Class 12 Hindi Aroh Chapter 6 Summary उषा

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उषा Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 6

उषा कविता का सारांश

कवि ने ‘उषा’ कविता में सुबह-सवेरे सूर्य के निकलने से पहले को प्राकृतिक शोभा का सुंदर चित्रण किया है। आकाश का गहरा नीलापन सफ़ेद शंख के समान दिखाई देने लगता है। आकाश का रंग ऐसा लगता है जैसे किसी गृहिणी ने राख से चौका लीप-पोत दिया हो जो अभी गीला है। उसका रंग गहरा है। जैसे ही सूर्य कुछ ऊँचा उठता है और उसकी लाली फैलती है तो ऐसे प्रतीत होने लगता है जैसे केसर से युक्त काली सिल को किसी ने धो दिया है या उसपर लाल खड़िया चाक मल दी हो। नीले आकाश में सूर्य ऐसे शोभा देने लगता है जैसे कोई सुंदरी नीले जल से बाहर आती हुई रह-रहकर अपने गोरेपन की आभा बिखेर रही हो। जब सूर्य पूर्व दिशा में दिखाई देने लगता है तो उसका जादुई प्रभाव समाप्त हो जाता है।

उषा कवि परिचय

जीवन-परिचय-शमशेर बहादुर सिंह हिंदी-साहित्य की नई कविता के प्रमुख कवि माने जाते हैं। इनका ० अज्ञेय के तार सप्तक में महत्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म13 जनवरी, सन 1911 ई० को उत्तराखंड 0 के देहरादून जिले के एक साधारण मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा देहरादून के एक स्कूल में हुई। हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा गोंडा से प्राप्त की। इन्होंने बी० ए० तथा एम० ए० पूर्वाद्ध की उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ग्रहण की। इनकी प्रारंभ से ही चित्रकला में अधिक रुचि थी जिसका प्रयोग इन्होंने अपनी रचनाओं में किया है। इन्होंने दो वर्ष तक सुमित्रानंदन पंत के ‘रूपाभ पत्र’ में कार्य किया।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 5 Summary सहर्ष स्वीकारा है 

इसके बाद ये ‘कहानी’ और ‘नया साहित्य’ आदि पत्र-पत्रिकाओं के संपादक मंडल में रहे। ये दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में कोश से संबंधित कार्य भी करते रहे। तत्पश्चात विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन में ‘प्रेमचंद सृजन’ पीठ के अध्यक्ष पद पर कार्यरत रहे। सन 1977 ई० में ‘चुका भी हूँ नहीं मैं’ काव्य-संग्रह पर इन्हें ‘साहित्य अकादमी’ पुरस्कार से अलंकृत किया गया। इन्हें साहित्य की उत्कृष्टता के लिए ‘कबीर सम्मान’ सहित अनेक पुरस्कारों से सम्मानित भी किया गया।

अंततः सन 1993 ई० में दिल्ली में ये अपना महान साहित्य-हिंदी जगत को सौंपकर चिरनिद्रा में लीन हो गए। प्रमुख रचनाएँ-शमशेर बहादुर सिंह हिंदी साहित्य के एक श्रेष्ठ प्रगतिशील कवि माने जाते हैं। इन्होंने अनेक विधाओं पर सफल लेखनीचलाई है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

(i) काव्य-संग्रह-चुका भी हूँ नहीं मैं, कुछ कविताएँ, कुछ और कविताएँ इतने पास अपने, बात बोलेगी, काल तुमसे होड़ है मेरी।
(ii) संपादन-उर्दू-हिंदी कोश।।
(iii) निबंध-संग्रह-दोआब।
(iv) कहानी-संग्रह-प्लाट का मोर्चा।

साहित्यिक विशेषताएँ-शमशेर जी हिंदी के सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रगतिशील कवि हैं। बौद्धिक स्तर पर इन पर मार्क्सवादी विचारों का गहन । प्रभाव है। ये विचारों के स्तर पर प्रगतिशील तथा शिल्प के स्तर पर प्रयोगधर्मी कवि हैं। इनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित

(i) गरीबी का सजीव चित्रण-शमशेर जी ने अपने काव्य में समाज में फैली गरीबी का सजीव चित्रण किया है। गरीबी के कारण समाज की दयनीय दशा के प्रति इन्होंने गहन चिंता व्यक्त की है। गरीबी रूपी दानव ने संपूर्ण समाज को घेर लिया है जिसके कारण जनता बुद्धिहीन हो गई। इन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से बताया है कि समाज में घर-घर मजदूरी करनेवाले मजदूरों की दुर्दशा त्रासदपूर्ण है। घर-घर मजदूरी करनेवाले मजदूर का पूरा परिवार घर-घर मजदूरी करने पर मजबूर है। कवि ने समाज में बढ़ रही इस त्रासदी पर गहन चिंता व्यक्त की है।

दैन्य दानव; काल
भीषण; कर स्थिति; कंगाल
बुद्धि घर मजूर।
दैन्य दानव, कृर स्थिति।
कंगाल बुद्धि; मजूर घर भर।

(ii) देशभक्ति की भावना-शमशेर हिंदी साहित्य के एक सजग साहित्यकार थे। इनके हृदय में अपने देश के प्रति गहन प्रेम था। इन्होंने अपने काव्य में अपने देश तथा संस्कृति का अनूठा चित्रण किया है। इनकी अनेक कविताएँ भारतीय जनता को स्वतंत्रता के प्रति जागृत करने का आह्वान करती हैं। कवि ने भारतीय जनता को अपनी स्वतंत्रता को बचाने के लिए एकजुट रहने का संदेश दिया है। वे कहते हैं, हमें अपनी स्वतंत्रता को बचाने के लिए एकता की भावना को बनाए रखना चाहिए। इनकी अनेक कविताएँ ऐसे ही भारतीय जनता का आहवान करती प्रतीत होती हैं

एक जनता का-अमर वर
एकता का स्वर।
अन्यथा स्वातंत्र्य इति।

(iii) सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण-शमशेर जी यथार्थवादी भावना से ओत-प्रोत कवि माने जाते हैं। इन्होंने अपने काव्य में |
यथार्थ की भावभूमि का सहारा लेकर वर्णन किया है। यही कारण है कि इनकी कविताओं में समकालीन समाज के जन-जीवन का यथार्थ चित्रण मिलता है। इन्होंने समाज की उठा-पटक, ईष्या-द्वेष, ग़रीबी, लाचारी, शोषण आदि की यथार्थ अभिव्यंजना की है। इनका एक यथार्थवादी चित्र द्रष्टव्य है

सींग और नाखून
लोहे के बख्तर कंधों पर।
सीने में सुराख हड्डी का।
आँखों में घास काई की नमी।
एक मुस्दा हाथ
पाँव पर टिका
उलटी कलम थामे
तीन तसलों में कमर का घाव सड़ चुका है
जड़ों का भी कड़ा जाल
हो चुका पत्थर।

(iv) प्रगतिवादी चेतना-शमशेर जी मार्क्सवादी विचारधारा से प्रेरित कवि हैं। इसलिए इनके साहित्य में प्रगतिवादी चेतना का प्रतिपादन भी हुआ है। इनकी अनेक कविताओं पर द्वंद्वात्मक भौतिकवाद का गहन प्रभाव दिखाई देता है। इन्होंने अपने साहित्य में शोषक | वर्ग की खुलकर निंदा की है तथा शोषित समाज के प्रति विशेष सहानुभूति प्रकट की है। इन्होंने शोषण का शिकार झेल रहे। दीन-हीन समाज के प्रति गहरी संवेदना अभिव्यक्त की है।

(v) प्रकृति चित्रण-शमशेर जी का मन प्रकृति-वर्णन में खूब रमा है। इनका जन्म ही प्रकृति के आँचल में हुआ था। अतः प्रकृति से | इनका बचपन से लगाव था। इन्होंने प्रकृति-सौंदर्य को बहुत नजदीक से देखा है इसीलिए इनके काव्य में प्रकृति-सौंदर्य का अनूठा | चित्रण हुआ है। इन्होंने अनेक कविताओं में प्रकृति में अनेक सुंदर और मनोहारी चित्र बिखरे हैं। चित्रकला में विशेष रुचि होने | के कारण इनके प्राकृतिक चित्र अत्यंत सजीव बन पड़े हैं। इन्होंने अनेक कविताओं में बाग-बगीचों, पहाड़ों, झरनों और नदियों के सुंदर-सुंदर बिंब प्रस्तुत किए हैं’उषा’ कविता में कवि ने प्रात:कालीन वातावरण का सजीव चित्रण किया है

प्रातः नभ था-बहुन नीला, शंख जैसे
भोर का नभ,
राख से लीपा हुआ चौका
(अभी गीला पड़ा है।)
बहुत काली सिल
जग से लाल केसर मे
कि जैसे धुल गई हो।
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक
मल दी हो किसी ने।

(vi) रहस्यवादी भावना-शमशेर जी एक प्रयोगधर्मी कवि हैं, अतः इन्होंने अपने साहित्य में अनेक नए-नए प्रयोग किए हैं। कहीं-कहीं। इनके ऊपर छायावाद का प्रभाव दिखाई देता है। इनके ‘राग’ नामक संग्रह में इनकी रहस्यवादी भावना का चित्रांकन हुआ है। ‘बात बोलेगी’ कविता के माध्यम से इन्होंने वस्तुनिष्ठ सत्य की वकालत की है तथा सत्य क्या है; दुःख क्या है; विडंबना क्या है आदि अनेक रहस्यों का उद्घाटन भी किया है। जैसे

बात बोलेगी;
हम नहीं।
भेद खोलेगी
बात ही।
सत्य का मुख
झूठ की आँखें
क्या-देखें
सत्य का रुख;
समय का रुख है:
अभय जनता को
सत्य ही सुख है,
सत्य ही सुख।

(vii) भाषा-शैली-शमशेर जी कविताएँ जहाँ एक ओर अत्यंत बोधगम्य तथा सरल हैं तो दूसरी ओर नितांत जटिल भी हैं। कवि पर। उर्दू शायरी का भी प्रभाव देखा जा सकता है जिसके कारण उन्होंने संज्ञा और विशेषण से अधिक सर्वनामों, क्रियाओं, अव्ययों और मुहावरों पर बल दिया है। शमशेर जी की प्रवृत्ति सदा ही वस्तुपरकता को उसके मार्मिक रूप में ग्रहण करने की रही है, इसीलिए उनकी काव्य-अनुभूति बिंब ही नहीं बल्कि बिंबलोक की है।

इनके काव्य में प्रगतिवाद, प्रयोगवाद तथा नई कविता के तत्व घुल-मिलकर इनके भाव और भाषा को उजला रूप प्रदान करते हैं। चित्रकला, संगीत और कविता इनकी सर्जनात्मकता को नया रंग देते हैं। इनकी भाषा सरल, सुबोध, साहित्यिक खड़ी बोली है जिसमें तत्सम, तद्भव, अंग्रेजी, उर्दू, फ़ारसी आदि भाषाओं की। शब्दावली का प्रयोग हुआ है। इनकी शैली भावपूर्ण है। इसके साथ-साथ चित्रात्मक, वर्णनात्मक शैलियों का प्रयोग भी किया है। मुहावरों के प्रयोग से इनकी भाषा में रोचकता उत्पन्न हो गई है।

(viii) अलंकार, छंद और बिंब-शमशेर जी के काव्य में शब्द और अर्थ दोनों प्रकार के अलंकारों का प्रयोग किया गया है। इन्होंने अपनी कविताओं में अनुप्रास, यमक, श्लेष, पदमैत्री, मानवीकरण, रूपक, उत्प्रेक्षा आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग किया है। उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण द्रष्टव्य है

नील जल में या
किसी की गौर, सिलमिल देह जैसे
हिल रही हो।
और —
जादू टूटता है उस उषा का अब
सूर्योदय हो रहा है।

इन्होंने अपने काव्य के लिए मुक्तक छंद का प्रयोग किया है। इनकी बिंब-योजना अत्यंत सार्थक एवं सटीक है। इनके शब्द-चित्र अत्यंत सजीव हैं।

Nuclei Class 12 Notes Physics Chapter 13

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Nuclei Notes Class 12 Physics Chapter 13

→ Masses of all nuclei are integral multiples of hydrogen mass which suggests that all nuclei are made of hydrogen nuclei.

→ Nuclear mass is different from the mass number.

→ The mass number is the integer closest to the nuclear mass.

→ The packing fraction of a nucleus is closely related to its binding energy per nucleon.

→ Electrons and protons have an almost infinite lifetime.

5626Fe nucleus is the most stable.

→ Neutrino is a particle that has zero charges and zero rest mass.

→ Half-life is different for different substances.

→ 3 stable isotopes of Neon are 2010Ne, 2110Ne, 2210Ne.

→ 1 year = 31.6 × 107 s.

→ Becquerel is the S.I. unit of activity.

→ Radioactivity is independent of temperature and pressure.

→ The velocity of u-particles is less than that of P-particles, so a- particles have more ionizing power than P-particles.

→ B.E./nucleon for light nuclei is much smaller (~ 1 MeV for 21H.)

→ Nuclei with A > 120 are less stable as their B.E./nucleon decreases with increasing A. So such nuclei disintegrate to produce more stable nuclei.

→ The sun radiates 3.92 × 1026 J of energy per second.

→ Cadmium rods are very good absorbers of neutrons.

→ Light nuclei have an equal or nearly equal number of protons and neutrons while in heavy nuclei the number of neutrons is greater than the number of protons.

→ Nuclear fusion is an uncontrolled process while nuclear fission can be controlled as in nuclear reactors.

→ Heavy water is the best moderator among heavy water, graphite, beryllium oxide, etc. commonly used as moderators.

→ The density of matter in the nucleus is 1014 times that of the ordinary matter,

→ The nuclear density is independent of the size of the nucleus,

→ The whole mass and charge of the atom are concentrated in a tiny nucleus.

→ The nuclear force is the fundamental force of nature and it keeps the nucleons together in spite of the repulsive forces among the protons,

→ The typical nuclear binding energy is 8 MeV per nucleon and it is about a million times larger than typical atomic binding energies.

→ Electron and positron are particle-antiparticle pairs.

→ The annihilation of an electron and a positron gives energy in the form of γ-ray. photons.

→ Electron and positron are identical in mass and have equal and opposite charges.

→ A free neutron is unstable but free proton decay is not possible.

→ Inside the nucleus, the proton and neutron are part of the nucleus and share, energy and momentum.

→ γ decay generally follows α or β emission as the nucleus is in the excited state after each α or β decay.

→ The excited nucleus comes to the ground state after γ-decay.

→ Radioactivity is a measure of the instability of the nuclei.

→ Stability requires the ratio of neutrons to protons to be around 1: 1 for light nuclei.

→ β-particles have a continuous energy spectrum while α-particles and γ-rays have a line energy spectrum.

→ The neutron to proton ratio increases to about 3: 2 for heavy nuclei.

→ In β -decay antineutrino (v) is emitted while in β+ decay neutrino (v) is emitted.

→ Neutrinos interact extremely weakly with matter and it is difficult even to detect them.

