By going through these CBSE Class 6 Sanskrit Notes Chapter 7 बकस्य प्रतिकारः Summary, Notes, word meanings, translation in Hindi, students can recall all the concepts quickly.

Class 6 Sanskrit Chapter 7 बकस्य प्रतिकारः Summary Notes

बकस्य प्रतिकारः पाठ का परिचय

इस पाठ में अव्यय पदों का प्रयोग आया है। अव्यय वे होते हैं, जिनमें लिंग, पुरुष, वचन, काल आदि के कारण कोई रूपांतर नहीं आता। वे अपने मूल रूप में प्रयुक्त होते हैं। यथा
(i) सः अपि गच्छति।
(ii) अहम् अपि गमिष्यामि।
(iii) ते अपि गमिष्यन्ति।

इन वाक्यों में ‘अपि’ में कोई परिवर्तन नहीं आया है। संस्कृत में ऐसे कई अव्यय हैं। यथा-एव (ही), च (और), तत्र (वहाँ), अत्र (यहाँ), कुत्र (कहाँ) आदि। पाठ में लङ्लकार (भूतकाल) के क्रियापद भी आए हैं। यथा- अवदत् (बोला) अयच्छत् (दिया) आदि।

बकस्य प्रतिकारः Summary

प्रस्तुत पाठ में अव्ययों के प्रयोग को कथा के माध्यम से दिखलाया गया है। गीदड़ और बगुला दो मित्र थे। दोनों मित्र एक वन में रहते थे। एक बार प्रात: गीदड़ ने बगुले से कहा-‘दोस्त, कल तुम मेरे साथ भोजन करो।’ गीदड़ का न्यौता पाकर बगुला प्रसन्न हुआ।
बकस्य प्रतिकारः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 7.1

अगले दिन वह बगुला गीदड़ के निवास पर गया। गीदड़ कुटिल स्वभाव का था। उसने बगुले को एक थाली में खीर प्रदान की। गीदड़ बोला-‘दोस्त, इस पात्र में हम दोनों अब एक साथ खाते हैं।’ भोजन करते समय बगुले की चोंच थाली से भोजन लेने में समर्थ नहीं थी। इसलिए बगुला केवल खीर को देखता रहा। किन्तु गीदड़ सारी खीर खा गया। गीदड़ से ठगा गया बगुला सोचने लगा-जैसा व्यवहार इस गीदड़ ने मेरे साथ किया है वैसा मैं भी इसके साथ करूँगा। ऐसा सोचकर उसने गीदड़ से कहा-‘मित्र, तुम भी कल शाम को मेरे साथ भोजन करोगे। बगुले के निमन्त्रण से गीदड़ प्रसन्न हुआ।’
बकस्य प्रतिकारः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 7.2

जब गीदड़ शाम को बगुले के निवास पर भोजन के लिए गया तब बगुले ने एक तंग मुँह के कलश में खीर प्रदान की और गीदड़ से कहने लगा-‘मित्र, हम दोनों साथ ही इस पात्र में भोजन करते हैं।’ बगुला कलश से चोंच के द्वारा खीर खाता है परन्तु गीदड़ का मुख कलश में प्रवेश नहीं करता। इसलिए बगुला सारी खीर खा लेता है और गीदड़ ईर्ष्यापूर्वक उसे देखता रहता है। शिक्षा-दुर्व्यवहार का फल दु:खदायक होता है। अतः सुख चाहने वाले मनुष्य को अच्छा व्यवहार करना चाहिए।
बकस्य प्रतिकारः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 7.3

बकस्य प्रतिकारः Word Meanings Translation in Hindi

(क) एकस्मिन् वने शृगालः बकः च निवसतः स्म। तयोः मित्रता आसीत्। एकदा प्रातः शृगालः बकम् अवदत्-“मित्र! श्वः त्वं मया सह भोजनं कुरु।” शृगालस्य निमंत्रणेन बकः प्रसन्नः अभवत्।

शब्दार्थाः (Word Meanings) : एकस्मिन् वने-एक वन में (in a forest), शृगालः-गीदड़ सियार (jackal), बकः च-और बगुला (and a crane), निवसतः स्म-रहते थे lived (dual), तयो:-उन दोनों में (between them), आसीत्-था/थी (was), एकदा-एक बार (once), अवदत्-बोला (spoke/said), श्व:-आने वाला कल (tomorrow), मया सह-मेरे साथ (with me), भोजनं कुरु-भोजन करो (have dinner/meals), निमंत्रणेन-निमंत्रण से with (his) invitation, अभवत्-हुआ (became/was)

सरलार्थ :
एक वन में एक सियार और एक बगुला रहते थे। उन दोनों में मित्रता (दोस्ती) थी। एक दिन सवेरे सियार ने बगुले को कहा-“मित्र! कल तुम मेरे साथ खाना खाओ।” सियार के निमंत्रण से बगुला खुश हुआ।

English Translation:
There lived a jackal and a crane in a forest. There was friendship between the two of them. One morning the jackal said to the crane, ‘Friend! tomorrow you have dinner with me. The crane was happy with the jackal’s invitation.

