CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 5 are part of CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi. Here we have given CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 5.

CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 5

Board CBSE
Class XII
Subject Hindi
Sample Paper Set Paper 5
Category CBSE Sample Papers

Students who are going to appear for CBSE Class 12 Examinations are advised to practice the CBSE sample papers given here which is designed as per the latest Syllabus and marking scheme as prescribed by the CBSE is given here. Paper 5 of Solved CBSE Sample Paper for Class 12 Hindi is given below with free PDF download solutions.

समय :3 घंटे
पूर्णांक : 100

सामान्य निर्देश

  • इस प्रश्न-पत्र के तीन खंड हैं-क, ख और ग।
  • तीनों खंडों के प्रश्नों के उत्तर देना अनिवार्य है।
  • यथासंभव प्रत्येक खंड के उत्तर क्रमशः दीजिए।

प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (15)

कोई अपने दुर्भाग्य को कोस रहा है, कोई अपनी पारिवारिक दीनता को दोषी बता रहा है, कोई सहारे के अभाव को अपनी असफलता का आधार मान रहा है बहुत से असफल व्यक्ति इसी तरह अनेक कारणों को अपनी असफलता का आधार मानते हैं, विभिन्न कारणों की कल्पना कर हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहते हैं। वे अपने जीवन में कुछ कर नहीं पाते। वे समाज के लिए, संसार के लिए कुछ नहीं कर पाते।

ऐसे मनुष्यों को जीवन में कोई राह नहीं मिलती, कोई चारा नहीं दिखता। वे दूसरों से अपेक्षा करते हैं कि कोई उन्हें किसी लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग दिखाए, सफलता की सीढ़ी बताए, जिससे वे उस पर आसानी से चढ़ सकें। किंतु, ऐसे लोगों को यह भूली-भाँति जानना चाहिए कि जहाँ चाह है, वहीं राह है। हमारी इच्छाशक्ति स्वयं हमारे लिए मार्ग बना देती है। अच्छे कार्य में धन की उतनी आवश्यकता नहीं होती, जितनी इच्छाशक्ति की होती है। ‘एमर्सन’ ने ठीक ही कहा है कि इतिहास, पुराण सभी साक्षी हैं कि मनुष्य के दृढ़ संकल्प के आगे देव-दानव सभी पराजित होते रहे हैं। दृढ़ इच्छाशक्ति ने भगवान तक को घंटों कच्चे धागे से बाँधकर नचाया है।

हाँ, इतना ध्यान रखना होगा कि हमारी चाह बरसाती बादल का एक टुकड़ा न हो, जिसे हवा का एक झोंका जिधर चाहे उड़ाकर ले जाए। यदि हमारी इच्छाशक्ति क्षुद्र और दुर्बल होगी, तो हमारी मानसिक शक्तियों का कार्य भी वैसा ही होगा। स्वामी विवेकानंद का दिव्य वचन है कि पवित्र और दृढ़ इच्छा सर्वशक्तिमान है।

अतः यह नीति ठीक है कि हमारी चाह ही रास्ता बना जाती है। अंधकार से आच्छन्न मानव ने कभी इच्छा व्यक्त की थी कि प्रकाश हो और प्रकाश हो गया। मनुष्य की इस चाह, इस लगन, इस उत्कट इच्छा-चमत्कार की अनगिनत कहानियाँ हैं।

जब आततायी रावण श्रीरामवल्लभा सीता को हरकर लंका ले गया, तब राम को पता चला कि मार्ग में समुद्र व्यवधान बुनुकर खड़ा है। राम के अंतर्मन में सीता प्राप्ति की चाह ने सागर पुर सेतु-निर्माण किया। चाणक्य के पास आखिर था क्या? किंतु, नंद साम्राज्य के विनाश के उत्कट संकल्प ने उनके लिए मार्ग-निर्माण कर दिया था। हमारे आदर्श नेताजी सुभाषचंद्र बोस के पास क्या साधन था? किंतु, अंग्रेज़ों को भगा देने की दृढ़ चाह ने उनसे इतनी बड़ी ‘आज़ाद हिंद फ़ौज की स्थापना करा दी थी। पं. मदनमोहन मालवीय के पास कौन-सा कुबेर कोष था? किंतु, उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की लगन ने सारे विघ्नों को काटकर मार्ग बना दिया।

(क) प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक लिखिए। (1)
(ख) अधिकांश असफल व्यक्ति अपने जीवन में कुछ विशेष क्यों नहीं कर पाते? (2)
(ग) असफल व्यक्ति दूसरों से क्या अपेक्षाएँ रखते हैं? (2)
(घ) गद्यांश का केंद्रीय भाव लगभग 20 शब्दों में लिखिए। (2)
(ङ) “हमारी चाह बरसाती बादल का एक टुकड़ा न हो”-पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। (2)
(च) ‘आच्छन्न’ शब्द का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताइए कि मानव ने कैसी इच्छा व्यक्त की थी? (2)
(छ) मनुष्य की दृढ़ इच्छाशक्ति के परिणामों को किन उदाहरणों द्वारा दर्शाया गया है? (2)
(ज) ‘कुबेर कोष’ में निहित समास को स्पष्ट करें। (2)

प्रश्न 2.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए

CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 5 1

(क) प्रस्तुत काव्यांश का केंद्रीय भाव क्या है?
(ख) “लाख करे पतझर कोशिश पर उपवन नहीं मरा करता है।” काव्य पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) “लूट लिया माली ने उपवन, लुटी न लेकिन गंध फूल की” काव्य पंक्ति के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?
(घ) प्रस्तुत काव्यांश किस प्रकार की रचना है? इससे कौन-सी प्रेरणा ग्रहण की जा सकती है?
(ङ) प्रस्तुत काव्यांश का सर्वाधिक उचित शीर्षक लिखिए।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर अनुच्छेद लिखिए

(क) विज्ञान : सृजन या विध्वंस
(ख) इंटरनेट : ज्ञान का सुपर हाइवे
(ग) ग्रामीण जीवन की समस्याएँ
(घ) गिरते नैतिक मूल्यों के कारण

प्रश्न 4.
मोटर साइकिल चोरी होने की सूचना देने तथा उसे वापस दिलाने का आग्रह करते हुए संबंधित थाना प्रभारी को पत्र लिखिए।
अथवा
अपने क्षेत्र में छोटे बच्चों का विद्यालय खोलने की माँग करते हुए राज्य के शिक्षा मंत्री को पत्र लिखिए। (5)

प्रश्न 5.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में दीजिए (1 × 5= 5)

(क) भारत सरकार की ओर से प्रकाशित की जाने वाली चार हिंदी पत्रिकाओं के नाम लिखिए।
(ख) फ्री लांसर पत्रकार किसे कहते हैं?
(ग) पीटीआई के बारे में बताइए।
(घ) टीवी लोकप्रिय माध्यम क्यों है?
(ङ) उल्टा पिरामिड शैली क्या होती है?

प्रश्न 6.
‘महानगरों में बढ़ता आबादी का बोझ’ विषय पर एक आलेख लिखिए।
अथवा
हाल ही में पढ़ी गई किसी पुस्तक की समीक्षा लिखिए।

प्रश्न 7.
‘नदी जोड़ो परियोजना’ अथवा ‘गुम होती चहचहाहट’ विषय में से किसी एक विषय पर फ़ीचर लेखन तैयार कीजिए। (5)

प्रश्न 8.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 4 = 8)

सारी मुश्किल को धैर्य से समझे बिना
मैं पेंच को खोलने के बजाय
उसे बेतरह कसुता चला जा रहा था
क्योंकि इस करतूब पर मुझे
साफ़ सुनाई दे रही थी।

तमाशबीनों की शाबाशी और वाह वाह।
आख़िरकार वही हुआ जिसका मुझे डर था।
ज़ोर ज़बरदस्ती से
बात की चूड़ी मर गई
और वह भाषा में बेकार घूमने लगी।

(क) कवि बात की पेंच खोलने के बजाय क्या करने लगा?
(ख) पेंच को खोलने से कवि का क्या अभिप्राय है?
(ग) प्रस्तुत काव्यांश का केंद्रीय भाव लिखिए।
(घ) कवि को क्या इर था? उसके घटित होने का क्या परिणाम हुआ?

अथवा

(क) दूरदर्शन का कार्यक्रम संचालक अपाहिज व्यक्ति के दुःख को बार-बार प्रकट करना क्यों चाहता है?
(ख) किसी व्यक्ति के दुःख की प्रस्तुति करके कार्यक्रम को रोचक बनाना कहाँ तक उचित है?
(ग) काव्यांश की काव्य पंक्ति “इंतज़ार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का” किसके लिए प्रयुक्त की गई है?
(घ) काव्यांश में प्रयुक्त काव्य पंक्ति “हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे”-में कौन-सा भाव निहित है? और यह कथन किसका है?