→ Mass and energy are interconvertible according to the relation, E = mc2.

→ 1 a.m.u. = 1.66 × 10-27 kg = 931 MeV.

→ Chain reactions are of two types:
(a) Controlled chain reaction.
(b) Uncontrolled chain reaction.

→ The atomic bomb is based on an uncontrolled chain reaction.

→ A reactor is based on a controlled chain reaction.

→ The controlled chain reaction is obtained by slowing down the fast neutrons given out in the fission process

→ A moderator should not be gas and have a small mass number.

→ Nuclei having A > 230 undergo nuclear fission by absorbing a slow neutron.

→ 200 MeV energy is liberated due to the fission of one 23592U and is distributed as follows:
(a) 170 MeV as K.E. of fission fragments.
(b) 6 MeV as K.E. of fission neutrons.
(c) 24 MeV as the energy of γ-ray, β-ray, and antineutrinos.

→ The rate of disintegration is independent of temperature, pressure, electric and magnetic field.

→ The energy released in the fusion of 42He atom is much less than that in the fission of one atom of 23592U but the energy released per nucleon in nuclear fusion is much greater than the energy released per nucleon in nuclear fission.

→ For the separation of one fermi, the nuclear force is nearly 35 times the electrical repulsion between two protons.

→ The hydrogen bomb is based upon nuclear fusion.

→ Radioactivity was discovered by Henry Becquerel.

→ All elements with atomic no. > 82 are naturally radioactive.

→ Uranium-lead dating is used to know the age of the earth.

→ Carbon dating is used to estimate the time that has elapsed after the death of a once-living organism.

→ The activity of radioactive material has been shown to be the result of three different kinds of emanations called α, β, and γ-radiations or rays.

→ Radioactivity is one kind of manifestation of instability.

→ Nuclear forces are the strongest attractive force between nucleons.

→ B.E./nucleon is maximum for 5626F and is 8.8 MeV.

→ Radioactivity: It is the spontaneous disintegration of the atoms of heavy elements with the emission of α, β, particles, and γ-rays.

→ Half-Life period: It is defined as the time after which the number of atoms of the radioactive sample left is one-half of that at the start.

→ Mean life: It is the ratio of the sum of life limes of all atoms to the total number of atoms
Or
It is the time after which the no. of nuclei fall to \(\frac{1}{e}\) (= 37 %) times the initial value.

→ The activity of radioactive material: It is defined as the rate of disintegration per second.
i.e., A or R = – \(\frac{\mathrm{dN}}{\mathrm{dt}}\) = λ.N.

→ 1 Curie in the older SI unit and = 3.7 × 1010 disintegrations per second (dps)

→ 1 becquerel = 1 DPS.

→ Isotopes: They are the atoms of an element whose nuclei have the same Z but different A.

→ Isobars: They are atoms of different elements having the same A but different Z.

→ Isotones: The atoms of different elements having the same number of neutrons are called isotones.

→ Isomers: They are identical atoms whose nucleons are in different energy states.

→ B.E./nucleon: It is the amount of energy required to extract one nucleon from the nucleus.

→ Radioisotope: It is an element that is made radioactive artificially.

→ 1 a.m.u.: It is defined as \(\frac{1}{12}\)th of the mass of one 126C atom.
∴ 1 a.m. u. = 1.66 × 10-27kg.

→ Moderators: They are the materials used for slowing down the last neutrons.

→ Thermal neutrons: They are the neutrons having energy 0.025 eV.

→ Stellar Energy: It is defined as the energy obtained continuously from the sun and the star.

→ Nuclear Holocaust is the name given to the large-scale destruction and devastation that would be caused by the use of nuclear weapons.

→ Radioisotopes of an element: They are the isotopes of an element capable of emitting radiation just as radioactive elements do.

→ Criticize: The 23592U block is said to be of critical size if the rate of loss of neutrons is equal to the rate of production of neutrons per second.

→ Critical Mass: It is defined as the mass of 23592U blocks of critical size.

Important Formulae

→ A = Z + n where A = mass number, Z = atomic number, n = number of neutrons.

→ Mass defect is given by
Δm = [Zmp + (A – Z) mn – mN (AZχ)]

→ m(AZχ) = mn(AZχ) + ZmN.
where (AZχ) is the mass of the atom, mN (AZχ) is the mass of the nucleus

→ T1/2 = \(\frac{0.693}{\lambda}\)

→ Ta = \(\frac{1}{λ}\) = \(\frac{\mathrm{T}_{1 / 2}}{0.693}\) = 1.44 T1/2
where λ is the decay constant, Ta = average life of the radioactive substance.

→ E = \(\frac{A-4}{A}\)Q, where E is the K.E. of the α-particle.

→ B.E./nucleon = B.E./A

→ Packing fraction = \(\frac{\Delta \mathrm{m}}{\mathrm{A}}\)

→ B.E. = Δm × 931 MeV.

→ \(\frac{\mathrm{N}}{\mathrm{N}_{0}}=\left(\frac{1}{2}\right)^{n}=\left(\frac{1}{2}\right)^{\mathrm{T}_{\frac{1}{2}}}\)

→ Average atomic mass of an atom having isotopes with abundances x1 in and atomic mass y1 is given by
A = \(\frac{\sum_{i=1}^{n} x_{i} \cdot y_{1}}{\sum_{i} x_{i}}=\frac{\sum_{i=1}^{n} x_{i} \cdot y_{i}}{100}\)

→ Nuclear Radius, R = Ro A1/3 , where R0 = 1.1 × 10-15 m.

→ Nuclear density = \(\frac{\text { mass of nucleus }}{\text { Volume of nucleus }}\)
i.e., ρ = \(\frac{\mathrm{m}}{\frac{4}{3} \pi \mathrm{R}^{3}}=\frac{\mathrm{m}}{\frac{4}{3} \pi \mathrm{R}_{0}^{3} \mathrm{~A}}\)

→ Q-value of a nuclear reaction is given by
Q = (Σ mass of reactants – Σ mass of products) a.m.u.
= (Σ mass of reactants – Σ mass of products) × 931 MeV

→ P.E. of two charged particles is given by
U = \(\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \cdot \frac{q_{1} q_{2}}{r}\)

→ Height of Potential barrier = K. E. = U = \(\frac{1}{4 \pi \varepsilon_{0}} \cdot \frac{q_{1} q_{2}}{r}\)

→ Density of nucleus is, ρ = \(\frac{\text { mass of nucleus }}{\text { Volume of nucleus }}\)

→ Nuclear charge = 2e.

→ α-decay is represented as:
ZAX → Z-2A-4Y+ 42He + Q

→ β-decay is represented as
AZX → Z+1AY + 42He + v + Q

→ 1 MeV = 1.6 ×10-13 .

→ 1 rd = 106 dps where rd (= rutherford) is the unit of activity

→ The ratio of two nuclear radii of two nuclei having mass numlwrs A1 and A2 is given by
\(\frac{\mathrm{R}_{1}}{\mathrm{R}_{2}}=\left(\frac{\mathrm{A}_{1}}{\mathrm{~A}_{2}}\right)^{\frac{1}{3}}\)

→ Activity = A = R = \(\frac{\mathrm{d} \mathrm{N}}{\mathrm{dt}}\) = – λN
or
[A] = λN = \(\frac{0.693}{\mathrm{~T}_{\frac{1}{2}}}\) N
i.e. more is the half life of the radioactive substance, lesser is its activity and vice-versa.

→ Number of fissions taking place in 1 second is given by
n = \(\frac{\text { Power }}{\text { energy per fission }}=\frac{P}{Q}\)

→ m = m0 e-λt

→ P = P0 e-λt

→ Mass number, no. of atoms and atomic weights of two isotopes are related as:
M1 = N1A1 and M2 = N2A2
∴ \(\frac{\mathrm{M}_{1}}{\mathrm{M}_{2}}=\left(\frac{\mathrm{N}_{1}}{\mathrm{~N}_{2}}\right) \cdot\left(\frac{\mathrm{A}_{1}}{\mathrm{~A}_{2}}\right)\)

Class 12 Hindi Aroh Chapter 5 Summary सहर्ष स्वीकारा है 

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सहर्ष स्वीकारा है Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 5

सहर्ष स्वीकारा है  कविता का सारांश

गजानन माधव मुक्तिबोध नई कविता के प्रमुख कवि हैं। वे लंबी कविताओं के कवि हैं। ‘सहर्ष स्वीकारा है’ मुक्तिबोध की छोटी कविता है जो छायावादी चेतना से प्रेरित है। इस कविता में कवि ने जीवन में मनुष्य को सुख-दुख, राग-विराग, हर्ष-विषाद, आशा-निराशा, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक आदि भावों को सहर्ष अंगीकार करने की प्रेरणा प्रदान की है। इसके साथ यह कविता उस विशिष्ट व्यक्ति या सत्ता की ओर संकेत करती हैं जिससे कवि को प्रेरणा प्राप्त हुई है।

कवि उस विशिष्ट सत्ता को संबोधन करके कहता है कि मेरे जीवन में जो कुछ भी सुख-दुख, राग-विराग, संघर्ष-अवसाद, हर्ष-विषाद आदि मिला है उसको मैंने सहर्ष भाव से अंगीकार किया है। इसलिए वह जीवन में सब कुछ उसी सत्ता का दिया हुआ मानता है। गर्वयुक्त गरीबी, गंभीर अनुभव, भव्य विचार, दृढ़ता हृदय रूपी सरिता सब कुछ उनके जीवन में मौलिक हैं, बनावटी कुछ भी नहीं। इसलिए उन्हें गोचर जगत अदृश्य शक्ति का भाव लगता है।

वे सोचते हैं कि न जाने उस असीम सत्ता से उनका क्या रिश्ता-नाता है कि बार-बार वे उनके प्रति प्रेम रूपी झरने को ख़त्म करना चाहते हैं लेकिन वह बार-बार अपने-आप भर जाता है, जिसे चाहकर भी वे समाप्त नहीं कर सकते। उन्हें रात्रि में धरती पर मुसकुराते चाँद की भाँति अपने ऊपर असीम सत्ता का चेहरा मुसकुराता हुआ दिखता है। कवि बार-बार उस प्रभु से अपनी भूल के लिए दंड चाहते हैं। वे दक्षिण ध्रुव पर स्थित अमावस्या में पूर्ण रूप से डूब जाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें अब प्रभु द्वारा ढका और घिरा हुआ रमणीय प्रकाश सहन नहीं होता। अब उन्हें ममता रूपी बादलों की कोमलता भी हृदय में पीड़ा पहुँचाती है।

उनकी आत्मा कमजोर और शक्तिहीन हो गई है। इसलिए होनी को देखकर उनका हृदय छटपटाने लगता है। अब तो स्थिति यह है कि उन्हें दुखों को बहलाने व सहलानेवाली आत्मीयता भी सहन नहीं होती। कवि वास्तव में उस असीम, विशिष्ट जन से दंड चाहता है। ऐसा दंड जिससे कि वह पाताल लोक की गहन गुफाओं, बिलों और धुएँ के बादलों में बिलकुल खो जाए। लेकिन वहाँ भी उन्हें प्रभु का ही सहारा दिखता है। इसलिए वह अपना सब कुछ उसी सत्ता को स्वीकार करते हैं और जो कुछ उस सत्ता ने सुख-दुख, राग-विराग, संघर्ष-अवसाद, आशा-निराशा आदि प्रदान किए हैं उन्हें खुशी-खुशी स्वीकार करता है।

इस कविता के माध्यम से कवि मनुष्यों को भी यही प्रेरणा देते हैं कि जीवन में मनुष्य को प्रभु प्रदत्त राग-विराग, सुख-दुख, आशा-निराशा आदि भाव सहर्ष भाव से या निर्विवाद रूप से स्वीकार कर लेने चाहिए।

सहर्ष स्वीकारा है  कवि परिचय
जीवन परिचय-श्री गजानन माधव मुक्तिबोध आधुनिक हिंदी साहित्य की नई कविता के बेजोड़ 0 कवि थे। ये एक संघर्षशील साहित्यकार थे जो आजीवन समाज, इतिहास और स्वयं से संघर्ष करते रहे। इनका जन्म 13 नवंबर, सन् 1917 ई० को मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के श्योपुर नामक स्थान पर हुआ था। इनके पूर्वज पहले महाराष्ट्र में रहते थे जो बाद में मध्य प्रदेश में आकर रहने लगे। इनके पिता का नाम माधव मुक्तिबोध था। वे पुलिस में सिपाही थे।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 5 Summary सहर्ष स्वीकारा है 

इनकी माँ बुंदेलखंड के एक किसान की बेटी थी। मुक्तिबोध जी एक विचारक एवं घुमक्कड़ प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। ये अपने भाइयों में सबसे बड़े थे। ये शांता नामक लड़की से प्रेम करते थे। बाद में इन्होंने परिवार की मरजी के खिलाफ़ शांता जी से शादी कर ली थी। इस घटना से इनका परिवार के सदस्यों से मतभेद हो गया। मुक्तिबोध की प्रारंभिक शिक्षा उज्जैन में हुई। ये मिडिल की परीक्षा में एक बार अनुत्तीर्ण हुए लेकिन निरंतर परिश्रम करते हुए सन् 1953 ई० में नागपुर विश्वविद्यालय से एम० ए० की परीक्षा पास की। बाद में जीविकोपार्जन के लिए मध्य प्रदेश के एक मिडिल स्कूल में अध्यापक नियुक्त हुए किंतु चार मास के बाद ही यह नौकरी छोड़ दी।

तत्पश्चात शुजालपुर में शारदा शिक्षण सदन में रहे। फिर दौलतगंज मिडिल स्कूल उज्जैन में आ गए। इस प्रकार ० कवि ने आजीविका हेतु कोलकाता, इंदौर, मुंबई, बंगलौर (बेंगलुरु), बनारस, जबलपुर, राजनाँद गाँव आदि स्थानों पर कार्य किया। इन्होंने अनेक पत्र-पत्रिकाओं का संपादन भी किया। सन 1945 ई० में ‘हँस’ पत्र के संपादक मंडल के सदस्य के रूप में कार्य किया। 0 सन् 1956 से 1958 तक ‘नया खून’ नामक पत्र के संपादन कार्य से जुड़े रहे। इस प्रकार मुक्तिबोध जी को जीवन में दर-दर की ठोकरें खानी पड़ी। अंत में ये बीमार रहने लगे। ‘मैनिन जाइटिस’ नामक रोग ने इनके शरीर को जकड़ लिया।

उन्हें उपचार के लिए भोपाल और दिल्ली लाया गया किंतु वे स्वस्थ नहीं हुए। अंततः 11 सितंबर सन् 1964 ई० को नई दिल्ली में इनका देहांत हो गया। रचनाएँ-मुक्तिबोध जी एक संघर्षशील साहित्यकार थे। ये बहुमुखी प्रतिभा से ओत-प्रोत रचनाकार थे। जो संघर्ष इनके जीवन में रहा
वही इनके साहित्य में भी दृष्टिगोचर होता है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

