By going through these CBSE Class 8 Sanskrit Notes Chapter 6 गृहं शून्यं सुतां विना Summary, Notes, word meanings, translation in Hindi, students can recall all the concepts quickly.

Class 8 Sanskrit Chapter 6 गृहं शून्यं सुतां विना Summary Notes

गृहं शून्यं सुतां विना Summary

प्राचीन भारत में स्त्रियों को अत्यधिक सम्मान प्राप्त था। उनकी स्थिति उन्नत तथा सुदृढ थी। स्त्रियाँ सुशिक्षित होती थीं। स्त्रियों को शास्त्र का ज्ञान होता था। इतिहास में ब्रह्मवादिनी गार्गी, मैत्रेयी आदि का नाम विशेष उल्लेखनीय है। वैदिक युग में पुरुषों और स्त्रियों में कोई विभेद नहीं है।
गृहं शून्यं सुतां विना Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 6.1

कालान्तर में स्त्रियों की दशा दयनीय होती गई। उनकी सामाजिक, शैक्षणिक दशा में न्यूनता आती गई। इसके अतिरिक्त भ्रूणहत्या, सतीप्रथा जैसी कुत्सित प्रथाओं का आविर्भाव हो गया। ये प्रथाएँ अमानवीय हैं। समय समय पर महापुरुषों ने ऐसी प्रथाओं का घोर विरोध किया।
गृहं शून्यं सुतां विना Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 6.2
यह पाठ कन्याओं की गर्भ में हत्या पर रोक लगाने और उनकी शिक्षा को सुनिश्चित करने की दिशा में एक प्रशंसनीय कदम है। आज भी पुत्र और पुत्री में भेदभाव की भावना कार्यरत है। समाज में कन्या जन्म को आज के युग में भी तिरस्कार की दृष्टि से देखा जाता है। इसके निवारण की नितान्त आवश्यकता है। प्रस्तुत पाठ में संवादात्मक शैली में इन बातों को सुगमता से समझाया गया है।
गृहं शून्यं सुतां विना Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 6.3

गृहं शून्यं सुतां विना Word Meanings Translation in Hindi

मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः, सरलार्थश्च

(क) “शालिनी ग्रीष्मावकाशे पितृगृहम् आगच्छति। सर्वे प्रसन्नमनसा तस्याः स्वागतं कुर्वन्ति परं तस्याः भ्रातृजाया उदासीना इव दृश्यते”।

शालिनी – भ्रातृजाय! चिन्तिता इव प्रतीयसे, सर्वं कुशलं खलु?
माला – आम् शालिनि। कुशलिनी अहम्। त्वदर्थं किम् आनयानि, शीतलपेयं चायं वा?
शालिनी – अधुना तु किमपि न वाञ्छामि। रात्रौ सर्वैः सह भोजनमेव करिष्यामि।

शब्दार्थ-
पितगृहम्-पिता के घर।
कुर्वन्ति-करते हैं।
भ्रातृजाया-भाभी।
दृश्यते-दिखाई पड़ती है।
प्रतीयसे-प्रतीत होती हो।
त्वदर्थम्-तुम्हारे लिए।
अधुना-अब।
वाञ्छामि-चाहती हूँ (Want)।
रात्रौ-रात में।
सर्वैः-सभी।

सरलार्थ-

शालिनी गर्मी की छुट्टियों में पिता के घर आती है। सभी प्रसन्नमन होकर उसका स्वागत करते हैं, परन्तु उसकी भाभी उदासीन-सी दिखाई पड़ती है।
शालिनी – भाभी, (तुम) चिन्तित-सी प्रतीत होती हो। सभी कुशल तो हैं?
माला – मैं कुशल हूँ। तुम्हारे लिए क्या लाऊँ? चाय या ठण्डा?
शालिनी – इस समय मैं कुछ नहीं चाहती। रात में सभी के साथ भोजन ही कर लूंगी।

(ख) (भोजनकालेऽपि मालायाः मनोदशा स्वस्था न प्रतीयते स्म, परं सा मुखेन किमपि नोक्तवती)

