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The Summit Within Summary in English by H.P.S. Ahluwalia

The Summit Within Summary in English

Major Ahluwalia was a member of the first team conquering Mount Everest in 1965. In this extract he tells about his feelings standing on the highest peak of the world.

His first feeling was of humility. He thanked God because the expedition had ended successfully. He was both happy and sad. He felt aggrieved because he had reached the summit and after that there would be nothing higher to climb.

Climbing Mount Everest gives a deep sense of joy which lasts for lifetime. The experience changes one completely. It was a conquest of a high mountain. But the writer felt that climbing or getting over the summit of the mind was no less difficult.

While climbing down from the top, he asked himself why he had chosen to climb. This achievement became a thing of the past. It would fade with the passing of time. He questioned himself as to why people wish to climb high mountains. The simplest answer is that it is a difficult task, and man feels great in overcoming difficulties. Climbing a mountain is a tough task because it tests one’s physical strength and will power.

The writer then proceeds to answer the personal question. Mountains had an attraction for him since his childhood. He missed them while he was away from them. Their beauty and grandeur presented a challenge. Above all, mountains are a way to feel close to God.

But why Everest? He chose it because it was the highest and the most challenging task It was a hard struggle With rocks and ice. When he stood on the summit, he felt the joy of having done something great, of achieving great victory. The call of Everest draws him to it. It is difficult to tell the reason for climbing. It is like answering why one breathes or why you do good acts. The success is followed by a sense of fulfilment or satisfaction. It is a proof of man’s love for adventure.

There is another summit to climb. It is within yourself, your own mind. The most difficult task is to know oneself. One has to do it alone and himself. The writer’s experience as an Everester inspired him to face life boldly.

The Summit Within Summary in Hindi

मेजर अहलूवालिया उस पहले दल के सदस्य थे जिसने पहली बार माउन्ट एवरेस्ट पर 1965 में सफल अभियान किया था। इस पाठ में वह हमें अपनी भावनाओं के बारे में बताते हैं जो विश्व के सर्वोच्च शिखर पर खड़े होकर उन्होंने महसूस की थीं।

उनके मन में सबसे पहले तो विनम्रता का भाव आया। उन्होंने परमात्मा को धन्यवाद दिया क्योंकि एवरेस्ट पर्वत पर विजय अभियान सफल रहा है। वह खुश और उदास दोनों ही थे। उन्हें उदासी इस बात की थी कि वह जिस शिखर पर पहुंच गए हैं उसके पश्चात अब कोई दूसरा पर्वत शिखर चुनौती देने वाला नहीं बचा।

एवरेस्ट पर्वत की विजय एक गहरी खुशी देती है जो आजीवन बनी रहती है। यह अनुभव मनुष्य को पूरी तरह से बदल देता है। इस ऊँचे पर्वत पर विजय प्राप्त कर लेखक को महसूस हुआ कि अपने मन पर विजय प्राप्त करना कम कठिन नहीं है।

जब वह शिखर पर से नीचे उतर रहे थे उन्होंने स्वयं से पूछा कि उन्होंने पर्वतारोहण का काम क्यों चुना। उनकी उपलब्धि तो अब अतीत की बात हो गई है। समय बीतने के साथ यह खुशी कम होती जायेगी। उन्होंने स्वयं से प्रश्न किया कि लोग ऊँचे पर्वत पर चढ़ाई क्यों करते हैं। सरलतम उत्तर तो यह है कि पर्वत की चोटी पर पहुँचना बहुत कठिन काम है और मनुष्य कठिनाइयों पर विजय पाकर स्वयं को महान समझने लगता है। पर्वतारोहण मनुष्य की शारीरिक क्षमता एवं इच्छा शक्ति की परीक्षा लेता है।

लेखक इस निजी प्रश्न का उत्तर देता है। पर्वतों से उसे बचपन से आकर्षण रहा है। पर्वतों से दूर चले जाने पर उसे पर्वतों की याद आती थी। वह उनकी सुन्दरता तथा महानता को एक चुनौती के रुप में देखता था। सबसे बड़ी बात तो यह है कि पर्वतारोही स्वयं को परमात्मा के निकट महसूस करने लगता है।

पर प्रश्न उठता है कि सभी पर्वतों में से एवरेस्ट ही क्यों? उसने उसे इसलिए चुना क्योंकि वह सभी पर्वतों से अधिक ऊँचा तथा सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण काम था। लेखक का हिमालय पर चढ़ना तो जैसे चट्टानों और हिम से संघर्ष करना था। पर जब वह शिखर पर खड़ा था, उसे यह सोचकर खुशी हुई कि उसने महान विजय प्राप्त करके कोई महान कार्य संपन्न कर लिया। एवरेस्ट ने ही उसे पुकार कर बुलाया था।

पर्वतारोहण के पीछे क्या कारण होता है यह बताना कठिन है। यह प्रश्न तो वैसा ही है कि व्यक्ति साँस क्यों लेता है अथवा आप कोई नेक काम क्यों करते हैं। सफलता के पश्चात एक संतोष मिलता है। यह मनुष्य के साहसिक काम करने के प्रेम को दर्शाता है। यह अनुभव केवल शारीरिक नहीं है वरन् आध्यात्मिक भी है। आप ऊपर पहुँचने के लिये पूरा प्रयास करते हैं। साँस लेना भारी हो जाता है। वैसे क्षण भी आते हैं जब पर्वतारोही को लगता है कि वापस लौट जायें। पर कोई चीज है जो आपको प्रयास छोड़ देने से रोक देती है।

शिखर पर पहुँचकर आप स्वंय को बताते हैं कि प्रयास बहुत पुरस्कार देने वाला रहा। नीचे आप विशाल घाटियाँ देखते हैं। आप परमात्मा के सामने पूजा के लिए शीश झुका देते हैं।

लेखक एवरेस्ट शिखर पर गुरुनानक का चित्र छोड़ आया। एक सदस्य (रावत) ने देवी दुर्गा का चित्र छोड़ा और फूदोर्जी ने भगवान बुद्ध का एक अवशेष वहां रख दिया। एडमण्ड हिलेरी ने बर्फ में दबी चट्टान के नीचे क्रॉस रख दिया। ये सब परमात्मा के प्रति आदरभाव के प्रतीक हैं।

एक और भी शिखर है जिस पर हमें विजय पानी है। वह शिखर हमारे ही अन्दर है, हमारा दिमाग। सबसे दुष्कर कार्य है आत्मज्ञान। यह काम व्यक्ति को अकेले और स्वयं करना होता है। एवरेस्ट अनुभव ने लेखक को जीवन का निर्भीकता से सामना करने की प्रेरणा दी।