Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 9 रुबाइयाँ, गज़ल. Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams.

रुबाइयाँ, गज़ल Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 9

प्रश्न 1.
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए
नहला के छलके-छलके निर्मल जल से
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
जब कुहनियों में लेके है पिन्हाती कपड़े।
उत्तर
1. प्रस्तुत रुबाई हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि फ़िराक गोरखपुरी द्वारा रचित ‘रुबाइयों’ से अवतरित है।
2. इसमें कवि ने बच्चे को नहलाती हुई माँ की स्वाभाविक वृत्ति का सजीव चित्रण किया है। माँ बच्चे को निर्मल जल से नहलाकर उसको कंघी करती है। तत्पश्चात उसे अपनी गोदी में बिठाकर उसे कपड़े पहनाती है।
3. भाषा सरल, सरस, सुबोध खड़ी बोली है।
4. संस्कृत के तत्सम, तद्भव व विदेशी शब्दावली का प्रयोग है।
5. वात्सल्य रस की अभिव्यक्ति हुई है।
6. प्रसाद गुण है।
7. अभिधा शब्द-शक्ति का प्रयोग है।
8. भावपूर्ण शैली है।
9. बिंब योजना अत्यंत सुंदर एवं सटीक है।
10. छलके-छलके में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
11. अनुप्रास, पदमैत्री, स्वाभाविक, उल्लेख, स्वरमैत्री आदि अलंकारों की छटा है।
12. रुबाई छंद है।

प्रश्न 2.
तेरे गम का पासे अदब है कुछ दुनिया का ख्याल भी है ।
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं।-काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. प्रस्तुत काव्यांश हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि फ़िराक गोरखपुरी द्वारा प्रणीत ‘गजल’ से अवतरित है।
2. इस काव्यांश में कवि ने अपनी प्रिया के प्रति प्रेमभाव प्रकट करते हुए अपनी विरह-व्यथा का चित्रण किया है। कवि का कथन है कि हे प्रिय! मैं तेरे गम का सम्मान करता हूँ लेकिन मुझे दुनिया से डर लगता है, इसलिए हम तो गम में डूबकर दर्द के मारे दुनिया से छिपकर चुपके-चुपके रोते हैं।
3. शृंगार रस की वियोगावस्था का मार्मिक चित्रण है।
4. माधुर्य गुण है।
5. बिंब योजना अत्यंत सार्थक एवं प्रसंगानुकूल हैं।
6. अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री आदि अलंकारों की शोभा है।
7. ‘चुपके-चुपके’ में शब्दावृत्ति होने से पुनरुक्ति प्रकाश की छटा है।
8. उर्दू, फारसी और बोलचाल की सरल, सरस भाषा है।
9. गजल छंद का प्रयोग है।

प्रश्न 3.
फ़िराक की रुबाई के आधार पर माँ-बच्चे के वात्सल्यपूर्ण चित्र को अपने शब्दों में प्रस्तुत कीजिए। (C.B.S.E. Delhi 2017, Set-1 2012)
उत्तर
फ़िराक की रुबाई में नन्हा-सा बच्चा माँ की नजरों में चाँद का टुकड़ा है जिसे वह अपनी गोद में खिलाती है; झुलाती है और कुछ-कुछ देर बाद हवा में उछाल देती है, जिससे बच्चा प्रसन्नता से भर किलकारियां मारता है। खिलखिलाते बच्चे की हंसी वातावरण में गूंज उठती है। बच्चे को नहलाना-झुलाना, तैयार करना, कंघी करना और बच्चे के द्वारा माँ के चेहरे की ओर एकटक देखना अति सुंदर और वात्सल्य रस से ओतप्रोत है।

प्रश्न 4.
बच्चे के द्वारा माँ के चेहरे को एकटक निहारने के चित्र को प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर
माँ बच्चे को साफ-स्वच्छ जल से नहलाती है, उसके उलझे बालों में कंघी करती है और उसे अपने घुटनों पर थाम कर कपड़े पहनाती है। बच्चे के मन में माँ के प्रति लाड़ उमड़ आता है और वह एकटक माँ के चेहरे की ओर निहारता है। माँ उसे तैयार करती रहती है और उसकी ओर अपनी नजरें जमाए रहता है।

प्रश्न 5.
‘बच्चे के घरौंदे में जलाती है दिए’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर
दीवाली की शाम माँ अपने सजे-संवरे घर में दीपक जलाती है और फिर वह बच्चे के मिट्टी के बने छोटे से घरौंदे में दीया जला कर अपने बच्चे के सुखद और खुशहाल भविष्य के लिए मनौती मांगती है।

प्रश्न 6.
बच्चे को माँ चाँद किस प्रकार धरती पर लाकर देती है?
उत्तर
रात के समय आकाश में जगमगाता चंद्रमा बच्चे को आकृष्ट करता है। वह उसे एक खिलौना समझकर लेने के लिए मचलता है; ज़िद करता है। माँ उसके हाथों में दर्पण थमा देती है जिसमें चाँद का प्रतिबिंब दिखाई देता है। माँ कहती है कि ले बेटा, चाँद इस दर्पण में आ गया है और अब यह तेरा ही हो गया।

