Here we are providing Class 12 Hindi Important Extra Questions and Answers Aroh Chapter 17 शिरीष के फूल. Important Questions for Class 12 Hindi are the best resource for students which helps in class 12 board exams.

शिरीष के फूल Class 12 Important Extra Questions Hindi Aroh Chapter 17

प्रश्न 1.
‘शिरीष के फूल’ निबंध का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
अथवा
शिरीष के फूल निबंध की मूल चेतना को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा रचित निबंध शिरीष के फूल’ विपरीत और कठिन परिस्थितियों में भी जीवन की प्रेरणा और मजबूत इच्छा-शक्ति का परिचायक है। मानव को सुख-दुःख, आशा-निराशा, राग-विराग, प्रेम-विरह आदि परिस्थितियों से जूझना पड़ता है। लेकिन सुखपूर्वक वही व्यक्ति जीता है जो इन परिस्थितियों से अनासक्त रहकर संघर्ष करता है, वही शिरीष के फूल की भांति जीवनयापन कर सकता है। जिस मनुष्य में इच्छा-शक्ति कमजोर होती है वह अधिक देर तक नहीं चल सकता। कठोर परिस्थितियाँ उसे अपने अंदर समेट लेती हैं।

जेठ मास की भयंकर गर्मी में भी शिरीष का फूल हरी-भरी पत्तियों से युक्त सघन छाया देता है। चारों ओर अपने सौंदर्य को बिखेरता रहता है। यह कालजयी अवधूत की तरह जीवन की अजेयता का संदेश देकर जीने की प्रेरणा प्रदान करता है। वह बताता है कि कठिन और प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अनासक्त भाव से जीवन जीया जा सकता है बशर्ते जीने की इच्छाशक्ति होनी चाहिए। कबीरदास और कालिदास संसार के अवधूत रहे हैं जिन्होंने अपने आप जीने की राह बनाई। शिरीष के फूल की तरह प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष करते हुए संसार को जीवन की प्रेरणा प्रदान की।

लेखक कहता है कि शिरीष के फूल जहाँ बहुत कोमल होते हैं वहाँ उसके फल बहुत कठोर होते हैं। वे वसंत आने पर भी नहीं झड़ते बल्कि शाखाओं पर ही वसंती हवा में खड़-खड़ की ध्वनि करते रहते हैं। वे उन बूढ़े नेताओं की याद दिलाते हैं जो अपना पद छोड़ने को तब तक तैयार नहीं होते जब तक नई पीढ़ी के लोग उन्हें धक्का मारकर पीछे नहीं धकेल देते। लेखक ने इसके माध्यम से यह संदेश दिया है कि प्रत्येक मनुष्य को अपनी स्थिति और अवस्था को समझना चाहिए। पुराने पत्ते झड़ जाने पर ही नए पत्तों को जगह मिलती है।

संसार में बुढ़ापा और मृत्यु शाश्वत है। फिर यहाँ टिके रहने की कामना व्यर्थ है। यमराज को कोई धोखा नहीं दे सकता। लेखक ने मनुष्य को शिरीष के फूल के माध्यम से प्रेरणा दी है कि सुख-दुःख में कभी हार नहीं माननी चाहिए। शिरीष जैसे वायुमंडल से ही जीवन-रस प्राप्त करता है उसी प्रकार महात्मा गांधी ने भी अपने वातावरण से जीवन-रस प्राप्त किया था।

जो अनासक्त योगी की तरह कार्य करता है उसे ही जीवन में आगे बढ़ने की क्षमता प्राप्त होती है। कालिदास की सौंदर्य-चेतना, कबीरदास की फक्कड़ अनासक्त मस्ती, सुमित्रानंदन पंत की अनासक्ति और गांधी जी की कोमलता-कठोरता शिरीष के फूल के समान ही है। महान वही बनता है जो प्रतिकूल परिस्थितियों से संघर्ष कर उसे अपने अनुकूल बनाने की शक्ति रखता हो। परिस्थितियों से हार मानने वाला जीवन-राह में ही नष्ट हो जाता है।