राकेशः – भगिनि शालिनि! दिष्ट्या त्वं समागता। अद्य मम कार्यालये एका महत्त्वपूर्णा गोष्ठी सहसैव निश्चिता। अद्यैव मालायाः चिकित्सिकया सह मेलनस्य समयः निर्धारितः त्वं मालया सह चिकित्सिकां प्रति गच्छ, तस्याः परामर्शानुसारं यद्विधेयं तद् सम्पादय।
शालिनी – किमभवत्? भ्रातृजायायाः स्वास्थ्यं समीचीनं नास्ति? अहं तु ह्यः प्रभृति पश्यामि सा स्वस्था न प्रतिभाति इति प्रतीयते स्म।

शब्दार्थ-
मुखेन-मुख से।
नोक्तम्-नहीं कहा।
भगिनि-हे बहन।
सहसैव-अचानक ही।
दिष्ट्या-भाग्य से।
चिकित्सिकया-डाक्टर के साथ।
निर्धारितः-निर्धारित।
समीचीनम्-उचित।
प्रतिभाति-लगता है।

सरलार्थ-

(भोजन के समय भी माला की मनोदशा स्वस्थ प्रतीत नहीं होती थी, परन्तु मुख से कुछ नहीं कहा।)
राकेश – बहन शालिनी, भाग्य से तुम आ गई हो। आज मेरे कार्यालय में अचानक एक बैठक निश्चित की गई है। आज ही माला का डॉक्टर के साथ मिलने का समय निर्धारित है। तुम माला के साथ डॉक्टर के पास जाओ। उसकी सलाह के अनुसार जो करने योग्य है, वह करो।
शालिनी – क्या हुआ? (क्या) भाभी का स्वास्थ्य ठीक नहीं है? मैं तो कल से ही देख रही हूँ कि वह स्वस्थ नहीं लगती है, ऐसा प्रतीत होता था।

(ग) राकेशः – चिन्तायाः विषयः नास्ति। त्वं मालया सह गच्छ। मार्गे सा सर्वं
ज्ञापयिष्यति। (माला शालिनी च चिकित्सिकां प्रति गच्छन्त्यौ वार्ता कुरुतः)
शालिनी – किमभवत्? भ्रातृजाये? का समस्याऽस्ति?
माला – शालिनि! अहं मासत्रयस्य गर्दै स्वकुक्षौ धारयामि। तव भ्रातुः आग्रहः अस्ति यत् अहं लिङ्गपरीक्षणं कारयेयं कुक्षौ कन्याऽस्ति चेत् गर्भ पातयेयम्। अहम् अतीव उद्विग्नाऽस्मि परं तव भ्राता वार्तामेव न शृणोति।

शब्दार्थ-
ज्ञापयिष्यति-बता देगी।
गच्छन्त्यौ-जाती हुई।
मासत्रयस्य-तीन महीने का।
कुक्षौ-कोख में।
कारयेयम्-करवा लूँ।
पातयेयम्-गिरा देना।
उद्विग्ना-दु:खी।
शृणोति-सुनता है।

सरलार्थ –

राकेश – चिन्ता का विषय नहीं है। तुम माला के साथ जाओ। रास्ते में वह सब बता देगी। (माला और शालिनी डॉक्टर के पास जाती हुई वार्तालाप करती हैं)
शालिनी – क्या हुआ? भाभी। क्या समस्या है?
माला – शालिनी! मेरे कोख में तीन महीने का गर्भ है। तुम्हारे भाई का आग्रह है कि मैं लिङ्ग परीक्षण करवाऊँ और यदि कोख में कन्या है तो गर्भ को गिरवा दूँ। मैं अत्यधिक दुःखी हूँ तथा तेरा भाई सुनता ही नहीं है।

(घ) शालिनी – भ्राता एवं चिन्तयितुमपि कथं प्रभवति? शिशुः कन्याऽस्ति चेत् वधार्हा? जघन्यं कृत्यमिदम्। त्वम् विरोधं न कृतवती? सः तव शरीरे स्थितस्य शिशोः वधार्थं चिन्तयति त्वम् तूष्णीम् तिष्ठसि? अधुनैव गृहं चल, नास्ति आवश्यकता लिङ्गपरीक्षणस्य। भ्राता यदा गृहम् आगमिष्यति अहम् वार्ता करिष्ये।
(संध्याकाले भ्राता आगच्छति हस्तपादादिकं प्रक्षाल्य वस्त्राणि च परिवर्त्य पूजागृहं गत्वा दीप प्रज्वालयति भवानीस्तुतिं चापि करोति। तदनन्तरं चायपानार्थम् सर्वेऽपि एकत्रिताः।)