प्रश्न 7.
रक्षाबंधन के अवसर पर बहन अपने भाई के लिए कैसी राखी लाती है?
उत्तर
रक्षाबंधन वाले दिन आकाश में हलके-हलके बादल छाए हुए हैं। प्यारी बहन अपने भाई की कलाई पर बाँधने के लिए राखी लाई जिसके लच्छे बिजली के समान चमकते हैं। वह चमकीली लच्छों वाली अति सुंदर राखी अपने भाई की कलाई पर बाँधती है।

प्रश्न 8.
कवि ने ग़ज़ल में वातावरण की सृष्टि किस प्रकार की है?
उत्तर
कलियों की कोमल पंखुड़ियाँ नवरस से भरी हुई हैं और वे अपनी गाँठे खोल रही हैं जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि रंग और सुगंध एक साथ आकाश में उड़ जाने के लिए पंख फड़फड़ाने लगे हों। फूलों और कलियों की मोहक गंध सारे वातावरण को सुगंध से सराबोर कर रही है।

प्रश्न 9.
फ़िराक की ग़ज़ल किस रस से परिपूर्ण है?
उत्तर
फ़िराक की गजल अंगार रस के वियोग भाव से परिपूर्ण है। वह वियोग में अपनी प्रेमिका के लिए आँसू बहाता है; तड़पता है। परेशान होता है। उसकी ग़जलों की शोभा और चमक उसके टपकते आँसुओं के कारण ही है। उसकी प्रेम-भरी दीवानगी सूनी-भीगी रातों में अपनी प्रेमिका के लिए व्यक्त हुई है। प्रेम की अधिकता के कारण उसे रात का सन्नाटा भी बोलता, बातें करता-सा प्रतीत होता है।

प्रश्न 10.
फ़िराक की ‘गजल’ की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर
फ़िराक की राजले श्रृंगार रस से परिपूर्ण हैं जिसकी भाषा और भाव उर्दू के संस्कारों से युक्त हैं। उन्होंने उर्दू के शब्दों को अधिकता से प्रयुक्त किया है। उनके शेर सरल हैं और हृदय को छूने की क्षमता रखते हैं। कहीं-कहीं उर्दू शब्दों की अधिकता से शेर समझने में कठिन प्रतीत होते हैं।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित काव्याष्ठा को पढ़कर पूछे गए प्रष्ठनों के उत्तर लिखिए : (Outside Delhi 2017, Set-1) आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी रह-रह के हवा में जो लोका देती है गूंज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी।
(क) काव्याष्ठा किस छंद में है? उसका लक्षण बताइए।
(ख) काव्याष्ठा में रूपक अलंकार के सौंदर्य को स्पज्ट कीजिए।
(ग) काव्यांष्ठा की भाजा की दो विष्ठोजताएँ लिखिए।
उत्तर
(क) काव्याष्ठा रूबाई छंद में है। यह चार पंक्तियों का छंद है।
(ख) काव्यांष्ठा में चाँद के टुकड़े में रूपक अलंकार की छटा है। बच्चे पर चाँद के टुकड़े का अभेदारोप किया गया है।
(ग) काव्याष्ठा की भाजा सरल, सरस एवं खड़ी बोली है। प्रवाहमयता एवं संगीतात्मकता विद्यमान है। चित्रात्मकता का समावेष्ठा है।

सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. आँगन में लिए चाँद के टुकड़े को खड़ी
हाथों पे झुलाती है उसे गोद-भरी
रह-रह के हवा में जो लोका देती है
गूंज उठती है खिलखिलाते बच्चे की हँसी। (C.B.S.E. Delhi 2008,C.B.S.E. Delhi 2013, Set-I, II,I,C.B.S.E. 2018)

शब्दार्थ : चाँद का टुकड़ा-प्यारा बच्चा। लोका देती है-उछाल देती है। गोद-भरी-गोद में भरकर, आँचल में लेकर। प्रसंग प्रस्तुत ‘रुबाई’ हमारी हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित ‘फ़िराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘रुबाइयाँ’ नामक कविता से अवतरित की गई है। इसमें कवि ने माँ के आँचल में खिलखिलाते बच्चे तथा माँ के वात्सल्य प्रेम का अनूठा चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि माँ अपने प्यारे बेटे को अपने घर के आँगन में लिए खड़ी है। वह अपने चाँद के टुकड़े को अपनी गोद में भरकर हाथों में झुला रही है। माँ अपने बच्चे को देखकर अत्यंत प्रसन्नता से भरी हुई है। वह बार-बार अपने नन्हें बच्चे को हवा में उछालती है।

