RD Sharma Class 8 Solutions

RD Sharma Class 8 Solutions (2020-201 Edition)

RD Sharma Class 8 Solutions (2020-2021 Edition)

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RS Aggarwal Solutions Class 8 (2020-2021 Edition)

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RS Aggarwal Solutions Class 8 Chapter 1 Rational Numbers

RS Aggarwal Solutions Class 8 Chapter 2 Exponents

RS Aggarwal Solutions Class 8 Chapter 3 Squares and Square Roots

RS Aggarwal Solutions Class 8 Chapter 4 Cubes and Cube Roots

RS Aggarwal Solutions Class 8 Chapter 5 Playing with Numbers

RS Aggarwal Solutions Class 8 Chapter 6 Operations on Algebraic Expressions

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RS Aggarwal Solutions Class 8 Chapter 12 Direct and Inverse Proportions

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RS Aggarwal Solutions Class 8 Chapter 16 Parallelograms

RS Aggarwal Solutions Class 8 Chapter 17 Construction of Quadrilaterals

RS Aggarwal Solutions Class 8 Chapter 18 Area of a Trapezium and a Polygon

RS Aggarwal Solutions Class 8 Chapter 19 Three-Dimensional Figures

RS Aggarwal Solutions Class 8 Chapter 20 Volume and Surface Area of Solids

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कः रक्षति कः रक्षितः Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 12

By going through these CBSE Class 8 Sanskrit Notes Chapter 12 कः रक्षति कः रक्षितः Summary, Notes, word meanings, translation in Hindi, students can recall all the concepts quickly.

Class 8 Sanskrit Chapter 12 कः रक्षति कः रक्षितःSummary Notes

कः रक्षति कः रक्षितः Summary

यह पाठ पर्यावरण पर केन्द्रित है। हमारे दैनिक जीवन में प्लास्टिक का अत्यधिक प्रयोग होता है। पर्यावरण के लिए प्लास्टिक अत्यधिक घातक है। प्रस्तुत पाठ में पर्यावरण के प्रदूषण की समस्या को उजागर किया गया है तथा पर्यावरण प्रदूषण की समस्या के प्रति संवेदनशील समझ विकसित करने का प्रयास किया गया है। पाठ का सार इस प्रकार है :
कः रक्षति कः रक्षितः Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 12.1

मनुष्य पूर्वकाल में कपास से, मिट्टी से अथवा लोहे से निर्मित वस्तुओं का उपयोग किया करता था। ये वस्तुएँ पर्यावरण को प्रदूषित नहीं करती थीं। कारण कि, ये आसानी से गल जाती हैं और नष्ट-भ्रष्ट हो जाती हैं।

आजकल लोग प्लास्टिक का अधिक प्रयोग करते हैं। लोग प्लास्टिक से निर्मित थैलों को तथा अन्य वस्तुओं को इधर-उधर फेंक देते हैं। ये वस्तुएँ न तो गलती हैं और न ही सड़ती हैं। ये यथावत् पड़ी रहती हैं तथा वातावरण को दूषित करती हैं।
कः रक्षति कः रक्षितः Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 12.2

मनुष्य कदापि इस ओर ध्यान नहीं देता कि प्लास्टिक पर्यावरण को बहुत क्षति पहुँचाता है और इससे मानव का अहित होता है। अतः हमारा यह परम कर्त्तव्य बनता है कि हम पर्यावरण की शुद्धि की ओर ध्यान दें तथा पर्यावरण को दूषित होने से बचाएँ।

कः रक्षति कः रक्षितः Word Meanings Translation in Hindi

मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः सरलार्थश्च ।

(क) (ग्रीष्मौ सायंकाले विद्युदभावे प्रचण्डोष्मणा पीडितः वैभवः गृहात् निष्क्रामति)
वैभवः – अरे परमिन्दर्! अपि त्वमपि विद्युदभावेन पीडितः बहिरागतः?
परमिन्दर् – आम् मित्र! एकतः प्रचण्डातपकालः अन्यतश्च विद्युदभावः परं बहिरागत्यापि पश्यामि यत् वायुवेगः तु सर्वथाऽवरुद्धः।

सत्यमेवोक्तम् प्राणिति पवनेन जगत् सकलं, सृष्टिर्निखिला चैतन्यमयी।
क्षणमपि न जीव्यतेऽनेन विना, सर्वातिशायिमूल्यः पवनः॥1॥

विनयः – अरे मित्र! शरीरात् न केवलं स्वेदबिन्दवः अपितु स्वेदधाराः इव प्रस्रवन्ति स्मृतिपथमायाति शुक्लमहोदयैः रचितः श्लोकः। तप्तर्वाताघातैरवितुं लोकान् नभसि मेघाः,
आरक्षिविभागजना इव समये नैव दृश्यन्ते॥2॥

अन्वयः-(इदम्) जगत् सकलं, चैतन्यमयी निखिला सृष्टिः पवनेन प्राणिति। अनेन विना क्षणमपि न जीव्यते। पवनः सर्वातिशायिमूल्यः।।1।।
तप्तैः वाताघातैः लोकान् अवितुं मेघाः नभसि आरक्षिविभागजना इव समये नैव दृश्यन्ते।।।2।।

शब्दार्थ-
प्रचण्ड-भयंकर।
बहिः-बाहर।
आगतः-आ गया।
प्रचण्ड-तीव्र।
अन्यतः-और भी।
आगत्य-आकर।
अवरुद्धः-रुक गया।
प्राणिति-जीवित है (Survives)।
सकलम्-सारा।
निखिला-सम्पूर्णं (Whole)।
जीव्यते-जीवित है।
सर्वातिशायि-सबसे बढकर।
स्वेदबिन्दवः-पसीने की बूंदें।
प्रस्रवन्ति-बह रही हैं।
तप्तैः-गर्म।
वाताघातैः-लू के द्वारा।
अवितुम्-रक्षा करने के लिए।
नभसि-आकाश में। आरक्षिः-पुलिस।
दृश्यन्ते-दिखाई पड़ते हैं।

सरलार्थ-
(गर्मी की ऋतु में शाम को बिजली के अभाव में तीव्र गर्मी के द्वारा पीड़ित वैभव घर से
बाहर निकलता है)
वैभव – अरे परमिन्दर्! क्या तुम भी बिजली के अभाव से पीड़ित होकर बाहर आ गए हो?
परमिन्दर – हाँ, मित्र! एक तो तीव्र गर्मी का समय, दूसरे बिजली का अभाव। परन्तु बाहर आकर भी देखता हूँ कि वायु की गति पूर्णतः रुक गई है। सच ही कहा है पवन के द्वारा समस्त जगत् तथा चैतन्यपूर्ण यह समग्र सृष्टि जीवित है। इसके बिना क्षणभर भी जीवित नहीं रहा जाता है। सबसे अधिक मूल्य वाली वायु है।

विनय – अरे मित्र! शरीर से न केवल पसीने की बूँदें, अपितु पसीने की नदियाँ बह रही हैं। शुक्लमहोदय के द्वारा रचित श्लोक याद आ रहा है गर्म लू से संसार की रक्षा करने के लिए आकाश में बादल पुलिस विभाग के लोगों के समान समय पर दिखाई नहीं पड़ते हैं।

(ख) परमिन्दर् – आम् अद्य तु वस्तुतः एव
निदाघतापतप्तस्य, याति तालु हि शुष्कताम्।
पुंसो भयादितस्येव, स्वेदवज्जायते वपुः॥3॥

जोसेफः – मित्राणि! यत्र-तत्र बहुभूमिकभवनानां, भूमिगतमार्गाणाम्, विशेषतः
मैट्रोमार्गाणां, उपरिगमिसेतूनाम् मार्गेत्यादीनां निर्माणाय वृक्षाः कर्त्यन्ते
तर्हि अन्यत् किमपेक्ष्यते अस्माभिः? वयं तु विस्मृतवन्तः एव

एकेन शुष्कवृक्षण दह्यमानेन वह्निना।
दह्यते तद्वनं सर्वं कुपुत्रेण कुलं यथा॥4॥
परमिन्दर् – आम् एतदपि सर्वथा सत्यम्! आगच्छन्तु नदीतीरं गच्छामः। तत्र चेत्
काञ्चित् शान्तिं प्राप्तुं शक्ष्येम।

अन्वयः-निदाघतापतप्तस्य (जनस्य) तालु शुष्कतां याति। पुंसः भयादितस्येव वयुः स्वेदवत् जायते।।3।।
वह्निना दह्यमानेन एकेन शुष्कवृक्षेण सर्वं तद्वनं दह्यते, यथा कुपुत्रेण कुलम्।।4।।

शब्दार्थ-
वस्तुतः-वास्तव में।
निदाघ-गर्मी।
याति-प्राप्त होता है।
शुष्कताम्-सूखापन।
पुंसः-मनुष्य का।
भयादितस्य-भयभीत।
वपुः-शरीर।
स्वेदवत्-पसीने से तर।
उपरिगामि-ऊपर से जाने वाले।
कर्त्यन्ते-काटे जाते हैं।
शुष्क-सूखा।
विस्मृतवन्तः- भूल गए हैं।
वह्निना-अग्नि के द्वारा।
दह्यमानेन-जलाए जाते हुए।
शक्ष्येम-सकेंगे।
आगच्छन्तु-आओ।

सरलार्थ –

परमिन्दर् – हाँ! आज तो वास्तव में
गर्मी के ताप से पीड़ित मनुष्य का तालु सूख जाता है। भयभीत मनुष्य का शरीर पसीने से तर हो जाता है।
जोसेफ – मित्र! जहाँ-तहाँ अत्यधिक पृथ्वी पर भवनों का, भूमिगत मार्गों का, विशेषरूप से मैट्रो के मार्गों का, ऊपर से गुजरने वाले पुलों का-इत्यादि के निर्माण के लिए वृक्ष काटे जाते हैं। अवश्य ही हमसे क्या अपेक्षा की जाती है? हम तो भूल ही गए अग्नि के द्वारा जलाए जाते हुए एक सूखे वृक्ष के द्वारा ही समग्र वन जला दिया जाता है, जिस प्रकार कुपुत्र के द्वारा कुल (नष्ट हो जाता है।)
परमिन्दर् – हाँ, यह भी सत्य है! आओ, नदी के किनारे चलते हैं। वहाँ कुछ शान्ति प्राप्त कर सकेंगे।

(ग) (नदीतीरं गन्तुकामाः बालाः यत्र-तत्र अवकरभाण्डारं दृष्ट्वा वार्तालापं कुर्वन्ति)
जोसेफः – पश्यन्तु मित्राणि यत्र-तत्र प्लास्टिकस्यूतानि अन्यत् चावकरं प्रक्षिप्तमस्ति।
कथ्यते यत् स्वच्छता स्वास्थ्यकरी परं वयं तु शिक्षिताः अपि अशिक्षिता
इवाचरामः अनेन प्रकारेण…. वैभवः – गृहाणि तु अस्माभिः नित्यं स्वच्छानि क्रियन्ते परं किमर्थं स्वपर्यावरणस्य
स्वच्छतां प्रति ध्यानं न दीयते। विनयः पश्य-पश्य उपरितः इदानीमपि अवकरः मार्गे क्षिप्यते।
(आहूय) महोदये! कृपां कुरू मार्गे भ्रमद्भ्यः । एतत् तु सर्वथा अशोभनं कृत्यम्।
अस्मत्सदृशेभ्यः बालेभ्यः भवतीसदृशैः एवं संस्कारा देयाः ।

रोजलिन् – आम् पुत्र! सर्वथा सत्यं वदसि! क्षम्यताम्। इदानीमेवागच्छामि। (रोजलिन् आगत्य बालैः साकं स्वक्षिप्तमवकर मार्गे विकीर्णमन्यदवकर चापि सङ्गृह्य अवकरकण्डोले पातयति)

शब्दार्थ- अवकर-कूड़ा।
प्रक्षिप्तम्-फेंक दिया।
आचरामः-आचरण करते हैं।
दीयते-दिया जाता है।
उपरितः-ऊपर से।
भ्रमद्भ्यः -भ्रमण करते हुए। क
कत्यम्-कार्य।
क्षम्यताम्-क्षमा करिए।
अवगच्छामि-जानती हूँ।
कण्डोले-टोकरी में।

सरलार्थ-
(नदी के किनारे जाने के इच्छुक बालक जहाँ-तहाँ गन्दगी के ढेर देखकर वार्तालाप करते हैं)
जोसेफ – मित्र, देखो! जहाँ-तहाँ प्लास्टिक का थैला तथा अन्य कूड़ा फेंका हुआ है। कहा जाता है कि स्वच्छता स्वास्थ्यकर होती है, परन्तु हम शिक्षित होते हुए भी अनपढ़ों की तरह आचरण करते हैं, इस प्रकार हम घरों को नित्य स्वच्छ करते हैं, परन्तु किसलिए अपने पर्यावरण की स्वच्छता की ओर ध्यान नहीं दिया जाता है। विनय देखो, देखो। ऊपर से अब भी मार्ग में कूड़ा डाला जा रहा है।
(बुलाकर)-देवी! मार्ग में भ्रमण करने वालों पर कृपा करो। यह तो पूर्णतः अशोभन कार्य है। हमारे जैसे बच्चों को आप जैसी (महिलाओं) को संस्कार देना चाहिए।
रोजलिन् – हाँ पुत्र! तुम पूर्णरूप से सच कहते हो। क्षमा कर देना। अब मैं जान गई हूँ। (रोजलिन् ने आकर बालकों के साथ अपने द्वारा फेंके गए कूड़े को मार्ग तथा शेष कूड़े को कूड़ादान में डाल दिया।)

(घ) बालाः – एवमेव जागरूकतया एव प्रधानमन्त्रिमहोदयानां स्वच्छताऽभियानमपि गतिं प्राप्स्यति।
विनयः – पश्य पश्य तत्र धेनुः शाकफलानामावरणैः सह प्लास्टिकस्यूतमपि
खादति। यथाकथञ्चित् निवारणीया एषा। (मार्गे कदलीफलविक्रेतारं दृष्ट्वा बालाः कदलीफलानि क्रीत्वा धेनुमाह्वयन्ति भोजयन्ति च, मार्गात् प्लास्टिकस्यूतानि चापसार्य पिहिते अवकरकण्डोले क्षिपन्ति)

शब्दार्थ-
प्राप्स्यति-प्राप्त करेगा।
आवरणैः-छिलकों।
यथाकथञ्चित्-जैसे-तैसे।
निवारणीया-हटाना चाहिए।
कदली-केला।
अपसार्य-हटाकर।
पिहित-ढके हुए।

