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The Selfish Giant Summary in English by Oscar Wilde
The Selfish Giant by Oscar Wilde About the Author
Author Name | Oscar Wilde |
Born | 16 October 1854, Westland Row, Dublin, Ireland |
Died | 30 November 1900, Paris, France |
Spouse | Constance Lloyd (m. 1884–1898) |
Movies | Wilde, Dorian Gray, An Ideal Husband, A Good Woman |
The Selfish Giant Summary in English
The Giant’s garden was very beautiful. Children loved to play in it. Every afternoon, as they were coming from school, they used to enter the large lovely garden with flowers and peach-trees.
But the Giant was selfish. One day when he returned home after seven years of ‘ stay with his friend, he saw the children playing in the garden. He shouted at them angrily and they ran away. The Giant decided not to allow anybody else to play there. So he built a high boundary wall around it. He also put up a notice that outsiders entering the garden will be punished.
The poor children had no other place to go. They didn’t like to play on the dusty road full of stones.
Then the spring came all over the country. Only in the garden of the selfish Giant it was still winter. No flowers bloomed and no birds sang. The only visitors were the snow and the frost which painted all the trees silver. The north wind roared there all day. It also asked the hailstones to come.
The Giant wondered why the spring passed by his garden. It was always winter there.
One morning he heard some lovely music of a linneta song bird outside his window. He jumped out of bed and looked out. He saw a wonderful sight. The children had crept in through a hole in the wa^l. They were sitting on the branches of trees which gladly welcomed them with flowers. Only in one corner it was still winter. A small boy was wandering all around the tree and crying. He was too small to climb up.
The Giant’s heart melted. He went out in the garden. The children ran away on seeing him. The garden became winter again. But when he put the small boy up into the tree, it broke into flowers. The boy threw his arms round his neck and kissed him. Other children noticed the change in the Giant’s behaviour. So they too came back. The Giant knocked down the wall and started playing with them. He wanted to see the small boy whom he had put up into the tree. But he had gone away.
Years went by and he grew old and weak. He realised that the children were the most beautiful flowers of all.
One winter morning he saw a tree covered with lovely white flowers and silver fruit. Under it stood the little boy. He came running, close to the boy. He noticed two nail wounds each on the boy’s arms and on the little feet. He declared angrily that he would kill cruel man who had injured him. At this the child told him that those were the wounds of Love. It further told that he had come to take him to his garden, which was paradise. In the afternoon the Giant was found lying dead under the tree.
The Selfish Giant Summary in Hindi
दानव का बगीचा काफी सुन्दर था। बच्चों को वहाँ खेलने में आनन्द आता था। हर शाम जब वे स्कूल से लौटते वे उस विशाल, मोहक बाग में जहाँ फूल तथा फल के वृक्ष थे, प्रवेश कर जाते थे।
पर दानव बहुत स्वार्थी था। एक दिन वह सात वर्षों तक अपने किसी मित्र के पास ठहरने के बाद घर लौटा। उसने बच्चों को बगीचे में खेलते पाया। उसने उन्हें क्रोध पूर्वक डाँटा। बच्चे डटकर भाग गये! दानव ने निर्णय किया कि वह किसी भी अन्य व्यक्ति को अपने बगीचे में खेलने नहीं देगा। इस विचार से उसने बगीचे के चारों ओर एक ऊँची चारदीवारी अमवा दी। उसने एक सूचना पट्टिका भी लटका दी कि कोई भी बाहरी व्यक्ति यदि बगीचे में प्रवेश किया तो उसे दण्डित किया जायेगा।
बेचारे बच्चों के पास खेल का कोई अन्य मैदान न था। वे धूल भरी तथा पशरोली सड़क पर खेलना पसन्द नहीं करते थे।
फिर बसंत ऋतु सारे देश में आ गई। पर स्वार्थी दानव के बगीचे में तब भी शोत ऋतु बनी रहीं। न कोई फूल खिले, न ही कोई पक्षी वहाँ गाता पाया गया। वहाँ आने वाले तो केवल हिम तथा तुषार ही थे जिन्होंने सभी वृक्षों को सफेद रंग से ढंक दिया था। ठण्डी उत्तरी पवन वहाँ सारा दिन दहाड़ने लगी। उसने ओलों को भी आमंत्रित कर लिया।
दानव हैरान था कि बसंत उसके बगीचे के बाहर से ही क्यों गुजर जाता है। वहाँ तो हमेशा शीत ऋतु बनी रहती है।
एक प्रात: उसे एक गायक पक्षी का स्वर खिड़की के बाहर से आता सुनाई दिया। वह बिस्तर से उछल कर खड़ा हो गया तथा बाहर दृष्टि दौड़ाई। उसे एक अद्भुत दृश्य दिखाई दिया। बच्चे बगीचे को चारदीवारी में बने छोटे छेद से अन्दर आ गये थे। वे वृक्षों की शाखाओं पर बैठे थे। वन वृक्षों ने उनका फूलों से अभिवादन किया। केवल एक कोने में अभी भी शीत ऋतु थी। एक छोटा बालक वृक्ष के चारों ओर घूमता हुआ रो रहा था। वह इतना छोटा था कि वृक्ष पर चढ़ नहीं सकता था। वह उस छोटे बालक को देखना चाहता था जिसे उसने वृक्ष की शाखा पर बिठाया था। लेकिन वह छोटा बालक जा चुका था।
दानव का दिल द्रवित हो गया। वह बगीचे में गया। बच्चे उसे देखते ही भाग गये। बगीच में गुन: बर्फ फैल गई। पर जब दानव ने छोटे बालक को वृक्ष की एक शाखा पर बिठाया, तो वृक्ष फूलों से लद गया। बालक ने दानव के गले में बांह डाल दो तथा उसे प्यार किया। अन्य बच्चों ने दानव के व्यवहार में आये परिवर्तन को देखा! इस कारण वे भी वापिस आ गये। दानव ने चारदीवारी तोड़ दी तथा बच्चों वं साथ खेलने लगा। वह उस छोटे बालक को देखना चाहता था जिसे वृक्ष की शाखा पर बिठाया था। लेकिन वह छोटा बालक जा : का था।
अनेक वर्ष बीत गये और वह कमजोर और बूढ़ा हो गया। उसे लगा कि बच्चे ही सबसे अधिक सुन्दर फूल होते हैं।
जाड़े की एक सुबह दानव ने एक वृक्ष को सफेद फूलों तथा चाँदी जैसे फलों से लदा देखा। उसी के नीचे वह छोटा बालक खड़ा था। दानव दौड़ कर बालक के निकट गया। उसने बालक की हथेलियों एवं पैरों पर कील ठोके जाने से बने दो धाव देखे। वह क्रोध से चिल्ला उठा कि मैं उस क्रूर व्यक्ति की जान ले लूँगा। पर बच्चे ने हँस कर कहा कि ये घाव तो प्यार के घाव हैं। उसने आगे कहा कि वह तो उसे अपने बगीचे, जो स्वर्ग है, में ले जाने के लिए आया है। दानव का मृत शरीर दोपहर में वृक्ष के नीचे पाया गया।