शब्दार्थ-
प्रभवति-समर्थ होता है।
वधार्हा-वध के योग्य।
जघन्यम्-पापपूर्ण।
वधार्थम्-हत्या के लिए।
तिष्ठसि-रहती हो।
अधुनैव-अभी ही।
आगच्छति-आता है।
हस्तपादादिकम्-हाथ व पैर।
प्रक्षाल्य-धोकर।
परिवर्त्य-बदल कर।
प्रज्वालयति-जलाता है।

सरलार्थ –

शालिनी – भाई अकेला कैसे विचार कर सकता है? यदि कन्या है तो हत्या करनी है। यह तो पापपूर्ण कार्य है। क्या तुमने विरोध नहीं किया? वह तुम्हारी कोख में स्थित बच्चे की हत्या के विषय में सोचता है और तुम चुप खड़ी हो। अभी घर चलो, लिंगपरीक्षण की आवश्यकता नहीं है। भाई जब घर आएगा, मैं बात कर लूँगी। (सायंकाल भाई आता है, हाथ-पैर आदि धोकर तथा कपड़े बदलकर पूजाघर में जाकर, दीपक जलाकर दुर्गा की पूजा करता है। तत्पश्चात् चायपान के लिए सभी एकत्रित होते हैं।)

(ङ) राकेशः – माले! त्वं चिकित्सिकां प्रति गतवती आसी:, किम् अकथयत् सा?
(माला मौनमेवाश्रयति। तदैव क्रीडन्ती त्रिवर्षीया पुत्री अम्बिका पितुः
क्रोडे उपविशति तस्मात् चाकलेहं च याचते। राकेशः अम्बिकां लालयति,
चाकलेहं प्रदाय तां क्रोडात् अवतारयति। पुनः माला प्रति प्रश्नवाचिका
दृष्टिं क्षिपति। शालिनी एतत् सर्वं दृष्ट्वा उत्तरं ददाति)

शालिनी – भ्रातः! त्वं किं ज्ञातुमिच्छसि? तस्याः कुक्षि पुत्रः अस्ति पुत्री वा? किमर्थम्? षण्मासानन्तरं सर्वं स्पष्टं भविष्यति, समयात् पूर्वं किमर्थम् अयम् आयासः?
राकेशः – भगिनि, त्वं तु जानासि एव अस्माकं गृहे अम्बिका पुत्रीरूपेण अस्त्येव।
अधुना एकस्य पुत्रस्य आवश्यकताऽस्ति तर्हि…….

शब्दार्थ-
मौनम्-चुप।
त्रिवर्षीया-तीन साल की।
क्रोडे-गोद में।
याचते-माँगती है।
प्रदाय-देकर।
क्षिपति-डालता है।
ज्ञातुम्-जानना।
किमर्थम्-किसलिए।
आयासः-प्रयास (Effort)।
षण्मासा-छह महीना।

सरलार्थ –

राकेश – माला! तुम डॉक्टर के पास गई थीं। उसने क्या कहा?
(माला चुप रहती हैं। तब तीन साल की खेलती हुई बेटी ‘अम्बिका’ पिता की गोद में बैठ जाती है, उससे चॉकलेट माँगती है। राकेश अम्बिका का लाड (प्यार) करता है और उसे चॉकलेट देकर गोद से उतार देता है। पुनः माला की ओर प्रश्नवाचक दृष्टि डालता है।
शालिनी – यह सब देखकर उत्तर देती है।) शालिनी – भाई! तुम क्या जानना चाहते हो? उसकी कोख में पुत्र है या पुत्री? किसलिए? छह महीने के पश्चात् सब स्पष्ट हो जाएगा। समय से पूर्व यह प्रयास कैसा?
राकेश – बहन! तुम जानती तो हो कि पहले ही हमारे घर में पुत्री के रूप में ‘अम्बिका’ है ही। अब एक पुत्र की आवश्यकता है। अवश्य ही

