Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 8 कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप. Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams.

कवितावली (उत्तर कांड से), लक्ष्मण-मूच्छ और राम का विलाप Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 8

प्रश्न 1.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
जथा पंख बिनु खग अति दीना। मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।
अस मम जितन बंधु बिनुं तोही। जौं जड़ दैव जिआवै मोही॥
उत्तर
(i) प्रस्तुत काव्यांश ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि ‘तुलसीदास’ के द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ के ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ कविता से अवतरित है।
(ii) इसमें कवि ने लक्ष्मण-मूर्छा के पश्चात श्रीराम के व्यथित हृदय की करुण दशा का चित्रण किया है।
(iii) तत्सम प्रधान अवधी भाषा है।
(iv) चौपाई छंद है।
(v) अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री, उदाहरण, विभावना अलंकारों की छटा दर्शनीय है।
(vi) करुण रस का मार्मिक चित्रण है।
(vii) बिंब-योजना सार्थक एवं सटीक है।
(viii) अभिधात्मक शैली का प्रयोग है।

प्रश्न 2.
दारिद-दसानन दबाई दुनी, दुनी दीनबंधु।
दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी॥-काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) प्रस्तुत कवित्त गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित कवितावली से लिया गया है।
(ii) इसमें कवि ने संसार में फैले गरीबी रूपी रावण का वर्णन किया है तथा प्रभु राम से यह प्रार्थना की है कि वह ग़रीबी रूपी रावण को नष्ट करें।
(iii) प्रस्तुत कवित्त में ‘द’ वर्ण की बार-बार आवृत्ति होने से (वृत्यानुप्रास) अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
(iv) दारिद-दसानन’ में रूपक अलंकार की शोभा है।
(v) कवित्त छंद का प्रयोग है।
(vi) तत्सम प्रधान ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
(vii) बिंब योजना अत्यंत सुंदर है।
(viii) भावपूर्ण शैली का चित्रण है।

प्रश्न 3.
तलसीदास ने पेट की आग के विषय में क्या कहा है? उसे किस प्रकार शांत किया जा सकता है?
उत्तर
गोस्वामी तुलसीदास ने पेट की आग को अति भयानक माना है जो हरेक को सता रही है। मजदूर, किसान, व्यापारी, भिखारी, भाट, नौकर-चाकर, कुशल अभिनेता, चोर, दूत, बाजीगर आदि सभी पेट की आग से परेशान हैं। इसे बुझाने के लिए ऊँचे-नीचे सब प्रकार के काम करने को विवश हैं। यह आग तो समुद्र की आग से भी

प्रश्न 4.
तुलसी के कवित्त के आधार पर पेट की आग का वर्णन कीजिए।
अथवा
कवितावली से आप की पाठ्य पुस्तक में उद्धत छंदों के आधार पर सोधारण स्पष्ट कीजिए कि तुलसीदास अपने यूग की आर्थिक विषमताओं की अच्छी तरह समझ है। (C.B.S.E. 2018)
उत्तर
तुलसी मानते हैं कि पेट की आग बड़ी भयंकर है जो हर प्राणी को मृत्यु तक सताती है, परेशान करती है। हर व्यक्ति अपनी-अपनी कुशलता के आधार पर इसी को बुझाने में हर पल लगा रहता है। व्यापारी, मजदूर, किसान, नौकर-चाकर, चोर-दूत, नेता-अभिनेता, बाजीगर, भाट, भिखारी आदि सब इसे बुझाने में ही लगे हुए हैं। पेट के लिए कोई पढ़ता-लिखता है तो कोई कलाएँ सीखता है। कोई विद्याएँ सीखता है तो कोई पर्वतों पर भटकता दिखाई देता है। कोई दिनभर जंगलों में शिकार की खोज में भटकता रहता है। पेट की आग के लिए उनका ध्यान धर्म-कर्म की ओर भी नहीं जाता। लोग पेट की आग को बुझाने के लिए लोग अपने बेटे-बेटी तक को बेच देते हैं। यह आग तो समुद्र की आग से भी भयानक है।

प्रश्न 5.
पेट की आग को समुद्र की आग से भी भयानक क्यों माना गया है?
उत्तर
समुद्र की आग (बड़वानल) जल में भी धधकती रहती है पर वह भी पेट की आग से भयानक नहीं है। पेट की आग बुझाने के प्रयास में तो इनसान जानवर से भी नीचे गिर जाता है। उसका विवेक नष्ट हो जाता है, वह पशु की भाँति हिंसक हो जाता है और उसी की तरह गिर जाता है। वह धर्म-अधर्म, बेटा-बेटी आदि को भुलाकर केवल अपना पेट भरना चाहता है। वह तो इतना नीचे भी गिरने को तैयार हो जाता है कि अपने बेटे-बेटी बेचने को भी तैयार हो जाता है और पशु समान व्यवहार करने लगता है।

प्रश्न 6.
तुलसी ने वेदों-पुराणों के आधार पर वर्तमान के विषय में क्या कहा है?
उत्तर
तुलसी ने वेदों-पुराणों के आधार पर कहा है कि संकट और विपदा के समय में ईश्वर ही कृपा करते हैं, वही दुःखों को मिटाते हैं। तुलसी ने इसी आधार पर माना है कि कलयुग में भी ईश्वर ही दया करेंगे। श्रीराम ही प्राणियों के सभी कष्टों को मिटाएँगे। दरिद्रता रूपी रावण ने सबको अपने चंगुल में फंसा लिया है जिससे सब हाय-हाय करने लगे हैं, त्राहि-त्राहि मच गई है। सब दुखी और परेशान हैं। वर्तमान में कोई भी तो प्रसन्न नहीं है। सब ‘हाय-हाय’ कर रहे हैं।

प्रश्न 7.
तुलसी ने अपने बारे में दुनिया को क्या कहा है? क्यों?
उत्तर
तुलसी ने दुनिया को अपने बारे में कहा है कि उन्हें किसी की कोई परवाह नहीं है। उन्हें कोई धूर्त कहे या अवधूत योगी, राजपूत कहे या जुलाहा, छोटा कहे या बड़ा-उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। उन्हें किसी की बेटी से अपने बेटे की शादी नहीं करनी थी कि जिस से किसी की जाति में बिगाड़ उत्पन्न होता हो। वे तो केवल राम के भक्त हैं। उन्हें जो कोई कहना चाहता है वह कहता रहे। वे माँग कर खा लेते हैं, मसजिद में जाकर सो जाते हैं, अपनी धुन में मस्त रहते हैं और उन्हें दुनिया से न तो कुछ लेना है और न ही देना है। तुलसी ने संभवतः ऐसा इसलिए कहा होगा कि उस समय के लोग उन्हें, उनके विचारों के कारण बुरा-भला कहते होंगे। उनसे व्यवहार नहीं करना चाहते होंगे।

प्रश्न 8.
तुलसी की फक्कड़ता किस प्रकार प्रकट हुई है ?
उत्तर
तुलसी ने गृहस्थ जीवन त्याग दिया था। उनका कोई भी अपना-पराया नहीं था। उन्हें सांसारिक मान-मर्यादाओं से कुछ लेना-देना नहीं था। उन्हें जाति-पाति की कोई परवाह नहीं थी। उन्हें समाज से रिश्ते नहीं बनाने थे, इसलिए वे किसी की कोई परवाह नहीं करते थे। वे खुलेआम कहते थे-‘जाको ऊँचै सो कहै कछु ओऊ’।

प्रश्न 9.
हनुमान ने संजीवनी बूटी ले जाते समय किसकी प्रशंसा की थी और क्यों?
उत्तर
हनुमान ने संजीवनी बूटी ले जाते समय भरत जी की तब प्रशंसा की थी जब वे भरत के बाण पर बैठकर लंका की ओर चले थे। उन्होंने भरत के चरणों की वंदना की थी।

प्रश्न 10.
हनुमान ने भरत के किन गुणों की प्रशंसा की थी और कैसे?
उत्तर
हनुमान ने भरत के मृदु-कोमल स्वभाव, अपार बाहुबल, गुण-धर्म और श्रीराम के प्रति अखंड-प्रेम की मन-ही-मन प्रशंसा की थी।

प्रश्न 11.
लक्ष्मण ने श्रीराम के लिए किन कष्टों को सहा था? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
लक्ष्मण ने अपने मन के भावों के कारण, स्वप्रेरणा और स्वेच्छा से श्रीराम के लिए उनके साथ वन-गमन का निर्णय लिया था। उन्होंने महलों के सुखों का त्याग, नवविवाहिता पत्नी उर्मिला से वियोग और माता-पिता से दूर रहकर जंगलों के सभी कष्टों को सहा था।

