Here we are providing Online Education for Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 14 पहलवान की ढोलक. Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams.

Online Education for पहलवान की ढोलक Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 14

प्रश्न 1.
प्रस्तुत कहानी के आधार पर मलेरिये और हेजे की विभीषिका का चित्रण कीजिए।
उत्तर
प्रस्तुत कहानी में संपूर्ण गाँव मलेरिये और हैसे का शिकार था। एक ओर ये महामारियाँ अपना तांडव मचा रही थीं; तो दूसरी ओर रात्रि का गहन अंधकार लोगों के हृदय को दहला देता था। इस विभीषिका से भयभीत होकर संपूर्ण गाँव एक शिशु के समान थर-थर काँपता था। बाँस-फूस की झोंपड़ियों में चारों ओर सनापन और अंधेरा छाया हुआ था। गाँव प्रायः सुना हो गया था। घर के घर खाली हो गए थे। प्रतिदिन दो-तीन लाशें गाँव से निकलती थीं। दिन में पक्षियों के कलरव हाहाकार और लोगों के रोने के बावजूद उनके चेहरों पर थोड़ी-सी चमक दिखाई देती थी; लेकिन रात होते ही लोग अपनी-अपनी झोपड़ियों में सुन्न होकर मुस जाते थे। लोग इतने डर जाते थे कि माताएँ दम तोड़ रहे अपने बच्चे को बेटा कहकर पुकारने की हिम्मत भी नहीं जुटा पाती थीं।

प्रश्न 2.
लुट्टन सिंह पहलवान का चरित्र-चित्रण कीजिए।
उत्तर
‘पहलवान की ढोलक’ फनीश्वरनाथ रेणु द्वारा रचित एक आंचलिक कथा है। लुट्टन सिंह पहलवान इस कहानी का केंद्र बिंदु है। उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं10

(i) व्यक्तित्व-लद्दन सिंह पहलवान का वास्तविक नाम लट्टन सिंह था। ‘पहलवान’ उसके नाम में बाद में जड़ा। वह लंबा चोगा तथा अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधता था। लुट्टन सिंह अपने माता-पिता की इकलौती संतान था। उसके माता-पिता नौ वर्ष की अवस्था में उसे अकेला छोड़कर स्वर्ग सिधार गए थे। सौभाग्यवश उसकी बचपन में ही शादी हो गई थी। अतः उसका पालन-पोषण उसकी विधवा सास ने किया। लुट्टन पहलवान के दो बेटे थे।

(ii) साहसालुटन सिंह पहलवान अत्यंत साहसी था। वह सुडौल और हट्टा-कट्टा था। वह प्रत्येक परिस्थिति का डटकर सामना करता था। वह कभी घबराता नहीं था। अपने साहस के बल पर उसने प्रसिद्ध पहलवान चाँद सिंह को हरा दिया था। महामारी फैलने के कारण जब रात्रि की विभीषिका से सारा गाँव शिशुओं की तरह थर-थर काँपता था, तब लुन सिंह अकेला सारी रात ढोलक बजाया करता था। यह उसके साहस का प्रत्यक्ष प्रमाण था।

(iii) भाग्यहान-लुट्टन सिंह साहसी होने पर भी भाग्यहीन था। बचपन में नौ वर्ष की अवस्था में उसे छोड़कर उसके माता-पिता चल बसे; उसकी सास ने उसे पाला-पोसा। बाद में उसके दोनों बेटे भी काल का शिकार हो गए। जिस वीरता के बलबूते वह श्यामनगर का राज-पहलवान बना था, राजा की मृत्यु के बाद वह पद भी उसे छोड़ना पड़ा।

(iv) निडर-लुट्टन सिंह एक निडर पुरुष था। जब सारा गाँव महामारी के कारण भयभीत होकर अपनी झोपड़ियों में गम हो जाता था, तब अकेला लुट्टन सिंह रात्रि के सन्नाटे में निडरता से अपना ढोल बजाया करता था। श्यामनगर के दंगल में भी वह चाँद सिंह जैसे प्रसिद्ध पहलवान के साथ लड़ते हुए नहीं डरा। राजा के मना करने पर भी उसने निडरता से चाँद सिंह के साथ कश्ती की तथा अंत में उसे हराया। पहलवान को दंगल में हराना ही उसका निडरता का उदाहरण है।