(च) शालिनी – तर्हि कुक्षि पुत्री अस्ति चेत् हन्तव्या? (तीव्रस्वरेण) हत्यायाः पापं कर्तुं प्रवृत्तोऽसि त्वम्।
राकेशः – न, हत्या तु न…।
शालिनी – तर्हि किमस्ति निघृणं कृत्यमिदम्? सर्वथा विस्मृतवान् अस्माकं जनकः
कदापि पुत्रीपुत्रमयः विभेदं न कृतवान्? सः सर्वदैव मनुस्मृतेः पंक्तिमिमाम् उद्धरति स्म “आत्मा वै जायते पुत्रः पुत्रेण दुहिता समा”। त्वमपि सायं प्रातः देवीस्तुतिं करोषि? किमर्थं सृष्टः उत्पादिन्याः शक्त्याः तिरस्कारं करोषि? तव मनसि इयती कुत्सिता वृत्तिः आगता, इदं चिन्तयित्वैव अहम्
कुण्ठिताऽस्मि। तव शिक्षा वृथा’

शब्दार्थ-
हन्तव्या-मार डालना है।
तर्हि-अवश्य।
निघृणम्-क्रूर।
विभेदम्-अन्तर (Difference)।
उद्धरति-उद्धृत करता।
जायते-उत्पन्न होता है।
समा-समान।
तिरस्कारम्-अपमान।
कुण्ठिता-कुण्ठित।
उत्पादिन्याः-उत्पन्न करने वाली।
इयती-इतनी।

सरलार्थ –

शालिनी – अवश्य ही, यदि कोख में कन्या होगी तो मार देना चाहिए। (तेज आवाज में) तुम हत्या के पाप में प्रवृत्त हो।
राकेश – नहीं, हत्या नहीं।
शालिनी – तो यह क्रूर कर्म क्या है? क्या तुम सर्वथा भूल गए हो कि हमारे पिता ने बेटा-बेटी में भेद कभी नहीं किया। वे सदा मनुस्मृति के इस वाक्य को उद्धृत करते थे- आत्मा ही पुत्र के रूप में उत्पन्न होती है, पुत्री पुत्र के समान होती है। तुम भी प्रातः सायं देवी की स्तुति करते हो। जगत् को उत्पन्न करने वाली शक्ति का तिरस्कार किसलिए करते हो? तुम्हारे मन में इतनी गन्दी विचारधारा आ गई है- यह सोचकर ही मैं कुण्ठित हूँ। तुम्हारी शिक्षा व्यर्थ………..।

(छ) राकेशः – भगिनि! विरम विरम। अहं स्वापराधं स्वीकरोमि लज्जितश्चास्मि। अद्यप्रभृति कदापि गर्हितमिदं कार्यं स्वप्नेऽपि न चिन्तयिष्यामि। यथैव अम्बिका मम हृदयस्य संपूर्णस्नेहस्य अधिकारिणी अस्ति, तथैव आगन्ता शिशुः अपि स्नेहाधिकारी भविष्यति पुत्रः भवतु पुत्री वा। अहं स्वगर्हितचिन्तनं प्रति पश्चात्तापमग्नः अस्मि, अहं कथं विस्मृतवान्

“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैताः न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रियाः।”
अथवा “पितुर्दशगुणा मातेति।” त्वया सन्मार्गः प्रदर्शितः भगिनि।
कनिष्ठाऽपि त्वं मम गुरुरसि।

शब्दार्थ-
विरम-रुक जाओ।
स्वापराधम्-अपने अपराध को।
अद्यप्रभृति-आज से लेकर।
गर्हितम्-निन्दनीय।
आगन्ता-आने वाला।
शिशुः-बच्चा।
नार्यः-स्त्रियों की।
अफला:-व्यर्थ।
प्रदर्शितः-दिखला दिया।
कनिष्ठा-(आयु में) छोटी।

सरलार्थ –

राकेश – बहन। रुक जाओ, रुक जाओ। मैं अपने अपराध को स्वीकार करता हूँ और लज्जित हूँ। आज से लेकर कभी इस निन्दनीय कार्य का चिन्तन नहीं करूँगा। जिस प्रकार ‘अम्बिका’ मेरे हृदय की तथा सम्पूर्ण स्नेह की अधिकारी है, उसी प्रकार आने वाला बच्चा भी स्नेह का अधिकारी होगा। पुत्र होवे अथवा पुत्री। मैं अपने निन्दनीय विचार के प्रति पश्चाताप में डूबा हुआ हूँ। मैं किस प्रकार भूल गया हूँ-