सरलार्थ-
बालक – इसी प्रकार जागरूकता से ही प्रधानमन्त्री महोदय का स्वच्छता अभियान भी गति प्राप्त करेगा।
विनय – देखो, देखो। वहाँ गाय सब्जी और फलों के छिलकों के साथ प्लास्टिक के थैले को भी खा रही है। जैसे तैसे-इसे हटाना चाहिए।

(मार्ग में केला बेचने वाले को देखकर बच्चे केले खरीदकर गाय को बुलाते हैं और खिलाते हैं। मार्ग से प्लास्टिक के थैलों को हटाकर ढके हुए कूड़ादान में डालते हैं।)

(ङ) परमिन्दर् – प्लास्टिकस्य मृत्तिकायां लयाभवात् अस्माकं पर्यावरणस्य कृते महती क्षतिः भवति। पूर्वं तु कार्पासेन, चर्मणा, लौहेन, लाक्षया, मृत्तिकया, काष्ठेन वा निर्मितानि वस्तूनि एव प्राप्यन्ते स्म। अधुना तत्स्थाने प्लास्टिकनिर्मितानि वस्तूनि एव प्राप्यन्ते।
वैभवः – आम् घटिपट्टिका, अन्यानि बहुविधानि पात्राणि, कलमेत्यादीनि सर्वाणि नु प्लास्टिकनिर्मितानि भवन्ति।
जोसैफः – आम् अस्माभिः पित्रोः शिक्षकाणां सहयोगेन प्लास्टिकस्य विविधपक्षाः विचारणीयाः। पर्यावरणेन सह पशवः अपि रक्षणीयाः। (एवमेवालपन्तः सर्वे नदीतीरं प्राप्ताः, नदीजले निमज्जिताः भवन्ति गायन्ति च
सुपर्यावरणेनास्ति जगतः सुस्थितिः सखे।
जगति जायमानानां सम्भवः सम्भवो भुवि॥5॥
सर्वे – अतीवानन्दप्रदोऽयं जलविहारः।

अन्वयः-
सखे, जगतः सुस्थितिः सुपर्यावरणेन अस्ति। जगति जायमानानां सम्भवः भुवि सम्भवः।।5।।

शब्दार्थ-
मृत्तिकायां-मिट्टी में।
क्षतिः-हानि। कार्पासेन-कपास से।
चर्मणा-चमड़े से। लाक्षया-लाख से।
काष्ठेन-काठ से। आलपन्तः-बात करते हुए।
निमज्जिताः-स्नान किया।

सरलार्थ –
परमिन्दर – प्लास्टिक के मिट्टी में नष्ट न होने के कारण हमारे पर्यावरण की महान् हानि होती है। पहले तो कपास से, चमड़े से, लोहा से, लाख से, मिट्टी से अथवा काठ से निर्मित वस्तुएँ ही प्राप्त होती थीं। अब उसके स्थान पर प्लास्टिक निर्मित वस्तुएँ ही प्राप्त होती हैं।
वैभव – हाँ, घड़ी की पट्टियाँ, अन्य बहुत से पात्र, कलम इत्यादि सभी प्लास्टिक से निर्मित होती हैं। जोसेफ हाँ, हमारे माता-पिता तथा गुरु जी के सहयोग से प्लास्टिक के विविध पक्षों पर विचार करना चाहिए। पर्यावरण के साथ पशुओं की भी रक्षा करनी चाहिए। (इस प्रकार वार्तालाप करते हुए सभी नदी के किनारे पहुँच गए और नदी के जल में स्नान किया तथा गाते हैं-) सुपर्यावरण के द्वारा ही जगत की सुन्दर स्थिति है। संसार में उत्पन्न होने वालों की उत्पत्ति पृथ्वी पर है।
सभी – जल में अति आनंद प्राप्त करते हैं।

सावित्री बाई फुले Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 11

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Class 8 Sanskrit Chapter 11 सावित्री बाई फुले Summary Notes

सावित्री बाई फुले Summary

सावित्री बाई फुले ने आजीवन शोषितों व पिछड़ों के उत्थान के लिए संघर्ष किया। उनका नारा था- शिक्षा हमारा अधिकार है।’ फुले के समाज में कई समुदाय अत्यधिक लम्बे समय तक इस अधिकार से वञ्चित रहे हैं। उन्हें शिक्षा का, समानता का अधिकार दिलाने के लिए फुले ने अपना जीवन समर्पित कर दिया।
सावित्री बाई फुले Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 11

वञ्चित समुदाय में स्त्रियों की दशा तो और भी दयनीय थी। उनकी शिक्षा के लिए सावित्री फुले को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वह अन्त तक स्त्रियों के अधिकारों के लिए लड़ती रही। सावित्री फुले स्त्रियों की शिक्षा पर बल देती रहीं।

सावित्री फुले महाराष्ट्र की पहली महिला शिक्षिका थीं। वह गरीब कन्याओं को शिक्षा देती थीं। इनका जन्म सन् 1831 ई० में हुआ। इसकी माता का नाम लक्ष्मीबाई तथा पिता का नाम खंडोजी था। सावित्री का विवाह ज्योतिबा फुले के साथ हुआ।
सावित्री बाई फुले Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 11.2

सावित्री फुले ने सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया। उन्होंने मनुष्यों की समानता और स्वतन्त्रता के पक्ष का समर्थन किया। सावित्री फुले ने ‘पूना सेवासदन’ जैसी अनेक संस्थाओं की स्थापना की। सन् 1897 ई० में सावित्री फुले का देहान्त हो गया।

सावित्री बाई फुले Word Meanings Translation in Hindi

मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः सरलार्थश्च

(क) उपरि निर्मितं चित्रं पश्यत। इदं चित्रं कस्याश्चित् पाठशालायाः वर्तते। इयं सामान्या पाठशाला नास्ति। इयमस्ति महाराष्टस्य प्रथमा कन्यापाठशाला। एका शिक्षिका गहात पस्तकानि आदाय मार्गे कश्चित् तस्याः उपरि धूलिं कश्चित् च प्रस्तरखण्डान् क्षिपति। परं सा स्वदृढनिश्चयात् न विचलति। स्वविद्यालये कन्याभिः सविनोदम् आलपन्ती सा अध्यापने संलग्ना भवति। तस्याः स्वकीयम् अध्ययनमपि सहैव प्रचलति। केयं महिला? अपि यूयमिमां महिलां जानीथ? इयमेव महाराष्ट्रस्य प्रथमा महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले नामधेया।

शब्दार्थ-
उपरि-ऊपर।
पश्यत-देखो।
इदम्-यह (नपुं.)।
कस्याश्चित्-किसी।
नास्ति-नहीं है।
प्रथमा-प्रथम (स्त्री.)
निर्मितम्-बने हुए।
गृहात्-घर से।
एका-एक (स्त्री.)।
मार्गे-रास्ते में।
आदाय-लेकर।
प्रस्तरखण्डान्-पत्थर के टुकड़ों को।
कश्चित्-कोई।
परम्-परन्तु।
क्षिपति-फेंकता है।
सविनोदम्-मजाक के साथ।
विचलति-विचलित होती है।
सहैव-साथ ही।
आलपन्ती-बात करती हुई।
जानीथ-जानते हो।
केयं-कौन है यह।
संलग्ना-लगी हुई।
नामधेया-नामक।
स्वकीयम्-अपना।
स्वदृढनिश्चयात्-अपने मजबूत संकल्प से।
प्रचलति-चलता है।

सरलार्थ-
ऊपर बने हुए चित्र को देखो। यह चित्र किसी पाठशाला का है। यह सामान्य विद्यालय नहीं है। यह महाराष्ट्र की पहली कन्या पाठशाला है। एक अध्यापिका घर से पुस्तकें लेकर चलती है। मार्ग में कोई उसके ऊपर धूल और कोई पत्थर के टुकड़े फेंकता है। परन्तु वह अपने दृढ़ निश्चय से विचलित नहीं होती है। अपने विद्यालय में लड़कियों से हँसी मजाक के साथ बात करती हुई वह पढ़ाने में लगी होती है। उसका अपना अध्ययन भी साथ ही चलता है। कौन है यह महिला? क्या तुम सब इस महिला को जानते हो? यह ही महाराष्ट्र की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले है।

(ख) जनवरी मासस्य तृतीये दिवसे 1831 तमे ख्रिस्ताब्दे महाराष्ट्रस्य नायगांव-नाग्नि स्थाने सावित्री अजायत। तस्याः माता लक्ष्मीबाई पिता च खंडोजी इति अभिहितौ। नववर्षदेशीया सा ज्योतिबा-फुले महोदयेन परिणीता। सोऽपि तदानीं त्रयोदशवर्षकल्पः एव आसीत्। यतोहि सः स्त्रीशिक्षायाः प्रबल: समर्थकः आसीत् अतः सावित्र्याः मनसि स्थिता अध्ययनाभिलाषा उत्साहं प्राप्तवती। इतः परं सा साग्रहम् आङ्ग्लभाषाया अपि अध्ययनं कृतवती।

शब्दार्थ-
तृतीये दिवसे-तीसरे दिवस (तारीख) में।
नववर्षदेशीया-नौ साल वाली।
नाम्नि-नामक।
ख्रिस्ताब्दे-ईस्वीय वर्ष में।
अजायत-उत्पन्न हुई।
तदानीम्-तब।
अभिहितौ-कहे गए हैं।
यतोहि-क्योंकि।
परिणीता-ब्याही गई (Married)।
अध्ययनाभिलाषा-पढ़ने की इच्छा।
त्रयोदश०-तेरह (Thirteen)।
इतः परम्- इससे भी बढ़कर।
मनसि-मन में।
आंग्ल०-अंग्रेजी भाषा का। उत्सम्-बल।
साग्रहम्-आग्रह के साथ।

सरलार्थ-
3 जनवरी, सन् 1831 में महाराष्ट्र के नायगांव नामक स्थान पर सावित्री का जन्म हुआ। उसकी माता लक्ष्मीबाई तथा पिता खंडोजी नामक हुए हैं। नौ वर्ष की अवस्था में वह ज्योतिबा फुले महोदय के साथ ब्याही गई। उस समय वह भी तेरह वर्ष का ही था। क्योंकि वह स्त्री शिक्षा का प्रबल समर्थक था अतः सावित्री के मन में स्थित पढ़ने की इच्छा को बल प्राप्त हुआ। इससे बढ़कर उसने आग्रहपूर्वक अंग्रेजी भाषा का भी अध्ययन किया।

(ग) 1848 तमे ख्रिस्ताब्दे पुणेनगरे सावित्री ज्योतिबामहोदयेन सह कन्यानां कृते प्रदेशस्य प्रथम विद्यालयम् आरभत। तदानीं सा केवलं सप्तदशवर्षीया आसीत्। 1851 तमे ख्रिस्ताब्दे अस्पृश्यत्वात् तिरस्कृतस्य समुदायस्य बालिकानां कृते पृथक्तया तया अपरः विद्यालयः प्रारब्धः।

शब्दार्थ-
कन्यानां कृते-लड़कियों के लिए।
आरभत-प्रारम्भ किया।
पृथक्तया-अलग से (Separate)
सप्तदश०-सत्रह वर्ष की (Seventeen)
तदानीम्-तब।
तिरस्कृतस्य-तिरस्कृत का (Hated)
अस्पृश्यत्वात्-छुआछूत के कारण
प्रारब्धः-आरम्भ किया (Started) (Untouchability)।
अपरः-दूसरा (Other)

सरलार्थ-
1848 ईस्वी सन् में पुणे नगर में सावित्री ने ज्योतिबा महोदय के साथ कन्याओं के लिए प्रदेश के प्रथम विद्यालय को आरम्भ किया। तब वह केवल सत्रह वर्ष की थी। ईस्वी सन् 1851 में छुआछूत के कारण अपमानित समुदाय की बालिकाओं के लिए पृथक् उसके द्वारा दूसरा विद्यालय प्रारम्भ किया गया।

(घ)सामाजिककुरीतीनां सावित्री मुखरं विरोधम् अकरोत्। विधवानां शिरोमुण्डनस्य निराकरणाय सा साक्षात् नापितैः मिलिता। फलतः केचन नापिताः अस्यां रूढी सहभागिताम् अत्यजन्। एकदा सावित्र्या मार्गे दृष्टं यत् कृपं निकषा शीर्णवस्त्रावृताः तथाकथिताः निम्नजातीयाः काश्चित् नार्यः जलं पातुं याचन्ते स्म। उच्चवर्गीयाः उपहासंकर्वन्तः कपात जलोदधरणं अवारयन् । सावित्री एतत् अपमानं सोढं नाशक्नोत् । सा ताः स्त्रियः निजगृहं नीतवती। तडागं दर्शयित्वा अकथयत् च यत् यथेष्टं जलं नयत। सार्वजनिकोऽयं तडागः। अस्मात् जलग्रहणे नास्ति जातिबन्धनम्। तया मनुष्याणां समानतायाः स्वतन्त्रतायाश्च पक्षः सर्वदा सर्वथा समर्थितः।

शब्दार्थ-
मुखरम्-प्रबलता से (Severe)।
अकरोत्-किया।
निराकरणाय-दूर करने के लिए।
नापितैः-नाई लोगों से (Barbers)
केचन-कुछ।
रूढौ-रिवाज में (Custom)
अत्यजन्-छोड़ दिया (Left)
एकदा-एक बार
यत्-कि।
निकषा-पास (Near)
शीर्णवस्त्रावृताः-फटे पुराने वस्त्रों से ढकी हुई।
निम्नजातीया:-नीच जाति वाली।
नार्यः-नारियाँ (Women)
पातुम्-पीने के लिए।
उपहासम्-मजाक (Fun)
जलोद्धरणम्-जल को निकालना।
अवारयन्-मना करते हैं।
सोढुम्-सहने के लिए।
नाशक्नोत्-नहीं सकी।
नीतवती-ले गई।
दर्शयित्वा-दिखाकर।
यथेष्टम्-इच्छा के अनुसार।
जातिबन्धनम्-जाति का बन्धन (Casteism)।
तया-उसने। सर्वदा-सदा।
सर्वथा-पूर्ण रूप से (Fully)।
समर्थितः-समर्थन किया (Supported)।

सरलार्थ-
सावित्री ने सामाजिक कुरीतियों (समाज में फैले बुरे रिवाजों, परंपराओं) का प्रबल विरोध किया। विधवाओं के शिर को मूंडने की प्रथा को दूर करने के लिए वह साक्षात् नाई लोगों से मिली। (इसके) फलस्वरूप कुछ नाइयों ने इस रिवाज़ में सहभागिता का त्याग कर दिया। एक बार सावित्री ने मार्ग में देखा कि कुएँ के पास फटे पुराने वस्त्रों में ढकी हुई तथाकथित नीच जाति की कुछ स्त्रियाँ जल पीने के लिए याचना कर रही थीं। उच्च वर्ग वाले उनका मज़ाक उड़ाते हुए कुएँ से जल निकालने के लिए मना कर रहे थे।