प्रश्न 9.
निम्नलिखित काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 3 = 6)

मैं रोया, इसको तुम कहते हो गाना,
मैं फूट पड़ा, तुम कहते, छंद बनाना;
क्यों कवि कहकर संसार मुझे अपनाए,
मैं दुनिया का हूँ एक नया दीवाना!

मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता नि:शेष लिए फिरता हूँ;
जिसको सुनकर जग झूम, झुके, लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ!

(क) प्रस्तुत काव्यांश के भाव-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश के शिल्प सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ग) काव्यांश में प्रयुक्त पंक्ति “मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ”-में क्या अभिप्राय निहित है?

अथवा

फिर-फिर
बार-बार गुर्जन
वर्षण है मूसलुधार,
हृदय थाम लेता संसार,

सुन-सुन घोर वज्र-हुंकार।
अशनि-पात से शापित उन्नत शत-शत वीर,
क्षत-विक्षत हतु अचल-शरीर,
गगन-स्पर्शी स्पर्धा धीर।

(क) प्रस्तुत काव्यांश के शिल्प सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
(ख) काव्यांश में बादलों के लिए प्रयुक्त किन्हीं दो विशेषणों को स्पष्ट कीजिए।
(ग) काव्यांश में निहित मूल स्वर को स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 10.
निम्नलिखित में से किन्हीं दो प्रश्नों के उत्तर दीजिए (3 × 2 = 6)

(क) ‘पतंग’ कविता के आधार पर बताइए कि पतंग के लिए सबसे हल्की और रंगीन चीज़, सबसे पतला कागज़, सबसे पतली कमानी’ जैसे विशेषणों का प्रयोग क्यों किया गया है?
(ख) भाषा को सहूलियत से बरतने का क्या अभिप्राय है?
(ग) फ़िराक की रुबाइयों में उभरे घरेलू जीवन के बिंबों का सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 11.
निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए (2 × 4 = 8)

जाति-प्रथा के पोषक, जीवन, शारीरिक सुरक्षा तथा संपत्ति के अधिकार की स्वतंत्रता को तो स्वीकार कर लेंगे। परंतु मनुष्य के सुक्षम एवं प्रभावशाली प्रयोग की स्वतंत्रता देने के लिए जल्दी तैयार नहीं होंगे, क्योंकि इस प्रकार की स्वतंत्रता का अर्थ होगा अपना व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता, जो किसी को नहीं है, तो उसका अर्थ उसे ‘दासता’ में जकड़कर रखना होगा, क्योंकि ‘दासता केवुल कानूनी पराधीनता को ही नहीं कहा जा सकता। ‘दासता’ में वह स्थिति भी सम्मिलित है, जिससे कुछ। व्यक्तियों को दूसरे लोगों के द्वारा निर्धारित व्यवहार एवं कर्तव्यों का पालन करने के लिए विवश होना पड़ता है। यह स्थिति कानूनी पराधीनता न होने पर भी पाई जा सकती है। उदाहरणार्थ, जाति-प्रथा की तरह ऐसे वर्ग होना संभव हैं, जहाँ कुछ लोगों को अपनी इच्छा के विरुद्ध पेशे अपनाने पड़ते हैं।

(क) जाति-प्रथा के पोषक लोग सहजतापूर्ण क्या स्वीकार करने को तैयार हैं और क्या नहीं?
(ख) ऐसी कौन-सी चीज़ है, जिसकी छूट परंपरागत जाति-प्रथा में नहीं मिलती?
(ग) प्रस्तुत गद्यांश के आधार पर दासता का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
(घ) जाति-प्रथा में कानून की भूमिका नगण्य होती है। स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न 12.
निम्नलिखित में से किन्हीं चार प्रश्नों के उत्तर दीजिए (3 × 4= 12)

(क) नमक की पुड़िया के संबंध में सफ़िया के मन में क्या द्वंद्व था? उसका क्या समाधान निकला?
(ख) शिरीष के फूल’ पाठ के लेखक ने गाँधीजी और शिरीष के बीच तुलना क्यों की है।
(ग) राजा के द्वारा ‘लुट्टन सिंह पुकारे जाने पर किस-किसने आपत्ति की और क्यों? तब राजा ने क्या किया?
(घ) ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के लेखक ने किस बाज़ार को मानवता के लिए विडंबना कहा है और क्यों?
(ङ) “सभी को अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है”-‘भक्तिन’ पाठ में ऐसा क्यों कहा गया है?

प्रश्न 13.
आपके विचार से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया सही था या लेखक के पिता का? तर्क सहित उत्तर दीजिए।

प्रश्न 14.

(क) ‘डायरी के पन्ने पाठ के आधार पर ऐन फ्रैंक के व्यक्तित्व की तीन विशेषताओं पर प्रकाश डालिए। (5)
(ख) “सिंधु घाटी की सभ्यता केवल अवशेषों के आधार पर बनाई गई एक धारणा है।”- इसके पक्ष या विपक्ष में अपने विचार प्रस्तुत कीजिए। (5)

उत्तर

उत्तर 1.
(क) प्रस्तुत गद्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक ‘दृढ़ इच्छाशक्ति की महत्ता’ हो सकता है, क्योंकि समग्र गद्यांश दृढ़ इच्छाशक्ति के महत्त्व को ही प्रतिपादित करता है।

(ख) असफल व्यक्ति हमेशा किसी-न-किसी को दोषी ठहराते हैं। कभी अपने भाग्य को, तो कभी अपनी पारिवारिक दीनता को। इसी प्रकार अनेक काल्पनिक कारणों को अपनी असफलता के लिए ज़िम्मेदार मानते हैं। वे हमेशा हाथ-पर-हाथ धरे अपनी असफलता के लिए उत्तरदायी बहानों की तलाश करते रहते हैं। सफलता प्राप्ति के लिए अपने पुरुषार्थ का उपयोग नहीं करते। इसलिए अधिकांश असफल व्यक्ति जीवन में कुछ विशेष नहीं कर पाते।

(ग) असफल व्यक्ति दूसरों से यह अपेक्षा रखते हैं कि कोई उन्हें लक्ष्य प्राप्ति का मार्ग दिखाए, सफलता की सीढ़ी बताए, जिस पर आसानी से चढ़कर वे सफलता को प्राप्त कर सकें। ऐसे व्यक्ति अपनी कर्मठता, अपने परिश्रम पर विश्वास न करके हमेशा दूसरों से सहायता प्राप्ति की ताक में रहते हैं। ये आत्मविश्वासी एवं आत्मनिर्भर नहीं होते, बल्कि हर कार्य में ये दूसरों पर आश्रित रहते हैं।

(घ) प्रस्तुत गद्यांश का केंद्रीय भाव यह है कि सफलता प्राप्ति का मूल-मंत्र दृढ़ इच्छाशक्ति है। यदि व्यक्ति में दृढ़ इच्छाशक्ति है, तो यही इच्छाशक्ति व्यक्ति के लिए सफलता को मार्ग प्रशस्त करती है। वह स्वयं को सर्वशक्तिमान एवं परिश्रमी मानता है। और उसे अपनी क्षमता पर विश्वास रहता है। यही आत्मविश्वास व्यक्ति में लगन, उत्साह एवं परिश्रम करने की इच्छा उत्पन्न करता है, जिसे सामान्य रूप से दृढ़ इच्छाशक्ति के रूप में जाना जाता है।

(ङ) प्रस्तुत गद्यांश में प्रयुक्त पंक्ति-“हमारी चाह बरसाती बादल का एक टुकड़ा न हो’–का आशय यह है कि व्यक्ति की इच्छाशक्ति, उसकी आकांक्षा दृढ़ एवं स्थिर होनी चाहिए, तभी उस आकांक्षा की पूर्ति हेतु वह निरंतर प्रयासरत रहकर उसे प्राप्त कर सकता है। यदि हमारी इच्छाशक्ति क्षुद्र व दुर्बल होगी, तो इससे लक्ष्य की प्राप्ति संभव नहीं है। जिस तरह बरसाती बादल थोड़े समय के लिए आकाश में छा जाते हैं और फिर थोड़ा-सा बरसकर या हवा में उड़कर समाप्त हो जाते हैं, उसी तरह क्षणिक या अस्थायी इच्छा व्यक्ति को स्थायी परिणाम तक नहीं पहुँचाती अर्थात् सफलता प्राप्त करने में सहायक नहीं हो सकती।