जैसे ही माँ अपने बच्चे को हवा में उछालती है तो बच्चा खुश हो उठता है और उसकी खिलखिलाती हँसी संपूर्ण वातावरण में गूंज उठती है। कवि का कहने का अभिप्राय यह है कि अपनी माँ के हाथों में बच्चा खुश होकर खिलखिलाकर हँसने लगता है, और उसकी हँसी सारे वातावरण को गुंजायमान कर देती है। लगता है, बच्चे की खिलखिलाती हँसी के साथ वातावरण भी हँसने लगा हो।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. आँगन में कौन खड़ी है? वह क्या लिए हुए है?
2. माँ अपने बच्चे को कैसे हँसा रही है?
3. हवा में बच्चे की क्या गूंज उठती है?
4. उपर्युक्त काव्यांश के कवि तथा कविता का नाम बताएँ।
5. काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. आँगन में माँ खड़ी है। वह अपने हाथों में अपने चाँद के टुकड़े को लिए हुए है।
2. माँ अपने बच्चों को कभी अपने हाथों पर झुलाती है तो कभी उसे गोद में भरकर हवा में उछाल देती है, जिससे बच्चा हँसने लगता
3. हवा में बच्चों की हँसी गूंज उठती है।
4. उपर्युक्त काव्यांश के कवि का नाम फ़िराक गोरखपुरी है तथा कविता का नाम ‘रुबाइयाँ’ है।
5. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने माँ का बच्चे के प्रति वात्सत्य-प्रेम का अंकन किया है।
  • भाषा सरल व सरस है।
  • वात्सल्य रस का अनूठा चित्रण है।
  • अनुप्रास, पुनरुक्ति प्रकाश, पदमैत्री, स्वाभाविक आदि अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
  • प्रतीकात्मक शैली का प्रयोग है।
  • बिंब योजना अत्यंत सार्थक है।
  • प्रसाद गुण है।

2. नहला के छलके-छलके निर्मल जल से
उलझे हुए गेसुओं में कंघी करके
किस प्यार से देखता है बच्चा मुँह को
जब घुटनियों में ले के है पिन्हाती कपड़े। (C.B.S.E. Delhi 2013, Set-II, Set-III)

शब्दार्थ : छलके-छलके-छलक-छलका कर। गेसुओं में-बालों में। पिन्हाती-पहनाती। निर्मल-साफ़, स्वच्छ। घुटनियों में-घुटनों में।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि ‘फ़िराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘रुबाइयाँ’ से अवतरित है। इसमें कवि ने माँ का नन्हें बच्चे के प्रति वात्सल्य प्रेम करे अभिव्यक्त किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि माँ अपने नन्हें, बच्चे को छलकते हुए निर्मल पानी में नहलाती है और नहलाने के बाद उसके उलझे हुए बालों मेंकंघी करती है, उन्हें सँवारती है। जब माँ अपने नन्हें बच्चे को अपने घुटनों में लेकर कपड़े पहनाती है तो बच्चा अपनी माँ को बड़े प्यार से देखता है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. माँ बच्चे को कैसे जल से नहलाती है?
2. बच्चा माँ के मुँह को कब देखता है?
3. माँ बच्चे को नहलाने के बाद क्या करती है?
4. उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. माँ बच्चे को छलके छलके निर्मल जल से नहलाती है।
2. बच्चा माँ के मुँह को तब देखता है जब माँ उसे अपने घुटनों में लेकर कपड़े पहनाती है।
3. माँ बच्चों को नहलाने के बाद उसे कंघी करती है तथा घुटनों में लेकर कपड़े पहनाती है।
4. काव्य-सौंदर्य

  • माँ की बच्चे के प्रति वात्सल्य तथा स्वाभाविक प्रक्रिया का चित्रण है।
  • अनुप्रास, स्वाभाविक, उल्लेख, पदमैत्री, पुनरुक्ति प्रकाश आदि अलंकारों की छटा शोभनीय है।
  • भाषा सहज, सरल और सरस है।
  • तत्सम, तद्भव एवं विदेशी शब्दावली का समायोजन हुआ है।
  • वात्सल्य रस की अभिव्यक्ति है।
  • बिंब योजना सुंदर है।
  • भावपूर्ण शैली का चित्रांकन है।
  • अभिधा शब्द-शक्ति है।
  • प्रसाद गुण का प्रयोग है।

3. दीवाली की शाम घर पुते और सजे
चीनी के खिलौने जगमगाते लावे
वो रूपवती मुखड़े पै इक नर्म दमक
बच्चे के घरौंदे में जलाती है दीये

शब्दार्थ : शाम-संध्या, सायंकालीन समय। रूपवती-सुंदर। इक-एक। घरौंदे में-मिट्टी के घर में, छोटे घर में। पुते-लिपे हुए। मुखड़े पै-मुख पर। नर्म दमक-हल्की चमक। दीये-दीपक।

प्रसंग : यह रुबाई ‘फ़िराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘रुबाइयाँ’ से अवतरित है। इसमें गोरखपुरी ने दीवाली पर्व के शोभा की सुंदर अभिव्यक्ति की है।

व्याख्या :कवि कहता है कि दीवाली के पावन पर्व की संध्या के समय सब घर लिपे-पुते, साफ-सुथरे तथा सजे-धजे होते हैं। घर में रखे
जगमगाते चीनी-मिट्टी के सुंदर खिलौने रौनक ले आते हैं। इन खिलौनों को देखकर नन्हा बच्चा खुश हो उठता है। माँ दीपावली की संध्या को अपने नन्हें बच्चे के मिट्टी के छोटे घर में दीपक जलाती है। नन्हें बच्चे का मिट्टी का छोटा-सा घर भी दीपक की रोशनी से जगमगा उठता है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. दीवाली पर लोग क्या करते हैं?
2. दीवाली के अवसर पर रूपवती के मुख पर क्या होती है?
3. दीवाली पर क्या लाए जाते हैं?
4. इस काव्यांश के काव्य-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. दीवाली पर लोग अपने घरों को संवारते और सजाते हैं।
2. दीवाली के अवसर पर रूपवती के मुख पर एक नर्म चमक होती है।
3. दीवाली पर चीनी-मिट्टी के जगमगाते खिलौने लाए जाते हैं।
4. काव्य-सौंदर्य