जहाँ स्त्रियों की पूजा होती है, वहाँ देवता प्रसन्न होते हैं। जहाँ इनकी पूजा नहीं होती है, वहाँ सभी क्रियाएँ व्यर्थ होती हैं। अन्वयः-यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, तत्र देवताः रमन्ते। यत्र एताः न पूज्यन्ते, तत्र सर्वाः क्रियाः अफलाः (भवन्ति।) अथवा ‘पिता से दश गुणा माता (सम्माननीय) है।’ तुमने सन्मार्ग दिखला दिया है। बहन, (आयु में) छोटी होते हुए भी तुम मेरी गुरु हो।

(ज) शालिनी – अलं पश्चात्तापेन। तव मनसः अन्धकारः अपगतः प्रसन्नतायाः विषयोऽयम् भ्रातृजाये! आगच्छ। सर्वां चिन्तां त्यज आगन्तुः शिशोः स्वागताय च सन्नद्धा भव। भ्रातः त्वमपि प्रतिज्ञां कुरु-कन्यायाः रक्षणे, तस्याः पाठने दत्तचित्तः स्थास्यसि “पुत्रीं रक्ष, पुत्री पाठय” इतिसर्वकारस्य घोषणेयं तदैव सार्थिका भविष्यति यदा वयं सर्वे मिलित्वा चिन्तनमिदं यथार्थरूपं

करिष्यामः –

या गार्गी श्रुतचिन्तने नृपनये पाञ्चालिका विक्रमे।
लक्ष्मीः शत्रुविदारणे गगनं विज्ञानाङ्गणे कल्पना।।
इन्द्रोद्योगपथे च खेलजगति ख्याताभितः साइना
सेयं स्त्री सकलासु दिक्षु सबला सर्वैः सदोत्साह्यताम्।

अन्वयः-
श्रुतचिन्तने नृपनये या गार्गी, विक्रमे पाञ्चालिका, शत्रुविदारणे लक्ष्मीः, विज्ञानांगणे गगनं कल्पना, इन्द्रोद्योगपथे खेलजगति च अभितः ख्याता साइना, सा इयं स्त्री सकलासु दिक्षु सबला (अस्ति), (स्त्री) सर्वैः सदा उत्साह्यताम्।

शब्दार्थ-
अलम्-बस करो।
अपगतः-दूर हो गया।
त्यज-छोड़ दो।
आगन्तुः-आने वाले का।
सन्नद्धा-तैयार।
दत्तचित्तः- ध्यान युक्त।
सर्वकारस्य-सरकार की।
मिलित्वा-मिलकर।
नृपनये-राजनीति में।
विक्रमे-विक्रम में।
पाञ्चालिका-द्रौपदी।
विदारणे-विनाश करने में।
अँगने-आँगण में।
ख्याता-प्रसिद्ध।
सकलासु-सभी।
उत्साह्यताम्-प्रोत्साहित किया जाए।

सरलार्थ –

शालिनी –
पश्चात्ताप मत करो। तुम्हारे मन का अज्ञान नष्ट हो गया है। प्रसन्नता का विषय है भाभी चिन्ता को छोड़ दो। आने वाले शिशु के स्वागत के लिए तैयार हो जाओ। भाई, तुम भी प्रतिज्ञा करो- कन्या की रक्षा करने में उसके पालन में सावधान रहँगा। ‘बेटी की रक्षा करो, बेटी का पालन करो’ यह सरकार की घोषणा तभी सार्थक होगी, जब हम सभी मिलकर इस विचार को सत्य करेंगे- वेदशास्त्रों के चिन्तन में जो गार्गी तथा राजनीति में, पराक्रम में द्रौपदी, शत्रु का विनाश करने में लक्ष्मीबाई, विज्ञान के क्षेत्र में कल्पना, इन्द्र उद्योग के पथ पर तथा खेल जगत् में साइना- ये चारों ओर प्रसिद्ध (स्त्रियाँ) हैं। यह स्त्री सभी दिशाओं में सबला है। सभी इसे सदा प्रोत्साहित करें।