प्रश्न 12.
श्रीराम ने लक्ष्मण के बिना स्वयं को क्या माना था?
उत्तर
श्रीराम ने लक्ष्मण के बिना स्वयं को पंगु और शक्तिहीन अनुभव किया था जैसे पंखों के बिना पक्षी, मणि के बिना सर्प, सूंड के बिना हाथी शक्ति विहीन हो जाते हैं। उन्हें लगने लगा था कि लक्ष्मण के बिना कुछ नहीं कर पाएंगे।

प्रश्न 13.
राम ने नारी के संबंध में जो टिप्पणी की है, उस विषय में आप क्या सोचते हैं ?
उत्तर
राम ने नारी के विषय में कहा था ‘नारि हानि विसेष छति नहीं’। उन्होंने अपने भाई की तुलना में नारी को विशेष महत्त्व नहीं दिया था और उनकी क्षति को भाई की क्षति की अपेक्षा कम माना था। वस्तुतः राम ने यह टिप्पणी दुःख और कष्ट के समय अनर्गल चीत्कार करते हुए की थी जिससे उनका अपने भाई के प्रति प्रेम-भाव प्रकट हुआ है। इसके आधार पर राम के नारी विषयक नीति संबंधी विचार नहीं ढूँढ़े जा सकते।

प्रश्न 14.
‘राम का विलाप’ प्रसंग के वाचक कौन हैं? उन्होंने किससे क्या कहा था?
उत्तर
‘राम का विलाप’ प्रसंग के वाचक भगवान शंकर स्वयं हैं। उन्होंने अपनी पत्नी उमा को संबोधित करते हुए कहा था कि देखो, कृपालु भगवान राम नर रूप में किस प्रकार की लीला कर रहे हैं।

प्रश्न 15.
तुलसी की किसके प्रति कैसी आस्था थी?
उत्तर
तुलसी की भगवान राम के प्रति अगाध आस्था थी। वह स्वयं को ‘राम का गुलाम’ मानते थे और उन्हें इस पर गर्व अनुभव होता था। वे स्वयं को राम के चरणों में ही सदा देखना चाहते थे।

प्रश्न 16.
रावण कुंभकरण के पास किस आशा से गया था?
उत्तर
रावण की सेना का बड़ा हिस्सा राम की सेना का शिकार हो चुका था। वह चाहकर भी अपने पक्ष में युद्ध को नहीं मोड़ पाया था। राम की सेना के पराक्रम से एक-एक करके रावण के सारे योद्धा मारे गए थे। रावण की एक ही उपलब्धि थी कि मेघनाथ ने लक्ष्मण को मूर्च्छित कर दिया था। जब लक्ष्मण की मूर्छा टूट गई तो रावण ने सोचा था कि अब राम की सेना लंका पर दुगुने-चौगुने बल से आक्रमण कर उसे नष्ट कर देना चाहेगी। रावण ने निश्चय किया था, वह कुंभकरण की अपार शक्ति का सहारा लेकर राम की सेना को नष्ट कर विजय प्राप्त कर लेगा। इसलिए कुंभकरण सहायता माँगने के लिए वह उससे मिलने गया था।

प्रश्न 17.
कुंभकरण के व्यक्तित्व की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
कुंभकरण अति विशाल शरीरवाला बलशाली योद्धा था। वह रावण का भाई था और देखने में साक्षात यमराज-सा ही प्रतीत होता था। वह घमंडी, मुंहफट, बेपरवाह और स्पष्ट वक्ता था। वह समझदार भी था क्योंकि पूरी बात सुनने के बाद उसने रावण से कहा था कि उसने सीता को चुराकर दुष्टता का काम किया था और अब उसे कोई नहीं बचा सकता था।

प्रश्न 18.
निम्नलिखित काव्याष्ठा को पढ़कर पूछे गए प्रष्ठनों के उत्तर लिखिए : (Outside Delhi 2017, Set-III)
प्रभु प्रलाप सुनि कान, विकल भए वानर निकर।
आइ गयउ हनुमान, जिमि करुना महँ वीर रस।।
(क) काव्याष्ठा किस छंद में है? उसका लक्षण स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांष्ठा में उत्प्रेक्षा अलंकार छटिए और उसका सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ग) काव्यांष्ठा की भाजा की दो विष्ठोजताएँ लिखिए।
उत्तर
(क) काव्यांष्ठा सोरठा छंद में है। सोरठा दोहा का उल्टा होता है। इसमें सम चरणों में 13-13 और विज़म चरणों में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसके विज़म चरणों में तुक होती है।
(ख) ‘आइ गयउ हनुमान, जिमि करुना मह वीर रस’ पंक्ति में उत्प्रेक्षा अलंकार की छटा दीनीय है। इसमें हनुमान के आने से करुणा में वीर रस आने की संभावना व्यक्त की गई है।
(ग) अवधी भाजा है। संगीतात्मकता का प्रवाह है। प्रवाहमयता विद्यमान है।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

1. किसबी, किसान-कुल, बनिक, भिखारी, भाट,
चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी।
पेटको पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त गिरि,
अटत गहन-गन अहन अखेटकी॥
ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,
पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी।
‘तुलसी’ बुझाई एक राम घनस्याम ही तें,
आगि बड़वागितें बड़ी है अगि पेटकी॥ (C.B.S.E. 2008,09, A.I.C.B.S.E. 2011, Set II,C.B.S.E. Outside Delhi 2013, Set-1, Set-III)

शब्दार्थ : किसबी-मजदूर। कुल-परिवार, वंश, समाज। चपल-चंचल। अहन-दिन। बड़वागि–समुद्र की आग। बनिक-बनिया। गिरि-पर्वत। अगि पेटकी-पेट की आग अर्थात पेट की भूख।

प्रसंग : प्रस्तुत कवित्त हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित ‘कवितावली’ के उत्तरकांड से लिया गया है। इसमें कवि ने अपने समय के समाज का यथार्थ अंकन किया है। जहाँ संसार के अच्छे-बुरे सभी प्राणियों का आधार पेट की आग का गहन यथार्थ है जिसको कवि राम रूपी घनस्याम के कृपा-जल से समाधान करने की प्रार्थना करते हैं।

व्याख्या : इस संसार में मजदूर, कृषक, व्यवसायी, वैश्य, भिक्षुक, भाट, नौकर-चाकर, चंचल नट, चोर, दूत, जादूगर सभी लोग अपना पेट भरने के लिए तरह-तरह के कार्यों को करते हैं। वे अनेक करिश्मों को करते हैं-यहाँ तक कि पर्वतों पर चढ़ते हैं। वे बड़े-बड़े कठिन कार्यों को करते हैं, घने जंगलों में पर्वतों पर चढ़ जाते हैं। शिकारी के रूप में सारा दिन भटकते रहते हैं।

पेट ऐसी ही बला है जिसके लिए लोग दर-दर की ठोकरें खाते फिरते हैं। उचितानुचित कार्य करने में भी वे नहीं हिचकिचाते हैं। धर्म-अधर्म की भावना लोगों में नहीं रह गई है। यहाँ तक कि अपने इस पेट को भरने के लिए अपने पुत्र-पुत्रियों को भी बेच डालते हैं। यह पेट की अग्नि समुद्र की आग से भी कहीं बढ़कर सिद्ध हो रही है। अब ऐसी भीषण अग्नि की शांति मेघ रूपी श्रीराम से ही हो सकती है अर्थात प्रभु राम की कृपा हो जावे तो यह भूख, जिसको शांत करने के लिए लोग भटक रहे हैं, शांत हो सकती है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. इस संसार में पेट भरने के लिए कौन-कौन कार्य करते हैं?
2. कलयुग में अपना पेट भरने के लिए लोग क्या-क्या करते हैं?
3. कवि के अनुसार पेट की आग को कौन बुझा सकता है?
4. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. इस संसार में पेट भरने के लिए मजदूर, किसान कुल, व्यापारी, भिखारी, भाट, नौकर-चाकर, चोर, दूत, जादूगर आदि सभी कार्य करते हैं।
2. कलयुग में अपना पेट भरने के लिए लोग दर-दर की ठोकरें खाते हैं धर्म-अधर्म के ऊँचे-नीचे कार्य करने में भी नहीं हिचकिचाते हैं यहाँ तक कि वे अपने बेटा-बेटी को भी बेचने के लिए तैयार हो जाते हैं।
3. कवि के अनुसार पेट की आग को राम रूपी घनस्याम ही बुझा सकता है।
4. काव्य-सौंदर्य

  • समाज का यथार्थ अंकन हुआ है।
  • कवित्त छंद का प्रयोग है।
  • तत्सम-प्रधान ब्रजभाषा का प्रयोग हुआ है।
  • अभिधात्मक शैली का प्रयोग है।
  • बिंब योजना सुंदर एवं सटीक है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री अलंकारों की छटा है।

2. खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,
बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।
जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,
कहँ एक एकन सों कहाँ जाई, का करी?
बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,
साँकरे सबें पै, राम! रावर कृपा करी।
दारिद-दसानन दबाई दुनी, दुनी, दीनबंधु
दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी॥ (C.B.S.E. Sample Paper AIC.B.S.E. 2014 Set-I, II, III)

शब्दार्थ : बनिक-बनिया। चाकर-नौकर, काम करने वाला। सीद्यमान-दुखी। एक-एकन सो-एक-दूसरे को, आपस में। बेदहूँ-वेद।सांकरे-संकटकाल में। दारिद-दसानन-दरिद्रता रूपी रावण। दीनबंधु-दीन-दुखियों या गरीबों के भाई । हहा करी-प्रार्थना करना। बनिज-व्यापार । चाकरी-नौकरी, काम। सोच बस-शोक वश।का करी-क्या करें। पुरान-पुराण । रावरें-सलोने। दुनी-दुनियाँ। दुरित-दहन-पापों को भस्म करने वाला।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि ‘तुलसीदास’ द्वारा रचित कवितावली के ‘उत्तरकांड’ से लिया गया है। इसमें कवि ने प्रकृति और शासन की विषम से अपनी गरीबी और बेकारी की पीड़ा का यथार्थपरक चित्रण किया है तथा प्रभु राम से इसे दूर करने की प्रार्थना की है।

व्याख्या : तुलसी जी समकालीन समाज में व्याप्त गरीबी और बेकारी का यथार्थ चित्रण करते हुए प्रभु राम को संबोधन करके कहते हैं कि हे दीनबंधु! समाज में हर तरफ़ गरीबी और बेकारी का बोलबाला है। यहाँ प्रत्येक व्यक्ति दुखी है। किसान के पास खेती करने के लिए उचित साधन नहीं हैं जिससे वह खेती पैदा नहीं कर सकता। भिखारी को भीख नहीं मिलती। कोई संपन्न व्यक्ति नहीं जो भीख दे सके। व्यापारी के पास कोई व्यापार नहीं है जिससे उसकी आजीविका चल सके।

नौकरों तथा कार्य करनेवाले लोगों को नौकरी या काम नहीं मिल पाता। समाज में किसी के पास भी आजीविका चलाने का कोई साधन नहीं है। वे सब बेकारी के कारण शोक वश दुखी हैं। समाज का प्रत्येक वर्ग दीनहीन एवं दुखी है। दुखी होकर वे आपस में एक-दूसरे को यही कहते हैं कि अब कहाँ जाएँ और क्या करें जिससे जीवन-यापन हो सके। कवि कहते हैं कि हे राम! वेदों और पुराणों में कहा गया है और संसार में भी ऐसा देखा गया है कि भीषण संकट की स्थिति में साँवले प्रभु राम ही कृपा करते हैं।

अतः हे प्रभु! आप सभी पर अपनी कृपा करें। आज समाज का प्रत्येक व्यक्ति पीड़ित है। हे दीन-दुखियों की रक्षा करनेवाले दीनबंधु ! इस समय संपूर्ण समाज को गरीबी रूपी रावण ने दबा रखा है अर्थात दुनिया में हर कहीं गरीबी रूपी रावण का साम्राज्य है। चारों तरफ़ गरीबी फैली हुई है। तुलसी जी प्रभु से प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि हे दरिद्रता को जला देनेवाले प्रभु! आप तो कष्टों का नाश करनेवाले है। अतः आप ही हमें इस गरीबी से निकालिए। आप ही दुनिया से गरीबी को दूर करें।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. इस काव्यांश के कवि तथा कविता का नाम बताएँ।
2. समाज में लोगों के पास क्या अभाव है?
3. समाज में आजीविका से हीन लोग क्या सोचते हैं?
4. वेदों और पुराणों में क्या कहा गया है?
5. ‘दारिद-दसानन दवाई दुनी, दुनी, दीनबंधु’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
6. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. इस काव्यांश के कवि का नाम गोस्वामी तुलसीदास है तथा कविता का नाम ‘कवितावली’ है।
2. समाज में किसान के पास खेती नहीं है, भिखारी को भीख नहीं मिलती, व्यापारी के पास व्यापार के साधन नहीं हैं तथा चाकर के पास
करने के लिए काम नहीं है।
3. समाज में आजीविका से हीन लोग सोचते हैं कि वे अब कहाँ जाएँ और क्या करें जिससे उनकी आजीविका चल सके।
4. वेदों और पुराणों में कहा गया है कि संकट के समय में प्रभुराम सभी पर कृपा करते हैं तथा सब दुखों को हर लेते हैं।
5. इस पंक्ति का भाव है कि समाज में फैले गरीबी रूपी रावण को दीन-दुखियों के रक्षक प्रभु राम ही नष्ट कर सकते हैं अर्थात गरीबी में
राम ही कृपा करनेवाले हैं।
6. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने समकालीन समाज की गरीबी और दरिद्रता का यथार्थ चित्रण किया है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।
  • ‘दारिद-दसानन’ में रूपक अलंकार है।
  • ब्रजभाषा तत्सम, तद्भव शब्दावली से युक्त है।
  • कवित्त छंद का सुंदर प्रयोग है।
  • सामाजिक बिंब का सुंदर वर्णन है।

3. धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूत कही, जोलहा कही को।
काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहू की जाति बिगार ना सोऊ॥
तुलसी सरनाम गुलामु है राम को, जाको रुचै सो कहै कछु ओऊ।
माँगी कै खैबो, मसीत को सोइबो, लैबोको एकु न दैबको दोउ। (C.B.S.E. Outside Delhi, 2013, Set-III)

शब्दार्थ : धूत-त्यागा हुआ। रजपूत-राजपूत। कोऊ-कोई। रुचै-अच्छा लगना। सोइबो-सोना। अवधूत-संन्यासी, विरक्त। जोलहा-जुलाहा। काहूको-किसी की। मसीत-मसजिद । लैबो एकु न दैवको दोउ-लेना एक न देना दो (लोकोक्ति)।

प्रसंग : प्रस्तुत सवैया ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि तुलसीदास द्वारा रचित ‘कवितावली’ के उत्तरकांड से लिया गया है। इसमें भक्त हृदय के आत्मविश्वास का चित्रण है तथा कवि ने समाज में व्याप्त जातिवाद और धर्म का खंडन किया है।

व्याख्या : भक्त तुलसीदास जी आत्मविश्वास को प्रकट करते हुए कहते हैं कि समाज में मुझे चाहे कोई त्यागा हुआ कहे या संन्यासी, कोई जाति का राजपूत कहे या जुलाहा, मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फिर मुझे किसी की बेटी से बेटे की शादी नहीं करनी जिससे किसी की जाति बिगड़ जाएगी। तुलसी जी जाति-धर्म का खंडन करते हुए कहते हैं कि मैं तो केवल प्रभु राम का दास हूँ फिर जिसे जो अच्छा लगे वह कहता रहे। मुझे किसी की जाति-धर्म से कोई सरोकार नहीं है। तुलसी जी कहते हैं कि मुझे किसी से कोई लेना-देना नहीं है। मैं तो भीख माँगकर पेट भरता हूँ और मसजिद में सोता हूँ। मैं तो पूर्ण रूप से प्रभु राम की शरण में समर्पित हो गया हूँ। मुझे संसार से कोई मतलब नहीं है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. ‘धूत कहौ, अवधूत कही, रजपूत कही, जोलहा कही कोऊ’ पंक्ति के माध्यम से कवि किन पर क्या व्यंग्य करता है?
2. कवि अपना जीवन कैसे जीता है?
3. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. इस पंक्ति के माध्यम से कवि समाज के उन ठेकेदारों पर व्यंग्य करता है जो जाति, धर्म, संप्रदायवाद को बढ़ावा देते हैं। वे कहते हैं कि मुझे चाहे कोई त्यागा हुआ कहे या संन्यासी, राजपूत कहे या जुलाहा कहे उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उसे इन सबसे कोई लेना-देना नहीं
2. कवि लोगों से माँगकर खाते हैं और मसजिद में निश्चिंत होकर सोते हैं। उन्हें न तो किसी से कुछ लेना है और न देना है।
3. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने समाज में फैली जातिवाद तथा धर्म का खंडन किया है।
  • सवैया छंद है।
  • ‘लेना एक न देना दो’ लोकोक्ति का सटीक प्रयोग है।
  • भाषा सहज, सरल, प्रवाहमयी है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है।
  • बिंब-योजना का सुंदर प्रयोग है।
  •  लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप

4. तव प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरंत।
अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत॥
भरत बाहुबल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार।
मन महुँ जात सराहत पुनि-पुनि पवनकुमार।। (C.B.S.E. 2013, Set-I, Set-II, Set-III)