(च) ‘आच्छन्न’ शब्द का अर्थ होता है-पूरी तरह से ढका हुआ, घिरा हुआ अर्थात् चारों तरफ़ से घिरा होने को आच्छन्न कहा जाता है। प्रस्तुत गद्यांश में स्पष्ट किया गया है कि मनुष्य की चाह ही रास्ता बनाती है। अंधकार से आच्छन्न मनुष्य ने जब प्रकाश हो जाने की इच्छा व्यक्त की, तो प्रकाश हो गया।

(छ) प्रस्तुत गद्यांश में मनुष्य की दृढ़ इच्छाशक्ति के सुपरिणामों को दर्शाने के लिए राम द्वारा सीता प्राप्ति हेतु सागर पर सेतु-निर्माण, चाणक्य द्वारा नंद साम्राज्य के विनाश, नेताजी सुभाषचंद्र बोस द्वारा ‘आज़ाद हिंद फ़ौज’ की स्थापना तथा पं. मदनमोहन मालवीय द्वारा बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना संबंधी उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं। इन उदाहरणों द्वारा यह प्रतिपादित करने की कोशिश की गई है कि लक्ष्य प्राप्ति के लिए संसाधनों की नहीं, बल्कि दृढ़ इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है।

(ज) “कुबेर कोष’ अर्थात् ‘कुबेर का कोष’-संबंध तत्पुरुष समास। तत्पुरुष समास में अंतिम पद प्रधान होता है। इस समास में समस्त पदों का लिंग और वचन अंतिम पद के अनुसार ही होता है। इसमें जिस कारक की विभक्ति का लोप होता है, उसे उसी कारक के नाम से पुकारा जाता है।

उत्तर 2.
(क) प्रस्तुत काव्यांश के माध्यम से कवि लोगों को प्रेरणा देते हुए कहता है कि कुछ असफलताओं के मिलने से सफलता प्राप्ति का रास्ता बंद नहीं हो जाता। कुछ सपनों के पूरा नहीं हो पाने से व्यक्ति को निराश नहीं होना चाहिए, क्योंकि इस जीवन में अनेक अवसर मौजूद हैं। अतः कवि ने लोगों को निराशा त्यागकर कार्यशील बनने के लिए प्रेरित किया है।

(ख) प्रस्तुत काव्य पंक्ति का आशय यह है कि व्यक्ति के जीवन में कितना भी दुःख या संघर्ष क्यों न आए-जाए, लगन के साथ निरंतर प्रयत्नशील रहने वाले व्यक्ति के जीवन में सुख की घड़ी अनिवार्य रूप से आएगी। निराशा कितनी भी गहरी क्यों न हो, वह आशा के मार्ग को बंद नहीं कर सकती।

(ग) प्रस्तुत काव्य पंक्ति के माध्यम से कवि कहना चाहता है कि कोई भी किसी व्यक्ति की बाह्य संपदा को ही लूट सकता है, उससे छीन सकता है; लेकिन उसकी आंतरिक संपदा को, उसके गुण को कोई भी अन्य व्यक्ति उससे नहीं छीन सकता। अतः मानव को बाहरी दिखावों पर ध्यान न देकर सदा अपने आंतरिक गुणों को निखारने का प्रयास करना चाहिए, जिन्हें कोई नहीं छीन सकता।

(घ) प्रस्तुत काव्यांश प्रेरणादायक एवं व्यक्ति को संघर्षरत रहने के लिए उत्साह प्रदान करने वाली रचना है। इस काव्यांश से निराश न होने तथा अपने आंतरिक गुणों को और समृद्ध करने की प्रेरणा ग्रहण की जा सकती है।

(ङ) प्रस्तुत काव्यांश का सर्वाधिक उपयुक्त शीर्षक होगा ‘स्वप्निल जीवन।

उत्तर 3.

(क) विज्ञान : मृजन या विध्वंस

विज्ञान ने मानव जीवन को सुखद व सुगम बना दिया है। आज मनुष्य विज्ञान की नवीन तकनीकों; जैसे-टेलीविज़न, कंप्यूटर आदि के माध्यम से घर बैठे-बैठे न केवल अपना संपूर्ण मनोरंजन कर लेते हैं, बल्कि कुछ ही समय में दुनियाभर की जानकारियाँ भी प्राप्त कर लेते हैं। इतना ही नहीं मनुष्य विज्ञान की सहायता से शारीरिक कमज़ोरियों एवं स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से पार पाने में अब पहले से कहीं अधिक सक्षम हो गया है। चिकित्सा क्षेत्र में हुई वैज्ञानिक प्रगति से अब ऐसी असाध्य बीमारियों का इलाज भी संभव हो गया है, जिन्हें पहले लाइलाज समझा जाता था।

विज्ञान की सहायता से मनुष्य ने मशीनों का आविष्कार अपने सुख-चैन के लिए किया है, किंतु अफ़सोस की बात यह है कि मशीन के साथ-साथ वह स्वयं भी मशीन होता जा रहा है एवं उसकी जीवन-शैली भी अत्यंत व्यस्त होती जा रही है। विज्ञान की सहायता से मशीनों के आविष्कार के बाद छोटे-छोटे एवं सामान्य कार्यों के लिए भी मशीनों पर निर्भरता बढ़ी है। जो कार्य पहले मानव द्वारा किया जाता था, उसके लिए अब मशीनों से काम लिया जा रहा है, फलस्वरूप बेरोज़गारी में भी वृद्धि हुई है। मशीनों के अत्यधिक प्रयोग एवं पर्यावरण के दोहन के कारण पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया है तथा प्रदूषण के कारण मनुष्य के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।

विज्ञान के दुरुपयोग के कारण यह मनुष्य के लिए विध्वंसक अवश्य लगे, किंतु इसमें कोई संदेह नहीं कि इसके कारण ही मनुष्य का जीवन सुखमय हो सका है और आज हम जो प्रगति एवं विकास की बहार देख रहे हैं, वह विज्ञान के बल पर ही संभव हो पाया है। इस तरह, विज्ञान मानव के लिए सृजनात्मक ही साबित हुआ है। विज्ञान को अभिशाप बनाने के लिए मनुष्य स्वयं ही दोषी है। अंततः देखा जाए, तो विज्ञान मनुष्य के लिए वरदान है।

(ख) इंटरनेट : ज्ञान का सुपर हाइवे

इंटरनेट सार्थक समाज में शिक्षा, संगठन और भागीदारी की दिशा में एक बहुत ही सकारात्मक कदम हो सकता है। इंटरनेट के माध्यम से खेलने, पढ़ने, संगीत सुनने और चित्र बनाने जैसे शौक भी पूरे किए जा सकते हैं। यही कारण है कि इसे कोई जादू , तो कोई विज्ञान का चमत्कार, तो कोई ज्ञान का सुपर हाइवे कहता है। यह सूचना-क्रांति की देन है कि इंटरनेट न केवल मानव के लिए अति उपयोगी साबित हुआ है, बल्कि संचार में गति एवं विविधता के माध्यम से इसने दुनिया को बिलकुल बदलकर रख दिया है।

सूचना एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक संसाधनों को साझा करने के लिए विभिन्न संचार माध्यमों से आपस में जुड़े कंप्यूटरों एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का समूह, कंप्यूटर नेटवर्क कहलाता है और इन्हीं कंप्यूटर नेटवर्कों का विश्वस्तरीय नेटवर्क इंटरनेट है।

कंप्यूटर नेटवर्क का आविष्कार सूचनाओं को साझा करने के उद्देश्य से किया गया था। पहले इसके माध्यम से हर प्रकार की सूचना को साझा करना संभव नहीं था, किंतु सूचना प्रौद्योगिकी के इस युग में दस्तावेज़ों एवं ध्वनि के साथ-साथ वीडियो का आदान-प्रदान करना भी संभव हो गया है। विदेश जाने के लिए हवाई जहाज़ का टिकट बुक कराना हो, किसी पर्यटन स्थल पर स्थित होटल का कोई कमरा बुक कराना हो, किसी किताब का ऑर्डर देना हो, अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए विज्ञापन देना हो, अपने मित्रों से ऑनलाइन चैटिंग करनी हो, डॉक्टरों से स्वास्थ्य संबंधी सलाह लेनी हो या वकीलों से कानूनी सलाह लेनी हो, इंटरनेट हर मर्ज की देवा है।