प्रश्न 2.
‘शिरीष के फूल’ निबंध की भाषा-शैली को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
शिरीष के फूल हजारी प्रसाद द्विवेदी का प्रसिद्ध ललित निबंध है। यह निबंध भाषा-शैली की दृष्टि से भी अत्यंत उच्च है। द्विवेदी जी ने इस निबंध में खड़ी बोली का सुंदर प्रयोग किया है। यह भाषा अत्यंत सरल, सरस व भावानुकूल है। इनकी भाषा भावों को व्यक्त करने में पूर्ण समर्थ है। इसमें एक ओर जहाँ तत्सम शब्दावली का प्रचुर प्रयोग है वहाँ दूसरी ओर तद्भव, अरबी-फ़ारसी-उर्दू, साधारण बोलचाल की भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। लेखक का वाक्य-विन्यास भावानुकूल एवं विषयानुकूल है। सरल वाक्यों के साथ

गंभीर विषय को स्पष्ट करने हेतु जटिल वाक्यों का भी प्रयोग किया है। मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से इनकी भाषा में रोचकता एवं प्रवाहमयता उत्पन्न हो गई है। इन्होंने हिम्मत करना, दहक उठना, आँख बचाना, दमक उठना, न उधो का लेना न माधो का देना आदि मुहावरे और लोकोक्तियों का सार्थक एवं सटीक प्रयोग किया है। इन्होंने मुख्यतः विवरणात्मक शैली का प्रयोग किया है। इसके साथ विचारात्मक, भावात्मक एवं व्यंग्यात्मक शैलियों का भी समायोजन है। इनकी शैली अत्यंत प्रौढ़ एवं व्यवस्थित है।

प्रश्न 3.
लेखक जहाँ बैठकर लिख रहा था उसके आस-पास का दृश्य कैसा था?
उत्तर
लेखक जहाँ बैठकर लिख रहा था उसके आगे-पीछे, दाएं-बाएँ शिरीष के अनेक बड़े-बड़े पेड़ थे, जो जेठ की जलती दोपहरी में भी फूलों से लदे हुए सुगंध और छाया प्रदान कर रहे थे।

प्रश्न 4.
गर्मियों में फूलने वाले किन पेड़ों की गणना लेखक ने की है?
उत्तर
शिरीष के साथ लेखक ने कर्णिकार (कनेर) और आरम्वध (अमलतास) के पेड़ों की गणना की है। इनमें से कनेर के पेड़ बड़े छायादार होते ही नहीं और अमलतास पंद्रह-बीस दिन के लिए अपने पीले फूलों की शोभा बिखराते है और फिर फूलों से रहित हो जाते हैं। वे तो क्षणजीवी माने जा सकते हैं।

प्रश्न 5.
शिरीष के फलों की क्या विशेषता बताई गई है?
उत्तर
शिरीष के पेड़ों पर फूल वसंत मास में आने शुरू हो जाते हैं और आषाढ़ तक फूले रहते हैं। कभी-कभी तो भादों तक उनकी डालियाँ फूलों से लदी रहती हैं और उनकी मंद-मंद गंध वातावरण को सुवासित बनाए रखती है।

प्रश्न 6.
लेखक ने किसे और क्यों कहा है कि ऐसे दमदारों से तो लंड्रे भले’?
लेखक ने पलाश के पेड़ के लिए कहा है कि वे दस दिन फूलकर फिर खंखड़ के खंखड़ रह जाते हैं-इसका क्या लाभ ?
उत्तर
जिसके पास जो गुण है वे देर तक रहने चाहिए या वे होने ही नहीं चाहिए। कोई दुमदार सुंदर पक्षी पंख प्राप्त कर कुछ दिन अपनी शोभा दिखाता है; नाचता है। आकृष्ट करता है और फिर उसके पंख झड़ जाते हैं, वह पूँछ कटा हो जाता है तो उसका क्या लाभ ? यदि कोई पंखहीन है तो वह ऐसा ही है। कम-से-कम उसे कुरूपता तो नहीं झेलनी पड़ती।

