Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 5 सहर्ष स्वीकारा है. Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams.
सहर्ष स्वीकारा है Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 5
प्रश्न 1. काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है या मेरा जो होता-सा लगता है, होता-सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही कारण का घेरा है, कार्यों का वैभव है।
उत्तर
- प्रस्तुत काव्यांश ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता से अवतरित है।
- इस काव्यांश में कवि ने जीवन में अपना सब कुछ असीम सत्ता को समर्पित किया है।
- खड़ी बोली का प्रयोग है।
- रहस्यात्मक भावना दृष्टिगोचर होती है।
- मुक्तक छंद का प्रयोग है।
- इन पंक्तियों में प्रसाद गुण है।
- अनुप्रास, संदेह, उपमा, पदमैत्री, स्वरमैत्री अलंकारों की छटा दर्शनीय है।
- बिंब-योजना अत्यंत सार्थक एवं सटीक है।
- भावपूर्ण शैली का प्रयोग है।
प्रश्न 2.
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता के माध्यम से कवि ने क्या प्रेरणा प्रदान की है?
उत्तर
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित है। इसके माध्यम से कवि ने मानव को जीवन में सुख-दुःख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक, हर्ष-विषाद, राग-विराग आदि भावों को सहर्ष से स्वीकार करने की प्रेरणा दी है।
प्रश्न 3.
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता का मूलभाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित ‘भूरी-भूरी खाक धूल’ संग्रह में संकलित है। इसमें कवि ने जीवन के सभी सुख-दुःख, हर्ष-विषाद, संघर्ष-अवसाद, राग-विराग आदि के सम्यक-भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा दी है। ‘मनुष्य को इन्हें खुशी-खुशी स्वीकार कर लेना चाहिए। इसके साथ-साथ यह कविता हमें उस विशिष्ट व्यक्ति या सत्ता की ओर भी संकेत करती है जिसने कवि को जीवन में प्रेरणा प्रदान की है। जिसकी प्रेरणा से उसने समस्त भावों को सहर्ष भाव से खशी-खुशी स्वीकार कर लिया है।
प्रश्न 4.
कवि के प्रिय को उनका क्या-क्या प्यारा लगता है?
उत्तर
कवि के प्रिय को उनके जीवन के समस्त भाव बहुत प्रिय लगते हैं। कवि की गर्वयुक्त गरीबी, गंभीर अनुभव, विचार-वैभव, दृढ़ता, आंतरिक सरिता, सभी भाव उनके प्रिय को प्यारे लगते हैं।
प्रश्न 5.
कवि ने प्रिय के चेहरे की उपमा किससे की है? कैसे?
उत्तर
कवि ने प्रिय के चेहरे की उपमा आकाश में मुसकराते चंद्रमा से की है। जिस प्रकार मुसकराता चंद्रमा सारी रात अपनी शीतल चाँदनी धरा पर बिखेरता रहता है उसी प्रकार विशिष्ट प्रिय का चेहरा कवि के प्रति खिलता रहता है।
प्रश्न 6.
कवि किससे दंड की कामना करता है और क्यों?
उत्तर
कवि अपने विशिष्ट प्रिय से दंड की कामना करता है। वह इसलिए इस दंड की कामना करता है क्योंकि वह अपने प्रिय के विस्मृत करने की भूल कर बैठा है।
प्रश्न 7.
कवि को पाताली अंधेरे की गुफाओं में भी किसका सहारा प्रतीत होता है और क्यों?
उत्तर
कवि को पतली अँधेरे की गुफाओं में अपनी विशिष्ट सत्ता या प्रिय का सहारा ही प्रतीत होता है। क्योंकि उसके जीवन में जो कुछ भी उसका है या उसका होना संभव है वह सब उसके विशिष्ट प्रिय के कारण ही है। वह सब उसके प्रिय के कारण ही उसे प्राप्त है।
प्रश्न 8.