इंटरनेट के कई लाभ हैं, तो इसकी कई खामियाँ भी हैं। इसके माध्यम से नग्न दृश्यों तक बच्चों की पहुँच आसान हो गई है। कई लोग इंटरनेट का दुरुपयोग अश्लील साइटों को देखने और उपयोगी सूचनाओं को चुराने में करते हैं। इससे साइबर अपराधों में वृद्धि हुई है। इंटरनेट से जुड़ते समय वायरसों द्वारा सुरक्षित फाइलों के नष्ट या संक्रमित होने का खतरा भी बना रहता है। इस तरह एक तरफ़ इंटरनेट यदि ज्ञान का सागर है, तो दूसरी तरफ़ इसमें कुछ कमियाँ भी हैं। यदि इसका सही इस्तेमाल करना आ जाए, तो इस सागर से ज्ञान व प्रगति के मोती हासिल होंगे। इसके माध्यम का सही ढंग से समुचित उपयोग मनुष्य की तरक्की में अहम भूमिका निभाएगा।

(ग) ग्रामीण जीवन की समस्याएँ

भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि है। इसलिए कहा गया है कि हमारे देश में समृद्धि का रास्ता खेतों और खलिहानों से होकर गुज़रता है। यहाँ की दो-तिहाई जनता कृषि-कार्य में संलग्न है। ग्रामीण लोगों का जीवन अत्यंत कठोर होता है, इसी कारण प्रायः ग्रामीण कृषकों आदि के शहर की ओर पलायन एवं उनकी आत्महत्या की ख़बरें सुनने को मिलती हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि ग्रामीण लोगों को अपने जीवन में कितनी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आज ग्रामीण समुदाय में दरिद्रता का साम्राज्य छा गया है। ग्रामीण किसान की आय इतनी कम हो गई है कि उन्हें तन ढकने को न तो वस्त्र मिलता है और न पेट की भूख शांत करने के लिए पर्याप्त अन्न मिल पाता है। वे ऋण के भारी बोझ से दबे रहते हैं और उससे उन्हें आजीवन मुक्ति नहीं मिल पाती। शिक्षा के अभाव के कारण हमारी ग्रामीण जनता में रूढ़िवाद का अविच्छिन्न साम्राज्य व्याप्त है। गाँव वालों के लिए समुचित चिकित्सा का भी प्रबंध नहीं है। ग्रामीण उद्योग-धंधों के क्षतिग्रस्त हो जाने पर बेकारी के राक्षस ने गाँव वालों के जीवन को और भी दुःखमय बना दिया है। आधुनिक जीवन की सभी सुख-सुविधाओं से हमारे ग्रामीण भाई वंचित हैं। उनका सामाजिक जीवन आनंद और उत्साह से शून्य हो गया है। ग्रामीणों की एक प्रमुख समस्या भारतीय कृषि का मानसून पर निर्भर होना है। मानसून की अनिश्चितता के कारण प्रायः ग्रामीण कृषकों को कई प्रकार की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। भारतीय गाँवों की यह दुरावस्था सारे राष्ट्र के लिए घातक है। अतः राष्ट्रहित की दृष्टि से हमारा सबसे पहला कार्य ग्रामीण जीवन को सुखी और संपन्न बनाने का होना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि ग्रामीण कृषि तथा उद्योग के क्षेत्र में सुधार करने हेतु आवश्यक कदम उठाए जाएँ। वास्तव में, हमारे ग्रामीणों की निर्धनता का मूल कारण भारतीय कृषि का पिछड़ा होना और ग्रामीण किसानों के पास खेती के लिए आधुनिक वैज्ञानिक यंत्र, सिंचाई के साधन, उत्तम बीज, खाद, फ़सल की बिक्री के लिए उचित साधनों आदि का सर्वथा अभाव है। कृषि का क्षेत्र भी एक चक्र में न होकर विभिन्न टुकड़ों में इधर-उधर बिखरा हुआ रहता है। ग्रामीण उद्योग-धंधों के अभाव में किसान आधे वर्ष बेरोज़गार रहते हैं। अतः गाँवों के कृषि उद्योग को विकसित करके इन सब समस्याओं का निराकरण अत्यंत आवश्यक है। इसी से गाँव वालों की निर्धनता दूर हो सकेगी, साथ ही राष्ट्रीय आय में वृद्धि भी होगी। देश के सभी लोग सुखी और संपन्न बन सकेंगे।

(घ) गिरते नैतिक मूल्यों के कारण

नैतिक मूल्य, वे मूल्य अथवा गुण होते हैं, जो मानवता का सृजन करते हैं, जो उसे मनुष्यता प्राप्त करने में सहायक बनते हैं। नैतिक मूल्य ही मनुष्य को समाज में रहने योग्य बनाते हैं तथा उसमें एक स्वाभाविक चेतना एवं संवेदनशीलता का संचार करते हैं। सच बोलना, चोरी न करना, अहिंसा, विनम्रता, उदारता, शिष्टता, संवेदनशीलता, कर्तव्यों का बोध, अच्छे-बुरे की परख आदि गुण नैतिक मूल्यों के अंतर्गत आते हैं। वर्तमान परिदृश्य में हम स्पष्ट अनुभव कर सकते हैं कि हमारे नैतिक मूल्यों में लगातार गिरावट हो रही है, उनका पतन हो रहा है। आजकल समाचार-पत्र चोरी, हत्या, शोषण, धोखा-धड़ी आदि की घटनाओं से संबंधित समाचारों से भरे रहते हैं। समाज में गिरते नैतिक मूल्यों का प्रमुख कारण है-सुख-समृद्धि तथा ऐश्वर्य की चाह। आज मनुष्य एक-दूसरे की देखा-देखी अपनी धन-संपत्ति को बढ़ाने के लिए आतुर है। फिर चाहे इसके लिए उसे अनैतिक तथा गैर-कानूनी कदम ही क्यों न उठाने पड़े। वह समाज में अपनी बनावटी जीवन-शैली तथा हैसियत का अनुचित प्रदर्शन करना चाहता है। इसके लिए वह संगीन अपराधों को अंजाम देने में भी नहीं हिचकता। आज मनुष्य में अनुशासनहीनता की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है, उसे न कानून का डर है। और न ही नैतिकता का लिहाज़।

उपरोक्त कारणों के अतिरिक्त कुछ अन्य कारण भी हैं, जिससे समाज में नैतिक मूल्यों का लोप हो रहा है। इनमें गरीबी, बेरोज़गारी, महँगाई, भ्रष्टाचार, सांप्रदायिकता तथा आर्थिक शोषण प्रमुख हैं। इन सभी के कारण साधारण जनता हैरान, परेशान, निराश तथा उदासीन है। जीवन की कठिन परिस्थितियों से जूझते हुए उसका संयम, उसका साथ छोड़ देता है।

अतः यह स्पष्ट है कि गिरते नैतिक मूल्यों के कारण केवल व्यक्तिगत नहीं हैं, बल्कि सामाजिक भी हैं। नैतिक मूल्यों के पतन को रोकने के लिए सरकार को आम आदमी के साथ मिलकर महँगाई, भ्रष्टाचार, गरीबी आदि समस्याओं के निराकरण का प्रयास करना होगा तथा आम आदमी को भी संयम धारण करना होगा। उसे अपने जीवन में नैतिक मूल्यों की पुनः स्थापना करनी होगी और समाज की उन्नति में उचित योगदान देना होगा।

उत्तर 4.

परीक्षा भवन,
दिल्ली।

दिनांक 18 जुलाई, 20××

सेवा में,
थाना प्रभारी,
द्वारका,
नई दिल्ली।

विषय मोटर साइकिल चोरी होने की सूचना देने संबंधी।

महोदय,

मुझे यह सूचना देते हुए अत्यंत खेद हो रहा है कि कल शाम को मैं द्वारका ओवरब्रिज के पास की एक दुकान पर पुस्तकें खरीदने के लिए गया था। उस समय दुकान पर काफ़ी भीड़ थी। मैं अपनी मोटर साइकिल में ताला लगाकर दुकान में निश्चितता के साथ पुस्तकें खरीदने में व्यस्त हो गया। लगभग एक घंटे बाद पुस्तकें खरीदकर जब मैं वापस लौटा, तो मेरी मोटर साइकिल नियत स्थान पर नहीं थी। मैं चकित (अचंभित) रह गया। मैंने इधर-उधर काफ़ी खोजबीन की, लेकिन कुछ पता ही नहीं चला। कल देर रात तक मुझे मोटर साइकिल ढूंढने में ही काफ़ी समय लग गया। अत: यह रिपोर्ट मैं कल रात को दर्ज न करा सका।

मेरी मोटर साइकिल का नंबर DL3CP-7879 तथा वह काले रंग की हीरो होंडा-स्प्लेंडर’ मोटर साइकिल थी। मेरे पास मोटर साइकिल के कागज़ात व बिल भी मौजूद हैं। मुझे अपनी मोटर साइकिल खो जाने का अत्यंत दुःख है। अतः यदि आप खोज करवाकर मेरी मोटर साइकिल वापस दिलाने की कोशिश करेंगे, तो आपकी बड़ी कृपा होगी।

सधन्यवाद!
भवदीय
क.ख.ग.