प्रश्न 7.
अन्य वृक्षों की अपेक्षा शिरीष के वृक्षों में कौन-सी विशेषता विद्यमान होती है?
उत्तर
शिरीष के पेड़ वसंत और फागुन के रसीले महीनों में प्रकृति से स्वाभाविक रूप से रस प्राप्त करता है, पर जला-मुलसा देने वाली गरमी में इसकी मजबूती और सहनशक्ति का परिचय मिलता है जब ये सूर्य की प्रचंड गर्मी का सामना करते हुए अलसाती लू में भी लहलहाता रहता है। सबको शीतलता प्रदान करता है। यह विपरीत परिस्थितियों को भी सरलता से खेलने की क्षमता रखता है।

प्रश्न 8.
वात्स्यायन ने कैसे पेड़ों पर झूला लगाने की बात कही है?
उत्तर
वात्स्यायन ने अपनी पुस्तक ‘कामसूत्र’ में कहा है कि घने छायादार वृक्षों पर ही झूले लगाने चाहिए। इस कार्य के लिए बकुल के वृक्ष अधिक उपयोगी रहते हैं।

प्रश्न 9.
पुराने भारत में रईस लोग चारदीवारी के निकट किन छायादार वृक्षों को लगवाया करते थे और क्यों ?
उत्तर
रईस लोग अपने भवनों की चारदीवारी के साथ घने, बड़े और छायादार वृक्ष लगवाया करते थे। शिरीष, अशोक, अरिष्ट, पुन्नाग आदि अपनी घनी छाया और हरेपन में अत्यंत मनोहर प्रतीत होते होंगे, इसी कारण वे इनको प्राथमिकता देते थे।

प्रश्न 10.
लेखक ने मोटे और भारी शरीर वाले राजाओं पर क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर
वात्स्यायन ने अपने कामसूत्र में बकुल की मजबूत डालियों पर झूला डालने का परामर्श दिया था। लेखक का मानना है कि शिरीष की डालियाँ चाहे कुछ कमजोर होती हैं पर वे आसानी से झूलने वाली कोमल और नाजुक युवतियों का भार तो संभाल ही सकती हैं। यदि मोटे और भारी शरीर वाले राजाओं को भी झूला झूलना हो तो वे चाहें तो अपने लिए लोहे के पेड़ लगवा लें।

प्रश्न 11.
शिरीष के फूलों की कोमलता के विषय में संस्कृत साहित्य में क्या माना जाता रहा है?
उत्तर
शिरीष के फूलों की कोमलता के विषय में कहा गया है कि ये केवल भंवरों के पैरों का कोमल दबाव ही झेल सकते हैं, पक्षियों का बिल्कुल नहीं।

प्रश्न 12.
लेखक ने शिरीष के पुराने फलों पर क्या टिप्पणी की है?
उत्तर
शिरीष के पुराने फल लंबी-लंबी फलियों में बंद होकर महीनों तक वृक्ष की शाखाओं से लटके रहते हैं। उसके फूल सूख जाते हैं, पत्ते झड़ जाते हैं, पर वे देश के ढीठ नेताओं की तरह अपनी जगह छोड़ने को तैयार ही नहीं होते। जब नए पत्ते, फल-फूल आते हैं तो वे उन्हें धक्का मार कर नीचे फेंकते हैं तभी वो पेड़ का पीछा छोड़ते हैं। यह उनकी बूढ़े नेताओं की तरह कुर्सी पर जमे रहने की बुरी आदत है।

प्रश्न 13.
लेखक देश के राजनेताओं से क्या अपेक्षा रखता है?
उत्तर
लेखक चाहता है कि देश के राजनेता समय पर अपनी गद्दी और राजनीति को छोड़ दें। वे अपने से अगली पीढ़ी को समय से स्थान दें जिससे उन्हें भी अपनी क्षमता और कौशल दिखाने का भरपूर अवसर और समय मिल सके।