  • दीपावली की संध्या की सुंदरता का चित्रण है।
  • मिश्रित भाषा का प्रयोग है।
  • तत्सम, तद्भव एवं विदेशी शब्दावली है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, स्वाभाविक अलंकारों की छटा है।
  • बिंब अत्यंत सटीक है।
  • प्रसाद गुण है।
  • अभिधात्मक शैली का चित्रांकन है।
  • रुबाई छंद का प्रयोग है।

4. आँगन में ठुनक रहा है जिदयाया है
बालक तो हई चाँद पै ललचाया है
दर्पण उसे दे के कह रही है माँ
देख आईने में चाँद उतर आया है। (C.B.S.E. Delhi 2008, 2011, Set-1)

शब्दार्थ : ठुनक-सिसकना। हई-है ही। आईने में-दर्पण में। ज़िदयाया-जिद पकड़ना, अड़ना। दर्पण-वह सीसा जिसमें चेहरा दिखता हो।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्य ‘आरोह भाग-2′ में संकलित ‘फ़िराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘रुबाइयाँ’ से अवतरित है। इसमें कवि नें नन्हें बच्चे कीचंचलता तथा माँ के वात्सत्य का चित्रांकन किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि बच्चा आँगन में सिसक रहा है। उसका दिल चाँद पर आ गया है और उसने चाँद पाने के लिए जिद पकड़ रखी है। वह तो बच्चा है, उसे क्या मालूम। जब बच्चा नही मानता, तो माँ उसे दर्पण में चाँद की परछाई दिखाकर उसे बदलने का प्रयत्न करती है। वह करती है कि देख, इसमें चाँद उतर आया है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. बालक किस पर ललचाया है?
2. माँ दर्पण किसे देती है तथा उसे क्या कहती है?
3. काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. बालक चाँद पर ललचाया है।
2. माँ दर्पण अपने पुत्र को देती है। वह उसे कहती है कि देखो, दर्पण में चाँद उतर आया है।
3. काव्य-सौंदर्य

  • बच्चे की स्वाभाविक वृत्ति की अभिव्यंजना हुई है।
  • समान अर्थ द्रष्टव्य है ‘मैया मैं तो चंद्र खिलौना लैहों’
    यहाँ सूरदास के वात्सल्य रस के समान अभिव्यक्ति हुई है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, स्वाभाविक, स्वरमैत्री अलंकारों की शोभा है।
  • तुकांत छंद है।
  • चित्रात्मक शैली का प्रयोग है।
  • प्रसाद गुण है।
  • भाषा सरल, सरस एवं प्रवाहमयी है।

5. रक्षा-बंधन की सुबह रस की पुतली
छायी है घटा गगन की हलकी-हलकी
बिजली की तरह चमक रहे हैं लच्छे
भाई के है बाँधती चमकती राखी।

शब्दार्थ : रस की पुतली-रस से भरी, रस का भंडार बंधन । गगन-आकाश। घटा-बादल। लच्छे-राखी के ऊपर चमकदार लच्छे।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्यांश ‘आरोह-भाग-2’ में संकलित कवि ‘फ़िराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘रुबाइयाँ’ नामक कविता से अवतरित किया गया है। इसमें गोरखपुरी ने रक्षा-बंधन पर्व की मिठास और रस्म का मनोहारी चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि रक्षा-बंधन पर्व की पावनता का चित्रण करते हुए कहते हैं कि रक्षा-बंधन त्योहार की पावन सुबह आनंद और मिठास की सौगात
है अर्थात रक्षा-बंधन एक मीठा बंधन है। इसके सुबह ही आनंद की अनुभूति होने लगती है। रक्षा-बंधन का पावन पर्व सावन मास में मनाया जाता है। अतः इसके आते ही आकाश में हल्की-हल्की घटाएँ छाई हुई हैं। जिस प्रकार सावन में आकाश में छाए बादलों में बिजली चमकती है उसी तरह रक्षा-बंधन के कच्चे धागों में लच्छे चमकते हैं जिसे बहनें प्रेम स्वरूप अपने-अपने भाइयों को इन चमकती लच्छेदार राखियों को बाँधती हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. रक्षा-बंधन के अवसर पर क्या छाया है?
2. किसके लच्छे चमक रहे हैं और कैसे?
3. भाई को किस अवसर पर और कौन राखी बांधती है?
4. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. रक्षा-बंधन के अवसर पर आसमान में रस से भरे हलके-हलके बादल छाए हुए हैं।
2. राखी के लच्छे चमक रहे हैं। वे बिजली की तरह लगते हैं।
3. भाई को रक्षा-बंधन के अवसर पर बहन राखी बांधती है।
4. काव्य-सौंदर्य

