Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 12 बाज़ार दर्शन. Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams.

बाज़ार दर्शन Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 12

प्रश्न 1.
लेखक ने पत्नी की किस महिमा का वर्णन किया है?
उत्तर
पली जब अपने पति के साथ बाजार किसी सामान्य-सी वस्तु को खरीदने के लिए गई थी। परंतु पत्नी ने उन्हें बहुत सारा सामान खरीदने पर मजबूर कर दिया। यही पत्नी की महिमा थी।

प्रश्न 2.
संयमी लोग कौन होते हैं?
उत्तर
संयमी लोग वे होते हैं जो फ़िजूल सामान को बेकार समझते हैं। वे पैसा व्यर्थ में खर्च नहीं करते हैं। वे बुद्धिमान होते हैं। वे अपनी बुद्धि और संयम के साथ पैसे को जोड़ते रहते हैं। यदि तुम खरीदना नहीं चाहते तो देखने भर में कोई आपत्ति नहीं है।

प्रश्न 3.
बाज़ार किन्हें आमंत्रित करता है और कैसे?
उत्तर
बाजार ग्राहकों को आमंत्रित करता है। वह उन्हें आमंत्रित कर कहता है कि आओ, मुझे लूटो और लूटो। सब कुछ भूल जाओ केवल मुझे देखो। मेरा रूप सौंदर्य केवल तुम्हारे लिए है। यदि तुम खरीदना नहीं चाहते तो देखने-भर में कोई आपत्ति नहीं है।

प्रश्न 4.
बाज़ार के जादू के प्रभाव से बचने का क्या उपाय है?
उत्तर
बाजार के जादू के प्रभाव से बचने का उपाय है कि हमें खाली मन होने पर बाज़ार नहीं जाना चाहिए। यदि मन में लक्ष्य हो तो बाजार का प्रभाव व्यर्थ हो जाएगा। गा

प्रश्न 5.
इस संसार में पूर्ण और अपूर्ण कौन है?
उत्तर
इस संसार में केवल परमात्मा ही पूर्ण है। वह सनातन भाव से पूर्ण है। इसके अलावा सब कुछ अपूर्ण है।

प्रश्न 6.
पैसे की व्यंग्य-शक्ति पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
पैसे की व्यंग्य शक्ति बहुत कठोर है क्योंकि इसके नशे में चूर होकर मनुष्य बहुत कठोर स्वभाववाले बन जाते हैं। उन्हें अपने सामने सब कुछ तुच्छ प्रतीत होता है।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. लोग संयमी भी होते हैं। वे फ़िजूल सामान को फ़िजूल समझते हैं। वे पैसा बहाते नहीं हैं और बुद्धिमान होते हैं। बुद्धि और संयमपूर्वक वह पैसे को जोड़ते जाते हैं, जोड़ते जाते हैं। वह पैसे की पावर को इतना निश्चय समझते हैं कि उसके प्रयोग की परीक्षा उन्हें दरकार नहीं है। बस खुद पैसे के जुड़ा होने पर उनका मन गर्व से भरा फूला रहता है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. प्रस्तुत गद्यांश के पाठ तथा लेखक का नाम बताइए।
2. पैसे के जुड़ा होने पर किन लोगों का मन गर्व से भरा होता है?
3. कौन लोग फिजूल सामान को फिजूल समझते हैं।
4. संयमी लोग पैसा कैसे जोड़ते हैं?
5. कौन लोग पैसे की पावर को समझते हैं?
उत्तर
1. प्रस्तुत गद्यांश के पाठ का नाम-बाजार दर्शन है। इस गदयांश के लेखक का नाम-जैनेंद्र कुमार है।
2. पैसे के जुड़ा होने पर संयमी और बुद्धिमान लोगों का मन गर्व से भरा होता है।
3. संयमी लोग फ़िजूल सामान को फ़िजूल समझते हैं।
4. संयमी लोग बुद्धि और संयमपूर्वक पैसा जोड़ते हैं।
5. संयमी और बुद्धिमान लोग पैसे की पावर को समझते हैं।