शब्दार्थ : तव-तुम्हारा। उर-हृदय। जैहउँ-जाऊँगा। अस-ऐसा, इस तरह। पद-चरण, पैर, पाँव। बाहुबल-भुजाओं की शक्ति। गुन-गुण। प्रीति-प्यार। महुँ-में। पुनि-पुनि-बार-बार, फिर-फिर। प्रताप-बल। राखि-रखकर। तुरंत-इसी समय, अभी। आयसु-आज्ञा। बंदि-बंदना। सील-शील, स्वभाव। अपार-असीम, अनंत। सराहत-सराहना कर रहे है, बड़ाई कर रहे हैं। पवनकुमार-पवनपुत्र अर्थात हनुमान।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ के लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ नामक प्रसंग से अवतरित किया गया है। इसमें कवि ने लक्ष्मण-मूर्छा प्रसंग का करुण चित्रण प्रस्तुत किया है। हनुमान जी युद्ध-भूमि में मूर्च्छित पड़े लक्ष्मण के लिए संजीवनी बूटी लेकर जा रहे थे तो भरत जी ने उन्हें राक्षस समझकर तीर मारा। हनुमान जी राम नाम लेते हुए मूर्च्छित हो गए। तब भरत ने उन्हें राम का दूत समझकर उन्हें स्वस्थ किया और उनसे सब स्थिति जानकर पछताने लगे। समय व्यतीत होता
देखकर उन्होंने हनुमान जी को अपने बाण पर चढ़कर प्रस्थान करने के लिए कहा जिससे वे शीघ्र ही वहाँ पहुँच सकें।

व्याख्या : हनुमान जी भरत जी से कहते हैं कि हे प्रभु! मैं आपका प्रताप हृदय में रखकर शीघ्र ही अपने स्वामी अर्थात श्रीराम के पास चला जाऊँगा। ऐसा कहकर और आज्ञा पाकर तथा भरत जी के चरणों की वंदना करके हनुमान जी ने वहाँ से प्रस्थान किया। भरत जी के बाहुबल, शील, गुणों और प्रभु राम के चरणों के प्रति उनके अपार प्रेम की मन-ही-मन बार-बार सराहना करते हुए पवनपुत्र हनुमान जी चले जा रहे हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. इस काव्यांश में कौन किससे प्रार्थना कर रहे हैं?
2. हनुमान जी भरत जी से क्या प्रार्थना करते हैं और वे कहाँ जाना चाहते हैं?
3. हनुमान जी भरत जी के किन गुणों की सराहना करते हैं?
4. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. इस काव्यांश में भक्त हनुमान जी भरत जी से प्रार्थना कर रहे हैं।
2. हनुमान जी भरत जी प्रार्थना करते हुए कहते हैं कि वे उनका यश हृदय में रखकर संजीवनी बूटी लेकर तुरंत श्रीराम के पास जाना चाहते हैं।
3. हनुमान जी भरत जी की भुजाओं की शक्ति, शील, स्वभाव आदि गुणों की सराहना करते हैं।
4. काव्य-सौंदर्य

  • इन पंक्तियों में कवि ने भरत के राम के प्रति स्नेह तथा हनुमान दवारा भरत की सराहना का वर्णन किया गया है।
  • अवधी भाषा का प्रयोग है।
  • तत्सम शब्दावली का प्रचुर प्रयोग है।
  • करुण रस है।
  • भावपूर्ण शैली की योजना है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री, पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों की छया दर्शनीय है।
  • दोहा छंद का प्रयोग है।
  • अभिधा शब्द-शक्ति है।
  • बिंब-योजना सार्थक एवं सटीक है।

5. उहाँ राम लछिमनहि निहारी। बोले बचन मनुज अनुसारी॥
अर्ध राति गड़ कपि नहिं आयउ। राम उठाइ अनुज उर लायऊ॥
सकहु न दुखित देखि मोहि काका बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ॥
मम हित लागि तजेहु पितु माता। सहेहु विपिन हिम आतप बाता॥ (C.B.S.E. Sample Paper 2012, Set-1)

शब्दार्थ : उहाँ-वहाँ। निहारी-देखा। अर्थ-आधी। कपि-वानर अर्थात हनुमान। अनुज-छोटा भाई लक्ष्मण। लायक-लगाया। दुखित-दुखी। बंधु-भाई। मृदुल-कोमल। मम-मेरा। सहेहु-सहन किया। आतप-गरमी। लच्छिमनहि-लक्ष्मण को। मनुज-अनुसारी-मनुष्य के अनुसार। राति-रात। आबउ-आए। उर-हदय। सकहु-सके। मोहि-मुझे। तव-तुम्हारा। सुभाऊ-स्वभाव। हित-भला। तजेह-छोड़ दिया। हिम-वरफ़, सरदी। वाता-वायु, आँधी।

प्रसंग : यह काव्यांश तुलसीदास रचित ‘लक्ष्मण-मूछा और राम का विलाप’ कविता से अवतरित है। इसमें कवि ने लक्ष्मण-मू के समय श्रीरामचंद्र की करुण दशा का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या : प्रभु राम की करुणावस्था का चित्रांकन करते हुए कवि जी कहते हैं कि युद्ध-क्षेत्र में मूर्छित हुए लक्ष्मण को देखकर एक साधारण मनुष्य की तरह कहने लगे अर्थात कवि का आशय यह है कि लक्ष्मण के मूर्छित होने पर श्रीराम का हृदय इतना व्याकुल हो उठा कि वे एक साधारण मानव की तरह विलाप करने लगे। वे लक्ष्मण को देखकर करुण दशा में बोल पड़े कि आधी रात व्यतीत हो गई है लेकिन अभी तक हनुमान जी औषधि लेकर नहीं आए।

यह कहकर राम ने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया। कहने का भाव है कि हनुमान के न आने पर श्रीराम जी बहुत ज्यादा व्याकुल हो गए और उन्होंने अपने छोटे भाई लक्ष्मण को उठाकर हृदय से लगा लिया। श्री रामचंद्र लक्ष्मण को याद करते हुए व्याकुल होकर कहते हैं कि हे भाई! तुम्हारा स्वभाव सदा से ही बहुत कोमल है इसलिए तुम मुझे कभी भी दुखी नहीं देख सके अर्थात सदैव तुमने दुखों में मेरी सहायता की है।

श्रीराम विलाप करते हुए कहते हैं कि हे भाई ! मैं तुम्हारी महानता का कहाँ तक बखान करूँ। तुमने तो मेरी भलाई के लिए अपने माता-पिता को भी छोड़ दिया तथा अयोध्या के ऐश्वर्यपूर्ण जीवन को छोड़कर तुम मेरे साथ जंगलों में चले आए। यहाँ तुमने जंगलों की भयानक सरदी, गरमी, आँधी और तूफानों को सहन किया। हे भाई! तुमने मेरे खातिर अपने सुखों को त्यागकर सदैव मेरा हित किया।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. राम किसको देखकर कैसे बोलते हैं?
2. राम व्याकुल होकर क्या करते हैं? .
3. राम मूर्छित लक्ष्मण को संबोधन कर क्या कहते हैं?
4. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. राम मूर्छित लक्ष्मण को देखकर एक सामान्य मनुष्य की भाँति बोलते हैं।
2. राम व्याकुल होकर कहते हैं कि आधी रात बीत गई है लेकिन हनुमान जी अभी तक नहीं आए। यह कहकर वे लक्ष्मण को उठाकर अपने हृदय से लगा लेते हैं।
3. राम मूर्छित लक्ष्मण को संबोधन कर कहते हैं कि हे भाई! तुम मुझे कभी दुखी नहीं देख सके। तुम्हारा सदैव कोमल स्वभाव रहा है तुमने मेरे हित के लिए माता-पिता को भी छोड़ दिया और मेरे साथ जंगलों की सरदी, गरमी और आँधियों को सहा।
4. काव्य-सौंदर्य

  • इन पंक्तियों में श्रीराम के विलाप का करुण चित्रण है।
  • श्रीराम ने अपने मुख से लक्ष्मण के आदर्श रूप का चित्रण किया है।
  • तत्सम प्रधान अवधी भाषा का अंकन है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है।
  • करुण रस का मार्मिक अंकन है।
  • अभिधात्मकता का सुंदर चित्रण है।
  • चौपाई छंद का प्रयोग है।

6. सो अनुराग कहाँ अब भाई। उठहु न सुनि मम बच बिकलाई॥
जाँ जनतेउँ बन बंधु बिछोहू। पिता बचन मनतेॐ नहिं ओह॥
सुत बित नारि भवन परिवारा। हौहि जाहि जग बारहिं बारा॥
अस बिचारि जियें जागहु ताता। मिलइन जगत सहोदर भाता॥ (C.B.S.E. Delhi 2008, 2009, 2011 Set-I, 2012, Set-1, 2014 Set-I, II, III)