प्रश्न 14.
लेखक के अनुसार महाकाल देवता के कोड़ों की मार से कौन बच सकता है?
उत्तर
लेखक के अनुसार जो लोग ऊर्ध्वमुखी होते हैं, ऊपर की ओर बढ़ते हैं वे ही महाकाल देवता के कोड़ों की मार से बच सकते हैं। मानव को अपने जीवन में सही मार्ग पर ही आगे बढ़ना चाहिए। जो मूर्ख यहाँ बने रहना चाहते हैं; कालदेवता से आँख बचाना चाहते हैं वही उनकी मार खाते हैं।

प्रश्न 15.
लेखक ने शिरीष को अद्भुत अवधूत क्यों माना है?
उत्तर
शिरीष ऐसा अद्भुत अवधूत है जो किसी से हार ही नहीं मानता। न ऊधो का लेना, न माधो का देना। जब धरती और आसमान गर्मी से जल रहे होते हैं तब भी शिरीष का वृक्ष न जाने कहाँ से रस खींच कर हरा-भरा लहलहाता रहता है और आठों याम मस्ती में झूमता रहता है।

प्रश्न 16.
कर्णाट-राज की प्रिया विजिका देवी ने गर्वपूर्ण ढंग से क्या कहा था?
उत्तर
कर्णाट-राज की प्रिया विज्जिका देवी ने कहा था कि एक कवि ब्रह्मा थे, दूसरे वाल्मीकि और तीसरे व्यास। एक ने वेदों को प्रदान किया, दूसरे ने रामायण दी और तीसरे ने महाभारत प्रदान की। इनके अतिरिक्त यदि कोई और कवि होने का दावा करता है तो मैं उसके सिर पर अपना बायाँ चरण रखती हूँ।

प्रश्न 17.
राजा दुष्यंत शकुंतला के चित्र को बनाते समय क्या बनाना भूल गए थे?
उत्तर
राजा दुष्यंत शकुंतला के कानों पर शिरीष पुष्प बनाना भूल गए थे जिसके केसर गंडस्थल तक लटके हुए थे। साथ ही वे शरद ऋतु के चंद्र की किरणों के समान कोमल और शुभ्र मृणाल का हार बनाना भी भूल गए थे।

प्रश्न 18.
किसी सामान्य कवि और कालिदास में क्या अंतर था?
उत्तर
सामान्य कवि भावों की गहराई में गए बिना ही छंद, अलंकार, तुक, शब्द, लय आदि में डूबकर रह जाता है, जबकि कालिदास काव्य-रचना करते समय पूरी तरह से अनासक्त रहते थे। वे वास्तव में ही स्थिरप्रज्ञ थे।

प्रश्न 19.
लेखक ने गांधी और शिरीष की आपस में तुलना क्यों की है? (C.B.S.E. Outside Delhi 2013, Set-I, Set-II, Set-III)
उत्तर
शिरीष विपरीत स्थितियों में भी डटकर कष्टों को झेलता है और सभी को छाया और सुगंध प्रदान करता है। प्रचंड लू भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाती। महात्मा गांधी भी अंग्रेजी शासनकाल की खून-खच्चर भरी राजनीति में अपने प्रेमपूर्ण व्यवहार से अहिंसा और उदारता का पाठ देशवासियों को पढ़ाते रहे जिसके परिणामस्वरूप देश ने स्वतंत्रता प्राप्त की थी। इसी कारण लेखक ने दोनों की तुलना की है।

प्रश्न 20.
लेखक ने कालिदास और कबीर को क्या माना है?
उत्तर
लेखक ने कालिदास को अनासक्त योगी माना है। कबीर को शिरीष की तरह मस्त, बेपरवाह पर सरस और मादक माना है।