‘ममता के बाद की मँडराती कोमलता भीतर पिराती है’ भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
यह अवतरण गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित ‘सहर्ष स्वीकारा है’ नामक कविता से अवतरित है। कवि अपने विशिष्ट प्रिय को संबोधन कर कह रहा है कि अब उसके जीवन का वह पड़ाव आ पहुँचा है कि जो ममता रूपी कोमलता कभी उसके हृदय को स्पर्श करते ही आनंद विभोर कर देती थी, जिसमें डूबकर वह आनंदमग्न हो सब कुछ विस्मृत कर देता था। अब वह भी उससे सहन नहीं होती। वह उसके हृदय को आनंद की अपेक्षा पीड़ा पहुँचाती है। वह उसे बादलों के मँडराने के समान कठोर प्रतीत होती है।
प्रश्न 9.
‘बहलाती-सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती है’-काव्य-पंक्ति में निहित व्यंजना का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
आत्मीयता वह भाव होता है जो हृदय को स्पर्श कर उसे आनंद एवं खुशी प्रदान करती है किंतु यहाँ कृषि के जीवन में वे प्रतिकूल परिस्थितियाँ पदार्पण कर गई हैं कि उसे आत्मीय जन भी अच्छे नहीं लगते और न ही उनकी बहलाने-सहलाने वाली आत्मीयता उन्हें भाती है। अब कवि को केवल अपने प्रिय को अंगीकार करना चाहता है। वह उसमें सम्मिलित होने की कामना करता है।
प्रश्न 10.
कवि पाताली अँधेरे की गुफाओं में लापता क्यों होना चाहता है?
उत्तर
कवि पाताल की अंधेरी गुफाओं और गड्ढों में अदृश्य हो जाना चाहता है क्योंकि वह धुएँ के बादलों में पूर्ण रूप से छिप जाना चाहता है जिससे उसके विशिष्ट प्रिय अतिरिक्त कोई अन्य उसे पहचान न सके।
सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर
1. जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है
सहर्ष स्वीकारा है।
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब
यह विचार-वैभव सब
दृढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब
मौलिक है, मौलिक है
इसलिए कि पल-पल में
जो कुछ भी जाग्रत है अपलक है
संवेदन तुम्हारा है। (C.B.S.E. Model Q.Paper 2008, A.I.C.B.S.E. 2012, Set-I, C.B.S.E. Outside Delhi 2013; Set-II, 2014 Set-I, II, III)
शब्दार्थ : सहर्ष-खुशी-खुशी, हर्ष पूर्ण से। गरबीली-गर्वीली, गर्व से युक्त । भीतर की सरिता-आंतरिक नदी। जाग्रत-जागा हुआ, सचेत, सावधान । संवेदन-सुख-दुख की अनुभूति स्वीकारा-ग्रहण किया। विचार-वैभव-विचार रूपी ऐश्वर्य। मौलिक-मूल रूप में,वास्तविक, अनिवार्य। अपलक-अदृश्य, नदी।
प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित ‘सहर्ष स्वीकारा है’ नामक कविता से अवतरित किया गया है। इसके रचयिता ‘गजानन माधव मुक्तिबोध’ जी हैं जो नई कविता के बेजोड़ एवं प्रमुख कवि माने जाते हैं। इस काव्यांश में कवि ने जीवन में सुख-दुख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक आदि को सम्यक भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा दी है। कवि असीम सत्ता को संबोधन करते हुए कहते हैं जिनसे उन्हें जीवन में प्रेरणा प्राप्त हुई है।
व्याख्या : कवि असीम सत्ता को संबोधन करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु! मेरी जिंदगी में जो सुख-दुख, राग-विराग, आशा-निराशा, उठा-पटक आदि सम्मिलित हैं उनको मैंने सहर्ष भाव से खुशी-खुशी स्वीकार किया है। अर्थात मेरे जीवन में जो और जैसी भी परिस्थितियाँ आईं उनको मैंने प्रसन्नता से ग्रहण किया है। कवि उसी सत्ता को संबोधन कर कहते हैं कि इस जीवन में जो कुछ भी मेरे पास है वह सब तुम्हें प्यारा लगने वाला है अर्थात कवि कहते हैं कि मैंने अपने जीवन में वही संचित किया है जो आपको प्रिय लग सके।
मेरे जीवन में सब कुछ मूलभूत एवं अनिवार्य है। यह गर्व से युक्त गरीबी, ये जीवन के गंभीर अनुभव, विचार रूपी ऐश्वर्य, श्रेष्ठ विचार, दृढ़ता, नवीन आंतरिक सरिता सब कुछ मौलिक है। इसमें बनावटीपन या गढ़ा हुआ कुछ भी नहीं है। कवि कहते हैं कि हे प्रभु! इस जगत में प्रतिपल जो कुछ भी दिखाई देता है, जो कुछ भी प्रकाशित होता है। वह वास्तव में अदृश्य रूप में तुम्हारा ही संवेदन है। तुम्हारे ही सुख-दुख की अनुभूति है जो दृश्य रूप में प्रतिक्षण आँखों के समक्ष रहती है। हे प्रभु! यह गोचर जगत आप ही द्वारा निर्मित है जिसमें प्रतिपल आप अदृश्य रूप में विराजमान रहते हो।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
1. इस अवतरण के कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
2. कवि ने अपने जीवन में क्या-क्या स्वीकार किया है?