सहयोगी-लुट्टन सिंह पहलवान होने के साथ-साथ एक संवेदनशील व्यक्ति भी था। वह दुख-सुख में सभी गाँववालों का साथ देता था। महामारी में जब गाँव में कहर मचा हुआ था, तब वह लोगों में जीने की उमंग पैदा करने के लिए रात में ढोल बजाया करता था। दिन में वह घर-घर जाकर अपने पड़ोसियों और गाँववालों का हाल-चाल पूछकर उन्हें धैर्य देता था।

प्रश्न 3.
प्रस्तुत कहानी पहलवान की ढोलक’ में भारत पर इंडिया के छा जाने की समस्या को किस के माध्यम से उद्घाटित किया है?
उत्तर
लेखक ने भारत पर इंडिया के छा जाने की समस्या को श्यामनगर के राजा श्यामानंद की मृत्यु के बाद नए विलायती राजा द्वारा व्यवस्था को बदलने के रूप में उद्घाटित किया है। श्यामनगर का पहला राजा लोक-संस्कृति का शौकीन था, इसलिए वह प्रतिवर्ष दंगल और कुश्ती का आयोजन करवाता था। उसने लुट्टन सिंह पहलवान की वीरता को देखकर उसे राज परिवार का पहलवान नियुक्त कर दिया था। उसका सारा खर्च भी राजा के खजाने से चलता था।

लेकिन राजा की मृत्यु के पश्चात वहाँ एक नया विलायती राजा। उसने आते ही दंगल को घोड़ों की रेस में बदल दिया तथा लुट्टन सिंह को दिया जाने वाला सम्मान व खर्च बंद करवा दिया। उसे लोक-संस्कृति बिल्कुल भी पसंद नहीं थी, इसलिए उसने अपने राज्य में विलायती संस्कृति को फैलाने का प्रयास किया। इसके परिणामस्वरूप धीरे-धीरे राज व्यवस्था बदलकर नए स्वरूप में ढल गई और लोक-संस्कृति विलुप्त होने लगी। अंततः भारत पर इंडिया का साम्राज्य छाने लगा।

प्रश्न 4.
रात्रि की विभीषिका को कौन भंग करती थी और कैसे?
उत्तर
रात्रि की विभीषिका को पहलवान की ढोलक भंग करती थी। पहलवान रात से लेकर प्रात:काल तक ढोलक को एक गति से बजाता रहता था। उससे ‘चट्-धा गिड़-धा…चट्-धा, गिड़-धा’ का स्वर निकलता रहता था।

प्रश्न 5.
लुट्टन सिंह मेला देखने कहाँ गया और उसने वहाँ क्या किया?
उत्तर
लुट्टन सिंह मेला देखने श्यामनगर गया। वह पहलवानों की कुश्ती और दांव-पेंच से बहुत प्रभावित हुआ। उससे प्रेरित होकर उसने बिना कुछ सोचे-समझे दंगल में ‘शेर के बच्चे’ के नाम से प्रसिद्ध चाँद सिंह पहलवान को चुनौती दे दी।

प्रश्न 6.
‘पहलवान की ढोलक’ कहानी के संदेश को स्पष्ट कीजिए। (Delhi C.B.S.E. 2016)
उत्तर
पहलवान की ढोलक फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा रचित एक प्रमुख आंचलिक कहानी है। इसके माध्यम से लेखक ने नि:स्वार्थ भाव से देश-सेवा का संदेश दिया है। लुट्टन सिंह की ढोलक की आवाज़ पूरे गाँववालों में धैर्य, साहस और स्फूर्ति प्रदान करती थी। रात्रि की विभीषिका में तथा सन्नाटे को ललकार के सामने चुनौती पैदा कर देती थी। जब पूरा गाँव महामारी के कारण मलेरिये और हैजे से त्रस्त होकर अधमरा, निर्बल और निस्तेज हो गया था तब इस भयंकर वातावरण में ढोलक की आवाज़ गाँववालों को संजीवनी प्रदान किया करती थी।

उपचाराधीन और पथविहीन लोगों में संजीवनी शक्ति भरती थी। बच्चे, जवान और बूढों की आँखों के आगे दंगल का दृश्य पैदा कर देती थी। ढोल की आवाज सुनकर शक्तिहीन शिराओं में बिजली-सी दौड़ पड़ती थी। मरते हुए प्राणियों को भी आँख मूंदते समय कोई तकलीफ़ नहीं होती थी तथा लोग मृत्यु से भी नहीं डरते थे। इसे सुनकर लोगों के मन में जीने की नई उमंग जागृत हो जाती थी।