प्रश्न 21.
हजारी प्रसाद द्विवेदी के द्वारा नेताओं और कुछ पुराने व्यक्तियों की अधिकार लिप्सा पर किए गए व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नेताओं और कुछ पुराने व्यक्तियों की लिप्सा पर कटु व्यंग्य किया है। उनका कथन है कि जो संसार में आया है उसका जाना निश्चित है। जन्म-मृत्यु जीवन के शाश्वत सत्य हैं। समय परिवर्तनशील है जो सबको मिटा देता है। इस पर भी नेताओं और पुराने व्यक्तियों की अधिकार लिप्सा शांत नहीं होती। न जाने वे अपने अधिकारों पर ही क्यों जमे रहना चाहते हैं। वे समय रहते सावधान क्यों नहीं हो जाते। उन्हें ज्ञात होना चाहिए कि बुढ़ापा और मृत्यु इस संसार के शाश्वत सत्य हैं जो एक दिन सबको आना है। इसलिए नेता और पुराने व्यक्ति भी इस समय से बच नहीं सकते।

महत्वपूर्ण गद्यांशों के अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. फूल है शिरीष । वसंत के आगमन के साथ लहक उठता है, आषाढ़ तक जो निश्चित रूप से मस्त बना रहता है। मन रम गया तो भरे भादों में भी निर्घात फूलता रहता है। जब उमस से प्राण उबलता रहता है और लू से हृदय सूखता रहता है, एकमात्र शिरीष कालजई अवधूत की भाँति जीवन की अजेयता का मंत्र प्रचार करता रहता है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

पर
1. गद्यांश के पाठ तथा लेखक का नाम लिखिए।
2. वह कौन-सा फूल है जो अत्यधिक गर्मी में भी खिला-फूला रहता है।
3. लेखक ने किसको कालजई अवधूत की संज्ञा दी है और क्यों?
4. शिरीष के फूल का परिचय दीजिए।
5. शिरीष का फूल अपने जीवन की अजेयता के मंत्र का प्रचार कैसे करता है?
उत्तर
1. गद्यांश के पाठ का नाम ‘शिरीष के फूल’ तथा लेखक का नाम हजारी प्रसाद द्विवेदी है।
2. वह शिरीष का फूल है जो अत्यधिक गर्मी व लू में भी खिला रहता है।
3. लेखक ने शिरीष के फूल को कालजई अवधूत की संज्ञा दी है क्योंकि यह अकेला फूल ही ऐसा है जो भयंकर गर्मी की तपन में भी खिला रहता है। जिस भयंकर गर्मी में अन्य समस्त फूल सूख जाते हैं उसमें यह शिरीष गर्मी से संघर्ष करता हुआ खिला रहता है।
4. शिरीष का फूल वसंत के आगमन के साथ ही लहक उठता है। यह आषाढ़ तक निश्चित रूप से मस्त बना रहता है और भादों में भी निर्धात फूला रहता है। भयंकर गर्मी जिसमें प्राण उबलने लगते हैं उसमें भी यह खिला रहता है।
5. भादों मास की भयंकर लू तथा उमस से जब प्राण उबलने लगते हैं, हृदय सूख जाता है। इस भयंकर गर्मी में अन्य सभी पेड़-पौधे झुलस उठते हैं लेकिन अकेला शिरीष का फूल ही ऐसा है जो इस लू में भी खिलता रहता है। वह भयंकर लू से संघर्ष करता हुआ निरंतर महकता रहता है। इस प्रकार शिरीष का फूल अपने जीवन की अजेयता के मंत्र का प्रचार करता है।