अथवा

परीक्षा भवन, दिल्ली।

दिनांक 11 जुलाई, 20××

सेवा में,
माननीय शिक्षा मंत्री,
बिहार सरकार,
पटना।

विषय बाल विद्यालय खोलने का अनुरोध करने संबंधी।

महोदय,

पटेल नगर तथा आस-पास के क्षेत्रों के छोटे बच्चों को प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने जाने के लिए लगभग दो किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। छोटे-छोटे बालक-बालिकाओं का अकेले इतनी दूर जाना संभव नहीं है। अतः उन्हें ले जाने एवं वापस लाने के लिए प्रतिदिन हर बच्चे के अभिभावक को विद्यालय जाना पड़ता है। इतनी दूर पैदल आने-जाने में सभी को, विशेषकर महिलाओं को अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। इतनी दूर आने-जाने से बच्चे भी काफ़ी थक जाते हैं और अपनी पढ़ाई पर समुचित ध्यान नहीं दे पाते। कई बार ग्रीष्म ऋतु एवं वर्षा ऋतु में तो उन्हें विवश होकर छुट्टी भी करनी पड़ती है।

शिक्षा के प्रबंधन की दृष्टि से यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। इससे छोटे बच्चों की शिक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। अतः आपसे अनुरोध है कि शीघ्र ही इस क्षेत्र में एक प्राथमिक विद्यालय खोलने के लिए उचित कदम उठाएँ, ताकि अधिक-से-अधिक बच्चे इससे लाभान्वित हो सकें। आशा है, आप इस विषय में शीघ्र ही कार्यवाही करके हमें अनुगृहीत करेंगे।

सधन्यवाद!
भवदीय
क.ख.ग.

उत्तर 5.

(क) योजना, कुरुक्षेत्र, रोज़गार समाचार एवं बाल-भारती आदि भारत सरकार की ओर से प्रकाशित की जाने वाली हिंदी पत्रिकाएँ हैं।

(ख) फ्री लांसर पत्रकार वे हैं, जो किसी पत्र या पत्रिका में नौकरी नहीं करते, बल्कि किसी भी समाचार पत्र के लिए स्वतंत्र रूप से लिख कर पारिश्रमिक प्राप्त करते हैं।

(ग) पीटीआई (प्रेस ट्रस्ट ऑफ इंडिया) भारत सरकार की सबसे बड़ी समाचार समिति (न्यूज़ एजेंसी) है। यह अंग्रेज़ी भाषा में समाचार भेजती है। ‘भाषा’ भारत सरकार की हिंदी न्यूज़ एजेंसी है।

(घ) टीवी लोकप्रिय माध्यम इसलिए है, क्योंकि इसके द्वारा हम शब्द, दृश्य और ध्वनि तीनों माध्यमों के प्रभाव का एक साथ आनंद लेते हैं। टीवी खोलते ही हमें पूरी दुनिया की जानकारी मिलने लगती है।

(ङ) उल्टा पिरामिड शैली समाचारों का ऐसा ढाँचा है, जिसमें चरमोत्कर्ष प्रारंभ में दिया जाता है तथा उसके पश्चात् घटनाक्रम की व्याख्या करते हुए अंत किया जाता है। इस शैली में पहले इंट्रो या आमुख, मध्य में बॉडी या कलेवर तथा अंत में संक्षेपतः अर्थात् समाचार का संक्षिप्त सार दिया जाता है।

उत्तर 6.

महानगरों में बढ़ता आबादी का बोझ

सपनों के शहर कहे जाने वाले महानगर आज आबादी की समस्या से जूझ रहे हैं। लोग बेहतर सुख-सुविधाओं, रोज़गार, शिक्षा आदि कारणों से महानगरों की ओर बड़ी संख्या में पलायन कर रहे हैं। इसका परिणाम यह हुआ कि महानगरों की स्थिति बेहद दयनीय हो गई है। यहाँ हर तरफ भीड़ ही दिखाई देती है। बहुत सारे लोगों के पास सिर छुपाने के लिए जगह नहीं है, मजबूरन उन्हें फुटपाथों पर रात गुजारनी पड़ती है। सरकारें विकास की योजनाएँ बनाती हैं, उन पर काम भी करती हैं, लेकिन सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती आबादी के सामने सारी योजनाएँ धरी-की-धरी रह जाती हैं। यह सत्य है कि महानगर सभी की आवश्यकताओं को पूरी नहीं कर सकते। उनके पास भी सीमित मात्रा में संसाधन हैं। इसलिए दिल्ली जैसे महानगरों में गरीबी तेज़ी से बढ़ती जा रही है। इसके साथ ही अशिक्षा, अपराध तथा महिलाओं के साथ छेड़छाड़ की घटनाओं का ग्राफ़ लगातार ऊपर जा रहा है। कम विकसित और पिछड़े हुए स्थानों से आने वाले लोग सुंदर-संसार की चाहत में यहाँ आते हैं, पर वर्तमान समय में यह उनके लिए किसी अभिशाप से कम नहीं। यहाँ आकर उनकी स्थिति और भी बदतर हो जाती है। महानगर उनकी बदहाली को और भी बढ़ावा देते हैं। महानगरों की दशा और लोगों का जीवन स्तर सुधारने का केवल एक ही उपाय है- पिछड़े हुए राज्यों का विकास करना। सरकार को चाहिए कि विकास का केंद्रीकरण होने से रोके और उसका विकेंद्रीकरण करे। इससे बहुत सारे लोग अपने राज्यों को छोड़ने के लिए मजबूर नहीं होंगे और उनका शिक्षा, आवास, रोजगार, स्वास्थ्य, परिवहन आदि सुविधा प्राप्त होने से महानगरों की “ओर पलायन रुक जाएगा।

अथवा

प्रसिद्ध उपन्यासकार मनोश्याम जोशी के उपन्यास ‘कप’ की समीक्षा

प्रसिद्ध हिंदी उपन्यासकार मनोहर श्याम जोशी द्वारा लिखित तथा राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित उपन्यास ‘कसप’ कुमाऊँनी जीवन की पृष्ठभूमि में लिखी गई आँचलिक प्रेम-कथा पर आधारित है। इस उपन्यास में आँचलिकता बहुत गहरे स्तर पर व्याप्त है। और लेखक का भावुक मन इस प्रेम-कथा को विडंबनापूर्ण बनाकर प्रस्तुत करता है। ‘कसप’ के केंद्र में बेबी की अबोधता और पढ़ाई में अरुचि है, जिसे 22 वर्षीय मातृ-पितृहीन साहित्यिक सिनेमाई रुचि-संपन्न देवी दत्त तिवारी उर्फ डीडीटी का साथ मिला है। इस साथ में प्रेम के साथ कौतुक भी निरंतर सक्रिय है।

यह कथा, प्रेम की चौखट में महत्त्वाकांक्षाओं, तनावों और मनोवैज्ञानिक प्रभावों को आत्मसात् करती चलती है। इस कथा का अंत विषाद एवं अवसाद लिए हुए है, जिसमें महसूस किया जा सकता है कि एक गहरा सन्नाटा दूर-दूर की पहाड़ियों एवं घाटियों तक पूँजता है।’कसप’ की भाषा में आँचलिक रचाव एक बौद्धिक चमक लिए हुए है। अबोधता भी इस उपन्यास में जिज्ञासा का पर्याय है। ‘कसप’ कुमाऊँनी की स्थानीय भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ अन्यमनस्कता के संदर्भ में ‘क्या जाने’ या ‘पता नहीं’ से मिलता-जुलता है। यह नायिका की अबोधता को दर्शाने के साथ-साथ प्रेम के दौरान अन्य सभी बातों के प्रति उसकी अरुचि को भी दर्शाता है। कुल मिलाकर यह प्रेम-प्रसंग पर आधारित उपन्यास है, जो धर्मवीर भारती के गुनाहों का देवता के बाद किशोरावस्था के प्रेम को दर्शाने वाली एक प्रमुख कृति है। साहित्यिक अभिरुचि रखने वालों को यह उपन्यास अवश्य पढ़ना चाहिए।

उत्तर 7.