2. मैंने मन में कहा, ठीक। बाजार आमंत्रित करता है कि आओ मुझे लूटो और लूटो। सब भूल जाओ, मुझे देखीं। मेरा रूप और किसके लिए है? मैं तुम्हारे लिए हूँ। नहीं कुछ चाहते हो, तो भी देखने में क्या हरज़ है। अजी आओ भी। इस आमंत्रण में यह खूबी है कि आग्रह नहीं है आग्रह तिरस्कार जगाता है। लेकिन ऊँचे बाजार का आमंत्रण मूक होता है और उससे चाह जगती है। चाह मतलब अभाव। चौक बाजार में खड़े होकर आदमी को लगने लगता है कि उसके अपने पास काफ़ी नहीं है और चाहिए, और चाहिए। मेरे यहाँ कितना परिमित है और यहाँ कितना अतुलित है ओह! (C.B.S.E. Delhi 2008)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. बाजार किसको और किसलिए आमंत्रित करता है?
2. बाजार का रूप किसके लिए है?
3. बाज़ार के आमंत्रण के क्या गुण हैं? क्यों?
4. ऊँचे बाजार का आमंत्रण कैसा होता है?
5. चौक बाजार में खड़े होकर आदमी को क्या लगता है?
उत्तर
1. बाजार ग्राहकों को ज्यादा-से-ज्यादा लूटने के लिए आमंत्रित करता है।
2. बाजार का रूप ग्राहकों के लिए है।
3. बाजार के आमंत्रण में यह गुण है कि उसमें आग्रह नहीं है क्योंकि आग्रह तिरस्कार जगाता है।
4. ऊँचे बाजार का आमंत्रण मूक होता है और उससे चाहत जगती है।
5. चौक बाजार में खड़े होकर आदमी को लगता है कि उसके पास जितना है वह सामान काफ़ी नहीं है इसलिए उसे और चाहिए। वह अधिक की कामना करने लगता है।

3. बाज़ार में एक जादू है। वह जादू आँख की राह काम करता है। वह रूप का जादू है पर जैसे चुंबक का जादू लोहे पर ही चलता है, वैसे ही इस जादू की भी मर्यादा है। जेब भरी हो, और मन खाली हो, ऐसी हालत में जादू का असर खूब होता है। जेब खाली पर मन भरा न हो, तो भी जादू चल जाएगा। मन खाली है तो बाजार की अनेकानेक चीजों का निमंत्रण उस तक पहुँच जाएगा। कहीं हुई उस वक्त जेब भरी तब तो फिर वह मन किसकी माननेवाला है। (C.B.S.E. Delhi 2017, Set-I, II, III)

मालूम होता है यह भी लूँ, वह भी लूँ। सभी सामान ज़रूरी और आराम को बढ़ानेवाला मालूम होता है। पर यह सब जादू का असर है। जादू की सवारी उतरी कि पता चलता है कि फैंसी चीज़ों की बहुतायत आराम में मदद नहीं देती, बल्कि खलल ही डालती है। थोड़ी देर को स्वाभिमान को ज़रूर सेंक मिल जाता है पर इससे अभिमान की गिल्टी को और खुराक ही मिलती है। जकड़ रेशमी डोरी की हो तो रेशम के स्पर्श के मुलायम के कारण क्या वह कम जकड़ होगी? (AI. C.B.S.E. 2009, C.B.S.E., 2014 Set-A,B,C, C.B.S.E. 2018)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश के पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
2. बाजार में कैसा जादू है?
3. बाजार का जादू कैसे प्रभावित करता है?
4. बाज़ार के जादू का असर कब होता है?
5. बाज़ार के जादू का प्रभाव होने पर मन कब बात नहीं मानता?
उत्तर
1. उपर्युक्त गद्यांश के पाठ का नाम ‘बाजार दर्शन’ है। इसके लेखक का नाम जैनेंद्र कुमार है।
2. बाजार में एक अद्भुत जादू है, जो चुंबक की तरह मनुष्य को अचानक ही अपनी तरफ आकर्षित कर लेता है। इस जादू की भी मर्यादा
3. बाजार का जादू आँख के रास्ते काम करता है। जैसे चुंबक का जादू लोहे पर चलता है। चुंबक जिस तरह अपने जादू से लोहे को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है ठीक वैसे ही बाजार का जादू भी ग्राहकों को अपनी तरफ़ खींच लेता है। वह अपने रूप से सबको मोहित
कर लेता है। चुंबक की तरह इस जादू की भी मर्यादा है।
4. जब जेब भरी हुई हो और मन खाली हो तब बाजार के जादू का असर अधिक होता है। जेब खाली हो लेकिन मन भरा न हो तब भी जादू का असर हो जाता है। मन खाली होने पर बाजार की चीजें अपने जादू से उसको मोहित कर ही लेती हैं। और
5. बाजार के जादू का प्रभाव होने पर मन तब हमारी बात नहीं मानता जब मन के खाली होने पर जेब भरी हुई हो। ऐसी अवस्था में मन किसी की बात को नहीं मानता।