2. यद्यपि पुराने कवि बकुल के पेड़ में ऐसी दोलाओं को लगा देखना चाहते थे, पर शिरीष भी क्या बुरा है। डाल इसकी अपेक्षाकृत कमज़ोर ज़रूर होती है, पर उसमें झूलने वालियों का वजन भी तो बहुत ज्यादा नहीं होता। कवियों की यही तो बुरी आदत है कि वजन का एकदम ख्याल नहीं करते। मैं तुंदिल नरपतियों की बात नहीं कह रहा हूँ, वे चाहें तो लोहे का पेड़ बनवा लें।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. पुराने कवि बकुल के पेड़ में कैसी दोलाओं में लगा देखना चाहते थे?
2. लेखक कवियों की कौन-सी बुरी आदत मानता है?
3. लेखक के अनुसार कौन-से लोग लोहे के पेड़ बनवा सकते हैं?
4. लेखक शिरीष की डोल पर किनके झलने की कल्पना करता है?
उन्ता
1. पुराने कवि बकुल की डालियों पर दोलाओं (झूलों) को लगा देखना चाहते थे जिन पर महिलाएं झुलती थीं।
2. लेखक कवियों की यह बुरी आदत मानता है कि वे वजन का एकदम ख्याल नहीं करते थे।
3. लेखक के अनुसार तुंदिल नरपति अर्थात बड़े लोग लोहे के पेड़ बनवा सकते हैं।
4. लेखक शिरीष की डाल पर कोमल शाखाओं रूपी नायिकाओं के झूलने की कल्पना करता है।

3. वसंत के आगमन के समय जब सारी वनस्थली पुष्प-पत्र से मर्मरित होती रहती है, शिरीष के पुराने फल बुरी तरह खड़खड़ाते रहते हैं। मुझे इनको देखकर उन नेताओं की बात याद आती है, जो किसी प्रकार जमाने का रुख नहीं पहचानते और जब तक नई पौध के लोग उन्हें धक्का मारकर निकाल नहीं देते तब तक जमे रहते हैं।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. वसंत के आगमन पर वनस्पति कैसी होती है?
2. वसंत के आने पर शिरीष पर क्या प्रभाव पड़ता है?
3. शिरीष के पुराने फलों को खड़खड़ाते देखकर लेखक को किनकी याद आती है?
4. इस गद्यांश में लेखक कैसे नेताओं पर व्यंग्य करता है?
5. उपर्युक्त गद्यांश के लेखक का क्या नाम है?
उत्तर
1. वसंत के आगमन पर वनस्थली पुष्प-पत्र से मर्मरित होती रहती है।
2. वसंत के आने पर शिरीष के पुराने फल बुरी तरह खड़खड़ाते रहते हैं।
3. लेखक को शिरीष के पुराने फलों को खड़खड़ाते देखकर उन नेताओं की याद आती है जो किसी प्रकार जमाने का रुख नहीं पहचानते।
4. इस गद्यांश में लेखक उन नेताओं पर व्यंग्य करता हैं जो किसी तरह जमाने का रुख नहीं पहचानते और जब तक नई पौध के लोग उन्हें धक्का मारकर निकाल नहीं देते तब तक जमे रहते हैं।
5. उपर्युक्त गद्यांश के लेखक का नाम आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी है।

4. मैं सोचता हूँ कि पुराने की यह अधिकार-लिप्सा क्यों नहीं समय रहते सावधान हो जाती? जरा और मृत्यु, ये दोनों ही जगत के अतिपरिचित और अतिप्रामाणिक सत्य हैं। तुलसीदास ने अफसोस के साथ इनकी सच्चाई पर मोहर लगाई थी-‘धरा को प्रमान यही तुलसी जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताना !'(A.I. C.B.S.E. 2014, Set-I, II, III)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. यहाँ लेखक किससे सावधान हो जाने की बात कहता है?
2. जगत के अतिपरिचित और अतिप्रामाणिक सत्य क्या हैं?
3. तुलसीदास ने अफसोस के साथ किस सच्चाई पर मोहर लगाई थी?
4. पुराने की अधिकार-लिप्सा के माध्यम से लेखक ने किन पर व्यंग्य किया है?
उत्तर
1. यहाँ लेखक उन पुराने नेताओं को सावधान हो जाने की बात कहता है जो किसी प्रकार जमाने का रुख नहीं पहचानते और जब तक नए नेता उन्हें धक्का मारकर निकाल नहीं देते तब तक जमे रहते हैं।
2. जरा और मृत्यु जगत के अतिप्रामाणिक तथा अतिपरिचित सत्य हैं। ये वे सत्य हैं जो अटल हैं जिनसे कोई भी मुख नहीं मोड़ सकता।
3. बुढ़ापा और मृत्यु संसार के अतिप्रामाणिक सत्य हैं। तुलसीदास ने अफसोस के साथ इनकी सच्चाई पर मुहर लगाई थी। उन्होंने कहा था-धरा को प्रमान यही तुलसी जो फरा सो झरा, जो बरा सो बुताया।
4. पुराने की अधिकार-लिप्सा के माध्यम से लेखक ने उन पुराने नेताओं पर व्यंग्य किया है जो ज़माने का रुख नहीं पहचानते। जो सदैव अपनी सत्ता कायम रखना चाहते हैं और जब तक नए नेता उन्हें धक्का मारकर राजनीति से निकाल नहीं देते तब तक वे जमे रहते हैं।