  • रक्षा-बंधन में बहन-भाई के प्रेम व रीति-रस्म का चित्रण है।
  • भाषा सरल, सरस, सुबोध एवं प्रवाहमयी है।
  • हलकी-हलकी में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार की छटा है।
  • तत्सम, तद्भव शब्दावली है।
  • प्रसाद गुण है।
  • अनुप्रास, स्वाभावोक्ति, पदमैत्री अलंकारों का चित्रण है।
  • अभिधात्मक शैली का प्रयोग है।
  • रुबाई छंद का प्रयोग है।

6. नौरस गुंचे पंखड़ियों की नाजुक गिरहें खोलें हैं
या उड़ जाने को रंगो-बू गुलशन में पर तोलें हैं।

शब्दार्थ : नौरस-युवा, नया। नाजुक-कोमल। बू-खुशबू, महक, गंध। तोलें हैं-खोलती हैं। गुंचे-फूल की कलियाँ। गिरहें-बंधन, गाँठे, गुत्थियाँ । गुलशन-बाग-बगीचा, उद्यान।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि फ़िराक गोरखपुरी द्वारा रचित ‘गजल’ से अवतरित किया गया है। इसमें कवि ने बसंत ऋतु के आगमन पर वातावरण में छाए अपूर्व सौंदर्य का चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि बसंत ऋतु फूल की कलियों की पंखुड़ियों की कोमल गाँठों को खोल देती है या उद्यान में फूलों के रंगों की खुशबू उड़ने के लिए अपने पंखों को खोलती है। कवि का अभिप्राय यह है कि बसंत ऋतु के आगमन पर युवा कलियाँ अपने पंखुड़ियों की कोमल गुत्थियों को खोल देती हैं। उस समय ऐसा प्रतीत होता है जैसे बाग में खिले हुए फूलों के रंगों की खुशबू उड़ जाने हेतु अपने पंखों को खोल रही हो। संपूर्ण बाग में फूलों की सुंदरता और खुशबू फैल जाती है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. उपर्युक्त काव्यांश के कवि तथा कविता का नाम बताइए।
2. बसंत ऋतु क्या खोल देती है?
3. बसंत ऋतु में कौन अपने पंख खोलता है?
4. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. उपर्युक्त काव्यांश के कवि का नाम ‘फ़िराक गोरखपुरी’ है तथा कविता का नाम ‘गजल’ है।
2. बसंत ऋतु फूलों की नई कलियों की कोमल गाँठों को खोल देती है।
3. बसंत ऋतु उद्यान में फूलों के रंगों की खुशबू में उड़ने की उत्सुकता के लिए पंख खोलती है।
4. काव्य-सौंदर्य

  • बसंत ऋतु के आगमन पर उद्यान की शोभा की अभिव्यंजना हुई है।
  • उर्दू, फ़ारसी भाषा का प्रयोग है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, संदेह, स्वरमैत्री अलंकारों की छटा है।
  • कोमलकांत पदावली है।
  • बिंब योजना अत्यंत सुंदर है।
  • प्रसाद गुण है।
  • अभिधात्मक शैली है।

7.तारे आँखें झपकावें हैं जर्रा-जर्रा सोये हैं।
तुम भी सुनो हो यारो! शब में सन्नाटे कुछ बोले हैं।

शब्दार्थ : जर्रा-जर्रा-कण-कण। शब-रात, निशा, रात्रि।

प्रसंग : प्रस्तुत अवतरण हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि ‘फ़िराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से अवतरित है। इसमें गोरखपुरी ने रात्रि के सौंदर्य का चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि रात्रि के गहन अंधकार में प्रकृति का कण-कण सोया हुआ है। संपूर्ण वातावरण में सन्नाटा छाया हुआ है। लेकिन इस गहन अंधकार में भी तारे टिमटिमा रहे हैं। अपनी आँखें झपकाकर अपूर्व सौंदर्य प्रस्तुत कर रहे हैं। कवि लोगों को संबोधन करते हुए कहता है कि हे प्यारो! तुम सब सुनो ! रात्रि में चारों ओर छाया हुआ सन्नाटा कुछ रहस्य कहता है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. तारे क्या झपकाते हैं?
2. जर्रा-जर्रा सोये है’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
3. शब में कौन बोलते हैं?
4. काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. तारे अपनी आँखें झपकाते हैं।
2. इस पंक्ति से कवि का तात्पर्य है कि जब रात हो जाती है तो सृष्टि का कण-कण शांत होकर सो जाता है। रात्रि के गहन अंधकार में चहुँ ओर सूनापन छा जाता है।
3. शब में सन्नाटे बोलते हैं।
4. काव्य-सौंदर्य

  • रात्रि के गहन अंधकार में तारों के टिमटिमाने का सुंदर चित्रण है।
  • जरा-जर्रा में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री स्वाभाविक अलंकारों की छटा है।
  • गजल का प्रयोग है।
  • प्रसाद गुण है।
  • उर्दू, फारसी भाषा है।

8. हम हों या किस्मत हो हमारी दोनों को इक ही काम मिला
किस्मत हमको रो लेवे है हम किस्मत को रो लें हैं। (C.B.S.E. Delhi 2008)