(ख) अग्रिमे दिने सः भोजनाय शृगालस्य निवासम् अगच्छत्। कुटिलस्वभावः शृगालः स्थाल्यां काय क्षीरोदनम् अयच्छत्। बकम् अवदत् च-“मित्र! अस्मिन् पात्रे आवाम् अधुना सहैव खादावः।” भोजनकाले बकस्य चञ्चुः स्थालीतः भोजनग्रहणे समर्था न अभवत्। अतः बकः केवलं क्षीरोदनम् अपश्यत्। शृगालः तु सर्वं क्षीरोदनम् अभक्षयत्।

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
अग्रिम दिवसे-अगले दिन (the next day), भोजनाय-भोजन के लिए (for dinner), निवासम्-निवास स्थान को (his residence), अगच्छत्-गया/गई (went), स्थाल्याम्-थाली में (in a dish), बकाय-बगुले के लिए, (for crane), क्षीरोदनम्-खीर (A sweet dish prepared with milk, rice, sugar etc.), अयच्छत्-दिया (to give), पात्रे-बर्तन में (in the vessel), अधुना-अब (now), सहैव (सह + एव)-साथ ही (together), बकस्य चञ्चुः-बगुले की चोंच (the crane’s beak), स्थालीतः-थाली से (from the dish), भोजनग्रहणे- भोजन ग्रहण करने में (to have dinner), समर्था-समर्थ (capable), अतः-इसलिए (therefore), केवलम्-केवल/सिर्फ़ (only), अपश्यत्-देखा/देखी (saw), अभक्षयत्-खाया। खायी (ate)

सरलार्थ:
अगले दिन वह भोजन के लिए सियार के निवास स्थान पर गया। कुटिल स्वभाव वाले सियार ने थाली में बगुले को खीर दी और बगुले से कहा-“मित्र, इस बर्तन में हम दोनों अब साथ ही खाते हैं।” भोजन के समय में बगुले की चोंच थाली से भोजन ग्रहण करने में समर्थ नहीं थी। अतः बगुला केवल खीर देखता रहा। सियार ने तो सारी खीर खा ली।

English Translation:
The next day he went to jackal’s house for dinner. The crooked jackal served the rice pudding to the crane in a flat dish and said to the crane — “Friend, let us now eat together in this vessel”. At the time of the meal the crane’s beak was unable to reach the food in the flat dish. Therefore the crane just kept looking at the milk pudding. The jackal ate up the entire milk pudding.

(ग) शगालेन वञ्चितः बकः अचिन्तयत्-“यथा अनेन मया सह व्यवहारः कृतः तथा अहम् अपि तेन सह व्यवहरिष्यामि।” एवं चिंतयित्वा सः शृगालम् अवदत्- “मित्र! त्वम् अपि श्वः सायं मया सह भोजनं करिष्यसि।” बकस्य निमंत्रणेन शृगालः प्रसन्नः अभवत्।

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
शृगालेन-सियार द्वारा (by the jackal), वञ्चितः-ठगा गया . (deceived), अचिंतयंत्-सोचा (thought), यथा-जिस प्रकार (the way/like), अनेन-इसके द्वारा by this (jackal), व्यवहारः-व्यवहार (treatment, behaviour), कृतः-किया गया (has been done), तथा-उसी प्रकार (like that), अपि-भी (also/ too), तेन सह-उसके साथ (with him), व्यवहरिष्यामि-व्यवहार करूँगा (shall behave), एवम्-इस प्रकार (thus), चिंतयित्वा-सोच-समझकर (thinking properly), करिष्यसि-करोगे (will do)। .

सरलार्थ : सियार के द्वारा ठगे जाने पर बगुले ने सोचा, “जिस प्रकार इसने मेरे साथ बर्ताव किया है, उसी प्रकार मैं भी उसके साथ बर्ताव करूँगा।” ऐसा सोचकर उसने सियार से कहा-“दोस्त! तुम भी कल शाम मेरे साथ भोजन करोगे।” बगुले के निमंत्रण से सियार खुश हो गया।

English Translation: Having been cheated by the jackal the crane thought-“The way he has treated (behaved with) me, I too shall behave with him in the same manner.’ Thinking this he said to the jackal, ‘Friend, you too shall have dinner with me tomorrow evening. The jackal became happy with the crane’s invitation.

