By going through these CBSE Class 8 Sanskrit Notes Chapter 7 भारतजनताऽहम् Summary, Notes, word meanings, translation in Hindi, students can recall all the concepts quickly.

Class 8 Sanskrit Chapter 7 भारतजनताऽहम् Summary Notes

भारतजनताऽहम् Summary

अनेक कवियों ने अपनी रचनाओं के द्वारा संस्कृत साहित्य को समृद्ध बनाया है। महाकवि कालिदास जैसे कविशिरोमणियों की रचनाएँ आज भी अमर हैं। काव्यसर्जन की यह परम्परा आज तक अविच्छिन्न रूपेण चली आ रही है। प्रस्तुत कविता आधुनिक कवि डॉ. रमाकान्त शुक्ल के काव्यसंग्रह से संकलित है। डॉ. शुक्ल आधुनिक संस्कृत जगत् में माँ शारदा के वरदपुत्र हैं। इन्हें राष्ट्रपति सम्मान तथा पद्मश्री जैसे अलङ्करणों से पुरस्कृत किया जा चुका है। शुक्ल जी की कविताएँ आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से भी समय-समय पर प्रसारित होती रहती हैं।
भारतजनताऽहम् Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 7.1

प्रस्तुत कविता डॉ. शुक्ल के ‘भारतजनताऽहम्’ नामक संग्रह से ली गई है। इसमें कवि भारतीय जनता के विविध कौशल एवं अभिरुचियों के विषय में बताते हैं। इस कविता के माध्यम से कवि ने भारतीय जनता की अनेक विशेषताओं को प्रकाशित किया है।
भारतजनताऽहम् Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 7.2
भारतजनताऽहम् Word Meanings Translation in Hindi

मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः, सरलार्थश्च

(क) अभिमानधना विनयोपेता, शालीना भारतजनताऽहम्।
कुलिशादपि कठिना कुसुमादपि, सुकुमारा भारतजनताऽहम् ॥

अन्वयः-
अहं भारतजनता अभिमानधना विनयोपेता शालीना कुलिशादपि कठोरा कुसुमादपि सुकुमारा (अस्मि)।

शब्दार्थ-
अभिमानधना-स्वाभिमान रूपी धन वाली।
विनयोपेता-विनम्रता से परिपूर्ण।
कुलिशादपि-वज्र से भी।
कुसुमादपि-फूल से भी।
सुकुमारा-अत्यधिक कोमल।

सरलार्थ-
मैं भारत की जनता हूँ।मैं स्वाभिमान रूपी धन वाली हूँ। मैं वज्र से भी कठोर हूँ। मैं विनम्रता से परिपूर्ण तथा शालीन हूँ। मैं फूल से भी अत्यधिक कोमल हूँ।

(ख) निवसामि समस्ते संसारे, मन्ये च कुटुम्बं वसुन्धराम्।
प्रेयः श्रेयः च चिनोम्युभयं, सुविवेका भारतजनताऽहम् ॥

अन्वयः-अहं भारतजनता समस्ते संसारे निवसामि, वसुन्धरां च कुटुम्बं मन्ये, प्रेयः श्रेयश्च उभयं चिनोमि, (अहं) सुविवेका।

शब्दार्थ-
निवसामि-निवास करती हूँ।
वसुन्धराम्-पृथ्वी को।
श्रेयः-कल्याणप्रद।
प्रेयः-प्रिय।
उभयम्-दोनों को।
चिनोमि-चुनती हूँ।

सरलार्थ-
मैं भारत की जनता हूँ। मैं समस्त संसार में निवास करती हूँ और (समस्त) भूमण्डल को परिवार मानती हूँ। रुचिकर और कल्याणप्रद दोनों (मार्गों) का चयन करती हूँ। अच्छे विवेक से पूर्ण हूँ।

(ग) विज्ञानधनाऽहं ज्ञानधना, साहित्यकला-सङ्गीतपरा।
अध्यात्मसुधातटिनी-स्नानैः, परिपूता भारतजनताऽहम् ।।

अन्वयः-
अहं भारतजनता विज्ञानधना ज्ञानधना साहित्यकला-सङ्गीतपरा अध्यात्मसुधातटिनी स्नानैः परिपूता (अस्मि)।