शब्दार्थ : इक-एक। किस्मत-भाग्य । लेवे है-लेती है।

प्रसंग : यह पद्य ‘फिराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से लिया गया है। इसमें कवि ने चित्रित किया है कि इस दुनिया में मनुष्य अपनी किस्मत को रोता रहता है।

व्याख्या : कवि कहता है इस जहाँ में अकर्मण्य इनसान हो या उसकी किस्मत दोनों को एक ही कार्य मिलता है। वह काम है कि समय-समय पर ऐसा इनसान अपनी किस्मत को रो लेता है और किस्मत उसको रो लेती है अर्थात कवि का अभिप्राय यह है कि इस संसार में आदमी अपनी किस्मत को रोता रहता है। वह अपना कर्म सत्यनिष्ठा और परिश्रम से नहीं करता। आजीवन किस्मत के सहारे होकर उसे ही दोष देता रहता है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. कवि का दोनों से क्या अभिप्राय है?
2. हम अर्थात कवि तथा किस्मत को क्या काम मिला है?
3. काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. यहाँ दोनों से अभिप्राय है-किस्मत तथा कवि स्वयं।
2. हम अर्थात कवि तथा किस्मत को यह काम मिला है कि किस्मत कवि को रो लेती है तथा कवि अपनी किस्मत को रो लेता है।
3. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने किस्मत के सहारे बैठे अकर्मण्य व्यक्तियों पर कटाक्ष किया है।
  • उर्दू, फ़ारसी भाषा का प्रयोग है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री की छय है।
  •  बिंब योजना सार्थक एवं सटीक है।
  • गजल छंद का प्रयोग है।

9. जो मुझको बदनाम करे हैं काश वे इतना सोच सकें
मेरा परदा खोले हैं या अपना परदा खोलें हैं। (C.B.S.E. Delhi 2008, 2014 Set-I, II, III)

शब्दार्थ : काश-इच्छा आदि को प्रकट करने का, सूचनार्थ शब्द।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि ‘फ़िराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित गजल से ली गई हैं। इस पंक्तियों में कवि ने बदनाम करने वाले लोगों पर कटाक्ष किया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि इस दुनिया के जो लोग मुझको बदनाम करना चाहते हैं, मेरे ऊपर बदनामी का दाग लगाना चाहते हैं, उन्हें अपने बारे में सोचना चाहिए। कवि का अभिप्राय यह है कि इस समाज में दूसरों को वही लोग बदनाम करते हैं, जो स्वयं पहले से ही बदनाम होते हैं और ऐसा करके वे दूसरों को बदनाम नहीं करते, बल्कि अपने रहस्यों को ही खोल कर बताते हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. कौन, किनको बदनाम करना चाहता है?
2. कवि बदनाम करने वाले लोगों को क्या आग्रह करना चाहता है?
3. काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. समाज के कुछ लोग कवि को बदनाम करना चाहते हैं।
2. कवि बनदाम करने वाले लोगों को यह आग्रह करना चाहता है कि काश वे लोग इतना सोच सकें कि वे मेरा भेद खोल रहे हैं या अपना भेद खोल रहे हैं।
3. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने बदनाम लोगों की प्रवृत्ति की ओर संकेत किया है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, संदेह, स्वरमैत्री अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
  • उर्दू-फ़ारसी भाषा का प्रयोग हुआ है।
  • बिंब योजना अत्यंत सार्थक एवं सटीक है।
  • गजल छंद का प्रयोग है।
  • शैली भावपूर्ण है।

10. ये कीमत भी अदा करे हैं हम बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास
तेरा सौदा करने वाले दीवाना भी हो ले हैं।

शब्दार्थ कीमत-मूल्य। बदुरुस्ती-ए-होशो-हवास-विवेक के साथ दुरुस्त करना। अदा-चुकाना। दीवाना-प्रेमी, चाहने वाला।

प्रसंग : प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि ‘फ़िराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से ली गई हैं। इनमें कवि ने प्रेम की कीमत अदा करने का चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि अपनी प्रिया को संबोधित करके कहता है कि हम पूरे विवेक के साथ और पूरे होशो-हवास में प्रेम की कीमत भी चुका देने को तैयार हैं और हम तुम्हारा सौदा करने वाला अर्थात तुम्हें खरीदकर अपने पास रखने वाला दीवाना भी बनने को तैयार हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. कवि किस कीमत को अदा करने की बात कहता है?
2. कवि किसको संबोधित करता है?
3. कवि किसका सौदा करने को कह रहा है?
4. काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. कवि प्रेम की कीमत को अदा करने की बात कहता है।
2. कवि अपनी प्रियतमा को संबोधित करता है।
3. कवि अपनी प्रियतमा का सौदा करने को कह रहा है।
4. काव्य-सौंदर्य

  • उर्दू व फ़ारसी भी बोलचाल की भाषा है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री अलंकारों का प्रयोग है।
  • गजल छंद है।
  • बिंब सुंदर एवं सटीक है।
  • भावपूर्ण शैली का अंकन हुआ है।

11. तेरे ग़म का पासे-अदब है कुछ दुनिया का खयाल भी है
सबसे छिपा के दर्द के मारे चुपके-चुपके रो ले हैं।