प्रश्न 7.
राजा साहब ने लुट्टन को क्यों सहारा दिया था? अंत में उसकी दुर्गति होने का क्या कारण था? (A.I.C.B.S.E. 2016)
उत्तर
राजा साहब ने लुट्टन को इसलिए सहारा दिया था क्योंकि उसने श्यामनगर के दंगल में सुप्रसिद्ध पहलवान चाँदसिंह को हरा दिया था। इसके बाद राजा ने उसे राज पहलवान घोषित कर दिया था। अंत में राजा की मृत्यु के बाद विलायती राजा आया। जिसने कुश्ती को बंद करके घोड़ों की रेस आदि खेलों को प्राथमिकता दी। उसने लुट्टन सिंह को भी राज पहलवान के पद से हटा दिया। इसके कारण लुट्टन के जीवन में दुर्गति हुई।

प्रश्न 8.
‘पहलवान की ढोलक पाठ का एक संदेश यह भी है कि लोककलाओं को संरक्षण दिया जाना चाहिए। अपने विचार लिखिए। (A.I. 2016, Set-II)
उत्तर
लेखक ने इस कहानी में भारत पर इंडिया के छा जाने की समस्या को श्यामनगर के राजा श्यामानंद के बदलने पर नए विलायती राजा के श्यामनगर का राजा बनने की व्यवस्था के प्रतीक रूप में उद्घाटित किया है। यहाँ श्यामनगर का राजा लोक संस्कृति का शौकीन था इसलिए वह वहाँ प्रतिवर्ष दंगल और कुश्ती का आयोजन करवाया करता था।

उसने लुट्टन सिंह पहलवान की वीरता को देखकर भी उसे राज परिवार का पहलवान नियुक्त कर दिया था तथा लुट्टन सिंह का सारा खर्च भी राजा के खजाने से चलता था लेकिन उसकी मृत्यु के पश्चात वहाँ एक नया विलायती राजा आया तो उसने आते ही दंगल को घोड़ों की रेस में बदल दिया तथा लुट्टन सिंह को भी दिया जाने वाला सम्मान और खर्च बंद करा दिया। उसे लोक संस्कृति बिल्कुल भी पसंद नहीं थी।

इसलिए उसने अपने राज्य में विलायती संस्कृति को फैलाने का प्रयास किया। जिसके परिणामस्वरूप धीरे-धीरे राज व्यवस्था बदलकर नए स्वरूप में ढल गई और लोक संस्कृति विलुप्त होने लगी। इस प्रकार इस पाठ से हमें यह संदेश भी मिलता है कि लोककलाओं को भी संरक्षण दिया जाना चाहिए।

प्रश्न 9.
‘पहलवान की ढोलक’ कहानी के आधार पर ग्रामीणों की गरीबी और असहायता पर टिप्पणी कीजिए। (Outside Delhi 2017, Set-II)
उत्तर
‘पहलवान की ढोलक’ कहानी में लेखक ने ग्रामीणों की गरीबी एवं असहायता का मार्मिक चित्रण किया है। गाँव में गरीबी से युक्त घास-फूस की झोपड़ियाँ चारों तरफ छाई प्रतीत होती हैं। पूरा गाँव गरीबी के आतंक से जूझ रहा है। लोग अपनी दो जून की रोटी के लिए भी तरस रहे हैं। यही कारण है कि जब गाँव में मलेरिया एवं हैजे की महामारी फैल गई तो पूरा का पूरा गाँव खाली हो गया। गाँव में महामारी तांडव मचाने लगी।

इस समय पूरा गाँव असहाय प्रतीत हो रहा था। रात्रि की विभीषिका से भयभीत होकर लोग घास-फूस की झोंपड़ियों में दुबक जाते थे। दिन में पक्षियों के कलख, हाहाकार से गाँव वालों के चेहरों पर थोड़ी-सी चमक दिखाई देती थी। किंतु रात होते ही वह फुर हो जाती थी। गाँव में प्रतिदिन दो-तीन लाशें निकलती थीं।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. जाड़े का दिन। अमावस्या की रात-ठंडी और काली। मलेरिया और हैजे से पीड़ित गाँव भयात शिशु की तरह थर-थर काँप रहा था। पुरानी और उजड़ी बाँस-फूस की झोंपड़ियों में अंधकार और सन्नाटे का सम्मिलित साम्राज्य! अँधेरा और निस्तब्धता!