शब्दार्थ : सो-वह। उठहु-उठो। बच-वचन। जौं-यदि। बंधु-भाई अर्थात लक्ष्मण। मनतेऊँ-मानता। सुत-बेटा, पुत्र। नारि-स्त्री,पत्नी। परिवारा-परिवार, कुल। बारहिं-बार। विचारि-सोचकर। ताता-भाई। अनुराग-प्रेम, प्रीति, लगाव। समु-मेरा, मेरे। बिकलाई-व्याकुल। जनतेउँ-जानता। बिछोहू-बिछोह, विरह। ओहू-आऊँ। बित-धन, संपत्ति। भवन-घर, महल। जग-संसार। अस-ऐसा, इस तरह। जियं-हदय। सहोदर-एक ही माँ के पेट से जन्मा भाई। प्रस्तुत पंक्तियाँ गोस्वामी तुलसीदास विरचित ‘आरोह भाग-2’ में संकलित रामचरितमानस के ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’

प्रसंग : से अवतरित हैं। इसमें कवि तुलसीदास जी ने लक्ष्मण-मूर्छा के समय श्रीरामचंद्र जी के हृदय की व्याकुल अवस्था का मार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या : श्री रामचंद्र जी दुखी हृदय से अपने अनुज लक्ष्मण को संबोधन करते हुए कहते हैं कि हे भाई लक्ष्मण ! वह पहलेवाला प्यार, लगाव अब कहाँ है अर्थात जब तुम मुझे कभी दुखी नहीं देख सकते थे। मेरे कारण आपने माता-पिता को छोड़ दिया तथा वन में चले आए। अब मेरे प्रति आपका वह प्रेम कहाँ लुप्त हो गया है ? तुम पहले की तरह मुझसे प्रेम क्यों नहीं करते। श्रीराम जी अत्यंत विलाप करते हुए कहते हैं कि हे भाई।

उठो, तुम मेरे वचनों की व्याकुलता को सुनो। मेरे व्याकुल वचनों को सुनकर तुम उठकर बैठ जाओ और पहले की तरह मुझसे प्यार करो। राम अत्यंत दुखी हृदय से पश्चात्ताप करते हुए कहते हैं कि यदि मैं यह जानता कि वन में भाई का बिछोह होगा तो मैं पिता जी के वचनों को ही नहीं मानता और न यहाँ कभी वन में आता। यदि मुझे आभास होता कि वन में जाने के बाद मुझसे आपका बिछोह होगा तो मैं कदापि पिता के वचन न मानता।

श्री रामचंद्र जी लक्ष्मण को संबोधन करते हुए दुखी मन से कह रहे हैं कि हे भाई ! इस नश्वर संसार में पुत्र, धन संपत्ति, पत्नी, महल और परिवार बार-बार मिल जाते हैं और बार-बार नष्ट होते हैं लेकिन अपार यत्न करने पर भी संसार में एक माँ के पेट से जन्म लेनेवाला सगा भाई नहीं मिलता। इसीलिए हे तात ! तुम हृदय में ऐसा विचार करके जागृत हो जाओ। कवि का अभिप्राय यह है कि इस संसार में पुत्र-पत्नी, धन-संपत्ति, भवन और परिवार तो बार-बार मिल जाते हैं लेकिन लक्ष्मण जैसा आदर्श भाई कभी दोबारा नहीं मिल सकता।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. श्रीराम व्याकुल होकर क्या कह रहे हैं?
2. संसार में बार-बार क्या-क्या आते जाते रहते हैं?
3. संसार में पुन: क्या नहीं मिलता?
4. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. श्रीराम व्याकुल होकर कह रहे हैं कि हे भाई लक्ष्मण, वह पहलेवाला प्यार आज कहाँ है। यदि मैं यह जानता कि वन में आकर अपने भाई को खो दूंगा तो मैं कभी भी पिता की बात नहीं मानता।
2. संसार में पुत्र, धन, नारी, भवन और परिवार बार-बार आते-जाते रहते हैं।
3. संसार में पुनः सहोदर भाई नहीं मिलता।
4. काव्य-सौंदर्य

  • श्री रामचंद्र जी के हृदय की व्याकुलता का चित्रण हुआ है।
  • चौपाई छंद का प्रयोग है।
  • अवधी भाषा है जिसमें तत्सम, तद्भव शब्दों का प्रयोग हुआ है।
  • करुण रस का सजीव वर्णन है।
  • अभिधात्मक शैली का प्रयोग है।
  • बिंब सुंदर एवं सजीव है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री अलंकारों का स्वाभाविक चित्रण हुआ है।

7. जथा पंख बिनु खग अति दीना।
मनि बिनु फनि करिबर कर हीना।
अस मम जिवन बंधु बिनु तोही।
जौं जड़ा दैव जिआवै मोही। (C.B.S.E. Delhi 2009, 2011 Set-1)
जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई।
नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई॥
बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं।
नारि हानि बिसेष छति नाहीं॥ (C.B.S.E. Delhi 2008, 09, A.L.C.B.S.E. 2009, 2011)

शब्दार्थ : जथा-जिस प्रकार, जैसे। खग-पक्षी। दीना-दीन-हीन। फनि-साँप। कर-सूंड। मम-मेरा। बंधु-भाई। जैहउँ-जाऊँगा। कवन-कौन। लाई-लेकर। गंवाई-गवा दिया। अपजस-अपयश, कलंक। जग-संसार। बिसेष- विशेष। बिनु-के बिना। अति-बहुत अधिक। मनि-मणि। करिबर-हाथी श्रेष्ठ। अस-ऐसा, इस प्रकार, ऐसे। जिवन-जीवन। तोही-तुम्हारे। अवध अयोध्या। मुहु-मुँह । हेतु-के लिए। बरु-चाहे, ओर। सहतेउँ-सहन करना पड़ेगा। माहीं-में। छति-हानि, क्षति।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि ‘तुलसीदास’ द्वारा रचित रामचरितमानस के ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ प्रसंग से अवतरित किया गया है। इसमें कवि ने लक्ष्मण की अचेत अवस्था के पश्चात श्री रामचंद्र जी के मन की व्यथा का सजीव अंकन किया है।

व्याख्या : तुलसीदास जी का कहना है कि श्रीरामचंद्र जी अपने अनुज को संबोधन करके कहते हैं कि हे भाई लक्ष्मण, जिस प्रकार पंख के बिना पक्षी अत्यंत दीन है। मणि के बिना साँप तथा सैंड के बिना श्रेष्ठ हाथी बिलकुल हीन एवं तुच्छ है। उसी प्रकार हे भाई, आपके बिना मेरा जीवन भी व्यर्थ है। फिर शायद भाग्य केवल मुझे निर्जीव की भाँति जीवित रखना चाहता है।

श्रीराम जी मानते हैं कि जैसे पंख के बिना पक्षी उड़ नहीं सकते, मणि के बिना जैसे साँप का जीवन असंभव है तथा सूंड के बिना श्रेष्ठ हाथी का जीवन व्यर्थ है वैसे ही तुम्हारे बिना मुझ राम का जीवन भी व्यर्थ है। कवि का कथन है कि राम मानसिक रूप से अत्यंत दुखी हैं। वे मन-ही-मन में मंथन कर रहे हैं कि अब मैं लक्ष्मण के बिना अयोध्या क्या मुँह लेकर जाऊँगा। जब माता-पिता और अयोध्यावासी उनके बारे में पूछेगे तो मैं क्या जवाब दूंगा।

वे सब तो यही समझेंगे कि राम ने अपनी पत्नी के लिए अपने प्रिय भाई लक्ष्मण को न्योछावर कर दिया। इस प्रकार अयोध्यावासी अनेक आरोप लगाएँगे और संसार में यह कलंक सहना पड़ेगा कि श्रीरामचंद्र जी ने अपनी पत्नी सीता के लिए प्रिय भाई को गँवा दिया। कवि कहते हैं कि राम अपने मन ही मन यह सोचते हैं कि इस संसार में नारी की हानि कोई महत्त्वपूर्ण क्षति नहीं है। मैंने सीता को गँवा दिया था। यह मेरे लिए कोई विशेष हानि नहीं थी लेकिन प्रिय भाई की क्षति मेरे लिए अपयश सहने के समान है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. भाई के बिना श्रीराम को अपना जीवन कैसा लगता है ?
2. श्रीराम को अवध जाने पर क्या डर है?
3. श्रीराम के मतानुसार किसकी हानि विशेष नहीं है?
4. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
5. यह किसका प्रलाप है और क्यों किया जा रहा है?
6. ‘फणी’ और ‘करिबर’ से तुलना का औचित्य बताइए।
7. अवध लौटने में किस प्रकार का संकोच बताया गया है?
8. काव्यांश के आधार पर नारी के प्रति तुलसी के दृष्टिकोण पर टिप्पणी कीजिए। (Delhi C.B.S.E.2016)
उत्तर
1. भाई के बिना श्रीराम को अपना जीवन ठीक वैसे ही लगता है जैसे पंखों के बिना पक्षी का तथा मणि के बिना साँप का जीवन सैंड के बिना हाथी का जीवन होता है। तात्पर्य यह है कि भाई के बिना राम को अपना जीवन व्यर्थ लगता है।
2. श्रीराम को अवध जाने पर यह डर है कि उनसे अवध के लोग यह कहेंगे कि उन्होंने नारी के लिए अपने प्रिय भाई को ही गवा दिया।
3. श्रीराम के मतानुसार नारी की हानि विशेष नहीं है।
4. काव्य-सौंदर्य

