Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 6 उषा. Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams.

उषा Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 6

प्रश्न 1.
सूर्योदय से उषा का कौन-सा जादू टूट रहा है? (C.B.S.E. 2011, Set-I)
उत्तर
उषा काल में सूर्योदय आकर्षक होता है। प्रात:काल नीले गगन में सूर्य की फैलती प्रथम सफ़ेद लाल किरणें हृदय को बरबस अपनी ओर आकृष्ट कर लेती हैं। उसका बरबस आकृष्ट करना ही जादू है। सूर्य उदित होते ही यह भव्य प्राकृतिक दृश्य सूर्य की तरुण . किरणों में आहत हो जाता है। उसका सम्मोहन और प्रभाव नष्ट हो जाता है।

प्रश्न 2.
भोर के नभ को ‘राख से लीपा हुया चौका’ क्यों कहा गया है?
उत्तर
भोर के नभ का रंग नीला होता है, पर साथ ही उसमें सफ़ेदी भी बिखरी होती है। राख से लीपे हुए चौका भी जब तक गीला होता है वह मटमैला-सा प्रतीत होता है मैं उसमें नीलिमा अथवा श्यामलता के साथ सफ़ेदी का मिश्रण होता है। यही कारण है कि कवि ने भोर के नभ को राख से लीपे चौके की संज्ञा दी है। राख के ताजे लीपे चौके में नमी भी होती है। भोर के नभ में भी यह गीलापन है।

प्रश्न 3.
‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन आकाश की पवित्रता, निर्मलता और उज्ज्वलता के लिए कवि दवारा प्रयुक्त निम्नलिखित कथनों को यथाक्रम लिखिए
(क) काली सिल जरा-से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो
(ख) राख से लीपा हुआ चौका
(ग) नील जल में किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे हिल रही हो।
उत्तर :
पवित्रता-राख से लीपा हुआ चौका।
निर्मलता-काली सिल जरा-से केसर से कि जैसे धुल गई हो।
उञ्चलता-नीले जल में किसी की गौर, झिलमिल देह जैसे कि हिल रही हो।

प्रश्न 4.
कविता में प्रयुक्त उपमा और उत्प्रेक्षा अलंकार छाँटिए।
उत्तर
उपमा-

  • बहुत नीला, शंख जैसे।
  • बहुत काली सिल जरा-से लाल केसर से कि जैसे धल गई हो।

उत्प्रेक्षा-

  • स्लेट पर या लाल खड़िया चॉक मल दी हो किसी ने।
  • नीले जल में या किसी की गौर झिलमिल देह जैसे हिल रही हो।
  • स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने।

प्रश्न 5.
‘उषा’ कविता में प्रातःकालीन आकाश में पवित्रता, निर्मलता और उज्ज्वलता के लिए प्रयुक्त कथनों को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
पवित्रता-जिस स्थान पर मंगल कार्य करना हो, उसे राख से लीप कर पवित्र बना लिया जाता है। लीपे हुए चौके के समान ही प्रात:कालीन आकाश भी पवित्र है। निर्मलता-कालापन मलिन अथवा दोषपूर्ण माना जाता है। उसको निर्मल बनाने के लिए उसे जल आदि से धो लेते हैं। जिस प्रकार काली सिल पर लाल केसर रगड़ने से तथा बाद में उसे धोने से उस पर झलकनेवाली लालिमा उसकी निर्मलता की सूचक बन जाती है, उसी प्रकार प्रात:कालीन आकाश भी हलकी लालिमा से युक्त होने के कारण निर्मल दिखाई देता है। उचलता-जिस प्रकार नीले जल में गोरा शरीर उज्ज्वल चमक से युक्त तथा मोहक लगता है उसी प्रकार प्रात:कालीन आकाश भी उज्ज्वल प्रतीत होता है।

प्रश्न 6.
‘उषा’ कविता के आधार पर प्रातःकालीन सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
अथवा
सूर्योदय से पहले आकाश में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं?
अथवा
उज़ा कविता के आधार पर भोर के नभ का चित्रण अपने टाब्दों में लिखिए। (C.B.S.E 2017 Set-III)
उत्तर
प्रात:काल का दृश्य बड़ा मोहक होता है। उस समय श्यामलता, श्वेतिमा तथा लालिमा का सुंदर मिश्रण दिखाई देता है। रात्रि की नीरवता समाप्त होने लगती है। प्रकृति में नया निखार आ जाता है। आकाश में स्वच्छता, निर्मलता तथा पवित्रता व्याप्त दिखाई देती है। सरोवरों तथा नदियों के स्वच्छ जल में पड़नेवाले प्रतिबिंब बड़े आकर्षक तथा मोहक दिखाई देते हैं। आकाश लीपे हुए चौके के समान पवित्र, हलकी लाल केसर से युक्त सिल के समान तथा जल में झलकनेवाली गोरी देह के समान दिखाई देता है।

