ने गेहुएँ रंग और बटिया जैसे मुखवाली कन्याओं को जन्म दिया।
4. भक्तिन की जिठानियों ने काकभुशुंडी जैसे काले पुत्रों को जन्म दिया। वे ऐसा करके अपने घर की पुरखिन के पद की उम्मीदवार थीं।
5. छोटी बहू भक्तिन थी। उसने बेटों की जगह बेटियाँ पैदा करने की लीक तोड़ी।
4. भोजन के समय जब मैंने अपनी निश्चित सीमा के भीतर निर्दिष्ट स्थान ग्रहण कर लिया, तब भक्तिन ने प्रसन्नता से लबालब दृष्टि और आत्मतुष्टि से आप्लावित मुसकराहट के साथ मेरी फूल की थाली में एक अंगुल मोटी और गहरी काली चित्तीदार चार रोटियाँ रखकर उसे टेढ़ी कर गाढ़ी दाल परोस दी। पर जब उसके उत्साह पर तुषारपात करते हुए मैंने रुआंसे भाव से कहा-‘यह क्या बनाया है’ तब वह हतबुद्धि हो गई।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर ।
प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश की लेखिका का नाम बताएँ।
2. लेखिका ने भक्तिन को रुआंसे भाव से क्या कहा?
3. लेखिका के कथन को सुनकर भक्तिन पर क्या प्रभाव पड़ा?
4. भक्तिन ने लेखिका को किस थाली में रोटियाँ रखीं?
5. भक्तिन ने लेखिका की थाली में कैसी और कितनी रोटियाँ रखीं?
उत्तर
1. उपर्युक्त गद्यांश महादेवी वर्मा दवारा लिखित है।
2. लेखिका ने भक्तिन को रुआंसे भाव से कहा कि यह क्या बनाया है।
3. लेखिका के कथन को सुनकर भक्तिन हतबुद्धि हो गई।
4. भक्तिन ने लेखिका को फूल की थाली में रोटियाँ रखीं।
5. भक्तिन ने लेखिका की थाली में एक अंगुल मोटी और गहरी काली चित्तीदार चार रोटियाँ रखीं।
5. इसी से मेरी किसी पस्तक के प्रकाशित होने पर उसके मुख पर प्रसन्नता की आभा वैसे ही उदभासित हो उठती है. जैसे स्विच दबाने से बल्ब में छिपा आलोक। वह सूने में उसे बार-बार छूकर, आँखों के निकट ले जाकर और सब ओर घुमा-फिराकर मानो अपनी सहायता का अंश खोजती है और उसकी दृष्टि में व्यक्त आत्मघोष कहता है कि उसे निराश नहीं होना पड़ता।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
1. लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन के मख पर प्रसन्नता कैसे प्रकट होती थी?
2. लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन उसे कैसे देखती थी?
3. जब भक्तिन प्रकाशित पुस्तक को ध्यान से देखती थी तो लेखिका को क्या लगता था?
4. पुस्तक देखने पर भक्तिन की दृष्टि में आत्मघोष क्या कहता है?
उत्तर
1. लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन के मुख से प्रसन्नता वैसे ही प्रकट हो जाती थी जैसे स्विच दबाने से बल्ब में छिपा आलोक प्रकट हो जाता है।
2. लेखिका की पुस्तक प्रकाशित होने पर भक्तिन उसे बड़े ध्यान से देखती थी। वह उसे सूने में बार-बार छूती तो कभी आँखों के पास ले जाकर चारों ओर घुमा-फिराकर देखती थी। 3. जब भक्तिन प्रकाशित पुस्तक को ध्यान से देखती तो लेखिका को लगता था कि भक्तिन मानो उस पुस्तक में अपनी सहायता का अंश देख रही हो।
4. पुस्तक देखने पर भक्तिन की दृष्टि में आत्मघोष कहता है कि उसे निराश नहीं होना पड़ता।
6. जब गत वर्ष युद्ध के भूत ने वीरता के स्थान में पलायन-वृत्ति जगा दी थी, तब भक्तिन पहली ही बार सेवक की विनीत मुद्रा के साथ मुझसे गाँव चलने का अनुरोध करने आई। वह लकड़ी के मचान पर अपनी नई धोती बिछाकर मेरे कपड़े रख देगी, दीवाल में कीलें गाड़कर और उनपर तख्ने रखकर मेरी किताबें सजा देगी, धान के पुआल का गोंदरा बनवाकर और उसपर अपना कंबल बिछाकर वह मेरे सोने का प्रबंध करेगी। मेरे रंग, स्याही आदि को नई हँडियों में संजोकर रख देगी और कागज-पत्रों को छीके में यथाविधि एकत्र कर देगी।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
1. लेखिका के जीवन में पलायन-वृत्ति किसने जगाई?