नदी जोड़ो परियोजना

‘अमृत क्रांति’ के नाम से प्रारंभ की गई नदी जोड़ो परियोजना का श्रीगणेश राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार (एनडीए) द्वारा वर्ष 2002 में किया गया था, किंतु 2004 में केंद्र में यूपीए सरकार के आने पर शुरू से विवाद में रही इस परियोजना पर विराम लगा दिया गया। वर्ष 2012 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे समयबद्ध तरीके से कार्यान्वित करने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त कमेटी गठित की गई। इस परियोजना के लिए राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी ने देश की नदियों को दो श्रेणियों में बाँटा| प्रथम श्रेणी की नदियों में हिमालय आदि ग्लेशियर से निकलने वाली गंगा, यमुना जैसी नदियाँ हैं, जबकि द्वितीय श्रेणी में दक्षिण भारत में पहाड़ी प्रदेशों से निकलने वाली नदियाँ हैं। नदी जोड़ो परियोजना का मुख्य उद्देश्य है-उपरोक्त वर्णित दोनों श्रेणियों की नदियों से देश के सभी प्रदेशों में वर्षभर आवश्यक जलापूर्ति करना तथा देश के विभिन्न प्रांतों को भीषण बाढ़ से छुटकारा दिलाना| परियोजना से संबद्ध वैज्ञानिकों के अनुसार इससे देश का खाद्यान्न उत्पादन दोगुना हो जाने की संभावना है, जिससे उत्पादन में 4% की वृद्धि होगी। बावजूद इसके बुद्धिजीवियों का एक बड़ा समूह इस परियोजना को पर्यावरण विरुद्ध बताकर इसके भयंकर परिणाम मिलने की आशंका व्यक्त कर रहा है। वास्तविकता भी यही है कि असली अमृत क्रांति तो देशवासियों में जल उपयोग के प्रति जन-चेतना जागृत करके ही लाई जा सकती है।

अथवा

गुम होती चहचहाहट

पहले बाग-बगीचों में आम की मंजरियों के लगते ही कोयल की कूक से वातावरण मोहक हो जाता था। पक्षियों के कलरव से परिवेश उमंग से भर जाता था। आँगन में कौए काँव-काँव करते तो लगता भोर हो गई। कहाँ गया यह सब? वस्तुतः इसके लिए हम स्वयं ही दोषी हैं। इस नकारात्मक परिवर्तन के लिए पेड़ों को नष्ट करना मुख्य कारण है। चारों ओर कंक्रीट के जंगल खड़े हो गए हैं। पक्षियों का बसेरा कहाँ रह गया? प्रकृति का रूप हमने बदल दिया। अब प्रकृति का संतुलन गायब हो चुका है। प्रकृति की सुंदरता में वृद्धि करने वाले कई आकर्षक पक्षी लुप्त हो गए और कुछ लुप्त होने की कगार पर हैं। हमारे पास अब भी समय है कि प्रकृति की सुंदरता को बनाए रखने हेतु हम अधिक-से-अधिक पेड़ लगाएँ। पेड़ ही पक्षियों के आवास बनकर उन्हें फिर से अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं और हमारे आसपास फिर से रौनक एवं चहचहाहट वापिस आ सकती है। बस हमें अपने लोभ को थोड़ा कम करना होगा; नहीं तो गुम होती चहचहाहट’ हमारे जीवन को और भी कठिन बना देगी। यदि वातावरण को गर्मी से बचाना है तथा हरियाली लानी है, तो ‘वृक्ष’ लगाना ही उसका एकमात्र समाधान है।

सचमुच कुछ वर्ष पूर्व तक पक्षियों की चहचहाहट, पत्तों की सरसराहट, शीतल हवा आदि भोर के समय का ऐसा मनोरम वातावरण सबका मन मोह लेता था। हमारे आस-पास प्रहरी सदृश बड़ी संख्या में उपस्थित पेड़ों पर नित नए-नए पक्षी देखने को मिलते थे, पक्षियों की अनेक प्रजातियाँ देखने को मिलती थीं, जिनमें अलग-अलग देशों से आए प्रवासी पक्षी भी शामिल थे, पर अब ये दृश्य कहाँ हैं? जो कभी बड़े ही मनोहारी लगते थे!

उत्तर 8.
(क) कवि ने बात की ‘पेंच को खोलने’ अर्थात् सुलझाने के बजाय बिना सोचे-समझे उसे बेतरह कसना प्रारंभ कर दिया। इसका अभिप्राय यह है कि बात को स्पष्ट करने के लिए कवि ने आडंबरपूर्ण शब्दों द्वारा निरर्थक प्रयत्न करना प्रारंभ कर दिया। कवि ने बात को प्रभावशाली बनाने के लिए भाषा को जटिल, लाक्षणिक एवं अलंकृत बनाने का प्रयत्न किया।

(ख) पेंच को खोलने से कवि का अभिप्राय है–बात या कथ्य में से अनुचित शब्दों को हटाकर उनकी जगह उचित शब्दों का प्रयोग किया जाना। कोई भी पेंच जिस प्रकार एक निश्चित खाँचे में ही ठीक बैठता है, उसी प्रकार किसी भी बात की अभिव्यक्ति उचित शब्दों के माध्यम से ही संभव है।

(ग) प्रस्तुत काव्यांश का केंद्रीय भाव यह है कि बात को सीधे-सीधे न कहकर घुमा-फिरा कर कहने से जटिलता बढ़ती है। एक बार उलझने के बाद बात को सुलझाना काफी कठिन हो जाता है। परिणामस्वरूप बात की प्रभावोत्पादकता समाप्त होने लगती है। इसलिए बात को सरल शब्दों में कहना चाहिए, ताकि वह अपना प्रभाव न खोए।

(घ) कवि को प्रारंभ से ही इस बात का भय था कि कहीं भाषा को अधिक जटिल एवं पेचीदा बनाने से मुख्य बात ही अप्रभावी एवं अस्पष्ट न हो जाए। ऐसा होने पर स्थिति अत्यधिक हास्यास्पद एवं विडंबनापूर्ण हो जाएगी। कवि की यह आशंका सच निकली। सही शब्दों का चयन न कर पाने तथा अत्यधिक अलंकृत होने के कारण कवि की अभिव्यक्ति अस्पष्ट एवं निरुद्देश्यपूर्ण हो गई।

अथवा

CBSE Sample Papers for Class 12 Hindi Paper 5 2

(क) दूरदर्शन का कार्यक्रम संचालक अपाहिज व्यक्ति के दुःख को बार-बार इसलिए प्रकट करना चाहता है, क्योंकि उसका उद्देश्य केवल अपने कार्यक्रम को व्यावसायिक रूप से सफल बनाना तथा सस्ती लोकप्रियता हासिल करके अपने चैनल की प्रसिद्धि को बढ़ाना है। वे उसकी पीड़ा का इस्तेमाल अपनी प्रसिद्धि एवं आर्थिक लाभ के लिए करते हैं।

(ख) किसी के दुःख की प्रस्तुति करके कार्यक्रम को रोचक बनाना अत्यंत निंदनीय और मानवता के विरुद्ध कार्य है। जो दुःखी है, उसके दुःख का प्रदर्शन करना, उससे तरह-तरह के दुःखदायी सवाल पूछना, स्वयं इशारे करके दुःख की मुद्राएँ बनाना आदि वास्तव में दुःख व दुःखी व्यक्ति का उपहास करना है। यह एक ऐसा कार्य है, जिसे मानवता के विरुद्ध अपराध की संज्ञा दी जानी चाहिए।

(ग) “इंतज़ार करते हैं आप भी उसके रो पड़ने का यह पंक्ति दर्शकों के लिए प्रयुक्त की गई है। कार्यक्रम को प्रस्तुत करने वाला अपाहिज व्यक्ति से साक्षात्कार लेते हुए बीच-बीच में दर्शकों से ऐसे प्रश्न पूछता है पर सच तो यह है कि ऐसे प्रश्न श्रोताओं से पूछे नहीं जाते। कवि ने व्यंग्यात्मक शैली में यह बात कविता में व्यक्त की है।