सावित्री इस अपमान को सहन न कर सकी। वह उन स्त्रियों को अपने घर ले गई और तालाब को दिखाकर उसने कहा कि (तुम) इच्छा के अनुसार जल ले जाओ। यह तालाब सार्वजनिक है। इससे जल लेने में जाति का बन्धन नहीं है। उसने मनुष्यों की समानता और स्वतन्त्रता के पक्ष का सदा तथा पूर्ण रूप से समर्थन किया।

(ङ) ‘महिला सेवामण्डल”शिशुहत्या प्रतिबन्धक गृह’ इत्यादीनां संस्थानां स्थापनायां फुलेदम्पत्योः अवदानम् महत्वपूर्णम्। सत्यशोधकमण्डलस्य गतिविधिषु अपि सावित्री अतीव सक्रिया आसीत्। अस्य मण्डलस्य उद्देश्यम् आसीत् उत्पीडितानां समुदायानां स्वाधिकारान् प्रति जागरणम् इति।

शब्दार्थ –
अवदानम्-योगदान (Contribution)।
संस्थानाम्-संस्थाओं के।
गतिविधिषु-गतिविधियों में।
उत्पीडितानाम्-सताए गए।
प्रतिबन्धक-रोकने वाला।
स्थापनायां-स्थापना में।
उद्देश्यम्-लक्ष्य।
अतीव-अत्यधिक।
जागरणम्-जागरण (जगाना)।

सरलार्थ-
‘महिला सेवामण्डल’ व ‘शिशुहत्या प्रतिबन्ध गृह’ इत्यादि संस्थाओं की स्थापना में फुले दम्पति (पति-पत्नी) का योगदान महत्त्वपूर्ण है। सत्य शोधक-मण्डल की गतिविधियों में भी सावित्री अत्यधिक सक्रिय थी। इस मण्डल का उद्देश्य था सताए गए समुदायों का अपने अधिकारों के प्रति जागरण।

(च) सावित्री अनेकाः संस्थाः प्रशासनकौशलेन सञ्चालितवती। दुर्भिक्षकाले प्लेग-काले च सा पीडितजनानाम् अश्रान्तम् अविरतं च सेवाम् अकरोत्। सहायता-सामग्री-व्यवस्थायै सर्वथा प्रयासम् अकरोत। महारोगप्रसारकाले सेवारता सा स्वयम असाध्यरोगेण ग्रस्ता 1897 तमे खिस्ताब्दे निधनं गता। साहित्यरचनया अपि सावित्री महीयते। तस्याः काव्यसङ्कलनद्वयं वर्तते ‘काव्यफुले’ ‘सुबोधरत्नाकर’ चेति। भारतदेशे महिलोत्थानस्य गहनावबोधाय सावित्रीमहोदयायाः जीवनचरितम् अवश्यम् अध्येतव्यम्।

शब्दार्थ-
सञ्चालितवती-सञ्चालन किया (चलाया)।
दुर्भिक्ष०-अकाल समय में।
अश्रान्तम्-बिना थके।
अविरतम्-निरन्तर।
प्रयासम्-प्रयत्न।
प्रसार०-फैलना।
निधनम्-मृत्यु को।
महीयते-बढ़-चढ़कर है।
गहन०-गहराई से।
अवबोधाय-समझने के लिए।
अध्येतव्यम्-पढ़ना चाहिए।
प्रशासनकौशलेन-शासन (निर्देशन)
प्लेग-काले-प्लेग (चूहों के द्वारा फैलने की कुशलता से। वाला रोग) के समय में।
उत्थानस्य-उन्नति का।

सरलार्थ-
सावित्री ने अनेक संस्थाओं को प्रशासन कौशल के द्वारा चलाया। अकाल के समय तथा प्लेग (रोग) के समय उसने पीड़ित लोगों की बिना थके निरन्तर सेवा की। सहायता-सामग्री की व्यवस्था के लिए उसने पूर्णरूपेण प्रयत्न किया। महारोग के प्रसार के समय सेवा में लगी हुई वह स्वयं असाध्य रोग से ग्रस्त होकर सन् 1897 में मृत्यु को प्राप्त हो गई। . साहित्य रचना के द्वारा भी सावित्री महान् है। उसके दो काव्यसंकलन हैं-‘काव्य फुले’ तथा ‘सुबोधरत्नाकर’। भारतदेश में महिलाओं की उन्नति को गहराई से समझने के लिए सावित्री महोदया के जीवन चरित का अवश्य अध्ययन करना चाहिए।

सप्तभगिन्यः Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 9

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Class 8 Sanskrit Chapter 9 सप्तभगिन्यःSummary Notes

सप्तभगिन्यः Summary

‘सप्तभगिनी’ यह एक उपनाम है। उत्तरपूर्व के सात राज्य विशेष को यह उपाधि प्रदान की गई है। इन राज्यों के प्राकृतिक . सौन्दर्य और सांस्कृतिक विलक्षणता को ध्यान में रखकर इस पाठ की रचना की गई है। पाठ का सार इस प्रकार है हमारे देश में अट्ठाईस राज्य तथा सात केन्द्रशासित प्रदेश हैं। इन राज्यों में सात राज्यों का एक समूह है। इन्हें ‘सात बहनें’ नाम से जाना जाता है।

अरुणाचल, असम, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, नागालैण्ड और त्रिपुरा-इन सात राज्यों का समूह ‘सात बहनें’ के नाम से प्रसिद्ध है। ये सात बहनें प्राचीन इतिहास में प्रायः स्वाधीन ही दृष्टिगोचर होती हैं। किसी भी शासक ने इन्हें अपने अधीन नहीं किया है। अनेक संस्कृतियों से विशिष्ट भारत-भूमि में इन बहनों की संस्कृति महत्त्वपूर्ण है। पर्वतों, वृक्षों तथा पुष्पों के द्वारा इन राज्यों की प्राकृतिक सम्पदा अत्यधिक समृद्धि और गौरव को बढ़ाती है। वस्तुतः ये सात राज्य सबसे श्रेष्ठ हैं।

सप्तभगिन्यः Word Meanings Translation in Hindi

मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः सरलार्थश्च

अध्यापिका – सुप्रभातम्।
छात्राः सुप्रभातम्। सुप्रभातम्।
अध्यापिका – भवतु। अद्य किं पठनीयम्?
छात्राः – वयं सर्वे स्वदेशस्य राज्यानां विषये ज्ञातुमिच्छामः।
अध्यापिका – शोभनम्। वदत। अस्माकं देशे कति राज्यानि सन्ति?
सायरा – चतुर्विंशतिः महोदये!
सिल्वी – न हि न हि महाभागे! पञ्चविंशतिः राज्यानि सन्ति।
अध्यापिका – अन्यः कोऽपि …?
स्वरा – ( मध्ये एव) महोदये! मे भगिनी कथयति यदस्माकं देशे नवविंशतिः राज्यानि सन्ति। एतदतिरिच्य सप्त केन्द्रशासितप्रदेशाः अपि सन्ति।

शब्दार्थ-
भवतु-ठीक है (अच्छा)।
ज्ञातुम्-जानने के लिए।
अद्य-आज।
इच्छामः-चाहते हैं।
शोभनम्-सुन्दर।
चतुर्विंशतिः-चौबीस (Twenty four)।
भगिनी-बहन।
अतिरिच्य-अतिरिक्त।
मध्ये एव-बीच में ही।
कति-कितने।
पञ्चविंशतिः-पच्चीस।
अष्टाविंशतिः-अट्ठाईस।
सप्त-सात (Seven)

सरलार्थ –

अध्यापिका – सुप्रभात।
छात्राएँ – सुप्रभात, सुप्रभात।
अध्यापिका – अच्छा, आज क्या पढ़ना है?
छात्राएँ – हम सभी अपने देश के राज्यों के विषय में जानना चाहती हैं।
अध्यापिका – सुन्दर। बोलो। हमारे देश में कितने राज्य हैं?
सायरा – महोदया, चौबीस।
सिल्वी – नहीं, नहीं। महाभागा! पच्चीस राज्य हैं।
अध्यापिका – कोई अन्य भी …………।
स्वरा – (बीच में ही) महोदया, मेरी बहन कहती है कि हमारे देश में अट्ठाईस राज्य हैं। इसके अतिरिक्त सात केन्द्रशासित प्रदेश भी हैं।

(ख) अध्यापिका – सम्यग्जानाति ते भगिनी। भवतु, अपि जानीथ यूयं यदेतेषु राज्येषु सप्तराज्यानाम् एकः समवायोऽस्ति यः सप्तभगिन्यः इति नाम्ना प्रथितोऽस्ति।
सर्वे – (साश्चर्यम् परस्परं पश्यन्तः) सप्तभगिन्यः? सप्तभगिन्यः?
निकोलसः – इमानि राज्यानि सप्तभगिन्यः इति किमर्थं कथ्यन्ते?
अध्यापिका – प्रयोगोऽयं प्रतीकात्मको वर्तते। कदाचित् सामाजिक-सांस्कृतिक
परिदृश्यानां साम्याद् इमानि उक्तोपाधिना प्रथितानि।
समीक्षा – कौतूहलं मे न खलु शान्तिं गच्छति, श्रावयतु तावद्यत् कानि तानि राज्यानि?

शब्दार्थ-
सम्यक्-अच्छी प्रकार।
जानाति-जानती है।
ते-तेरी।
जानीथ-जानती हो।
यदेतेषु-इनमें।
समवायः-समूह।
प्रथितः-प्रसिद्ध।
किमर्थम्-किसलिए।
प्रतीकात्मकः-सांकेतिक (Symbolic)।
कदाचित्-संभवतः (Perhaps)।
साम्याद्-समानता से।
उक्त०-कही गई उपाधि से।
कौतूहलम्-जिज्ञासा (Eager)।
श्रावयतु-सुनाओ।
साश्चर्यम्-आश्चर्य के साथ (Surprised)।
परस्परं-एक-दूसरे को।
पश्यन्तः-देखते हुए।
कथ्यन्ते-कहे जाते हैं।
परिदृश्यानाम्-वातावरणों के।
प्रथितानि-प्रसिद्ध हैं (Famous)।

सरलार्थ –

अध्यापिका –
तुम्हारी बहन अच्छी प्रकार जानती है। ठीक है, क्या तुम जानते हो कि इन राज्यों में सात राज्यों का एक समूह है, जो ‘सात बहनें’ इस नाम से प्रसिद्ध है। सभी (आश्चर्यपूर्वक एक-दूसरे को देखते हुए) सात बहनें? सात बहनें?
निकोलस – ये राज्य ‘सात बहनें’ इस नाम से किस प्रकार कहे जाते हैं?
अध्यापिका – यह प्रयोग सांकेतिक है। संभवतः सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण की समानता के कारण ये उक्त उपाधि (अर्थात् विशेषण) के द्वारा प्रसिद्ध हो गए हों।
समीक्षा – मेरी जिज्ञासा शान्त नहीं हो रही है। सुनाइए, वे कौन-से राज्य हैं?

(ग) अध्यापिका – शृणुत!
अद्वयं मत्रयं चैव न-त्रि-युक्तं तथा द्वयम्।
सप्तराज्यसमूहोऽयं भगिनीसप्तकं मतम्॥
इत्थं भगिनीसप्तके इमानि राज्यानि सन्ति-अरुणाचलप्रदेशः, असमः, मणिपुरम्, मिजोरमः, मेघालयः, नगालैण्डः, त्रिपुरा चेति। यद्यपि क्षेत्रपरिमाणैः इमानि लघूनि वर्तन्ते तथापि गुणगौरवदृष्ट्या बृहत्तराणि प्रतीयन्ते।
सर्वे – कथम्? कथम्?

अन्वयः-
अद्वयं तथा मत्रयं चैव नत्रियुक्तं द्वयम्। सप्तराज्यसमूहः अयं भगिनीसप्तकं मतम्।

शब्दार्थ-
शृणुत-सुनो।
अद्वयम्-‘अ’ से प्रारम्भ होने वाले दो।
मत्रयम्-‘म’ से प्रारम्भ होने वाले तीन।
न-त्रि-युक्तम्-‘न’ से तथा ‘त्रि’ से प्रारम्भ होने वाले।
द्वयम् – दो।
अयम्- यह।
मतम्-माना गया है।
इत्थम्-इस प्रकार।
क्षेत्रपरिमाणैः-क्षेत्रफल की दृष्टि से।
लघूनि-छोटे।
वर्तन्ते-हैं।
तथापि-फिर भी।
गुणगौरवदृष्ट्या -गुण और गौरव की दृष्टि से।
बृहत्तराणि-बड़े।
प्रतीयन्ते-प्रतीत होते हैं।

सरलार्थ –

अध्यापिका – सुनो,
‘अ’ वर्ण से प्रारम्भ होने वाले (अरुणाचल और असम) दो, ‘म’ वर्ण से प्रारम्भ होने वाले (यथा मणिपुर, मिजोरम और मेघालय) तीन, तथा ‘न’ वर्ण और ‘त्रि’ से प्रारम्भ होने वाले (यथा-नगालैण्ड और त्रिपुरा) दो-यह सात राज्यों का समूह ‘भगिनी सप्तक’ के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार ‘भगिनी सप्तक’ में ये राज्य हैं-अरुणाचलप्रदेश, असम, मणिपुर, मिजोरम, मेघालय, नगालैण्ड और त्रिपुरा। यद्यपि क्षेत्रफल की दृष्टि से ये (राज्य) छोटे हैं, फिर भी गुण और गौरव की दृष्टि से बड़े प्रतीत होते हैं।
सभी – कैसे? कैसे?