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. उपर्युक्त गद्यांश के लेखक और पाठ का नाम लिखिए।
2. इस गद्यांश में लेखक किन दिनों का चित्रण किया है?
3. गाँव किन-किन बीमारियों से पीड़ित था?
4. मलेरिया और हैजा से पीड़ित गाँव किसके समान काँप रहा था?
5. गाँव की झोंपड़ियाँ कैसी थीं? वहाँ का वातावरण कैसा था?
उत्तर
1. उपर्युक्त गद्यांश के लेखक का नाम फणीश्वर नाथ रेणु तथा पाठ का नाम ‘पहलवान की ढोलक’ है।
2. इस गद्यांश में लेखक ने जाड़े के दिनों की अमावस्या की काली व ठंडी रात का चित्रण किया है।
3. गाँव मलेरिया और हैजे की भयानक बीमारियों से पीड़ित था।
4. मलेरिये और हैजे से पीड़ित गाँव भयात शिशु के समान थर-थर काँप रहा था।
5. गाँव की झोंपड़ियाँ बाँस-फूस से बनी हुई पुरानी और उजड़ी हुई थीं। वहाँ के वातावरण में चारों ओर अंधकार और सन्नाटे का साम्राज्य था।

2. अंधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। निस्तब्धता करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी। आकाश में तारे चमक रहे थे। पृथ्वी पर कहीं प्रकाश का नाम नहीं। आकाश से टूटकर यदि कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना भी चाहता तो उसकी ज्योति और शक्ति रास्ते में ही शेष हो जाती थी। अन्य तारे उसकी भावुकता अथवा असफलता पर खिलखिलाकर हँस पड़ते थे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने किसका मानवीकरण किया है?
2. लेखक ने अमावस्या की रात का कैसे मानवीकरण किया है?
3. अंधेरी रात के सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
4. आकाश के तारे किस पर खिलखिलाकर हँसते हैं और क्यों?
उत्तर
1. प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने अमावस्या की अंधेरी रात निस्तब्धता तथा तारों का मानवीकरण किया है।
2. लेखक कहता है कि अमावस्या की अँधेरी रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। वह करुण सिसकियों और आहों को बलपूर्वक अपने हृदय ___में ही दबाने की चेष्टा कर रही थी। इस तरह लेखक ने रात का मानवीकरण किया है।
3. लेखक के अनुसार चारों ओर अंधकार और सन्नाटे का वातावरण था। रात चुपचाप आँसू बहा रही थी। अँधेरी रात में आकाश में तारे चमक रहे थे। पृथ्वी पर कहीं भी प्रकाश का नामोनिशान नहीं था।
4. अँधेरी रात में आकाश से टूटकर जब कोई भावुक तारा पृथ्वी पर जाना चाहता है, तो उसकी ज्योति और शक्ति बीच रास्ते में ही समाप्त हो जाती है। इसी को देखकर आकाश के अन्य तारे खिलखिलाकर हँस पड़ते हैं, क्योंकि वह भावुक तारा असफल हो जाता है।

3. रात्रि अपनी भीषणताओं के साथ चलती रहती और उसकी सारी भीषणता को, ताल ठोककर, ललकारती रहती थी-सिर्फ पहलवान की ढोलक! संध्या से लेकर प्रातःकाल तक एक ही गति से बजती रहती-‘चट्-धा, गिड़-धा,…चट्-धा गिड़-धा!’ यानी आ जा भिड़ जा, आ जा, भिड़ जा!’- बीच-बीच में-‘चटाक्-चट्-धा, चटाक्-चट्-धा!’ यानी ‘उठाकर पटक दे! उठाकर पटक दे!!’
(C.B.S.E. Outside Delhi 2013, Set-I)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. रात्रि किसके साथ चलती थी?
2. पहलवान की ढोलक किसे ललकारती थी?
3. पहलवान की ढोलक रात्रि के किस रूप को ललकारती थी? कैसे?
4. पहलवान की ढोलक कब-से-कब तक बजती थी?
उत्तर
1. रात्रि अपनी भीषणताओं के साथ चलती थी।
2. पहलवान की ढोलक रात्रि की भीषणता को ललकारती थी।
3. पहलवान की ढोलक रात्रि के भीषण रूप को ललकारती थी। वह इस रूप को ताल ठोककर ललकारती थी।
4. पहलवान की ढोलक संध्या से लेकर प्रातःकाल तक बजती रहती थी।

4. शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई-‘पागल है पागल, मरा-ऐं! मरा-मरा!’… पर वाह रे बहादुर! लुट्टन बड़ी सफाई से आक्रमण को सँभालकर निकलकर उठ खड़ा हुआ और पैंतरा दिखाने लगा। राजा साहब ने कुश्ती बंद करवा कर लुट्टन को अपने पास बुलवाया और समझाया। अंत में, उसकी हिम्मत की प्रशंसा करते हुए, दस रुपए का नोट देकर कहने लगे-‘जाओ, मेला देखकर घर जाओ।’

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली क्यों मच गई?
2. श्यामनगर के राजा को क्या प्रिय लगता था?
3. राजा साहब ने बीच में ही कुश्ती क्यों रुकवा दी?
4. राजा साहब ने लुट्टन सिंह पहलवान को कितने रुपए दिए और क्यों?
उत्तर
1. एक बार श्यामनगर में मेला लगा हुआ था। लुटट्न सिंह भी वहाँ मेला देखने गया। वहाँ दंगल हो रहा था, जिसमें शेर के बच्चे के नाम से प्रसिद्ध चाँद सिंह पहलवान आया हुआ था। दूर-दूर तक उसकी बराबरी का कोई पहलवान नहीं था, लेकिन ढोल की धुन से जोश में आकर लुट्टन सिंह ने उस शेर के बच्चे को चुनौती दे दी। इसी चुनौती को देखकर शांत दर्शकों की भीड़ में खलबली मच गई।
2. श्यामनगर के राजा को शिकार करना प्रिय लगता था। इसके साथ-साथ उसे दंगल का भी बहुत शौक था।
3. राजा साहब चाँद सिंह पहलवान को जानते थे। वे उसके दाव-पेंच पहले भी देख चुके थे। चाँद सिंह शेर के बच्चे की उपाधि प्राप्त कर चुका था, लेकिन लुट्टन सिंह पहली बार ही दंगल में लड़ा था। राजा साहब को डर था कि चाँद सिंह अनुभवहीन लुट्टन सिंह को चुटकियों में मसल डालेगा। इसलिए उन्होंने कुश्ती बीच में रुकवा दी।
4. राजा साहब ने लुट्टन सिंह पहलवान को दस रुपये का नोट दिया, क्योंकि उसने ‘शेर के बच्चे’ नामक बलशाली पहलवान से लड़ने की हिम्मत की थी।
5. भीड़ अधीर हो रही थी। बाजे बंद हो गए थे। पंजाबी पहलवानों की जमायत क्रोध से पागल होकर लुट्टन पर गालियों की बौछार कर रही थी। दर्शकों की मंडली उत्तेजित हो रही थी। कोई-कोई लुट्टन के पक्ष से चिल्ला उठता था-“उसे लड़ने दिया जाए।”

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. भीड़ अधीर क्यों हो रही थी?
2. बाजे क्यों बंद हो गए थे?
3. दर्शकों की भीड़ उत्तेजित क्यों हो रही थी?
4. लुट्टन के पक्ष वाले चिल्लाकर क्या कह रहे थे?
उत्तर
1. लुट्टन सिंह पहलवान द्वारा ‘शेर के बच्चे’ नामक प्रसिद्ध पहलवान को ललकारने की बात सुनकर भीड़ अधीर हो रही थी।
2. लुट्टन सिंह पहलवान की घोषणा सुनते ही बाजे बंद हो गए थे।
3. दर्शकों की भीड़ इसलिए उत्तेजित हो रही थी, क्योंकि वह प्रसिद्ध पहलवान चाँद सिंह के साथ लुट्टन सिंह के लड़ने को उसकी मूर्खता ___मान रही थी।
4. लुट्टन सिंह के पक्ष वाले चिल्लाकर कह रहे थे कि उसे लड़ने दिया जाए।