(घ) प्रस्तुत काव्य पंक्ति “हम पूछ-पूछकर उसको रुला देंगे” में क्रूरता का भाव दिखाई पड़ता है। इसमें दूरदर्शन पत्रकार के दुस्साहसिक नकारात्मक आत्मविश्वास का भाव भी अभिव्यक्त होता है, मानो उसे पूरा विश्वास है कि वह सवाल इस ढंग से पूछेगा कि अपाहिज व्यक्ति के पास रोने के अतिरिक्त और कोई रास्ता न होगा। इस प्रकार उसके सामाजिक कार्यक्रम के माध्यम से दर्शकों में करुणा एवं सहानुभूति का भाव जाग्रत हो जाएगा और यह प्रस्तुति की सफलता होगी। यह कथन दूरदर्शन पर अपाहिज व्यक्ति का साक्षात्कार लेने वाले पत्रकार का है।

उत्तर 9.
(क) प्रस्तुत काव्यांश के माध्यम से कवि ने यह अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है कि उसका रुदन अर्थात् आत्मा का करुण भाव ही वस्तुतः उसके गीत हैं। वह अपनी दीवानगी में मस्ती का एक संदेश छिपाए हुए है, जिसे वह विफलता से थके विकल संसार को देना चाहता है, ताकि इस निराशा भरे संसार में प्रसन्नता एवं जीवंतता का परिवेश निर्मित हो सके।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश की भाषा सरस, सहज एवं प्रवाहपूर्ण है। यह भावों के अनुरूप तथा कवि के दार्शनिक चिंतन को अभिव्यक्त करने में सक्षम है। काव्यांश में ‘मैं’ एवं ‘तुम’ जैसी संबोधन-शैली का प्रयोग किया गया है। इसमें उर्दू के रुबाई छंद के अनुकरण की प्रवृत्ति दिखाई पड़ती है। काव्यांश के अंतर्गत ‘क्यों कवि कहकर’ तथा ‘झूम-झुके’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग द्रष्टव्य है।

(ग) काव्यांश में प्रयुक्त पंक्ति ”मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ” में सूफ़ीयाना मस्ती के भाव को प्रकट करने का अभिप्राय | निहित है। इस काव्य-पंक्ति में न केवल उमर खय्याम की रुबाई-शैली, बल्कि उनकी दीवानगी भी साकार हो उठी है।

अथवा

(क) प्रस्तुत काव्यांश की भाषा छायावादी काव्य-भाषा के अनुरूप लाक्षणिक एवं तत्सम प्रधान है। काव्यांश में प्रतीक, बिंब सहित लाक्षणिकता का सुंदर समन्वय है। क्षत-विक्षत’ के प्रयोग में अंत्यानुप्रास एवं फिर-फिर, बार-बार, सुन-सुन व शत-शत में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। बादले के गरजने में ध्वन्यात्मक बिंब की प्रस्तुति की गई है। बिजली के द्वारा बादल के संपूर्ण शरीर को क्षत-विक्षत किए जाने से मानवीकरण अलंकार की छटा बन पड़ी है। बादल यहाँ अप्रतिहत योद्धा के रूप में चिह्नित किए गए हैं। बादलों का गर्जन क्रांति के उद्घोष का प्रतीक है और उनका अचल वर्षण कभी न हार मानने वाले सेनानियों का।

(ख) प्रस्तुत काव्यांश में बादलों को ‘अशनि-पात से शापित’ तथा ‘गगन-स्पर्शी स्पर्धा धीर’ कहा गया है। ‘अशनि-पात से शापित कहने में बादलों के शरीर के बिजली द्वारा आहत होने तथा ‘गगन-स्पर्शी’ कहने में उनके वायुमंडल में तीव्र प्रवाह की व्यंजना है। यह उनकी उच्चता का भी सचक बिंब है।

(ग) प्रस्तुत काव्यांश में मूल रूप से प्रगतिवादी स्वर निहित है। शोषकों के विरुद्ध क्रांति का बिगुल फेंकने वाले बादल शोषितों के पक्ष में खड़े हैं। वे शोषक व्यवस्था को समाप्त कर समाज में समानता स्थापित करने की महत्वाकांक्षा रखते हैं।

उत्तर 10.
(क) पतंग कविता में पतंग के लिए सबसे हल्की और रंगीन चीज़, सबसे पतला कागज़, सबसे पतली कमानी जैसे विशेषणों का प्रयोग उसमें आकर्षण लाने के लिए किया गया है, जिससे पाठकों के मन में जिज्ञासा या कौतूहल उत्पन्न हो और वे आकर्षित हों। वास्तव में, पतंग का निर्माण इन्हीं चीज़ों से होता है। सबसे हल्की इसलिए कि उड़ने वाली कोई भी वस्तु इससे अधिक हल्की व पतली नहीं होती। सबसे रंगीन इसलिए कि इंद्रधनुष में तो सात रंग होते हैं और पतंगें कई रंगों की होती हैं। सबसे पतला कागज़ इसलिए कि बूंद पड़ते ही फर-फर करके हवा में उड़ने वाला यह कागज़ फट जाता है। सबसे पतली कमानी इसलिए, क्योंकि बाँस की पतली छाल से पतंग की पतली कमानी बनती है। इन्हीं अति सामान्य-सी चीज़ों से निर्मित पतंग आकाश की अनंत ऊँचाइयों तक जा पहुँचती है।

(ख) भाषा को सहूलियत से बरतने का अभिप्राय है- भाषा को सहज एवं स्वाभाविक ढंग से प्रयोग में लाना तथा काव्य को प्रभावशाली अभिव्यक्ति देना। व्यर्थ का शब्दजाल बुनने से लेखक को लिखने एवं पाठक को समझने में कठिनाई होती है। अपनी भावनाओं एवं विचारों को सटीक ढंग से अभिव्यक्त करने के लिए उपयुक्त शब्द एवं भाषा की आवश्यकता होती है। आडंबरपूर्ण एवं अनावश्यक शब्दों व भाषा के प्रयोग से परहेज रखना आवश्यक है। भाषा को सहूलियत से प्रयुक्त करने पर ही रचना भी सहजता से अपना अर्थ संप्रेषित करने में समर्थ होती है।

(ग) फ़िराक की रुबाइयों में चाँद का टुकड़ा, गोदभरी व बच्चे को हवा में लोकती माँ, स्नान-जल, कंघी, वस्त्र, चीनी (शक्कर) के बने खिलौने, पुते-सजे घर, लावे, घरौंदे, दीये, दर्पण, बादल, बिजली, राखी जैसे दृश्य बिंबों की भरमार है, जबकि आवश्यकता पड़ने पर खिलखिलाते बच्चे की हँसी जैसे श्रव्य बिंब का भी प्रयोग बड़ी सहजता के साथ किया गया है। ये सारे बिंब बड़े सार्थक और जीवंत बनकर कविता में उभरे हैं।

उत्तर 11.
(क) जाति-प्रथा के पोषके लोग सहजतापूर्ण यह स्वीकार करने को तैयार हैं कि व्यक्ति को जीवन, शरीर तथा संपत्ति की सुरक्षा तथा अधिकार की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए, परंतु वे मनुष्य को सक्षम तथा प्रभावशाली प्रयोग की स्वतंत्रता की छूट देने के लिए तैयार नहीं हैं।

(ख) भारत में परंपरागत जाति-प्रथा के अंतर्गत व्यक्ति को अपनी मर्जी से व्यवसाय चुनने की छूट नहीं है। यहाँ लोग जन्म आधारित व्यवसाय करने को विवश रहते हैं।

(ग) ‘दासता’ में कानूनी पराधीनता के अलावा वह स्थिति भी सम्मिलित है, जहाँ कानूनी पराधीनता न होने पर भी कुछ लोगों को अन्य व्यक्तियों द्वारा निर्धारित कर्तव्य तथा व्यवहार पालन के लिए विवश होना पड़ता है; जैसे-जाति-प्रथा के अधीन इच्छा के विरुद्ध पेशे को अपनाना पड़ता है।

(घ) लेखक कहता है कि जाति-प्रथा में एक तरह की दासता है। इसमें व्यक्ति पूर्व निर्धारित कर्तव्यों से आगे नहीं जा सकता। परिणामतः व्यक्ति को न चाहते हुए भी अपने पूर्वजों के पेशों को अपनाना पड़ता है, किंतु कानूनी पराधीनता न होने पर भी यहाँ कानून इस मामले में कुछ नहीं कर सकता। वस्तुतः पुराने समय से चली आ रही इस प्रथा से हमारे देश को मुक्त करने के लिए कानून की नहीं, सामाजिक चेतना की आवश्यकता है।