(घ) अध्यापिका – इमाः सप्तभगिन्यः स्वीये प्राचीनेतिहासे प्रायः स्वाधीनाः एव दृष्टाः। न केनापि शासकेन इमाः स्वायत्तीकृताः।
अनेक-संस्कृति-विशिष्टायां भारतभूमौ एतासां भगिनीनां संस्कृतिः महत्त्वाधायिनी इति।
तन्वी – अयं शब्दः सर्वप्रथमं कदा प्रयुक्तः?
अध्यापिका – श्रुतमधुरशब्दोऽयं सर्वप्रथमं विगतशताब्दस्य द्विसप्ततितमे वर्षे त्रिपुराराज्यस्योद्घाटनक्रमे केनापि प्रवर्तितः। अस्मिन्नेव काले एतेषां राज्यानां पुनः सचटनं विहितम्।

शब्दार्थ-
स्वीये-अपने।
दृष्टाः -दृष्टिगोचर होते हैं (Seen)
केनापि-किसी के द्वारा भी।
इमाः -ये
स्वायत्तीकृताः-अपने अधीन किए गए हैं।
एतासाम्-इनकी।
भगिनीनाम्-बहनों की।
महत्त्वाधायिनी-महत्त्वपूर्ण (Important)
कदा-कब।
श्रुतमधुर०-सुनने में मधुर।
विगतशताब्दस्य-बीते हुए सौ वर्ष के।
द्विसप्ततितमे-बहत्तरवें (Seventy Two)
उद्घाटनक्रमे-उद्घाटन के क्रम में।
अस्मिन्नेव-इसमें ही।
विहितम्-विधिपूर्वक किया गया।
स्वाधीनाः-स्वतन्त्र (Free)
भारतभूमौ-भारतभूमि पर।
प्रयुक्तः-प्रयोग हुआ (Used)
सङ्घटनं-संगठन (गठन) (Integration, Organization)
प्रवर्तितः-प्रारंभ किया गया (Started)

सरलार्थ –

अध्यापिका – ये सात बहनें अपने प्राचीन इतिहास में प्रायः स्वाधीन ही दृष्टिगोचर होती हैं। किसी भी शासक ने इन्हें अपने अधीन नहीं किया। अनेक संस्कृतियों से विशिष्ट भारतभूमि में इन बहनों की संस्कृति महत्त्वपूर्ण है।
तन्वी – सबसे पहले इस शब्द का प्रयोग कब हुआ?
अध्यापिका – सुनने में मधुर लगने वाला यह शब्द गत शती के बहत्तरवें साल में (1972 ई.) त्रिपुरा राज्य के उद्घाटन
क्रम में किसी के द्वारा प्रयोग किया गया। इस समय ही इन राज्यों का पुनः गठन किया गया।

(ङ) स्वरा – अन्यत् किमपि वैशिष्ट्यमस्ति एतेषाम्?
अध्यापिका – नूनम् अस्ति एव। पर्वत-वृक्ष-पुष्प-प्रभृतिभिः प्राकृतिकसम्पद्भिः सुसमृद्धानि
सन्ति इमानि राज्यानि।भारतवृक्षे च पुष्पस्तबकसदृशानि विराजन्ते एतानि।
राजीवः – भवति! गृहे यथा सर्वाधिका रम्या मनोरमा च भगिनी भवति तथैव
भारतगृहेऽपि सर्वाधिकाः रम्याः इमाः सप्तभगिन्यः सन्ति।

शब्दार्थ
अन्यत्-अन्य (दूसरा) (Other)
वैशिष्ट्य म्-विशिष्टता (Specification)
पुष्प०-फूल।
प्राकृतिकसम्पद्भिः-प्राकृतिक सम्पदाओं के द्वारा (Natural Wealth)
पुष्पस्तबक०-फूलों का गुच्छा (Bunch of Flower)
गृहे-घर में।
सर्वाधिका:-सबसे अधिक
तथैव-उसी प्रकार।
किमपि-कोई भी।
नूनम्-अवश्य (Sure)
प्रभृतिभिः-आदि के द्वारा।
सुसमृद्धानि-समृद्ध (Prosperous)
विराजन्ते-विराजमान हैं (Sat)
यथा-जिस प्रकार।
रम्या-रमणीय (Lovely)
सदृश-जैसे।
भारतवक्षे-भारत रूपी वृक्ष में/पर।

सरलार्थ –

स्वरा – इनकी दूसरी भी कोई विशेषता है।
अध्यापिका – अवश्य ही है। पर्वत, वृक्ष तथा पुष्प आदि प्राकृतिक सम्पदाओं के द्वारा ये राज्य समृद्ध हैं। भारत रूपी वृक्ष पर ये (राज्य) फूलों के गुच्छों के समान विराजमान हैं।
राजीव – आप! जिस प्रकार घर में बहन सबसे अधिक रमणीय और सुन्दर होती है, उसी प्रकार भारत रूपी घर में ये सात बहनें सबसे अधिक सुन्दर हैं।

(च) अध्यापिका – मनस्यागता ते इयं भावना परमकल्याणमयी परं सर्वे न तथा अवगच्छन्ति। अस्तु, अस्ति तावदेतेषां विषये किञ्चिद् वैशिष्ट्यमपि कथनीयम्। सावहित मनसा शृणुत जनजातिबहुलप्रदेशोऽयम्। गारो-खासी-नगा-मिजो-प्रभृतयः बहवः जनजातीयाः अत्र निवसन्ति। शरीरेण ऊर्जस्विनः एतत्प्रादेशिकाः बहुभाषाभिः समन्विताः, पर्वपरम्पराभिः परिपूरिताः, स्वलीलाकलाभिश्च निष्णाताः सन्ति।

मालती – महोदये! तत्र तु वंशवृक्षा अपि प्राप्यन्ते?

शब्दार्थ-
मनसि-मन में।
परम्-परन्तु।
अस्तु-ठीक है।
वैशिष्ट्यम्-विशिष्टता।
शृणुत-सुनो।
निवसन्ति-निवास करते हैं।
समन्विताः-समन्वित (युक्त)।
परम्पराभि:-परम्पराओं के द्वारा (Traditions)
निष्णाताः-कुशल (Expert)
वंशवृक्षाः -बाँस के वृक्ष (Bamboo Trees)
आगता-आ गई
अवगच्छन्ति-जानते हैं (Know)
सावहितमनसा-सावधान मन से।
बहवः-अनेक।
ऊर्जस्विनः-ऊर्जा से युक्त (Energetic)
पर्व-त्योहारों की (Festivals)
परिपूरिताः-भरे हुए (पूर्ण) (Full)
प्राप्यन्ते-प्राप्त होते हैं।
प्रभृतयः-आदि।
बहुभाषिभिः-बहुत भाषाओं से।
स्वलीलाकलाभिः-अपनी क्रिया और कलाओं से।

सरलार्थ –

अध्यापिका – तुम्हारे मन में आई हुई यह भावना परमकल्याणमयी है, परन्तु सभी ऐसा नहीं सोचते हैं। ठीक है, इनके विषय में कुछ विशेषता भी कहनी चाहिए। सावधान मन से सुनो यह जनजाति बहुल प्रदेश है। गारो, खासी, नगा तथा मिजो आदि अनेक जनजातियाँ यहाँ निवास करती हैं। शरीर से ऊर्जा से भरे हुए इन प्रदेशों के निवासी अनेक भाषाओं से युक्त त्योहारों की परम्पराओं से पूर्ण अपनी क्रियाओं और कलाओं में प्रवीण होते हैं।

मालती – महोदया! वहाँ तो बाँस के वृक्ष भी प्राप्त होते हैं?

(छ) अध्यापिका – आम्। प्रदेशेऽस्मिन् हस्तशिल्पानां बाहुल्यं वर्तते। आवस्त्राभूषणेभ्यः
गृहनिर्माणपर्यन्तं प्रायः वंशवृक्षनिर्मितानां वस्तूनाम् उपयोगः क्रियते। यतो हि अत्र वंशवृक्षाणां प्राचुर्यं विद्यते। साम्प्रतं वंशोद्योगोऽयं अन्ताराष्ट्रियख्यातिम् अवाप्तोऽस्ति।
अभिनवः – भगिनीप्रदेशोऽयं बह्वाकर्षकः इति प्रतीयते।
सलीमः – किं भ्रमणाय भगिनीप्रदेशोऽयं समीचीनः?
सर्वे छात्राः – (उच्चैः) महोदये! आगामिनि अवकाशे वयं तत्रैव गन्तुमिच्छामः।
स्वरा – भवत्यपि अस्माभिः सार्द्धं चलतु।
अध्यापिका – रोचते मेऽयं विचारः। एतानि राज्यानि तु भ्रमणार्थं स्वर्गसदृशानि इति।

शब्दार्थ-
आम्-हाँ।
आ-से लेकर।
क्रियते-किया जाता है।
प्राचुर्यम्-अधिकता (प्रचुरता) (Plenty)
अवाप्तः-प्राप्त।
प्रतीयते-प्रतीत (ज्ञात) होता है (Known)
आगामिनि-आने वाले।
इच्छामः-चाहते हैं (Want)
भ्रमणार्थम्-भ्रमण के लिए (Tour)
भवत्यपि-आप भी।
रोचते-अच्छा लगता है।
बाहुल्यं-अधिकता।
निर्मितानाम्-बनी हुई का।
यतो हि-क्योंकि।
वंशोद्योगः-बाँसों का उद्योग।
बह्वाकर्षकः-अत्यधिक आकर्षक।
समीचीन:-उचित।
गन्तुम्-जाना।
सार्धम्-साथ।
हस्तशिल्पानाम्-हाथ से बनी वस्तुओं की (Handicraft)
ख्यातिम्-प्रसिद्धि को।

सरलार्थ-

अध्यापिका – हाँ। इस प्रदेश में हस्तशिल्पों की अधिकता है। वस्त्र व आभूषणों से लेकर घरों के निर्माण तक प्रायः बाँस के वृक्षों से निर्मित वस्तुओं का उपयोग किया जाता है। क्योंकि यहाँ बाँस के वृक्षों की अधिकता है। अब यह बाँसों का उद्योग (व्यवसाय) अन्तर्राष्ट्रीय प्रसिद्धि को प्राप्त हो गया है।
अभिनव – यह भगिनीप्रदेश अत्यधिक आकर्षक ज्ञात होता है।
सलीम – क्या भ्रमण के लिए यह भगिनीप्रदेश उचित है?
सभी छात्र – (जोर से) महोदया! आने वाले अवकाश में हम वहाँ ही जाना चाहते हैं।
स्वरा – आप भी हमारे साथ चलें।
अध्यापिका – मुझे यह विचार अच्छा लगता है। ये राज्य भ्रमण के लिए स्वर्ग के समान हैं।

संसारसागरस्य नायकाः Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 8

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Class 8 Sanskrit Chapter 8 संसारसागरस्य नायकाः Summary Notes

संसारसागरस्य नायकाः Summary

अनुपम मिश्र की एक प्रसिद्ध रचना है-आज भी खरे हैं तालाब। प्रस्तुत पाठ इस रचना के ‘संसार सागर के नायक’ नामक अध्याय से संगृहीत है। यहाँ लेखक ने मानव निर्मित तालाब आदि को संसार सागर का नाम दिया है। इसमें विलुप्त हो रहे पारम्परिक ज्ञान और शिल्प के धनी गजधर के सम्बन्ध में चर्चा की गई है।पाठ का सार इस प्रकार है

संसारसागरस्य नायकाः Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 8.1

सैकड़ों हजारों तालाबों का निर्माण अपने आप नहीं हुआ है। हम उन महान् शिल्पकारों को भूल गए हैं। ये तालाब ही संसार सागर हैं। नूतन समाज ने इन कलाकारों को भुला दिया है।प्रतिदिन नई-नई विधियों का आविष्कार हो रहा है, परन्तु किसी को भी ज्ञात नहीं है कि पूर्व निर्मित इन निर्माणों की गहराई को कौन माप सकता है। आज जो अज्ञात नाम हैं, वे पहले बहुत प्रसिद्ध थे। सम्पूर्ण देश में ये कलाकार निवास करते थे।
संसारसागरस्य नायकाः Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 8.2

तालाबों को बनाने वालों के लिए ‘गजधर’ यह सम्मानसूचक शब्द था। जो गज भर माप को धारण करते थे, उन्हें ‘गजधर’ कहा जाता है। ये गजधर समाज की गहराई को भी मापते थे। इसलिए वे संसार सागर के नायक थे।

संसारसागरस्य नायकाः Word Meanings Translation in Hindi

मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः सरलार्थश्च ।

(क) के आसन् ते अज्ञातनामानः?

शतशः सहस्रशः तडागाः सहसैव शून्यात् न प्रकटीभूताः। इमे एव तडागाः अत्र संसारसागराः इति। एतेषाम् आयोजनस्य नेपथ्ये निर्मापयितृणाम् एककम्, निर्मातॄणां च दशकम् आसीत्। एतत् एककं दशकं च आहत्य शतकं सहस्रं वा रचयतः स्म। परं विगतेषु द्विशतवर्षेषु नूतनपद्धत्या समाजेन यत्किञ्चित् पठितम्। पठितेन तेन समाजेन एककं दशकं सहस्रकञ्च इत्येतानि शून्ये एव परिवर्तितानि।

शब्दार्थ-
के-कौन।
आसन्-थे।
अज्ञातनामान:-अज्ञात (अपरिचित) नाम वाले।
शतशः-सैकड़ों।
सहस्त्रशः-हजारों (Thousands)।
तडागाः-अनेक तालाब।
सहसैव-अचानक ही।
प्रकटीभूताः-प्रकट हुए।
इमे एव-ये ही।
एतेषाम्-इनका।
नेपथ्ये-पर्दे के पीछे।
निर्मापयितृणाम्-बनवाने वालों का।
एककम्-इकाई (Unit, Ones)।
निर्मातृणाम्-बनाने वालों का।
दशकम्-दहाई (Tens)
आहत्य-गुणित होकर (Multiply)।
रचयतः-रचना करते हैं (Creation)।
विगतेषु-बीते हुए (पिछले)।
द्विशतवर्षेषु-दो सौ सालों में।
नूतन०-नई विधि से।
पठितेन-पढ़े हुए के द्वारा।
शून्ये-शून्य में (Zero)
परिवर्तितानि-परिवर्तित हो गए हैं (Changed)।
शतकम्-सैकड़ा।
यत्किञ्चित्-जो कुछ।
सहस्त्रकम्-हजार।

सरलार्थ-
वे अज्ञात नाम वाले कौन थे? सैकड़ों व हजारों तालाब अचानक ही शून्य से प्रकट नहीं हुए हैं। ये तालाब ही यहाँ संसार सागर हैं। इनके आयोजन का पर्दे के पीछे बनाने वालों की इकाई और बनने वालों की दहाई थी। यह इकाई व दहाई गुणित होकर सौ तथा हजार की रचना करते थे। परन्तु बीते हुए दो सौ वर्षों में नई पद्धति के द्वारा समाज ने जो कुछ पढ़ा है। उस पठित समाज ने इकाई, दहाई और हजार को शून्य में ही बदल दिया है।

(ख) अस्य नूतनसमाजस्य मनसि इयमपि जिज्ञासा नैव उद्भूता यद् अस्मात्पूर्वम् एतावतः तडागान् के रचयन्ति स्म। एतादृशानि कार्याणि कर्तुं ज्ञानस्य यो नूतनः प्रविधिः विकसितः, तेन प्रविधिनाऽपि पूर्व सम्पादितम् एतत्कार्यं मापयितुं न केनापि प्रयतितम्। अद्य ये अज्ञातनामानः वर्तन्ते, पुरा ते बहुप्रथिताः आसन्। अशेषे हि देशे तडागाः निर्मीयन्ते स्म, निर्मातारोऽपि अशेषे देशे निवसन्ति स्म।