6. उसी दिन से लुट्टन सिंह पहलवान की कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई। पौष्टिक भोजन और व्यायाम तथा राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने उसकी प्रसिद्धि में चार चाँद लगा दिए। कुछ वर्षों में ही उसने एक-एक कर सभी नामी पहलवानों को मिट्टी सुंघाकर आसमान दिखा दिया।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. लुट्टन सिंह की कीर्ति किस दिन से दर-दर तक फैल गई?
2. लुट्टन सिंह पहलवान प्रसिद्ध क्यों हो गया?
3. लुट्टन सिंह की प्रसिद्धि में किसने चार चाँद लगा दिए?
4. लुट्टन सिंह ने चाँद सिंह को हराने के बाद क्या किया?
5. उपर्युक्त गद्यांश में आए मुहावरों के अर्थ लिखिए-चार चाँद लगाना, मिट्टी सँघाना।
उत्तर
1. जिस दिन लुट्टन सिंह ने श्यामनगर के दंगल में नामी और प्रसिद्ध पहलवान चाँद सिंह को हराया, उसी दिन से उसकी कीर्ति दूर-दूर तक फैल गई।
2. लुट्टन सिंह पहलवान इसलिए प्रसिद्ध हुआ, क्योंकि उसने ‘शेर के बच्चे’ नाम से प्रसिद्ध चाँद सिंह पहलवान को हराया था।
3. लुट्टन सिंह की प्रसिद्धि में पौष्टिक भोजन, व्यायाम तथा राजा साहब की स्नेह-दृष्टि ने चार चाँद लगा दिए।
4. लुट्टन सिंह ने चाँद सिंह को हराने के बाद कुछ ही वर्षों में एक-एक कर सभी नामी पहलवानों को मिट्टी सुंघाकर आसमान दिखा दिया।
5. चार चाँद लगाना-सम्मान में वृदिध होना, मिट्टी सुंघाना-हरा देना।

7. मेलों में वह घुटने तक लंबा चोगा पहने, अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँधकर मतवाले हाथी की तरह झूमता चलता। दुकानदारों को चुहल करने की सूझती। हलवाई अपनी दुकान पर बुलाता-“पहलवान काका! ताजा रसगुल्ला बना है, जरा नाश्ता कर लो!”

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. मेलों में लुट्टन सिंह क्या पहनता था?
2. मेलों में वह कैसे चलता था?
3. उसे देखकर दुकानदारों को क्या करने की बात सूझती?
4. हलवाई अपनी दुकान पर बुलाकर उसे क्या कहते थे?
उत्तर
1. मेलों में लुट्टन सिंह घुटने तक लंबा चोगा तथा अस्त-व्यस्त पगड़ी पहनता था।
2. मेलों में वह मतवाले हाथी की तरह झूमता हुआ चलता था।
3. उसे देखकर दुकानदारों को उसके साथ चुहल करने की बात सूझती थी।
4. हलवाई अपनी दुकान पर बुलाकर उसे कहते थे कि पहलवान काका! ताजा रसगुल्ला बना है, जरा नाश्ता कर लो।