4. यहाँ एक अंतर चीन्ह लेना बहुत जरूरी है। मन खाली नहीं रहना चाहिए, इसका मतलब यह नहीं है कि वह मन बंद रहना चाहिए। जो बंद हो जाएगा, वह शून्य हो जाएगा। शून्य होने का अधिकार बस परमात्मा का है जो सनातन भाव से संपूर्ण है। शेष सब अपूर्ण है। इससे मन बंद नहीं रह सकता। सब इच्छाओं का निरोध कर लोगे, यह झूठ है और अगर ‘इच्छानिरोधस्तपः’ का ऐसा ही नकारात्मक अर्थ हो तो वह तप झूठ है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. इस गद्यांश के लेखक तथा पाठ का नाम लिखिए।
2. लेखक के अनुसार किस अंतर को समझना जरूरी है?
3. लेखक के मतानुसार मन बंद क्यों नहीं रहना चाहिए?
4. शून्य होने का अधिकार किसका है? क्यों?
5. क्या मनुष्य सब इच्छाओं का विरोध कर सकता है?
उत्तर
1. इस गद्यांश के लेखक का नाम जैनेंद्र कुमार है। इस गद्यांश के पाठ का नाम ‘बाजार दर्शन’ है।
2. लेखक के अनुसार इस अंतर को समझना जरूरी है कि मन के खाली नहीं रहने का अर्थ यह नहीं है कि वह मन बंद रहना चाहिए। उसमें कुछ भी नहीं रहे।
3. लेखक के मतानुसार मन बंद नहीं रहना चाहिए क्योंकि जो मन बंद हो जाता है वह शून्य हो जाता है। जबकि शून्य होने का अधिकार केवल प्रभु का है।
4. शून्य होने का अधिकार केवल परमात्मा का है क्योंकि वह सनातन भाव से संपूर्ण है। वह सत्य है। शेष सब कुछ अपूर्ण है, नश्वर है।
5. नहीं, मनुष्य चाहकर भी सब इच्छाओं का विरोध नहीं कर सकता। यहाँ तक कि इच्छा ‘निरोधस्तपः” के द्वारा भी सब इच्छाओं का विरोध नहीं हो सकता।

5. हममें पूर्णता होती तो परमात्मा से अभिन्न हम महाशून्य ही न होते? अपूर्ण हैं, इसी से हम हैं। सच्चा ज्ञान सदा इसी अपूर्णता के बोध को हममें गहरा करता है। सच्चा कर्म सदा इस अपूर्णता की स्वीकृति के साथ होता है। अतः उपाय कोई वही हो सकता है जो बलात् मन को रोकने को न कहे, जो मन को भी इसलिए सुने क्योंकि वह अप्रयोजनीय रूप में हमें नहीं प्राप्त हुआ है। हाँ, मनमानेपन की छूट मन को न हो, क्योंकि वह अखिल का अंग है, खुद कुल नहीं है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. क्या पूर्णता होने पर मनुष्य की सत्ता होती? यदि नहीं तो क्यों?
2. मनमानेपन की छूट मन को क्यों नहीं होती?
3. मनुष्य में पूर्णता होती तो क्या होता?
4. सच्चा ज्ञान हमें क्या बोध कराता है?
5. सच्चा कर्म किस अपूर्णता की स्वीकृति के साथ होता है?
उत्तर
1. नहीं, पूर्णता होने पर मनुष्य की सत्ता नहीं होती क्योंकि पूर्णता होने पर हम परमात्मा से अभिन्न होकर महाशून्य ही होते। यह सत्य है कि परमात्मा पूर्ण है इसी से उसकी सत्ता नहीं है और हम अपूर्ण हैं इसीलिए हमारी सत्ता है।।
2. मनमानेपन की छूट मन को इसलिए नहीं होती क्योंकि मन अखिल का एक अंग है। वह स्वयं कुछ नहीं है। वह पूर्ण सत्ता नहीं है बल्कि उसका एक छोटा-सा अंग मात्र है।
3. मनुष्य में पूर्णता होती तो वह परमात्मा से अभिन्न महाशून्य ही होता।
4. सच्चा ज्ञान हमें इस बात का बोध कराता है कि यदि हममें पूर्णता होती तो हम परमात्मा से अभिन्न महाशून्य ही होते। हम अपूर्ण हैं इसीलिए हम हैं।
5. सच्चा कर्म इस अपूर्णता के साथ होता है कि हम अपूर्ण हैं इसीलिए हम हैं। यदि हममें पूर्णता होती तो हम परमात्मा से भिन्न महाशून्य
होते।