3. कवि को गरीबी कैसी लगती है और क्यों?
4. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. इस अवतरण के कवि का नाम गजानन माधव मुक्तिबोध हैं तथा कविता का नाम ‘सहर्ष स्वीकारा है’ है।
2. कवि ने अपने जीवन में गर्वयुक्त गरीबी, गंभीर अनुभव, विचार-वैभव, दृढ़ता आदि को प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार किया है।
3. कवि को गरीबी गर्वीली लगती है क्योंकि उसे गरीबी भी उसके प्रेरणास्रोत प्रभु द्वारा प्राप्त हुई है।
4. काव्य-सौंदर्य
- रहस्यवादी भावना का चित्रण हुआ है।
- खड़ी बोली का प्रयोग है।
- संस्कृत के तत्सम, तद्भव और विदेशी भाषा के शब्दों का प्रयोग है।
- शांत रस की प्रधानता है।
- अनुप्रास, पदमैत्री, रूपक, स्वरमैत्री अलंकारों की छटा दर्शनीय है।
- बिंब-योजना अत्यंत सरल है।
2. जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है
जितना भी उँडेलता हूँ, भर-भर फिर आता है
दिल में क्या झरना है ?
मीठे पानी का सोता है
भीतर वह, ऊपर तुम
मुसकाता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर
मुझ पर त्यों तुम्हारा ही खिलता वह चेहरा है!! (C.B.S.E. Delhi 2008, C.B.S.E. Outside Delhi, 2013, Set-I)
शब्दार्थ : उँडेलता हूँ-बिखेरता हूँ, खाली करता हूँ। मुसकाता-मुसकराता। सोता-जल की निरंतर बहनेवाली छोटी धारा, झरना, नदी की शाखा।
प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘आरोह भाग-2 में संकलित कवि ‘मुक्तिबोध’ द्वारा रचित ‘सहर्ष स्वीकारा है’ नामक कविता से अवतरित हैं। इनमें कवि ने रहस्यवादी चेतना का परिचय देते हुए मनुष्य और परमात्मा के अटूट संबंध का चित्रांकन किया है।
व्याख्या : कवि प्रभु को संबोधन करते हुए कहते हैं कि हे प्रभु! मैं नहीं जानता कि मेरा आपके साथ क्या रिश्ता-नाता है। मेरा आपसे क्या संबंध है ? इस बारे में मुझे कुछ भी नहीं पता। दिल में न जाने कौन-सा प्रेम रूपी झरना मौजूद है। मैं इस झरने को जितनी बार भी खाली करता हूँ यह बार-बार अपने-आप ही भर जाता है। कवि का अभिप्राय है कि आपके प्रति मेरे हृदय में प्रेम रूपी झरना प्रवाहित है। मैं बार-बार प्रयास करके इसे खाली करना चाहता हूँ परंतु यह फिर भर जाता है।
मैं आपके प्रति अपने हार्दिक प्रेम को कम करना चाहता हूँ लेकिन यह कम होने की अपेक्षा और बढ़ता ही जाता है। हे असीम सत्ता! मेरे भीतर तो मीठे पानी का स्रोत या झरना मौजूद है और बाहर तुम विराजमान हो। कवि का कथन है कि जिस प्रकार रात्रि में मुसकराता, खिलता हुआ चंद्रमा मौजूद रहता है उसी प्रकार हे प्रभु! मेरी आत्मा पर आपका ही चेहरा या स्वरूप खिलता रहता है। मेरी आत्मा में सदैव आपका स्वरूप छाया रहता है।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
1. ‘जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता’ पंक्ति में कवि किससे, किस रिश्ते और नाते की बात करता है?