शब्दार्थ-
मनसि-मन में।
नैव-न ही।
उद्भूता-उत्पन्न हुई।
अस्मात्-इससे।
एतावतः-इन (को)।
के-कौन।
एतादृशानि-ऐसे (इस प्रकार के)।
कर्तुम्-करने के लिए।
प्रविधिः-विधि (Method)।
सम्पादितम्-बनाया गया।
मापयितुम्-मापने के लिए।
प्रयतितम्-प्रयत्न किया (Tried)।
बहुप्रथिताः-बहुत प्रसिद्ध (Very Famous)।
अशेषे-सम्पूर्ण (Whole)।
निर्मीयन्ते स्म-बनाए जाते थे।
नूतनसमाजस्य-नए समाज के।
इयमपि-यह भी।
जिज्ञासा-जानने की इच्छा।
केनापि-किसी ने भी।
पुरा-पहले, प्राचीन काल में।
निर्मातारः-बनाने वाले।

सरलार्थ-
इस नये समाज के मन में यह जानने की इच्छा भी नहीं उत्पन्न हुई कि इससे पहले इन तालाबों को किसने बनाया था। ऐसे कार्यों को करने के लिए ज्ञान की जो नई विधि विकसित हुई उस विधि के द्वारा भी पहले बनाए गए इस कार्य को मापने के लिए किसी ने भी प्रयास नहीं किया। आज जो अज्ञात नाम हैं, पहले वे बहुत प्रसिद्ध थे। सम्पूर्ण देश में तालाब बनाए जाते थे। उन्हें बनाने वाले भी सम्पूर्ण देश में निवास करते थे।

(ग) गजधरः इति सुन्दरः शब्दः तडागनिर्मातॄणां सादरं स्मरणार्थम्। राजस्थानस्य केषुचिद् भागेषु शब्दोऽयम् अद्यापि प्रचलति। कः गजधरः? यः गजपरिमाणं धारयति स गजधरः। गजपरिमाणम् एव मापनकार्ये उपयुज्यते। समाजे त्रिहस्त-परिमाणात्मिकीं लौहयष्टिं हस्ते गृहीत्वा चलन्तः गजधराः इदानीं शिल्पिरूपेण नैव समादृताः सन्ति। गजधरः, यः समाजस्य गाम्भीर्यं मापयेत् इत्यस्मिन् रूपे परिचितः।

शब्दार्थ-
स्मरणार्थम्-याद करने के लिए।
अद्यापि-आज भी।
परिमाणम्-माप को (Measurement)।
उपयुज्यते-उपयोग किया जाता है (Used)।
परिमाणात्मिकी-माप वाली।
गृहीत्वा-लेकर।
इदानीम् – अब।
समादृताः-आदर को प्राप्त (Honoured)।
मापयेत्-माप ले।
त्रिहस्त-तीन हाथ।
केषुचिद्-कुछ।
प्रचलति-चलता है।
धारयति-धारण करता है (Bears)।
यष्टि०-छड़ी।
चलन्तः-चलते हुए।
नैव-नहीं।
गाम्भीर्यम्-गहराई को (Depth)।
गजधरः-गज (लम्बाई, चौड़ाई, गहराई, मोटाई मापने की लोहे की छड़) को रखने वाला व्यक्ति।
तडागनिर्मातृणाम्-तालाब बनाने वालों के।
सादरं-आदर के साथ।

सरलार्थ-
‘गजधर’ यह सुन्दर शब्द तालाबों को बनाने वालों के सादर स्मरण के लिए है। राजस्थान के कुछ भागों में यह शब्द आज भी चलता है। (यह) गजधर कौन है? जो हाथी (गज = 3 फुट) के माप को धारण करता है, वह गजधर है। मापन कार्य में गज का माप ही उपयोग किया जाता है। समाज में तीन हाथ के माप वाली लोहे की छड़ी को हाथ में लेकर चलते हुए गजधर अब शिल्पी के रूप में आदर नहीं पाते हैं। जो समाज की गहराई (गंभीरता) को मापे-इसी रूप में जाने जाते हैं।

(घ) गजधराः वास्तुकाराः आसन्। कामं ग्रामीणसमाजो भवतु नागरसमाजो वा तस्य नव-निर्माणस्य सुरक्षाप्रबन्धनस्य च दायित्वं गजधराः निभालयन्ति स्म। नगरनियोजनात् लघुनिर्माणपर्यन्तं सर्वाणि कार्याणि एतेष्वेव आधृतानि आसन्। ते योजनां प्रस्तुवन्ति स्म, भाविव्ययम् आकलयन्ति स्म, उपकरणभारान् सगृह्णन्ति स्म। प्रतिदाने ते न तद् याचन्ते स्म यद् दातुं तेषां स्वामिनः असमर्थाः भवेयुः। कार्यसमाप्तौ वेतनानि अतिरिच्य गजधरेभ्यः सम्मानमपि प्रदीयते स्म। नमः एतादृशेभ्यः शिल्पिभ्यः।

शब्दार्थ –
वास्तुकाराः-भवन आदि का निर्माण करने वाले (Architects)।
कामम्-भले ही (चाहे)।
पर्यन्तम्-तक।
निभालयन्ति स्म-निभाते थे।
एतेष्वेव-इनमें ही।
सर्वाणि-सब। प्रस्तुवन्ति
स्म-प्रस्तुत करते थे।
आधृतानि-आधारित (Based)।
आकलयन्ति स्म-आकलन (अनुमान) करते
भाविव्ययम्-होने वाले खर्च को।
उपकरणभारान्-साधन सामग्री को (Means)।
सगृह्णन्ति स्म-संग्रह करते थे (Collected)
प्रतिदाने-बदले में (Obligation)
असमर्थाः-असमर्थ (Incapable)
भवेयुः-हों।
अतिरिच्य-अतिरिक्त (Extra)
प्रदीयते स्म-प्रदान किया जाता था (Given)
नमः-नमस्कार। वा-अथवा।

सरलार्थ-
गजधर भवननिर्माण करने वाले होते थे। भले ही, ग्रामीण समाज हो अथवा नगरीय समाज हो, उसके नवनिर्माण का और सुरक्षाप्रबन्धन का दायित्व गजधर निभाते थे। नगर नियोजन से लेकर छोटे निर्माणकार्य तक सभी कार्य इन पर ही आधारित थे। वे योजना को प्रस्तुत करते थे, भावी व्यय का अनुमान करते थे तथा साधन सामग्री का संग्रह करते थे। बदले में वे वह नहीं माँगते थे, जो उनके स्वामी न दे सकें। कार्य की समाप्ति पर वेतन से अतिरिक्त गजधरों को सम्मान भी प्रदान किया जाता था। ऐसे शिल्पियों को नमस्कार।

CBSE Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम्

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CBSE Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम्

अधोदत्तं प्रत्येकं चित्रम् आधृत्य संस्कृतेन पञ्चवाक्यानि लिखत-सहायतार्थं मञ्जूषायां पदानि दत्तानि-
(नीचे दिए गए प्रत्येक चित्र का वर्णन संस्कृत में पाँच वाक्यों में कीजिए। सहायता के लिए मजूषा में शब्द दिए गए हैं-)

प्रश्न 1.
Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम् Q6

मञ्जूषा- ग्रामस्य, कुटीरः, कुम्भकारः, घटम्, महिला, घटाः रचयति, भूषयति, बालिका, क्रीडति, वृक्षाः, खट्वा, चित्रे।

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2. ……………………………………………………………………………..
3. ……………………………………………………………………………..
4. ……………………………………………………………………………..
5. ……………………………………………………………………………..
उत्तरम्:
1. ग्रामस्य कुम्भकार: घट रचयति।
2. एका महिला घटान् भूषयति।
3. कुटीरस्य पुरत: एका बालिका क्रीडति।
4. पार्वे एका खट्टा अपि अस्ति।
5. चित्रे वृक्षाः अपि सन्ति।

प्रश्न 2.
Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम् Q7

मञ्जूषा-  पर्वताः, गृहाणि, पर्वतीय, सूर्यः, उदयति, ग्रामस्य, ग्रामीणाः, जनाः, सामान्याः, वृक्षाः।

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4. ……………………………………………………………………………..
5. ……………………………………………………………………………..
उत्तरम्:
1. एतत् चित्रम् एकस्य पर्वतीयस्य ग्रामस्य अस्ति ।
2. अत्र अनेके पर्वताः सन्ति ।
3. चित्रे सूर्योदयः भवति ।
4. ग्रामीणाः जनाः इतस्तत: गच्छन्ति ।
5. पर्वतेषु वातावरणम् शुद्धम् भवति ।

प्रश्न 3.
Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम् Q8

मञ्जूषा- गुरुः, शिष्याः, वृक्षाः, उपदिशति, आकर्णयन्ति, शान्तिप्रदम्, गुरुकुलः, शृण्वन्ति, शिक्षा, कुटीरः।

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5. ……………………………………………………………………………..
उत्तरम्:
1. प्रदत्तम् चित्रम् एकस्य गुरुकुलस्य वर्तते ।
2. गुरु: वृक्षस्य अधः आसनम् अधितिष्ठति ।
3. शिष्याः ध्यानेन गुरोः उपदेशं शृण्वन्ति ।
4. गुरुकुले वातावरणम् शान्तिप्रदम् भवति ।
5. चित्रे एकः कुटीरः अपि अस्ति ।

प्रश्न 4.
Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम् Q9

मञ्जूषा- मेट्रो-रेल-स्थानकम्, यात्रिकाः, आरोहति, गच्छतः, द्वे युवती, वार्ताम्, कुरुतः, चित्रे, मेट्रो-रेलयानम्, स्थितम्, यात्राम् शीघ्रम्, कार्य-स्थलम्, जनाः।

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2. ……………………………………………………………………………..
3. ……………………………………………………………………………..
4. ……………………………………………………………………………..
5. ……………………………………………………………………………..
उत्तरम्:
1. एतत्, दृश्यम् मेट्रो-रेलस्थानकस्य अस्ति।
2. चित्रे एक मेट्रो-रेलयानं स्थानके स्थितम्।
3. एकः जनः रेलयानम् आरोहति।
4. द्वे युवत्यौ वार्ता कुरुतः गच्छतः च।
5. जनाः शीघ्र स्वकार्यस्थलं गन्तुम् मेट्रोरेलयानेन यात्रां कुर्वन्ति।

प्रश्न 5.
Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम् Q10

मञ्जूषा- उल्लूकः, खगाः, वर्तकः, तरति, तीरे, भ्रमराः, पुरुषः, सरोवरे, पुष्पाणि, मत्स्याः ।।

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2. ……………………………………………………………………………..
3. ……………………………………………………………………………..
4. ……………………………………………………………………………..
5. ……………………………………………………………………………..
उत्तरम्:
1. एतच्चित्रं सरस्तीरस्य वर्तते ।
2. चित्रे एक: वर्तक: जले प्रसन्नतया तरति ।
3. वृक्षस्य उपरि एक: उल्लूक: तिष्ठति ।
4. जले अनेके मत्स्याः सन्ति ।
5. एक: बक: मत्स्यं खादति ।

प्रश्न 6.
Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम् Q11

मञ्जूषा- बालाः, वयस्काः, महिलाः, राग-रङ्गाणाम्, उत्सवः, होली, प्रसन्नाः, लिम्पन्ति, रङ्गान्, रञ्जित-जलं, प्रक्षिपन्ति, अन्योन्यस्य, उपरि, पात्रे, हास-परिहासः, मुखे, आनन्दम्, अनुभवन्ति।

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2. ……………………………………………………………………………..
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5. ……………………………………………………………………………..
उत्तरम्:
1. होली राग-रङ्गाणाम् उत्सवः अस्ति।
2. चित्रे बालाः वयस्काः महिलाः च प्रसन्नाः सन्ति।
3. बाला: बालिकाः च रञ्जित-जलं अन्योन्यस्य उपरि प्रक्षिपन्ति।
4. जनाः अन्योन्यस्य मुखे रङ्गान् लिम्पन्ति।
5. ते परस्परं हास-परिहासम् कुर्वन्ति आनन्दम् च अनुभवन्ति।

प्रश्न: 7.
चित्रं पश्यत। मञ्जूषायां प्रदत्तानां शब्दानां सहायतया चित्रवर्णनं कुरुत। पञ्च वाक्यानि रचयत।
Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम् Q1
Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम् Q1.1
उत्तरम्
1. चित्रे पञ्च जनाः सन्ति।
2. तेषु त्रयः बालकाः सन्ति।
3. तेषु द्वे बालिके स्तः।
4. सर्वे वन्दनां कुर्वन्ति।
5. सर्वे पंक्तिबद्धाः तिष्ठन्ति।

प्रश्न: 8.
चित्रं पश्यत। मञ्जूषायां प्रदत्तानां शब्दानां सहायतया चित्रवर्णनं कुरुत। पञ्च वाक्यानि रचयत।
Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम् Q2
Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम् Q2.1
उत्तरम्
1. चित्रे एका खट्वा वर्तते।
2. खट्वायाम् एकः बालकः स्वपिति।
3. तस्य उपरि घटः वर्तते।
4. घटः सक्तूभिः पूर्णः अस्ति।
5. बालकः चरण प्रहारं करोति, घटः अधः पतति।

प्रश्नः 9.
चित्रं पश्यत। मञ्जूषायां प्रदत्तानां शब्दानां सहायतया चित्रवर्णनं कुरुत। पञ्च वाक्यानि रचयत।
Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम् Q3
Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम् Q3.1
उत्तरम्
1. चित्रे एकम् रथम् अस्ति।
2. रथे श्रीकृष्णः सारथिः अस्ति।
3. अर्जुनः रथस्य पश्चभागे उपविशति।
4. श्रीकृष्णः अर्जुनम् उपदिशति।
5. करबद्धः अर्जुनः शृणोति।

प्रश्न: 10.
चित्रं पश्यत। मञ्जूषायां प्रदत्तानां शब्दानां सहायतया चित्रवर्णनं कुरुत। पञ्च वाक्यानि रचयत।
Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम् Q4
Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम् Q4.1
उत्तरम्
1. चित्रे एका नदी अस्ति।
2. नदीतटे एकः धीवरः अस्ति।
3. धीवरस्य हस्ते जालम् अस्ति।
4. जाले मत्स्याः सन्ति।
5. धीवरः मत्स्यान् घटे क्षिपति।