6. पैसे की व्यंग्य-शक्ति की सुनिए। वह दारुण है। मैं पैदल चल रहा हूँ कि पास ही धूल उड़ाती निकल गई मोटर। वह क्या निकली मेरे कलेजे को कौंधती एक कठिन व्यंग्य की लीक ही आर-से-पार हो गई। जैसे किसी ने आँखों में उँगली देकर दिखा दिया हो कि देखो, उसका नाम है मोटर और तुम उससे वंचित हो! यह मुझे अपनी ऐसी विडंबना मालूम होती है कि बस पूछिए नहीं। मैं सोचने को हो आता हूँ कि हाय, ये ही माँ-बाप रह गए थे जिनके यहाँ मैं जन्म लेने को था! क्यों न मैं मोटरवालों के यहाँ हुआ। उस व्यंग्य में इतनी शक्ति है कि जरा में मुझे अपने सगों के प्रति कृतघ्न कर सकती है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर ।

1. गद्यांश के लेखक और पाठ का नाम बताएँ।
2. पैसे की व्यंग्य-शक्ति कैसी है?
3. लेखक को बुढ़ापे (जरा) में कौन-सा व्यंग्य अपने सगों के प्रति कृतघ्न कर सकता है?
4. पैदल चलते हुए लेखक के पास से क्या गुजरा?
प्रश्न
1. गद्यांश के लेखक जैनेंद्र कुमार तथा पाठ का नाम-बाजार का दर्शन है।
2. पैसे की व्यंग्य-शक्ति दारुण है।
3. लेखक को बुढ़ापे में मोटर न होने का व्यंग्य अपने सगों के प्रति कृतघ्न कर सकता है।
4. पैदल चलते हुए लेखक के पास से एक मोटर गुजरी।

7. यहाँ मुझे ज्ञात होता है कि बाजार को सार्थकता भी वही मनुष्य देता है जो जानता है कि वह क्या चाहता है। और जो नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं, अपनी ‘पर्चेजिंग पावर’ के गर्व में अपने पैसे से केवल एक विनाशक शक्ति-शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति ही बाजार को देते हैं। न तो वे बाज़ार से लाभ उठा सकते हैं, न उस बाज़ार को सच्चा लाभ दे सकते हैं। वे लोग बाज़ार का बाज़ारूपन बढ़ाते हैं। जिसका मतलब है कि कपट बढ़ाते हैं। कपट की बढ़ती का अर्थ परस्पर में सद्भाव की घटी। इस सद्भाव के ह्रास पर आदमी आपस में भाई-भाई और सुहृद और पड़ोसी फिर रह ही नहीं जाते हैं और आपस में कोरे ग्राहक और बेचक की तरह व्यवहार करते हैं। (C.B.S.E. 2010, Set-III, A.I.C.B.S.E. Set-I, 2012 Set-1)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. बाजार को सार्थकता कौन दे सकता है?
2. ‘पर्चेजिंग पावर’ का गर्व किन लोगों को होता है?
3. ‘पर्चेजिंग पावर’ के गर्व में मनुष्य बाजार को क्या-क्या देते हैं?
4. कौन मनुष्य बाजार से लाभ नहीं कमा सकते?
5. कपट बढ़ाने से लेखक का क्या आशय है?
उत्तर
1. बाजार को सार्थकता वही व्यक्ति दे सकता है जो यह जानता है कि वह क्या चाहता है।
2. ‘पर्चेजिंग पावर’ का गर्व उन लोगों को होता है जो बाजार में आकर यह नहीं जानते कि उन्हें क्या चाहिए।
3. ‘पर्चेजिंग पावर’ के गर्व में मनुष्य बाजार को एक विनाशक शक्ति, शैतानी शक्ति, व्यंग्य की शक्ति देते हैं।
4. जो मनुष्य यह नहीं जानते कि वे क्या चाहते हैं। वे मनुष्य बाजार से लाभ नहीं कमा सकते।
5. बाजार का कपट बढ़ाने का अर्थ यह है कि परस्पर सद्भाव की कमी हो जाती है। लोग आपस में भाई-भाई सुहृद और पड़ोसी नहीं। रहते। उनमें केवल ग्राहक और बेचक का संबंध रह जाता है।