2. झरने का पानी कैसा है?
3. कवि ने प्रभु के खिलते चेहरे की तुलना किससे की है?
4. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. इस पंक्ति में कवि प्रभु से अपने अर्थात मानव के रिश्ते और नाते की बात करता है।
2. झरने का पानी एक मीठे पानी के स्रोत के समान है।
3. कवि ने प्रभु के खिलते चेहरे की तुलना रात्रि में धरती पर मुसकराते चंद्रमा से की है।
4. काव्य-सौंदर्य
- कवि ने मनुष्य और असीम सत्ता के अटूट संबंध का चित्रण किया है।
- अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, रूपक, उपमा, मानवीकरण, उदाहरण अलंकारों की छटा दर्शनीय है।
- मुक्तक छंद का प्रयोग है।
- शांत रस प्रधान है।
- संस्कृत के तत्सम और तद्भव शब्दों का प्रयोग हुआ है।
- मुक्तक छंद है।
- खड़ी बोली का प्रयोग है।
3. सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं
तुम्हें भूल जाने की
दक्षिण ध्रुवी अंधकार-अमावस्या
शरीर पर, चेहरे पर, अंतर में पा लूँ मैं
झेलूँ मैं, उसी में नहा लूँ मैं
इसलिए कि तुमसे ही परिवेष्टित आच्छादित
रहने का रमणीय यह उजेला अब
सहा नहीं जाता है। (A.I.C.B.S.E. 2016)
नहीं सहा जाता है।
ममता के बादल की मंडराती कोमलताभीतर पिराती है
कमज़ोर और अक्षम अब हो गई है आत्मा यह
छटपटाती छाती को भवितव्यता डराती है
बहलाती सहलाती आत्मीयता बरदाशत नहीं होती है! (A.I.C.B.S.E. 2009, 2010 Set-III, 2011 Set-III, 2012 Set-1)
शब्दार्थ : अंतर-हृदय। आच्छादित-ढका हुआ। अक्षम-असमर्थ, क्षमता रहित, अशक्त। भवितव्यता-होनी, शक्ति अवश्यंभावी।
बरदाश्त-सहन, सहनशीलता। परिवेष्टित-घिरा हुआ। रमणीय-सुंदर। छटपटाना-पीड़ा के कारण हाथ-पैर मारना या आर्थिक दुखों से परेशान होना। आत्मीयता-अपनापन।
प्रसंग : यह पद्य मुक्तिबोध द्वारा रचित ‘सहर्ष स्वीकारा है’ नामक कविता से अवतरित किया गया है। इसमें कवि ने मनुष्य को यह प्रेरणा दी है कि जीवन में हमें आनेवाले पलों को स्वीकारना चाहिए।
व्याख्या : कवि उस असीम सत्ता को संबोधन करते हुए कहता है कि हे प्रभु, आपको भूलकर जो मैंने अपराध किया है उसका मुझे अवश्य दंड मिलना चाहिए। अत: आप मुझे दंड दें। मैं दक्षिण ध्रुव पर विराजमान अँधेरे से परिपूर्ण अमावस्या को अपने हृदय में प्राप्त कर लूँ तथा उसे अपने शरीर और चेहरे पर झेलूँ और मैं उसी में डूबकर स्नान कर लेना चाहता हूँ क्योंकि आपसे घिरे तथा ढके हुए रहने का यह सुंदर प्रकाश अब मुझसे सहन नहीं होता। कवि का कहना है कि हे प्रभु! आपसे ढके हुए रहने का यह रमणीय प्रकाश मुझसे और ज्यादा सहन नहीं होता इसलिए मैं अब अँधेरी अमावस्या में डूब जाना चाहता हूँ।
अब तो स्थिति यह हो गई है कि जो ममता के बादल मेरे चारों ओर मँडराते रहते हैं, अब इन ममता के बादलों की मँडराती कोमलता मेरे हृदय को पीड़ा देने लगी है। जिन ममता रूपी बादलों को देखकर मैं पहले आनंदित हो जाया करता था अब वही ममता रूपी बादल मुझे पीड़ादायक प्रतीत होते हैं। अब मुझमें और अधिक कष्ट सहने की शक्ति नहीं रही। अब तो मेरी आत्मा कमजोर और शक्तिहीन हो गई है।
मेरी छाती निरंतर दुखों के कारण परेशान रहती है इसलिए वह होनी को देखकर भयभीत रहती है। होनी मेरी कमज़ोर और शक्तिहीन छाती तथा हृदय को डराती रहती है। कवि कहते हैं कि अब तो स्थिति इतनी नाजुक हो गई है कि मुझे देखकर लोग सांत्वना देते हैं, सहानुभूति प्रकट करते हैं तथा दुखों को सहलाने का प्रयास करते हैं लेकिन अब तो मन बहला देनेवाली तथा दुखों को सहला देनेवाली आत्मीयता भी सहन नहीं होती। अपनापन भी अच्छा नहीं लगता।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न
1. कवि के भीतर कौन पीड़ा पहुँचाती है?
