By going through these CBSE Class 9 Sanskrit Notes Chapter 11 पर्यावरणम् Summary, Notes, word meanings, translation in Hindi, students can recall all the concepts quickly.

Class 9 Sanskrit Chapter 11 पर्यावरणम् Summary Notes

पर्यावरणम् Summary

प्रस्तुत पाठ पर्यावरण की समस्या को ध्यान में रखकर लिखा गया एक लघु निबंध है। आज मनुष्य का वातावरण बुरी तरह प्रदूषित हो गया है। पर्यावरण को प्रदूषित करने में मानव का सर्वाधिक योगदान है। मनुष्य ने अपनी दुर्बुद्धिवश जल, मृदा, वायु आदि को प्रदूषित कर दिया है। कारखानों का विषाक्त कचरा जल में डाला जाता है।
पर्यावरणम् Summary Notes Class 9 Sanskrit Chapter 11

इससे जल पीने योग्य नहीं रह जाता है, जबकि जल मनुष्य की महती आवश्यकता है। प्रतिदिन वृक्षों को काटा जा रहा है। इस प्रकार हरियाली का नाश हो रहा है। इससे मनुष्य को शुद्ध वायु उपलब्ध नहीं होती है। वाहनों की होड़ भी वायु को प्रदूषित कर रही है। वाहनों के धुएँ से वायु अत्यधिक जहरीली हो चुकी है।

इसमें न केवल मानव अपितु अन्य जीवों का भी जीवित रहना कठिन हो गया है। मनुष्य को प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए। अधिकाधिक वृक्षों का रोपण करना चाहिए। वृक्षों की कटाई शीघ्र बंद करनी चाहिए। जल के स्रोतों को प्रदूषण मुक्त करना चाहिए। ऊर्जा का संरक्षण करना चाहिए। सभी प्राणियों की रक्षा करनी चाहिए। इन कदमों से ही मानव-जीवन सुखद बनेगा।

पर्यावरणम् Word Meanings Translation in Hindi

1. प्रकृतिः समेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते। इयं सर्वान् पुष्णाति विविधैः प्रकारैः, सुखसाधनैः च तर्पयति ।
पृथिवी, जलं, तेजः, वायुः, आकाशः च अस्याः प्रमुखानि तत्त्वानि। तान्येव मिलित्वा पृथक्तया वाऽस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति। आवियते परितः समन्तात् लोकः अनेन इति पर्यावरणम्। यथा अजातश्शिशुः मातृगर्भे सुरक्षितः तिष्ठति तथैव मानवः पर्यावरणकुक्षौ। परिष्कृतं प्रदूषणरहितं च पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिक जीवनसुखं, सद्विचारं, सत्यसङल्पं माङ्गलिकसामग्रीञ्च प्रददाति। प्रकृतिकोपैः आतङितो जनः किं कर्त प्रभवति? जलप्लावनैः, अग्निभयैः, भूकम्पैः, वात्याचक्रैः, उल्कापातादिभिश्च सन्तप्तस्य मानवस्य क्व मङ्गलम्?

शब्दार्था:-
यतते-कोशिश करती है, संरक्षणाय-रक्षा के लिए, पुष्णाति-पुष्ट करता है, तर्पयति-तृप्त (संतुष्ट) करती है, तेज-अग्नि, आवियते-आच्छादित किया जाता है, परितः-चारों तरफ से, समन्तात्-चारों तरफ से, अजातः शिशुः-अजन्मा शिशु, मातृगर्भे-माता के गर्भ में, कुक्षौ-गर्भ में, परिष्कृतं-शुद्ध, लोकः-संसार, सुरक्षितः-सुरक्षित, प्रदूषणरहितम्-प्रदूषण से रहित, सद्विचारं-अच्छे विचार, सत्यसङ्कल्पम्-अच्छे संकल्प, माङ्गलिकसामग्रीम्-मंगल सामग्री, प्रकृतिकोपैः-प्रकृति के गुस्से से, अतङ्किकतः-व्याकुल, प्रभवति-समर्थ है, जलप्लावनैः-बाढ़ों से, भूकम्पैः-भूचालों से, वात्यचक्रैः-आँधी, बावंडर, उल्कापातादिभिः-उलका आदि के गिरने से, सन्तप्त-दुखी, क्व-कहाँ, मङ्गलम्-कल्याण।