  • कवि तुलसीदास जी ने श्रीराम की मनोव्यथा को अभिव्यक्त किया है।
  • अनुप्रास, विभावना, पदमैत्री, स्वरमैत्री अलंकारों की शोभा है।
  • करुण रस का मार्मिक अंकन है।
  • तत्सम प्रधान अवधी भाषा का प्रयोग है।
  • अभिधा शब्द-शक्ति है।
  • बिंब-योजना की सजीव अभिव्यक्ति हुई है।
  • चौपाई छंद का प्रयोग है।

5. यह श्रीराम का प्रलाप हैं। यह इसलिए किया जा रहा है क्योंकि उनके प्रिय अनुज लक्ष्मण मूर्छित पड़े हैं। कविता भी उड़ान भरती है और चिड़िया भी उड़ान भरती हैं।
6. जैसे मणि के बिना साँप (फणी) तथा सैंड के बिना हाथी का जीवन व्यर्थ है ठीक वैसे ही लक्ष्मण के बिना राम का जीवन भी व्यर्थ है। लक्ष्मण श्रीराम के प्रिय अनुज हैं। लक्ष्मण के बिना राम का जीवन अधूरा है।
7. अवधवासी ये कहेंगे कि श्रीराम ने अपनी पत्नी सीता के कारण लक्ष्मण को न्योछावर कर दिया। वे स्वार्थी निकले-अवध लौटने में यही संकोच बताया गया है।
8. काव्यांश के आधार पर नारी के प्रति तुलसी का दृष्टिकोण सकारात्मक प्रतीत नहीं होता। समाज में नारी की विशेष प्रतिष्ठा नहीं है। यही कारण है कि नारी की हानि को वे विशेष स्थान नहीं देते।

8.अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहिहि निठुर कठोर उर मोरा॥
निज जननी के एक कुमारा। तात तासु तुम्ह प्रान अधारा
को सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी। सब बिधि सुखद परम हित जानी॥
उतरु काह देहउँ तेहि जाइ। उठि किन मोहि सिखावहु भाई॥ (A.I.C.B.S.E 2011)

शब्दार्थ : अपलोकु-इस संसार में। तोरा-तुम्हारा। निठुर-निष्ठुर निर्दय, कठोर। उर-हृदय। निज-अपनी। तात-भाई। तुम्ह-तुम्ही। सौंपेसि-सौंपा था। तुम्हहि-तुम्हारा। पानी-हाथ। सुखद-सुखी। जानी-जानकर। काह-क्या। तेहि-उनको। मोहि-मुझे। सुत-बेटा। सहिहि-सहन कर लेगा। कठोर-निर्दय, दयाहीन। मोरा-मेरा। जननी-माँ (सुमित्रा)। तासु-उनके। अधारा-आधार। मोहि-मुझे। गहि-पकड़कर। सब बिधि-सब प्रकार से। हित-हितैषी। उतरु-उत्तर। देहऊँ-दूंगा। जाइ-जाकर। सिखावहु-सिखाओ।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश रामचरितमानस के ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ नामक कविता से लिया गया है। इसके कवि तुलसीदास जी हैं जो राम काव्यधारा के मुकुट शिरोमणि माने जाते हैं। इस चौपाई में कवि ने श्री रामचंद्र की मनोव्यथा का सजीव चित्रण किया है।

व्याख्या : श्री रामचंद्र जी लक्ष्मण को संबोधन करते कह रहे हैं कि हे तात! आपकी इस क्षति को तो मेरा निष्ठुर और निर्दयी हृदय सहन कर लेगा अर्थात तुम्हारी मृत्यु से मुझे जो दुख-वेदना हुई उसे तो मेरा कठोर हृदय किसी भी तरह सह लेगा किंतु मैं अयोध्या में जाकर माँ सुमित्रा को कैसे कहूँगा कि अब तुम्हारा पुत्र लखन इस संसार में नहीं रहा। कवि कहता है कि श्रीराम इसी चिंता से ग्रस्त हैं कि लक्ष्मण की मृत्यु का समाचार व उनकी माँ को किस प्रकार देंगे? श्रीराम कहते हैं कि हे भाई!

अपनी माँ सुमित्रा के तुम इकलौते पुत्र थे और तुम्हीं उनके प्राणों के आधार थे। राम इसी चिंता में हैं कि अब माँ सुमित्रा लक्ष्मण के बिना कैसे जी सकेंगी। राम कहते हैं कि हे भाई! अयोध्या से वन-प्रस्थान करते समय सुमित्रा माता जी ने मुझे सब प्रकार से सुखद और परम हितैषी जानकर तुम्हारा हाथ पकड़कर मुझे सौंपा था। अर्थात माता सुमित्रा ने तुम्हारा हाथ मुझे इसलिए सुपुर्द किया था कि मैं प्रतिपल आपको सुख प्रदान करूंगा तथा प्रतिपल आपकी रक्षा करूँगा।

राम अत्यंत उदास होकर कहते हैं कि हे भाई लक्ष्मण, अब मैं अयोध्या जाकर माता सुमित्रा जी को क्या उत्तर दूंगा। तुम्हीं स्वयं उठकर मुझे कुछ सिखाओ। तुम्हीं बताओ कि तुम्हारी माता जी के प्रश्नों का क्या उत्तर दूंगा जब वे पूछेगी कि मेरा पुत्र! लक्ष्मण कहाँ है जिसको मैंने तुम्हारे हाथों सौंपा था।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. श्रीराम व्याकुल होकर क्या कहते हैं?
2. लक्ष्मण को किसने और कैसे राम को सौंपा था?
3. अत्यंत दुखी होकर श्रीराम लक्ष्मण को क्या कहते हैं ?
4. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. श्रीराम व्याकुल होकर कहते हैं कि वह भाई की मृत्यु के दुख को तो सह लेंगे लेकिन अयोध्या में जाकर माँ सुमित्रा को कैसे कहेंगे कि अब उनका बेटा लक्ष्मण इस दुनिया में नहीं रहा।
2. लक्ष्मण को उसकी माँ सुमित्रा ने उसका हाथ पकड़ाकर राम को सौंपा था।
3. अत्यंत दुखी होकर श्रीराम लक्ष्मण को कहते हैं कि हे भाई! तुम्हीं मुझे सिखाओ कि मैं माता सुमित्रा को अयोध्या जाकर क्या उत्तर दूंगा, ___ जिन्होंने मुझे सब प्रकार से तुम्हारा हितैषी जानकर तुम्हें सौंपा था।
4. काव्य-सौंदर्य

  • श्रीराम जी के विलाप का कारुणिक चित्र उपस्थित हुआ है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री का स्वाभाविक चित्रण हुआ है।
  • चौपाई छंद का अंकन है।
  • करुण रस है।
  • अभिधात्मक शैली है।
  • अवधी भाषा का प्रयोग है जिसमें तत्सम शब्दावली की प्रधानता है।
  • बिंब-योजना सजीव एवं सार्थक है।

9. बहु बिधि सोचत सोच बिमोचन। स्रवत सलिल राजिव दल लोचन॥
उमा एक अखंड रघुराई। नर गति भगत कृपाल देखाई॥

शब्दार्थ : बहु-अनेक। सोचत-सोचकर । स्रवत-बहना। राजिव-दल। उमा-शांति, क्रांति, पार्वती। रघुराई-रघुवंश के पुत्र अर्थात श्रीराम। कृपाल-कृपा करके। बिधि-प्रकार, तरह । सोच बिमोचन-शोक दूर करनेवाला। सलिल-जल, पानी।लोचन-नेत्र। अखंड-जो खंडित न हो। नर गति-सामान्य मनुष्य जैसी दशा। देखाई-दिखाई।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ तुलसीदास द्वारा रचित रामचरितमानस के ‘लक्ष्मण-मूर्छा’ और ‘राम का विलाप’ प्रसंग से अवतरित हैं। इसमें कवि ने लक्ष्मण-मूर्छा से व्यथित राम की मानसिक वेदना का करुण चित्रण उपस्थित किया है