शब्दार्थ : ग़म-दुख, पीड़ा, वेदना। खयाल ख्याल, परवाह । पासे-अदब है-सम्मान करता हूँ, विनय स्वीकृत है।

प्रसंग : यह पद्य आरोह भाग-2 में संकलित कवि फ़िराक गोरखपुरी द्वारा रचित ‘गजल’ से लिया गया है। इसमें कवि ने हृदय में स्थित प्रेम की पीड़ा का वर्णन किया है।

व्याख्या : कवि प्रिया को संबोधन करते हुए कहता है कि मैं तेरे हृदय में स्थित पीड़ा का सम्मान करता हूँ। मैं स्वीकार करता हूँ कि तेरे हृदय में ग़मों का सागर उमड़ रहा है लेकिन मैं पूर्णतः तुम्हारी ओर समर्पित नहीं हो सकता क्योंकि मुझे कुछ दुनिया का भी ख्याल है। कवि कहता है कि कहीं दुनिया कोई संदेह न करने लगे इसलिए मैं अपने दर्द को खुलकर रो सकता हूँ, बल्कि किसी एकांत स्थल पर चुपके-चुपके रो लेता हूँ।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. कवि किसका सम्मान करता है?
2. कवि को अपनी प्रियतमा के साथ-साथ किसका ख्याल है और क्यों?
3. कवि चुपके-चुपके क्यों रोता है?
4. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. कवि अपनी प्रियतमा के गमों का सम्मान करता है।
2. कवि को अपनी प्रियतमा के साथ-साथ दुनिया का भी ख्याल है, क्योंकि वह एक सामाजिक प्राणी है। वह दुनिया समाज के व्यंग्य से डरता है।
3. कवि चुपके-चुपके इसलिए रोता है, क्योंकि वह अपने प्रेम को दुनिया वालों को नहीं बताना चाहता है और दुनिया की हँसी का पात्र नहीं बनना चाहता है।
4. काव्य-सौंदर्य

  • विरह भावना का मार्मिक चित्रण हुआ है।
  • शृंगार की वियोगावस्था का करुण चित्रण है।
  • उर्दू, फ़ारसी भाषा का प्रयोग है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री अलंकारों की छटा है।
  • ‘चुपके-चुपके’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
  • माधुर्य गुण है।
  • बिंब अत्यंत सार्थक एवं सटीक है।
  • शैली भावपूर्ण है।

12. फितरत का कायम है तवाजुन आलमे-हुस्नो-इश्क में भी
उसको उतना ही पाते हैं खुद को जितना खो ले हैं।

शब्दार्थ : फितरत-स्वभाव, प्रकृति, आदत। आलमे-हुस्नो-इश्क-हुस्नो इश्क का आलम, प्रेम का हाल। तवाजुन-संतुलन। खुद-स्वयं को।

प्रसंग : प्रस्तुत पद्य आरोह भाग-2 में संकलित कवि गोरखपुरी द्वारा रचित ‘गजल’ से अवतरित है। इसमें कवि ने मोहब्बत में डूबे आशिक की मनोव्यथा का चित्रण किया है।

व्याख्या : कवि का कथन है कि मोहब्बत का नशा आज तक छाया हुआ है। प्रेम का यह आलम है कि प्रिया से विरह हुए इतना समय हो गया लेकिन आज तक भी उसकी आदत हुस्नो-इश्क में समाई हुई है। कवि कहता है कि इस वियोगावस्था में मैं अपने आप को जितना भूल जाता हूँ उतना ही अपनी प्रिया को प्राप्त कर लेता हूँ। प्रिया के प्रेम की वियोगावस्था में अपने को जितना खोने का प्रयास करता हूँ, मुझे और अधिक प्रिया की अनुभूति होने लगती है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. किसका तवाजुन कायम है?
2. कवि अपनी प्रिया को कैसे पाता है?
3. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. फितरत का तवाजुन कायम है।
2. कवि अपनी प्रिया को उतना ही पा लेता है जितना खुद को खो देता है।
3. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने अपनी प्रिया की वियोगावस्था का मार्मिक चित्रण किया है।
  • श्रृंगार रस के वियोग पक्ष का सजीव अंकन है।
  • माधुर्य गुण है।
  • बिंब योजना अत्यंत सार्थक एवं सटीक है।
  • उर्दू, फ़ारसी की बोल-चाल की भाषाओं का प्रयोग है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री अलंकारों की छटा है।

13. आबो-ताबे-अशआर न पूछो तुम भी आँखें रक्खो हो
ये जगमग बैतों की दमक है या हम मोती रोलें हैं।

शब्दार्थ : आबो-ताबे-अशआर-शेरों की चमक-दमक। बैतों-शेरों।

प्रसंग : यह पद्य फ़िराक गोरखपुरी द्वारा रचित ‘गजल’ में से लिया गया है। इसमें कवि ने प्रिया को संबोधन करके उसे जगाने का प्रयास किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि तुम मुझसे मेरी शेरो-शायरी की चमक-दमक के बारे में मत पूछो क्योंकि तुम्हारे पास भी विवेक है। तुम अपने विवेक के बल पर निर्णय कर सकते हो कि ये मेरे शेरों की चमक अथवा सार्थकता है अथवा वैसे ही मोती बिखेर रखे हैं, अर्थात तुम अपने विवेक के द्वारा मेरी शेरो-शायरी के महत्व का अंदाजा लगा सकते हो।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. कवि किसकी चमक की बात कर रहा है?
2. यहाँ कवि किसको संबोधन करता है?
3. उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. कवि अपने शेरों की चमक की बात कर रहा है।
2. यहाँ कवि अपने प्रिय को संबोधन करता है।
3. काव्य-सौंदर्य