उत्तर 12.
(क) नमक की पुड़िया के संबंध में सफ़िया के मन में यह द्वंद्व था कि वह उसे चोरी-छिपे भारत ले जाए या जाँच अधिकारी को बताकर ले जाए। अंत में उसने निश्चय किया कि प्रेम की यह भेंट वह चोरी से भारत नहीं ले जाएगी। अतः उसने नमक की पुड़िया के बारे में अधिकारियों को बता दिया। वे अधिकारी लेखिका की सद्भावना को समझ गए और उन्होंने प्रेम की इस भेंट को ले जाने में कोई व्यवधान उत्पन्न नहीं किया।

(ख) शिरीष के फूल’ पाठ के लेखक ने गाँधीजी और शिरीष के बीच तुलना करते हुए उन दोनों को एक समान कठिनाइयों में जीने वाला सरस व्यक्तित्व माना है। शिरीष भयंकर लू में भी सरस एवं फूलदार बना रहता है। गाँधीजी भी चारों ओर व्याप्त अग्निकांड एवं खून-खराबे के बीच स्नेही, अहिंसक एवं उदार बने रहे। इसी समान गुण के कारण लेखक ने दोनों के बीच तुलना की है।

(ग) श्यामनगर के दंगल में जब लुट्टन ने उस क्षेत्र के प्रसिद्ध पहलवान चाँद सिंह को परास्त कर दिया, तब राजा साहब ने उसे सम्मान देते हुए लुट्टन सिंह कहकर पुकारा। इस पर राज-पंडितों ने आपत्ति जाहिर की, क्योंकि लुट्न उच्च जाति कुल का सदस्य न था, जिसे क्षत्रियों की उपाधि ‘सिंह’ उपनाम से पुकारा जाए। मैनेजर साहब, जो स्वयं क्षत्रिय थे, ने तो यहाँ तक कह दिया कि यह तो सरासर अन्याय है। राजा ने यह कहकर उनका प्रतिकार किया कि उसने (लुट्टन ने) क्षत्रिय का काम किया है।

(घ) ‘बाज़ार दर्शन’ पाठ के लेखक ने ऐसे बाज़ार को मानवता के लिए विडंबना कहा है, जिसमें लोग आवश्यकता पूर्ति हेतु क्रय-विक्रय नहीं करते, बल्कि ‘पर्चेजिंग पावर’ का प्रदर्शन करने के लिए क्रय-विक्रय करते हैं। ऐसे बाज़ार से कपट बढ़ती है, सद्भाव नष्ट होता है, परस्पर भाईचारे का संबंध न रहकर शोषण के संबंध निर्मित हो जाते हैं। सभी एक-दूसरे का शोषण करके स्वयं आर्थिक लाभ कमाना चाहते हैं। ऐसे में कपटी सफल हो जाता है और निष्कपटी व्यक्ति को हानि होती है। ऐसा बाज़ार मानवता की दृष्टि से अभिशाप है, जो आवश्यकता के समय काम आने के अपने मूल लक्ष्य से भटक जाता है।

(ङ) किसी स्त्री का नाम शांति होने से यदि वह झगड़ालू स्वभाव की है, तो कहा जाएगा कि यह स्त्री अपने नाम के अनुरूप नहीं है। ठीक इसी प्रकार किसी गरीब लड़की का नाम भी राजकुमारी हो सकता है और संभवतः वह दो वक्त की रोटी के लिए मज़दूरी करती हो। पाठ की प्रमुख पात्र भक्तिन के साथ यही स्थिति थी, क्योंकि उसका नाम लक्ष्मी है, परंतु वह है दरिद्र। इसी प्रकार लेखिका का नाम महादेवी है, जबकि वह स्वयं को एक साधारण स्त्री के रूप में पाती है। तभी तो लेखिका ने लिखा है- “सभी को अपने नाम का विरोधाभास लेकर जीना पड़ता है।”

उत्तर 13.
मेरे विचार से पढ़ाई-लिखाई के संबंध में लेखक और दत्ता जी राव का रवैया बिलकुल सही था। दत्ता जी मानते थे कि लेखक के पढ़ने की इच्छा बहुत ही दृढ़ थी और वे लेखक को पढ़ाने के पक्ष में थे, जबकि लेखक के पिता को उसकी पढ़ाई से कोई मतलब नहीं था। लेखक के पिता का स्वार्थ यह था कि लेखक दिनभर खेत का ही काम करे, जिससे लेखक के पिता दिनभर गाँव में घूमते रहें। और रखमाबाई के पास जा सकें| लेखक की यह सोच कि वह पढ़-लिखकर कहीं नौकरी करके कुछ पैसे कमाकर अपना कारोबार शुरू करेगा, बिलकुल उचित है, क्योंकि उसे पता था कि खेती के काम से जीवन में कुछ हासिल होने वाला नहीं है। लेखक की सोच से समानता रखने वाले दत्ता जी राव भी लेखक के पढ़ने-लिखने के पक्ष में थे। अतः पढ़ाई-लिखाई के संबंध में दत्ता जी राव व लेखक, दोनों की सोच बिलकुल सही थी।

उत्तर 14.
(क) ‘डायरी के पन्ने पाठ के आधार पर ऐन की तीन विशेषताएँ निम्नलिखित हैं।
• ऐन एक साधारण परिवार की चिंतनशील एवं मननशील स्वभाव की लड़की है। वह अज्ञातवास की परेशानियों से जूझते हुए भी अपनी पढ़ाई सामान्य रूप से करती है। वह गुप्त आवास में भी स्टडी’ (पढ़ाई) की बात करती थी। यह बात पढ़ाई के प्रति उसकी सजगता को दर्शाती है।
• स्त्री जीवन ऐन के लिए अतुलनीय है। वह चाहती है कि स्त्रियों के विरोधी और उन्हें सम्मान न देने वाले मूल्यों एवं मनुष्यों की निंदा की जाए। ऐन के ऐसे गुणों की प्रशंसा प्रत्येक मानव को करनी चाहिए।
• ऐन एक संवेदनशील एवं अंतर्मुखी लड़की थी। एक जगह वह कहती है, “मैं सचमुच उतनी घमंडी नहीं हूँ, जितना लोग मुझे समझते हैं। इसी प्रकार दूसरी जगह कहती है, “काश कोई होता! जो मेरी भावनाओं को गंभीरता से समझ पाता, पर अफ़सोस कि अब तक कोई नहीं मिला। इसलिए तलाश जारी रहेगी।” इन्हीं सब बातों से पता चलता है कि वह अत्यधिक संवेदनशील एवं अंतर्मुखी लड़की है।

(ख) पक्ष सिंधु सभ्यता साधन संपन्न थी। यहाँ पर साधनों की कमी नहीं थी। सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों के आधार पर ही इसकी नगर योजना, कृषि, संस्कृति और कला आदि के बारे में बताया जा सका है। अवशेषों के कोई लिखित प्रमाण नहीं मिले हैं और इतनी पुरानी सभ्यताओं के लिखित प्रमाण संभव होते भी नहीं हैं, जो चित्रलिपि यहाँ से मिली है, उसका अध्ययन किया भी नहीं जा सकता।

इस कारण केवल अवशेषों को ही प्रमाण माना जाता है। ये अवशेष मनुष्यों द्वारा बनाए गए हैं, जो इतने समय के बाद भी अभी तक उपलब्ध हैं। सिंधु घाटी में ईंटों, मूर्तियों, भवनों इत्यादि के अवशेष मिलते हैं। इन्हीं प्रमाणों के कारण संपूर्ण सभ्यता व संस्कृति की सुंदर कल्पना की गई है। वस्तुतः यह एक प्रकार की धारणा ही है। सिंधु घाटी सभ्यता की खूबी उसका सौंदर्य बोध है, जो वस्तु जिस प्रकार सुंदर लग सकती थी, उसका उस प्रकार से उपयोग किया गया था।

विपक्ष सिंधु घाटी सभ्यता को अवशेषों के आधार पर निर्मित एक धारणा मानना अनुचित है। वर्ष 1992 में राखालदास बनर्जी द्वारा मुअनजोदड़ो में खुदाई करने से प्राप्त अवशेषों ने इस सभ्यता के दावे को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया था। इसके पश्चात् काशीनाथ दीक्षित, हेरल्ड हरग्रोव्ज, शीरोन रत्नागर आदि ने अपनी-अपनी पुरातात्विक अनुसंधानों से इस सभ्यता की प्रामाणिकता को सिद्ध किया। पुरातात्विक अभियानों की ही खूबी थी कि मिट्टी में इंच-दर-इंच खुदाई कर इस शहर, उसकी गलियों और घरों को ढूंढा है। इसे केवल धारणा कहना इस सभ्यता के साथ अन्याय होगा। इसलिए सिंधु घाटी सभ्यता केवल धारणा न होकर एक प्रमाणित सभ्यता है।

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