(i) काव्य-संग्रह-चाँद का मुँह टेढ़ा है (सन 1964), भूरी-भूरी खाक धूल (सन 1964)।
(ii) कहानी-संग्रह-काठ का सपना, सतह से उठता आदमी।
(iii) उपन्यास-विपात्र।
(iv) समीक्षात्मक ग्रंथ-कामायनी-एक पुनर्विचार, नई कविता का आत्म-संघर्ष, नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र, एक साहित्यिक डायरी, ० समीक्षा की समस्याएँ, भारत : इतिहास और संस्कृति।

साहित्यिक विशेषताएँ-‘मुक्तिबोध’ के साहित्य में सामाजिक चेतना, लोक-मंगल की भावना तथा जीवन के प्रति व्यापक दृष्टिकोण विद्यमान ० हैं। इनके काव्य में प्रगतिवादी तथा प्रयोगवादी संवेदनाओं का चित्रण मिलता है। इनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) शोषक वर्ग के प्रति घृणा-मुक्तिबोध जी मार्क्सवादी चिंतन से प्रेरित कवि हैं। इन्होंने समाज के पूँजीपति वर्ग के प्रति घृणा-भाव व्यक्त किए हैं। इनकी अनेक कविताओं में उस व्यवस्था के प्रति गहन आक्रोश अभिव्यक्त किया गया है जो मजदूरों, निर्धनों का शोषण करके ऐशो-आराम का जीवन जी रहे हैं। पूँजीवादी समाज के प्रति’ इनकी ऐसी ही कविता है जिसमें प्रगतिवादी भावना दृष्टिगोचर होती है। ये पूँजीवादियों की मनोवृत्ति पर कटाक्ष करते हुए कहते हैं

तू है मरण, तू है रिक्त, तू है व्यर्थ
तेरा ध्वंस केवल एक तेरा अर्थ।

कवि शहरी सभ्यता को भी सुविधा भोगी वर्ग की देन मानते हैं। यहाँ एक ओर शोषक समाज की चमक-दमक झूठी शान की जिंदगी है तो दूसरी ओर दीन-हीन मजदूर वर्ग की विवशतापूर्ण जिंदगी। इस दोहरी नागरिकता से परिपूर्ण जीवन पर कवि ने गहन आक्रोश व्यक्त किया है। जैसे

पाउडर में सफ़ेद अथवा गुलाबी
छिपे बड़े-बड़े चेचक के दाग मुझे दीखते हैं
सभ्यता के चेहरे पर।

(ii) शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति-मुक्तिबोध ने शोषक वर्ग के प्रति गहन आक्रोश तथा शोषित वर्ग के प्रति विशेष सहानुभूति प्रकट की है। कवि समाज के दीन-हीन निर्धन लोगों को आर्थिक शोषण से मुक्त करना चाहता है। इन्होंने अपनी अनेक कविताओं में शोषण के शिकार नारी, शिशु और मजदूरों का सजीव और मार्मिक अंकन किया है। ये शोषित समाज के प्रति संवेदना व्यक्त करते हुए कहते हैं

गिरस्तिन मौन माँ बहनें
उदासी से रंगे गंभीर मुरझाए हुए प्यारे
गऊ चेहरे
निरखकर
पिघल उठता मन।

(iii) समाज का यथार्थ चित्रण-मुक्तिबोध जी भ्रमणशील व्यक्ति थे। अतः इन्होंने समाज को बहुत नजदीकी से देखा। इसलिए इनके काव्य में समाज का यथार्थ बोध होता है। इनके काव्य में भोगे हुए यथार्थ की अभिव्यंजना हुई है। कवि ने समकालीन समाज में | फैली विसंगतियों, कुरीतियों, शोषण, अमानवीय मूल्यों का यथार्थ चित्रण किया है।

ये ‘चाँद का मुंह टेढ़ा’ में समकालीन समाज के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं
आज के अभाव के और कल के उपवास के
व परसों की मृत्यु के
दैन्य के महा अपमान के व क्षोभपूर्ण
भयंकर चिंता के उस पागल यथार्थ का
दीखता पहाड़ स्याह।

(iv) निराशा, वेदना एवं कुंठा का चित्रण-मुक्तिबोध की प्रारंभिक रचनाओं में उनका व्यक्तिगत चित्रण हुआ है। इसी प्रवृत्ति के कारण इनकी अनेक कविताओं में निराशा, वेदना, कुंठा आदि का चित्रण हुआ है। मुक्तिबोध आजीवन संघर्षरत रहे। इन्हें पग-पग पर ठोकरें खानी पड़ी। इसी संघर्ष और वेदना के उनके काव्य में दर्शन होते हैं। कवि ने अपनी वेदना को संत-चित वेदना इसलिए कहा है क्योंकि ये समाज की विसंगतियों, शोषण वेदना को अपने भीतर घटित होते देखते हैं। इन्होंने आजीवन जिस वेदना, कुंठा, दुख, पीड़ा को झेला उसी का सजीव चित्रांकन अपनी कविताओं में किया है

दुख तुम्हें भी है,
दुख मुझे भी है
हम एक ढहे हुए मकान के नीचे
दबे हैं।
चीख निकालना भी मुश्किल है
असंभव
हिलना भी।

‘अँधेरे में मुक्तिबोध का आस्थावादी दृष्टिकोण अभिव्यक्त हुआ है। इन्होंने निराशा-वेदना के अंधकारमय वातावरण में भी आशा का दीपक जलाए रखा है।

(v) वैयक्तिकता-छायावादी कवियों की भाँति मुक्तिबोध की अनेक कविताओं में व्यक्तिवादिता का भाव अभिव्यक्त हुआ है। इनकी वैयक्तिकता व्यक्तिगत होते हुए भी समाजोन्मुख है। ‘तारसप्तक’ में संकलित इनकी अधिकांश कविताएँ इसी छायावादी भावना से ओत-प्रोत हैं। इनकी अनेक कविताएँ छायावादी भावना और प्रगतिशीलता का अनूठा समन्वय लिए हुए हैं।
कहीं-कहीं अकेलेपन की प्रवृत्ति झलकती है लेकिन वह भी समाज से उन्मुख होती दिखाई पड़ती है। कवि ‘चाँद का मुँह टेढ़ा’ में कहते हैं याद रखो कभी अकेले में मुक्ति नहीं मिलती
यदि वह है तो सब के साथ ही।

(vi) वर्गहीन समाज का चित्रण-मुक्तिबोध मार्क्सवादी चेतना से प्रेरित कवि हैं। ये समाज से शोषक वर्ग को समाप्त कर वर्गहीन समाज की स्थापना करना चाहते हैं। यही भावना इनकी अनेक कविताओं में प्रकट होती है। जहाँ ये पूँजीपति समाज का साम्राज्य समाप्त करना चाहते हैं। इनकी कविताएँ जन-विरोधी समाज व्यवस्था के विरुद्ध संघर्षशील हैं। कवि ने अपने काव्य में शोषण, वर्ग-भेद को मिटाकर एक स्वस्थ एवं वर्गहीन समाज की कल्पना की है। ये वर्तमान समाज के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए कहते हैं कविता में कहने की आदत नहीं, पर कह दूँ वर्तमान समाज चल नहीं सकता।

(vii) भाषा-शैली-मुक्तिबोध की काव्य-कला की महत्त्वपूर्ण विशेषता है कि इन्होंने मानव-जीवन की जटिल संवेदनाओं और अंतवंवों की सृजनात्मक अभिव्यक्ति के लिए फैटेसियों का कलात्मक उपयोग किया है। मुक्तिबोध सामान्य जन-जीवन में प्रचलित शब्दावली से युक्त भाषा का प्रयोग किया है। भाषा की मौलिकता इनकी काव्य-कला की प्रमुख विशेषता है। इनकी भाषा में संस्कृत की तत्सम शब्दावली का प्रयोग है तो अंग्रेजी, उर्दू, अरबी, फ़ारसी आदि भाषाओं के शब्दों का प्रयोग भी हुआ है। इनकी भाषा पाठक को वास्तविक मर्म सौंपने का कार्य करती है। इनकी शैली भावपूर्ण है। इसके साथ-साथ आत्मीय व्यंजनात्मक, चित्रात्मक, व्यंग्यात्मक, प्रतीकात्मक आदि शैलियों के भी दर्शन होते हैं।

(viii) बिंब-विधान-मुक्तिबोध का बिंब-विधान अत्यंत श्रेष्ठ है। इस दृष्टि से इनका काव्य अत्यंत समृद्ध है। इनकी संपूर्ण कविताएँ बिंबमयी हैं। इन्होंने सामाजिक यथार्थ, विसंगति, त्रासदी, वेदना आदि के सजीव चित्र उपस्थित किए हैं। इन्होंने अपने काव्य में दृश्य, ध्वनि, स्पर्श, स्थिर, गत्यात्मक, प्राकृतिक, वैज्ञानिक आदि अनेक बिंबों का सजीव चित्रण किया है।

जैसे
सामने मेरे
सरदी में बोरे को ओढ़ कर
कोई एक अपने
हाथ-पैर समेटे
काँप रहा, हिल रहा-वह मर जाएगा।

(ix) प्रतीक विधान-मुक्तिबोध ने अपने काव्य में प्रतीकों का प्रचुर प्रयोग किया है। इन्होंने अपने काव्य में परंपरावादी प्रतीकों की अपेक्षा नए, जीवंत और सामान्य जन-जीवन के प्रतीकों का प्रयोग किया है। ब्रह्मराक्षस, ओरांग, उटांग, बावड़ी कवि के प्रिय प्रतीक हैं। इसलिए इनका उन्होंने बार-बार प्रयोग किया है। मुक्तिबोध की लंबी कविता ‘अँधेरे में’ समकालीन मनुष्य के संघर्ष का प्रतीक है जिसमें प्रयुक्त चरित्र ‘गांधी और तिलक’ दो। विचारधाराओं के प्रतीक हैं। इसके साथ-साथ इन्होंने पौराणिक प्रतीकों का भी प्रयोग किया है।

(x) छंद-मुक्तिबोध ने अपनी काव्य-रचना के लिए मुख्यतः मुक्तक छंद का प्रयोग किया है। इनके काव्य में लय और ताल का अनूठा संगम दिखाई देता है। इसके साथ तुकांत, अतुकांत छंदों के भी दर्शन होते हैं। अष्टक इनका प्रिय छंद है। इन्होंने लंबी कविताओं में इस छंद का प्रयोग किया है।

(xi) अलंकार-योजना-मुक्तिबोध की अलंकार योजना अत्यंत सुंदर है। इन्होंने परंपरागत उपमानों की अपेक्षा नवीन उपमानों का प्रचुर प्रयोग किया है। इनके काव्य में अनुप्रास, पदमैत्री, स्वरमैत्री, उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, संदेह, उल्लेख, मानवीकरण’ रूपकातिशयोक्ति आदि अलंकारों का सुंदर एवं सजीव प्रयोग हुआ है। रूपक अलंकार का उदाहरण दृष्टव्य है

रवि निकलता
लाल चिंता की रुधिर-सरिता
प्रवाहित कर दीवारों पर
उदित होता चंद्र
ब्रज पर बाँध देता
श्वेत धौली पट्टियाँ।

वस्तुतः गजानन माधव मुक्तिबोध आधुनिक हिंदी काव्य की नई कविता के प्रमुख कवि माने जाते हैं। इनका हिंदी साहित्य में प्रमुख स्थान है।

Atoms Class 12 Notes Physics Chapter 12

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Atoms Notes Class 12 Physics Chapter 12

→ From α-particle scattering, it can be concluded that:

  1. the atom is mostly neutral.
  2. the whole of the positive charge is concentrated in a small volume at the center of the atom called the nucleus.

→ In case a proton is moving towards a stationary proton, at the point of the closest approach, the initial kinetic energy of the moving proton is equal to the K.E. of both protons plus the electrostatic potential energy.

→ Wavelength/frequencies/wavenumbers of radiations emitted by the excited H-atom are not continuous.

→ Bohr’s theory is applicable to all one-electron (hydrogenic) atoms
such as He+, Li++, ………..
According to it:

  1. rn = a0 \(\frac{n^{2}}{Z}\) Å
    Where a0 = 0.53 Å = radius of first Bohr’s orbit of the hydrogen atom,
  2. The total energy is negative, so the system is a bound one.

→ B.E. = ground state energy.

→ Ionisation energy = – B. E.

→ If a hydrogen atom in the ground state absorbs a photon of energy hv and is excited to nth state, then
– 13.6 + hv = – \(\frac{13.6}{n^{2}}\)

→ Distance of closest approach (= r0) gives an idea about the size of the nucleus.

→ Spectral lines of the Lyman series are found to lie in the UV region.

→ The longest wavelength of this series (= 1216 Å) is due to 2 → 1
transition.

→ The shortest wavelength of this series (= 912 Å) is due to ∞ → 1 transition.

→ Spectral lines of the Balmer series are found to lie in the visible region

→ Bohr’s model is not applicable to even two-electron atoms such as He.

→ The shortest wavelength of this series (3648 Å) is due to ∞ → 1 transition.

→ 1st, 2nd, 3rd members of this series are called Hα, Hβ, Hγ lines.

→ Spectral lines of the Paschen series lie in the infrared region.

→ The longest wavelength of this series (18761 Å) is obtained due to 4 → 3 transitions.

→ The shortest wavelength of this series (8208 Å) is obtained due to ∞ → 1 transition.

→ Stationary orbits do not mean that the electron is stationary but it means that the energy of the electron remains constant as long as it keeps on moving in the same orbit.

→ When external energy is supplied to the atom, an electron in any orbit absorbs this energy and goes to the higher energy orbit. After 10-8 s, the electron jumps back to the original orbit by emitting the absorbed energy in the form of a photon.

→ The speed of an electron in an orbit is inversely proportional to the
principal quantum number.

→ Ionisation energy of H-atom = E – E1 = = 0 – (- 13.6) = 13.6 eV.

→ The ionization potential of H-atom = 13.6 V.

→ Bohr laid the foundation of the quantum theory by postulating specific orbits in which electrons don’t radiate.

→ Bohr’s model includes only one quantum number n.

→ Bohr modified the Rutherford model of the atom by introducing quantum ideas known as Bohr’s postulates.

→ Rutherford’s atomic model could not explain the stability of the atom.

→ Rutherford concluded that electrons are not stationary but they are moving around the nucleus in circular orbits.

→ Emission or absorption of energy takes place only when an electron jumps from one stationary orbit to the other stationary orbit.

→ The energy of the electron is greater in the outer orbits than in the inner orbit.

→ The energy of the electron for orbit with n = ∞ is maximum and is equal to zero.

→ Spectra is of two types:

  1. Emission spectrum
  2. Absorption spectrum.

→ Emission spectrum results when there is the transition from a high energy state to a lower energy state.

→ Absorption spectrum results when energy is absorbed by the atom and goes from a lower energy state to a higher energy state.

→ Fraunhofer’s lines in the sun’s spectra are the absorption lines.

→ There appears a dark line corresponding to photons absorbed in the spectrum.

→ The election may be seen to be at a distance from the nucleus of about 104 to 105 times the size of the nucleus itself. Thus the distance of the closest approach helps us to estimate the size of the nucleus (R).
i. e. r0 = 104 to 105 R.
∴ R = 10-4 to 10-5 r0.