प्रश्न 7.
‘उषा’ कविता के आधार पर अपनी कल्पना में संध्या के सौंदर्य का चित्रण कीजिए।
उत्तर
सूर्योदय से पूर्व के आकर्षक दृश्य की तरह संध्या के समय सूर्य के डूबने से पूर्व का दृश्य भी बड़ा मोहक होता है। पक्षी अपने पंख फैलाकर अपने-अपने नीड़ों की ओर उड़े जा रहे होते हैं। चरवाहे अपने पशुओं को लेकर घरों को लौट रहे होते हैं। उस समय आकाश में श्वेतिमा, लालिमा तथा श्यामलता का मिश्रण दिखाई देता है। संध्या का क्षण-प्रतिक्षण परिवर्तित होनेवाला यह आकर्षण दर्शक की दृष्टि को बाँध लेता है। कुछ ही क्षणों के बाद यह दृश्य समाप्त हो जाता है और चारों ओर हलका-हलका अँधेरा छाने लगता है।

प्रश्न 8.
इन पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
प्रातः नभ था बहुत नीला, शंख जैसे
भोर का नभ, राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है।)
बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने
उत्तर
प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने प्रातःकालीन सुंदरता को बड़े आकर्षक रूप में चित्रित किया है। कविता में कल्पना तत्व की प्रधानता है। कवि ने सूर्योदय से पूर्व वातावरण में व्याप्त नीलिमा को उभारने के लिए विभिन्न उपमाएँ दी हैं। उन्होंने प्रात:काल के क्षणिक सौंदर्य को अपनी तीव्र अनुभूति के माध्यम से सरल, सरस तथा चित्रात्मक भाषा में व्यक्त किया है। उपमा तथा उत्प्रेक्षा अलंकारों का प्रयोग किया है। प्रभातकालीन आकाश का सहज चित्रण किया गया है।

प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
नील जल में या किसी की
गौर झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
और ……….
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।
उत्तर
इन पंक्तियों में कवि ने सूर्योदय से पूर्व के आकाश की शोभा के चित्रण में बड़ी सूक्ष्म दृष्टि तथा मौलिक कल्पना का परिचय दिया है। आकाश में उभरनेवाले क्षणिक रंग का बड़ा सजीव चित्रण है। नीले जल में झिलमिलाती गोरी देह का शब्द-चित्र पाठक पर जादू का-सा प्रभाव डालता है। उत्प्रेक्षा तथा अनुप्रास अलंकारों का प्रयोग है। सरस तथा मधुर शब्दावली का प्रयोग है। नीला जल नीले आकाश का तथा झिलमिल देह उगते सूर्य का प्रतीक है। नीले आकाश की उज्ज्वलता का भी भावपूर्ण चित्रण है।

प्रश्न 10.
सिल और स्लेट का उदाहरण देकर कवि ने आकाश के रंग के बारे में क्या कहा है?
उत्तर
कवि ने आकाश के रंग के बारे में सिल का उदाहरण देते हुए स्पष्ट किया है कि यह आकाश ऐसा लगता है जैसे किसी काली सिल पर केसर धुल-सी गई हो। स्लेट का उदाहरण देते हुए कहा गया है कि आकाश ऐसा लगता है जैसे किसी ने स्लेट पर लाल रंग की खड़िया मिट्टी मल दी हो। इस उदाहरण द्वारा कवि ने श्वेतिमा तथा कालिमा के समन्वय का वर्णन कर आकाश की शोभा का वर्णन किया है।

प्रश्न 11.
‘उषा’ नामक कविता के माध्यम से प्रयोगवादी काव्य का शिल्प किस प्रकार प्रकट हो पाया है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
शमशेर बहादुर सिंह की कविता में प्रयोगवादी काव्य का शिल्प अति सजीवता से प्रकट हो पाया है। इसमें नए बिंब, नए प्रतीक और नए उपमान कविता के साधन बने हैं। पुराने उपमानों को भी कवि ने नया रंग देने का प्रयत्न किया है। प्रकृति में होनेवाला परिवर्तन मानव जीवन का सजीव चित्र बनकर प्रकट हुआ है। कवि ने प्रात:कालीन आसमान को धरती के साथ जोड़ने में सफलता प्राप्त की है।

सूर्य : उगते ही अपनी जिन रंगीन-छटाओं को प्रस्तुत करता है उन्हें कवि ने गाँव के सजीव वातावरण से जोड़ दिया है। आसमान में जैसे-जैसे रंग बदलते दिखाई दिए हैं वैसे-वैसे गाँव के घर में भी प्रकट हुए हैं। वहाँ भी सिल है, राख से लीपा हुआ चौका है, स्लेट की कालिमा है और रंग-बिरंगे चॉक को थामनेवाले अदृश्य हाथ भी हैं। कविता में प्रयोगवादी काव्य का शिल्प अनूठे ढंग से अभिव्यक्त हो पाया है।