व्याख्या : तुलसीदास कहते हैं कि श्रीराम जी ने इस असहाय दुख पर अनेक प्रकार से चिंतन तथा सोच-विचार करके अपनी अपार पीड़ा को शांत कर लिया। तभी उनकी कमल-सी पंखुड़ियों रूपी दोनों आँखों से आँसू प्रवाहित होने लगे। उमापति श्रीराम जो अजर-अमर एवं शाश्वत हैं। वे सामान्य मानव की भाँति दुख से पीड़ित होकर मानव रूप में नश्वर संसार में अपने भक्तों पर अपनी कृपा दिखा रहे हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. श्रीराम की आँखों की तुलना किससे की गई है?
2. श्रीराम की आँखों से आँसू क्यों बहने लगे?
3. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. श्रीराम की आँखों की तुलना कमल की पंखुड़ियों से की गई है।
2. श्रीराम की आँखों से आँसू इसलिए बहने लगे क्योंकि वे लक्ष्मण के बारे में अनेक प्रकार से सोच रहे थे।
3. काव्य-सौंदर्य

  • श्रीरामचंद्र की आंतरिक वेदना को आँसुओं के रूप में प्रकट किया है।
  • चौपाई छंद है।
  • तत्सम प्रधान अवधी भाषा का सुंदर प्रयोग है।
  • अनुप्रास, रूपक, पदमैत्री, स्वरमैत्री अलंकारों का सुंदर प्रयोग है।
  • करुण रस की मार्मिक अभिव्यक्ति हुई है।
  • अभिधात्मक शैली का प्रयोग है।

10.प्रभु प्रलाप सुनि कान विकल भए वानर निकर।
आइ गयउ हनुमान जियि करुना महं बीर रस॥ (A.L.C.B.S.E 2012, Set-1)

शब्दार्थ : प्रलाप-विलाप, दुखभरा रोदन । वानर-बंदर। जियि-जैसे। विकल-परेशान, व्याकुल। निकर-समूह, झुंड। मह-में।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ रामचरितमानस के ‘लंकाकांड’ के ‘लक्ष्मण-मूछा और राम विलाप’ प्रसंग से अवतरित हैं जिसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं। लक्ष्मण को शक्ति बाण लगने के बाद राम का विलाप धीरे-धीरे प्रलाप में बदल गया था। राम का ईश्वरीय रूप सामान्य मानव की पीड़ा में बदल गया था। हनुमान को संजीवनी बूटी लाने में समय लग रहा था

व्याख्या : लक्ष्मण की मूछों के कारण दुखी राम का प्रलाप सुनकर वानर सेना अत्यंत व्याकुल हो उठी। अर्थात वानर-समूह परेशान हो गया था पर उसी समय हनुमान आ गए। इस संतप्त एवं पीड़ित वातावरण में हनुमान जी का संजीवनी बूटी लेकर आना ऐसा प्रतीत होता है जैसे करुण रस में वीर रस प्रकट हो गया हो। भाव है कि पलभर पहले परेशान वानर सेना उत्साह से भर गई।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. प्रभु राम का प्रलाप सुनकर कौन व्याकुल हो गया?
2. प्रभु के प्रलाप के समय वहाँ अचानक कौन आ गए?
3. हनुमान जी का आगमन कैसे हुआ?
4. उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
5. काव्यांश के छंद का नाम और भाषा की एक विशेषता लिखिए। (C.B.S.E. A.I. 2016)
6. वानरों की व्याकुलता का कारण स्पष्ट कीजिए।
7. दूसरी पंक्ति में निहित अलंकार का नाम लिखकर उसका सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. प्रभु राम का प्रलाप सुनकर वानरों का समूह व्याकुल हो गया।
2. प्रभु के प्रलाप के समय वहाँ अचानक हनुमान जी आ गए।
3. हनुमान जी का आगमन उसी प्रकार हुआ जैसे करुण रस में वीर रस का समावेश हो जाता है।
4. काव्य-सौंदर्य (C.B.S.E. 2010, Set-I)

  • कवि ने राम के ईश्वरत्व को सामान्य मानव के रूप में प्रकट किया है। मन में उत्पन्न भावों को पलभर में बदलते हुए प्रकट करने की कुशलता कवि ने दिखाई है।
  • अवधी भाषा का प्रयोग किया गया है जिसमें तद्भव शब्दावली का अधिकता से प्रयोग किया गया है।
  • सोरठा छंद है।
  • करुण रस विद्यमान है।
  • अनुप्रास, उदाहरण और स्वाभावोक्ति का प्रयोग सराहनीय है।
  • प्रसाद गुण विद्यमान है।

5. सोरठा छंद है। अवधी भाषा है। करुण रस है।
6. लक्ष्मण की मूर्छा को तोड़ने के लिए हनुमान का संजीवनी बूटी लेकर न लौटने से वानर और श्री राम की व्याकुलता का होना स्वाभाविक ही था।
7. उत्प्रेक्षा अलंकार है।

11. हरषि राम भेंटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना॥
तुरत बैद तब कीन्हि उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई॥
हृदयें लाइ प्रभु भेंटेउ भ्राता। हरषे सकल भालु कपिं ब्राता॥
कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा। जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा॥ (C.B.S.E. Sample Paper)

शब्दार्थ : हरषि-खुश होकर, हर्षित होकर। अति-बहुत अधिक। तुरत-तुरंत, उसी समय, शीघ्र ही। उपाई-उपाय। हरषाई-हर्षित होकर, खुश होकर। भेंटेउ-मिले। सकल-समस्त । भ्राता-भाई। ताहि-जहाँ से। भेंटेउ-भेंट की, मिले। कृतग्य-किए हुए उपकार को माननेवाला कृतज्ञ। बैद-वैद्य । कीन्हि-किया। लछिमन-लक्ष्मण। हृदय-हृदय। हरषे-खुश हुए। कपि-वानर । लइ आवा-लेकर
आए थे।

प्रसंग : यह काव्यांश ‘तुलसीदास’ द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ के लंकाकांड के ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ प्रसंग से अवतरित है। इसमें कवि ने लक्ष्मण की सचेतावस्था का चित्रण किया है जिसे देखकर राम सहित समस्त राम सेना हर्षित हो उठी है। कवि का कथन है कि संजीवनी औषधि लेकर आए हनुमान से श्रीराम जी की भेंट हुईं। हनुमान से मिलकर परम सुजान श्रीराम ने उनके प्रति अपार कृतज्ञता प्रकट की। वैद्य ने उपचार किया। वैद्य के उपचार से शीघ्र ही लक्ष्मण जी हँसते हुए उठ गए।

व्याख्या : लक्ष्मण जी को सचेत अवस्था में देखकर प्रभु राम अत्यंत प्रसन्न हुए। उन्होंने अपने भाई लक्ष्मण को अपने हृदय से लगा लिया। राम को हँसता हुआ देखकर राम सेना के समस्त भालू, हनुमान और वानर भाई अत्यंत प्रसन्न हो गए अर्थात लक्ष्मण को जीवित और राम को हँसता देखकर राम की सेना में प्रसन्नता की लहर दौड़ पड़ी। तत्पश्चात हनुमान जी ने फिर वैद्य को वहाँ पहुँचा दिया जहाँ और जिस विधि से उसको लेकर आए थे। हनुमान जी ने वैद्य को सकुशल उनके निवास स्थान पर पहुँचा दिया।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. राम हनुमान से कैसे मिले और उन्होंने क्या किया?
2. संजीवनी औषधि लिए हनुमान के पहुँचते ही क्या हुआ?
3. लक्ष्मण के जीवित होने पर क्या हुआ?
4. लक्ष्मण के ठीक होने पर हनुमान जी ने वैद्य को कहाँ पहुँचाया?,
5. उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. राम हनुमान से प्रसन्नतापूर्वक मिले तथा राम ने हनुमान जी के प्रति अपार कृतज्ञता प्रकट की।
2. हनुमान के पहुंचते ही राम प्रसन्न हो गए। तुरंत वैद्य ने लक्ष्मण का उपचार किया तभी लक्ष्मण जीवित होकर बैठ गए।
3. लक्ष्मण के ठीक होने पर राम ने उन्हें हृदय से लगा लिया। सभी भालू और वानर भाई भी प्रसन्न हो गए।
4. लक्ष्मण के ठीक होने पर हनुमान ने वैद्य को वहीं पहुँचाया जहाँ से वे उसे लेकर आए थे।
5. काव्य-सौंदर्य

  • लक्ष्मण के जीवित होने पर श्रीराम तथा समस्त सेना की खुशी का वर्णन हुआ है।
  • अवधी भाषा का प्रयोग है जिसमें तत्सम शब्दावली का समायोजन है।
  • चौपाई छंद है।
  • बिंब-योजना अत्यंत सजीव है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री अलंकारों का सजीव प्रयोग है।
  • अभिधात्मक शैली का प्रयोग है।
  • प्रसाद गुण का प्रयोग है। (C.B.S.E. Delhi 2017 Set I, II, III)