→ Size of atom = 104 to 105 times the size of the nucleus (R).

→ r0 is of the order of size of the atom.

→ The nucleus of gold is about 50 times heavier than an α-particle, thus it (Au nucleus) remains at rest during α-particle scattering.

→ Bohr’s radius: It is the radius of the innermost orbit in the hydrogen atom. It is denoted by r1 or a0.

→ Permitter orbits: They are defined as the orbits for which the angular momentum is an integral multiple of \(\frac{\mathrm{h}}{2 \pi}\) i.e.,
L = mvr = n \(\frac{\mathrm{h}}{2 \pi}\)

→ Impact Parameter: It is the perpendicular distance of the velocity vector of the a-particle from the central line of the nucleus when the particle is far away from the nucleus of the atom.

→ Distance of closest approach: It is the minimum distance up to which an energetic a-particle traveling towards the nucleus can move before coming to rest and then retracing its path.

→ Ground state: It is defined as the energy state of electron corresponding to n = 1.

→ Excited states: They are the energy states of electrons corresponding to n = 2,3, 4. When an electron in the innermost orbit jumps to higher orbits after absorbing the energy.

→ Spectral line: When an electron jumps from a higher energy state to the lower energy state in the hydrogen atom, the radiation of a particular wavelength or frequency is emitted which is called a spectral line.

→ Energy level diagram: The energy of an electron corresponding to each orbit (energy state) can be represented by the horizontal lines.

→ Excitation potential: It is defined as the potential difference through which an electron in an atom must be accelerated so that it may go from the ground state to the excited state. It corresponds to the excitation energy.

→ Excitation: It is the process of absorption of energy by an electron when it goes from a lower energy state to a higher energy state.

→ Ionization: It is the process of detaching or knocking out an electron from the atom.

→ Ionization energy: The energy required to knock out an electron from an atom i.e., from the ground state (n = 1) to energy state n = ∞.

→ Ionization potential: It is defined as the potential difference through which an electron of an atom is accelerated so that it is knocked out of the atom.

Important Formulae

→ Speed of an electron revolving in nth orbit is given by
νn = \(\frac{2 \pi \mathrm{k} \mathrm{Ze}^{2}}{\mathrm{nh}}\)

→ Angular momentum of the electron is given by
m vn rn = \(\frac{\mathrm{nh}}{2 \pi}\)
where vn = Velocity of electron in nth orbit.
rn = radius of orbit of electron in nth orbit,
n = 1, 2, 3, …………..

hv = Ef – Ei
= \(\frac{2 \pi^{2} \mathrm{k}^{2} \mathrm{Z}^{2} \mathrm{me}^{4}}{\mathrm{~h}^{2}}\left(\frac{1}{\mathrm{n}_{\mathrm{i}}^{2}}-\frac{1}{\mathrm{n}_{\mathrm{f}}^{2}}\right)\)

→ Rydberg constant is given by
R = \(\frac{2 \pi^{2} m k^{2} e^{4}}{c h^{3}}\)

→ Velocity in terms of fine structure constant is given by
Atoms Class 12 Notes Physics 1
→ Impact parameter is given by
b = \(\frac{\mathrm{Ze}^{2} \cot \frac{\theta}{2}}{4 \pi \varepsilon_{0} . \mathrm{E}}\)
where θ = angle of scattering.
E = \(\frac{1}{2}\) mv2 = K.E. of α-particle.

→ Ionisation potential is given by
V = \(\frac{13.6 \mathrm{Z}^{2}}{\mathrm{n}^{2}}\)
Where Z = an atomic number of the atom.
n = number of orbit from which electron is to be removed.

→ Rydberg formula for spectrum of H-atom is
\(\bar{v}\) = R\(\left(\frac{1}{n_{1}^{2}}-\frac{1}{n_{2}^{2}}\right)\)
= wave number of radiation emitted.

→ Ionisation energy of Hydrogen atom is
E = E – E1 = 13.6 eV,

→ Total energy of electron in nth orbit of hydrogen atom is given by
E = – \(\frac{2 \pi^{2} m k^{2} e^{4}}{n^{2} h^{2}}\)
= – \(\frac{13.6}{\mathrm{n}^{2}}\) eV.

→ For H-like atoms
E = \(\frac{13.6}{\mathrm{n}^{2}}\) Z2(eV).

→ The energy of electron in various stationary orbits for H-atom is
E1 = -13.6 eV
E2 = – 3.4 eV
E3 = -1.51 eV
E4 = -0,85eV
E5 = -0.54 eV.
…………………..
…………………..

→ For the Lyman series,
\(\bar{v}\) = \(\frac{1}{λ}\) = R(\frac{1}{1^{2}}-\frac{1}{n^{2}})

→ For Balmer series,
\(\bar{v}\) = \(\frac{1}{λ}\) = R(\frac{1}{Z^{2}}-\frac{1}{n^{2}})
where n = 3, 4, 5, ….n.

→ For Paschen series,
\(\bar{v}\) = \(\frac{1}{λ}\) = R(\frac{1}{3^{2}}-\frac{1}{n^{2}})
where n = 4, 5, 6, …. n.

→ For Pfund series,
\(\bar{v}\) = \(\frac{1}{λ}\) = R(\frac{1}{4^{2}}-\frac{1}{n^{2}})
where n = 5, 6, ….n.

→ radius of nth orbit is given by
rn = \(\frac{n^{2} h^{2}}{4 \pi^{2} m k Z e^{2}}\)
= \(\frac{n^{2} h^{2}}{4 \pi^{2} m k e^{2}}\) for H-atom.

→ K.E. of electron revolving in nth orbit is
Ek = \(\frac{1}{2}\) . \(\frac{\mathrm{kZe}^{2}}{\mathrm{r}_{\mathrm{n}}}\)
for H-atom
Ek = \(\frac{1}{2}\) . \(\frac{\mathrm{ke}^{2}}{\mathrm{r}_{\mathrm{n}}}\)

P.E. of an electron in nth orbit is
Atoms Class 12 Notes Physics 2
→ Total energy in nth orbit is
E = KE. + P.E.
= Ek – 2Ek
= – Ek = \(\frac{\mathrm{ke}^{2}}{2 \mathrm{r}_{\mathrm{n}}}\)

→ Distance of closest approach is α-particle is given by
r0 = \(\frac{(\mathrm{Ze}) \cdot(2 \mathrm{e})}{4 \pi \varepsilon_{0} . \mathrm{E}}=\frac{2 \mathrm{Ze}^{2}}{4 \pi \varepsilon_{0}\left(\frac{1}{2} \mathrm{mv}^{2}\right)}\)

→ Ionisation potential = \(\frac{\text { ionisation energy }}{\mathrm{e}}\)

→ Excitation potential = \(\frac{\text { excitation energy }}{\mathrm{e}}\)

→ The number of a-particles per unit area that reach the screen at a scattering angle θ are found to vary as:
N(θ) ∝ \(\frac{1}{\sin ^{4}\left(\frac{\theta}{2}\right)}\)

Class 12 Hindi Aroh Chapter 4 Summary कैमरे में बंद अपाहिज

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कैमरे में बंद अपाहिज Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 4

कैमरे में बंद अपाहिज कविता का सारांश

कैमरे में बंद अपाहिज कविता रघुवीर सहाय के काव्य-संग्रह ‘लोग भूल गए हैं से संकलित की गई है। इस कविता में कवि ने शारीरिक चुनौती को झेलते व्यक्ति से टेलीविजन कैमरे के सामने किस तरह के सवाल पूछे जाएंगे और कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए उससे कैसी भंगिमा की अपेक्षा की जाएगी इसका लगभग सपाट तरीके से बयान करते हुए एक तरह से पीड़ा के साथ दृश्य संचारमाध्यम के संबध को रेखांकित किया है।

साथ ही कवि ने व्यंजना के माध्यम से ऐसे व्यक्ति की ओर इशारा किया है जो अपनी दुःख-दर्द, यातनावेदना को बेचना चाहता है। इस कविता में कवि ने शारीरिक चुनौती झेलते हुए लोगों के प्रति संवेदनशीलता व्यक्त की है। कवि ने इस कविता में बताया है कि अपने कार्यक्रम को सफल बनाने तथा किसी की पीड़ा को बहुत बड़े दर्शक वर्ग तक पहुँचाने के लिए दरदर्शनवाले किसी दल और शारीरिक रूप से कमजोर व्यक्ति को अपने कैमरे के सामने प्रस्तुत करते हैं। उससे अनेक तरह से सवाल पर सवाल पूछते हैं। उसे कैमरे के आगे बार-बार लाया जाता है। बार-बार उससे अपाहिज होने के बारे में सवाल पूछे जाते हैं

कि आपको अपाहिज होकर कैसा लगता है तथा उस कार्यक्रम को रोचक बनाने के लिए दूरसंचारवाले स्वयं प्रतिक्रिया व्यक्त करके बताते स हैं। अनेक ऐसे संवेदनशील सवालों को पूछ-पूछकर वे उस व्यक्ति को रुला देते हैं। दूरदर्शन के बड़े परदे पर उस व्यक्ति की आँसूभरी ” आँखों को दिखाया जाता है। इस प्रकार दूरदर्शनवाले बार-बार एक ऐसे अपाहिज व्यक्ति की पीड़ा को दर्शकों के समक्ष प्रस्तुत करते हैं।

कैमरे में बंद अपाहिज कवि परिचय

कवि-परिचय जीवन-परिचय-रघुवीर सहाय समकालीन हिंदी कविता के संवेदनशील कवि हैं। उनका जन्म सन् 1929 ई० में उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ था। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से 1951 में एम० ए० अंग्रेजी की परीक्षा उत्तीर्ण की। एम० ए० करने के पश्चात ये पत्रकारिता क्षेत्र में कार्य करने लगे। इन्होंने ‘प्रतीक’, ‘वाक् और ‘कल्पना’ अनेक पत्रिकाओं के संपादक मंडल के सदस्य के रूप में भी कार्य किया।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 4 Summary कैमरे में बंद अपाहिज

ततपश्चात कुछ समय तक आकाशवाणी में ऑल इंडिया रेडियो के हिंदी समाचार विभाग से भी सबद्ध रहे। ये 1971 से 1982 तक प्रसिद्ध पत्रिका दिनमान के संपादक रहे। इनको कवि के रूप में ‘दूसरा सप्तक’ से विशेष ख्याति प्राप्त हुई। इनकी साहित्य सेवा भावना के कारण ही इनको साहित्य अकादमी सम्मान से सम्मानित किया गया। अंत में दिल्ली में सन् 1990 ई० में ये अपना महान साहित्य संसार को सौंपकर चिरनिद्रा में लीन हो गए।

रचनाएँ-रघुवीर सहाय हिंदी साहित्य के सफल कवि हैं। इन्होंने समकालीन समाज पर अपनी लेखनी चलाई है। इन्होंने समकालीन अमानवीय दोषपूर्ण राजनीति पर व्यंग्योक्ति तथा नए ढंग की कविता का आविष्कार किया है। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

काव्य-संग्रह-सीढ़ियों पर धूप में, आत्महत्या के विरुद्ध, हँसो, हँसो जल्दी हँसो, लोग भूल गए हैं, आत्महत्या के विरुद्ध इनका प्रसिद्ध काव्य-संग्रह है। सीढ़ियों पर धूप में ‘कविता-कहानी-निबंध’ का अनूठा संकलन है। काव्यगत विशेषताएँ-रघुवीर सहाय समकालीन हिंदी जगत के प्रसिद्ध कवि हैं। उनका काव्य समकालीन जगत का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत करता है। उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) समाज का यथार्थ चित्रण-रघुवीर सहाय जी ने समकालीन समाज का यथार्थ चित्रण प्रस्तुत किया है। इनके काव्य में सामाजिक यथार्थ के प्रति विशिष्ट सजगता दृष्टिगोचर होती है। इन्होंने सामाजिक अव्यवस्था, शोषण, विडंबना आदि का यथार्थ चित्रण किया है।

(ii) अदम्य जिजीविषा का चित्रण-रघुवीर सहाय ने अपने काव्य में अदम्य जिजीविषा का वर्णन किया है। इन की अनेक कविताओं में इस विशेषता का अनूठा चित्रण हुआ है। ‘सीढ़ियों पर धूप में’ काव्य-संग्रह की प्रायः सब कविताओं में अदम्य जीने की इच्छा। की सफल अभिव्यक्ति हुई है।

“और जिंदगी के अंतिम दिनों में काम करते हुए बाप काँपती साइकिलों पर
भीड़ से रास्ता निकाल कर ले जाते हैं।
तब मेरी देखती हुई आँखें प्रार्थना करती हैं
और जब वापस आती हैं अपने शरीर में
तब दे दिया जा चुका होता है।”

(iii) मध्यवर्गीय जीवन का चित्रण-कवि ने समकालीन समाज के मध्यवर्गीय जीवन का यथार्थ चित्रांकन प्रस्तुत किया है। इन्होंने अपने काव्य में मध्यवर्गीय जीवन में परिव्याप्त तनावों और विडंबनाओं का वर्णन किया है। वह कवि और शेष दुनिया के बीच का अनुभूत तनाव है। जो कवि को निरंतर आंदोलित करता रहता है। इसके साथ-साथ कवि ने कुछ व्यक्ति और समूह के मध्य तनाव का चित्रांकन भी किया है।

(iv) भ्रष्टाचार का चित्रण-रघुवीर सहाय ने अपने काव्य में समकालीन समाज में फैले भ्रष्टाचार का यथार्थ चित्रण किया है। इन्होंने लोकतंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की प्रत्येक गतिविधि का मार्मिक वर्णन किया है। ‘आत्महत्या के विरुद्ध’ एक नाटकीय एकालाप है | जिसमें भ्रष्टाचार को ध्वन्यात्मक रूप से अंकित किया गया है। इस संग्रह में कवि ने ‘समय आ गया है’ वाक्यांश के माध्यम से

Dual Nature of Radiation and Matter Class 12 Notes Physics Chapter 11

By going through these CBSE Class 12 Physics Notes Chapter 11 Dual Nature of Radiation and Matter, students can recall all the concepts quickly.

Dual Nature of Radiation and Matter Notes Class 12 Physics Chapter 11

→ Radiation has dual nature i.e., it behaves both as a particle and a wave.

→ Energy greater than work function (Φ0 or ω) required for ejection of electrons from the metal surface can be supplied by heating or irradiating it by the light of frequency greater than threshold frequency or applying a strong electric field.

→ The stopping potential (V0) depends on the frequency of incident light, nature of the material on the surface of the cathode.

→ V0 is directly related to the maximum kinetic energy (\(\frac{1}{2}\) mV2max) of the emitted electrons i.e., eV0 = Emax = \(\frac{1}{2}\) m V2max).

→ V0 is independent of the intensity of incident light for a given frequency.

→ Below the threshold frequency (v0), no photoelectric emission takes place whatever may be its intensity.

→ Photoelectric emission is an instantaneous process.

→ The photoelectric current depends on the potential difference applied between the cathode and anode, the nature of the material of the cathode, and the intensity of incident light.