प्रश्नः 11.
चित्रं पश्यत। मञ्जूषायां प्रदत्तानां शब्दानां सहायतया चित्रवर्णनं कुरुत। पञ्च वाक्यानि रचयत।
Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम् Q5
Class 8 Sanskrit रचना चित्राधारित-वर्णनम् Q5.1
उत्तरम्
1. चित्रे पुष्पितम् उद्यानं वर्तते।
2. वृक्षस्य पश्चात् चन्द्रशेखरः तिष्ठति।
3. तस्य अग्रे सैनिकाः सन्ति।
4. सैनिकानां हस्तेषु आयुधानि सन्ति।
5. चन्द्रशेखरः सैनिकानाम् उपरि गोलिकाभिः वर्षणं कृत्वा स्वरक्षां करोति।

सदैव पुरतो निधेहि चरणम् Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 4

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Class 8 Sanskrit Chapter 4 सदैव पुरतो निधेहि चरणम् Summary Notes

सदैव पुरतो निधेहि चरणम् Summary

यह गीत श्रीधर भास्कर वर्णेकर के द्वारा विरचित है। इस गीत में मनुष्य को आगे बढ़ने की प्रेरणा दी गई है। इस गीत के रचयिता श्री वर्णेकर एक राष्ट्रवादी कवि हैं और इस गीत के द्वारा उन्होंने जागरण तथा कर्मठता का संदेश दिया है। इस गीत में ‘पज्झटिका’ छन्द का प्रयोग है, जिसके प्रत्येक चरण में 16 मात्राएँ होती हैं। हिंदी में इसे चौपाई कहा जाता है। कविता का सार इस प्रकार है अरे मनुष्य! तू आगे बढ़ता चल।

तुम्हारे मार्ग में जो चुनौतियाँ हैं, उन्हें पार करता हुआ चलता जा। तुम सदा ही आगे बढ़ते रहो। – चाहे तुम्हारा निवास पर्वत के शिखर पर है, चाहे तुम्हारे मार्ग में काँटे भरे पड़े हैं, परन्तु तुम आगे बढ़ते रहो। तुम बिना साधन पर्वत को भी पार कर जाओ। तुम्हारा बल ही तुम्हारा साधन है।

तुम्हारे मार्ग में तीक्ष्ण पत्थर होंगे। चाहे तुम्हें हिंसक पशु चारों ओर से घेर लें, परन्तु सभी विघ्न बाधाओं को पार करते हुए तुम्हें आगे बढ़ते जाना है। हे मनुष्य, तुम भय का त्याग कर दो और शक्ति का सेवन करो। तुम अपने राष्ट्र से प्रेम करो। अपने ध्येय के विषय में निरन्तर चिन्तन करते रहो। तुम अपने मार्ग पर आगे बढ़ते चलो।

सदैव पुरतो निधेहि चरणम्  Word Meanings Translation in Hindi

मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः सरलार्थश्च

(क) चल चल पुरतो निधेहि चरणम्।
सदैव पुरतो निधेहि चरणम्॥
गिरिशिखरे ननु निजनिकेतनम्।
विनैव यानं नगारोहणम्॥
बलं स्वकीयं भवति साधनम्।
सदैव पुरतो …………॥

अन्वयः-
चल, चल । पुरतः चरणं निधेहि। सदैव पुरतः चरणम् निधेहि। ननु निजनिकेतनं गिरिशिखरे (अस्ति)। (अत:) यानं विना एव नगारोहणं (कुरु)। स्वकीयं बलं साधनं भवति। सदैव पुरतः चरणम् निधेहि।

शब्दार्थ-
चल-चलो।
निधेहि-रखो।
ननु-निश्चय से (Surely)
पुरतः-आगे।
गिरिशिखरे-पर्वत की चोटी पर।
चरणम्-कदम, पग।
निकेतनम्-घर।
यानम्-सवारी।
स्वकीयम्-अपना।
साधनम्-माध्यम।
निज०-अपना।
विनैव-बिना ही।
नगारोहणम्-पर्वत पर चढ़ना।
सदैव-हमेशा ही।
बलम्-शक्ति (ताकत) (Power)।

सरलार्थ-
चलो, चलो। आगे चरण रखो। सदा ही आगे कदम रखो। निश्चय ही अपना घर पर्वत की चोटी पर है। अतः सवारी के बिना ही पर्वत पर चढ़ना है। अपना बल ही साधन होता है। इसलिए सदा कदम आगे बढ़ाओ।

(ख) पथि पाषाणाः विषमाः प्रखराः।
हिंस्राः पशवः परितो घोराः॥
सुदुष्करं खलु यद्यपि गमनम्।
सदैव पुरतो ……………॥

अन्वयः-
पथि विषमाः प्रखराः (च) पाषाणाः (विद्यन्ते)। परितः घोराः हिंस्राः पशवः (सन्ति) । यद्यपि गमनं खलु सुदुष्करम् (अस्ति, तथापि) सदैव पुरतः चरणं निधेहि।

शब्दार्थ-
पथि-मार्ग में।
विषमाः-विषम।
हिंस्त्राः-हिंसक (Wild)
घोराः- भयानक
गमनम्-गमन (Walk)
सुदुष्करम्-अत्यधिक कठिनाई से सिद्ध होने वाला।
पाषाणाः-पत्थर।
प्रखराः-तीक्ष्ण (नुकीले) (Sharp)
परितः-चारों ओर।
खलु-निश्चय ही।
यद्यपि-हालांकि।

सरलार्थ-
मार्ग में विचित्र से ऊबड़-खाबड़ तथा नुकीले पत्थर हैं। चारों ओर भयंकर व हिंसक पशु हैं। यद्यपि वहाँ जाना निश्चय ही अत्यंत कठिन है, (फिर भी) सदा कदम आगे बढ़ाओ।

(ग) जहीहि भीतिं भज-भज शक्तिम्।
विधेहि राष्ट्रे तथाऽनुरक्तिम्॥
कुरु कुरु सततं ध्येय-स्मरणम्।
सदैव पुरतो ………….||

अन्वयः-
भीतिं जहीहि । शक्तिं भज, भज। तथा राष्ट्रे अनुरक्तिं विधेहि। ध्येय-स्मरणं सततं कुरु, कुरु। सदैव पुरतः चरणं निधेहि।

शब्दार्थ-
जहीहि-त्याग करो (छोड़ दो)।
भज-जपो (Utter)
अनुरक्तिम्-प्रेम।
ध्येय-लक्ष्य, उद्देश्य।
भीतिम्-डर को।
विधेहि-करो।
सततम्-निरन्तर।

सरलार्थ-
डर का त्याग करो। शक्ति का सेवन करो। उसी प्रकार राष्ट्र से प्रेम करो और निरन्तर अपने लक्ष्य का स्मरण करो। सदा कदम आगे बढ़ाओ।

डिजीभारतम् Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 3

By going through these CBSE Class 8 Sanskrit Notes Chapter 3 डिजीभारतम् Summary, Notes, word meanings, translation in Hindi, students can recall all the concepts quickly.

Class 8 Sanskrit Chapter 3 डिजीभारतम् Summary Notes

डिजीभारतम् Summary

इन्टरनेट के माध्यम से किसी भी विषय की जानकारी सरलता से प्राप्त की जा सकती है। केवल एक प्रयास के द्वारा ज्ञान के विभिन्न आयामों को स्पर्श किया जा सकता है। इन्टरनेट ज्ञान का वह सागर है, जिसमें सूक्ष्मातिसूक्ष्म जीवों से लेकर मानव जैसे अतिविकसित प्राणियों तक का ज्ञान सहज प्राप्त किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त राजनीति, व्यापार, चिकित्साशास्त्र, रसायनशास्त्र, लोक व लोकेतर संसार का ज्ञान आदि के विषय में वैज्ञानिक चरमोत्कर्ष तककी सूचना प्राप्त की जा सकती है।
डिजीभारतम् Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 3.1

प्रस्तुत पाठ ‘डिजिटल इण्डिया’ के मूलभाव को लेकर लिखा गया निबन्ध है। इस पाठ के माध्यम से वैज्ञानिक प्रगति के अनेकों आयामों को स्पर्श किया गया है। आज इन्टरनेट ने हमारे जीवन को अत्यधिक सुगम बना दिया है।
डिजीभारतम् Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 3.2

भौगोलिक दूरियाँ घट गई हैं तथा दूरस्थ व्यक्ति अपने मित्र अथवा सम्बन्धी के पास तुरंत आ सकता है। इन्टरनेट एक ऐसा मञ्च है, जहाँ हम संसार के किसी भी कोने में स्थित स्नेही से किसी भी विषय में विचार विमर्श कर सकते हैं। इसी प्रकार के भावों को प्रस्तुत पाठ में व्यक्त किया गया है।
डिजीभारतम् Summary Notes Class 8 Sanskrit Chapter 3.3

डिजीभारतम् Word Meanings Translation in Hindi

मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः, सरलार्थश्च ।

क अद्य संपूर्णविश्वे “डिजिटलइण्डिया” इत्यस्य चर्चा श्रूयते। अस्य पदस्य कः भावः इति मनसि जिज्ञासा उत्पद्यते। कालपरिवर्तनेन सह मानवस्य आवश्यकताऽपि परिवर्तते। प्राचीनकाले ज्ञानस्य आदन-प्रदानं मौखिकम् आसीत्, विद्या च श्रुतिपरम्परया गृह्यते स्म। अनन्तरं तालपत्रोपरि भोजपत्रोपरि च लेखनकार्यम् आरब्धम्। परवर्तिनि काले कर्गदस्य लेखन्याः च आविष्कारेण सर्वेषामेव मनोगतानां भावानां कर्गदोपरि लेखनं प्रारब्धम्। टंकणयंत्रस्य आविष्कारेण तु लिखिता सामग्री टंकिता सती बहुकालाय सुरक्षिता अतिष्ठत्।

शब्दार्थ-
अद्य-आज। (Today)
श्रूयते-सुनी जाती है।
जिज्ञासा-जानने की इच्छा।
सह-साथ।
मौखिकम्-मुख द्वारा। (Verbal)
अनन्तरं-बाद में।
विश्वे-संसार में।
पदस्य-शब्द का।
उत्पद्यते-उत्पन्न होती है।
परिवर्तते-परिवर्तित होता है।
श्रुति-श्रवण।
आरब्धम्-आरम्भ हुआ।
परिवर्तिनि-परिवर्तन का।
सर्वेषाम्-सभी का।
कर्गदस्य-कागज का।
टंकण-छपाई।
प्रारब्धम्-प्रारम्भ हुआ।
बहुकालाय-बहुत समय तक।

सरलार्थ-
आज सारे संसार में ‘डिजिटल इण्डिया’ की चर्चा सुनी जाती है। ‘इस शब्द का भाव क्या है’-ऐसी जानने की इच्छा उत्पन्न होती है। काल के परिवर्तन के साथ मानव की आवश्यकता भी परिवर्तित होती है। पुराने समय में ज्ञान का आदान-प्रदान वाणी के द्वारा होता था तथा विद्या श्रवण परम्परा से गृहीत की जाती थी। तत्पश्चात् तालपत्र के ऊपर तथा भोजपत्र पर लेखन कार्य आरम्भ हुआ। परिवर्तन के काल में कागज का तथा लेखनी के आविष्कार से सभी के मन में स्थित भावों का कागज के ऊपर लेखन प्रारम्भ हुआ। छपाई के यन्त्र के आविष्कार के द्वारा लिखित सामग्री छापी जाकर बहुत समय तक सुरक्षित हो गई।

(ख) वैज्ञानिकप्रविधेः प्रगतियात्रा पुनरपि अग्रे गता। अद्य सर्वाणि कार्याणि संगणकनामकेन यन्त्रेण साधितानि भवन्ति। समाचार-पत्राणि, पुस्तकानि च कम्प्यूटरमाध्यमेन पठ्यन्ते लिख्यन्ते च। कर्गदोद्योगे वृक्षाणाम् उपयोगेन वृक्षाः कर्त्यन्ते स्म, परम् संगणकस्य अधिकाधिक-प्रयोगेण वृक्षाणां कर्तने न्यूनता भविष्यति इति विश्वासः। अनेन पर्यावरणसुरक्षायाः दिशि महान् उपकारो भविष्यति।

शब्दार्थ-
पुनरपि-फिर भी।
अग्रे-आगे।
संगणक-कम्प्यूटर।
लिख्यन्ते-लिखे जाते हैं।
दिशि-दिशा में।
प्रविधिः-तकनीक।
साधितानि-सिद्ध।
पठ्यन्ते-पढ़े जाते हैं।
कर्त्यन्ते-काटे जाते हैं।

सरलार्थ-वैज्ञानिक तकनीक विधि की प्रगतियात्रा पुनः आगे चलती रही। आज सभी कार्य कम्प्यूटर नामक यन्त्र के द्वारा सिद्ध होते हैं। समाचारपत्र तथा पुस्तकें कम्प्यूटर के माध्यम से पढ़ी जाती हैं तथा लिखी जाती हैं। कागज के उद्योग में वृक्षों का उपयोग होने से वृक्ष काटे जाते थे, परन्तु कम्प्यूटर के अधिकाधिक प्रयोग से वृक्षों के काटने में कमी होगी-यह विश्वास है। इससे पर्यावरण की सुरक्षा की दिशा में महान् उपकार होगा।

(ग) अधुना आपणे वस्तुक्रयार्थम् रूप्यकाणाम् अनिवार्यता नास्ति। “डेबिट कार्ड”, “क्रेडिट कार्ड” इत्यादि सर्वत्र रूप्यकाणां स्थानं गृहीतवन्तौ। वित्तकोशस्य (बैंकस्य) चापि सर्वाणि कार्याणि संगणकयंत्रेण सम्पाद्यन्ते। बहुविधाः अनुप्रयोगाः (APP) मुद्राहीनाय विनिमयाय (Cashless Transaction) सहायकाः सन्ति।

शब्दार्थ-
अधुना-अब।
क्रयार्थम्-खरीदने के लिए।
रूप्यकाणाम्-रुपयों का। (of Rupees)
सम्पाद्यन्ते-सम्पन्न किए जाते हैं।
सन्ति-हैं।
आपणे-बाजार में।
नास्ति-नहीं है।
वित्तकोशस्य-बैंक का।
बहुविधा:-अनेक प्रकार का।

सरलार्थ: अब बाजार में वस्तुओं को खरीदने के लिए रुपयों की अनिवार्यता नहीं है। डेबिट कार्ड तथा क्रेडिट कार्ड इत्यादि ने सभी स्थानों पर रुपयों का स्थान ले लिया है। बैंक के सभी कार्य कम्प्यूटर यन्त्र के द्वारा सम्पन्न किए जाते हैं। अनेक प्रकार के अनुप्रयोग मुद्रारहित लेन-देन के लिए सहायक हैं।