8. अकस्मात गाँव पर यह वज्रपात हुआ। पहले अनावृष्टि, फिर अन्न की कमी, तब मलेरिया और हैजे ने मिलकर गाँव को भूनना शुरू कर दिया। गाँव प्रायः सूना हो चला था। घर के घर खाली पड़ गए थे। रोज दो-तीन लाशें उठने लगीं। लोगों में खलबली मची हुई थी। दिन में तो कलरव, हाहाकर तथा हृदय-विदारक रुदन के बावजूद भी लोगों के चेहरे पर कुछ प्रभा दृष्टिगोचर होती थी, शायद सूर्य के प्रकाश में सूर्योदय होते ही लोग काँखते-कूँखते-कराहते अपने-अपने घरों से बाहर निकलकर अपने पड़ोसियों और आत्मीयों को ढाढ़स देते थे।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. अकस्मात गाँव पर कैसा वज्रपात हुआ?
2. गाँव के लोगों में खलबली क्यों मच गई?
3. भयंकर बीमारी से ग्रस्त गाँव का दृश्य हृदय विदारक था? कैसे?
4. दिन में गाँव के लोगों के चेहरों पर प्रभा क्यों दृष्टिगोचर होती थी?
5. उक्त गाँव के दिन और रात के दृश्य में क्या अंतर था?
उत्तर
1. अकस्मात गाँव में पहले अनावृष्टि हुई और फिर अन्न की कमी हो गई। उसके बाद मलेरिये और हैजे ने मिलकर गाँववालों को अपनी चपेट में ले लिया।
2. गाँव में जब मलेरिया और हैजा फैल गया, तो उसने सारे गाँव को अपना शिकार बना डाला। इन बीमारियों के कारण गाँव में घर के घर खाली हो गए। प्रायः प्रतिदिन दो-तीन लाशें उठने लगी थीं। इसी भयानक दृश्य को देखकर लोगों में खलबली मच गई।
3. भयंकर बीमारी से ग्रस्त गाँव में दिन में हृदय-विदारक दृश्य के बावजूद भी लोगों के चेहरों पर कुछ ज्योति दिखाई देती थी, लेकिन रात्रि होते ही जब लोग अपनी-अपनी झोंपड़ियों में घुस जाते थे तो यूँ की भी आवाज नहीं होती थी। माताओं को अपने दम तोड़ते पुत्र को अंतिम बार बेटा कहकर पुकारने की हिम्मत भी नहीं होती थी।
4. दिन में गाँव के लोगों के चेहरों पर प्रभा इसलिए दृष्टिगोचर होती थी, क्योंकि सूर्योदय होते ही लोग रोते-बिलखते-कराहते अपने-अपने ___घरों से बाहर निकलकर पड़ोसियों तथा आत्मीयों को धैर्य देते थे।
5. दिन में तो इस गाँव के लोगों के चेहरों पर कुछ प्रभा दिखाई देती थी; लोग रोते-बिलखते अपने पड़ोसियों को धैर्य देते थे। लेकिन रात में चहुँ ओर सन्नाटा छा जाता था; माताएँ अपने मरते हुए बच्चे को देखकर बेटा पुकारने की भी हिम्मत नहीं कर सकती थीं।

9. रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती रहती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक, चाहे जिस ख्याल से ढोलक बजाता हो, किंतु गाँव के अर्धमृत, औषधि-उपचार-पथ्य-विहीन प्राणियों में वह संजीवनी शक्ति ही भरती थी। बूढ़े-बच्चे-जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में भी बिजली दौड़ जाती थी। (C.B.S.E. Model Q. Paper 2008)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. गद्यांश के लेखक तथा पाठ का नाम बताएँ।
2. रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती थी, कैसे?
3. लेखक ने रात्रि को डरावनी क्यों कहा है?
4. रात्रि की विभीषिका में पहलवान की ढोलक किन प्राणियों के लिए संजीवनी का काम करती थी?
5. पहलवान की ढोलक अर्धमृत प्राणियों के लिए संजीवनी का कार्य कैसे करती थी?
उत्तर
1. इस गद्यांश के लेखक ‘फनीश्वर नाथ रेणु’ तथा पाठ का नाम ‘पहलवान की ढोलक’ है।
2. रात्रि की विभीषिका को सिर्फ पहलवान की ढोलक ही ललकारकर चुनौती देती थी, क्योंकि गाँव के अन्य सभी लोग रात्रि से भयभीत होकर अपनी झोंपड़ियों में गुम हो जाते थे। बस लुट्टन पहलवान ही अकेला पूरी रात ढोल बजाकर इधर-उधर टहलता रहता था।
3. गाँव में जब मलेरिये तथा हैजे की महामारी फैल गई, तो चारों ओर लोग मरने लगे। दिन में फिर भी लोग एक-दूसरे को ढाढ़स दे देते थे, लेकिन रात्रि में वे महामारी से भयभीत होकर अपनी-अपनी झोंपड़ी में गुम हो जाते थे। माताएँ दम तोड़ते अपने पुत्र को अंतिम बार बेटा पुकारने की भी हिम्मत नहीं कर पाती थीं। इसलिए लेखक ने रात्रि को डरावनी कहा है।
4. रात्रि की विभीषिका में पहलवान की ढोलक गाँव के अर्धमृत, औषधि-उपचार, पथ्यविहीन प्राणियों के लिए संजीवनी का काम करती थी।
5. रात्रि की विभीषिका में जब चारों ओर लोग डरकर अपनी-अपनी झोंपड़ियों में सुन्न हो जाते थे, तब पहलवान सारी रात ढोलक बजाता था। उस समय ढोलक की आवाज से बच्चों, बूढ़ों तथा जवानों की शक्तिहीन आँखों के आगे दंगल का दृश्य नाचने लगता था। उनकी स्पंदन-शक्ति-शून्य स्नायुओं में बिजली दौड़ जाती थी।