→ The photoelectric emission follows the law of conservation of energy.

→ Each photon absorbed ejects an electron from a metal surface. Einstein’s photoelectric equation is in accordance with the law of conservation of energy.

→ The dualism of matter is inherent in the de-Broglie relation which contains a wave concept (λ) and a particle concept (p).

→ The de-Broglie wavelength (λ) associated with a moving particle is related to its momentum (p) as
λ = \(\frac{h}{p}\)

→ The de-Broglie wavelength is independent of the charge and nature of the material particle.

→ The wave nature of electrons has been verified and confirmed using Davisson and Germer’s experiments.

→ Free electrons in a metal are free in the sense that they move inside the metal in a constant potential.

→ Plank’s constant is the bridge between the particle aspect and wave aspect of radiation and matter.

→ The wave-particle duality is not the sole monopoly of e.m. waves.

→ Even a material particle in motion according to de-Broglie will have a wavelength.

→ The photoelectric effect was discovered by Hertz in 1887.

→ The photoelectric effect was demonstrated by Hallwach in 1888.

→ Work function is least for Caesium (i.e Φ0 = 2.14 eV)

→ Absorption of energy takes place in discrete units of hv.

→ Platinum has the highest value of work function.

→ Zn, Cd, Mg, etc. respond only to UV light (having a short wavelength) to cause electron emission from the surface.

→ Alkali metals such as Li, Na, K, Caesium, and rubidium are sensitive even to visible light.

→ The number of photoelectrons emitted per second is directly proportional to the intensity of incident radiation.

→ Work function: It is defined as the minimum energy required by an electron to come out from a metal surface.

→ Photo electrons: The electrons ejected out of a metal surface under the action of light of a short wavelength are called photoelectrons.

→ Photoelectric effect: It is defined as the phenomenon of ejection of electrons from a metal surface when the light of very high frequency falls upon it.

→ Photon: It is a packet of energy.

→ Photoelectric cell: ft is a device that converts light energy into electrical energy.

→ Matter waves or de-Broglie waves: They are defined as the waves associated with every moving matter particle.

→ Cutoff potential or Retarding potential or stopping potential: It is defined as the minimum value of negative potential which has to be applied on the anode in a photocell so that the photoelectric current becomes zero. It is denoted by V0.

→ Saturation Current: It is the maximum value of the photoelectric current.

Important Formulae
→ For a relativistic particle moving with a speed v comparable to the speed of light c, de-Broglie wavelength is given by
λ = \(\frac{h}{m v}\)
where m = \(\frac{m_{0}}{\sqrt{1-\frac{v^{2}}{c^{2}}}}\), m0 being the rest mass of the particle.

→ deBroglie wavelength of a particle is
λ = \(\frac{\mathrm{h}}{\mathrm{p}}=\frac{\mathrm{h}}{\mathrm{m} v}=\frac{\mathrm{h}}{\sqrt{2 \mathrm{mE}}}=\frac{\mathrm{h}}{\sqrt{2 \mathrm{meV}}}\)
where p = momentum of particle of mass m, its velocity = v
E = K.E. of particle.
V = accelerating potential difference applied (V).

→ For an electron,
λ = \(\frac{12.27}{\sqrt{V}}\) A°
where \(\frac{\mathrm{h}}{\sqrt{2 \mathrm{me}}}\) = 12.27 × 10-10 for an electron

→ Vertical deflection of electron due to \(\overrightarrow{\mathrm{E}}\) between its plates is
y = \(\frac{1}{2}\) at2 = \(\frac{1}{2}\) . \(\frac{\mathrm{e} \mathrm{E}}{\mathrm{m}} \cdot \frac{\mathrm{x}^{2}}{v^{2}}\)

→ Total deflection of the charge on the screen is
y0 = \(\frac{\mathrm{eEx}}{\mathrm{m} v^{2}}\left(1+\frac{\mathrm{x}}{2}\right)=\left(1+\frac{\mathrm{x}}{2}\right)\) tan θ
where l = distance of screen from the end of plates.
x = length of plates
tan θ = \(\frac{v_{\mathrm{y}}}{v_{x}}=\frac{y_{0}}{\left(l+\frac{x}{2}\right)}\)

→ Einstein’s photoelectric equation is
hv = hv0 + \(\frac{1}{2}\) m v2max
or
\(\frac{hv}{λ}\) = W + eV0, where the symbols have their usual meanings.

→ At the threshold frequency v^ the emitted phtoelectrons will have no K.E.
∴ 0 = hv0 – ω
or
ω = hv0.

→ At stopping potential, \(\frac{1}{2}\) m v2 max = eV0.

→ Be v max = \(\frac{m v_{\max }^{2}}{r}\)

→ p = \(\frac{hv}{C}\) = momentum of a photon

→ Slope of V – ν curve = \(\frac{\mathrm{V}}{\mathrm{ν}}=\frac{\mathrm{h}}{\mathrm{e}}\)

→ Number of photons per sec per unit area = \(\frac{Φ}{E}\)
= \(\frac{\text { energy flux }}{\text { energy of photons per sec per unit area }}\)

= \(\frac{\text { Energy radiated/sec }}{\text { Energy of each photon }}=\frac{\mathrm{P}}{\mathrm{E}}\)

Wave Optics Class 12 Notes Physics Chapter 10

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Wave Optics Notes Class 12 Physics Chapter 10

→ Optics is that branch of physics that deals with the nature, sources, properties and effects of light.

→ Light is that form of energy that makes the object visible.

→ Wave optics treat the light as e.m. waves.

→ Light does not require any material medium for propagation.

→ Photographic plates are sensitive to the violet colour and least sensitive to the red colour.

→ Angular fringe width i.e., θ is independent of the distance between the screen and the plane of the slits i.e., D.

→ Speed of light is maximum for violet colour (7.5 × 1014 Hz) and minimum for red colour (4.3 × 1014 Hz).

→ Objects are visible from all directions due to the scattering of light.

→ The velocity of light of all wavelengths is the same in free space or vacuum.

→ Hie velocity of light of different colours will be different in media other than vacuum.

→ Our eye fails to see two points separately if they subtend an angle equal to or less than 1 minute and it is called resolving power of the eye.

→ Light of single frequency is called monochromatic.

→ The wavefront due to a point source is spherical and due to a line source, it is cylindrical.

→ The wavefront corresponding to a parallel beam of a light ray is plane.

→ The direction of propagation of light is perpendicular to the wavefront.

→ Each point on a wave point acts as a source of new disturbance and is called a secondary wavelet.

→ Polaroids allow the light oscillations parallel to the transmission axis to pass through them.

→ If the transmission axis of the analyser is perpendicular to that of the polariser, then no light passes through the analyser.

→ If the transmission axis of the polarizer and analyser are parallel, then the whole of the polarised light passes through the analyser.

→ The optical axis is the plane in a polariser or analyser parallel to which the oscillations of light are transmitted through the crystal without change in intensity.

→ Sound waves in the air cannot be polarised as they are longitudinal waves.

→ The tire angle between the direction of propagation and the plane of polarisation or plane of oscillation is 0°.

→ The angle between the direction of oscillation and the direction of propagation is 90°

→ The polarization of light is determined by the change in \(\overrightarrow{\mathrm{E}}\) field vector only.

→ The light is polarised in the plane of incidence by reflection.

→ In the interference, the energy is not destroyed but is redistributed.

→ The sustained interference is obtained by using coherent sources.

→ The order of the central maximum in the interference pattern is zero (i.e., n = 0).

→ When a transparent sheet or film of thickness t is introduced in the path of a ray of light from one slit, the interference pattern is shifted to the same side and an additional path difference of (μ – 1) t is introduced.

→ The interference occurs due to the superposition of wavelets from two wavefronts and the diffraction occurs due to the superposition of wavelets from two parts of the same wavefront.

→ The degree of diffraction is higher for longer wavelengths and thus greater is the deviation of the light waves from the rectilinear path.

→ Due to a lower degree of diffraction, the light waves appear to be travelling in straight lines.

→ The intensity of diffraction fringes decreases as the order of the maximum increases.

→ All interference fringes are of the same intensity

→ Coherent sources can be obtained by reflection, refraction or by the partial reflection of light.

→ Central fringe is always white surrounded by some coloured fringes when monochromatic light is replaced by white light

→ Wavefront: It is defined as the locus of all the particles of a medium vibrating in the same phase,

→ Unpolarised light: It is the light having electric field oscillations in all directions perpendicular to the direction of propagation,

→ Polaroids: They are defined as thin films of ultramicroscopic crystals of quinine idosulphate (called herpathite) with their optic axis parallel to each other.

→ Polarisers: They are defined as the crystals or polaroids on which unpolarised light is incident.

→ Analysers: They are defined as the crystals on which polarised light is incident.

→ Diffraction is the phenomenon of bending waves around the comers of the obstacles or apertures.

→ The resolving power of an optical instrument is its ability to show two closely placed point objects as just separate.

→ Limit of resolution: It is defined as the reciprocal of the resolving power.

→ Fringe Width: It is defined as the spacing between any two consecutive dark or bright fringes. It is denoted by β.

Important Formulae and Laws

→ Doppler’s shift for light is given by :
Δλ = ± \(\frac{λ}{c}\) u
where u is the speed of the source or the observer,
c is the speed of light,
λ is the original wavelength.

→ Malus law:
I = I0 cos2 θ.
where I0 is the intensity of the polarised light incident on the analyser.
θ = angle between the transmission axes of the polariser and analyser.

→ I = \(\frac{\mathrm{I}_{\mathrm{i}}}{2}\) cos2 θ
where Ii is the intensity of the unpolarised light incident on the polariser and
I = intensity of the light transmitted through the analyser.
and I0 = \(\frac{\mathrm{I}_{\mathrm{i}}}{2}\)

→ Polarisation by reflection is given by
μ = tan ip.
where ip is the Brewster’s angle

→ Phase difference and path difference (Δx) are related as:
ΔΦ = \(\frac{2 \pi}{\lambda}\) Δx

→ \(\frac{I_{\max }}{I_{\min }}=\frac{\left(a_{1}+a_{2}\right)^{2}}{\left(a_{1}-a_{2}\right)^{2}}\)

→ The fringe width is given by
β = \(\frac{\lambda \mathrm{D}}{\mathrm{d}}\)

→ The location of nth bright fringe on the screen is given by
yn = nβ = n\(\frac{\lambda \mathrm{D}}{\mathrm{d}}\)

→ The distance of nth dark fringe is given by
yn = (2n – 1)\(\frac{\lambda}{2 \mathrm{~d}}\)

→ The angular, separation for
1. nth bright fringe is given by
θn = \(\frac{\mathrm{n} \beta}{\mathrm{D}}=\frac{\mathrm{n} \lambda}{\mathrm{d}}\)

2. for nth dark fringe :
θn = (2n – 1)\(\frac{\lambda}{2 d}\)

→ Path difference for maximum of interference pattern is :
Δx = 2n\(\frac{λ}{2}\)

→ Path difference for minimum of interference pattern is :
Δx = \(\frac{(2 n+1) \lambda}{2}\)

→ Limit of resolution of telescope is given by
θ = \(\frac{1.22 \lambda}{\mathrm{d}}\)
where d = diameter of the aperture of the objective.

→ The number of fringes and wavelength of light used are related as
n1λ1 = n2λ2

→ Slit width and intensity are related as
\(\frac{\mathrm{W}_{1}}{\mathrm{~W}_{2}}=\frac{\mathrm{I}_{1}}{\mathrm{I}_{2}}\)

→ The amplitude of light wave and the slit width are related as :
\(\frac{\mathrm{I}_{1}}{\mathrm{I}_{2}}=\frac{\mathrm{A}_{1}^{2}}{\mathrm{~A}_{2}^{2}}=\frac{\mathrm{W}_{1}}{\mathrm{~W}_{2}}\)
or
\(\frac{W_{1}}{W_{2}}=\left(\frac{A_{1}}{A_{2}}\right)^{2}\)

→ Wavelength in a medium is given by
λ’ = \(\frac{λ}{μ}\)

→ Fringe width in the medium of R.I. p is given by
β’ = \(\frac{\lambda^{\prime} D}{d}=\frac{\lambda D}{\mu d}\)

→ Width of central diffraction maximum, β0 = \(\frac{2 \lambda \mathrm{D}}{\mathrm{d}}\)

→ HaLf angular width of central maximum,
θ1 = \(\frac{λ}{a}\)

→ Fresnel distance,
Zf = \(\frac{a^{2}}{\lambda}\)

→ R.P. of microscope = 2 \(\frac{\mu \sin \theta}{\lambda}\)

→ Angular limit of resolution of telescope, dθ = \(\frac{1.22 \lambda}{\mathrm{D}}\)

→ Angular position of nth secondary minimum,
θn = \(\frac{nλ}{a}\)

→ Distance of nth secondary maximum from centre of screen,
yn = \(\frac{\mathrm{n} \lambda \mathrm{D}}{\mathrm{a}}\)
where a = slit width.