12.यह वृतांत दसानन सुनेऊ।
अति विषाद पुनि-पुनि सिर धुनेऊ॥
व्याकुल कुंभकरन पहिं आवा। विविध जतन करि ताहि जगावा॥
जागा निसिचदेखि कैसा। मानहुँ कालु देह धरि बैसा॥
कुंभकरन बूझा कहु भाई। काहे तव मुख रहे सुखाई॥ (C.B.S.E. Sample Paper)

शब्दार्थ : वृतांत-समाचार, किसी घटित घटना का पूर्ण विवरण, वृत्तांत। सुनेऊ-सुना। विषाद-दुख। सिर धुनेऊ-सिर धुनने लगा। विविध-अनेक। निसिचर-राक्षस अर्थात कुंभकरण। कालु-काल, यमराज। तव-तुम्हारा। दसानन-दश मुख हैं जिसके अर्थात रावण। अति-बहुत। पुनि-पुनि-फिर-फिर, बार-बार। पहि-पास। जतन-प्रयास। मानहुँ-मानो। देह धरि-शरीर धारण करना।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण गोस्वामी तुलसीदास’ द्वारा रचित रामचरितमानस के लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि ने लक्ष्मण के जीवित होने पर रावण की व्याकुलता का चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि तुलसीदास जी कहते हैं कि संजीवनी के उपचार से जब लक्ष्मण सचेत हो गए तो राम-सेना अत्यंत प्रसन्न हो गई। यह बात चारों ओर फैल गई। यह बात लंकापति, रावण ने भी सुनी। इस.समाचार को पाकर रावण अत्यंत दुखी हुआ और बार-बार अपना सिर धुनने लगा; पछताने लगा। वह बहुत्त अधिक व्याकुल होकर कुंभकरण के पास सहायता माँगने के लिए आया। रावण ने अनेक प्रयास करके कुंभकरण को नींद से जगाया।

कुंभकरण अनेक प्रयास करने पर ही नींद से जागा। कवि कहता है कि रावण के अनेक प्रयास करने पर कुंभकरण नींद से जागृत हुआ। वह नींद से जागता हुआ ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उसने यमराज के शरीर को धारण कर लिया हो। रावण को देखकर कुंभकरण ने पूछा कि हे भाई कहो, कैसे आए हो और तुम्हारे मुख पर व्याकुलता कैसी है? अर्थात तुम इतने दुःखी क्यों दिखाई दे रहे हो?

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. दशानन ने कौन-सा वृत्तांत सुना?
2. लक्ष्मण के जीवित होने की खबर सुनकर दशानन की क्या दशा हुई?
3. यह खबर सुनकर दशानन ने क्या प्रयास किया ?
4. कुंभकरण जागता हुआ कैसा प्रतीत हो रहा था?
5. उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. दशानन ने लक्ष्मण के जीवित होने का वृत्तांत सुना।
2. दशानन लक्ष्मण के जीवित होने की खबर सुनकर बहुत दुखी हुआ। वह बार-बार सिर धुनने लगा।
3. यह खबर सुनकर दशानन व्याकल होकर कभकरण के पास सहायता मांगने के लिए गया। उसने अनेक प्रयास करके उसे जगाया।
4. कुंभकरण जागता हुआ यमराज की तरह प्रतीत हो रहा था।
5. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने रावण की उदासीनता का सजीव अंकन किया है।
  • तत्सम-प्रधान अवधी का प्रयोग है।
  • चौपाई छंद का प्रयोग हुआ है। भाषा अवधी है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री एवं उत्प्रेक्षा अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग है।
  • ‘सिर धुनना’ तथा ‘मुख सूखना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।
  • बिंब-योजना अत्यंत सुंदर है।

13.कथा कही सब तेहिं अभिमानी। जेहि प्रकार सीता हरि आनी॥
तात कपिन्ह सब निसिचर मारे। महा महा जोधा संचारे॥
दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी। भट अतिकाय अकंपन भारी॥
अपर महोदर आदिक बीरा। परे समर महि सब रनधीरा॥(C.B.S.E. Sample Paper)

शब्दार्थ : कथा-कहानी, वार्ता । जेहि-जिस। आनी-लाए। कपिन-हनुमान आदि वानर । संघारे-संहार किया। सुररिपु-देवताओं का शत्रु। भट-योदया। महोदर-महान पेटवाला। बीरा-वीर। महि-भूमि। तेहि-उस। हरि-हरण किया। तात-भाई। जोधा-योद्धा। दुर्मुख-कड़वी जुबान बोलनेवाला। मनुज अहारी-मनुष्य को नष्ट करनेवाला। अतिकाय-विशाल शरीर (एक दैत्य का नाम)। आदिक-आदि। समर-युद्ध। रनधीरा-रणधीर।

प्रसंग : ये पंक्तियाँ राम काव्यधारा के प्रमुख कवि तुलसी द्वारा रचित हैं जो उनके रामचरितमानस के ‘लक्ष्मण-मूर्छा और राम का विलाप’ नामक प्रसंग से अवतरित की गई हैं। इसमें कवि ने बताया है कि रावण अपने भाई को जगाने पर उसे सारी बात बताता है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि जिस प्रकार वह सीता का हरण करके ले आया था उस अभिमानी रावण ने यह समस्त कथा अपने भाई से कही। रावण अपने भाई को संबोधन करके कहता है कि हे तात, वानरों ने हमारे सभी राक्षसों को मार गिराया है तथा हमारे बड़े-बड़े योद्धाओं का रामसेना ने संहार कर दिया है। रावण कुंभकरण को बताता है कि दुर्मुख, देवशत्रु, मनुष्य भक्षक, भारी योद्धा, अतिकाय, अकंपन, बड़े-बड़े पेटवाले आदि अन्य सभी रणवीर और रणधीर युद्धभूमि में मारे गए।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. किसने किसको कथा सुनाई थी?
2. रावण ने हनुमान के विषय में कुंभकरण को क्या बताया था?
3. अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
1. रावण ने कुंभकरण को सारी कथा सुनाई थी कि किस प्रकार वह सीता का हरण करके ले आया था।
2. रावण ने वानरों के विषय में बताया था कि उसने उनके सभी बड़े योद्धाओं का संहार कर दिया था।
3. काव्य-सौंदर्य

  • अभिमानी रावण के छल-कपटपूर्ण वृत्ति का चित्रण हुआ है।
  • रावण को मनुष्यता तथा देवों का शत्रु बताया है।
  • तत्सम प्रधान शब्दावली से युक्त अवधी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  • चौपाई छंद है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री तथा स्वरमैत्री अलंकारों की शोभा है।
  • अभिधात्मक शैली का प्रयोग है।
  • वीर रस विद्यमान है।
  • ओजगुण का चित्रण हुआ है।
  • बिंब-योजना अत्यंत सार्थक एवं सटीक है।

14.सुनि दसकंधर बचन तब कुंभकरन बिलखान।
जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान॥

शब्दार्थ : दसकंधर-दस मुखवाला, रावण । जगदंबा-जगत जननी माँ। आनि-अन्य। कल्यान-कल्याण भलाई, मंगल। बिलखान-बिलखने लगा। हरि-प्रभुब्रह्मा । सठ-दुष्ट, नीच।

प्रसंग : यह दोहा तुलसी द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’ के लक्ष्मण-मूर्छा तथा राम का विलाप’ प्रसंग से लिया गया है। इसमें कवि ने रावणके वचनों से व्याकुल कुंभकरण की व्याकुलता का वर्णन किया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि कुंभकरण रावण के वचनों को सुनकर अत्यंत व्याकुल हो उठा और चिंतन करने लगा कि यह दुष्ट पापी रावण तो साक्षात जगत जननी माँ का हरण करके लाया है तब भी यह मुझसे अपना कल्याण चाहता है। अर्थात अब इस दुष्ट का संसार में कोई भी कल्याण नहीं कर सकता। इसकी मृत्यु निश्चित है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. कौन, किसके शब्दों को सुनकर व्याकुल हुआ था?
2. कुंभकरण ने किसे मूर्ख कहा?
3. कुंभकरण ने रावण को मूर्ख क्यों कहा?
4. किनकी मृत्यु निकट आनेवाली थी?
5. अवतरण में निहित काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. कुंभकरण रावण के शब्दों को सुनकर व्याकुल हुआ था।
2. कुंभकरण ने रावण को मूर्ख कहा।
3. रावण ने सीता का अपहरण किया था।
4. रावण और कुंभकरण की मृत्यु निकट आनेवाली थी।
5. काव्य-सौंदर्य

  • कुंभकरण की व्याकुलता का बखान किया गया है।
  • दोहा छंद है।
  • तत्सम प्रधान अवधी भाषा का प्रयोग है।
  • अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
  • बिंब योजना सुंदर है।