2. कवि की आत्मा कैसी हो गई?
3. अब कवि को क्या बरदाश्त नहीं होती?
4. कवि किससे दंड की प्रार्थना करते हैं और क्यों?
5. इस उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
6. कवि के व्यक्तिगत संदर्भ में किसे ‘अमावस्या’ कहा गया है?
7. ‘अमावस्या’ के लिए प्रयुक्त विशेषणों का भाव स्पष्ट कीजिए।
8. ‘रमणीय उजेला’ क्या है और कवि उसके स्थान पर अंधकार क्यों चाह रहा है?
9. ‘तुम से ही परिवेष्टित आच्छादित’ – यहाँ ‘तुम’ कौन है? आप ऐसा क्यों मानते हैं?
उत्तर
1. कवि के भीतर ममता के बादल की मँडराती हुई कोमलता पीड़ा पहुँचाती है।
2. कवि की आत्मा कमज़ोर और अक्षम हो गई है।
3. अब कवि को बहलाती, सहलाती आत्मीयता बरदाश्त नहीं होती।
4. कवि प्रभु से दंड की प्रार्थना करते हैं क्योंकि उन्होंने अपने जीवन में उन्हें भूलने की भूल की है।
5. काव्य-सौंदर्य
- आत्माभिव्यंजना का सजीव चित्रांकन हुआ है।
- खड़ी बोली का प्रयोग है।
- मुक्तक छंद का प्रयोग है।
- तत्सम, तद्भव एवं विदेशी शब्दावली का प्रयोग है।
- अनुप्रास, रूपक, पदमैत्री अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
- बिंब-विधान अतीव सुंदर एवं सटीक है।
6. कवि के व्यक्तिगत संदर्भ में प्रतिकूल परिस्थितियों एवं पीड़ा को अमावस्या कहा गया है। कवि के जीवन में अपार दुख एवं समस्याओं ने उसे चारों तरफ से घेर लिया था।
7. दक्षिणध्रुवी से तात्पर्य जीवन के अंतिम पड़ाव से है। अंधकार से तात्पर्य दुखों, पीड़ाओं एवं समस्याओं से है।
8. रमणीय उजेला से तात्पर्य प्रिय की कृपा का प्रतिफल है जो सुख, आनंद से परिपूर्ण है।
9. यहाँ तुम कवि का प्रिय है। कवि ने कविता अपने प्रिय को संबोधित करके कही है।
4. सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ
पाताली अंधेरे की गुहाओं में विवरों में
धुएँ के बादलों में
बिलकुल मैं लापता
लापता कि वहाँ भी तो तुम्हारा ही सहारा है!!