 

Class 12 Hindi Aroh Chapter 3 Summary कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

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कविता के बहाने, बात सीधी थी पर Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 3

कविता के बहाने, बात सीधी थी पर कविता का सारांश

श्री कुँवर नारायण की इस कविता की रचनात्मकता और उसमें छिपी अपार ऊर्जा को प्रतिपादित करने में सक्षम है। कविता के लिए शब्दों : । का संबंध सारे जड़-चेतन से है। यह अतीत, वर्तमान और भविष्य से जुड़ी हुई है। इसकी व्यापकता अपार है। इसकी कोई सीमा नहीं है। । यह किसी प्रकार के बंधन में बँधती नहीं। इसके लिए न तो भाषा का कोई बंधन है और न ही समय का। ‘कविता के बहाने’ नामक कविता | आकार में छोटी है पर भाव में बहुत बड़ी है। आज का समय मशीनीकरण और यांत्रिकता का है जिसमें सर्वत्र भाग-दौड़ है। मनुष्य का मन :

इस बात से आशंकित रहता है कि क्या कविता रहेगी या मिट जाएगी। क्या कविता अस्तित्वहीन हो जाएगी ? कवि ने इसे एक यात्रा माना। – है जो चिड़िया, फूल से लेकर बच्चे तक है। चिड़िया की उड़ान सीमित है, पर कविता की उड़ान तो असीमित है। भला चिड़िया की उड़ान ।

कविता जैसी कैसे हो सकती है। कविता के पंख तो सब जगह उसे ले जा सकते हैं पर चिड़िया के पंखों में ऐसा बल कहाँ है! कविता :
का खिलना फल के खिलने का बहाना तो हो सकता है पर फल का खिलना कविता जैसा नहीं हो सकता। फ – कुछ ही देर बाद मुरझा जाता है लेकिन कविता तो भावों की महक लेकर बिना मुरझाए सदैव प्रभाव डालती रहती है। कविता तो बच्चों के – खेल के समान है जिसकी कोई सीमा ही नहीं है। जैसे बच्चों के सपनों की कोई सीमा नहीं, वे भविष्य की ओर उड़ान भरते हैं वैसे ही कविता भी शब्दों का ऐसा अनूठा खेल है जिस पर किसी का कोई बंधन नहीं है। कविता का क्षेत्र सीमा-रहित है। वह किसी भी सीमा से – पार निकली हुई राह में आने वाले सभी बंधनों को तोड़ कर आगे बढ़ जाती है।

बात सीधी थी पर कविता का सारांश

‘बात सीधी थी पर’ कविता में कुँवर नारायण ने यह स्पष्ट किया है कि जब भी कवि कोई रचना करने लगता है तो उसे अपनी बात को सहज भाव से कह देना चाहिए, न कि तर्क-जाल में उलझाकर अपनी बात को उलझा देना चाहिए। आडंबरपूर्ण शब्दावली से युक्त रचना कभी भी प्रभावशील तथा प्रशंसनीय नहीं होती। इसके लिए कवि ने पेंच का उदाहरण दिया है।

पेंच को यदि सहजता से पेचकस से कसा जाए वह कस जाती है। यदि उसके साथ जबरदस्ती की जाए तो उसकी चूड़ियाँ घिस कर मर जाती हैं और उसे ठोंककर वहीं दबाना पड़ता है। इसी प्रकार से अपनी अभिव्यक्ति में यदि कवि सहज भाषा का प्रयोग नहीं करता तो उसकी रचना प्रभावोत्पादक नहीं बन पाती। सही बात को सही शब्दों के माध्यम से कहने से ही रचना प्रभावशाली बनती है।

कविता के बहाने, बात सीधी थी पर कवि परिचय

कवि-परिचय जीवन-परिचय-कुँवर नारायण आधुनिक हिंदी साहित्य में नई कविता के प्रमुख कवि माने जाते हैं। इनका अज्ञेय के तारसप्तक’ में महत्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले में 19 सितंबर, 0 1927 को हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय स्कूल में हुई। इन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से उच्च o शिक्षा ग्रहण की। कुछ दिनों तक ‘युग चेतना’ नामक प्रसिद्ध साहित्यिक मासिक पत्रिका का संपादन किया।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 3 Summary कविता के बहाने, बात सीधी थी पर

ये एक भ्रमणशील व्यक्ति थे। इन्होंने चेकोस्लोवाकिया, पोलैंड, रूस, चीन आदि देशों का भ्रमण किया। रचनाएँ- श्री कुँवर नारायण अज्ञेय द्वारा संपादित तीसरे सप्तक के प्रमुख कवि हैं। ये बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार हैं। इन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाई है, लेकिन एक कवि रूप में अधिक प्रसिद्ध हुए हैं। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं
(i) काव्य-संग्रह-चक्रव्यूह (1956), परिवेश : हम-तुम, अपने सामने, कोई दूसरा नहीं, इन दिनों आदि।
(ii) प्रबंध काव्य-आत्मजयी।
(iii) कहानी संग्रह-आकारों के आस-पास।
(iv) समीक्षा-आज और आज से पहले।
(v) साक्षात्कार-मेरे साक्षात्कार।

साहित्यिक विशेषताएँ-
कुँवर नारायण का काव्य संबंधी दृष्टिकोण अत्यंत उच्च एवं श्रेष्ठ है। तीसरे सप्तक में कुँवर नारायण ने जो वक्तव्य ० दिया है उसके आधार पर उनकी भव्य-दृष्टि को बखूबी समझा जा सकता है। उनकी काव्य-चेतना अत्यंत उत्तम है। उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) वैज्ञानिक दृष्टिकोण-कुँवर नारायण एक भ्रमणशील व्यक्ति हैं। उनकी इसी भ्रमणशीलता तथा पाश्चात्य साहित्य के अध्ययन के फलस्वरूप कविता के प्रति इनका वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। उन्होंने अपने काव्य में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्रमुखता प्रदान की है। उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए कहा है कि ‘यह वह दृष्टि है जो सहिष्णु और उदार मनोवृत्ति से जुड़ी हुई है। वैज्ञानिक दृष्टि जीवन को किसी पूर्वाग्रह से पंगु करके नहीं देखती, बल्कि उसके प्रति एक बहुमुखी सतर्कता बरतती है।’

(ii) विचार पक्ष की प्रधानता-कुँवर नारायण का साहित्य जहाँ एक ओर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से ओत-प्रोत है, वहीं दूसरी ओर उसमें विचार पक्ष की भी प्रधानता है। इसी प्रधानता के कारण वे कविता को कोरी भावुकता का पर्याय नहीं मानते। उन्होंने अपने काव्य में विचारों को अधिक महत्व दिया है, उसके बाह्य आकर्षण पर नहीं। यही कारण है कि इनकी कविता गंभीरता लिए हुए हैं।

(iii) प्रतीकात्मकता-कवि ने अपनी संवेदना को अभिव्यक्त करने के लिए प्रतीकात्मकता का सहारा लिया है। उनका चक्रव्यूह काव्यसंग्रह एक प्रतीकात्मक रचना है जिसमें कवि ने समकालीन समस्याओं में डूबे मानव को विघटनकारी सात महारथियों से घिरे हुए अभिमन्यु के रूप में चित्रित किया है।

(iv) नगरीय संवेदना का चित्रण-कुँवर नारायण को नगरीय संवेदना का कवि माना जाता है। यह पक्ष उनके काव्य में स्पष्ट झलकता है। उन्होंने नगर तथा महानगरीय सभ्यता का अपने काव्य में यथार्थ चित्रण किया है।

(v) सामाजिक चित्रण-कुँवर नारायण जी सामाजिक चेतना से ओत-प्रोत कवि हैं। उन्होंने अपनी रचनाओं में समकालीन समाज की। यथार्थ झाँकी प्रस्तुत की है। ‘आत्मजयी’ प्रबंध काव्य में नचिकेता के मिथक के माध्यम से उन्होंने सामाजिक जीवन का सजीव चित्रांकन किया है। सामाजिक रहन-सहन, उहापोह आदि का इनके काव्य में यथार्थ चित्रण हुआ है।

(vi) मानवतावाद-कुँवर नारायण के काव्य में मानवतावादी विराट भावना के दर्शन भी होते हैं। उन्होंने वैज्ञानिक युग की भागदौड़ में फँसे सामान्य जन-जीवन का चित्रण किया है। ‘चक्रव्यूह’ काव्य संग्रह में कवि ने समकालीन मानव को विघटनकारी सात-सात महारथियों से घिरे हुए अभिमन्यु के रूप में चित्रित किया है।

(vii) भाषा-शैली-भाषा और विषय की विविधता कुँवर नारायण की कविताओं के विशेष गुण हैं। उन्होंने विषय-विविधता के साथ साथ अनेक भाषाओं का प्रयोग भी किया है। उनके काव्य की प्रमुख भाषा साहित्यिक खड़ी बोली है जिसमें अंग्रेजी, उर्दू, फ़ारसी, तत्सम और तद्भव शब्दावली का प्रयोग है। उनकी शैली विषयानुरूप है जो अत्यंत गंभीर, विचारात्मक तथा प्रतीकात्मक है।

(viii) अलंकार-कुँवर जी के साहित्य में विचारों की प्रधानता है इसलिए सौंदर्य की ओर इनका ध्यान कम ही गया है। इनके काव्य में अलंकारों का स्वाभाविक प्रयोग हुआ है। अनुप्रास, यमक, उपमा, पदमैत्री, स्वरमैत्री, रूपक आदि अलंकारों का प्रयोग हुआ है। . मुक्तक छंद का प्रयोग है। बिंब योजना अत्यंत सुंदर एवं सटीक है। निष्कर्ष रूप में हम कह सकते हैं कि कुँवर नारायण आधुनिक हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि हैं। उनका साहित्यिक दृष्टिकोण अत्यंत वैज्ञानिक है, अतः उनका आधुनिक काव्यधारा में प्रमुख स्थान है।

 

Ray Optics and Optical Instruments Class 12 Notes Physics Chapter 9

By going through these CBSE Class 12 Physics Notes Chapter 9 Ray Optics and Optical Instruments, students can recall all the concepts quickly.

Ray Optics and Optical Instruments Notes Class 12 Physics Chapter 9

→ The image formed by a concave mirror cannot lie beyond the focus.

→ Real images are always inverted.

→ Virtual images are always erect.

→ The minimum distance between an object and its real image formed by a concave mirror is zero.

→ The angle of deviation on refraction of light from a plane surface is given by δ = |i – r|.

→ The absolute R.I. of any medium is always greater than one.

→ The frequency of light does not change during the refraction of light.

→ When light travels from rarer to denser medium its wavelength decreases as λm = \(\frac{\lambda}{\mu}\) and μ > 1, so λm < λ. where λm is the wavelength of light in the denser medium.

→ If the critical angle for water is C, then the fish just below the surface of the water can see in an angular range of 2C.

→ When i = r = 0, then refraction takes place without a change in the path of the ray of light.

→ The value of the refractive index depends on the following:
(a) Nature of the media of incidence and refraction.
(b) Temperature of media.
(c) Colour of light or wavelength of light.

→ ‘μ’ decreases with the increase in temperature.

→ μ is independent of the angle of incidence.

→ The transmission involves two refractions.

→ The maximum value of μ is for diamond (μ = 2.46).

→ The critical angle for the red rays is more than that for blue rays.

→ The critical angle increases with temperature.

→ Critical angle depends on the refractive index, the colour of light and temperature of the medium.

→ Air bubbles in glass appear silvery-white due to the total internal reflection from them.

→ Critical angles for water-air, glass-air and diamond-air are 45° 42° and 24° respectively.

→ The critical angle for ordinary glass is 42°

→ Thicker is the lens, more is the bending of light rays, thus lesser is its focal length and hence more is the power of the lens and vice-versa for a thin lens i.e., the thin lens has less power and longer focal length.

→ To produce dispersion without deviation, the angle of crown glass prism has to be greater than that of flint glass prism i.e., A > A’ and (μ’ – 1) > (μ’ – 1).

→ For no dispersion, the materials and the angles of the two prisms should be chosen so that their dispersive powers are in the inverse ratio of the deviations suffered by mean light through the prism. To produce deviation without dispersion, the angle of the crown glass prism has to be greater than that of the flint glass prism.

→ As μv, μr and μ are constant for a given material, so dispersive power (ω) of given material of a prism cannot be changed. But if glass material is chosen in such a way that μv is greater and μr is lower, then co can be higher.

→ A single lens cannot be free from chromatic aberration as it has different focal length for different colours and thus they are focused at different points.

→ To compare the size of the two objects, they should be placed at the least distance of distinct vision i.e. D = 25 cm.

→ The magnifying power of the simple microscope is small.

→ For greater magnification, a compound microscope is used which has net magnifying power as the product of linear magnifications or magnifying powers of each lens.

→ The image formed by the simple microscope is erect and magnified while the image formed by the compound microscope is inverted.

→ A simple microscope is also called a reading lens and is also used for repair of small instruments while compound microscope cannot be used for these purposes.

→ Magnifying power of an astronomical telescope is greater in case of the image formed at the least distance of distinct vision than in case of normal adjustment i.e, \(\frac{\mathrm{f}_{0}}{\mathrm{f}_{\mathrm{e}}}\)(1 + \(\frac{\mathrm{f}_{\mathrm{e}}}{\mathrm{D}}\)) > \(\frac{\mathrm{f}_{0}}{\mathrm{f}_{\mathrm{e}}}\)

→ The skin becomes visible before the actual sunrise and remains visible after actual sunset due to refraction. It increases the length of the day by nearly 4 minutes.

→ The image of an object when seen through a slab of thickness and R.I. μ is shifted by a distance, d = t(1 – \(\frac{1}{\mu}\))

→ When the object is in a denser medium, then its apparent depth is lesser than the actual depth if observed from the rarer medium.

→ When the object is in a rarer medium, then its apparent depth is greater than the actual depth if observed from the denser medium. The focal length of a lens immersed in water becomes four times the focal length in air.

→ Rainbow is seen only by a person with his back facing the sun and his eyes make an angle of 42° with the axis of the rainbow.

→ The nature of the lens does not change if it is placed in a rarer medium i.e.,μg > μmed but the focal length in the medium becomes more than that in air i.e. fm > fa.

→ If μm > μg i.e. if it is placed in a denser medium, then the nature of the lens changes. Tire focal length may increase or decrease depending on the value of \(\frac{\mu_{g}-\mu_{m}}{\mu_{m}}\) as compared to (μg – 1).

→ fm increases if \(\frac{\mu_{\mathrm{g}}-\mu_{\mathrm{m}}}{\mu_{\mathrm{m}}}\) > (μg – 1)

→ fm decreases if \(\frac{\mu_{\mathrm{g}}-\mu_{\mathrm{m}}}{\mu_{\mathrm{m}}}\) < (μg – 1)

→ fm = fa, if \(\frac{\mu_{\mathrm{g}}-\mu_{\mathrm{m}}}{\mu_{\mathrm{m}}}\) = (μg – 1)

→ The lens becomes invisible if μm = μg and behaves as a plain glass with no refraction.

→ Amplitude, intensity, velocity and wavelength of the wave change on refraction.

→ In a denser medium, refraction does not occur when the angle of incidence is greater than the critical angle.

→ Rainbow is caused by the combined effect of refraction, total internal reflection and dispersion of sunlight by the raindrops suspended in the air.

→ Black is not the colour of light. It shows the absence of light.

→ White is also not the colour of light. It depicts the presence of all the colours.

→ Blue, green and red is primary colours.

→ Our eye is not sensitive to UV and infrared light.

→ Tire final image formed by the reflecting telescope is free from chromatic aberration. Also, the brightness of the image formed is higher.

→ The far point of the normal eye is at infinity.

→ Far Point: The farthest point up to which the eye can see clearly is called the far point.

→ Least distance of distinct vision: It is defined as the distance at which the eye can see the objects clearly. For a normal eye, it is 25 cm.

→ Small deviation produced by a prism is independent of the angle of incidence.

→ A pure spectrum is defined as that spectrum in which there is no missing constituent colour.

→ An impure spectrum is one in which there is overlapping of almost all the colours so at the centre of the spectrum we obtain a white spot with edges coloured with red and violet.

→ Transmission: It is defined as the passing of a ray of light through the medium.

→ Optical path: It is the product of the refractive index of the medium (μ) and the distance covered in it (n).
i. e., optical path = μx = μ (geometrical path).

→ For refraction from rarer to denser medium, r < i.

→ Critical angle: It is defined as the angle of the incidence in the denser medium for which the angle of refraction is 90° in the rarer medium.

→ Dispersion: It is defined as the process of splitting up white light into its constituent colours on passing through the prism.

→ Cauchy’s Formula: It states that the R.I. of a material depends on the wavelength (λ) as:
μ = a + \(\frac{b}{\lambda^{2}}+\frac{c}{\lambda^{4}}\)

→ Spectrum: It is defined as the band of colours that are obtained due to the dispersion of light.

→ Rainbow: Beautiful colours seen in the sky when the sun shines after the rain.

→ Fraunhofer lines: They are defined as the large number of dark lines observed in the spectrum of sunlight which corresponds to the absorption spectrum.