2. पलायन-वृत्ति जागृत होने पर भक्तिन ने अपनी मालकिन से कहाँ जाने का अनुरोध किया?
3. लकड़ी के मचान पर कौन सामान रखती थी और क्या?
4. भक्तिन लेखिका के क्या-क्या कार्य करती थी?
उत्तर
1. लेखिका के जीवन में वीरता के स्थान पर युद्ध के भूत ने पलायन-वृत्ति जगाई।
2. पलायन-वृत्ति जागृत होने पर भक्तिन ने अपनी मालकिन से गाँव जाने का अनुरोध किया।
3. लकड़ी के मचान पर भक्तिन सामान रखती थी। वह अपनी नई धोती बिछाकर लेखिका के कपड़े रखती थी। दीवाल में कीलें गाड़कर और उन पर तख्ने रखकर लेखिका की किताबें सजा देती थी।
4. भक्तिन लेखिका के निम्नलिखित कार्य करती थी
- दीवार में कीलें गाड़ कर तथा उसपर तख्ता रखकर लेखिका की किताबें सजा देती है।
- धान के पुआल का गोंदरा बनवाकर तथा उसपर कंबल बिछाकर सोने का प्रबंध करती थी।
- कागज़-पत्रों को छीके में यथाविधि एकत्र करती थी।
- लेखिका के रंग-स्याही आदि को नई हँडियों में संजोकर रखती थी।
7. भक्तिन और मेरे बीच में सेवक-स्वामी का संबंध है, यह कहना कठिन है, क्योंकि ऐसा कोई स्वामी नहीं हो सकता, जो इच्छा होने पर भी सेवक को अपनी सेवा से हटा न सके और ऐसा कोई सेवक भी नहीं सुना गया, जो स्वामी के चले जाने का आदेश पाकर अवज्ञा से हँस दे। भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है, जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जानेवाले अंधेरे-उजाले और आँगन में फूलनेवाले गुलाब और आम को सेवक मानना। वे जिस प्रकार एक अस्तित्व रखते हैं, जिसे सार्थकता देने के लिए ही हमें सुख-दुख देते हैं, उसी प्रकार भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने विकास के परिचय के लिए ही मेरे जीवन को घेरे हुए है। (A.I.C.B.S.E. 2016, A.L.C.B.S.E. 2012, Set-1)
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश के पाठ तथा लेखिका का नाम बताइए।
2. भक्तिन और लेखिका के परस्पर संबंध को स्पष्ट कीजिए।
3. लेखिका द्वारा नौकरी से हटकर चले जाने का आदेश पाकर भक्तिन की क्या प्रतिक्रिया होती थी?
4. भक्तिन को नौकर कहना कितना असंगत है?
5. भक्तिन और लेखिका के पारस्परिक संबंधों को सेवक-स्वामी संबंध क्यों नहीं कहा जा सकता?
6. प्रकाश-अंधकार का उदाहरण क्यों दिया गया है? भाव स्पष्ट कीजिए।
7. गद्यांश के आधार पर महादेवी और भक्तिन के स्वभाव की एक-एक विशेषता सोदाहरण लिखिए।
8. आशय स्पष्ट कीजिए-“भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने विकास के परिचय के लिए ही मेरे व्यक्तित्व को घेरे हुए है।”
उत्तर
1. उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का नाम-भक्तिन और लेखिका का नाम-महादेवी वर्मा है।
2. भक्तिन लेखिका के घर में सेविका का कार्य करती थी लेकिन लेखिका के हृदय में उसके प्रति अपार श्रद्धा तथा प्रेमभाव था। वह उसे एक सेविका न मानकर अपने परिवार का सदस्य मानती थी। लेखिका उसके साथ कभी भी नौकर-मालिक जैसा व्यवहार नहीं करती थी।
3. लेखिका जब कभी परेशान होकर भक्तिन को नौकरी से हटकर चले जाने का आदेश दे देती थी तो उस आदेश को सुनकर भक्तिन हँस दिया करती थी। वह वहाँ से बिलकुल भी नहीं हिलती थी।
4. भक्तिन को नौकर कहना उतना ही असंगत है जितना अपने घर में बारी-बारी से आने-जाने वाले अंधेरै-उजाले और आँगन में फलने वाले गुलाब और आम को सेवक मानना।