अर्थ-
प्रकृति सब प्राणियों की रक्षा के लिए प्रयत्न करती है। यह विभिन्न प्रकार से सबको पुष्ट करती है तथा सुख-साधनों से’ तृप्त करती है। पृथ्वी, जल, तेज़, वायु और आकाश ये इसके प्रमुख तत्व हैं। ये ही मिलकर या अलग-अलग हमारे पर्यावरण को बनाते हैं। संसार जिसके द्वारा सब ओर से आच्छादित किया जाता है, वह ‘पर्यावरण’ कहलाता है। जिस प्रकार अजन्मा (जिसने जन्म नहीं लिया है) शिशु अपनी माता के गर्भ में सुरक्षित रहता है, उसी प्रकार मनुष्य पर्यावरण की कोख में (सुरक्षित रहता है)।

परिष्कृत (शुद्ध) तथा प्रदूषण से रहित पर्यावरण हमें सांसारिक जीवन-सुख, अच्छे विचार, अच्छे संकल्प तथा मांगलिक सामग्री देता है। प्रकृति के क्रोधों से व्याकुल मनुष्य क्या कर सकता है? बाढ़, अग्निभय, भूकंपों, आँधी-तूफानों तथा उल्का आदि के गिरने से संतप्त (दुखी) मानव का कहाँ कल्याण है? अर्थात् कहीं नहीं।

विशेषण-विशेष्य-चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
विविधैः – प्रकारैः
प्रमुखानि – तत्त्वानि
आतङ्कितः – जनः
समेषां – प्राणिनां
विशेषणम् – विशेष्यः
विविधैः – सुखसाधनैः
सांसारिकं – जीवनसुखं
सन्तप्तस्य – मानवस्य
इयं – प्रकृतिः

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
पदानि च (और) – प्रकृतिः विविधैः पकारैः सर्वान् पुष्णाति तर्पयति च।
यथा-तथा (जैसा-वैसा) – यथा परिश्रमं तथा फलम्।
एव (ही) – सः एवम् एव करिष्यति।

पर्यायपदानि
पदानि – पर्यायपदानि
समेषां – सर्वेषां
तर्पयति – संतुष्टं करोति
आवियते – आच्छादितं क्रियते
कुक्षौ – गर्भ
परितः – समन्तात्
जलप्लावनैः – जलौघैः
यतते – प्रयत्नं करोति
पुष्णाति – पोषणं करोति
अजात:शिशुः – अनुत्पन्नः जातकः
लोकः – संसारः –
परिष्कृतम् – शुद्धम्
वात्याचक्रैः – वातचक्रैः

विलोमपदानि
पदानि – विलोमपदानि
तर्पयति – अतर्पयति
सुरक्षितः – असुरक्षितः
परिष्कृतं – अपरिष्कृतं
सांसारिकम् – असांसारिकम्
सद्विचारम् – कुविचारम्
माङ्गलिकम् – अमाङ्गलिकम्
आतङ्किकतः – अभयः
अजातशिशुः – विलोमपदानि
मानवः – पशुः/दानवः
प्रदूषणरहितः – प्रदूषितः
सुखम् – दुखम्
सत्यम् – असत्यम्
प्रददाति – ग्रह्णाति

