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The Monkey and the Crocodile Summary in English by Paul Galdone
Author Name | Paul Galdone |
Born | 2 June 1907, Budapest, Hungary |
Died | 7 November 1986, Nyack, New York, United States |
Education | The Art Students League of New York |
Awards | Caldecott Medal |
The Monkey and the Crocodile Summary in English
Once there lived a monkey in a fruit tree on a river bank. He was happy but he felt lonely. He wanted to have a companion to talk to.
One day a crocodile appeared on the riverside. The monkey offered him fruits. He made friends with him.
The crocodile visited the monkey regularly. He took the fruits home also for his wife. Soon the two became the best of friends. They talked about birds, animals and the difficulties of the villagers.
One day the crocodile overstayed with the monkey. His wife became angry with him. She wanted to know who his friend was and why he was so fond of him. The crocodile told him about the monkey and his generous nature. Now his wife wanted to eat the heart of such a good monkey. The crocodile resisted. At this his wife dived in to hide herself at the bottom of the river.
The crocodile found himself in trouble. He loved his friend but he loved his wife more. He decided to please his wife. He planned to invite the monkey home for dinner.
He made the offer to the monkey. The monkey accepted the invitation gladly. Since he could not swim, he agreed to ride on the crocodile’s back.
In the middle of the river, the current was veiy strong. The crocodile told the monkey about his wife’s demand.
The clever monkey kept his head cool. He agreed to meet the demand of the friend’s wife. But he played a trick. He said that he had left his heart behind on the tree.
The foolish crocodile turned to swim back to the tree on the river bank. The monkey at once jumped on to the tree. He thus saved his life by using his wit. He broke his friendship with the crocodile for good.
The Monkey and the Crocodile Summary in Hindi
किसी समय नदी किनारे एक फलदार वृक्ष पर एक बन्दर रहता था। वह खुश था पर वह अकेलापन महसूस करता था। बातें करने के लिये उसे एक साथी की ज़रूरत थी।
एक दिन एक मगरमच्छ नदी किनारे आ गया। बन्दर ने उसे फल खाने को दिये। दोनों मित्र हो गये।
मगरमच्छ बन्दर से मिलने नियमित रूप से आने लगा। वह अपनी पत्नी के लिए भी अपने घर फल लाया करता था। बहुत जल्दी वे दोनों पक्के साथी बन गये। वे पक्षियों, पशुओं तथा गाँव वालों की कठिनाइयों की चर्चा करते रहते थे।
एक दिन मगरमच्छ अपने मित्र के पास कुछ अधिक समय तक ठहर गया। उसकी पत्नी आगबबूला हो गई। उसने मगरमच्छ से पूछा वह कौन-सा मित्र है जिसके साथ उसकी नजदीकियाँ इतनी बढ़ गई हैं। अपनी पत्नी को बंदर और उसकी उदार प्रतनि के बारे में मगरमच्छ ने बताया। इस पर उसने इच्छा व्यक्त की कि वह ऐसे अच्छे बन्दर का दिल खाना चाहती है। मगरमच्छ ने विरोध किया। पत्नी ने क्रोधावेश में नदी तल में डुबकी लगा ली।
मगरमच्छ संकट में पड़ गया। उसे मित्र प्यारा था पर पत्नी अधिक प्रिय थी। उसने अपनी पत्नी को खुश करने का निर्णय लिया। उसने बन्दर को अपने घर भोजन पर बुलाने का निर्णय ले लिया।
उसने यह निमन्त्रण बन्दर को दिया। बन्दर ने इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया। चूँकि वह तैर नहीं सकता था, वह मगर की पीठ पर सवार होकर जाने को सहमत हो गया।
नदी के बीच में पहुँचकर जहाँ जल प्रवाह बहुत तेज था, मगरमच्छ ने बन्दर को अपनी पत्नी की माँग के बारे में बताया।
चतुर बन्दर ने कोई क्रोध नहीं दिखाया। वह अपने मित्र की पत्नी की माँग पूरी करने पर राजी हो गया। पर उसने एक चाल चली। वह बोला, “मैं तो अपना दिल वृक्ष पर ही रख आया हूँ।”
मूर्ख मगरमच्छ नदी तट पर लगे वृक्ष के पास जाने को मुड़ गया। बन्दर तुरन्त उछल कर वृक्ष पर चढ़ गया। इस प्रकार उसने अपनी प्राण रक्षा बुद्धि बल से कर ली। उसने मगरमच्छ से सदा के लिये अपनी मित्रता तोड़ दी।