→ Primary rainbow: It is the rainbow in which the violet and red rays make angles 410 and 43° respectively with the axis of the rainbow. The red colour lies at the top while violet at the bottom.

→ Secondary rainbow: It is the rainbow in which the violet and red colours make angles 54° and 51° respectively with its axis. It is less bright than a primary rainbow. The violet colour lies on the outer edge while red on the inner edge.

→ The primary rainbow is formed due to two refractions and one total internal reflection of light incident on the droplet while the secondary rainbow is formed due to two refractions and two total

→ internal reflections of the light incident on the droplets.

→ Angular dispersion: It is defined as the difference between the angles of deviation for the extreme colours.

→ Dispersive power: It is defined as the ratio of angular dispersion to the mean deviation.

→ Chromatic aberration: It is defined as the process due to which a lens forms images of different colours at different distances from the lens.

→ Chromatic aberration = fr – fv.

Important Formulae

→ μ = \(\frac{C}{v}=\frac{\sin \mathrm{i}}{\sin \mathrm{r}}\),
where i = angle of incidence,

aμw = \(\frac{\text { Real depth }}{\text { apparent depth }}\)

→ μ =\(\frac{1}{\sin C}\) when C = critical angle

wμg = \(\frac{{ }^{a} \mu_{g}}{{ }^{a} \mu_{w}}\)when wμg is the R.I. of glass w.r.t. water.

aμb = \(\frac{1}{{ }^{b} \mu_{a}}\)

→ Refraction formula when the refraction takes place at convex spherical surface from rarer to denser medium for real image of object is:
– \(\frac{\mu_{1}}{u}+\frac{\mu_{2}}{v}=\frac{\mu_{2}-\mu_{1}}{R}\)

→ For virtual image, it is again same.

→ When refraction takes place from denser to rarer medium; it is given by
– \(\frac{\mu_{2}}{u}+\frac{\mu_{1}}{v}=\frac{\mu_{1}-\mu_{2}}{R}\)

→ Lens formula is
– \(\frac{1}{\mathrm{u}}+\frac{1}{\mathrm{v}}=\frac{1}{\mathrm{f}}\)

→ Lens Maker’s formula is
\(\frac{1}{f}\) = (μ – 1)(\frac{1}{R_{1}}-\frac{1}{R_{2}})

→ Power of a lens is given by
P = \(\frac{1}{\mathrm{f}(\mathrm{m})}\) (Dioptre) or D

→ Linear magnification produced by a lens:
m = \(\frac{1}{\mathrm{O}}=\frac{v}{\mathrm{u}}=\frac{\mathrm{f}}{\mathrm{f}+\mathrm{u}}=\frac{\mathrm{f}-v}{\mathrm{f}}\)

→ Focal length of combination of two lenses placed in contact is
\(\frac{1}{\mathrm{~F}}=\frac{1}{\mathrm{f}_{1}}+\frac{1}{\mathrm{f}_{2}}\)

→ Power of combination is
P = P1 + P2

→ When the two lenses are placed at a distance ‘d’; then
\(\frac{1}{\mathrm{~F}}=\frac{1}{\mathrm{f}_{1}}+\frac{1}{\mathrm{f}_{2}}-\frac{\mathrm{d}}{\mathrm{f}_{1} \mathrm{f}_{2}}\)

→ Power of spherical refracting surface is
P = \(\frac{\mu_{2}-\mu_{1}}{R}\)

→ Lateral shift is given by
d = \(\frac{t}{\cos r}\) sin (i – r)

→ Magnification produced by lens combination is
m = m1 × m2

→ For a prism,

  1. A = r1 + r2
  2. μ = \(\frac{\sin \left(\mathrm{A}+\delta_{\mathrm{m}}\right) / 2}{\sin \frac{\mathrm{A}}{2}}\)
  3. A + δ = i + e.
  4. For small angled prism, δ = (μ – 1)A.

→ Dispersive power is
W = δv – δr /δ = \(\frac{\mu_{v}-\mu_{r}}{\mu-1}\)

→ Condition for no deviation:
\(\frac{\mathrm{A}^{\prime}}{\mathrm{A}}=-\frac{(\mu-1)}{(\mu-1)}\)
net angular dispersion = δ (ω – ω’)

→ Condition for no dispersion:
1. \(\frac{\mathrm{A}^{\prime}}{\mathrm{A}}=-\frac{\mu_{\mathrm{v}}-\mu_{\mathrm{r}}}{\mu_{\mathrm{v}}-\mu_{\mathrm{r}}}\)

2. \(\frac{\omega}{\omega^{\prime}}=-\frac{\delta^{\prime}}{\delta}\)
Net deviation = δ(1 – \(\frac{\omega}{\omega^{\prime}}\))

→ Chromatic aberration is
fr – fv = w × f

→ Magnifying power of simple microscope is given by:
m = \(\frac{\beta}{\alpha}\) = 1 + \(\frac{\mathrm{D}}{\mathrm{f}}\)

When image is formed at infinity, then M = \(\frac{\mathrm{D}}{\mathrm{f}}\)

→ For compound microscope
M = \(\frac{v_{0}}{u_{0}}\)(1 + \(\frac{D}{f_{e}}\)) = – \(\frac{\mathrm{L}}{\mathrm{f}_{0}}\)(1 + \(\frac{D}{f_{e}}\))

→ Magnifying power of astronomical telescope for
1. nor mal adjustment is:
M = – \(\frac{\mathrm{f}_{0}}{\mathrm{f}_{\mathrm{e}}}\)

2. When final image is formed at least distance of distinct vision:
M = – \(\frac{\mathrm{f}_{0}}{\mathrm{f}_{\mathrm{e}}}\)(1 + \(\frac{\mathrm{f}_{\mathrm{e}}}{\mathrm{D}}\))
where f0, fe are the focal lengths of objective and eye piece respectively.
D = least distance of distinct vision.

→ Length of: (a) astronomical telescope tube for normal adjustment is given by
L = f0 + fe

(b) Terrestrial telescope is
L = fo + 4f + fee
where f is the focal length of the erecting lens.

→ For a mirror, f = \(\frac{\mathrm{R}}{2}\) , where f, R are the focal length and radius of
curvature of the spherical mirror.

→ Mirror formula is \(\frac{1}{f}=\frac{1}{u}+\frac{1}{v}\)

→ Linear magnification produced by a mirror is
m = \(\frac{\mathrm{I}}{\mathrm{O}}=-\frac{\mathrm{v}}{\mathrm{u}}=\frac{\mathrm{f}}{\mathrm{f}-\mathrm{u}}=\frac{\mathrm{f}-\mathrm{v}}{\mathrm{f}}\)

→ Resolving power of telescope is given by
R.P = \(\frac{\mathrm{d}}{1.22 \lambda}\)

→ Angular limit of resolution of a telescope is
dθ = \(\frac{1}{\text { R.P. }}=\frac{1.22 \lambda}{d}\)

→ Brightness of telescope ∝ πr² ∝ \(\frac{\pi \mathrm{d}^{2}}{4}\)
where d = diameter of the objective lens.

→ Areal magnification = \(\frac{\text { Area of image }}{\text { Area of object }}=\frac{\mathrm{I}^{2}}{\mathrm{O}^{2}}\) = m2

Class 12 Hindi Aroh Chapter 2 Summary पतंग

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पतंग Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 2

पतंग कविता का सारांश

श्री आलोक धन्वा दवारा रचित ‘पतंग’ कविता उनके काव्य-संग्रह ‘दुनिया रोज बनती है’ में संकलित है। इस कविता में कवि ने बाल-सुलभ इच्छाओं एवं उमंगों का सुंदर एवं मनोहारी चित्रण किया है। कवि ने बाल क्रियाकलापों तथा प्रकृति में आए परिवर्तन को अभिव्यक्त करने के लिए अनेक सुंदर बिंबों का समायोजन किया है। पतंग बच्चों की उमंगों का रंग-बिरंगा सपना है, जिसमें वे खो जाना चाहते हैं। आकाश में उड़ती हुई पतंग ऊँचाइयों की वे हदें हैं, जिन्हें बाल-मन छूना चाहता है और उसके पार जाना चाहता है।

कविता एक ऐसी नई दुनिया की सैर कराती है, जहाँ शरद ऋतु का चमकीला सौंदर्य है; तितलियों की रंगीन दुनिया है; दिशाओं के नगाड़े – बजते हैं, छत्तों के खतरनाक कोने से गिरने का भय है तो दूसरी ओर इसी भय पर विजय का ध्वज लहराते बच्चे हैं। ये बच्चे गिर-गिरकर

संभलते हैं तथा पृथ्वी का हर कोना इनके पास आ जाता है। वे हर बार नई पतंग को सबसे ऊँचा उड़ाने का हौसला लिए भादो के बाद शरद की प्रतीक्षा कर रहे हैं। कवि के अनुसार सबसे तेज़ बौछारों के समय का अंधेरा व्यतीत हो गया है और खरगोश की आँख के समान लालिमा – से युक्त सौंदर्यमयी प्रकाशयुक्त सवेरा हो गया है। शरद अनेक झड़ियों को पार करते हुए तथा नई चमकदार साइकिल तेज गति से चलाते हुए जोरों से घंटी बजाते आ गया है। वह अपने सौंदर्य से युक्त चमकीले इशारों से पतंग उड़ाने वाले बच्चों के समूह को बुलाता है।

वह आकाश को इतना सुंदर तथा मुलायम बना देता है कि पतंग ऊपर उठ सके। पतंग जिसे दुनिया की सबसे हल्की और रंगीन वस्तु माना जाता है, वह इस असीम आकाश में उड़ सके। इस हसीन दुनिया का सबसे पहला कागज़ और बाँस की पतली कमानी आकाश में उड़ सके और इनके उड़ने : के साथ ही चारों ओर का वातावरण बच्चों की सीटियों, किलकारियों और तितलियों की मधुर ध्वनि से गूंज उठे।

कोमल बच्चे अपने जन्म से ही कपास के समान कोमलता लेकर आते हैं। ये पृथ्वी भी उनके बेचैन पाँवों के साथ घूमने लगती है। जब । ये बच्चे मकानों की छतों पर बेसुध होकर दौड़ते हैं तो छतों को नरम बना देते हैं। जब ये बच्चे झूला-झूलते हुए आते हैं तो दिशाओं के । नगाड़े बजने लगते हैं। प्राय: बच्चे छतों पर तेज गति से बेसुध होकर दौड़ते हैं तो उस समय उनके रोमांचित शरीर का संगीत ही उन्हें गिरने से बचाता है। उस समय मात्र धागे के सहारे उडते पतंगों की ऊँचाइयाँ उन्हें सहारा देकर थाम लेती हैं।

असीम आकाश में पतंगों की ऊँचाइयों के साथ-साथ ये कोमल बच्चे भी अपने रंध्रों के सहारे उड़ रहे हैं। कवि का मानना है कि अगर बच्चे छतों के खतरनाक किनारों से गिरकर बच जाते हैं तो उसके बाद वे पहले से ज्यादा निडर होकर स्वर्णिम सूर्य के सामने आते हैं। तब उनके इस साहस, धैर्य | और निडरता को देखकर यह पृथ्वी भी उनके पैरों के पास अधिक तेजी से घूमती है।

पतंग कवि परिचय

जीवन-परिचय-श्री आलोक धन्वा समकालीन हिंदी साहित्य के प्रमुख कवि माने जाते हैं। ये सामाजिक ० चेतना से ओत-प्रोत कवि हैं। इनका जन्म सन् 1948 ई० में बिहार राज्य के मुंगेर जिले में हुआ था। इनकी साहित्य-सेवा के कारण इन्हें राहुल सम्मान से अलंकृत किया गया। इन्हें बिहार राष्ट्रभाषा परिषद 10 का साहित्य सम्मान और बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान से भी सम्मानित किया गया है।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 2 Summary पतंग

रचनाएँ-आलोक धन्वा एक कवि के रूप में उन्हें विशेष ख्याति प्राप्त हैं। उनकी लेखनी अबाध गति से साहित्य-सृजन हेतु चल रही है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

(i) काव्य-जनता का आदमी (उनकी पहली कविता है, जो सन् 1972 में प्रकाशित हुई) भागी हुई लड़कियाँ, ब्रूनों की बेटियाँ, गोली दागो पोस्टर आदि। ब्रूनों की बेटियाँ से कवि को बहुत 10 प्रसिद्धि प्राप्त हुई है।

(ii) काव्य-संग्रह-दुनिया रोज बनती है (एकमात्र संग्रह)। साहित्यिक विशेषताएँ–आलोक धन्वा समकालीन काव्य-जगत के विशेष हस्ताक्षर हैं। ये एक संवेदनशील व्यक्ति हैं। इनका साहित्य समकालीन समाज की संवेदना से ओत-प्रोत है। ये सातवें-आठवें दशक के जन-आंदोलनों से अत्यंत प्रभावित हुए, इसलिए इनके काव्य में समाज का यथार्थ चित्रण मिलता है। इनके साहित्य में राष्ट्रीय चेतना का भाव प्रमुखता से झलकता है।

इन्होंने अपने साहित्य में भारतीय संस्कृति एवं समाज का अनूठा चित्रांकन प्रस्तुत किया है। इनके मन में अपने देश के प्रति गौरव की भावना है। यही गौरवपूर्ण भावना इनके साहित्य में झंकृत होती है। आलोक धन्वा बाल मनोविज्ञान के कवि हैं। इन्होंने भाग-दौड़ की जिंदगी में उपेक्षित बाल-मन को जाँच-परखकर उसका अनूठा चित्रण किया है। ‘दुनिया रोज बनती है’ काव्य-संग्रह की ‘पतंग’ कविता में बाल-सुलभ चेष्टाओं एवं क्रियाकलापों का सजीव एवं मनोहारी अंकन हुआ है।  इन्होंने अपने साहित्य में शुद्ध साहित्यिक खड़ी बोली भाषा का प्रयोग किया है।

इसके साथ-साथ इसमें संस्कृत के तत्सम, तद्भव, साधारण बोलचाल और विदेशी भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। इनके काव्य में कोमलकांत पदावली का भी सजीव चित्रण हुआ है। इनकी अभिधात्मक शैली भावपूर्ण है। प्रसाद गुण के साथ-साथ माधुर्य गुण का भी समायोजन हुआ है। इनकी भाषा-शैली में अनुप्रास, स्वभावोक्ति, पदमैत्री, स्वरमैत्री, यमक, उपमा, रूपक, मानवीकरण आदि अलंकारों का प्रयोग मिलता है। आलोक धन्वा समकालीन काव्यधारा के प्रमुख कवि हैं। इनका समकालीन हिंदी कविता में प्रमुख स्थान है।

Class 12 Hindi Aroh Chapter 1 Summary आत्म-परिचय, एक गीत

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आत्म-परिचय, एक गीत Summary Notes Class 12 Hindi Aroh Chapter 1