2. अत एव अस्माभिः प्रकृतिः रक्षणीया। तेन च पर्यावरणं रक्षितं भविष्यति। प्राचीनकाले लोकमङ्गलाशंसिनः ऋषयो वने निवसन्ति स्म। यतो हि वने सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म। विविधा विहगाः कलकूजिश्रोत्ररसायनं ददति। सरितो गिरिनिर्झराश्च अमृतस्वादु निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। वृक्षा लताश्च फलानि पुष्पाणि इन्धनकाष्ठानि च बाहुल्येन समुपहरन्ति। शीतलमन्दसुगन्धवनपवना औषधकल्पं प्राणवायु वितरन्ति।

शब्दार्थाः-
अत एव-इसलिए, रक्षणीया-रक्षा करने योग्य, प्राचीनकाले-पुराने समय में, लोकमङ्गलाशासिनः-जनता का कल्याण चाहने वाले, ऋषयः-ऋषि (सारे), निवसन्ति स्म- रहते थे, यतः-क्योंकि, उपलभ्यते-प्राप्त होता है, विहगाः-पक्षी, कलकूजितैः-मधुर कूजन से, श्रोत्ररसायनम्-कानों को अच्छा लगने वाला, ददति-देते हैं, सरितः-नदियाँ, गिरिनिर्झरा-पर्वतीय झरने, अमृतस्वादु-अमृत के समान स्वादिष्ट, निर्मलम्-पवित्र, बाहुल्येन-अधिकता, औषधकल्पम्-दवाई के समान, वितरन्ति-बाँटते हैं, इन्धन काष्ठानि-जलाने की लकड़ियाँ।

अर्थ- इसलिए हमें प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए। उससे पर्यावरण अपने-आप सुरक्षित हो जाएगा। प्राचीनकाल में जनता का कल्याण चाहने वाले ऋषि वन में ही रहते थे क्योंकि वन में ही सुरक्षित पर्यावरण प्राप्त होता था। अनेक प्रकार के पक्षी अपने मधुर कूजन से वहाँ कानों को अन्त प्रदान करते हैं।

नदियाँ तथा पर्वतीय झरने अमृत के समान स्वादिष्ट और पवित्र जल देते हैं। पेड़ तथा लताएँ फल, फूल तथा इंधन की लकड़ी बहुत मात्राा में देते हैं। वन की शीतल (ठंडी), मंद तथा सुगंधित वायु औषध के समान प्राण-वायु बाँटते हैं।

विशेषण-विशेष्य चयनम्
विशेषणम् – विशेष्य:
विविधाः – विहगाः
शीतल:/मन्दः – वनपवनः
निर्मलम् – जलम
सुगन्धः – विशेष्यः

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
पदानि – वाक्येषु प्रयोगः
अतएव (इसलिए) – अतएव प्रकृतिः अस्माभिः रक्षणीया अस्ति।?
यतः (क्योंकि) – यतः सः वने एव सुरक्षितम् अस्ति।

विलोमपदानि
पदानि – विलोमपदानि
अस्माभिः – युष्माभिः
प्राचीनकाले – आधुनिक काले
बाहुल्येन – अल्पेन/अल्पतया
भविष्यति – आसीत्
सुरक्षितम् – असुरक्षितम्

3. परन्तु स्वार्थान्धो मानवः तदेव पर्यावरणम् अद्य नाशयति। स्वल्पलाभाय जना बहमल्यानि वस्तुनि नाशयन्ति। जनाः यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं नद्यां निपातयन्ति। तेन मत्स्यादीनां जलचराणां च क्षणेनैव नाशो भवति। नदीजलमपि तत्सर्वथाऽपेयं जायते। मानवा: व्यापारवर्धनाय वनवृक्षान् निर्विवेकं छिन्दन्ति। तस्मात् अवृष्टिः प्रवर्धते, वनपशवश्च शरणरहिता ग्रामेषु उपद्रवं विदधति। शुद्धवायुरपि वृक्षकर्तनात् सङ्कटापन्नो जायते। एवं हि स्वार्थान्धमानवैः विकृतिम् उपगता प्रकृतिः एव सर्वेषां विनाशकी भवति। विकृतिमुपगते पर्यावरणे विविधाः रोगाः भीषणसमस्याश्च सम्भवन्ति तत्सर्वमिदानी चिन्तनीयं प्रतिभाति।