शब्दार्थ-
परा-परायण।
सुधा-अमृतमयी।
परिपूता-पवित्र।
तटिनी-नदी।

सरलार्थ-
मैं भारत की जनता हूँ। मैं विज्ञान रूपी धन वाली, ज्ञान रूपी धन वाली तथा साहित्य, कला व संगीत परायण हूँ। मैं अध्यात्म रूपी अमृतमयी नदी में स्नान से अत्यधिक पवित्र हूँ।

(घ) मम गीतैर्मुग्धं समं जगत्, मम नृत्यैर्मुग्धं समं जगत्।
मम काव्यैर्मुग्धं समं जगत्, रसभरिता भारतजनताऽहम् ।4।

अन्वयः-
मम गीतैः समं जगत् मुग्धम्, मम नृत्यैः समं जगत्, मम काव्यैः समं जगत् मुग्धम्, अहं रसभरा भारतजनता।।4।।

शब्दार्थ-
समम्-साथ।
जगत्-संसार।
रसभरिता-रस से परिपूर्ण।
मुग्धम्-मुग्ध।

सरलार्थ-
मेरे गीतों के द्वारा सारा संसार मुग्ध है, मेरे नृत्य के द्वारा सारा संसार मुग्ध है तथा मेरे काव्य के द्वारा सारा संसार मुग्ध है। मैं रस से परिपूर्ण भारत की जनता हूँ।

(ङ) उत्सवप्रियाऽहं श्रमप्रिया, पदयात्रा-देशाटन-प्रिया।
लोकक्रीडासक्ता वर्धेऽतिथिदेवा, भारतजनताऽहम् ।

अन्वयः-
अहम् उत्सवप्रिया, श्रमप्रिया, पदयात्रादेशाटन-प्रिया, लोकक्रीडा सक्ता, अतिथिदेवा, भारतजनता वर्धे।।5।।

शब्दार्थ-
श्रम-परिश्रम।
अटन-भ्रमण।
आसक्ता-अनुराग वाली।
वर्धे-वृद्धि को प्राप्त होती हूँ।

सरलार्थ-
मैं भारत की जनता हूँ। मैं उत्सवप्रिय, श्रमप्रिय तथा पदयात्रा के द्वारा देशों का भ्रमण करने वाली हूँ। मैं लोक, क्रीडाओं अनुराग रखने वाली, अतिथि प्रिय हूँ। मैं वृद्धि को प्राप्त होती हूँ।

(च) मैत्री मे सहजा प्रकृतिरस्ति, नो दुर्बलतायाः पर्यायः।
मित्रस्य चक्षुषा संसार, पश्यन्ती भारतजनताऽहम् ।6।

अन्वयः-
मैत्री मे सहजा प्रकृतिः अस्ति, नः दुर्बलतायाः पर्यायः। संसारं मित्रस्य चक्षुषा पश्यन्ती भारतजनता अहम्।

शब्दार्थ-
सहजा-स्वाभाविक।
न:-नहीं।
पर्यायः-पर्याय।
चक्षुषा-नेत्रों से।
पश्यन्ती-देखती हुई।

सरलार्थ-
मित्रता हमारी स्वाभाविक प्रवृत्ति है तथा दुर्बलता का पर्याय नहीं है। (सम्पूर्ण) संसार को मित्र की दृष्टि से देखती हुई मैं भारत की जनता हूँ।

(च) विश्वस्मिन् जगति गताहमस्मि, विश्वस्मिन् जगति सदा दृश्य।
विश्वस्मिन् जगति करोमि कर्म, कर्मण्या भारतजनताऽहम् ।।

अन्वयः-
अहं विश्वस्मिन् जगति गता अस्मि, (अहं) विश्वस्मिन्जगति सदा दृश्य, विस्मिन् जगति कर्म करोमि, (अहं) कर्मण्या भारत जनता (अस्मि)।

शब्दार्थ-
विश्वस्मिन्-सम्पूर्ण।
जगति-संसार में।
दृश्ये-देखी जाती हूँ।
कर्मण्या-कर्मशील।

सरलार्थ-
मैं सम्पूर्ण जगत् में गई हूँ। मुझे सम्पूर्ण जगत् में देखा जाता है। मैं सम्पूर्ण जगत् में कार्य करती हूँ। मैं कर्मशील भारत की जनता हूँ।