5. भक्तिन और लेखिका के पारस्परिक संबंधों को सेवक-स्वामी संबंध इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि उन दोनों में आत्मीय संबंध थे। भक्तिन अपनी स्वामी की तन-मन से सेवा करती थी। वह उनके दिल से ही नहीं बल्कि घर की हर वस्तु से आत्मिक रूप से जुड़ी थी।
6. इस पंक्ति का भाव है कि जिस प्रकार प्रकाश और अंधकार की प्रति स्वतंत्र होती है। उन पर अधिकार पाना असंभव है उसी प्रकार भक्तिन पर अधिकार पाना कठिन था। उसका व्यक्तित्व स्वतंत्र था।
7. इस पंक्ति का आशय है कि भक्तिन का व्यक्तित्व स्वतंत्र था। उसने अपने व्यक्तित्व की छाप से लेखिका के व्यक्तित्व को घेरे हुए था। उसने लेखिका के मन पर अपने पद चिह्न की ऐसी छवि बनाई कि लेखिका अनायास ही उनके व्यक्तित्व का उद्घाटन करने पर मजबूर हो जाती हैं।
8. यह पूर्ण रूप से सत्य है कि भक्तिन का स्वतंत्र व्यक्तित्व अपने विकास के परिचय के लिए कवयित्री/लेखिका महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व को घेरे हुए है। महादेवी वर्मा का व्यक्तित्व ही उसके चरित्र का सबल आधार है। उसका अपने आप अकेले में कोई महत्वपूर्ण अस्तित्व नहीं रखता। लेखिका के जीवन में तरह-तरह की कमियाँ हैं; घोर गरीबी है; अशिक्षा है। उसे तो उचित भाषा का भी ज्ञान नहीं है लेकिन सारा नगर, कॉलेज की लड़कियाँ, लेखिका के सगे-संबंधी, लेखक-कवि आदि सब उसे जानते हैं; मान देते हैं-वह लेखिका के कारण। लेखिका का व्यक्तित्व ही उसके व्यक्तित्व को रचने वाला है।
8. मेरे परिचितों और साहित्यिक बंधुओं से भी भक्तिन विशेष परिचित है, पर उनके प्रति भक्तिन के सम्मान की मात्रा, मेरे प्रति उनके
सम्मान की मात्रा पर निर्भर है और सद्भाव उनके प्रति मेरे सद्भाव से निश्चित होता है। इस संबंध में भक्तिन की सहजबुद्धि विस्मित कर देनेवाली है।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश के पाठ तथा लेखिका का नाम लिखिए।
2. भक्तिन किन लोगों के प्रति सम्मान एवं सद्भाव रखती थी?
3. भक्तिन में कौन-कौन से गुण थे?
4. भक्तिन का कौन-सा गुण विस्मित कर देनेवाला था?
5. भक्तिन की सहज बुद्धि, विस्मित करनेवाली क्यों थी?
उत्तर
1. उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का नाम ‘भक्तिन’ तथा लेखिका का नाम महादेवी वर्मा है।
2. जो लोग भक्तिन की मालकिन के प्रति सम्मान एवं सद्भाव की भावना रखते थे। भक्तिन केवल उन लोगों के प्रति सम्मान एवं सद्भाव रखती थी।
3. भक्तिन में कर्तव्यपरायणता, सद्भाव, सेवाभाव, सम्मान की भावना, सहजबुद्धि, समर्पण आदि गुण थे।
4. भक्तिन की सहजबुद्धि का गुण विस्मित कर देनेवाला था।
5. भक्तिन की सहजबुद्धि इसलिए विस्मित करने देनेवाली थी क्योंकि वह अपनी सहजबुद्धि के बल पर ही केवल उन लोगों के प्रति सम्मान एवं सद्भाव रखती थी जो उसकी मालकिन के प्रति सम्मान एवं सद्भाव रखते थे।
9. मैं प्रायः सोचती हूँ कि जब ऐसा बुलावा आ पहुँचेगा, जिसमें न धोती साफ़ करने का अवकाश रहेगा, न सामान बाँधने का, न भक्तिन को रुकने का अधिकार होगा, न मुझे रोकने का, तब चिर विदा के अंतिम क्षणों में यह देहातिन वृद्धा क्या करेगी और मैं क्या करूँगी?
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
1. लेखिका किस बुलावे की बात करती है ? स्पष्ट कीजिए।
2. भक्तिन की सेवाभावना को देखकर लेखिका क्या सोचती है?
3. चिर विदा के अंतिम क्षणों में लेखिका ने स्वयं तथा भक्तिन को असमर्थ क्यों पाया है?