  • कवि का शायरी के चमक-दमक अर्थात अमर की बात करता है।
  • उर्दू, फ़ारसी और बोलचाल का भाषा का प्रयोग है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री अलंकारों की शोभा है।
  • माधुर्य गुण है।
  • शृंगार रस का प्रयोग है।
  • बिंब अत्यंत सुंदर एवं सटीक है।
  • शैली भावपूर्ण है।

14. ऐसे में तू याद आये है अंजुमने-मय में रिदों को
रात गए गर्दू पॅ फरिश्ते बाबे-गुनह जग खोलें हैं।

शब्दार्थ अंजुमने-मय-शराब की महफ़िल। फरिश्ते-देवता, देवदूत। बाबे-गुनह-पाप का अध्याय। रिंदों को-शराबियों को। गर्दू-आकाश, आसमान। जग-संसार।

प्रसंग : ये पंक्तियाँ हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि ‘फ़िराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित ‘गजल’ से ली गई हैं। इनमें कवि ने अपने प्रियजन की यादों का बखान किया है।

व्याख्या : कवि कहता है कि हे प्रिय! तू इस विरहावस्था में ऐसे याद आती है जैसे शराब की महफिल में शराबियों को शराब की याद आती है। कवि कहता है कि जैसे अर्धरात्रि में आकाश में देवदूत संपूर्ण संसार के पाप का अध्याय खोलते हैं, उसी तरह मुझे तुम्हारी याद आती है।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. इस अवतरण के कवि तथा कविता का नाम बताएं।
2. कहाँ, किसको, कौन याद आता है?
3. रात गए फरिश्ते कहाँ क्या खोलते हैं?
4. इस काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. इस अवतरण के कवि का नाम फ़िराक गोरखपुरी है तथा कविता का नाम ‘गजल’ है।
2. शराब की महफिल में शराबियों को अपना प्रियतम याद आता है।
3. रात गए फरिश्ते आकाश में संपूर्ण संसार के पाप का अध्याय खोलते हैं।
4. काव्य-सौंदर्य

  • विरहावस्था का मार्मिक चित्रण हुआ है।
  • उर्दू, फ़ारसी भाषा के शब्दों का प्रयोग है।
  • माधुर्य गुण है।
  • श्रृंगार रस है।
  • बिंब योजना अत्यंत सुंदर एवं सटीक है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री अलंकारों का प्रयोग हुआ है।
  • भावपूर्ण शैली का प्रयोग हुआ है।

15. सदके फिराक एजाजे-सुखन के कैसे उड़ा ली ये आवाज़
इन गजलों के परदों में तो ‘मीर’ की गज़लें बोले हैं।

शब्दार्थ : सदके फिराक-फिराक सदके जाता है। एजाजे-सुखन-बेहतरीन (प्रतिष्ठित) शायरी।

प्रसंग : प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह भाग-2’ में संकलित कवि ‘फ़िराक गोरखपुरी’ द्वारा रचित गजल से अवतरित किया गया है। इसमें गोरखपुरी ने प्रतिष्ठित शायर मीर के प्रति श्रद्धा-भाव अभिव्यक्त किए हैं।

व्याख्या : कवि कहता है कि प्रतिष्ठित शायरी की ये आवाज उसने कैसे चुरा ली, इस पर फ़िराक सदके जाता है अर्थात अपने को न्योछावर करता है। कवि अपनी गज़लों को अपने गुरु महान शायर मीर के प्रति समर्पित करते हुए कहता है कि मेरी इन गजलों में तो प्रतिष्ठित शायर मीर की गजलें बोलती हैं। शायर मीर से ही प्रभावित होकर मैंने ये गजलें लिखी हैं।

अर्थग्रहण एवं सौंदर्य-सराहना संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. फ़िराक किस पर सदके जाता है?
2. इन गज़लों को क्या बोलता है?
3. कवि अपनी गज़लों को किनके प्रति समर्पित करता है?
4. उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
1. फ़िराक शायरी सुंदरता और आवाज़ पर सदके जाता है।
2. इन गजलों में महान शायर ‘मीर’ की गजलें बोलता है।
3. कवि अपनी गजलों को महान शायर ‘मीर’ के प्रति समर्पित करता है।
4. काव्य-सौंदर्य

  • कवि ने अपनी गजलों को प्रतिष्ठित शायर मीर के प्रति समर्पित किया है।
  • उर्दू, फ़ारसी एवं साधारण बोलचाल की भाषा है।
  • अनुप्रास, पदमैत्री अलंकारों का प्रयोग है।
  • बिंब योजना सुंदर है।
  • भावपूर्ण शैली का प्रयोग है।
  • गज़ल छंद का प्रयोग हुआ है।