(घ) कुत्रापि यात्रा करणीया भवेत् रेलयानयात्रापत्रस्य, वायुयानयात्रापत्रस्य अनिवार्यता अद्य नास्ति। सर्वाणि पत्राणि अस्माकं चलदूरभाषयन्त्रे ‘ई-मेल’ इति स्थाने सुरक्षितानि भवन्ति यानि सन्दर्घ्य वयं सौकर्येण यात्रायाः आनन्दं गृह्णीमः। चिकित्सालयेऽपि उपचारार्थ रूप्यकाणाम् आवश्यकताद्य नानुभूयते। सर्वत्र कार्डमाध्यमेन, ई-बैंकमाध्यमेन शुल्कम् प्रदातुं शक्यते।

शब्दार्थ-
कुत्रापि-कहीं भी।
अद्य-आज।
चलदूरभाषयन्त्रे-मोबाइल फोन।
सौकर्येण-सुगमता से।
उपचारार्थम्-इलाज के लिए।
शुल्कम्-फीस।
रेलयानयात्रापत्रस्य-रेल टिकट का।
सन्दर्य-दिखलाकर।
चिकित्सालयः-अस्पताल।
अनुभूयते-अनुभव किया जाता है।
प्रदातुम्-देने के लिए।

सरलार्थ-
कहीं भी यात्रा करनी हो, रेल टिकट तथा हवाई जहाज टिकट की आज अनिवार्यता नहीं है। सभी पत्र हमारे मोबाइल फोन में ‘ई-मेल’ स्थान पर सुरक्षित होते हैं, जिन्हें दिखलाकर हम सुगमता से यात्रा के आनन्द को ग्रहण करते हैं। अस्पताल में भी इलाज के लिए रुपयों की आवश्यकता अनुभव नहीं की जाती है। सभी स्थानों पर कार्ड के माध्यम से तथा ई-बैंक के माध्यम से फीस दी जा सकती है।

तद्दिनं नातिदूरम् यदा वयम् हस्ते एकमात्रं चलदूरभाषयन्त्रमादाय सर्वाणि कार्याणि साधयितुं समर्थाः भविष्यामः। वस्त्रपुटके रूप्यकाणाम् आवश्यकता न भविष्यति। ‘पासबुक’ ‘चैकबुक’ इत्यनयोः आवश्यकता न भविष्यति। पठनार्थ पुस्तकानां समाचारपत्राणाम् अनिवार्यता समाप्तप्राया भविष्यति। लेखनार्थम् अभ्यासपुस्तिकायाः कर्गदस्य वा, नूतनज्ञानान्वेषणार्थम् शब्दकोशस्याऽपि आवश्यकतापि न भविष्यति।

अपरिचित-मार्गस्य ज्ञानार्थम् मार्गदर्शकस्य मानचित्रस्य आवश्यकतायाः अनुभूतिः अपि न भविष्यति। एतत् सर्व एकेनेव यन्त्रेण कर्तुं, शक्यते। शाकादिक्रयार्थम्, फलक्रयार्थम्, विश्रामगृहेषु कक्षं सुनिश्चितं कर्तुम् चिकित्सालये शुल्कं प्रदातुम् विद्यालये महाविद्यालये चापि शुल्कं प्रदातुम्, किं बहुना दानमपि दातुम् चलदूरभाषयन्त्रमेव अलम्। डिजीभारतम् इति अस्यां दिशि वयं भारतीयाः द्रुतगत्या अग्रेसरामः।

शब्दार्थ-
नातिदूरम्-निकट।
वस्त्रपुटके-जेब में।
अन्वेषणार्थम्-खोजने के लिए।
अग्रेसरामः-आगे बढ़ते हैं।
आदाय-लेकर।
समाप्तप्राया-लगभग समाप्त।
शाकादि-शब्जी आदि।
द्रुतगत्या-तीव्र गति से।

सरलार्थ-
वह दिन दूर नहीं है, जब हम हाथ में एकमात्र मोबाइलफोन लेकर सभी कार्य सिद्ध करने में समर्थ होंगे। जेब में रुपयों की आवश्यकता नहीं होगी। पासबुक तथा चैकबुक-इनकी आवश्यकता नहीं होगी। पढ़ने के लिए पुस्तकों की तथा समाचारपत्रों की अनिवार्यता लगभग समाप्त हो जाएगी। लिखने के लिए अभ्यासपुस्तिका की अथवा कागज की, नवीन ज्ञान के खोजने के लिए डिक्शनरी की भी आवश्यकता नहीं होगी।

अनजान मार्ग के ज्ञान के लिए मार्गदर्शक मैप की आवश्यकता की अनुभूति भी नहीं होगी। यह सब एक ही यन्त्र के द्वारा किया जा सकता है। सब्जी आदि खरीदने के लिए, फल खरीदने के लिए, विश्रामगृह में कमरा सुनिश्चित करने के लिए, अस्पताल में फीस देने के लिए तथा स्कूल या कालेज में भी फीस देने के लिए, अधिक क्या कहें, दान देने के लिए भी मोबाइल फोन ही पर्याप्त है। ‘डिजिटलभारत’ इस दिशा में हम भारतीय तीव्रगति से आगे बढ़ रहे हैं।

Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions अव्यय-प्रकरणम्

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Sanskrit Vyakaran Class 8 Solutions अव्यय-प्रकरणम्

पाठ्यक्रम में निम्न अव्यय पदों का समावेश है-
1. अलम्
2. अन्तः
3. बहिः
4. अधः
5. उपरि
6. उच्चैः
7. नीचैः
8. कदापि
9. पुनः।

इनके अतिरिक्त पाठों में न, च, यदा, कदा, कुत्र, अपि, एव, तथा, हि, किम्, अद्य, ह्यः, श्वः यदि, तथैव, सह, उभयतः, परितः, सर्वतः, नमः आदि का भी प्रयोग हो सकता है। अतः इन सभी अव्ययों का संक्षेप में ज्ञान अत्यावश्यक है। प्रश्नवाचक अव्ययों में कदा, कुत्र, क्व, किम्, का प्रयोग होता है। उपपद विभक्तियों में उभयतः, परितः, उपरि, अधः, सर्वतः, नमः, सह आदि का प्रयोग पहले भी दिखाया जा चुका है। चतुर्थी में स्वस्ति, स्वाहा का भी उपयोग होता है। ये प्रत्यय छठी कक्षा के व्याकरण भाग में आप पढ़ चुके हैं-यत्र, तत्र, कुत्र, अत्र, सर्वत्र, अन्यत्र, यदा, तदा, एकदा, सदा, सर्वदा, च अपि, अद्य, श्वः, ह्यः, प्रातः, सायम्, अहर्निशम्, अधुना एवं कुल।

1. अलम् – निषेध तथा पर्याप्त दो अर्थों में प्रयुक्त होता है।
(क) निषेध अर्थ में तृतीया तथा पर्याप्त अर्थ में चतुर्थी का प्रयोग होता है। शोर मत करो। झगड़ा मत करो। हँसो मत। क्रोध मत करो। इत्यादि वाक्यों में अलम् का प्रयोग तृतीया विभक्ति के साथ होता है यथा अलं कोलाहलेन। अलं विवादेन। अलं हसितेन। अलं क्रोधेन।
(ख) ‘पर्याप्त’ अर्थ में यह पहलवान उस पहलवान के लिए पर्याप्त है-मल्लः मल्लाय अलम्। दूध पीने के लिए पर्याप्त है-दुग्धं पानाय अलम्। अथवा अलं पातुं दुग्धम्।

2. अन्तः / बहिः – अन्दर तथा बाहर के लिए क्रमशः अन्तः तथा बहिः अव्ययों का प्रयोग होता है। अन्त के योग में षष्ठी तथा बहिः के योग में पञ्चमी होती है।
(i) सः गृहस्य अन्तः प्रविशति।
(ii) सः गृहात् बहिः गच्छति।
(iii) देवदत्तः भवनस्य अन्तः विद्यते।
(iv) नटः रंगमञ्चात् बहिः निष्क्रामति।

3. उपरि / अधः – इसी तरह ऊपर तथा नीचे अर्थों को बताने के लिए उपरि तथा अधः का प्रयोग होता है। इनमें षष्ठी विभक्ति का प्रयोग होता है। वृक्ष के ऊपर पक्षी बैठा है। वृक्ष के नीचे पक्षी बैठा है।
(i) वृक्षस्य उपरि खगः तिष्ठति।
(ii) वृक्षस्य अधः खगः तिष्ठति।

4. उच्चैः / नीचैः – ऊँचा और नीचा बताने के लिए क्रमशः उच्चैः, नीचैः शब्दों का प्रयोग होता है।
(i) वह ऊँचा बोलता है। सः उच्चैः वदति।
(ii) पानी नीचे बहता है। जलम् नीचैः वहति। इत्यादि।

5. कदापि / पुनः – कदापि का अर्थ है कभी-कभी। इसके विपरीत पुनः का अर्थ है बार-बार। वह मेरे घर कभी नहीं आता। वह मेरे घर बार-बार आता है।
(i) सः कदापि मम गृहं न आगच्छति।
(ii) सः पुनः पुनः मम गृहम् आयाति।
उसने एक गीत गाया। पुनः दूसरा गीत गाया।
सः एकं गीतम् अगायत्, पुनः अपरं गीतम् अगायत्।
उसने कभी झूठ नहीं बोला।
सः कदापि असत्यं न अवदत्।

अधोलिखित वाक्यों में मञ्जूषा से उचित पद चुनकर रिक्त स्थानों में भरो-
Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions अव्यय-प्रकरणम्
(i) नीचैः गच्छति __________ च दशा चक्रनेमिक्रमेणे।
(ii) वायुना पत्राणि __________ पतन्ति।
(iii) गीतम् __________ गायत।
(iv) एकवारं __________ कथां कथय।
(v) __________ रोदनेन।
(vi) मम पुत्रः एकाकी शास्त्रार्थे सर्वेभ्यः __________
(vii) __________ व्यथा अतीव कष्टकरी भवति।
(viii) त्वं __________ गत्वा पश्य।
(ix) सः __________ न आयास्यति।
(x) गृहात् __________ मा गच्छ।

कालबोधक अव्यय होते हैं-
यदा = जब।
एकदा = एक बार।
अद्य = आज।
श्व = कल (आने वाला)
तदा = तब।
सदा = सदा।
सम्प्रति = अब।
ह्यः = कल (बीता हुआ)
कदा = कब।
सर्वदा = सदा।
सदा = नित्य।
प्रातः = सुबह।
सायम् = शाम।
अहर्निशम् = दिनरात।

कुछ स्थानबोधक अव्यय होते हैं, जैसे-
अत्र = यहाँ।
कुतः = कहाँ से।
अन्यत्र = दूसरी जगह।
यत्र = जहाँ।
तत्र = वहाँ।
इह = इस लोक में।
कुत्र = कहाँ।
अमुत्र, परत्र = पर लोक में

कुछ विस्मयादिबोधक अव्यय होते हैं, जैसे- हे, अहो, अहा इत्यादि। कुछ मिश्रित अव्यय होते हैं, जैसे-
एव = ही
नाना = अनेकविध
इव = के समान
समीपम् = पास
किम् = क्या
दूरम् = दूर
अपि = भी
अतीव = अत्यधिक
किमपि = कुछ
उच्चैः = ऊँचे, ऊपर
किंञ्चित् = कुछ
नीचैः = नीचे
शीघ्रम् = जल्दी
उपरि = ऊपर
वामतः = बाईं तरफ
अधः = नीचे
बहुधा = बहुत बार
अतः = इसलिए
वारम्वारम् = बार-बार
अपरम् = और
भृशम् = अधिक
परम् = और
अथ = आरम्भबोधक
परन्तु = किन्तु
न = नहीं
विना = बिना
इत्थम् = इस प्रकार
इति = समाप्तिबोधक
इतः = यहाँ से
ततः = उस के बाद

पाठ्यक्रम के अनुसार अधोलिखित अव्यय ही निर्धारित हैं।
1. अलम् (समाप्ति अर्थ में) – अलं कोलाहलेन।
समर्थ अर्थ में – मल्लः मल्लाय अलम्।
2. अन्तः (अन्दर) – रामः गृहस्य अन्तः अस्ति।
3. बहिः (बाहर) – रामः गृहात् बहिः अगच्छत्।
4. अधः (नीचे) – शिशुः खट्वायाः अधः तिष्ठति।
5. उपरि (ऊपर) – कमला छदस्य उपरि तिष्ठति।
6. उच्चैः (ऊँचे स्वर में) – सः कक्षायाम् उच्चैः वदति।
7. नीचैः (नीचे) – जलं नीचैः वहति।
8. कदापि (कभी) – त्वं कदापि मम गृहं न आगच्छः।

अव्ययों का वाक्यों में प्रयोग
1. वह नहीं आया। = सः न आगतः।
2. क्या वह हँसता है? = किं सः हसति?\
3. यहाँ आओ। = अत्र आगच्छ।
4. यहाँ कुशल है। = अत्र कुशलम्।
5. वहाँ (कुशल) होवे। = तत्र (कुशलम्) अस्तु।
6. अधिक न बोलो। = अधिकं न वद।
7. वह झूठ बोलता है। = सः मृषा वदति।
8. वह कुछ बोला। सः किञ्चित अवदत्।
9. ऐसा ही है। = इदम् एव अस्ति।
10. शीघ्र आओ। = शीघ्रम् आगच्छ।
11. यह भी सत्य है। इदम् अपि सत्यम् अस्ति।
12. सदा सत्य बोलो। = सदा सत्यं वद।
13. क्रोध न करो। = क्रोधं मा कुरु।
14. आज सोमवार है। = अद्य सोमवारः अस्ति।
15. कल क्या था? = ह्यः किम् आसीत्?
16. कल क्या होगा? = श्वः किं भविष्यति?