4. मृत्यु के बुलावे के समय लेखिका किन अधिकारों के न होने की बात करती है?
उत्तर
1. लेखिका सृष्टि के अंतिम सत्य अर्थात मृत्यु के बुलावे की बात करती है। इस संसार में यह बुलावा ही सत्य और अटल है। इससे कोई भी प्राणी नहीं बच सकता।
2. भक्तिन की सेवा-भावना को देखकर लेखिका सोचती है कि जब मेरा अंतिम बुलावा आएगा जिसमें न धोती साफ़ करने का अवकाश रहेगा, न सामान बाँधने का, न भक्तिन का रुकने का अधिकार होगा और न मुझे रोकने का तब चिर विदाई के समय यह भक्तिन क्या करेगी।
3. चिर विदा के अंतिम क्षणों में लेखिका ने स्वयं तथा भक्तिन को इसलिए असमर्थ पाया है क्योंकि इस संसार में जन्म के बाद मृत्यु ही सत्य है। मनुष्य चाहकर भी इससे नहीं बच सकता। जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु निश्चित है। मनुष्य लाख कोशिशों के बावजूद भी मृत्यु से मुख नहीं मोड़ सकता।
4. मृत्यु के बुलावे के समय लेखिका सोचती है कि तब न भक्तिन को रुकने का अधिकार होगा और न मुझे रोकने का। न धोती साफ़ करने का अवकाश रहेगा न सामान बाँधने का।
10. भक्तिन के संस्कार ऐसे हैं कि वह कारागार से वैसे ही डरती है, जैसे यमलोक से। ऊंची दीवार देखते ही, वह आँख मूंदकर बेहोश हो जाना चाहती है। उसकी यह कमजोरी इतनी प्रसिद्धि पा चुकी है कि लोग मेरे जेल जाने की संभावना बता-बताकर उसे चिढ़ाते रहते हैं। वह डरती नहीं, यह कहना असत्य होगा; पर डर से भी अधिक महत्त्व मेरे साथ का ठहरता है। चुपचाप मुझसे पूछने लगती है कि वह अपनी कै धोती साबुन से साफ़ कर ले, जिससे मुझे वहाँ उसके लिए लज्जित न होना पड़े।
क्या-क्या सामान बाँध ले, जिससे मुझे वहाँ किसी प्रकार की असुविधा न हो सके। ऐसी यात्रा में किसी को किसी के साथ जाने का अधिकार नहीं, यह आश्वासन भक्तिन के लिए कोई मूल्य नहीं रखता। वह मेरे न जाने की कल्पना से इतनी प्रसन्न नहीं होती, जितनी अपने साथ न जा सकने की संभावना से अपमानित।
भला ऐसा अंधेर हो सकता है जहाँ मालिक वहाँ नौकर-मालिक को ले जाकर बंद कर देने में इतना अन्याय नहीं, पर नौकर को अकेले मुक्त छोड़ देने में पहाड़ के बराबर अन्याय है। ऐसा अन्याय होने पर भक्तिन को बड़े लाट तक लड़ना पड़ेगा। किसी की माई यदि बड़े लाट तक नहीं लड़ी, तो नहीं लड़ी, पर भक्तिन का तो बिना लड़े काम ही नहीं चल सकता।
अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
1. भक्तिन कारागार से कैसे डरती है?
2. भक्तिन की कौन-सी कमजोरी प्रसिद्ध हो गई है?
3. ‘ऐसी यात्रा में किसी को किसी के साथ जाने का अधिकार नहीं’ यहाँ लेखिका किस यात्रा की बात करती है? उसमें किसी को साथ जाने का अधिकार क्यों नहीं?
4. भक्तिन किस संभावना से अपमानित होती महसूस करती है?
उत्तर
1. भक्तिन कारागार से यमलोक की तरह डरती है।
2. भक्तिन कारागार से डरती है। ऊंची दीवारें देखते ही यह आँख मूंदकर बेहोश हो जाती है। भक्तिन की वह कमजोरी प्रसिद्ध हो गई।
3. यहाँ लेखिका मनुष्य की अंतिम यात्रा अर्थात मृत्यु-यात्रा की बात करती है। इस यात्रा में किसी को किसी के साथ जाने का अधिकार इसलिए नहीं होता क्योंकि प्रत्येक मनुष्य की मृत्यु अपने निश्चित समय पर होती है।
4. भक्तिन अंतिम यात्रा में लेखिका के साथ न जाने की संभावना से अपमानित महसूस करती है।