शब्दार्था:-
अद्य-आज, नाशयति-नष्ट कर रहा है, स्वल्पलाभाय-थोड़े से लाभ के लिए, यन्त्रागाराणाम्-कारखानों के, विषाक्तम्-विषैला, जलचराणां-पानी में रहने वाले जीवों का, अपेयम्-न पीने योग्य, जायते-हो जाता है, वनवृक्षाः-जंगल के पेड़; निर्विवेकम्-अकारण, अवृष्टि:-वर्षा की कमी, प्रवर्धते-बढ़ती है, वनपशवः-जंगली पशु, शरणरहिता:-बिना शरण के, वृक्षकर्तनात्-पेड़ों के काटने से, उपद्रवं-भय, विदधति-करते हैं, सङ्कटापन्नो-संकटयुक्त, जायते-होती है, विकृतिम्-विकारयुक्त, उपगता-हो गई है, विनाशकी-विनाश करने वाली, भवति–हो गई है, इदानीम्-अब, चिन्तनीयम्-चिंता से युक्त, प्रतिभाति-प्रतीत हो रहा है।

अर्थ –
किंतु स्वार्थ में अंधा हुआ मनुष्य उसी पर्यावरण को आज नष्ट कर रहा है। थोड़े से लाभ के लिए लोग बहुमूल्य वस्तुओं को नष्ट कर रहे हैं। कारखानों का विषैला जल नदियों में गिराया जा रहा है, जिससे मछली आदि जलचरों का क्षणभर में ही नाश हो जाता है। नदियों का पानी भी सर्वथा (हर प्रकार से) न पीने योग्य (अपेय) हो जाता है। वन के पेड़ व्यापार बढ़ाने के लिए अंधाधुंध काटे जाते हैं, जिससे अवृष्टि (वर्षा न होना) में वृद्धि होती है तथा वन के पशु असहाय (बिना सहायता के) होकर गाँवों में उपद्रव उत्पन्न करते हैं। पेड़ों के कट जाने से शुद्ध वायु भी दुर्लभ हो गई है। प्रकार स्वार्थ में अंधे मनुष्यों के द्वारा विकारयुक्त प्रकृति ही उनकी विनाशिनी हो गई है। पर्यावरण में विकार आ जाने से
विभिन्न रोग तथा भयंकर समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। इसलिए अब सब कुछ चिंतायुक्त प्रतीत हो रहा है।

विशेष्यः
विशेषण-विशेष्य-चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
बहुमूल्यानि – वस्तूनि
विविधाः – रोगाः
विनाशकी – प्रकृतिः
विषाक्तम् – जलम्
उपगता – प्रकृतिः
सङ्कटापन्नः – शुद्धवायुः

यन्त्रागाराणाम् – यन्त्रालयानाम्
वृक्षकर्तनात् – वृक्षाणाम् उच्छेदात्
मत्स्यः – मीन:
निर्विवेकम् – विवेकम् रहितम्
जातः – अभवत्
इदानीम् – अधुना
अपेयम् – पातुम् आयोग्यम्
अद्य – अधुना
नाशः – नष्टम्
अवृष्टि – वर्षा रहितः
भीषणः – भयङ्करः
चिन्तनीयम् – शोचनीयम्
स्वार्थ – परार्थ
अद्य – पुरा
विषाक्तम् – अविषाक्तम्
निर्विवेकम् – सविवेकम्
अवष्टिः – वृष्टिः
अन्धः – नेत्रयुक्तः
बहुमूल्यानि – अल्पमूल्यानि
अपेयम् – पेयम्
विनाशकी – उपकर्त्री