प्रश्न 12.
प्रातःकालीन आसमान को देखता हुआ कवि मन में कहाँ पहुँचा हुआ प्रतीत है? लिखिए।
अथवा
सिद्ध कीजिए कि ‘उषा’ कविता गाँव की सुबह का गतिशील चित्रण है। (C.B.S.E 2014 Set-I, II, III, Outside Delhi 2017 Set-I)
उत्तर
कवि प्रात:कालीन आसमान के रंगों को देखते हुए धरती के हलचल भरे जीवन से जुड़ा हुआ है। वह किसी गाँव की सुबह को अपनी मन की आँखों से देख रहा है जहाँ सूर्य उदित होने से पहले की सुबह का अँधेरा काली सिल के समान है और कुछ समय बाद वही राख से लीपे हुए चौके की तरह है। वही स्लेट के काले रंग-बिरंगे चॉक के समान है। कवि के मन में भविष्य का वह छिपा हुआ उजाला जो रात के अंधेरे को चीरकर उजाले की ओर आगे बढ़ने का अहसास-सा करता है।

प्रश्न 13.
कवि की बिंब-योजना की विशिष्टता क्या है ? लिखिए।
उत्तर
कवि की बिंब-योजना गतिशील है और उसमें प्रकृति की गति को शब्दों में बाँधने की अद्भुत क्षमता है। चाक्षुक बिंब-रचना में कवि को विशेष निपुणता प्राप्त है, इसी के माध्यम से उसने प्रभावपूर्ण रंग-योजना की सृष्टि की है।

प्रश्न 14.
‘स्लेट पर लाल खड़िया चॉक मलने की कल्पना अद्भुत है’ टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
स्लेट के काले रंग पर नमी से युक्त लाल खड़िया चॉक मल देने से वह भोर के समय पूर्व दिशा के समान दिखाई देता है जिसमें सूर्य अभी प्रकट हो रहा होता है। कवि ने प्रकृति की सुंदरता और रंग-योजना को प्रस्तुत कर अद्भुत कल्पना की हैं।

प्रश्न 13.
कवि की बिंब-योजना की विशिष्टता क्या है? लिखिए।
उत्तर
कवि की बिंब-योजना गतिशील है और उसमें प्रकृति की गति को शब्दों में बाँधने की अद्भुत क्षमता है। चाक्षुक बिंब-रचना में कवि को विशेष निपुणता प्राप्त है, इसी के माध्यम से उसने प्रभावपूर्ण रंग-योजना की सृष्टि की है।

प्रश्न 14.
‘स्लेट पर लाल खड़िया चॉक मलने की कल्पना अद्भुत है’ टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
स्लेट के काले रंग पर नमी से युक्त लाल खड़िया चॉक मल देने से वह भोर के समय पूर्व दिशा के समान दिखाई देता है जिसमें सूर्य अभी प्रकट हो रहा होता है। कवि ने प्रकृति की सुंदरता और रंग-योजना को प्रस्तुत कर अद्भुत कल्पना की है।

प्रश्न 15.
निम्नलिखित काव्यांष्ठा को पढ़कर पूछे गए प्रष्ठनों के उत्तर दीजिए : (Outside Delhi 2017 Set-II)
भोर का नभ राख से लीपा हुआ चौका (अभी गीला पड़ा है) बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो। स्लेट पर भी लाल खडिया चाक मल दी हो किसी ने
(क) काव्याष्ठा के भाव संदर्भ पर टिप्पणी कीजिए।
(ख) काव्यांष्ठा की अलंकार-योजना का सौंदर्य समझाइए।
(ग) काव्यांष्ठा की भाजा की दो विष्ठोजाएं लिखिए।
उत्तर
(क) काव्यांष्ठा में कवि ने प्रात:कालीन सौंदर्य का बड़ा आकर्जक चित्रण किया है। कवि ने सूर्योदय से पूर्व वातावरण में व्याप्त नीलिमा का चित्रित करने हेतु अनेक उपमाएं प्रदान की हैं।
(ख) काव्यांष्ठा में ‘राख से लीपा हुआ चौका’ में उत्प्रेक्षा तथा ‘बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो’ पंक्ति में उपमा की छटा है।
(ग) भाजा सरल एवं सहज है। चित्रात्मकता विद्यमान है।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1. प्रातः नभ था बहुत नीला शंख जैसे
भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है।)
बहुत काली सिल ज़रा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने। (C.B.S.E. Delhi 2008, C.B.S.E. Outside Delhi 2013, Set-I)

शब्दार्थ चौका-जमीन पर बैठकर खाना बनाने का स्थान। सिल-चपटा पत्थर, जिस पर मसाले, चटनी आदि पीसते हैं।