5. अवधूतों के मुंह से ही संसार की सबसे सरस रचनाएँ निकली हैं। कबीर बहुत कुछ इस शिरीष के समान ही थे, मस्त और बेपरवा, पर सरस और मादक। कालिदास भी जरूर अनासक्त योगी रहे होंगे। शिरीष के फूल फक्कड़ाना मस्ती से ही उपज सकते हैं और ‘मेघदूत’ का काव्य उसी प्रकार के अनासक्त अनाविल उन्मुक्त हृदय में उमड़ सकता है। जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जो किए-कराए का लेखा-जोखा मिलाने में उलझ गया, वह भी क्या कवि है?

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

1. यह गद्यांश किस लेखक द्वारा रचित है तथा इसके पाठ का नाम लिखिए।
2. संसार की सबसे सरस रचनाएँ किनके मुख से निकली हैं?
3. लेखक ने शिरीष की तुलना किससे की है? क्यों?
4. लेखक के अनुसार सच्चा कवि कौन है?

1. यह गद्यांश ‘हजारी प्रसाद द्विवेदी’ द्वारा रचित है तथा इसके पाठ का नाम ‘शिरीष के फूल’ है।
2. संसार की सबसे सरस रचनाएँ अवधूतों के मुख से निकली हैं।
3. लेखक ने शिरीष की तुलना कबीरदास जी से की है क्योंकि संत कबीर बहुत कुछ शिरीष के फूल के समान ही थे। वे मस्त और बेपरवाह थे लेकिन इसके साथ-साथ वे सरस एवं मादक भी थे।
4. लेखक के अनुसार सच्चा कवि वह है जो अनासक्त रहे और फक्कड़पन में जीवन व्यतीत करे। जो अनासक्त नहीं रह सकता तथा फक्कड़ नहीं बन सकता, लेखक उसे कवि नहीं मानता।

6. शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर है। गांधी भी वायुमंडल से रस खींचकर इतना कोमल और इतना कठोर हो सका था। मैं जब-जब शिरीष की ओर देखता हूँ तब तब हूक उठती है-हाय, वह अवधूत आज कहाँ है ! (C.B.S.E. 2011, Set-1)

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
1. शिरीष कहाँ से रस खींचता है? वह रस खींचकर कैसा प्रतीत होता है?
2. शिरीष की तुलना किससे की गई है?
3. लेखक किस अवधूत की बात कर रहे हैं?
4. लेखक शिरीष और गांधी जी में क्या समानता देखता है ? स्पष्ट कीजिए।
उन्ना
1. शिरीष वायुमंडल से रस खींचता है। वह वायुमंडल से रस खींचकर कोमल और कठोर प्रतीत होता है।
2. शिरीष की तुलना गांधी जी से की गई है।
3. लेखक सत्य और अहिंसा के पुजारी ‘महात्मा गांधी जी की बात कर रहा है।
4. लेखक मानता है कि शिरीष वायुमंडल से रस खींचकर गांधी जी के समान कोमल और कठोर है। जिस प्रकार गांधी जी अंदर से तो बहुत कोमल थे; किसी के दुख को देखकर तुरंत ही रो पड़ते थे और बाहर से बहुत ज्यादा कठोर थे, ठीक वैसे ही शिरीष भी अंदर से कोमल तथा बाहर से कठोर प्रतीत होता है।