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
या मेरा जो होता-सा लगता है, होता-सा संभव है
सभी वह तुम्हारे ही कारण के कार्यों का घेरा है, कार्यों का वैभव है
अब तक तो जिंदगी में जो कुछ था, जो कुछ है
सहर्ष स्वीकारा है
इसलिए कि जो कुछ भी मेरा है
वह तुम्हें प्यारा है।
शब्दार्थ : गुहाओं-गुफ़ाओं। लापता-खोया हुआ। स्वीकारा-स्वीकार किया, ग्रहण किया। विवरों में-छिद्रों में, बिलों में।
प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश ‘आरोह भाग-2′ में संकलित कवि मुक्तिबोध’ द्वारा रचित ‘सहर्ष स्वीकारा है’ कविता से लिया गया है। इसमें कवि ने अपना सब कुछ उस विशिष्ट या असीम सत्ता के प्रति समर्पित किया है।
व्याख्या : कवि विशिष्ट सत्ता को संबोधन करते हुए कहते हैं-हे प्रभु ! आप मुझे वास्तव में दंड दें जिससे मैं पाताल लोक की अँधेरी गुफ़ाओं, बिलों और धुएँ के काले बादलों के बीच में बिलकुल गुम हो जाऊँ। मैं इन गुफाओं, बिलों और बादलों में इतना गुम हो जाऊँ कि कोई मुझे ढूँढ़ न सके। फिर वहाँ तो आपका ही सहारा है। वहाँ भी आप ही की सत्ता है। कवि कहते हैं कि जीवन में जो कुछ भी मेरे पास है या मेरा होनेवाला है, वह सब कुछ तुम्हारे ही कारणों का चक्र है और तुम्हारे ही कार्यों का ऐश्वर्य है।
मेरे संपूर्ण जीवन पर आपका ही अधिकार है। जो कुछ भी मेरे पास है वह सब कुछ आपकी ही देन है। आपके कार्यों का ही परिणाम है। कवि का कथन है कि अब तो मेरी जिंदगी में जो कुछ राग-विराग, सुख-दुख, आशा-निराशा, हर्ष-विषाद आदि था और जो कुछ है वह सभी कुछ मैंने खुशी-खुशी स्वीकार किया है अर्थात मेरे जीवन में जो कुछ है जो था उसको मैंने निर्विवाद रूप में इसलिए स्वीकारा है क्योंकि जो कुछ भी मेरा है।
मेरे जीवन में मेरे पास है वह सब तुम्हें प्यारा है। मेरे जीवन में जो हर्ष-विषाद, सुख-दुख, राग-विराग, आशा-निराशा आदि है वह सब तुम्हें प्रिय लगने वाला है। वह सब आपकी देन है जिसे मैंने खुश होकर अंगीकार किया है।
अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तरी
प्रश्न
1. कवि किस दंड की कामना करता है?
2. कवि प्रभु के प्रति क्या समर्पित करता है?
3. इस काव्यांश के कवि तथा कविता का नाम लिखिए।
4. ‘सहर्ष स्वीकारा है’ पंक्ति में निहित भाव स्पष्ट कीजिए।
5. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उन्तर
1. कवि पाताली अंधेरे की गुफाओं, बिलों में तथा धुएँ के बादलों में बिलकुल लापता हो जाने के दंड की कामना करता है।
2. कवि का मानना है कि जीवन में उसने जो कुछ भी प्राप्त किया है, जो कुछ भी उसका होनेवाला है वह सब प्रभु को प्यारा है। वह अपना सबकुछ ईश्वर को समर्पित करता है।
3. इस काव्यांश के कवि का नाम गजानन माधव मुक्तिबोध है तथा कविता का नाम ‘सहर्ष स्वीकारा है’ है।
4. इस पंक्ति का भाव यह है कि उस प्रभु ने जीवन में जो कुछ भी सुख-दुख प्रदान किए हैं, उन्हें कवि ने सहर्ष भाव से खुशी-खुशी स्वीकार किया है।
5. काव्य-सौंदर्य
- कवि ने जीवन में सुख-दुख, राग-विराग, आशा-निराशा आदि भावों को सहर्ष स्वीकार करने की प्रेरणा दी है।
- अनुप्रास, उपमा, पदमैत्री, स्वरमैत्री अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है।
- तत्सम, तद्भव तथा विदेशी शब्दावली है।
- खड़ी बोली का सहज, सरस प्रयोग हुआ है।
- मुक्त छंद का प्रयोग है।
- बिंब-योजना अत्यंत सुंदर एवं सटीक है।