बहुविकल्पीय प्रश्नाः

निम्नलिखितेषु वाक्येषु उचित अव्ययपदैः रिक्तपूर्तिः क्रियन्ताम्-

प्रश्न 1.
पिपीलिकाः __________ चलति।
(क) शनैः शनैः
(ख) वृथा
(ग) विना
(घ) उच्चैः
उत्तराणि:
(क) शनैः शनैः

प्रश्न 2.
__________ कोलाहलेन।
(क) बहिः
(ख) अलम्
(ग) कदापि
(घ) पुनः
उत्तराणि:
(ख) अलम्

प्रश्न 3.
कक्षायाः __________ मा गच्छ।
(क) उच्चैः
(ख) विना
(ग) बहिः
(घ) पुनः
उत्तराणि:
(ग) बहिः

प्रश्न 4.
विद्यालयस्य __________ क्रीडाक्षेत्रं अपि विद्यते।
(क) बहिः
(ख) अलम्
(ग) पुनः
(घ) अन्तः
उत्तराणि:
(घ) अन्तः

प्रश्न 5.
वृक्षस्य __________ सिंह: गर्जति।
(क) उपरि
(ख) अधः
(ग) अलम्
(घ) बहिः
उत्तराणि:
(ख) अधः

प्रश्न 6.
गृहे शिशुः __________ क्रन्दति।
(क) बहिः
(ख) अलम्
(ग) उच्चैः
(घ) पुनः
उत्तराणि:
(ग) उच्चैः

प्रश्न 7.
असत्यं __________ न ब्रूयात्।
(क) अलम्
(ख) पुनः
(ग) उच्चैः
(घ) कदापि
उत्तराणि:
(घ) कदापि

प्रश्न 8.
अयं संसारः __________ जायते विलीयते च।
(क) पुनः पुनः
(ख) अलम्
(ग) कदापि
(घ) बहिः
उत्तराणि:
(क) पुनः पुनः

प्रश्न 9.
नगरात् __________ गहनं वनं अस्ति।
(क) पुनः
(ख) बहिः
(ग) उच्चैः
(घ) नीचैः
उत्तराणि:
(ख) बहिः

प्रश्न 10.
__________ विवादेन।
(क) अधः
(ख) उच्चैः
(ग) अलम्
(घ) नीचैः
उत्तराणि:
(ग) अलम्

Class 8 Sanskrit Grammar Book Solutions सन्धि-प्रकरणम्

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Sanskrit Vyakaran Class 8 Solutions सन्धि-प्रकरणम्

सन्धि – अत्यन्त समीपवर्ती दो वर्गों के मेल से जो परिवर्तन अथवा विकार आता है, उसे सन्धि कहते हैं (परः सन्निकर्षः संहिता) हिमालयः = हिम + आलयः। इस उदाहरण में अ + आ इन वर्गों का मेल होकर आ रूप बना। इसे ही सन्धि कहते हैं।

सन्धि तीन प्रकार की है-स्वर सन्धि, व्यंजन सन्धि और विसर्ग सन्धि।

स्वर सन्धि-एक स्वर के साथ दूसरे स्वर के मेल से जो परिवर्तन होता है उसे स्वर सन्धि कहते हैं। स्वर सन्धि के मुख्य भेद निम्नलिखित हैं-

1. दीर्घसन्धिः
दीर्घसन्धि के अनेक प्रकार होते हैं-
प्रथम-प्रकार: – पूर्वपद के अन्त के ‘अ’ के साथ उत्तरपद के आरम्भ के ‘अ’ का मेल होने पर दोनों के स्थान पर ‘आ’ हो जाता है-
उदाहरणानि-

  • राम + अयनम् = रामायणम्
  • शब्द + अर्थौ = शब्दार्थों
  • नर + अधमः = नराधमः
  • पुरुष + अर्थः = पुरुषार्थः
  • कृष्ण + अर्जुनौ = कृष्णार्जुनौ

द्वितीय-प्रकारः – पूर्वपद के अन्त के ‘अ’ के साथ उत्तरपद के आरम्भ के ‘आ’ का मेल होने पर दोनों के स्थान पर ‘आ’ हो जाता है-
उदाहरणानि-

  • राम + आज्ञा = रामाज्ञा
  • धर्म + आस्था = धर्मास्था
  • धन + आदेशः = धनादेशः
  • परम + आचार्यः = परमाचार्यः
  • वर्ष + आगमः = वर्षागमः

तृतीय-प्रकार: – पूर्वपद के अन्त के ‘आ’ के साथ उत्तरपद के आरम्भ के ‘अ’ का मेल होने से दोनों के स्थान पर ‘आ’ हो जाता है-
उदाहरणानि-

  • वर्षा + अन्तः = वर्षान्तः
  • रमा + अङ्गानि = रमाङ्गानि
  • कृपा + अस्ति = कृपास्ति
  • दया + अर्थी = दयार्थी
  • लता + अपि = लतापि

चतुर्थ-प्रकार: – पूर्वपद के अन्त के ‘आ’ के साथ उत्तरपद के आरम्भ के ‘आ’ का मेल होने पर दोनों के स्थान पर ‘आ’ हो जाता है-
उदाहरणानि-

  • सुधा + आकरः = सुधाकरः
  • महा + आशयः = महाशयः
  • दया + आनन्दः = दयानन्दः
  • प्रिया + आदेशः = प्रियादेशः
  • सुरा + आलयः = सुरालयः

इसी तरह ह्रस्व अथवा दीर्घ इकार/ईकार के साथ ह्रस्व अथवा दीर्घ इकार/ईकार के मेल से दोनों के स्थान एक दीर्घ ईकार (ई) हो जाता है।
उदाहरणानि-
इ + इ

  • गिरि + इन्द्रः = गिरीन्द्रः
  • कपि + इच्छा = कपीच्छा
  • अभि + इष्टम् = अभीष्टम्
  • प्रति + इच्छति = प्रतीच्छति
  • इति + इयम् = इतीयम्

इ + ई

  • मुक्ति + ईशः = मुक्तीशः
  • रति + ईश्वरः = रतीश्वरः
  • अति + ईतः = अतीतः
  • परि + ईक्षा = परीक्षा
  • मुनि + ईहा = मुनीहा

ई + इ

  • नदी + इव = नदीव
  • लक्ष्मी + इन्द्रः = लक्ष्मीन्द्रः
  • सखी + इति = सखीति
  • महती + इच्छा = महतीच्छा
  • देवी + इष्टम् = देवीष्टम्

ई + ई

  • नदी + ईशः = नदीशः
  • लक्ष्मी + ईश्वरः = लक्ष्मीश्वरः
  • सखी + ईर्ष्या = सखीर्ष्या
  • महती + ईतिः = महतीतिः
  • देवी + ईहा = देवीहा

उकार / ऊकार के साथ उकार / ऊकार का मेल होने पर दोनों के स्थान पर ‘ऊ’ वर्ण हो जाता है।
उदाहरणानि-
उ + उ

  • वटु + उपरि = वटूपरि
  • भानु + उदयः = भानूदयः
  • पृथु + उदकः = पृथूदकः
  • लघु + उक्तिः = लघूक्तिः
  • साधु + उत्सवः = साधूत्सवः

उ + ऊ

  • लघु + ऊर्जः = लघूर्जः
  • सिन्धु + ऊर्मिः = सिन्धूमिः
  • साधु + ऊचुः = साधूचुः
  • मधु + ऊरुः = मधूरुः
  • बहु + ऊर्णा = बहूर्णा

ऊ + उ

  • भू + उपरि = भूपरि
  • हिन्दू + उदयः = हिन्दूदयः
  • कर्कन्धू + उदकः = कर्कन्धूदकः
  • चमू + उक्तिः = चमूक्तिः
  • वधू + उत्सवः = वधूत्सवः

ऊ + ऊ

  • चमू + ऊर्जः = चमूर्जः
  • वधू + ऊरुः = वधूरुः
  • भू + ऊर्ध्वम् = भूर्ध्वम्
  • चमू + ऊर्ध्वम् = चमूर्ध्वम्
  • हिन्दू + ऊर्जः = हिन्दूर्जः

ऋकार / ऋकार का ऋ / ऋकार से मेल होने पर ऋकार हो जाता है-
उदाहरणानि-

  • पितृ + ऋणम् = पितॄणम्
  • भ्रातृ + ऋणम् = भ्रातृणम्
  • कर्तृ + ऋणम् = कर्तृणम्
  • मातृ + ऋणम् = मातृणम्
  • दातृ + ऋणम् = दातृणम्
  • भर्तृ + ऋणम् = भर्तृणम्

2. गुणसन्धिः
(i) अ + इ = ए
सुर + इन्द्रः = सुरेन्द्रः

(ii) अ + ई = ए
गण + ईशः = गणेशः

(iii) आ + इ = ए
महा + इन्द्रः = महेन्द्रः

(iv) आ + ई = ए
महा + ईशः = महेशः

(v) अ + उ = ओ
सूर्य + उदयः = सूर्योदयः

(vi) अ + ऊ = ओ
जल + ऊर्मिः = जलोमिः

(vii) आ + उ = ओ
गङ्गा + उदकम् = गङ्गोदकम्

(viii) आ + ऊ = ओ
गङ्गा + ऊर्मयः = गङ्गोर्मयः

(ix) अ + ऋ = अर्
देव + ऋषिः = देवर्षिः

(x) आ + ऋ = अर्
महा + ऋषिः = महर्षिः

(xi) अ + लृ = अल्
तव + लृकारः = तवल्कारः

(xii) आ + लृ = अल्
माला + लृकारः = मालल्कारः

3. वृद्धिसन्धिः
(i) अ + ए = ऐ
तव + एव = तवैव

(ii) अ + ऐ = ऐ
मत + ऐक्यम् = मतैक्यम्

(iii) आ + ए = ऐ
तथा + एव = तथैव

(iv) आ + ऐ = ऐ
तथा + ऐक्यम् = तथैक्यम्

(v) अ + ओ = औ
जन + ओघः = जनौघः

(vi) आ + ओ = औ
मम + औरसः = ममौरसः

(vii) अ + औ = औ
महा + औषधम् = महौषधम्

(viii) आ + औ = औ
महा + औदार्यम् = महौदार्यम्

4. यण्सन्धिः
(i) इ + अन्य स्वर = य् + अन्य स्वर
यदि + अपि = यद्यपि

(ii) ई + अन्य स्वर = य् + अन्य स्वर
देवी + उवाच = देव्युवाच

(iii) उ + अन्य स्वर = व् + अन्य स्वर
अनु + अयः = अन्वयः

(iv) ऊ + अन्य स्वर = व् + अन्य स्वर
वधू + आदेशः = वध्वादेशः

(v) ऋ + अन्य स्वर = र् + अन्य स्वर
मातृ + अंशः = मात्रंशः

(vi) लृ + अन्य स्वर = ल् + अन्य स्वर
लृ + आकृतिः = लाकृतिः

5. अयादिसन्धिः
(i) ए + कोई स्वर = अय् + कोई स्वर
हरे + ए = हरये

(ii) ऐ + कोई स्वर = आय् + कोई स्वर
नै + अकः = नायकः

(iii) ओ + कोई स्वर = अव् + कोई स्वर
भो + अति = भवति

(iv) औ + कोई स्वर = आव् + कोई स्वर
नौ + इकः = नाविकः

6. पूर्वरूपसन्धिः
पदान्त ए + अ = ए + 0(ऽ) = एऽ
उदाहरणम्- हरे + अव = हरेऽव

7. पररूपसन्धिः
अकारान्त उपसर्ग (प्र, उप, अव) + ए / ओ = 0 + ए / ओ = ए / ओ
उदाहरणम्-

  • प्र + एषणम् = प्रेषणम्
  • उप + ओषति = उपोषति
  • अव + ओषति = अवोषति

8. प्रकृतिभावसन्धिः (सन्धि-निषेध)
उदाहरणानि-

  • कवी + इमौ = कवी इमौ
  • विष्णू + एतौ = विष्णू एतौ
  • लते + एते = लते एते

पूर्वपद में द्विवचन के ई, ऊ, ए होने पर ऐसा होता है।

स्वर-सन्धि तालिका
1. दीर्घ – आ, ई, ऊ, ऋ नदी + ईश्वरः = नदीश्वरः
2. गुण – ए, ओ, अर्, अल् रमा + ईशः = रमेशः
3. वृद्धि – ऐ, औ महा + औदार्यम् = महौदार्यम्
4. यण – य्, र, ल, व् हरि + आनन्दः = हर्यानन्दः
5. अयादि – अय्, आय, अव्, आव् नै + अकः = नायकः
6. पूर्वरूप – परस्वर लोप धर्मे + अस्मिन् = धर्मेऽस्मिन्
7. पररूप – पूर्वस्वर लोप प्र + एषयति = प्रेषयति
8. प्रकृतिभाव – निषेध कवी + इमौ = कवी इमौ

बहुविकल्पीय प्रश्नाः

रेखाङ्कितपदानां सन्धिं सन्धिच्छेदं वा कुरुत-

प्रश्न 1.
तत्र रमणीयं भो + अनं अस्ति।
(क) भोअनं
(ख) भोनं
(ग) भवनं
(घ) भावनं
उत्तराणि:
(ग) भवनं

प्रश्न 2.
सभायाम् कवी आगतौ।
(क) कवि + आगतौ
(ख) कवि + अगतौ
(ग) कवी + अगतौ
(घ) कवी + आगतौ
उत्तराणि:
(घ) कवी + आगतौ

प्रश्न 3.
अस्माकं कक्षायाः नायकः पुरुः अस्ति।
(क) नाय + अकः
(ख) नै + अकः
(ग) नाय् + अकः
(घ) ने + अक:
उत्तराणि:
(ख) नै + अक:

प्रश्न 4.
वनेषु बहवः मुनीन्द्राः वसन्ति।
(क) मुनि + इन्द्राः
(ख) मुनी + इन्द्राः
(ग) मुनि + ईन्द्राः
(घ) मुनि + न्द्राः
उत्तराणि:
(क) मुनि + इन्द्राः

प्रश्न 5.
हरिद्वारे अनेके देव + आलयाः सन्ति।
(क) देवलयाः
(ख) देवालयाः
(ग) देवालयः
(घ) देवालया
उत्तराणि:
(ख) देवालयाः

प्रश्न 6.
सूर्य + उदये तमः नश्यति।
(क) सूर्योदये
(ख) सूर्युदये
(ग) सूर्योदये
(घ) सूदये
उत्तराणि:
(क) सूर्योदये

प्रश्न 7.
यथा रोचते तथा + एव कुरुत।
(क) तथोव
(ख) तथैव
(ग) तथेव
(घ) तथौव
उत्तराणि:
(ख) तथैव

प्रश्न 8.
द्वारे को + अपि तिष्ठति।
(क) कोअपि
(ख) कोपि
(ग) कायपि
(घ) कोऽपि
उत्तराणि:
(घ) कोऽपि

प्रश्न 9.
साधवः त्यागेऽपि सुखं लभन्ते।
(क) त्यागे + पि
(ख) त्यागै + अपि
(ग) त्यागे + अपि
(घ) त्याग + अपि
उत्तराणि:
(ग) त्यागे + अपि

प्रश्न 10.
‘इत्युक्ति’ इत्यत्र कः सन्धिः?
(क) गुण सन्धि
(ख) वृद्धि सन्धि
(ग) यण् सन्धि
(घ) दीर्घ सन्धि
उत्तराणि:
(ग) यण् सन्धिः

प्रश्न 11.
‘नयनं’ इति पदे कः सन्धिः?
(क) अयादि सन्धिः
(ख) पररूप सन्धिः
(ग) गुण सन्धिः
(घ) प्रकृतिभाव सन्धि
उत्तराणि:
(क) अयादि सन्धि।