आत्म-परिचय, एक गीत कविता का सारांश

“आत्मपरिचय कविता हरिवंश राय बच्चन के काव्य-संग्रह ‘बुद्ध और नाचघर से ली गई है। इस कविता में कवि ने मानव के। आत्म-परिचय का चित्रण किया है। आत्मबोध अर्थात अपने को जानना संसार को जानने से ज्यादा कठिन है। व्यक्ति का समाज से घनिष्ठ : – संबंध है, इसलिए संसार से निरपेक्ष रहना असंभव है। इस कविता में कवि ने अपना परिचय देते हुए लगातार दुनिया से अपनी दुविधा और । वंद्वपूर्ण संबंधों का रहस्य ही प्रकट किया है। कवि कहता है कि वह इस सांसारिक जीवन का संपूर्ण भार अपने कंधों पर लिए फिर रहा है। सारे भार को उठाने के पश्चात भी वह

जीवन में प्यार लिए घूम रहा है। वह कहता है कि मेरी हृदय रूपी वीणा को किसी ने प्रेम से छूकर झंकृत कर दिया और मैं उसी झंकृत – वीणा के साँसों को लिए दुनिया में घूम रहा हूँ। – प्रेम रूपी मदिरा को पी लिया है, इसलिए वह तो इसी में मग्न रहता है। उसे इस संसार का बिल्कुल भी ध्यान नहीं है। यह संसार केवल उनकी पूछ करता है जो उसका गान करते हैं। यह स्वार्थ के नशे में डूबकर औरों को अनदेखा कर देता है। मैं तो अपनी मस्ती में डूब : मन के गीत गाता रहता हूँ। उसे इस संसार से कोई लेना-देना नहीं है। यह एकदम अपूर्ण है अतः उसे यह अच्छा नहीं लगता। वह तो अपने हृदय में भाव का उपहार लिए फिर रहा है।

उसका अपना एक स्वप्निल-संसार है। उसी संसार को लिए वह विचरण कर रहा है। वह अपने हृदय में अग्नि जलाकर स्वयं उसमें जलता रहता है। वह अपने जीवन को समभाव होकर जीता है। वह सुख-दुख दोनों अवस्थाओं । में मग्न रहता है। संसार एक सागर के समान है। ये दुनिया वाले इस संसार रूपी सागर को पार करने हेतु नाव बना सकते हैं। उसको इस नाव की कोई आवश्यकता नहीं है। वह तो सांसारिक खुशियों में डूब कर यूँ ही बहना चाहता है।

कवि कहता है कि एक तो उसके पास जवानी का जोश है तथा दूसरा उस जोश में छिपा दुख है। इसी कारण वह बाह्य रूप से तो हँसता हुआ दिखता है लेकिन आंतरिक रूप से निरंतर रोता रहता है। वह अपने हृदय में किसी की यादें समाए फिर रहा है। कवि प्रश्न करता है। कि आंतरिक सत्य कोई नहीं जान पाया। अनेक लोग प्रयास करते-करते खत्म हो गए लेकिन सत्य की थाह तक कोई नहीं पहुंच पाया। नादान वहीं होते हैं, जहाँ अक्लमंद निवास करते हैं। फिर भी यह संसार मूर्ख नहीं है जो इसके बावजूद भी सीखना चाहता है।

कवि और संसाररीका कोई संबंध नहीं है। उसकी राह कोई और थी तथा संसार की कोई और। वह न जाने प्रतिदिन कितने जग बना-बना 5 कर मिटा देता है। यह संसार जिस पृथ्वी पर रहकर अपना वैभव जोडना चाहता है, वह प्रति पग इस पृथ्वी के वैभव को ठुकरा देता है। 14 उसके रुदन में भी एक राग छिपा है तथा उसकी शीतल वाणी में क्रोध रूपी आग समाहित है। वह ऐसे विराट खंडहर का अंश अपने साथ

लिए फिरता है, जिस पर बड़े-बड़े राजाओं के महल भी न्योछावर हो जाते हैं। यह संसार तो अजीब है जो उसके रोने को भी गीत समझता है। दुखों की अपार वेदना के कारण जब वह फूट-फूट कर रोया तो इसे संसार ने उसके छंद समझे। वह तो इस जहाँ का एक दीवाना है लेकिन यह संसार उसे एक कवि के रूप में क्यों अपनाता है? वह तो दीवानों का वेश धारण कर अपनी मस्ती में मस्त होकर घूम रहा है। वह तो मस्ती का एक ऐसा संदेश लेकर घूम रहा है, जिसको सुनकर ये संसार झम उठेगा, झुक जाएगा तथा लहराने लगेगा।

एक गीत कविता का सारांश

‘एक गीत’ कविता हरिवंश राय बच्चन द्वारा रचित उनके काव्य-संग्रह निशा निमंत्रण में संकलित है। बच्चन जी हालावाद के प्रवर्तक कवि हैं तथा आधुनिक हिंदी साहित्य के महान साहित्यकार माने जाते हैं। प्रस्तुत कविता में कवि ने समय के व्यतीत होने के एहसास के साथ-साथ लक्ष्य तक पहुँचने के लिए प्राणी द्वारा कुछ कर गुजरने के जज्बे का चित्रण किया है। इस कविता में कवि की रहस्यवादी चेतना मुखरित हुई है। समय चिर-परिवर्तनशील है जो निरंतर गतिशील है। यह क्षणमात्र भी नहीं रुकता और न ही किसी की परवाह करता है। यहाँ प्रत्येक प्राणी अपनी मंजिल को पाने की चाह लेकर जीवन रूपी मार्ग पर निकलता है।

वह यह सोचकर अति शीघ्रता से चलता है कि कहीं उसे मार्ग में चलते-चलते रात न हो जाए। उसकी मंजिल भी उससे दूर नहीं, फिर वह चिंता में मग्न रहता है। पक्षियों के बच्चे भी अपने घोंसलों में अपने माँ-बाप को न पाकर परेशानी से भर उठते हैं। घोंसलों में अपने बच्चों को अकेला छोड़कर गए पक्षी भी इसी चिंता में रहते हैं कि उनके बच्चे भी उनकी आने की आशा में अपने-अपने घोंसलों से झाँक रहे होंगे। जब-जब ये ऐसा सोचते हैं तब यह भाव उनके पंखों में न जाने कितनी चंचलता एवं स्फूर्ति भर देता है। मार्ग पर चलते-चलते प्राणी यह चिंतन करता है कि इस समय उससे मिलने के लिए कौन इतना व्याकुल हो रहा होगा?

फिर वह किसके लिए इतना चंचल हो रहा है या वह किसके लिए इतनी शीघ्रता करे। जब भी राही के मन में ऐसा प्रश्न उठता है तो यह प्रश्न उसके पैरों को सुस्त कर देता है तथा उसके हृदय में व्याकुलता भर देता है। इस प्रकार दिन अत्यंत शीघ्रता से व्यतीत हो रहा है।

आत्म-परिचय, एक गीत कवि परिचय

जीवन-परिचय-श्री हरिवंश राय बच्चन हालावाद के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं। इनका आधुनिक हिंदी साहित्य के इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इनका जन्म 21 नवंबर, 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के प्रयाग (इलाहाबाद) के एक साधारण कायस्थ परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा म्युनिसिपल स्कूल में हुई। बाद में कायस्थ पाठशाला तथा गवर्नमेंट स्कूल में भी पढ़ाई की। प्रयाग विश्वविद्यालय में एम० ए० (अंग्रेज़ी) में दाखिला लिया, लेकिन असहयोग आंदोलन से प्रेरित होकर पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।
Class 12 Hindi Aroh Chapter 1 Summary आत्म-परिचय, एक गीत
1939 ई० में काशी विश्वविद्यालय से बी० टी० सी० की डिग्री प्राप्त की थी। ये 1942 से 1952 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में प्राध्यापक के पद पर कार्यरत रहे। इसके बाद ये इंग्लैंड चले गए। वहाँ इन्होंने कैंब्रिज विश्वविद्यालय से एम० ए० तथा पी-एच० डी० की उपाधि ग्रहण की। सन 1955 ई० में भारत सरकार ने इन्हें विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर नियुक्त किया। जीवन के अंतिम क्षणों तक वे स्वतंत्र लेखन करते रहे। इन्हें सोवियतलैंड तथा साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

‘दशद्वार से सोपान तक’ रचना पर इन्हें सरस्वती सम्मान दिया गया। इनकी प्रतिभा और साहित्य सेवा को देखकर भारत सरकार ने इनको ‘पद्मभूषण’ की उपाधि से अलंकृत किया। 18 जनवरी, 2003 को ये इस संसार को छोड़कर चिरनिद्रा में लीन हो गए। रचनाएँ-हरिवंश राय बच्चन जी बहुमुखी प्रतिभा संपन्न साहित्यकार थे। उन्होंने अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाई है। उनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं

(i) काव्य-संग्रह-मधुशाला, मधुबाला, मधुकलश, निशा निमंत्रण, एकांत संगीत, आकुल-अंतर, मिलय यामिनी, सतरंगिणी, आरती और अंगारे, नए-पुराने झरोखे, टूटी-फूटी कड़ियाँ, बुद्ध और नाचघर
(ii) आत्मकथा चार खंड-क्या भूलूँ क्या याद करूँ, नीड़ का निर्माण फिर, बसेरे से दूर, दशद्वार से सोपान तक।
(iii) अनुवाद-हैमलेट, जनगीता, मैकबेथ।
(iv) डायरी-प्रवास की डायरी।

साहित्यिक विशेषताएँ-हरिवंश राय बच्चन एक श्रेष्ठ साहित्यकार थे, जिन्होंने हालावाद का प्रवर्तन कर साहित्य को एक नया मोड़ दिया। उनका एक कहानीकार के रूप में उदय हुआ था, लेकिन बाद में अपने बुद्धि-कौशल के आधार पर उन्होंने अनेक विधाओं पर लेखनी चलाई। उनके साहित्य की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

(i) प्रेम और सौंदर्य-हरिवंश राय बच्चन हालावाद के प्रवर्तक कवि माने जाते हैं जिसमें प्रेम और सौंदर्य का अनूठा संगम है। इन्होंने साहित्य में प्रेम और मस्ती की एक नई धारा प्रवाहित थी। इन्होंने प्रेम और सौंदर्य को जीवन का अभिन्न अंग मानकर उनका चित्रण किया है। ये प्रेम-रस में डूबकर रस की ऐसी पिचकारियाँ छोड़ते हैं जिससे संपूर्ण जग मोहित हो उठता है। वे कहते हैं

इस पार प्रिये, मधु है तुम हो
उस पार न जाने क्या होगा?

बच्चन जी ने अपने काव्य में ही नहीं बल्कि गद्य साहित्य में भी प्रेम और सौंदर्य की सुंदर अभिव्यक्ति की है। वे तो इस संवेदनहीन । और स्वार्थी दुनिया को ही प्रेम-रस में डुबो देना चाहते हैं। वे प्रेम का ऐसा ही संदेश देते हुए कहते हैं

मैं दीवानों का वेश लिए फिरता हूँ,
मैं मादकता निःशेष लिए फिरता हूँ,
जिसको सुनकर जग झूम झुके लहराए,
मैं मस्ती का संदेश लिए फिरता हूँ !

(ii) मानवतावाद-मानवतावाद एक ऐसी विराट भावना है जिसमें संपूर्ण जगत के प्राणियों का हित-चिंतन किया जाता है। बच्चन जी केवल प्रेम और मस्ती में डूबे कवि नहीं थे बल्कि उनके साहित्य में ऐसी विराट भावना के भी दर्शन होते हैं। उनके साहित्य में | मानव के प्रति प्रेम-भावना अभिव्यक्त हुई है। इन्होंने निरंतर स्वार्थी मनुष्यों पर कटु व्यंग्य किए हैं।

(iii) वैयक्तिकता-हरिवंश राय बच्चन के साहित्य में व्यक्तिगत भावना सर्वत्र झलकती है। उनकी इस व्यक्तिगत भावना में सामाजिक भावना मिली हुई है। एक कवि की निजी अनुभूति भी अर्थात सुख-दुख का चित्रण भी समाज का ही चित्रण होता है। बच्चन जी ने व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर ही जीवन और संसार को समझा और परखा है। वे कहते हैं

मैं जग-जीवन का भार लिए फिरता हूँ,
फिर भी जीवन में प्यार लिए फिरता हूँ,
कर दिया किसी ने झंकृत जिनको छूकर
मैं साँसों के दो तार लिए फिरता हूँ।
हत्यारमकता का जामष्यक्ति हो

(v) सामाजिक चित्रण-हरिवंश राय बच्चन सामाजिक चेतना से ओत-प्रोत कवि हैं। उनके काव्य में समाज की यथार्थ अभिव्यक्ति हुई है। इनकी वैयक्तिकता में भी सामाजिक भावना का चित्रण हुआ है।

(vi) भाषा-शैली-हरिवंश राय बच्चन प्रखर बुद्धि के कवि थे। उनकी भाषा शदध साहित्यिक खड़ी बोली है। संस्कत की तत्सम शब्दावली का अधिकता से प्रयोग हुआ है। इसके साथ-साथ तद्भव शब्दावली, उर्दू, फारसी, अंग्रेज़ी आदि भाषाओं के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। कवि ने प्रांजल शैली का प्रयोग किया है जिसके कारण इनका साहित्य लोकप्रिय हुआ है। गीति शैली का भी इन्होंने प्रयोग किया है।

(vii) अलंकार-बच्चन के साहित्य में प्रेम, सौंदर्य और मस्ती का अद्भुत संगम है। इन्होंने अपने काव्य में शब्दालंकार तथा अर्थालंकार दोनों का सफल प्रयोग किया है। अलंकारों के प्रयोग से इनके साहित्य में और ज्यादा निखार और सौंदर्य उत्पन्न हो गया है। इनके साहित्य में अनुप्रास, यमक, श्लेष, पदमैत्री, स्वरमैत्री, पुनरुक्ति प्रकाश, उपमा, रूपक, मानवीकरण आदि अलंकारों का सुंदर प्रयोग हुआ है। जैसे हो जाय न पथ में रात कहीं, मंजिल भी तो है दूर नहीं यह सोच थका दिन का पंथी भी जल्दी-जल्दी चलता है दिन जल्दी-जल्दी ढलता है।

(viii) बिंब योजना-कवि की बिंब योजना अत्यंत सुंदर है। इन्होंने भावानुरूप बिंब योजना की है। ऐंद्रियबोधक बिंबों के साथ सामाजिक  राजनीतिक आदि बिंबों का सफल चित्रण हुआ है।

(ix) रस-बच्चन जी प्रेम और सौंदर्य के कवि हैं, अत: उनके साहित्य में शृंगार रस के दर्शन होते हैं। श्रृंगार रस के संयोग पक्ष की अपेक्षा उनका मन वियोग पक्ष में अधिक रमा है। उन्होंने वियोग-शृंगार का सुंदर वर्णन किया है। इसके साथ रहस्यात्मकता को प्रकट करने के लिए शांत रस की भी अभिव्यंजना की है। वस्तुतः हरिवंश राय बच्चन हिंदी-साहित्य के लोकप्रिय कवि माने जाते हैं। उन्होंने साहित्य की अनेक विधाओं पर सफल लेखनी चलाकर हिंदी-साहित्य की श्रीवृद्धि की है। हिंदी-साहित्य में उनका स्थान अद्वितीय है।