(घ) यदा शृगालः सायं बकस्य निवासं भोजनाय अगच्छत्, तदा बकः सङ्कीर्णमुखे कलशे क्षीरोदनम् अयच्छत् शृगालं च अवदत्-“मित्र! आवाम् अस्मिन् पात्रे सहैव भोजनं कुर्वः”। बकः कलशात् चञ्च्या क्षीरोदनम् अखादत्। परंतु शृगालस्य मुखं कलशे न प्राविशत्। अतः बकः सर्वं क्षीरोदनम् अखादत्। शृगालः च केवलम् ईjया अपश्यत्।

शब्दार्थाः (Word Meanings): यदा-जब (when), तदा-तब (then), सङ्कीर्णमुखे कलशे-तंग मुख वाले कलश में (in a pot with a narrow mouth), कुर्व:-(हम दोनों) करते हैं (we/both do), कलशात्-कलश से (from the pot), चञ्च्वा -चोंच से (with beak), प्राविशत्-प्रवेश किया (entered), ईर्ष्णया-ईर्ष्या से (jealously), अपश्यत्-देखा (saw)।

सरलार्थ :
जब सियार शाम को बगुले के निवास स्थान पर भोजन के लिए गया, तब बगुले ने छोटे मुख वाले कलश (सुराही) में खीर डाली (दी) और सियार से कहा-“दोस्त, हम दोनों इसी बर्तन में साथ ही भोजन करते हैं।” बगुले ने कलश से चोंच द्वारा खीर खाई। परंतु सियार का मुँह कलश में नहीं जा सका। इसलिए बगुला सारी खीर खा गया। सियार केवल ईर्ष्या से देखता रहा।

English Translation: When the jackal went to the crane’s residence for meals in the evening then the crane gave the rice pudding in a pot with a narrow mouth. And said to the jackal, “Friend! we shall eat together in this pot.” The crane ate the rice pudding with its beak. But the jackal’s mouth was unable to reach into the pot. Therefore the crane ate up all the rice pudding. The jackal just looked on jealously.

(ङ) शृगालः बकं प्रति यादृशं व्यवहारम् अकरोत् बकः अपि शृगालं प्रति तादृशं व्यवहारं कृत्वा प्रतीकारम् अकरोत्।

उक्तमपि- आत्मदुर्व्यवहारस्य फलं भवति दुःखदम्।
तस्मात् सद्व्यवहर्तव्यं मानवेन सुखैषिणा॥

शब्दार्थाः (Word Meanings) :
यादृशम् व्यवहारम्-जैसा व्यवहार (kind of behaviour), तादृशम्-वैसा (the same), कृत्वा-करके (having done), प्रतीकारम्-बदला (revenge), अकरोत्-किया (did), आत्मदुर्वव्यवहारस्य-अपने बुरे व्यवहार का (fall out of bad behaviour), फलम्-फल/परिणाम (result/fall out), दु:खद-दुखद/दुख देने वाला (causing misery), तस्मात्-इसलिए (therefore), सद्व्यवहर्तव्यम्-अच्छा व्यवहार करना चाहिए (should put on (do) good behaviour), मानवेन-मनुष्य द्वारा (by a person), सुखैपिणा-सुख चाहने वाले (wishing for happiness)।

सरलार्थः
सियार ने बगुले के प्रति जिस प्रकार का व्यवहार किया बगुले ने भी सियार के साथ वैसा ही व्यवहार करके बदला लिया। कहा भी गया है अपने बुरे व्यवहार का परिणाम दुखद ही होता है। इस कारण सुख चाहने वाले मानव को चाहिए कि वह सदा अच्छा व्यवहार करे।

English Translation: The way the jackal behaved with the crane the crane also behaved in the same way and took revenge. It also said, The fall out of one’s bad behaviour is always sorrowful. Therefore a person wishing for happiness should always do good behaviour.

अन्वयः- आत्मदुर्व्यवहारस्य फलं दु:खदम् भवति; तस्मात् सुखैषिणा मानवेन सद्व्यवहर्तव्यम्।

हमने सीखा
(i) अव्यय पदों का प्रयोग।
यथा-तदा, तथा, यदा, सह, एव, एवम्, प्रति, एकदा, प्रातः. सायं, अधुना, अद्य, श्वः।

(ii) लङ्लकार का प्रयोग भूतकाल की क्रिया दर्शाने के लिए किया जाता है। लङ्लकार में धातुरूप में धातु से पहले ‘अ’ लग जाता है।
बकस्य प्रतिकारः Summary Notes Class 6 Sanskrit Chapter 7