प्रसंग प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोही-2’ में संकलित कविता ‘उषा’ से उद्धृत है। इसके कवि शमशेर बहादुर सिंह जी है। इन पंक्तियों में कवि ने उषा काल के नभ का शब्द-चित्र प्रस्तुत किया है।

व्याख्या नीले आकाश में सफेद रंग की झलक भी थी। इस प्रकार सूर्योदय से पूर्व के आकाश ने आकर्षक रूप धारण कर लिया था। आकाश की नीलिमा में बिखरी सफ़ेदी के कारण उसका सौंदर्य शंख के समान बन गया था। नीले आकाश में सफ़ेद रंग की हलकी चमक को देखकर कवि को लगा-जैसे किसी गृहिणी ने सुबह होते ही राख से चौका लीप रखा है, जो अभी गीला पड़ा है अथवा ऐसा लगता है जैसे लाल केसरवाली सिल को धो दिया गया है लेकिन उस पर केसर की आभा दिखाई दे रही हो अथवा ऐसा लगता है जैसे स्लेट पर लाल खड़िया चाक मल दिया गया हो। अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. प्रातःकालीन आकाश कैसा था?
2. कवि ने भोर के नभ की क्या-क्या विशेषताएं बताई हैं?
3. उपर्युक्त काव्यांश के कवि तथा कविता का नाम बताएँ।
4. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. प्रात:कालीन आकाश बहुत नीले शंख के समान था जिसमें सफेद रंग की आभा भी झलक रही थी।
2. कवि ने भोर के नभ की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं

  • नभ राख से लीपे हुए गीले चौके के समान प्रतीत होता है।
  • वह लाल केसर से धुली हुई काली सिल जैसा दिखाई देता है।

3. उपर्युक्त काव्यांश के कवि का नाम शमशेर बहादुर सिंह है तथा कविता का नाम ‘उषा’ है।
4. काव्य-सौंदर्य

  • यहाँ कवि ने उषा काल का बड़ा सूक्ष्म चित्र अंकित किया है। सूर्योदय से पूर्व का दृश्य भले ही क्षणिक होता है पर अपने आकर्षण से दर्शक की दृष्टि को बाँध लेता है।
  • प्रयोगवादी कविता का शिल्प द्रष्टव्य है।
  • अभिधात्मक प्रयोग किया गया है।
  • अनुप्रास, उपमा, उत्प्रेक्षा, पदमैत्री, स्वरमैत्री अलंकारों की छटा अनुपम है।
  • कोमलकांत पदावली की योजना है।
  • तत्सम एवं तद्भव शब्दों का प्रयोग है। दृश्य बिंब है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

2. नीला जल में या किसी की
गौर, झिलमिल देह
जैसे हिल रही हो।
ओर…..
जादू टूटता है इस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है। (A.I.C.B.S.E. 2012, Set-1)

शब्दार्थ : गौर-गोरा रंग। सूर्योदय-सूर्य का निकलना। देह-शरीर।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित ‘उषा’ नामक कविता से अवतरित है। सूर्योदय से पूर्व का समय उषा काल कहलाता है। उस समय आकाश विशिष्ट रूप में दिखाई देता है। प्रस्तुत कविता में उषाकालीन आकाश की शोभा का अनेक रूपों में चित्रण है।

व्याख्या : नीला आकाश मानो नीला जल है। सूर्य का आकाश में प्रकट होना ऐसा लगता है मानो कि सुंदरी नीले जल से बाहर आती हुई रह-रहकर अपने गोरे रंग की आभा बिखेर रही है। अब सूर्य प्रकट होने के कारण उषा का जादू के समान यह सौंदर्य समाप्त हो रहा है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. कवि के अनुसार भोर का नभ कैसा प्रतीत होता है?
2. उषा का जादू कब टूटता है?
3. कवि ने नील जल में झिलमिलाती देह की तुलना किससे की है?
4. उपर्युक्त अवतरण का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. कवि के अनुसार भोर का नभ देखकर ऐसा प्रतीत होता है जैसे नीले जल में किसी सुंदर नायिका का गौर वर्ण झिलमिला रहा हो।
2. उषा का जादू सूर्योदय होने पर टूटता है।
3. कवि ने नीले जल में झिलमिलाती देह की तुलना भोर के नभ से की है।
4. काव्य-सौंदर्य

  • उषाकालीन आकाश का मनमोहक शब्द-चित्र प्रस्तुत किया गया है।
  • चाक्षुक बिंब-योजना है।
  • अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग किया गया है।
  • माधुर्य गुण-संपन्न है।
  • अनुप्रास, उपमा अलंकारों की अनुपम छटा है।
  • तत्सम एवं तद्भव शब्दों का प्रयोग है।
  • कोमलकांत पदावली की योजना है।