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The Ashes That Made Trees Bloom Summary in English by William Elliot Griffis
The Ashes That Made Trees Bloom by William Elliot Griffis About the Author
Author Name | William Elliot Griffis |
Born | 17 September 1843, Philadelphia, Pennsylvania, United States |
Died | 5 February 1928, Florida, United States |
Education | Rutgers University, Union College, Union Theological Seminary |
The Ashes That Made Trees Bloom Summary in English
Part I
In the 19th century Japan there lived an old couple. Their only companion was a little pet dog named Muko. They loved it as if it were their baby. They gave it pieces of fish and boiled rice to eat. Muko also loved its noble master.
The old man was rice farmer. He worked hard with his spade from morning till sunset. Muko followed him everyday to the field. It did not attack the white heron bird which used to kill com worms. The farmer was kind to all the living creatures.
One day the dog came running to its master. It motioned him to some place behind. The old man followed Muko to the place, where it began to scratch. The old man used his hoe to dig the earth. He found a lot of gold there. The old couple became rich. They bought land, hosted a party to their friends and gave generously to their poor neighbours.
In the same village there lived a wicked old man and his wife. They were unkind to all dogs. When they heard of their neighbour’s good luck, they called Muko to their garden and offered it fish. They hoped that Muko would find treasure for them also. But Muko refused to eat any fish. The dog took them to a pine tree in the garden. The greedy old fool danced with joy. He began to dig. But he found only a dead cat in the pit. In a fit of anger he beat Muko to death.
The owners of Muko mourned for their pet. They put flowers and water on its tomb. That night the spirit of Muko appeared to the old farmer in a dream. It asked him to cut down the pine tree over its graves, make a mortar for rice pastry and a mill for his bean sauce. Soon the old farmer made a hollow place in the tree trunk. He with his wife made a hammer of wood for pounding rice. They baked the pastry and suddenly the whole mass changed into gold coins.
The jealous old neighbour noticed bean sauce turning into gold. The old couple were rich again. So the neighbours also did the same. But their pastry and sauce turned into worms. They destroyed the mill borrowed from the old couple and burnt it.
Part II
The good old man had another dream. The spirit of their pet dog told him to take the ashes of the mill and spread it on the withered pine trees. He assured him that they would bloom again.
The old man brought some ashes of mill. He spread a pinch of it on the cherry tree. The tree was covered with blossoms. The greedy wicked couple gathered the remaining ashes of the wooden mill.
The wealthy landlord of the village was to pass by that road. According to the custom all the people had to shut up their high windows. Nobody was allowed to look down on lordship. They also knelt upon their hands and knees until the procession passed by. A tall man marched ahead asking the people to get down on their knees.
But the good old man didn’t kneel down. Instead of it he scattered a bit of ashes over the withered cherry tree. Suddenly it burst into blossom. The landlord got out to see the wonder. He thanked the man, offered him presents and also invited him to the castle.
When the greedy neighbour heard of it, he also took the magic ashes to the highway. He waited until the landlord’s train came along, and instead of kneeling down like the crowd, he climbed a withered cheriy tree. When the landlord was directly under him, he threw handful of ashes over him. But the tree showed no change. The dust rather blew into the nose and eyes of his lordship. The man who was escorting the lord dragged the greedy man from the tree and threw him into the ditch. He also beat him soundly. The greedy man thus died in the mud. The kind owner of Muko lived happily to a green old age.