4. धर्मो रक्षति रक्षितः इत्यार्षवचनम्। पर्यावरणरक्षणमपि धर्मस्यैवाङ्गमिति ऋषयः प्रतिपादितवन्तः। अत एव वापीकूपतडागादिनिर्माणं देवायतन-विश्रामगृहादिस्थापनञ्च धर्मसिद्धेः स्रोतो रूपेण अङ्गीकृतम्। कुक्कुर-सूकर-सर्प-नकुलादि-स्थलचराः, मत्स्य-कच्छप-मकरप्रभृतयः जलचराश्च अपि रक्षणीयाः, यतः ते स्थलमलानाम् अपहारिणश्च। प्रकृतिरक्षया एव लोकरक्षा सम्भवति इत्यत्र नास्ति संशयः।

शब्दार्थाः
रक्षित-रक्षा किया गया, रक्षति-रक्षा करता है, आर्षवचनम्-ऋषियों के वचन, प्रतिपादितवन्तः-प्रतिपादित किया है, वापी-बावड़ी, कूप-कुएँ, तडाग-तालाब, देवायतन-मंदिर, विश्रामगृहादिस्थापन-विश्रामगृह बनवाना, संशयः-संदेह, धर्मसिद्धेः-धर्म की सिद्धि के, अङ्गीकृतम्-माने गए हैं, कुक्कुरः-कुत्ता, नकुलः-नेवला, सर्पः-साँप, स्थलचरः-पृथ्वी पर रहने वाले जीव, सूकरः-सूअर, मत्स्यः-मछली, कच्छपः-कछुआ, मकर:-मगरमच्छ, जलचरः-पानी में रहने वाली जीव। स्थलमलानाम् अपनोदिनः-पृथ्वी की गंदगी को दूर करने वाले, सम्भवति-संभव है।

अर्थ-
‘रक्षा किया गया धर्म रक्षा करता है’-ये ऋषियों के वचन हैं। पर्यावरण की रक्षा करना भी धर्म का ही अंग है-ऐसा ऋषियों ने प्रतिपादित किया है। इसीलिए बावड़ी, कुएँ, तालाब आदि बनवाना, मंदिर, विश्रामगृह आदि की स्थापना धर्मसिद्धि के साधन के रूप में ही माने गए हैं। कुत्ते, सूअर, साँप, नेवले आदि स्थलचरों तथा मछली, कछुए, मगरमच्छ आदि जलचरों की भी रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि ये पृथ्वी तथा जल की मलिनता को दूर करने वाले हैं। प्रकृति की रक्षा से ही संसार की रक्षा हो सकती है। इसमें संदेह नहीं है।

विशेषण-विशेष्य चयनम्
विशेषणम् – विशेष्यः
रक्षितः – धर्मों

अव्ययानां वाक्येषु प्रयोगः
पदानि – वाक्येषु प्रयोगः
इति (ऐसा) – धर्मों रक्षति रक्षितः इति आर्ष वचनम्।
ततः (उसके बाद) – ततः स अगच्छत्।
एव (ही) – सः मालाकारः एव अस्ति।

पर्यायपदानि
पदानि – पर्यायपदानि
आर्षः – ऋषयः
देवायतनम् – देवालयः, मन्दिरम्
कुक्कुरः – श्वानः
मत्स्यः – मीन:
अङ्गीकृतम् – स्वीकृतम्
प्रतिपादितवन्तः – कथितः
तडागः – सरोवरः
सर्पः – भुजंगः
स्थलमलापनोदिनः – भूमिमलापसारिणः

विलोमपदानि
पदानि – विलोमपदानि
धर्मः – अधर्मः
अङ्गीकृतम् – अनङ्गीकृतम्
रक्षणीयाः – अरक्षणीयाः
संशयः – असंशयः
रक्षितः – अरक्षितः
जलचराः – स्थलचराः
सम्भवति – असम्भवति