The Ashes That Made Trees Bloom Summary in Hindi
Part I
19 वी शताब्दी में जापान में एक वृद्ध दम्पति रहते थे। उनका एक मात्र साथी मूको नामक एक छोटा पालतू कुत्ता था। वे उस कुत्ते को बच्चे की भाँति प्यार करते थे। उसे मछली के टुकड़े तथा उबले चावल खाने को देते थे। मूको भी अपने नेक मालिक से बहुत प्यार करता था।
वृद्ध व्यक्ति चावल उगाने वाला किसान था। वह अपने फावड़े से सारा दिन परिश्रम करता रहता था। मूको प्रतिदिन स्वामी के पीछे-पीछे खेत पर जाया करता था। वह सफेद रंग के जलपक्षी बगुले को जो कीड़े खाता था कोई चोट नहीं पहुंचाता था। वह किसान सभी जीवों के प्रति सहृदय था।
एक दिन कुत्ता दौड़ता हुआ मालिक के पास आया। उसने पीछे किसी स्थान पर चलने का इशारा किया। वृद्ध मूको के साथ उस स्थान पर गया। कुत्ता वहां जमीन को खुरचने लगा। वृद्ध ने उस स्थान को कस्सी से खोदा। वहाँ उसे ढेर-सा सोना मिल गया। वृद्ध दम्पति धनवान हो गये। उन्होंने खेत खरीदे, मित्रों को भोज दिया तथा गरीब पड़ोसियों की भी आर्थिक मदद की।
उसी गाँव में एक दुष्ट व्यक्ति अपनी पत्नी के साथ रहता था। वे सभी कुत्तों के प्रति कठोर थे। जब उन्होंने अपने पड़ोसी के सौभाग्य की बात सुनी उन्होंने मूको को अपने बगीचे में बुलाया तथा उसे मछली पेश की। उन्हें आशा थी कि मूको उन्हें भी खजाना खोज देगा। पर मूको ने कोई मछली नहीं खाई। कुत्ता उन्हें बगीचे में उगे एक चीड़ के वृक्ष के नीचे ले गया। मूर्ख बूढ़ा खुशी से नाचने लगा। वह जमीन खोदने लगा। पर उसे तो वहां गड्ढे में एक मरी हुई बिल्ली मिली। क्रोधावेश में उन्होंने पीटकर मूको को जान से मार दिया।
मूको के मालिक को अपना प्रिय पालतू कुत्ता खोने का बहुत दुख हुआ। उन्होंने कुत्ते की मजार पर फूल और जल अर्पित किए। उस रात मूको की आत्मा वृद्ध किसान को सपने में दिखी। उसने कहा कि जो चीड़ वृक्ष उसकी कब्र के ऊपर उगा है, उसे काट दो। उससे प्राप्त सामग्री से चावल की पेस्ट्री तथा चटनी बनाने की चक्की बनाओ। किसान ने वृक्ष के तने में एक खोखली जगह बनायी। उस लकड़ी से उन्होंने चावल कूटने हेतु एक हथौड़ी बनाई। उन्होंने पेस्ट्री पकाई। अचानक वह गुंधा हुआ आटा स्वर्ण मुद्राओं में बदल गया। बूढ़े नेक दम्पत्ति पुनः धनवान हो गए।
ईर्ष्यालु बूढ़े पड़ोसी ने भी सेम फली की चटनी को स्वर्ण में बदलते देखा। अत: उन्होंने उनकी नकल की। पर उनकी पेस्ट्री तथा चटनी कीड़ों में बदल गई। उन्होंने लकड़ी की चक्की जो वृद्ध किसान से माँग कर लाये थे, तोड़-फोड़ दी तथा उसे जला दिया।
Part II
नेक वृद्ध किसान को दूसरा सपना आया। उनके पालतू कुत्ते ने उसे बताया कि जली हुई चक्की की राख लाकर सूखे चीड़ के वृक्ष पर फैला दो। उसने आश्वस्त किया कि सूखे चीड़ के वृक्ष पर पुनः फूल खिल जायेंगे।
वृद्ध चक्की की कुछ राख ले आया। उसने उसकी चुटकी भर चेरी वृक्ष के ऊपर फैलायी। वृक्ष फूलों से लद गया। लोभी दुष्ट दम्पति ने जली चक्की की शेष राख समेट कर रख ली।
उस क्षेत्र का धनवान जमींदार सड़क से गुजरने वाला था। प्रथा के अनुसार सभी लोगों ने अपने घरों की खिड़कियाँ बन्द कर ली। किसी को भी जमींदार सामंत को नीची निगाह से देखने की अनुमति न थी। लोगों को अपने हाथ और घुटने के बल लेटना भी पड़ा जब तक कि जुलूस निकल न जाये। एक ऊँचे कद का व्यक्ति आगे-आगे चलकर लोगों से कहता जा रहा था कि घुटनों के बल बैठ जाओ।
पर नेक वृद्ध किसान ने थोड़ी-सी राख चेरी के सूखे वृक्ष पर बिखेर दी। अचानक उस सूखे वृक्ष में फूल निकल आये। जमींदार हैरान होकर बाहर निकल आया। उसने किसान को धन्यवाद बोला, उसे उपहार दिये तथा उसे अपनी हवेली में आने को बोला।
जब लोभी पड़ोसी को इस घटना की जानकारी मिली, वह भी जादुई राख लेकर राजमार्ग पर पहुँच गया। वह एक सूखे चेरी वृक्ष पर चढ़कर बैठ गया। जब सामंत पेड़ के नीचे आ गया, उसने मुट्ठी भर राख उस पर बिखेर दी। पर वृक्ष में कोई बदलाव नहीं हुआ। राख सामंत की नाक और आँख में गिर गई। जो व्यक्ति सामंत की रक्षा कर रहा था, उसने लोभी व्यक्ति को नीचे घसीट लिया तथा एक गड्ढे में फेंक दिया। उसकी खासी पिटाई भी कर दी। इस प्रकार, दुष्ट व्यक्ति कीचड़ में ही मर गया। मूको का सहृदय स्वामी पुनः खुशी से रहने लगा, उन्होंने लम्बी आयु पाई।